Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

29-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


29-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

 

मीठे बच्चे - अब नाटक पूरा होता हैवापिस घर जाना हैकलियुग अन्त के बाद फिर सतयुग रिपीट होगायह राज सभी को समझाओ |” 

प्रश्न:- आत्मा पार्ट बजाते-बजाते थक गई हैथकावट का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर:- बहुत भक्ति कीअनेक मन्दिर बनायेपैसा खर्च कियाधक्के खाते-खाते सतोप्रधान आत्मा तमोप्रधान बन गई। तमोप्रधान होने के कारण ही दु:खी हुई। जब किसी बात से कोई तंग होता है तब थकावट होती है। अभी बाप आये हैं सब थकावट मिटाने।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैंउनका नाम क्या हैशिव। यहाँ जो बैठे हैं तो बच्चों को अच्छी रीति याद रहना चाहिए। इस ड्रामा में जो सबका पार्ट हैवह अब पूरा होता है। नाटक जब पूरा होने पर होता है तो सभी एक्टर्स समझते हैं कि हमारा पार्ट अब पूरा होता है। अब जाना है घर। तुम बच्चों को भी बाप ने अभी समझ दी हैयह समझ और कोई में नहीं है। अभी तुम्हें बाप ने समझदार बनाया है। बच्चेअब नाटक पूरा होता हैअब फिर नयेसिर चक्र शुरू होना है। नई दुनिया में सतयुग था। अभी पुरानी दुनिया में यह कलियुग का अन्त है। यह बातें तुम ही जानते होजिनको बाप मिला है। नये जो आते हैं तो उनको भी यह समझाना है-अब नाटक पूरा होता हैकलियुग अन्त के बाद फिर सतयुग रिपीट होना है। इतने सब जो हैं उनको वापिस जाना है अपने घर। अब नाटक पूरा होता हैइससे मनुष्य समझ लेते हैं कि प्रलय होती है। अभी तुम जानते हो पुरानी दुनिया का विनाश कैसे होता है। भारत तो अविनाशी खण्ड हैबाप भी यहाँ ही आते हैं। बाकी और सब खण्ड खलास हो जायेंगे। यह ख्यालात और कोई की बुद्धि में आ नहीं सकते। बाप तुम बच्चों को समझाते हैंअब नाटक पूरा होता है फिर रिपीट करना है। आगे नाटक का नाम भी तुम्हारी बुद्धि में नहीं था। कहने मात्र कहते थेयह सृष्टि नाटक हैजिसमें हम एक्टर्स हैं। आगे जब हम कहते थे तो शरीर को समझते थे। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। अब हमको वापिस घर जाना हैवह है स्वीट होम। उस निराकारी दुनिया में हम आत्मायें रहती हैं। यह ज्ञान कोई भी मनुष्य मात्र में नहीं है। अभी तुम संगम पर हो। जानते हो अभी हमको वापिस जाना है। पुरानी दुनिया खत्म हो तो भक्ति भी खत्म हो। पहले-पहले कौन आते हैंकैसे यह धर्म नम्बरवार आते हैंयह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। यह बाप नई बातें समझाते हैं। यह और कोई समझा न सके। बाप भी एक ही बार आकर समझाते हैं। ज्ञान सागर बाप आते ही एक बार हैं जबकि नई दुनिया की स्थापनापुरानी दुनिया का विनाश करना है। बाप की याद के साथ यह चक्र भी बुद्धि में रहना चाहिए। अब नाटक पूरा होता हैहम जाते हैं घर। पार्ट बजाते-बजाते हम थक गये हैं। पैसा भी खर्च कियाभक्ति करते-करते हम सतोप्रधान से तमोप्रधान बन गये हैं। दुनिया ही पुरानी हो गई है। नाटक पुराना कहेंगेनहीं। नाटक तो कभी पुराना होता नहीं। नाटक तो नित्य नया है। यह चलता ही रहता है। बाकी दुनिया पुरानी होती हैहम एक्टर्स तमोप्रधान दु:खी हो जाते हैंथक जाते हैं। सतयुग में थोड़ेही थकेंगे। कोई बात में थकने वा तंग होने की बात नहीं। यहाँ तो अनेक प्रकार की तंगी देखनी पड़ती है। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। सम्बन्धी आदि कुछ भी याद नहीं आना चाहिए। एक बाप को ही याद करना चाहिएजिससे विकर्म विनाश होते हैंविकर्म विनाश होने का और कोई उपाय नहीं है। गीता में भी मनमनाभव अक्षर है। परन्तु अर्थ कोई समझ न सके। बाप कहते हैं-मुझे याद करो और वर्से को याद करो। तुम विश्व के वारिस अर्थात् मालिक थे। अभी तुम विश्व के वारिस बन रहे हो। तो कितनी खुशी होनी चाहिए। अभी तुम कौड़ी से हीरे मिसल बन रहे हो। यहाँ तुम आये ही हो बाप से वर्सा लेने।

