Essence of Murli
(H&E): August
01, 2014:
Essence: Sweet children, you have come here to study. You
do not need to close your eyes. One generally studies with one’s eyes open.
Question: What habit do
devotees on the path of devotion have which you children should not have?
Answer: On the path of devotion, they go in front of the
images of any of the deities and continue to ask for something or other. They
have instilled in themselves the habit of asking for something. They go in
front of Lakshmi and ask for wealth, but they don't receive anything. You
children do not have this habit now. You children have a right to the Father's
inheritance. You just have to continue to look at the Father without an image.
It is through this that you earn a true income.
Essence for Dharna:
1. Make effort to keep permanently the decoration of
knowledge that the Father puts on you. Do not spoil your decoration of
knowledge in the dust of Maya. Study very well and earn an imperishable income.
2. While seeing this image, that is, this bodily being, in
front of you, remember the Father without an image with your intellect. Do not
develop the habit of sitting with your eyes closed. Do not ask the unlimited
Father for anything.
Blessing: May you be an intense
effort-maker who knows the importance of time and thereby goes fast and comes
first.
Souls who have come in the
avyakt part have the blessing of coming last and going fast, going fast and
coming first. So, know the importance of time and put the blessing you have
received into the practical form. This avyakt sustenance easily makes you
powerful and you can therefore move forward as much as you want. Because
BapDada and the instrument souls constantly give blessings to all souls for
them to fly ahead, you have easily received the fortune of making effort at a
fast speed.
(Baba is referring to the souls who took divine &
alokik birth and became Brahmins after
Jan 18, 1969- the blessing for them is last so fast, fast so first- you too can
come in the first division)
Slogan: With the awareness of the great mantra of “the incorporeal and the corporeal”, “निराकार सो साकार” become a constant yogi. निरन्तर योगी
सार:- “मीठे बच्चे
- तुम यहाँ पढ़ाई पढ़ने के लिए आये हो, तुम्हें आँख बन्द करने की दरकार नहीं, पढ़ाई आँख खोलकर पढ़ी जाती है”
प्रश्न:- भक्ति मार्ग में कौन- सी आदत भक्तों में होती है जो अब तुम बच्चों में नहीं होनी चाहिए?
उत्तर:- भक्ति में किसी भी देवता की मूर्ति के आगे जाकर कुछ न कुछ मांगते रहते हैं । उन्हों में मांगने की ही आदत पड़ जाती है । लक्ष्मी के आगे जायेंगे तो धन मानेंगे, लेकिन मिलता कुछ नहीं । अब तुम बच्चों में यह आदत नहीं, तुम तो बाप के वर्से के अधिकारी हो । तुम सच्चे विचित्र बाप को देखते रहो, इसमें ही तुम्हारी सच्ची कमाई है ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. बाप जो ज्ञान श्रृंगार करते हैं, उसे कायम रखने का पुरूषार्थ करना है । माया की धूल में ज्ञान श्रृंगार बिगाड़ना नहीं है । पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर अविनाशी कमाई करनी है ।
2. इस चित्र अर्थात् देहधारी को सामने देखते हुए बुद्धि से विचित्र बाप को याद करना है । आँखें बन्द कर बैठने की आदत नहीं डालनी है । बेहद के बाप से कुछ भी मांगना नहीं है ।
वरदान:- समय के महत्व को जान फास्ट सो फर्स्ट आने वाले तीव्र गति के पुरुषार्थी भव !
अव्यक्त पार्ट में आई हुई आत्माओं को लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट आने का वरदान प्राप्त है । तो समय के महत्व को जान मिले हुए वरदान को स्वरूप में लाओ । यह अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है इसलिए जितना आगे बढ़ना चाहो, बढ़ सकते हो । बापदादा और निमित्त आत्माओं की सर्व के प्रति सदा आगे उड़ने की दुआयें होने के कारण तीव्र गति के पुरुषार्थ का भाग्य सहज मिला हुआ है ।
स्लोगन:- “निराकार सो साकार” के महामन्त्र की स्मृति से निरन्तर योगी बनो ।