Essence of Murli
(H&E): July
12, 2014:
Essence: Sweet children, you
have come here to stay in remembrance and burn your sins away. Therefore, pay
full attention so that your intellect’s yoga is not fruitless (wasted).
Question: Which subtle vice
creates difficulty at the end?
Answer: If there is even a subtle form of the vice of greed,
if you collect and keep something with you out of greed, you will remember that
thing at the end and create difficulty. This is why Baba says: Children, do not
keep anything with you. You have to merge all thoughts and instill the habit of
staying in remembrance of the Father. Therefore, practice being soul conscious.
Essence for Dharna:
1. At the time of
sitting in remembrance of the Father, your intellects should not wander here
and there even slightly. Always continue to accumulate your income. Let your remembrance
be such that there is dead silence.
2. In order to keep your body healthy, when you tour
around, do not gossip with your companions, but keep yourself quiet and race in
remembrance of the Father. Take your meals in remembrance of the Father.
Blessing: May you be a true Raj
Rishi with an attitude of unlimited disinterest who remains free from all
attachment.
A Raj Rishi means, on the one
hand, to have a kingdom and, on the other hand, to be a rishi, that is, to be
one who has unlimited disinterest. If there is any attachment to your own self,
to any persons or things, you are not then a Raj Rishi. Those who have even the
slightest thought of attachment have their feet in two boats so that they are then
neither here nor there. Therefore, become a Raj Rishi, one who has unlimited
disinterest, who belongs to the one Father and none other. Make this lesson
firm.
Slogan: Anger is a form of fire which burns yourself as well as others. Therefore, become free from anger.
सार:- “मीठे बच्चे - तुम यहां याद में रहकर पाप दग्ध करने के लिए आये हो इसलिए बुद्धियोग निकल न जाए, इस बात का पूरा ध्यान रखना है”
प्रश्न:- कौन-सा सूक्ष्म विकार भी अन्त में मुसीबत खडी कर देता है ?
उत्तर:- अगर सूक्ष्म मे भी हबच (लालच) का विकार है, कोई चीज़ हबच के कारण इकट्ठी करके अपने पास जमा करके रख दी तो वही अन्त में मुसीबत के रूप मे याद आती है इसलिए बाबा कहते-बच्चे, अपने पास कुछ भी न रखो । तुम्हे सब संकल्पो को भी समेट कर बाप की याद मे रहने की टेव (आदत) डालनी है इसलिए देही- अभिमानी बनने का अभ्यास करो ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. बाप की याद में बैठते समय जरा भी बुद्धि इधर-उधर नहीं भटकनी चाहिए । सदा कमाई जमा होती रहे । याद ऐसी हो जो सन्नाटा हो जाए ।
2. शरीर को तन्दुरूस्त रखने के लिये घूमने फिरने जाते हो तो आपस में झरमुई-झगमुई (परचितन) नहीं करना है । जबान को शान्त मे रख बाप को याद करने की रेस करनी है । भोजन भी बाप की याद मे खाना है ।
वरदान:-बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा सर्व लगावों से मुक्त रहने वाले सच्चे राजऋषि भव !
राजऋषि अर्थात् एक तरफ राज्य दूसरे तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी । अगर कहाँ भी चाहे अपने मे, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु मे कहाँ भी लगाव है तो राजऋषि नही । जिसका संकल्प मात्र भी थोडा लगाव है उसके दो नाव में पाव हुए, फिर न यहाँ के रहेगे न वहाँ के । इसलिए राजऋषि बनी, बेहद के वैरागी बनो अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई -यह पाठ पक्का करो ।
स्लोगन:- क्रोध अग्नि रूप है जो खुद को भी जलाता और दूसरों को भी जला देता है इसलिए क्रोध मुक्त बनो ।
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