Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

11-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


11-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


मीठे बच्चे - तुम्हें अभी नाम रूप की बीमारी से बचना है, उल्टा खाता नहीं बनाना है, एक बाप की याद में रहना है ।

प्रश्न:- भाग्यवान बच्चे किस मुख्य पुरुषार्थ से अपना भाग्य बना देते हैं?

उत्तर:- भाग्यवान बच्चे सबको सुख देने का पुरुषार्थ करते हैं। मन्सा- वाचा- कर्मणा कोई को दुःख नहीं देते हैं। शीतल होकर चलते हैं तो भाग्य बनता जाता है। तुम्हारी यह स्टूडेन्ट लाइफ है, तुम्हें अब घुटके नहीं खाने हैं, अपार खुशी में रहना है।

गीतः- तुम्हीं हो माता- पिता .............................

ओम् शान्ति।

सभी बच्चे मुरली सुनते हैं, जहाँ भी मुरली जाती है, सब जानते हैं कि जिसकी महिमा गाई जाती है वह कोई साकार नहीं है, निराकार की महिमा है। निराकार साकार द्वारा अभी सम्मुख मुरली सुना रहे हैं। ऐसे भी कहेंगे अभी हम आत्मा उन्हें देख रहे हैं! आत्मा बहुत सूक्ष्म है, इन आंखों से देखने में नहीं आती। भक्ति मार्ग में भी जानते हैं कि हम आत्मा सूक्ष्म हैं। परन्तु पूरा रहस्य बुद्धि में नहीं है कि आत्मा है क्या, परमात्मा को याद करते हैं परन्तु वह है क्या! यह दुनिया नहीं जानती। तुम भी नहीं जानते थे। अभी तुम बच्चों को यह निश्चय है कि यह कोई लौकिक टीचर वा सम्बन्धी भी नहीं। जैसे सृष्टि में और मनुष्य हैं वैसे यह दादा भी था। तुम जब महिमा गाते थे त्वमेव माताश्च पिता.................तो समझते थे ऊपर में है। अभी बाप कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है, मैं वही इसमें हूँ। आगे तो बहुत प्रेम से महिमा गाते थे, डर भी रखते थे। अभी तो वह यहाँ इस शरीर में आये हैं। जो निराकार था वह अब साकार में आ गया है। वह बैठ बच्चों को सिखलाते हैं। दुनिया नहीं जानती कि वह क्या सिखलाते हैं। वह तो गीता का भगवान कृष्ण समझते हैं। कह देते हैं - वह राजयोग सिखलाते हैं। अच्छा, बाकी बाप क्या करते हैं? भल गाते थे तुम मात- पिता परन्तु उनसे क्या और कब मिलता है, यह कुछ नहीं जानते। गीता सुनते थे तो समझते थे कृष्ण द्वारा राजयोग सीखा था फिर वह कब आकर सिखलायेंगे। वह भी ध्यान में आता होगा। इस समय यह वही महाभारत लड़ाई है तो जरूर कृष्ण का समय होगा। जरूर वही हिस्ट्री- जॉग्राफी रिपीट होनी चाहिए। दिन- प्रतिदिन समझते जायेंगे। जरूर गीता का भगवान होना चाहिए। बरोबर महाभारत लड़ाई भी देखने में आती है। जरूर इस दुनिया का अन्त होगा। दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ पर चले गये। तो उनकी बुद्धि में यह आता होगा, बरोबर विनाश तो सामने खड़ा है। अब कृष्ण है कहाँ? ढूँढ़ते रहेंगे, जब तक तुमसे सुनें कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव है। तुम्हारी बुद्धि में तो यह बात पक्की है। यह तुम कभी भूल नहीं सकते। कोई को भी तुम समझा सकते हो गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव है। दुनिया में तो कोई भी नहीं कहेगा सिवाए तुम बच्चों के। अब गीता का भगवान राजयोग सिखलाते थे तो जरूर इससे सिद्ध होता है नर से नारायण बनाते थे। तुम बच्चे जानते हो भगवान हमको पढ़ाते हैं। बरोबर नर से नारायण बनाते हैं। इन लक्ष्मी- नारायण का स्वर्ग में राज्य था ना। अभी तो वह स्वर्ग भी नहीं है, तो नारायण भी नहीं है, देवतायें भी नहीं हैं। चित्र हैं जिससे समझते हैं यह होकर गये हैं। अभी तुम समझते हो इन्हों को कितने वर्ष हुए? तुमको पक्का मालूम है, आज से 5 हज़ार वर्ष पहले इन्हों का राज्य था। अभी तो है अन्त। लड़ाई भी सामने खड़ी है। जानते हो बाप हमको पढ़ा रहे हैं। सभी सेन्टर्स में पढ़ते भी हैं तो पढ़ाते भी हैं। पढ़ाने की युक्ति बड़ी अच्छी है। चित्रों द्वारा समझानी अच्छी मिल सकेगी। मुख्य बात है गीता का भगवान शिव वा कृष्ण? फर्क तो बहुत है ना। सद्गति दाता स्वर्ग की स्थापना करने वाला अथवा आदि सनातन देवी- देवता धर्म की फिर से स्थापना करने वाला शिव या श्रीकृष्ण? मुख्य है ही 3 बातों का फैंसला। इस पर ही बाबा जोर देते हैं। भल ओपीनियन लिखकर देते हैं कि यह बहुत अच्छा है परन्तु इससे कुछ भी फायदा नहीं। तुम्हारी जो मुख्य बात है उस पर जोर देना है। तुम्हारी जीत भी है इसमें। तुम सिद्ध कर बतलाते हो भगवान एक होता है। ऐसे नहीं कि गीता सुनाने वाले भी भगवान हो गये। भगवान ने इस राजयोग और ज्ञान द्वारा देवी- देवता धर्म की स्थापना की।