तुम जानते हो जब कलायें कम होती हैं तब फूलों का बगीचा मुरझा जाता है। अभी तुम बनते हो गार्डन ऑफ फ्लावर। सतयुग गार्डन है तो कैसा सुन्दर है फिर धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। दो कला कम हुईगार्डन मुरझा गया। अभी तो कांटों का जंगल हो गया है। अभी तुम जानते हो दुनिया को कुछ भी पता नहीं है। यह नॉलेज तुमको मिल रही है। यह है नई दुनिया के लिए नई नॉलेज। नई दुनिया स्थापन होती है। करने वाला है बाप। सृष्टि का रचयिता बाप है। याद भी बाप को ही करते हैं कि आकर हेविन रचो। सुखधाम रचो तो जरूर दु:खधाम का विनाश होगा ना। बाबा रोज-रोज समझाते रहते हैंउसको धारण कर फिर समझाना है। पहले-पहले तो मुख्य बात समझानी है-हमारा बाप कौन है,जिससे वर्सा पाना है। भक्ति मार्ग में भी गॉड फादर को याद करते हैं कि हमारे दु:ख हरो सुख दो। तो तुम बच्चों की बुद्धि में भी स्मृति रहनी चाहिए। स्कूल में स्टूडेन्ट्स की बुद्धि में नॉलेज रहती हैन कि घर बार। स्टूडेन्ट लाइफ में धंधे-धोरी की बात रहती नहीं। स्टडी ही याद रहती है। यहाँ तो फिर कर्म करतेगृहस्थ व्यवहार में रहतेबाप कहते हैं यह स्टडी करो। ऐसे नहीं कहते कि सन्यासियों के मुआफिक घरबार छोड़ो। यह है ही राजयोग। यह प्रवृत्ति मार्ग है। सन्यासियों को भी तुम कह सकते हो कि तुम्हारा है हठयोग। तुम घरबार छोड़ते होयहाँ वह बात नहीं है। यह दुनिया ही कैसी गंदी है। क्या लगा पड़ा है! गरीब आदि कैसे रहे पड़े हैं। देखने से ही नफरत आती है। बाहर से जो विजीटर आदि आते हैं उन्हों को तो अच्छे- अच्छे स्थान दिखाते हैंगरीब आदि कैसे गंद में रहे पड़े हैंवह थोड़ेही दिखाते हैं। यह तो है ही नर्क परन्तु उनमें भी फर्क तो बहुत है ना। साहूकार लोग कहाँ रहते हैंगरीब कहाँ रहते हैंकर्मों का हिसाब है ना। सतयुग में ऐसी गन्दगी हो नहीं सकती। वहाँ भी फर्क तो रहता है ना। कोई सोने के महल बनायेंगेकोई चांदी केकोई ईटों के। यहाँ तो कितने खण्ड हैं। एक यूरोप खण्ड ही कितना बड़ा है। वहाँ तो सिर्फ हम ही होंगे। यह भी बुद्धि में रहे तो हर्षितमुख अवस्था हो। स्टूडेन्ट की बुद्धि में स्टडी ही याद रहती है-बाप और वर्सा। यह तो समझाया है बाकी थोड़ा समय है। वह तो कह देते लाखों- हजारों वर्ष। यहाँ तो बात ही 5 हजार वर्ष की है। तुम बच्चे समझ सकते हो अभी हमारे राजधानी की स्थापना हो रही है। बाकी सारी दुनिया खत्म होनी है। यह पढ़ाई है ना। बुद्धि में यह याद रहे हम स्टूडेन्ट हैंहमको भगवान पढ़ाते हैं। तो भी कितनी खुशी रहे। यह क्यों भूल जाता है! माया बड़ी प्रबल हैवह भुला देती है। स्कूल में सब स्टूडेन्ट्स पढ़ रहे हैं। सभी जानते हैं कि हमको भगवान पढ़ाते हैंवहाँ तो अनेक प्रकार की विद्या पढ़ाई जाती है। अनेक टीचर्स होते हैं। यहाँ तो एक ही टीचर हैएक ही स्टडी है। बाकी नायब टीचर्स तो जरूर चाहिए। स्कूल है एकबाकी सब ब्रान्चेज हैंपढ़ाने वाला एक बाप है। बाप आकर सभी को सुख देते हैं। तुम जानते हो-आधाकल्प हम सुखी रहेंगे। तो यह भी खुशी रहनी चाहिएशिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। शिवबाबा रचना रचते ही हैं स्वर्ग की। हम स्वर्ग का मालिक बनने लिए पढ़ते हैं। कितनी खुशी अन्दर में रहनी चाहिए। वह स्टूडेन्ट भी खाते पीते सब कुछ घर का काम आदि करते हैं। हाँकोई हॉस्टल में रहते हैं कि जास्ती पढ़ाई में ध्यान रहेगा। सर्विस करने के लिए बच्चियां बाहर में रहती हैं। कैसे-कैसे मनुष्य आते हैं। यहाँ तो तुम कितने सेफ बैठे हो। कोई अन्दर घुस न सके। यहाँ कोई का संग नहीं। पतित से बात करने की दरकार नहीं। तुमको कोई का मुँह देखने की भी दरकार नहीं है। फिर भी बाहर रहने वाले तीखे चले जाते हैं। कैसा वन्डर हैबाहर रहने वाले कितनों को पढ़ाकरआप समान बनाकर और ले आते हैं। बाबा समाचार पूछते हैं-कैसे पेशेन्ट को ले आये होकोई बहुत खराब पेशेन्ट है तो उनको 7 रोज भट्ठी में रखा जाता है। यहाँ कोई भी शूद्र को नहीं ले आना है। यह मधुबन है जैसे कि तुम ब्राह्मणों का एक गाँव। यहाँ बाप तुम बच्चों को बैठ समझाते हैंविश्व का मालिक बनाते हैं। कोई शूद्र को ले आयेंगे तो वह वायब्रेशन खराब करेगा। तुम बच्चों की चलन भी बहुत रॉयल चाहिए।

आगे चल तुमको बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे-वहाँ क्या-क्या होगा। जानवर भी कैसे अच्छे-अच्छे होंगे। सब अच्छी चीजें होंगी। सतयुग की कोई चीज यहाँ हो न सके। वहाँ फिर यहाँ की चीज हो न सके। तुम्हारी बुद्धि में है हम स्वर्ग के लिए इम्तहान पास कर रहे हैं। जितना पढ़ेंगे और फिर पढ़ायेंगे। टीचर बन औरों को रास्ता बताते हैं। सब टीचर्स हैं। सबको टीच करना है। पहले-पहले तो बाप की पहचान दे बतलाना है कि बाप से यह वर्सा मिलता है। गीता बाप ने सुनाई है। कृष्ण ने बाप से सुनकर यह पद पाया है। प्रजापिता ब्रह्मा है तो ब्राह्मण भी यहाँ चाहिए। ब्रह्मा भी शिवबाबा से पढ़ते रहते हैं। तुम अभी पढ़ते हो विष्णुपुरी में जाने के लिए। यह है तुम्हारा अलौकिक घर। लौकिकपारलौकिक और फिर अलौकिक। नई बात है ना। भक्ति मार्ग में कभी ब्रह्मा को याद नहीं करते। ब्रह्मा बाबा किसको कहने आता नहीं। शिवबाबा को याद करते हैं कि दु:ख से छुड़ाओ। वह है पारलौकिक बापयह फिर है अलौकिक। इनको तुम सूक्ष्मवतन में भी देखते हो। फिर यहाँ भी देखते हो। लौकिक बाप तो यहाँ देखने में आता हैपारलौकिक बाप तो परलोक में ही देख सकते। यह फिर है अलौकिक वण्डरफुल बाप। इस अलौकिक बाप को समझने में ही मूँझते हैं। शिवबाबा के लिए तो कहेंगे निराकार है। तुम कहेंगे वह बिन्दी है। वह करके अखण्ड ज्योति वा ब्रह्म कह देते हैं। अनेक मत हैं। तुम्हारी तो एक ही मत है। एक द्वारा बाप ने मत देना शुरू की फिर वृद्धि कितनी होती है। तो तुम बच्चों की बुद्धि में यह रहना चाहिए-हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं। पतित से पावन बना रहे हैं। रावण राज्य में जरूर पतित तमोप्रधान बनना ही है। नाम ही है पतित दुनिया। सब दु:खी भी हैं तब तो बाप को याद करते हैं कि बाबा हमारे दु:ख दूर कर हमको सुख दो। सब बच्चों का बाप एक ही है। वह तो सबको सुख देंगे ना। नई दुनिया में तो सुख ही सुख है। बाकी सब शान्तिधाम में रहते हैं। यह बुद्धि में रहना चाहिए-अभी हम जायेंगे शान्तिधाम। जितना नजदीक आते जायेंगे तो आज की दुनिया क्या हैकल की दुनिया क्या होगीसब देखते रहेंगे। स्वर्ग की बादशाही नजदीक देखते रहेंगे। तो बच्चों को मुख्य बात समझाते हैं-बुद्धि में यह याद रहे कि हम स्कूल में बैठे हैं। शिवबाबा इस रथ पर सवार हो आये हैं हमको पढ़ाने। यह भागीरथ है। बाप आयेंगे भी जरूर एक बार। भागीरथ का नाम क्या हैयह भी किसको पता नहीं है।

