Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

21 jan 1969

21 jan 1969







8-6-2012 HINDI

8-6-2012

[08-06-2012]

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - सदा ईश्वरीय सेवा में बिजी रहो तो बाप से लव बढ़ता जायेगा, खुशी का पारा चढ़ा रहेगा'' 
प्रश्न: नज़र से निहाल होने वाले बच्चों की दिल में कौन सी खुशी रहती है? 
उत्तर: उनके दिल में स्वर्ग के बादशाही की खुशी रहती है क्योंकि बाप की नज़र मिली अर्थात् वर्से के अधिकारी बने। बाप में सब समाया हुआ है। 
प्रश्न:- बाप बच्चों को रोज़ भिन्न-भिन्न ढंग से नई प्वाइंट्स क्यों सुनाते हैं? 
उत्तर:- क्योंकि बच्चों की अनेक जन्मों की दिल पूरी करनी है। बच्चे बाप द्वारा नई-नई प्वाइंट्स सुनते हैं तो बाप के प्रति लव बढ़ता जाता है। 
गीत:- तूने रात गंवाई सो के.... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) कभी भी किसी बात में मूंझ कर निश्चय में ऊपर नीचे नहीं होना है। घरबार सम्भालते, कर्मयोगी होकर रहना है। विजय माला में नजदीक आने के लिए पवित्र जरूर बनना है। 
2) बुद्धिवान बनने के लिए ज्ञान का विचार सागर मंथन करना है। सदा खिदमत (सेवा) में तत्पर रहना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है। 
वरदान: दूसरों के परिवर्तन की चिंता छोड़ स्वयं का परिवर्तन करने वाले शुभ चिंतक भव 
स्व परिवर्तन करना ही शुभ चिंतक बनना है। यदि स्व को भूल दूसरे के परिवर्तन की चिंता करते हो तो यह शुभचिंतन नहीं है। पहले स्व और स्व के साथ सर्व। यदि स्व का परिवर्तन नहीं करते और दूसरों के शुभ चिंतक बनते हो तो सफलता नहीं मिल सकती इसलिए स्वयं को कायदे प्रमाण चलाते हुए स्व का परिवर्तन करो, इसी में ही फायदा है। बाहर से कोई फायदा भल दिखाई न दे लेकिन अन्दर से हल्कापन और खुशी की अनुभूति होती रहेगी। 
स्लोगन: सेवाओं का सदा उमंग है तो छोटी-छोटी बीमारियां मर्ज हो जाती हैं। 

[08-06-2012]

Essence: Sweet children, always remain busy in Godly service, and your love for the Father will increase and the mercury of your happiness will always remain high. 
Question: What is the happiness in the hearts of the children who have experienced going beyond through receiving Baba’s drishti? 
Answer: In their hearts they experience the happiness of the kingdom of heaven, because, as soon as a soul receives a glance from the Father, he claims a right to the inheritance. The Father has everything merged in Him. 
Question: Why does the Father give different points to the children in a variety of ways every day? 
Answer: To fulfil the desire of many births of the children. Children listen to the new points from the Father, and so their love for the Father increases. 
Song: You spent the night in sleeping and the day in eating. 

Essence for dharna: 
1. Never become confused about anything and fluctuate in your faith. While looking after your home etc. remain a karma yogi. In order to be threaded close in the rosary of victory, you must definitely become pure. 
2 Churn the ocean of knowledge in order to become clever. Constantly remain engaged in God’s service. Do the service of making others the same as yourself. 

Blessing: May you be one with pure and positive thoughts and stop worrying about the transformation of others but bring about transformation in yourself. 
To bring about self-transformation is to be one with pure and positive thoughts. If you forget the self and worry about the transformation of others, that is not having pure and positive thoughts for the self. First is the self and then together with the self there is everyone else. If you do not bring about transformation in yourself, but simply have pure and positive thoughts for others, you cannot have success. Therefore, while conducting yourself according to the laws, bring about transformation in yourself. Only in this is there benefit. Externally, there may not be any benefit visible, but you will continue to experience internal lightness and happiness. 
Slogan: If you constantly have enthusiasm for service, minor illnesses will become merged. 