बाबा समझाते हैं - बच्चों पर माया का वार होता रहता है, अभी तक कर्मातीत अवस्था को कोई ने पाया नहीं हैं। पुरुषार्थ करते- करते अन्त में तुम एक बाबा की याद में सदैव हर्षित रहेंगे। कोई मुरझाइस नहीं आयेगी। अभी तो सिर पर पापों का बोझा बहुत है। वह याद से ही उतरेगा। बाप ने पुरुषार्थ की युक्तियां बतलाई हैं। याद से ही पाप कटते हैं। बहुत बुद्धू हैं जो याद में न रहने कारण फिर नाम- रूप आदि में फँस पड़ते हैं। हर्षितमुख हो किसको ज्ञान समझायें, वह भी मुश्किल हैं। आज किसको समझाया, कल फिर घुटका आने से खुशी गुम हो जाती है। समझना चाहिए यह माया का वार होता है। इसलिए पुरुषार्थ कर बाप को याद करना है। बाकी रोना, पीटना वा बेहाल नहीं होना है। समझना चाहिए माया पादर (जूता) मारती है इसलिए पुरुषार्थ कर बाप को याद करना है। बाप की याद से बहुत खुशी रहेगी। मुख से झट वाणी निकलेगी। पतित- पावन बाप कहते हैं कि मुझे याद करो। मनुष्य तो एक भी नहीं जिसको रचता बाप का परिचय हो। मनुष्य होकर और बाप को न जानें तो जानवर से भी बदतर हुआ। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है तो बाप को याद कैसे करें! यही बड़ी भूल है, जो तुमको समझानी है। गीता का भगवान शिवबाबा है, वही वर्सा देते हैं। मुक्ति- जीवनमुक्ति दाता वह है, और धर्म वालों की बुद्धि में बैठता नहीं। वह तो हिसाब- किताब चुक्तू कर वापिस चले जायेंगे। पिछाड़ी में थोड़ा परिचय मिला फिर भी जायेंगे अपने धर्म में। तुमको बाप समझाते हैं तुम देवता थे, अभी फिर बाप को याद करने से तुम देवता बन जायेंगे। विकर्म विनाश हो जायेंगे। फिर भी उल्टे- सुल्टे धन्धे कर लेते हैं। बाबा को लिखते हैं आज हमारी अवस्था मुरझाई हुई है, बाप को याद नहीं किया। याद नहीं करेंगे तो जरूर मुरझायेंगे। यह है ही मुर्दों की दुनिया। सभी मरे पड़े हैं। तुम बाप के बने हो तो बाप का फरमान है- मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। यह शरीर तो पुराना तमोप्रधान है। पिछाड़ी तक कुछ न कुछ होता रहेगा। जब तक बाप की याद में रह कर्मातीत अवस्था को पायें, तब तक माया हिलाती रहेगी, किसको भी छोड़ेगी नहीं। जांच करते रहना चाहिए कि माया कैसे धक्का खिलाती है। भगवान हमको पढ़ाते हैं, यह भूलना क्यों चाहिए। आत्मा कहती है- हमारा प्राणों से प्यारा वह बाप ही है। ऐसे बाप को फिर तुम भूलते क्यों हो! बाप धन देते हैं, दान करने के लिए। प्रदर्शनी- मेले में तुम बहुतों को दान कर सकते हो। आपेही शौक से भागना चाहिए। अभी तो बाबा को ताकीद करनी पड़ती है, (उमंग दिलाना पड़ता है) जाकर समझाओ। उसमें भी अच्छा समझा हुआ चाहिए। देह- अभिमानी का तीर लगेगा नहीं। तलवारें भी अनेक प्रकार की होती हैं ना। तुम्हारी भी योग की तलवार बड़ी तीखी चाहिए। सर्विस का हुल्लास चाहिए। बहुतों का जाकर कल्याण करें। बाप को याद करने की ऐसी प्रैक्टिस हो जाए जो पिछाड़ी में सिवाए बाप के और कोई याद न पड़े, तब ही तुम राजाई पद पायेंगे। अन्तकाल जो अल़फ को सिमरे और फिर नारायण को सिमरे। बाप और नारायण (वर्सा) ही याद करना है। परन्तु माया कम नहीं है। कच्चे तो एकदम ढेर हो पड़ते हैं। उल्टे कर्मों का खाता तब बनता है जब किसी के नाम रूप में फँस पड़ते हैं। एक- दो को प्राइवेट चिट्ठियाँ लिखते हैं। देहधारियों से प्रीत हो जाती है तो उल्टे कर्मों का खाता बन जाता है। बाबा के पास समाचार आते हैं। उल्टा- सुल्टा काम कर फिर कहते हैं बाबा हो गया! अरे, खाता उल्टा तो हो गया ना! यह शरीर तो पलीत है, उनको तुम याद क्यों करते हो। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सदैव खुशी रहे। आज खुशी में हैं, कल फिर मुर्दे बन पड़ते हैं। जन्म- जन्मान्तर नाम- रूप में फँसते आते हैं ना। स्वर्ग में यह बीमारी नाम- रूप की होती नहीं। वहाँ तो मोहजीत कुटुम्ब होता है। जानते हैं हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। वह है ही आत्म- अभिमानी दुनिया। यहाँ है देह- अभिमानी दुनिया। फिर आधा कल्प तुम देही- अभिमानी बन जाते हो। अब बाप कहते हैं देह- अभिमान छोड़ो। देही- अभिमानी होने से बहुत मीठे शीतल हो जायेंगे। ऐसे बहुत थोड़े हैं, पुरुषार्थ कराते रहते हैं कि बाप की याद न भूलो। बाप फरमान करते हैं मुझे याद करो, चार्ट रखो। परन्तु माया चार्ट भी रखने नहीं देती है। ऐसे मीठे बाप को तो कितना याद करना चाहिए। यह तो पतियों का पति, बापों का बाप है ना। बाप को याद कर और फिर दूसरों को भी आपसमान बनाने का पुरुषार्थ करना है, इसमें दिलचस्पी बहुत अच्छी रखनी चाहिए। सर्विसएबुल बच्चों को तो बाप नौकरी से छुड़ा देते हैं। सरकमस्टांश देख कहेंगे अब इस धन्धे में लग जाओ। एम ऑब्जेक्ट तो सामने खड़ी है। भक्ति मार्ग में भी चित्रों के आगे याद में बैठते हैं ना। तुमको तो सिर्फ आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है। विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है। यह मेहनत है। विश्व का मालिक बनना, कोई मासी का घर नहीं है। बाप कहते हैं- मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ, तुमको बनाता हूँ। कितना माथा मारना पड़ता है। सपूत बच्चों को तो आपेही ओना लगा रहेगा, छुट्टी लेकर भी सर्विस में लग जाना चाहिए। कई बच्चों को बन्धन भी है, मोह भी रहता है। बाप कहते हैं तुम्हारी सब बीमारियाँ बाहर निकलेंगी। तुम बाप को याद करते रहो। माया तुमको हटाने की कोशिश करती है। याद ही मुख्य है, रचता और रचना के आदि- मध्य- अन्त का ज्ञान मिला, बाकी और क्या चाहिए। भाग्यवान बच्चे सबको सुख देने का पुरुषार्थ करते हैं, मन्सा, वाचा, कर्मणा किसी को दुःख नहीं देते हैं, शीतल होकर चलते हैं तो भाग्य बनता जाता है। अगर कोई नहीं समझते हैं तो समझा जाता इनके भाग्य में नहीं है। जिनके भाग्य में है वह अच्छी रीति सुनते हैं। अनुभव भी सुनाते हैं ना- क्या- क्या करते थे। अब मालूम पड़ा है, जो कुछ किया उससे दुर्गति ही हुई। सद्गति को तब पायें जब बाप को याद करें। बहुत मुश्किल कोई घण्टा, आधा घण्टा याद करते होंगे। नहीं तो घुटका खाते रहते हैं। बाप कहते हैं आधाकल्प घुटका खाया अब बाप मिला है, स्टूडेन्ट लाइफ है तो खुशी होनी चाहिए ना। परन्तु बाप को घड़ी- घड़ी भूल जाते हैं।

बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी हो। वह धन्धा आदि तो करना ही है। नींद भी कम करना अच्छा है। याद से कमाई होगी, खुशी भी रहेगी। याद में बैठना जरूरी है। दिन में तो फुर्सत नहीं मिलती है इसलिए रात को समय निकालना चाहिए। याद से बहुत खुशी रहेगी। किसको बंधन है तो कह सकते हैं हमको तो बाप से वर्सा लेना है, इसमें कोई रोक नहीं सकता। सिर्फ गवर्मेन्ट को जाए समझाओ कि विनाश सामने खड़ा है, बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। और यह अन्तिम जन्म तो पवित्र रहना है इसलिए हम पवित्र बनते हैं। परन्तु कहेंगे वह जिनको ज्ञान की मस्ती होगी। ऐसे नहीं कि यहाँ आकर फिर देहधारी को याद करते रहें। देह- अभिमान में आकर लड़ना- झगड़ना जैसे क्रोध का भूत हो जाता है। बाबा क्रोध करने वाले की तरफ कभी देखते भी नहीं। सर्विस करने वालों से प्यार होता है। देह- अभिमान की चलन दिखाई पड़ती है। गुल- गुल तब बनेंगे जब बाप को याद करेंगे। मूल बात है यह। एक- दो को देखते बाप को याद करना है। सर्विस में तो हड्डियाँ देनी चाहिए। ब्राह्मणों को आपस में क्षीरखण्ड होना चाहिए। लूनपानी नहीं होना चाहिए। समझ न होने के कारण एक- दो से ऩफरत, बाप से भी ऩफरत लाते रहते हैं। ऐसे क्या पद पायेंगे! तुमको साक्षात्कार होंगे फिर उस समय स्मृति आयेगी- यह हमने ग़फलत की। बाप फिर कह देते हैं तकदीर में नहीं है तो क्या कर सकते हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) निर्बन्धन बनने के लिए ज्ञान की मस्ती हो। देह- अभिमान की चलन न हो। आपस में लूनपानी होने के संस्कार न हों। देहधारियों से प्यार है तो बंधनमुक्त हो नहीं सकते।

2) कर्मयोगी बनकर रहना है, याद में बैठना जरूर है। आत्म- अभिमानी बन बहुत मीठा और शीतल बनने का पुरुषार्थ करना है। सर्विस में हड्डियाँ देनी है।

वरदान:- मनमनाभव की विधि द्वारा बन्धनों के बीज को समाप्त करने वाले नष्टोमोहा स्मृति स्वरूपमनमना भव!

बन्धनों का बीज है संबंध। जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ लिए तो और किसी में मोह कैसे हो सकता। बिना सम्बन्ध के मोह नहीं होता और मोह नहीं तो बंधन नहीं। जब बीज को ही खत्म कर दिया तो बिना बीज के वृक्ष कैसे पैदा होगा। यदि अभी तक बंधन है तो सिद्ध है कि कुछ तोड़ा है, कुछ जोड़ा है इसलिए मनमनाभव की विधि से मन के बन्धनों से भी मुक्त नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो फिर यह शिकायतें समाप्त हो जायेंगी कि क्या करें बंधन है, कटता नहीं।

स्लोगन:- ब्राह्मण जीवन का सांस उमंग- उत्साह है इसलिए किसी भी परिस्थिति में उमंग- उत्साह का प्रेशर कम न हो।

Om Shanti ! Sakar Murli April 11, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli April 11, 2015

Essence: Sweet children, now remain safe from the sickness of being trapped in the name and form of others. Do not create any wrong type of account. Stay in remembrance of the one Father.

