Essence of Murli
(H&E) : June
07, 2014:
Essence: Sweet children, this
dirty world is now to be set on fire. Therefore, forget everything that you
call yours, including your body. Do not attach your heart to this world.
Question: Why does the Father inspire
you to have distaste for this land of sorrow?
Answer: Because you have to go to the land of peace and the
land of happiness. You no longer have to stay in this dirty world. You
understand that souls will separate from their bodies and return home. Why
should you look at those bodies? Therefore, your intellect should not be drawn
towards anyone's name or form. Even by having dirty thoughts, your status will
be destroyed.
Essence for Dharna:
1. You must not remember anyone except the one Father in your
final moments. In order to achieve this, do not allow your heart to become
attached to anyone. Do not have love for impure bodies. Break your iron-aged
bondages.
2. Make your intellect broad and become fearless. In order
to become a charitable soul, do not commit any sin now. Don't speak lies for
the sake of your stomach. Use your handful of rice in a worthwhile way and
accumulate a true income. Have mercy for yourself.
Blessing: May you beloved by
all and with your stage of having pure and positive thoughts for everyone,
receive everyone's co-operation.
Everyone has love emerging in
their hearts for souls who have pure and positive thoughts for others and this
love makes them co-operative. Where there is love, they are constantly ready to
surrender their time, wealth and co-operation. Pure and positive thoughts for
others will make them loving and love will enable them to give their
co-operation in every way. Therefore, remain constantly full of pure and
positive thoughts for the self and have pure and positive thoughts for others
and make them loving and co-operative.
Slogan: Become bestowers at this time and every soul in your kingdom will be completely full for birth after birth.
सार : -
"मीठे बच्चे - अब इस छी-छी गंदी दुनिया को आग लगनी है इसलिए शरीर सहित जिसे तुम मेरा-मेरा कहते हो- इसे भूल जाना है, इससे दिल नहीं लगानी है"
प्रश्न:- बाप तुम्हें इस दु:खधाम से नफरत क्यों दिलाते हैं?
उत्तर:- क्योंकि तुम्हें शान्तिधाम-सुखधाम जाना है । इस गंदी दुनिया में अब रहना ही नहीं है । तुम जानते हो आत्मा शरीर से अलग होकर घर जायेगी, इसलिए इस शरीर को क्या देखना । किसी के नाम-रूप तरफ भी बुद्धि न जाये । गन्दे ख्यालात भी आते हैं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा ।
धारणा के मुख्य सार : -
1. अन्तकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई याद न आये उसके लिए इस दुनिया में किसी से भी दिल नहीं लगानी है । छी-छी शरीरों से प्यार नहीं करना है । कलियुगी बन्धन तोड़ देने हैं ।
2. विशाल बुद्धि बन निडर बनना है । पुण्य आत्मा बनने के लिए कोई भी पाप अब नहीं करना है । पेट के लिए झूठ नहीं बोलना है । चावल मुट्ठी सफल कर सच्ची-सच्ची कमाई जमा करनी है, अपने ऊपर रहम करना है ।
वरदान:- शुभचिंतक स्थिति द्वारा सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाले सर्व के स्नेही भव !
शुभचिंतक आत्माओं के प्रति हर एक को दिल का स्नेह उत्पन्न होता है और वह स्नेह ही सहयोगी बना देता है । जहाँ स्नेह होता है, वहाँ समय, सम्पत्ति, सहयोग सदा न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं । तो शुभचिंतक स्नेही बनायेगा और स्नेह सब प्रकार के सहयोग में न्यौछावर बनायेगा इसलिए सदा शुभचिंतन से सम्पन्न रहो और शुभचिंतक बन सर्व को स्नेही, सहयोगी बनाओ ।
स्लोगन:-
इस समय दाता बनो तो आपके राज्य में जन्म-जन्म हर आत्मा भरपूर रहेगी ।