18 jan 1969










DHARNA KE BINDU

DHARNA KE BINDU
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BAPDADA 18-1-2011




7-6-2012



[07-06-2012]

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मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप से जो प्रतिज्ञा की है उस पर पूरा-पूरा चलना है, धरत परिये धर्म न छोड़िये - यही है सबसे ऊंची मंजिल, प्रतिज्ञा को भूल उल्टा कर्म किया तो रजिस्टर खराब हो जायेगा'' 
प्रश्न: यात्रा पर हम तीखे जा रहे हैं उसकी परख अथवा निशानी क्या होगी? 
उत्तर: अगर यात्रा पर तीखे जा रहे होंगे तो बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता रहेगा। सदा बाप और वर्से के सिवाए और कुछ भी याद नहीं होगा। यथार्थ याद माना ही यहाँ का कुछ भी दिखाई न दे। देखते हुए भी जैसे नहीं देख रहे हैं। वह सब कुछ देखते हुए भी समझेंगे कि यह सब मिट्टी में मिल जाना है। यह महल आदि खलास हो जाना है। यह कुछ भी हमारी राजधानी में नहीं था, न फिर होगा। 
गीत:- मांझी मेरे किस्मत की..... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) अन्दर में कोई भी खामी हो तो उसे चेक कर निकाल देना है। बाप से जो प्रतिज्ञा की है उस पर अटल रहना है। 
2) भोजन बहुत शुद्धि से दृष्टि देकर स्वीकार करना है। बाप अथवा साजन की याद में खुशी-खुशी भोजन खाना है। 
वरदान: अपनी सूक्ष्म चेकिंग द्वारा पापों के बोझ को समाप्त करने वाले समान वा सम्पन्न भव 
यदि कोई भी असत्य वा व्यर्थ बात देखी, सुनी और उसे वायुमण्डल में फैलाई। सुनकर दिल में समाया नहीं तो यह व्यर्थ बातों का फैलाव करना-यह भी पाप का अंश है। यह छोटे-छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं। ऐसे समाचार सुनने वालों पर भी पाप और सुनाने वालों पर उससे ज्यादा पाप चढ़ता है इसलिए अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर ऐसे पापों के बोझ को समाप्त करो तब बाप समान वा सम्पन्न बन सकेंगे। 
स्लोगन: बहानेबाजी को मर्ज कर दो तो बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज हो जायेगी। 


[07-06-2012]

Essence: Sweet children, completely fulfil the promise you have made to the Father. No matter what happens, never renounce your dharma (righteousness); this is the highest destination. If you forget your promise and perform wrong actions, your register is spoilt. 
Question: What indicates that you are moving very fast on your pilgrimage? 
Answer: If you are moving very fast on your pilgrimage, the discus of self-realisation is constantly spinning in your intellect; nothing, except the Father and the inheritance is remembered. Accurate remembrance means that nothing of this world is visible. It is as though, even while seeing, you are not seeing anything. Even while seeing everything, you have the consciousness that all of it is to turn to dust, that all of these palaces etc. are to finish, that none of these existed in our kingdom, and that they will cease to exist again. 
Song: O boatman, take the boat of my fortune wherever you wish! 

Essence for dharna: 
1. If you have any internal weakness, check and remove it. Remain firm on the promise you have made to the Father. 
2. You must take food in a state of great cleanliness and by giving it drishti. Eat your food in remembrance of the Father and the Bridegroom with a lot of happiness. 

Blessing: May you be equal and complete and finish the burden of sins through your subtle checking. 
If you saw or heard something untrue or wasteful and spread that into the atmosphere and did not merge it in your heart, then to spread something wasteful like that is also a trace of sin. These little sins finish your experience of the flying stage. Those who listen to such news accumulate sin and those who relate such news accumulate even more sin. Therefore, check yourself in a subtle way and finish the burden of such sins, for only then will you be able to become complete and equal to the Father. 
Slogan: Merge making excuses for only then will you be able to emerge an attitude of unlimited disinterest. 