Question: By making which main effort do fortunate children create their fortune?

Answer: Fortunate children make the effort of giving happiness to everyone. They never make anyone unhappy through their thoughts, words or deeds. Continue to move along whilst being calm and cool and you will continue to create your fortune. This is your student life. You must no longer choke but stay in infinite happiness.

Song: You are the Mother and You are the Father!

Om shanti.

All of you children hear the murli. Wherever you receive the murli, all of you know that the One who is praised is not corporeal, that it is the praise of the Incorporeal. The incorporeal One is now speaking the murli personally through the corporeal. You can also say that I, the soul, am now seeing Him. A soul is very subtle. A soul cannot be seen with these eyes. People on the path of devotion also understand that souls are subtle, but they don't have full understanding in their intellects of what a soul is. Everyone in the world remembers God, but they don't know who He is. You, too, did not know this. You children now have the faith that that One is not a worldly teacher or relative. This Dada is a human being just like other human beings in the world. You used to sing the praise "You are the Mother and Father" and believed that He was up above. The Father says: I have now entered this one. I am that same One you remembered and am now in this one. Previously, although you used to sing praise with a great deal of love, you also had fear. Baba has now entered this body. The incorporeal One has entered this corporeal one. He sits here and teaches you children. No one in the world knows what He teaches. They think that Krishna is the God of the Gita and that he teaches Raja Yoga. Achcha, then what does the Father do? Although you used to sing "You are the Mother and Father" you didn't know what you received from Him or when you received it. When you used to listen to the Gita being read, you would believe that you had learnt Raja Yoga from Krishna and wondered when he would come and teach it again. You now understand that, at this time, it will be the same Mahabharat War. Therefore, it must also be the time of Krishna. Surely, that same history and geography must repeat. Day by day, people will come to understand that there has to be the God of the Gita. The Mahabharat War is definitely visible. This world will definitely be destroyed. It is shown that the Pandavas went away to the mountains. Therefore, it must enter the intellects of people that destruction is definitely standing ahead. However, where is Krishna? They will keep looking for him until they hear from you that Shiva, not Krishna, is the God of the Gita. This aspect is very firm in your intellects. You can never forget it. You can explain to anyone that Shiva, and not Krishna, is the God of the Gita. No one in the world except you children would say this. The God of the Gita used to teach you Raja Yoga and He must therefore definitely have created Narayan from a human being. You children understand that God is teaching you and that He changes you from human beings into Narayan. It was the kingdom of Lakshmi and Narayan that existed in heaven. That heaven doesn't exist now. Therefore, Narayan doesn't exist either, and nor do the deities. It can be understood from the pictures that they did exist in the past. You now understand how many years ago they existed. You know very clearly that it used to be their kingdom 5000 years ago. It is now the end; the war is standing ahead. You understand that the Father is teaching you. You all study at your centres and you also teach others. The method for teaching others is very good. Everything can be explained very clearly with the pictures. The main thing is: Who is the God of the Gita? Is it Shiva or Krishna? There is a lot of difference. Is it Shiva who creates heaven, grants everyone salvation and establishes the original eternal deity religion once again, or Krishna? Ultimately, the main aspect is the decision between these three things. Baba emphasises these. Although people write their opinions and say that this is very good, there is no benefit in that. You should emphasise this main thing of yours. Your victory is in this. You prove that there is only one God. It isn't that those who relate the Gita are also God. God established the deity religion with Raja Yoga and knowledge. Baba explains: Some children are attacked by Maya. No one has yet reached the karmateet stage. By continuing to make effort, you will remain constantly happy at the end in remembrance of the Father. There will be no wilting. There is now a huge burden of sin on your heads. It can only be removed by having remembrance. The Father has told you the method for this effort. Only by having remembrance can your sins be cut away. There are many buddhus who become trapped in the names and forms of others because they don't stay in remembrance. They find it difficult to remain cheerful or to explain knowledge to others. Today, they are happily explaining to someone and then, tomorrow, they start to choke and that happiness disappears. You should understand when Maya is attacking you. This is why you must make the effort to remember the Father. Do not become restless and start to weep and wail. Understand that Maya is hitting you with a slipper, and so make effort to remember Baba. By having remembrance of the Father, you will receive a great deal of happiness, and knowledge will then instantly emerge through your lips. The Purifier Father says: Remember Me! No other human beings have the introduction of the Father, the Creator. If, as human beings, you don't know the Father, you are worse than animals. Krishna's name was inserted in the Gita. So, how can they remember the Father? This is the greatest mistake and you have to explain it. Shiv Baba is the God of the Gita. He alone is the One who gives you your inheritance. He is the Bestower of liberation and liberation-in-life. This doesn't sit in the intellects of those of other religions. They settle their karmic accounts and return home. At the end, they will receive a little introduction, but they will still go back into their own religions. The Father explains to you: You were deities. Now, by remembering the Father, your sins would be absolved and you will become deities again. However, some of you still perform wrong types of action. Some write to Baba: Today, my stage has wilted; I didn't remember the Father. If you don't have remembrance, you will certainly wilt. This