यहाँ तुम बच्चे जब बाप के सम्मुख बैठते हो तो बुद्धि में याद रहे कि बाबा आया हुआ है-हमको सृष्टि चक्र का राज बता रहे हैं। अभी नाटक पूरा होता हैअब हमको जाना है। यह बुद्धि में रखना कितना सहज है परन्तु यह भी याद कर नहीं सकते। अभी चक्र पूरा होता हैअब हमको जाना है फिर नई दुनिया में आकर पार्ट बजाना हैफिर हमारे बाद फलाने- फलाने आयेंगे। तुम जानते हो यह चक्र सारा कैसे फिरता है। दुनिया वृद्धि को कैसे पाती है। नई से पुरानी फिर पुरानी से नई होती है। विनाश के लिए तैयारियां भी देख रहे हो। नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है। इतने बॉम्ब्स बनाकर रखे हैं तो काम में तो आने हैं ना। बॉम्ब्स से ही इतना काम होगा जो फिर मनुष्यों के लड़ाई की दरकार नहीं रहेगी। लश्वर को फिर छोड़ते जायेंगे। बॉम्ब्स फेंकते जायेंगे। फिर इतने सब मनुष्य नौकरी से छूट जायेंगे तो भूख मरेंगे ना। यह सब होने का है। फिर सिपाही आदि क्या करेंगे। अर्थक्वेक होती रहेगीबॉम्बस गिरते रहेंगे। एक-दो को मारते रहेंगे। खूने-नाहेक खेल तो होना है ना। तो यहाँ जब आकर बैठते हो तो इन बातों में रमण करना चाहिए। शान्तिधामसुखधाम को याद करते रहो। दिल से पूछो हमको क्या याद पड़ता है। अगर बाप की याद नहीं है तो जरूर बुद्धि कहाँ भटकती है। विकर्म भी विनाश नहीं होंगेपद भी कम हो जायेगा। अच्छाबाप की याद नहीं ठहरती तो चक्र का सिमरण करो तो भी खुशी चढ़े। परन्तु श्रीमत पर नहीं चलतेसर्विस नहीं करते तो बापदादा की दिल पर भी नहीं चढ़ सकते। सर्विस नहीं करते तो बहुतों को तंग करते रहते हैं। कोई तो बहुतों को आपसमान बनाए और बाप के पास ले आते हैं। तो बाबा देखकर खुश होते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) सदा हर्षित रहने के लिए बुद्धि में पढ़ाई और पढ़ाने वाले बाप की याद रहे। खाते पीते सब काम करते पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है।

2) बापदादा की दिल पर चढ़ने के लिए श्रीमत पर बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस करनी है। किसी को भी तंग नहीं करना है।

वरदान:-कल्प-कल्प के विजय की स्मृति के आधार पर माया दुश्मन का आह्वान करने वाले महावीर विजयी भव

महावीर विजयी बच्चे पेपर को देखकर घबराते नहीं क्योंकि त्रिकालदर्शी होने के कारण जानते हैं कि हम कल्प-कल्प के विजयी हैं। महावीर कभी ऐसे नहीं कह सकते कि बाबा हमारे पास माया को न भेजो-कृपा करोआशीर्वाद करोशक्ति दोक्या करूं कोई रास्ता दो....यह भी कमजोरी है। महावीर तो दुश्मन का आह्वान करते हैं कि आओ और हम विजयी बनें।

स्लोगन:- समय की सूचना है-समान बनो सम्पन्न बनो।

 

Om Shanti ! Sakar Murli April 29, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli April 29, 2015


Essence: Sweet children, the play is now coming to an end and you have to return home. When the iron age ends, the golden age repeats again. Explain these secrets (raaz) to everyone.

Question: What is the main reason why souls have become tired whilst playing their parts?

Answer: They have been performing a great deal of devotion. They have built many temples. They have spent a lot of wealth. By stumbling around, souls have become tamopradhan from satopradhan. Because they have become tamopradhan, they are unhappy. When people are distressed for one reason or another they get tired. The Father has now come to remove all your tiredness (thakaavat).

Om shanti.