योगअभ्यास के समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती

योग एक कठिन साधना है। इसका अभ्यास किसी गुरु के सानिध्य में रहकर ही किया जाता है। विभिन्न योगाचार्यों अनुसार अभ्यास के
समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती हैं, जिससे हठ योग साधना में विघ्न उत्पन्न होता हैं। ये आदतें निम्न 
हैं:- अधिक आहार, अधिक प्रयास, दिखावा, नियम विरुद्ध, लोक-संपर्क तथा चंचलता।

1.अधिक आहार : अधिक आहार की आदत योग में बाधा उत्पन्न करती है। डटकर भोजन करने वाले आलस्य, निद्रा, मोटापा आदि के 

शिकार बन जाते हैं। यौगिक आहार नियम को जानकर ही आहार करें। आहार संयम होना आवश्यक है।

2.अधिक प्रयास : कुछ अभ्यास ठीक से नहीं हो पाते तब साधक जोर लगाकर अधिक प्रयास से अभ्यास को साधना चाहता है, यह आदत

 घातक है। शरीर और मन की क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपनी ओर से कभी अधिक प्रयास नहीं करना चाहिए।

3.दिखावापन : इसे योगाचार्य प्रजल्प भी कहते हैं। कुछ लोग अपने अभ्यासों के संबंध में लोगों के समक्ष बढ़ा-चढ़ाकर बखान करते हैं।

 बहुत से अपने अभ्यास की थोड़ी बहुत सफलता का प्रदर्शन भी करते हैं। यही दिखावेपन की आदत योगी को योग से दूर कर देती है। 
अतः जो भी अभ्यास करें, उसकी चर्चा, जहाँ तक हो सके दूसरों से खासकर अनधिकारी व्यक्तियों से कभी न करें।

4.नियम विरुद्ध : योग के नियम के विरुद्ध है मन से नियम बनाना, इसे नियमाग्रह कहते हैं। बहुत से लोग कुछ खास नियम बना लेते हैं 

और आग्रह रखते हैं कि उसी के अनुसार चलेंगे। एक अर्थ में यह ठीक है और ऐसा करना भी चाहिए। किन्तु कभी-कभी यह विघ्नकारक 
भी हो जाता है।

उदाहरणार्थ- जैसे खाने के नियम बना लेते हैं कि एक फल ही खाऊँगा या सप्ताह में तीन दिन ही खाऊँगा। अभ्यास के नियम कि स्नान 

के बाद ही अभ्यास करेंगे या सुबह ही करेंगे या किसी खास स्थान में ही करेंगे। बुखार होगा तब भी अभ्यास नहीं छोड़ेगे। इस तरह मनमाने 
नियम से शरीर और मन को कष्ट होता है जबकि योग कहता है कि मध्यम मार्ग का अनुसरण करो। नियम हो लेकिन सख्त न हो। नियमों 
में लचीलापन बना रहना चाहिए।

5.जन-संपर्क : योग का अभ्यास करने वाले को अधिक जन-संपर्क में नहीं रहना चाहिए। उसे बहस, वाद-विवाद, सांसारिक चर्चा से दूर

 रहना चाहिए। अधिक जन संपर्क या संग से खानपान की बुरी आदतें भी बनने लगती हैं। अतः जहाँ तक संभव हो लोगों से कम संपर्क 
रखें।

6.चंचलता : कभी यहाँ, कभी वहाँ, कभी कुछ, कभी कुछ, यह शरीर की चंचल प्रवृत्ति ठीक नहीं होती। शारीरिक चंचलता से मन की चंचलता 

या मन की चंचलता से शारीरिक चंचलता उत्पन्न होती है। अतः शरीर को भी स्थिर रखें, अधिक दौड़धूप न करें और मन को भी शांत व 
स्थिर रखें। अधिक इधर-उधर की न सोचें।

7.संकल्प और धैर्य : संकल्पवान और धैर्यशील व्यक्ति ही योग में सफल हो सकता। संकल्प और धैर्य के अभाव में योग ही नहीं किसी भी 

विद्या या कार्य में सफलता अर्जित नहीं की जा सकती। संकल्प और धैर्यशीलता से ही सभी तरह की बाधाओं को पार किया जा सकता है 
अत: संकल्प और धीरज का होना बहुत जरूरी है।

इस प्रकार उपर्युक्त यह सात विघ्नकारक तत्व हैं, जिनसे योगाभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है। सच्चा साधक इन विघ्नों से सदा दूर रहकर

 और अपनी आदतों में सुधार कर अपने योगाभ्यास को सफल बनाता है

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