is the world of corpses; everyone is already dead. You belong to the Father. Therefore, the Father's order is: Remember Me and your sins will be absolved. These bodies are old and tamopradhan. Something or other will continue to happen until the end. Until you reach your karmateet stage by staying in remembrance of the Father, Maya will continue to shake you. She will not leave anyone alone. Keep checking yourself as to how Maya makes you stumble. God is teaching you. Why should you forget this? The soul says that the Father is the One loved more than life. Why do you forget such a Father? The Father gives you this wealth in order for you to donate it to others. You can donate it to many at exhibitions and fairs. You should automatically run there through your own interest. At present, Baba has to encourage you to go and explain. However, for this, you need to have understood this knowledge very well yourself. The arrows of those who are body conscious will not strike the target. There are also many different types of sword. Your sword of yoga has to be kept very sharp. You must have enthusiasm for service, to go and benefit many. You should have so much practice of remembering the Father that, at the end, no one but the Father is remembered. Only then will you be able to claim a royal status. At the final moment, there should only be remembrance of Alpha and remembrance of Narayan. Only remember the Father and Narayan, the inheritance. However, Maya is no less. Weak ones fall down completely. An account of wrong actions is created when you become trapped in someone's name and form. They write private notes to one another. If you develop love for a bodily being, you create a wrong type of karmic account. Baba receives the news. They perform wrong actions and then say: Baba, this happened. Oh!, but you had already created a wrong type of accounts. Everyone's body is impure. Why do you remember it? The Father says: Remember Me and you will remain constantly happy. Today, they are happy and tomorrow, they become like corpses. Birth after birth, you have become trapped in the names and forms of others. This sickness of being trapped in the names and forms of others does not exist in heaven. There, the whole family is free from attachment. They understand that they are souls and not bodies. That is the soul-conscious world. This is the body-conscious world. You then become soul conscious for half a cycle. The Father says: Now renounce body consciousness! By becoming soul conscious, you will become very sweet and cool. There are very few who inspire others to make the effort of not forgetting the Father. The Father gives an order: Remember Me! Keep a chart! However, Maya doesn't allow you to keep a chart. You should remember such a sweet Father so much! He is the Husband of all husbands and the Father of all fathers. You have to remember the Father and also make effort to make others equal to yourself. You should be very interested in doing this. The Father makes serviceable children leave their jobs. When He sees your circumstances, He says: Become busy in this business. Your aim and objective are in front of you. People on the path of devotion sit in remembrance in front of idols. You simply have to consider yourself to be a soul and remember God, the Father. Become one without an image and remember the Father who is without an image. This takes effort. To become a master of the world is not like going to your aunty's home! The Father says: I do not become the Master of the world; I make you into those. He has to beat His head so much for you. Worthy children will automatically be concerned to take leave from work and become engaged in service. Some children have bondages, but they also have attachment. The Father says: All your sickness will erupt. Simply continue to remember the Father. However, Maya tries to move you away from Him. Remembrance is the main thing. You have received the knowledge of the Creator and the beginning, the middle and the end of creation. Therefore, what else do you need? Fortunate children make effort to make everyone happy. They do not make anyone unhappy through their thoughts, words or deeds. By moving forward with coolness, they continue to make their fortune. If someone doesn't understand this, it is realised that it is not in that one's fortune. Those who have this fortune listen very carefully. They also share their experience of what they used to do. They say: I now understand that there was only degradation in everything I did. Only when you remember the Father can you receive salvation. It is with great difficulty that someone would remember Baba for even half an hour to an hour. The rest of the time they choke. The Father says: You have been choking for half a cycle. Now that you have found the Father, you should be happy. Since this is your student life, you should be happy. However, you children repeatedly forget the Father. He says: You are karma yogis. You have to carry on with your business etc. It is good to sleep less. By having this remembrance you earn an income and also remain happy. It is essential to sit in remembrance. If you have no time during the day, make time during the night. You will have great happiness by having this remembrance. If any of you have a bondage, tell him or her that you want to claim your inheritance from the Father and that no one can stop you from doing this. Simply go and explain to the Government: Destruction is standing ahead. The Father says: Remember Me and your sins will be absolved. Remain pure during this last birth. This is why we are becoming pure. However, only those who have the intoxication of this knowledge would say this. It should not be that you come here and then keep remembering bodily beings. To fight and quarrel in body consciousness is like being possessed by the evil spirit of anger. Baba does not even look at anyone who becomes angry. There is love for those who do service. Their activity is of body consciousness. You will become beautiful when you remember the Father. This is the main thing. See one another but remember the Father. Give your bones for service. Brahmins should live with one another like milk and sugar, not like salt water. Because they don't understand, they dislike one another and the Father. What status would such children claim? At the end, you will have visions of what you did and realise the mistakes you made. The Father says: If it is not in someone's fortune, what can anyone do? Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

