Essence of Murli
(H&E): July
15, 2014:
Essence: Sweet
children, come away from the consciousness of brother and sister and consider
yourselves to be brothers and your eyes will become civil. Only when you souls
become civil eyed can you become karmateet.
Question: What
method should you create to remove your defects?
Answer: Keep a register of your character and note
down your chart every day. By keeping your register, you will know your
weaknesses and will easily be able to remove them. By gradually removing those
defects, you will reach the stage where you remember no one except the one
Father. Let there not be attachment to old things. Have no internal desire to
ask for anything.
Essence for Dharna:
1.
Become such yogis that you don't have the slightest attachment to your body. Do
not be attracted to dirty things. Let your stage be far beyond. Let your
mercury of happiness remain high.
2. Death is above your head, so do not delay carrying out
an auspicious task. Do not put anything off until tomorrow.
Blessing: May
you be a world benefactor who considers yourself to be an instrument and
remains free from waste thoughts and a wasteful attitude.
I am an
instrument for the task of world benefit. Maintain the awareness of this
responsibility and there will never be any waste thoughts or a wasteful
attitude towards anyone or your own self. Responsible souls cannot have a
single thought that is not benevolent. They cannot have a wasteful attitude for
even one second because the atmosphere has to be transformed through their
attitude. This is why they naturally have good wishes and pure feelings for
everyone.
Slogan: The power of ignorance is anger and the power of knowledge is peace.
सार:- “मीठे बच्चे - बहन-
भाई के भी भान से निकल भाई- भाई समझो तो सिविल आई बन जायेगी,
आत्मा जब सिविल- आईज्ड़ बने तब कर्मातीत बन सकती है”
प्रश्न:- अपनी खामियों को निकालने के लिए कौन- सी युक्ति रचनी चाहिए?
उत्तर:- अपने कैरेक्टर्स का रजिस्टर रखो । उसमे रोज का पोतामेल नोट करो । रजिस्टर रखने से अपनी कमियो का मालूम पड़ेगा फिर सहज ही उन्हें निकाल सकेगे । खामियो को निकालते-निकालते उस अवस्था तक पहुँचना है जो एक बाप के सिवाए दूसरा कुछ भी याद न रहे । किसी भी पुरानी चीज़ में ममत्व न रहे । अन्दर कुछ भी मांगने की तमन्ना न रहे ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. ऐसा योगी बनना है जो शरीर मे जरा भी ममत्व न रहे । कोई भी छी-छी चीज मे आसक्ति न जाये । अवस्था ऐसी उपराम रहे । खुशी का पारा चढ़ा
हुआ हो ।
2. काल सिर पर खडा है इसलिए शुभ कार्य मे देरी नहीं करनो है । कल पर
नहीं छोडना है ।
वरदान:-
स्वयं को निमित्त समझ व्यर्थ संकल्प या व्यर्थ वृत्ति से मुक्त रहने वाले विष्व
कल्याणकारी भव
!
मै विष्व कल्याण के कार्य अर्थ निमित्त हूँ - इस जिम्मवारी की स्मृति
मे रहो तो कभी भी किसी के प्रति वा अपने प्रति व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ वृत्ति नहीं हो सकती । जिम्मेवार आत्मायें
एक भी अकल्याणकारी संकल्प नहीं कर सकते । एक सेकण्ड भी व्यर्थ वृत्ति बना नहीं सकते क्योंकि उनकी वृत्ति से वायुमण्डल का परिवर्तन होना है इसलिए सर्व कै प्रति उनकी शुभ भावना, शुभ कामना स्वत : रहती है ।
स्लोगन:- अज्ञान की शक्ति क्रोध है और ज्ञान की शक्ति शान्ति है ।
No comments:
Post a Comment