Essence of Murli
(H&E): July
23, 2014:
Essence: Sweet children, you
have to become those who belong to the Lord and Master and then princes and
princesses. Therefore, burn your sins away with the pilgrimage of remembrance.
Question: By using which one
method is all your sorrow removed?
Answer: When you look in the eyes of the Father and your
eyes meet His, all your sorrow is removed because, by remembering the Father
through considering yourself to be a soul, all your sins are cut away. This is
your pilgrimage of remembrance. You renounce all bodily religions and remember
the Father. By doing this, you souls become satopradhan and you then become the
masters of the land of happiness.
Essence for Dharna:
1. Keep in your
intellect the deep philosophy of action, neutral action and sinful action that
the Father has explained and do not have any exchange with sinful souls.
2. Follow shrimat, and connect your intellect's yoga to the
one Father. Make effort to become satopradhan. In order to make the land of
sorrow into the land of happiness, make effort to become pure from impure. You
have to change your criminal vision.
Blessing: May you be free from
laziness and carelessness and fulfill the responsibility of bringing benefit to
the world with zeal and enthusiasm.
Whether you are new or old, to
be a Brahmin means to take the responsibility of world benefit. When you have
responsibility, you fulfill that with intense speed whereas when you don’t have
a responsibility you remain careless. Responsibility finishes laziness and
carelessness. Those who have zeal and enthusiasm remain tireless. Through their
own nature and activity, they increase zeal and enthusiasm in others.
Slogan: To use the powers according to the time means to be a gyani and a yogi soul.
सार:- “मीठे बच्चे
- तुम्हें साहेबजादे सो शहजादे बनना है, इसलिए याद की यात्रा से अपने विकर्मों को भस्म करो''
प्रश्न:- किस एक विधि से तुम्हारे सब दुःख दूर हो जाते हैं?
उत्तर:- जब तुम अपनी नज़र बाप की नज़र से मिलाते हो तो नज़र मिलने से तुम्हारे सब दुःख दूर हो जाते हैं क्योंकि अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करने से सब पाप कट जाते हैं । यही है तुम्हारी याद की यात्रा । तुम देह के सब धर्म छोड़ बाप को याद करते हो, जिससे आत्मा सतोप्रधान बन जाती है, तुम सुखधाम के मालिक बन जाते हो ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. कर्म- अकर्म-विकर्म की गुह्य गति जो बाप ने समझाई है, वह बुद्धि में रख पाप आत्माओं से अब लेन- देन नहीं करनी है ।
2. श्रीमत पर अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाना है । सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ करना है । दुःखधाम को सुखधाम बनाने के लिए पतित से पावन बनने का पुरूषार्थ करना है । क्रिमिनल दृष्टि को बदलना है ।
वरदान:- उमंग-उत्साह से विश्व कल्याण की जिम्मेवारी निभाने वाले आलस्य व अलबेलेपन से मुक्त भव !
चाहे नये हो या पुराने हो, ब्राह्मण बनना माना विश्व कल्याण की जिम्मेवारी लेना । जब कोई भी जिम्मेवारी होती है तो तीव्रगति से पूरी करते हैं, जिम्मेवारी नहीं होती है तो अलबेले रहते हैं । जिम्मेवारी आलस्य और अलबेलापन समाप्त कर देती है । उमंग-उत्साह वाले अथक होते हैं । वे अपने चेहरे और चलन द्वारा औरों का भी उमंग-उत्साह बढ़ाते रहते हैं ।
स्लोगन:- समय प्रमाण शक्तियों को यूज़ करना माना ज्ञानी और योगी तू आत्मा बनना ।
No comments:
Post a Comment