1. In order to become free from bondage, maintain your intoxication of this knowledge. There must be no body-conscious behaviour. There should not be any sanskars of being like salt water with one another. When you love bodily beings, you cannot become free from bondage.

2. Live as a karma yogi. Definitely sit in remembrance. Become soul conscious and make the effort to become very sweet and cool. Give your bones for service.

Blessing: May you be a destroyer of attachment and an embodiment of remembrance and by using the method of "Manmanabhav", finish any seed of bondage.

The seed of any bondage is relationship. Since you have forged all relationships with the Father, how can there be attachment to anyone else? There cannot be attachment without a relationship and so, if there is no attachment, there is no bondage. Since you have finished the seed, how could the tree grow without the seed? If there is still some bondage, it proves that you have cut something away but that you have connected yourself to something. Therefore, use the method of "Manmanabhav", be a destroyer of attachment and an embodiment of remembrance even with the bondages of the mind and this complaint "What can I do if I cannot break my bondages?" will then finish.

Slogan: The breath of Brahmin life is zeal and enthusiasm. Therefore, let the pressure of zeal and enthusiasm not reduce in any circumstance.

***OM SHANTI***

Daily Positive Thoughts: April 11, 2015: Surrender Gracefully

Daily Positive Thoughts: April 11, 2015: Surrender Gracefully





Surrender Gracefully

We are surrounded by graceful surrender. The geese surrender to the first autumn chills, and think of flying south. The flower surrenders to the night and shuts up shop as the setting sun surrenders to the horizon of another day. A mother surrenders to the needs of her baby, and the child surrenders to the wisdom of the father. These kinds of surrender are sweet and natural. They are graceful movements in a dance to the subtle symphony of life. While we may find moments to surrender to such grace and beauty, if we are not careful, we also tend to allow ourselves to surrender to our appetites, to envy, to greed and then to self centred lifestyles in which we serve only ourselves. No grace there - only the disgrace of self-inflicted slavery. Whatever we surrender our minds to, will eventually shape our character and define the quality of our life. Be careful what you surrender your mind to, even if it's only for a day, or an hour.
relax7

God

“God”. It is a loaded word which, for many people seems
incomprehensible. This is unfortunate because there are so many
personal experiences of direct encounters with the One who is the
purest source of truth and love. If we attempt, as some do, to make
our approach to the Source easier by making it an impersonal one, we
deny ourselves the essential richness and nourishment of a personal
relationship. When the meditator practices meditation with purely
spiritual intentions they are aiming to enhance their own level of
enlightenment and create a state of being that is open to receiving
directly the light and love of the spiritual parent whom we all share.
Contrary to some popular beliefs it does not take many lifetimes to
master. However, it is an extremely personal and spiritually intimate
relationship where the energy of God is directly felt.



Controlling Your Emotions

There are five essential steps to emotional control and mastery. Although the complete process will finally happen in a few seconds in real life, it is essential for our learning to break it down and see what is required at every step.

Step One - Awareness
This simply means being aware of the emergence of the subtlest (finest) of emotions, which, if left unchecked, will grow into important disturbances. For example irritation leads to frustration leads to anger leads to rage.

Step Two - Acknowledge
Which means taking responsibility for the emotion by understanding and acknowledging that I am the creator of the emotion, not someone or something else.

Step three - Acceptance
Fully accept the presence of the emotion without resisting (opposing) it in any way. If it is resisted it simply becomes stronger, or is suppressed for another day.

Step Four - Ascend
This is the moment of full detachment from both the emotion and the inner source of emotion. In the process of detached observation the emotion is losing its power. And it is only through detached observation that the emotion will begin to dissolve.

Step Five - Attune
This means returning our attention to the very centre of ourselves where our inner peace and power are to be found. This is the purpose of meditation.



Soul Sustenance

Identify The Filters In Your Life

Like different types and different colour filters on a physical level; on a spiritual level, there are many different types of filters that work in our lives e.g. the jealousy filter, hatred filter, attachment filter, fear filter, greed filter, etc. and many more. Due to these filters, we do not see people and things as they are, but as we are, because the filters are our own self-created ones. If we want to see people and things as they are, we need to check which filters are working most in our lives. Each one of us has different filters working to different extents, depending on our personality e.g. someone might have the jealousy filter working more regularly as compared to the fear filter in his/her life.

Because of these filters, everything that we see is not only coloured by the colour of the filter we are using at that time, but our look is also biased as we choose what to see, what to give more importance, what to be affected by more, what to let through the filter etc. and what not to. We have and form a deceptive vision of the things and people that surround us inside our minds. And the longer this deformed vision lasts, the more we will convince ourself that that is the true image of the world, because our filters continue to process new data depending on what they see that make the image stronger. This reinforcing of the incorrect image builds up our database of incorrect beliefs based on different filters and makes them stronger and stronger as we go through our life journey. Beliefs are fixed ways of looking at reality. Thus, the world that we perceive is no longer the real world, but a world created by our own mind. So in a way we become deaf and blind on a spiritual level towards the world. To heal this deafness and blindness, we do not have to remove each filter one after the other, which may become a difficult task; but we have to discover the pure, original internal self and start seeing everything without the filters, based on the pure-self point of view. As a result of that, gradually our incorrect beliefs start dissolving and correct beliefs start setting in based on our clean unfiltered view. 


Message for the day

To be free is to be free even from the bondage of things.

Expression: The one who is dependent on the presence of a particular thing to succeed in a task is also under the bondage of that thing. Such a person will not be able to put in effort to his full capability since he is always thinking of what is lacking. On the other hand the one who tries to find a way to do the task at hand even when there is nothing available is the one who finds new resources. He is then able to use these resources too for accomplishing the task.

Experience: When I am thinking more about what is to be done rather than thinking about what is lacking, I am able to be content with what I have. I am able to appreciate every small thing that is present in my life that I could use for my own benefit and that of others. I am able to work for what I want to achieve without being caught up only with the desires.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


10-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


10-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


मीठे बच्चे - सबसे अच्छा दैवीगुण है शान्त रहना, अधिक आवाज़ में न आना, मीठा बोलना, तुम बच्चे अभी टॉकी से मूवी, मूवी से साइलेन्स में जाते हो, इसलिए अधिक आवाज़ में न आओ ।

प्रश्न:- किस मुख्य धारणा के आधार से सर्व दैवीगुण स्वतः आते जायेंगे?

उत्तर:- मुख्य है पवित्रता की धारणा। देवतायें पवित्र हैं, इसलिए उनमें दैवीगुण हैं। इस दुनिया में कोई में भी दैवीगुण नहीं हो सकते। रावण राज्य में दैवीगुण कहाँ से आये। तुम रॉयल बच्चे अभी दैवीगुण धारण कर रहे हो।

गीतः- भोलेनाथ से निराला ................

