Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

Essence of Murli (H&E) : June 06, 2014:



Essence of Murli (H&E) : June 06, 2014:

 

Essence:   Sweet children, you have come here to be transformed. You have to transform your devilish traits and imbibe divine virtues. This is a study to become deities.     

Question:   Which study do you children only study with the Father, a study that no one else can teach? 

Answer:    You study to become deities from human beings. No one, except the one Father, can teach you the study to change from impure to pure in order to go to the new world. Only the Father establishes the pure household path through this easy knowledge and Raja Yoga. 

 

Essence for Dharna: 

1. In order to establish your elevated kingdom, follow shrimat and become the Father's helpers. Just as deities are viceless, in the same way while living at home with your family become viceless. Create a pure household.

 

2. Do not use the point of the drama in the wrong way. Don't say "Drama!" and just sit down. Pay full attention to the study. Create an elevated reward for yourself by making effort. 
 

Blessing:  May you be loved by all and finish the worries of other souls through your connection with them.  

  

At present, because people have selfish motives and temporary attainments through material comforts, souls are disturbed by one or another worry. Their little contact with you souls who have pure and positive thoughts for others become the basis for finishing the worries of those souls. Today, the world needs souls like yourselves who have pure and positive thoughts for others and this is why you are deeply loved by the world. 


Slogan:  The words of you diamond-like souls are also like invaluable jewels.  

 


सार:- "मीठे बच्चे - यहाँ तुम बदलने के लिए आये हो, तुम्हें आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करने हैं, यह देवता बनने की पढ़ाई है"   

 

 

प्रश्र:- तुम बच्चे कौन-सी पढ़ाई बाप से ही पढ़ते हो, दूसरा कोई पढ़ा नही सकता?

 

उत्तर:- मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई, अपवित्र से पवित्र बनकर नई दुनिया में जाने की पढ़ाई एक बाप के सिवाए और कोई भी पढ़ा नही सकता । बाप ही सहज ज्ञान और राजयोग की पढ़ाई द्वारा पवित्र प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते है ।

 

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है । जैसे देवतायें निर्विकारी हैं, ऐसे गृहस्थ में रहते निर्विकारी बनना है । पवित्र प्रवृत्ति बनानी है ।

 

2) ड्रामा की प्वाइंट को उल्टे रूप से यूज नहीं करना है । ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है । पढाई पर पूरा ध्यान देना है । पुरूषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है ।

वरदान:- अपने सम्पर्क द्वारा अनेक आत्माओं की चिंताओं को मिटाने वाले सर्व के प्रिय भव ! 

  

वर्तमान समय व्यक्तियों में स्वार्थ भाव होने के कारण और वैभवों द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति होने के कारण आत्मायें कोई न कोई चिंता में परेशान है । आप शुभचिंतक आत्माओं के थोड़े समय का सम्पर्क भी उन आत्माओं की चिंताओं को मिटाने का आधार बन जाता है । आज विश्व को आप जैसी शुभचिंतक आत्माओं की आवश्यकता है इसलिए आप विश्व को अतिप्रिय हो ।

 

स्लोगन:- आप हीरे तुल्य आत्माओं के बोल भी रत्न समान मूल्यवान हो 
 

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