The spiritual Father sits here and explains to you children. What is His name? It is Shiva. Since you children are sitting here all of you should remember this very well. Everyone's part in this drama is now finishing. When a play is about to end, all the actors know that their parts are finishing and that they then have to go home. The Father has also given you children understanding. No one else has this understanding. The Father has now made you sensible. Children, the play is now coming to an end. Now, once again, the cycle has to start from the beginning. The golden age was in the new world. Now, in the old world, it is the end of the iron age. Only you, who have found the Father, know about these things. You have to explain to new ones who come that the play is now coming to an end. After the end of the iron age, the golden age will once again repeat. All souls here have to return home. The play is now coming to an end; therefore, people believe that total annihilation takes place. You now know how the old world is destroyed. The land of Bharat is imperishable. The Father also comes here. All other lands will be destroyed. These thoughts cannot enter anyone else's intellect. The Father explains to you children: The play is now coming to an end. It then has to repeat. Previously, the word "play" was not in your intellects. We used to say for the sake of saying it that this is the world drama in which we are all actors. Previously, when we used to say this, we considered ourselves to be bodies. The Father now says: Consider yourselves to be souls and remember the Father. We now have to return home. That is the sweet home. We souls reside in that incorporeal world. No human beings have this knowledge. You are now at the confluence. You know that you now have to return home. When the old world ends, devotion too comes to an end. It is not mentioned in the scriptures who comes first or how the religions come, numberwise. The Father explains these new things to you. No one else can explain them. The Father only comes once to explain. The Father, the Ocean of Knowledge, only comes once when the new world has to be established and the old world destroyed. Together with having remembrance of the Father, you must also keep this cycle in your intellects. The play is now ending and we are to return home. We have become tired while playing our parts. We spent a lot of money. While performing devotion, we became tamopradhan from satopradhan. The whole world has become old. Would you call the drama old? No; the drama never becomes old. The drama is new each day. It keeps on continuing. However, the world becomes old and the actors become tamopradhan, unhappy and tired. You will not get tired in the golden age. There is no question there of becoming tired or distressed about anything. Here, you have to see many types of distress. You know that this old world is to be destroyed. Do not remember any of your relatives etc. Only remember the one Father. Through this, your sins will be absolved. There is no other way for sins to be absolved. The word `manmanabhav' is mentioned in the Gita, but no one understands the meaning of it. The Father says: Remember Me and remember your inheritance. You were heirs of the world, that is, you were the masters. You are now becoming those heirs of the world. Therefore, you should have so much happiness. You are now changing from shells into diamonds. You have come here to claim your inheritance from the Father. You know that when your degrees decrease, the garden of flowers begins to wilt. You are now becoming a garden of flowers. The golden age is a garden; it is so beautiful. Then, gradually, the degrees begin to decrease. After a reduction of two degrees, the flowers in the garden wilt. It has now become a forest of thorns. You now know this. No one else in the world knows anything. This knowledge, that you are now receiving, is new knowledge for the new world. The new world is being established. It is the Father who does this. The Father is the Creator of the world. They remember the Father and call out to Him: Come and create heaven! Create the land of happiness! Therefore, the land of sorrow will surely be destroyed. Baba continues to explain every day. Imbibe these things and explain them to others. First of all, explain the main thing: Who our Father is from whom we have to claim our inheritance. People on the path of devotion remember God, the Father. They pray: Remove our sorrow and grant us happiness! Therefore, you children should also keep this awareness in your intellects. Students at school keep knowledge, not household matters, in their intellects. There aren't any business matters in a student life; only their studies are remembered. Here, whilst performing actions and living at home with your family, you are told by the Father: Study this! He doesn't say that you must leave your home and family like sannyasis. This is Raja Yoga; the household path. You can also tell the sannyasis that theirs is hatha yoga; they renounce their homes. It isn't like that here. This world is so dirty! Look what's in it! How poor people live! There is distaste on seeing that. All the visitors who come from abroad are shown very good places. They aren't shown how the poor have to live in those filthy places. This is hell. However, there is a great deal of difference between the places where the rich live and the places where the poor live. All of that is on account of their karma. There cannot be such filth in the golden age. There are differences there too. Some will build palaces of gold, some of silver and some of bricks. Here, there are so many lands; even Europe is so large. There, it will only be us. Just by keeping this much in your intellect, your stage will remain very cheerful. You students keep only this study in your intellects: the Father and the inheritance. It has been explained to you that very little time remains. Those people speak of hundreds of thousands of years. Here, it is a matter of 5000 years. You children can understand that your kingdom is now being established and that the rest of the world will be destroyed. This is a study, is it not? If your intellects remember that you are students and that God is teaching you, you will also have so much happiness! Why do you forget this? Maya is very powerful. She makes you forget even this. All of you are students studying in this school. All of you know that God is teaching you. At other schools, you are taught many different kinds of knowledge and there are many teachers, whereas here, there is only the one Teacher and only the one study. However, assistant teachers are definitely needed. There is only the one school. All the rest are its branches. Only the one Father teaches us. The Father comes here and gives happiness to everyone. You know that you will remain happy for half a cycle. Therefore, you should have the happiness that Shiv Baba is teaching us and that He is creating the creation of heaven. We are studying to become the masters of heaven. You should have so much happiness inside you! Students outside have to prepare their food to eat and drink and also do all the housework. Yes, some do stay in hostels so that they can pay more attention to their studies. Some daughters live outside in order to do service. Many types of people go there. Here, you are sitting so safely; no one can force his way in. You do not have anyone else's company here. You don't have to talk to impure ones. You don't have to see anyone's face. Nevertheless, those who live outside are able to go faster. It is such a wonder that those who live outside teach many others and make them similar to themselves and bring them here. Baba asks what news they have. What kind of patients have you brought? Some are such sick patients that they have to be kept in a bhatthi for seven days. You must not bring any shudras here. This Madhuban is like a village of you Brahmins. The Father sits here and explains to you children. He makes you into the masters of the world. Any shudras you bring here would spoil the vibrations. The activity and behaviour of you children has to be very royal. As you go further, you will have many visions of what will happen there, of how even animals there will be very good. Everything will be very good. Nothing of the golden age exists here and nothing of here can exist there. It is in your intellects that you are passing the exams to go to heaven. To the extent that you study and teach others, accordingly you become a teacher and show the path to others. All of you are teachers. You have to teach everyone. First of all, you have to give them the introduction of the Father and tell them about this inheritance that you receive from the Father. The Father spoke the Gita. Krishna listened to the Father speaking it and attained that status. There is Prajapita Brahma so there must also be Brahmins here. Brahma too continues to study from Shiv Baba. You are now studying in order to go to the land of Vishnu. That is your alokik home. There is the lokik, the parlokik and then the alokik. These are new things, are they not? People on the path of devotion never remember Brahma. No one even knows how to say "Brahma Baba". They remember Shiv Baba and pray: Liberate us from sorrow! He is the parlokik Father and this one is the alokik father. You see this one in the subtle region and also here. A lokik father is only seen here in this world, whereas the parlokik Father is only seen in the world beyond. This is then the alokik, wonderful father. People become confused in trying to understand about this alokik father. Shiv Baba is called the Incorporeal. You say that He is a point of light. People say that He is the eternal light or the brahm element. They have many various ideas, whereas you only have one direction. The Father started giving directions through this one. Then, there was so much expansion. Therefore, it should be in the intellects of you children that Shiv Baba is teaching you. He is making you pure from impure. In the kingdom of Ravan, you definitely had to become impure and tamopradhan. The very name is the impure world. Because everyone is unhappy, they remember the Father and pray: Baba, remove our sorrow and grant us happiness! There is the one Father of all the children. He would only give happiness to everyone, would He not? In the new world, there is nothing but happiness for you. Everyone else stays in the land of peace. It should remain in your intellects that you are now to go to the land of peace. As the time comes closer, you will be able to see what the world of today is and what the world of tomorrow will be; you will see everything. You will see the kingdom of heaven coming closer. Therefore, the main thing that is explained to you children is: Let your intellects remember that you are sitting in a school. Shiv Baba has come and is teaching us whilst riding in this chariot. This one is the Lucky Chariot. The Father would also definitely only come once. No one knows what the name "Lucky Chariot" means. When you children sit here personally in front of the Father, your intellects should remember that Baba has come. He is telling us the secrets of the world cycle. The play is now coming to an end and we have to return home. To keep this in the intellect is so easy! However, some of you are not even able to remember this. The cycle is now ending; we now have to return home. Then, we will go to the new world and play our parts. Then, after us, so-and-so will come. You know how the whole cycle turns and how the world population grows. It changes from new to old and then from old to new. You can also see the preparations for destruction. There will be natural calamities too. So many bombs that have been made will definitely be used. So much will happen through the bombs that there will be no need for human beings to battle. Troops will be released from the army and bombs will continue to be dropped. Therefore, all of those people dismissed from their employment will starve to death. All of that is to happen. What will the soldiers do then? There will be earthquakes. Bombs will continue to be dropped. People will continue to kill one another. There has to be bloodshed without cause. Therefore, when you come and sit here, you should think about all of these aspects. Continue to remember the land of peace and the land of happiness. Ask your heart: What am I remembering? If you aren't having remembrance of the Father, your intellect must definitely be wandering elsewhere. Your sins won't be absolved by that. Your status too will be reduced. Achcha, if you aren't able to remember the Father, think about the cycle. Then there will also be happiness. However, if you don't follow shrimat, if you don't do service, you aren't able to sit in BapDada's heart. If you aren't doing service, you would be causing distress for many others. Some make many others similar to themselves and bring them to the Father. Therefore, Baba becomes very pleased to see them. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

1. In order to remain constantly cheerful, keep this study and the Father who is teaching you in your intellect. While eating, drinking and performing any action, pay full attention to this study.

2. In order to sit in BapDada's heart, follow shrimat and do the service of making many others similar to yourself. Don't cause distress for anyone.

Blessing: May you be a victorious mahavir who invokes Maya, the enemy, on the basis of having the awareness of your victory in the previous cycle.

Victorious, mahavir children do not become afraid on seeing their paper; because of their being trikaldarshi, they know that they are victorious every cycle. Mahavir children can never say: Baba, do not send Maya to us! Have mercy! Give us blessings! Give us power! What can I do? Show me the path! This also is weakness. Mahavirs invoke their enemy: Come so that we can become victorious.

Slogan: The call of the time is: Become equal, become complete and perfect. (Samay ki soochna hai-samaan bano, sampann bano)

* * *OM SHANTI***

Daily Positive Thoughts: April 29, 2015: Travelling Companions

Daily Positive Thoughts: April 29, 2015: Travelling Companions



Travelling Companions


On the journey of life, we find many travelling companions.

Some are like-minded, others' are incompatible. 

Some encourage us to travel further; others' may hold us back. 

Some stay with us until their own journey steers them on a different course, and then we say goodbye!

Today, take a moment to appreciate your travelling companions.


Co-operation

Normally there is a tendency to do everything alone. We mostly feel
that it is much easier not to involve too many people in order to
avoid the different kinds of personalities we have to deal with. We do
expect others' help but not always do we get that. We then continue to
blame them which only creates negative feelings. So the responsibility
seems like a burden and we feel heavy. The basis of the success of any
task is the combined resources of many people. Each and everyone have
his own specialties and when we are able to connect to them, we are
able to make use of them for the task. So even the biggest task seems
easy with the cooperation of all. Secondly, our positive feelings
combined with the good wishes of all involved will be for the task
which will add to its success.



