Swamaan / Sankalp / Slogan: Swaroop Bano
November 06, 2013
हम आत्माएँ, ज्ञान स्नान से अटेन्शन और अभ्यास कर, ज्ञानयुक्त रहमदिल बन प्यार से स्व और सर्व की सेवा कर बाप के दिलतख़्त पर बैठनेवाले, बाप की पलकों पर बैठ सुखधाम चलनेवाले, बहिश्त की परियाँ हैं...
By bathing in knowledge, we, the souls, the angels of Paradise, have attention and practice, become merciful in a knowledge-full way, serve the self and all others with love, climb on to the Father's heart-throne, and go to the land of happiness by sitting on the Father's eyelids.
Om Shanti Divine Angels!!!
Points to Churn: November 06, 2013
Praise of the Father: the Spiritual Father... Supreme Spirit, the Supreme Father, and the Supreme Soul...the Chief Guide...the Unlimited Father... Supreme Father, the Supreme Soul, the Almighty Authority...
Knowledge: In the incorporeal world the sanskars of knowledge disappear and only the sanskars of the reward remain. It is on the basis of these sanskars that you experience your reward in the golden age. The sanskars of studying and makingeffort do not remain there. Once you receive your reward, this knowledge ends.
Yoga: Manmanabhav! This is a spiritual pilgrimage. Remember Me and you will come to Me. After going to the land of Shiva, you will go to the land of Vishnu. The Father gives you this great mantra: Remember Me and you will become conquerors of sin. You have to become spiritual guides and go on this pilgrimage and enable others to go on it. This remembrance is your pilgrimage. Continue to have remembrance and your mercury of happiness will rise.
TheSupremeSpirit, the Supreme Father, the Supreme Soul, gives you this knowledge and says to you souls: O children, connect your intellect’s yoga to Me alone.
Dharna: Bathe in knowledge and become merciful in a knowledge-full way and become an empress of Paradise. It is a common thing for you to go and come from Paradise through the powers of knowledge and yoga.
Yours is only the one true story of becoming a true Narayan, that is, of becoming Narayan from an ordinary man. Do not become careless at this time of makingeffort. By recognizing the Father, human beings become like diamonds. By not knowing Him, human beings become like shells and completely impure. By knowing the Father, they become pure.
Service: Wealth is not reduced by donating it. Only when you do service will you climb on to Baba’s heart-throne. Uplift others with knowledge and yoga. Serve others with love and climb on to the Father's heart-throne. Take your companions with you on this spiritual pilgrimage. It is your duty to tell everyone about this pilgrimage. Make everyone worthy to take the pilgrimage.
Always do service of the self and service of others simultaneously, keep a balance of the two and move forward. Give everyone the introduction of the Father and the inheritance. Baba continues to give you a signal that you have to explain to the Government.
Points of Self Respect: Spiritual guides...spiritual travellers...Brahma Kumars and Kumaris...Brahmins, the children of Brahma...the angels of Paradise... empresses of Paradise.... the masters of Paradise...the masters of the world...embodiments of success...victorious souls...instruments...
ॐ शान्ति दिव्य फरिश्ते !!!
विचार
सागर
मंथन:
November 06, 2013
बाबा की महिमा : रूहानी बाप ...सुप्रीम रूह परमपिता परमात्मा... चीफ पण्डा... बेहद का बाप... परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान...
ज्ञान : निराकारी दुनिया
में नॉलेज
के संस्कार समाप्त हो जाते, प्रालब्ध के संस्कार रह जाते
हैं | जिन संस्कारों के आधार
पर तुम
बच्चे सतयुग
में प्रालब्ध भोगते हो,
वहाँ फिर
पढ़ाई का वा पुरुषार्थ का संस्कार नहीं रहता
है | प्रालब्ध मिल
गई फिर
ज्ञान ख़त्म
हो जाता
है |
योग
: मनमनाभव | यह है रूहानी यात्रा,
मुझे याद
करो तो तुम मेरे
पास पहुँच
जायेंगे | शिव पुरी
में आकर
फिर विष्णुपुरी में चले
जायेंगे | बाप महामन्त्र देते हैं,
मुझे याद
करो तो तुम विकार्मजीत बन जायेंगे | तुम्हें रूहानी
पण्डा बन यात्रा करनी
और करानी
है, याद
ही तुम्हारी यात्रा है,
याद करते
रहो तो ख़ुशी का पारा चढ़े | सुप्रीम रूह
परमपिता परमात्मा आत्माओं को कहते हैं
कि हे बच्चे, अब मुझ एक के साथ
बुद्धि का योग लगाओ
और ज्ञान
भी देते
हैं |
धारणा : ज्ञान स्नान
कर ज्ञानयुक्त रहमदिल बनना
है | तुम
बहिश्त की परी बन जाते हो और ज्ञान-योगबल से वैकुण्ठ में
आना-जाना
तो तुम्हारे लिए कॉमन
बात है |
तुम्हारी एक ही सत्य नारायण
की कथा
है, नर से नारायण
बनने की | पुरुषार्थ के समय
में अलबेला
नहीं बनना
है | बाप को जानने से मनुष्य हीरे
जैसा बनते
हैं, न जानने से मनुष्य कौड़ी
मिसल, बिल्कुल पतित हैं
| बाप को जानने से ही पावन
बनते हैं
|
श्रीमत कहती
है मनमनाभव | अटेन्शन और अभ्यास के निज़ी संस्कार इमर्ज
करने है | धारणा करनी
चाहिए | बाप की पलकों पर बैठ कलियुगी दुःखधाम से सुखधाम चलना
है इसलिए
अपना सब कुछ ट्रान्सफर कर देना
है |
सेवा : धन दिए धन ना खुटे | सर्विस करेंगे तब बाबा की दिल पर चढ़ सकेंगे |
ज्ञान योग से औरों
का उद्धार करना है | प्यार
से सर्विस कर बाप के दिलतख़्त पर बैठना है | इस रूहानी यात्रा पर अपने साथियों को भी ले जाना है | फ़र्ज़ है हरेक को यह
यात्रा की बात बताना | सबको
यात्रा लायक बनना है | सदा
स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो | दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो | सबको बाप और वर्से का परिचय देना है | बाबा ईशारा देते रहते हैं, तुम्हें गवर्मेन्ट को भी समझाना है |
स्वमान : रूहानी पण्डा... रूहानी राही... ब्रह्माकुमार-कुमारियां... ब्रह्मा के बच्चे, ब्राह्मण... बहिश्त की परी ...बहिश्त की बीबी - महारानी ...बहिश्त के मालिक ...विश्व के मालिक... सफलतामूर्त... विजयी आत्मा... निमित्त...