ओम् शान्ति।

अभी बच्चे समझते हैं कि बिगड़ी को बनाने वाला एक ही है। भक्ति मार्ग में अनेकों के पास जाते हैं। कितनी तीर्थ यात्रायें आदि करते हैं। बिगड़ी को बनाने वाला, पतितों को पावन बनाने वाला तो एक ही है, सद्गति दाता, गाइड, लिबरेटर भी वह एक है। अब गायन है परन्तु अनेक मनुष्य, अनेक धर्म, मठ, पंथ, शास्त्र होने कारण अनेक रास्ते ढूँढते रहते हैं। सुख और शान्ति के लिए सतसंगों में जाते हैं ना। जो नहीं जाते वह मायावी मस्ती में ही मस्त रहते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो कि अभी कलियुग का अन्त है। मनुष्य यह नहीं जानते कि सतयुग कब होता है? अभी क्या है? यह तो कोई बच्चा भी समझ सकता है। नई दुनिया में सुख, पुरानी दुनिया में जरूर दुःख होता है। इस पुरानी दुनिया में अनेक मनुष्य हैं, अनेक धर्म हैं। तुम कोई को भी समझा सकते हो। यह है कलियुग, सतयुग पास्ट हो गया है। वहाँ एक ही आदि सनातन देवी- देवता धर्म था, और कोई धर्म नहीं था। बाबा ने बहुत बार समझाया है, फिर भी समझाते हैं, जो आये उनको नई दुनिया और पुरानी दुनिया का फ़र्क दिखाना चाहिए। भल वह क्या भी कहे, कोई 10 हज़ार वर्ष आयु कहते हैं, कोई 30 हज़ार वर्ष आयु कहते हैं। अनेक मतें हैं ना। अब उन्हों के पास तो है ही शास्त्रों की मत। अनेक शास्त्र, अनेक मत। मनुष्यों की मत है ना। शास्त्र भी लिखते तो मनुष्य हैं ना। देवतायें कोई शास्त्र नहीं लिखते। सतयुग में देवी- देवता धर्म होता है। उन्हों को मनुष्य भी नहीं कहा जा सकता। तो जब कोई मित्र- सम्बन्धी आदि मिलते हैं तो उनको बैठ यह सुनाना चाहिए। विचार की बात है। नई दुनिया में कितने थोड़े मनुष्य होते हैं। पुरानी दुनिया में कितनी वृद्धि होती है। सतयुग में सिर्फ एक देवता धर्म था। मनुष्य भी थोड़े थे। दैवीगुण होते ही हैं देवताओं में। मनुष्यों में नहीं होते हैं। तब तो मनुष्य जाकर देवताओं के आगे नमस्ते करते हैं ना। देवताओं की महिमा गाते हैं। जानते हैं वह स्वर्गवासी हैं, हम नर्कवासी कलियुगवासी हैं। मनुष्य में दैवीगुण हो न सके। कोई कहे फलाने में बहुत अच्छे दैवीगुण हैं! बोलो- नहीं, दैवीगुण होते ही हैं देवताओं में क्योंकि वह पवित्र हैं। यहाँ पवित्र न होने कारण कोई में दैवीगुण हो न सकें क्योंकि आसुरी रावण राज्य है ना। नये झाड़ में दैवी गुण वाले देवतायें रहते हैं फिर झाड़ पुराना होता है। रावण राज्य में दैवीगुण वाले हो न सके। सतयुग में आदि सनातन देवी- देवताओं का प्रवृत्ति मार्ग था। प्रवृत्ति मार्ग वालों की ही महिमा गाई हुई है। सतयुग में हम पवित्र देवी- देवता थे, सन्यास मार्ग था नहीं। कितनी प्वाइंट्स मिलती हैं। परन्तु सभी प्वाइंट्स किसकी बुद्धि में रह न सके। प्वाइंट्स भूल जाती हैं इसलिए फेल होते हैं। दैवीगुण धारण नहीं करते हैं। एक ही दैवीगुण अच्छा है। जास्ती कोई से न बोलना, मीठा बोलना, बहुत थोड़ा बोलना चाहिए क्योंकि तुम बच्चों को टॉकी से मूवी, मूवी से साइलेन्स में जाना है। तो टॉकी को बहुत कम करना चाहिए। जो बहुत थोड़ा धीरे से बोलते हैं तो समझते हैं यह रॉयल घर का है। मुख से सदैव रत्न निकलें।