Identity Crisis


The primary quality or the original condition of a pure mind, a pure self, is peace. Initially there was no confusion about 'who I am'. As time passed by, and we came in the process of birth and rebirth, we began to identify with what we are not, starting with our own physical form, and then with external things like lands, positions, material possessions and people. These multiple identities generated the first confusions. In those moments, our inner peace was broken. This is why today many of us suffer from an identity crisis, but we are so used to living in this crisis that we are not even aware that it is a crisis. We are not sure what we should be. We are constantly comparing ourselves with others. We regularly aim to be like others. We even imitate (copy) the lifestyles of others: all signs that we don't know who or what we are. And if we think we are sure about who we are, the stability it brings does not last for long, as it is almost always based on something external to the self, something that must therefore be subject to change. In other words each and every one of us has learned to identify with something we are not.

This loss of true self-identity, at the most deep level, the spiritual level, is what gives rise to fear. And when what we fear might happen actually does happen, we get angry and try to control what we cannot control, so that it doesn't happen again.



Soul Sustenance


Performing A Spiritual Audit At The End Of The Day - Part 1

Our normal day at the office or/and at home is filled with lots of actions and interactions. On a normal day, without realizing consciously, we create almost 30,000-40,000 thoughts. So, not only are we active physically but extremely active on a subtle or non-physical level also. Imagine sleeping with all this burden of thoughts, words and actions which have been created throughout the day, many of which have been waste and negative in nature. What would be the resulting quality of my sleep? So it is extremely important to perform a spiritual/emotional audit or evaluation at the end of each day.

In a lot of professional sectors of life today, people recognize the need for reflection and audit, not only of financial records but also a general evaluation of the respective sector, to maintain and improve both the service to customers and the job satisfaction of people working in the sector. Checking my own behavior, as a daily exercise; not just checking, but also bringing about respective changes for the next day, enables me to continue to develop and grow, as a human being and in the quality of my work and personal and professional relationships. Have gone through the self-evaluation, it is also advised to become completely light by submitting the mistakes made and heaviness accumulated in the day to the Supreme Being. Doing this helps me put a full-stop to the same and settle all my spiritual accounts at the end of the day. I need to put an end to all commas (when looking at scenes that caused me to slow down and reduced the speed of my progress), question marks (when looking at scenes which caused a why, what, how, when, etc.... in my consciousness) and exclamation marks (when looking at negative or waste scenes, which were unexpected and surprising) which were created in the day's activities. Along with remembering what all good happened during the day, what did I achieve and what good actions did I perform, there is lots to forget at the end of the day, which should not be carried into my sleep at any cost. Disturbed, thought-filled, unsound sleep, will result in a not so fresh body and mind the next morning, which will cause my mood to be disturbed, adversely affecting the following day.

(To be continued tomorrow...) 


Message for the day


To be clean at heart is to give happiness to others.

Expression: The one who has a clean heart is the one who always tries to do the best for those with whom he comes in contact. Thus, the person develops the ability to accept others as they are and ignore anything wrong done by them. Instead, he is able to do the right action without losing the balance. So such a person brings happiness for himself and for others through every action he performs.

Experience: When I have a clean heart I am able to have an experience of my inner qualities. I am able to enjoy the beauty of the different relationships, each relationship and each person being unique. Thus others are able to get in touch with their inner beauty too. So there is happiness experienced by all.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


28-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


28-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन


मीठे बच्चे - तुम्हारा यह मोस्ट वैल्युबुल समय हैइसमें तुम बाप के पूरे-पूरे मददगार बनोमददगार बच्चे ही ऊंच पद पाते हैं |”

प्रश्न:- सर्विसएबुल बच्चे कौन सी बहाने बाजी नहीं कर सकते हैं?

उत्तर:- सर्विसएबुल बच्चे यह बहाना नहीं करेंगे कि बाबा यहाँ गर्मी हैयहाँ ठण्डी है इसलिए हम सर्विस नहीं कर सकते हैं। थोड़ी गर्मी हुई या ठण्डी पड़ी तो नाजुक नहीं बनना है। ऐसे नहींहम तो सहन ही नहीं कर सकते हैं। इस दु:खधाम में दु:ख-सुखगर्मी-सर्दीनिंदा-स्तुति सब सहन करना है। बहाने बाजी नहीं करनी है।

गीतः धीरज धर मनुवा........ 

ओम् शान्ति।

बच्चे ही जानते हैं कि सुख और दु:ख किसको कहा जाता है। इस जीवन में सुख कब मिलता है और दु:ख कब मिलता है सो सिर्फ तुम ब्राह्मण ही नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो। यह है ही दु:ख की दुनिया। इनमें थोड़े टाइम के लिए दु:ख-सुखस्तुति-निंदा सब कुछ सहन करना पड़ता है। इन सबसे पार होना है। कोई को थोड़ी गर्मी लगती तो कहते हम ठण्डी में रहें। अब बच्चों को तो गर्मी में अथवा ठण्डी में सर्विस करनी है ना। इस समय यह थोड़ा बहुत दु:ख भी हो तो नई बात नहीं। यह है ही दु:खधाम। अब तुम बच्चों को सुखधाम में जाने लिए पूरा पुरूषार्थ करना है। यह तो तुम्हारा मोस्ट वैल्युबुल समय है। इसमें बहाना चल न सके। बाबा सर्विसएबुल बच्चों के लिए कहते हैंजो सर्विस जानते ही नहींवह तो कोई काम के नहीं। यहाँ बाप आये हैं भारत को तो क्या विश्व को सुखधाम बनाने। तो ब्राह्मण बच्चों को ही बाप का मददगार बनना है। बाप आया हुआ है तो उनकी मत पर चलना चाहिए। भारत जो स्वर्ग था सो अब नर्क हैउनको फिर स्वर्ग बनाना है। यह भी अब मालूम पड़ा है। सतयुग में इन पवित्र राजाओं का राज्य थाबहुत सुखी थे फिर अपवित्र राजायें भी बनते हैंईश्वर अर्थ दान-पुण्य करने सेतो उनको भी ताकत मिलती है। अभी तो है ही प्रजा का राज्य। लेकिन यह कोई भारत की सेवा नहीं कर सकते। भारत की अथवा दुनिया की सेवा तो एक बेहद का बाप ही करते हैं। अब बाप बच्चों को कहते हैं-मीठे बच्चेअब हमारे साथ मददगार बनो। कितना प्यार से समझाते हैंदेही-अभिमानी बच्चे समझते हैं। देह-अभिमानी क्या मदद कर सकेंगे क्योंकि माया की जंजीरों में फंसे हुए हैं। अब बाप ने डायरेक्शन दिया है कि सबको माया की जंजीरों सेगुरूओं की जंजीरों से छुड़ाओ। तुम्हारा धन्धा ही यह है। बाप कहते हैं मेरे जो अच्छे मददगार बनेंगेपद भी वह पायेंगे। बाप खुद सम्मुख कहते हैं - मैं जो हूँजैसा हूँसाधारण होने के कारण मुझे पूरा नहीं जानते हैं। बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं-यह नहीं जानते। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थेयह भी किसको पता नहीं है। अभी तुम समझते हो कि कैसे इन्होंने राज्य पाया फिर कैसे गँवाया। मनुष्यों की तो बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि है। अब बाप आये हैं सबकी बुद्धि का ताला खोलनेपत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाने। बाबा कहते हैं अब मददगार बनो। मुसलमान लोग खुदाई खिदमतगार कहते हैं परन्तु वह तो मददगार बनते ही नहीं। खुदा आकर जिनको पावन बनाते हैं उनको ही कहते कि अब औरों को आप समान बनाओ। श्रीमत पर चलो। बाप आये ही हैं पावन स्वर्गवासी बनाने।