Song: Raat ke rahi thak mat jana रातके राही थकमत जाना..... O traveller of the night, do not become weary. The destination of the dawn is not far off!
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http://www.youtube.com/watch?v=qTmzjkAhtFw&feature=email
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06-11-2013:
Essence: Sweet children, you have to become spiritual guides and go on this pilgrimage and enable others to go on it. This remembrance is your pilgrimage. Continue to have remembrance and your mercury of happiness will rise.
Question: Which sanskars disappear and which sanskars remain as soon as you go to the incorporeal world?
Answer: There, the sanskars of knowledge disappear and only the sanskars of the reward remain. It is on the basis of these sanskars that you experience your reward in the golden age. The sanskars of studying and making effort do not remain there. Once you receive your reward, this knowledge ends.
Song: O traveller of the night do not become weary. The destination of dawn is not far off. रात के राही थक मत जाना.......
Essence for dharna:
1. Bathe in knowledge. Serve others with love and climb on to the Father's heart-throne. Do not become careless at this time of making effort.
2. You have to go across this iron-aged land of sorrow to the land of happiness by sitting on the Father's eyelids. Therefore, transfer everything you have.
Blessing: May you be an embodiment of success in serving the self and all others with the original sanskars of attention and practice.
The original sanskars of Brahmin souls are attention and practice. Therefore, never have anytension in paying attention. Always do service of the self and service of others simultaneously. Those who put aside service of the self and remain engaged in serving others cannot be successful. Therefore, keep a balance of the two and move forward. Do not become weak. You are instrument souls who have been victorious many times and nothing is an effort or difficult for victorious souls.
Slogan: Become merciful in a knowledge-full way and your heart will have disinterest in weaknesses.
06-11-2013:
सार:- “मीठे बच्चे – तुम्हें रूहानी पण्डा बन यात्रा करनी और करानी है, याद ही तुम्हारी यात्रा है, याद करते रहो तो ख़ुशी का पारा चढ़े”
प्रशन:- निराकारी दुनिया में जाते ही कौन-से संस्कार समाप्त हो जाते और कौन से संस्कार रह जाते हैं?
उत्तर:- वहाँ नॉलेज के संस्कार समाप्त हो जाते, प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं | जिन संस्कारों के आधार पर तुम बच्चे सतयुग में प्रालब्ध भोगते हो, वहाँ फिर पढ़ाई का वा पुरुषार्थ का संस्कार नहीं रहता है | प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म हो जाता है |
गीत:-रात के राही थक मत जाना.......
प्रशन:- निराकारी दुनिया में जाते ही कौन-से संस्कार समाप्त हो जाते और कौन से संस्कार रह जाते हैं?
उत्तर:- वहाँ नॉलेज के संस्कार समाप्त हो जाते, प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं | जिन संस्कारों के आधार पर तुम बच्चे सतयुग में प्रालब्ध भोगते हो, वहाँ फिर पढ़ाई का वा पुरुषार्थ का संस्कार नहीं रहता है | प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म हो जाता है |
गीत:-रात के राही थक मत जाना.......
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) ज्ञान स्नान करना है | प्यार से सर्विस कर बाप के दिलतख़्त पर बैठना है | पुरुषार्थ के समय में अलबेला नहीं बनना है |
2) बाप की पलकों पर बैठ कलियुगी दुःखधाम से सुखधाम चलना है इसलिए अपना सब कुछ ट्रान्सफर कर देना है |
वरदान:- अटेन्शन और अभ्यास के निज़ी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलतामूर्त भव
2) बाप की पलकों पर बैठ कलियुगी दुःखधाम से सुखधाम चलना है इसलिए अपना सब कुछ ट्रान्सफर कर देना है |
वरदान:- अटेन्शन और अभ्यास के निज़ी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलतामूर्त भव
ब्राह्मण आत्माओं का निज़ी संस्कार “अटेन्शन और अभ्यास” है | इसलिए कभी अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना | सदा स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो | जो स्व सेवा छोड़ पर सेवा में लगे रहते हैं उन्हें सफलता नहीं मिल सकती, इसलिये दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो | कमज़ोर नहीं बनो | अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हो, विजयी आत्मा के लिए कोई मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं |
स्लोगन:- ज्ञानयुक्त रहमदिल बनो तो कमज़ोरियों से दिल का वैराग्य आयेगा |