Essence of Murli
(H&E) : June
20, 2014:
Essence: Sweet
children, you are each other’s spiritual brothers. You should have a lot of
love for one another. Become the Ganges who overflow with love. Never fight or
quarrel.
Question:
Which children does the spiritual Father love a great deal?
Answer:
1) He loves the
children who are benefitting the world by following shrimat. 2) Those who have
become flowers and never prick others with thorns. Those who live with others
with a lot of love and never sulk are the children who are loved by the Father.
Those who become body conscious and fight among themselves and become like salt
water lose the Father's honour. They become the ones who defame the Father.
1.
Become an overflowing
Ganges of love. Let there be the vision of love for everyone. Never use wrong
words.
2.
Do not have greed for
anything. Be a spinner of the discus of self-realisation. Practise so that you
do not remember anything at the end.
Blessing: May you
be liberated from all sins with the power of realization instead of being
clever with the Father who is the cleverest of all.
Some
children become very clever with the Father who is the cleverest of all. In
order to justify their work or in order to earn a name for themselves, they
have some realization at that time, but that realization has no power in it and
so, transformation does not take place. Some
understand that something is not right, but they think that perhaps
their name will be spoilt and they therefore kill their conscience. This too is
accumulated in the account of sin. Therefore, let go of this cleverness and
with realization and a true heart, transform yourself and be liberated from
your sins.
Slogan:
To be liberated from
the various bondages whilst living this life is the stage of being liberated in
life.
सार:- “मीठे बच्चे – तुम आपस में रूहानी भाई-भाई हो, तुम्हारा एक-दो से अति प्यार होना चाहिए, तुम प्रेम से भरपूर गंगा बनो, कभी भी लड़ना-झगड़ना नहीं”
प्रश्न:- रूहानी बाप को कौन-से बच्चे बहुत-बहुत प्यारे लगते हैं?
उत्तर:- 1. जो श्रीमत पर सारे विश्व का कल्याण कर रहे हैं, 2. जो फूल बने हैं, कभी भी किसी को काँटा नहीं लगाते, आपस में बहुत-बहुत प्यार से रहते हैं, कभी रुसते नहीं – ऐसे बच्चे बाप को बहुत-बहुत प्यारे लगते हैं | जो देह-अभिमान में आकर आपस में लड़ते हैं, लून-पानी होते हैं, वह बाप की इज्जत गंवाते हैं | वह बाप की निंदा कराने वाले निंदक हैं |
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1.
प्रेम से भरपूर गंगा बनना है
| सबके प्रति प्रेम की दृष्टि रखनी है | कभी भी मुख से उल्टे बोल नहीं बोलने हैं |
2.
किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखना है
| स्वदर्शन चक्रधारी होकर रहना है | अभ्यास करना है कि अन्त समय कोई भी चीज़ याद न आये
|
वरदान:- चतुरसुजान बाप से चतुराई करने के बजाए महसूसता शक्ति द्वारा सर्व पापों से मुक्त भव
कई बच्चे चतुरसुजान बाप से भी चतुराई करते हैं –
अपना काम सिद्ध करने के लिए अपना नाम अच्छा करने के लिए उस समय महसूस कर लेते हैं लेकिन उस महसूसता में शक्ति नहीं होती इसलिए परिवर्तन नहीं होता
| कई हैं जो समझते हैं यह ठीक नहीं है लेकिन सोचते हैं कहीं नाम ख़राब न हो इसलिए अपने विवेक का खून करते हैं, यह भी पाप के खाते में जमा होता है इसलिए चतुराई को छोड़ सच्चे दिल की महसूसता से स्वयं को परिवर्तन कर पापों से मुक्त बनो |
स्लोगन:- जीवन में रहते भिन्न-भिन्न बन्धनों से मुक्त रहना ही जीवनमुक्त स्थिति है |