तुम ब्राह्मण बच्चे जानते हो यह है मृत्युलोक। बैठे-बैठे अचानक मृत्यु होती रहती है तो क्यों न हम पहले से ही मेहनत कर बाप से पूरा वर्सा ले अपना भविष्य जीवन बना लेवें। मनुष्यों की जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तो समझते हैं अब भक्ति में लग जायें। जब तक वानप्रस्थ अवस्था नहीं है तब तक खूब धन आदि कमाते हैं। अभी तुम सबकी तो है ही वानप्रस्थ अवस्था। तो क्यों न बाप का मददगार बन जाना चाहिए। दिल से पूछना चाहिए हम बाप के मददगार बनते हैं। सर्विसएबुल बच्चे तो नामीग्रामी हैं। अच्छी मेहनत करते हैं। योग में रहने से सर्विस कर सकेंगे। याद की ताकत से ही सारी दुनिया को पवित्र बनाना है। सारे विश्व को तुम पावन बनाने के निमित्त बने हुए हो। तुम्हारे लिए फिर पवित्र दुनिया भी जरूर चाहिएइसलिए पतित दुनिया का विनाश होना है। अभी सबको यही बताते रहो कि देह-अभिमान छोड़ो। एक बाप को ही याद करो। वही पतित-पावन है। सभी याद भी उनको करते हैं। साधू-सन्त आदि सब अंगुली से ऐसे इशारा करते हैं कि परमात्मा एक हैवही सबको सुख देने वाला है। ईश्वर अथवा परमात्मा कह देते हैं परन्तु उनको जानते कोई भी नहीं। कोई गणेश कोकोई हनूमान कोकोई अपने गुरू को याद करते रहते हैं। अब तुम जानते हो वह सब हैं भक्ति मार्ग के। भक्ति मार्ग भी आधाकल्प चलना है। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि सब नेती-नेती करते आये हैं। रचता और रचना को हम नहीं जानते। बाप कहते हैं वह त्रिकालदर्शी तो हैं नहीं। बीजरूपज्ञान का सागर तो एक ही है। वह आते भी हैं भारत में। शिवजयन्ती भी मनाते हैं और गीता जयन्ती भी मनाते हैं। तो कृष्ण को याद करते हैं। शिव को तो जानते नहीं। शिवबाबा कहते हैं पतित-पावन ज्ञान का सागर तो मैं हूँ। कृष्ण के लिए तो कह न सकें। गीता का भगवान कौनयह बहुत अच्छा चित्र है। बाप यह चित्र आदि सब बनवाते हैं,बच्चों के ही कल्याण लिए। शिवबाबा की महिमा तो कम्पलीट लिखनी है। सारा मदार इन पर है। ऊपर से जो भी आते हैं वह पवित्र ही हैं। पवित्र बनने बिगर कोई जा न सकें। मुख्य बात है पवित्र बनने की। वह है ही पवित्र धामजहाँ सभी आत्मायें रहती हैं। यहाँ तुम पार्ट बजाते-बजाते पतित बने हो। जो सबसे जास्ती पावन वही फिर पतित बने हैं। देवी-देवता धर्म का नाम-निशान ही गुम हो गया है। देवता धर्म बदल हिन्दू धर्म नाम रख दिया है। तुम ही स्वर्ग का राज्य लेते हो और फिर गँवाते हो। हार और जीत का खेल है। माया ते हारे हार हैमाया ते जीते जीत है। मनुष्य तो रावण का इतना बड़ा चित्र कितना खर्चा कर बनाते हैं फिर एक ही दिन में खलास कर देते हैं। दुश्मन है ना। लेकिन यह तो गुड़ियों का खेल हो गया। शिवबाबा का भी चित्र बनाए पूजा कर फिर तोड़ डालते हैं। देवियों के चित्र भी ऐसे बनाए फिर जाकर डुबोते हैं। कुछ भी समझते नहीं। अब तुम बच्चे बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते हो कि यह दुनिया का चक्र कैसे फिरता है। सतयुग-त्रेता का किसको भी पता नहीं। देवताओं के चित्र भी ग्लानि के बना दिये हैं।

बाप समझाते हैं-मीठे बच्चेविश्व का मालिक बनने के लिए बाप ने तुम्हें जो परहेज बताई है वह परहेज करोयाद में रहकर भोजन बनाओयोग में रहकर खाओ। बाप खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम विश्व के मालिक फिर से बन जायेंगे। बाप भी फिर से आया हुआ है। अब विश्व का मालिक पूरा बनना है। फालो फादर-मदर। सिर्फ फादर तो हो नहीं सकता। सन्यासी लोग कहते हैं हम सब फादर हैं। आत्मा सो परमात्मा हैवह तो रांग हो जाता है। यहाँ मदर फादर दोनों पुरूषार्थ करते हैं। फालो मदर फादरयह अक्षर भी यहाँ के हैं। अभी तुम जानते हो जो विश्व के मालिक थेपवित्र थेअब वह अपवित्र हैं। फिर से पवित्र बन रहे हैं। हम भी उनकी श्रीमत पर चल यह पद प्राप्त करते हैं। वह इन द्वारा डायरेक्शन देते हैं उस पर चलना हैफालो नहीं करते तो सिर्फ बाबा-बाबा कह मुख मीठा करते हैं। फालो करने वाले को ही सपूत बच्चे कहेंगे ना। जानते हो मम्मा-बाबा को फालो करने से हम राजाई में जायेंगे। यह समझ की बात है। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों। बस और कोई को भी यह समझाओ - तुम कैसे 84 जन्म लेते-लेते अपवित्र बने हो। अब फिर पवित्र बनना है। जितना याद करेंगे तो पवित्र होते जायेंगे। बहुत याद करने वाले ही नई दुनिया में पहले-पहले आयेंगे। फिर औरों को भी आपसमान बनाना है। प्रदर्शनी में बाबा-मम्मा समझाने लिए जा नहीं सकते। बाहर से कोई बड़ा आदमी आता है तो कितने ढेर मनुष्य जाते हैंउनको देखने के लिए कि यह कौन आया है। यह तो कितना गुप्त है। बाप कहते हैं मैं इस ब्रह्मा तन से बोलता हूँमैं ही इस बच्चे का रेसपॉन्सिबुल हूँ। तुम हमेशा समझो शिवबाबा बोलते हैंवह पढ़ाते हैं। तुमको शिवबाबा को ही देखना हैइनको नहीं देखना है। अपने को आत्मा समझो और परमात्मा बाप को याद करो। हम आत्मा हैं। आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है। यह नॉलेज बुद्धि में चक्र लगानी चाहिए। सिर्फ दुनियावी बातें ही बुद्धि में होंगी तो गोया कुछ नहीं जानते। बिल्कुल ही बदतर हैं। परन्तु ऐसे-ऐसे का भी कल्याण तो करना ही है। स्वर्ग में तो जायेंगे परन्तु ऊंच पद नहीं। सजायें खाकर जायेंगे। ऊंच पद कैसे पायेंगेवह तो बाप ने समझाया है। एक तो स्वदर्शन चक्रधारी बनो और बनाओ। योगी भी पक्के बनो और बनाओ। बाप कहते हैं मुझे याद करो। तुम फिर कहते बाबा हम भूल जाते हैं। लज्जा नहीं आती! बहुत हैं जो सच बताते नहीं हैं,भूलते बहुत हैं। बाप ने समझाया है कोई भी आये तो उनको बाप का परिचय दो। अब 84 का चक्र पूरा होता हैवापिस जाना है। राम गयो रावण गयो........ इसका भी अर्थ कितना सहज है। जरूर संगमयुग होगा जबकि राम का और रावण का परिवार है। यह भी जानते हो सब विनाश हो जायेंगेबाकी थोड़े रहेंगे। कैसे तुमको राज्य मिलता हैवह भी थोड़ा आगे चल सब मालूम पड़ जायेगा। पहले से ही तो सब नहीं बतायेंगे ना। फिर वह तो खेल हो न सके। तुमको साक्षी हो देखना है। साक्षात्कार होते जायेंगे। इस 84 के चक्र को दुनिया में कोई नहीं जानते।

अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है हम वापिस जाते हैं। रावण राज्य से अभी छुट्टी मिलती है। फिर अपनी राजधानी में आयेंगे। बाकी थोड़े रोज हैं। यह चक्र फिरता रहता है ना। अनेक बार यह चक्र लगाया है,अब बाप कहते हैं जिस कर्मबन्धन में फँसे हो उनको भूलो। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए भूलते जाओ। अब नाटक पूरा होता हैअपने घर जाना हैइस महाभारत लड़ाई बाद ही स्वर्ग के गेट्स खुलते हैं इसलिए बाबा ने कहा है यह नाम बहुत अच्छा हैगेट वे टू हेविन। कोई कहते हैं लड़ाईयाँ तो चलती आई हैं। बोलोमूसलों की लड़ाई कब लगी हैयह मूसलों की अन्तिम लड़ाई है। 5000 वर्ष पहले भी जब लड़ाई लगी थी तो यह यज्ञ भी रचा था। इस पुरानी दुनिया का अब विनाश होना है। नई राजधानी की स्थापना हो रही है।

तुम यह रूहानी पढ़ाई पढ़ते हो राजाई लेने के लिए। तुम्हारा धन्धा है रूहानी। जिस्मानी विद्या तो काम आनी नहीं हैशास्त्र भी काम नहीं आयेंगे तो क्यों न इस धन्धे में लग जाना चाहिए। बाप तो विश्व का मालिक बनाते हैं। विचार करना चाहिए-कौन-सी पढ़ाई में लगें। वह तो थोड़े डिग्रियों के लिए पढ़ते हैं। तुम तो पढ़ते हो राजाई के लिए। कितना रात-दिन का ॰फर्क है। वह पढ़ाई पढ़ने से भूगरे (चने) भी मिलेंगे या नहींपता थोड़ेही है। किसका शरीर छूट जाए तो भूगरे भी गये। यह कमाई तो साथ चलने की है। मौत तो सिर पर खड़ा है। पहले हम अपनी पूरी कमाई कर लेवें। यह कमाई करते- करते दुनिया ही विनाश हो जानी है। तुम्हारी पढ़ाई पूरी होगी तब ही विनाश होगा। तुम जानते हो जो भी मनुष्य-मात्र हैंउनकी मुट्ठी में हैं भूगरे। उसको ही बन्दर मिसल पकड़ बैठे हैं। अब तुम रत्न ले रहे हो। इन भूगरों (चनों) से ममत्व छोड़ो। जब अच्छी रीति समझते हैं तब भूगरों की मुट्ठी को छोड़ते हैं। यह तो सब खाक हो जाना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) रूहानी पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी मुट्ठी भरनी है। चनों के पीछे समय नहीं गँवाना है।

2) अब नाटक पूरा होता हैइसलिए स्वयं को कर्मबन्धनों से मुक्त करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना और बनाना है। मदर फादर को फालो कर राजाई पद का अधिकारी बनना है।
 
 

वरदान:- एकमत और एकरस अवस्था द्वारा धरनी को फलदायक बनाने वाले हिम्मतवान भव

जब आप बच्चे हिम्मतवान बनकर संगठन में एकमत और एकरस अवस्था में रहते वा एक ही कार्य में लग जाते हो तो स्वयं भी सदा प्रफुल्लित रहते और धरनी को भी फलदायक बनाते हो। जैसे आजकल साइन्स द्वारा अभी-अभी बीज डालाअभी-अभी फल मिलाऐसे ही साइलेन्स के बल से सहज और तीव्रगति से प्रत्यक्षता देखेंगे। जब स्वयं निर्विघ्न एक बाप की लगन में मगनएकमत और एकरस रहेंगे तो अन्य आत्मायें भी स्वत: सहयोगी बनेंगी और धरनी फलदायक हो जायेगी।

स्लोगन:- जो अभिमान को शान समझ लेतेवह निर्मान नहीं रह सकते। 

 

Om Shanti ! Sakar Murli April 28, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli April 28, 2015


Essence: Sweet children, this is the most valuable time for you. At this time, you become the Father's complete helpers. Children who become helpers claim a high status.

Question: What excuses (bahaane baaji) can serviceable children not make?

Answer: You serviceable children can never make the excuse: Baba, it is cold here, or, it is hot here and therefore I cannot do service here. Do not become delicate (naazuk) when it is a little hot or a little cold. It shouldn't be that you're unable to tolerate anything. In this land of sorrow you have to tolerate everything: happiness and sorrow, heat and cold, praise and defamation. (sukh dukh, garmi sardi, needa stuti) Don't make excuses.

Song: Have patience o man! Your days of happiness are about to come...dheeraj dhar manuva dheeraj dhar...

 Om shanti.

Only you children know what happiness and sorrow are. Only you Brahmins know, numberwise, according to the effort you make, about when you receive happiness and when you receive sorrow in this life. This is now the world of sorrow. You have to tolerate happiness and sorrow, praise and defamation, everything, for just a short time longer. You have to go beyond all of that. When some feel a little hot, they say: I want to go where it is cooler. Now, whether it's hot or cold you children now have to do service. This little discomfort at present is nothing new. This is the land of sorrow. In order to go to the land of happiness, you children now have to make full effort. This is your most valuable time. Excuses cannot be made. The Father is speaking to the serviceable children. Those who don't know how to do service are of no use at all. The Father has come here to make not just Bharat but the whole world into the land of happiness. So, you Brahmin children have to become the Father's helpers. The Father has come, and you must therefore follow His directions. Bharat, that used to be heaven, is now hell. It has to be made into heaven again. You now know this too. The golden age is the kingdom of pure kings. They were happy. Later on, they become impure kings donating in the name of God. They also receive strength. At present, it is government by the people. None of them can serve Bharat. Only the one unlimited Father serves Bharat and the whole world. The Father now says to the children: Sweet children, now become My helpers. He explains with so much love. The children who are soul conscious understand Him. How could body-conscious children help Him? They are trapped in the chains (janjir) of Maya. The Father has now given you the direction to liberate everyone from the chains of Maya, from the chains of the gurus. This is your business. The Father says: Those who help Me well will claim a good status. The Father Himself personally says: Because I am ordinary, no one knows Me accurately as I am or what I am. The Father makes us into the masters of the world. They don't know this. No one knows that Lakshmi and Narayan were the masters of the world. You now understand how they gained that kingdom and how they then lost it. The intellects of people are totally degraded. The Father has now come to open the lock on everyone's intellect, to change everyone's intellect from stone to diamond (patthar to paaras). Baba says: Now become My helpers. Muslims speak of God's helpers (Khudaai khidmatgaar), but they themselves don't become God's helpers. God tells whomever He makes pure to make others pure like themselves. Follow shrimat! The Father has come to make you into pure residents of heaven. You Brahmin children know that this is the land of death. Suddenly, just whilst sitting somewhere, people die. Therefore, before that happens, why should we not make effort to claim our full inheritance from the Father and make our future? When people reach their age of retirement, they believe that they should become occupied in devotion. Until the time they reach their stage of retirement, they earn a lot of money etc. It is now the stage of retirement of all of you. Therefore, why should you not become a helper of the Father. Ask your heart whether you have become a helper of the Father. Serviceable children are very well known; they make very good effort. By staying in yoga, you are able to do service. You have to purify the whole world with the power of remembrance. You have become the instruments to purify the whole world. A pure world is definitely needed for you. Therefore, the old world is to be destroyed. Now tell everyone: Renounce body consciousness! Only remember the one Father! He alone is the Purifier. Everyone remembers Him. Sages and holy men etc. signal upwards with a finger saying that there is only one Supreme Soul, and that He alone bestows happiness on everyone. Although people speak of God or the Supreme Soul, none of them knows Him. Some continue to remember Ganesh (elephant god), some Hanuman (monkey god) and some their own guru. You now know that all of that belongs to the path of devotion. The path of devotion continues for half the cycle. The great rishis and munis have all been saying, "Neti, neti (Neither this, nor that). We neither know the Creator nor the creation." The Father says: They are not trikaldarshi (seers of the three aspects of time). Only One is the Seed, the Ocean of Knowledge. He comes into Bharat. People celebrate Shiv Jayanti (the birth of Shiva) and also Gita Jayanti (the birth of the Gita). They remember Krishna, but they don't know Shiva. Shiv Baba says: Only I am the Ocean of Knowledge, the Purifier. No one would say this about Krishna. A very good picture is "Who is the God of the Gita?" The Father has all of these pictures created for the benefit of all the children. Write the complete praise of Shiv Baba. Everything depends on this. Everyone who comes down from up above is pure. No one can return home without becoming pure. The main thing is to become pure. That is the pure land, where all souls reside. Whilst playing your parts here, you have become impure. Those who were the most pure have become impure. All name and trace of the deity religion has disappeared. The name of the deity religion was changed to the Hindu religion. Only you claim the kingdom of heaven and then lose it. This is a play about defeat and victory. Those who are defeated by Maya are defeated by everything, and those who overcome Maya win everything. People spend so much money on creating a huge effigy of Ravan. Then they destroy it in one day. He is the enemy, is He not? That is like playing with dolls. They also create an image of Shiv Baba. They worship it and then break it up. In the same way, they create images of the deities and then sink them. They don't understand anything. You children now know the unlimited history and geography and how this world cycle turns. No one else knows about the golden and silver ages. The idols they have created of the deities are defamatory. The Father explains: Sweet children, in order to become the masters of the world, you must follow the precautions that the Father gives you. Prepare food in a state of remembrance. Eat it in remembrance. The Father Himself says: Remember Me and you will once again become the masters of the world. The Father has also come once again. You must now become complete masters of the world. Follow the mother and father; it cannot be just the father. Sannyasis say that all of them are the Father. They do this by saying that the soul is the Supreme Soul. That is wrong. Both the mother and father here are making effort. The saying "Follow the mother and father" refers to here. You now know that those who were the masters of the world were pure and that they are now impure. They are becoming pure once again. We are also following His shrimat and attaining that status. He is giving directions through this one. We have to follow them. Some of you don't follow them but simply sweeten your mouths by saying, "Baba, Baba". Only those who follow His directions are called worthy children. You know that by following Mama and Baba you will enter the kingdom. This is a matter of understanding. The Father simply says: Remember Me and your sins will be absolved. That's it! Simply explain to others how they became impure whilst taking 84 births, and that they now have to become pure again. The more you stay in remembrance, the purer you will become. Those who stay in remembrance a great deal will go to the new world first. You also have to make others similar to yourselves. Mama and Baba cannot go to explain at the exhibitions. When an important visitor comes from abroad, so many people gather to see who has come. This One is so incognito. The Father says: I speak through the body of Brahma. I am responsible for this child. You must always consider it to be Shiv Baba who is speaking and teaching you. You have to see only Shiv Baba, not this one. Consider yourself to be a soul and remember the Father, the Supreme Soul. I am a soul. A soul has an entire part within him. Turn this knowledge around in your intellects. If you only have worldly things in your intellects, it means you have not understood anything. They are totally degraded. However, even such people still have to be benefited. They will go to heaven but they won't claim a high status. They will experience punishment and then return home. The Father has explained how you can claim a high status. First, become those who spin the discus of self-realisation and also make others do that. Become firm yogis and also make others that. The Father says: Remember Me! You then say: Baba, we forget. Aren't you ashamed? There are so many who don't speak the truth. Many forget. The Father has explained: Give anyone who comes the Father's introduction. The cycle of 84 births is now ending and we have to return home. It is said, "When Rama went, Ravan also went. (Ram gayo, Ravan gayo)" The meaning of this is so simple! It must definitely also be at this confluence age that there are the families of both Rama and Ravan. You also know that everyone is to be destroyed and that only a very few will remain. As you continue to move along, you will come to know how you are to receive your kingdom. You would not be told everything at the start, would you? It wouldn't be a play otherwise. You have to watch it as a detached observer. You will continue to have visions. No one else in the world knows the cycle of 84 births. You children now have it in your intellects that you are to return home. You are now taking leave (chhutti) from the kingdom of Ravan. You will then go into your own kingdom. Very few days remain. This cycle continues to turn. You have been around this cycle many times. The Father now says: Forget all the karmic bondages in which you have been trapped. Whilst living at home with your family, continue to forget them. This play is now coming to an end. We now have to return home. Only after the Mahabharat War do the gates of heaven open. This is why Baba said: The name "Gateway to Heaven" is very good. Some say that these wars have always existed. Ask them: When did the war with missiles take place? This war of missiles is the last one. This sacrificial fire was also created when this war took place 5000 years ago. This old world is now to be destroyed. The new kingdom is being established. You are studying this spiritual study in order to claim your kingdom. Your business is spiritual business. Physical knowledge is not going to be of any use to you. Even the scriptures will be of no use to you. Therefore, why not engage yourself in this business? The Father is making you into the masters of the world. Think about which study you should engage yourself in. Those people study just to obtain a degree, whereas you study for a kingdom. There is the difference of day and night. In those studies you don't know whether you will even receive a few peanuts or not. When someone leaves his body, he also leaves the peanuts behind. This study will go with you. Death is standing over your heads. Therefore, before that happens, you should earn a full income. Whilst you continue to earn this income the world will be destroyed. When your study finishes, destruction will take place. You know that all human beings only have a few peanuts in their fists (manushya maatra ki mutthi me bhoogre). They are holding on to them like monkeys. You are now claiming jewels. Renounce your attachment to those few peanuts. When they understand everything clearly, they will let go of the handful of peanuts. Everything here is to turn to dust. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

1. You have to study and teach this spiritual study. Fill your hands with the imperishable jewels of knowledge. Do not waste time chasing after peanuts.

2. The play is now coming to an end. Therefore, liberate yourself from your karmic bondages (karm bandhan). Become those who spin the discus of self-realisation and make others the same. Follow the mother and father and become one who has a right to a royal status.

Blessing: May you be courageous (himmatvaan) and with one direction (ek mat) and a constant and stable stage (ek ras) make the land fruitful.

When you children are courageous and remain united with one direction in a constant and stable stage and are engaged in just one task, you remain constantly cheerful (prafullit) and you also make the land fruitful (faldaayak). Nowadays, with science, you sow the seeds and you immediately get the fruit. Similarly, with the power of silence, you will see revelation (pratyakshta)  easily at a fast speed. When you yourselves are free from obstacles and absorbed in the love of the one Father, united with one direction and are constant and stable, other souls will then naturally become easy yogis and the land will become fruitful.

Slogan: Those who consider ego to be their pride can never be humble. (abhimaan shaan nirmaan)


 * * *OM SHANTI***

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