सन्यासी अथवा कोई भी हो तो उनको नई और पुरानी दुनिया का कान्ट्रास्ट बताना चाहिए। सतयुग में दैवीगुण वाले देवतायें थे, वह प्रवृत्ति मार्ग था। तुम सन्यासियों का धर्म ही अलग है। फिर भी यह तो समझते हो ना- नई सृष्टि सतोप्रधान होती है, अभी तमोप्रधान है। आत्मा तमोप्रधान होती है तो शरीर भी तमोप्रधान मिलता है। अभी है ही पतित दुनिया। सबको पतित कहेंगे। वह है पावन सतोप्रधान दुनिया। वही नई दुनिया सो अब पुरानी होती है। इस समय सभी मनुष्य आत्मायें नास्तिक हैं, इसलिए ही हंगामें हैं। धणी को न जानने के कारण आपस में लड़ते- झगड़ते रहते हैं। रचयिता और रचना को जानने वाले को आस्तिक कहा जाता है। सन्यास धर्म वाले तो नई दुनिया को जानते ही नहीं। तो वहाँ आते ही नहीं। बाप ने समझाया है, अभी सब आत्मायें तमोप्रधान बनी हैं फिर सभी आत्माओं को सतोप्रधान कौन बनाये? वह तो बाप ही बना सकते हैं। सतोप्रधान दुनिया में थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी सब मुक्तिधाम में रहते हैं। ब्रह्म तत्व है, जहाँ हम आत्मायें निवास करती हैं। उनको कहा जाता है ब्रह्माण्ड। आत्मा तो अविनाशी है। यह अविनाशी नाटक है, जिसमें सभी आत्माओं का पार्ट है। नाटक कब शुरू हुआ? यह कभी कोई बता न सके। यह अनादि ड्रामा है ना। बाप को सिर्फ पुरानी दुनिया को नई बनाने आना पड़ता है। ऐसे नहीं कि बाप नई सृष्टि रचते हैं। जब पतित होते हैं तब ही पुकारते हैं, सतयुग में कोई पुकारते नहीं। है ही पावन दुनिया। रावण पतित बनाते हैं, परमपिता परमात्मा आकर पावन बनाते हैं। आधा- आधा जरूर कहेंगे। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात आधा- आधा है। ज्ञान से दिन होता है, वहाँ अज्ञान है नहीं। भक्ति मार्ग को अन्धियारा मार्ग कहा जाता है। देवतायें पुनर्जन्म लेते- लेते फिर अन्धियारे में आते हैं इसलिए इस सीढ़ी में दिखाया है- मनुष्य कैसे सतो, रजो, तमो में आते हैं। अभी सबकी जड़जड़ीभूत अवस्था है। बाप आते हैं ट्रांसफर करने अर्थात् मनुष्य को देवता बनाने। जब देवता थे तो आसुरी गुण वाले मनुष्य नहीं थे। अभी इन आसुरी गुण वालों को फिर दैवीगुणों वाला कौन बनाये? अभी तो अनेक धर्म, अनेक मनुष्य हैं। लड़ते- झगड़ते रहते हैं। सतयुग में एक धर्म है तो दुःख की कोई बात नहीं। शास्त्रों में तो बहुत दन्त कथायें हैं जो जन्म- जन्मान्तर पढ़ते आये हैं। बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं, उनसे मुझे प्राप्त कर नहीं सकते। मुझे तो स्वयं एक ही बार आकर सबकी सद्गति करनी है। ऐसे वापिस कोई जा न सके। बहुत धैर्य से बैठ समझाना चाहिए, हंगामा भी न हो। उन लोगों को अपना अहंकार तो रहता है ना। साधू- सन्तों के साथ फालोअर्स भी रहते हैं। झट कह देंगे इनको भी ब्रह्माकुमारियों का जादू लगा है। सयाने मनुष्य जो होंगे वह कहेंगे यह विचार करने योग्य बातें हैं। मेले प्रदर्शनी में अनेक प्रकार के आते हैं ना। प्रदर्शनी आदि में कोई भी आये तो उसे बड़े धैर्य से समझाना चाहिए। जैसे बाबा धीरज से समझा रहे हैं। बहुत ज़ोर से बोलना नहीं चाहिए। प्रदर्शनी में तो बहुत इकट्ठे हो जाते हैं ना। फिर कह देना चाहिए- आप कुछ टाइम देकर एकान्त में आकर समझेंगे तो आपको रचयिता और रचना का राज़ समझायेंगे। रचना के आदि- मध्य- अन्त का ज्ञान रचयिता बाप ही समझाते हैं। बाकी तो सब नेती- नेती ही करके जाते हैं। कोई भी मनुष्य जा न सके। ज्ञान से सद्गति हो जाती फिर ज्ञान की दरकार नहीं होती। यह नॉलेज सिवाए बाप के कोई समझा न सके। समझाने वाला कोई बुजुर्ग होगा तो मनुष्य समझेंगे यह भी अनुभवी है। जरूर सतसंग आदि किया होगा। कोई बच्चे समझायेंगे तो कहेंगे यह क्या जानें। तो ऐसे- ऐसे को बुजुर्ग का असर पड़ सकता है। बाप एक ही बार आकर यह नॉलेज समझाते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं। मातायें बैठ उनको समझायेंगी तो खुश होंगे। बोलो ज्ञान सागर बाप ने ज्ञान का कलष हम माताओं को दिया है जो हम फिर औरों को देते हैं। बहुत नम्रता से बोलते रहना है। शिव ही ज्ञान का सागर है जो हमको ज्ञान सुनाते हैं। कहते हैं मैं तुम माताओं द्वारा मुक्ति- जीवनमुक्ति के गेट्स खोलता हूँ, और कोई खोल न सके। हम अभी परमात्मा द्वारा पढ़ रहे हैं। हमको कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। ज्ञान का सागर एक ही परमपिता परमात्मा है। तुम सब भक्ति के सागर हो। भक्ति की अथॉरिटी हो, न कि ज्ञान की। ज्ञान की अथॉरिटी एक मैं ही हूँ। महिमा भी एक की करते हैं। वही ऊंच ते ऊंच है। हम उनको ही मानते हैं। वह हमको ब्रह्मा तन से पढ़ाते हैं इसलिये ब्रह्माकुमार- कुमारियां गाये हुए हैं। ऐसे बहुत मीठे रूप में बैठ समझाओ। भल कितना भी पढ़ा हुआ हो। ढेर प्रश्न करते हैं। पहले- पहले तो बाप पर ही निश्चय कराना है। पहले तुम यह समझो रचता बाप है वा नहीं। सभी का रचयिता एक ही शिवबाबा है, वही ज्ञान का सागर है। बाप, टीचर, सतगुरू है। पहले तो यह निश्चयबुद्धि हो कि रचता बाप ही रचना के आदि- मध्य- अन्त का ज्ञान देते हैं। वही हमको समझाते हैं, वह तो जरूर राइट ही समझायेंगे। फिर कोई प्रश्न उठ न सके। बाप आते ही हैं संगम पर। सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो पाप भस्म हो जाएं। हमारा काम ही है पतित को पावन बनाने का। अभी तमोप्रधान दुनिया है। पतित- पावन बाप बिगर कोई को जीवनमुक्ति मिल न सके। सभी गंगा स्नान करने जाते हैं तो पतित ठहरे ना। मैं तो कहता नहीं हूँ कि गंगा स्नान करो। मैं तो कहता हूँ मामेकम् याद करो। मैं तुम सभी आशिकों का माशुक हूँ। सभी एक माशुक को याद करते हैं। रचना का क्रियेटर एक ही बाप है। वह कहते हैं देही- अभिमानी बन मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे। यह योग बाप अभी ही सिखलाते हैं जबकि पुरानी दुनिया बदल रही है। विनाश सामने खड़ा है। अभी हम देवता बन रहे हैं। बाप कितना सहज बताते हैं। बाप के सामने भल सुनते हैं परन्तु एकरस हो नहीं सुनते। बुद्धि और और तरफ भागती रहती है। भक्ति में भी ऐसे होता है। सारा दिन तो वेस्ट जाता है बाकी जो टाइम मुकरर करते हैं, उसमें भी बुद्धि कहाँ- कहाँ चली जाती है। सबका ऐसा हाल होता होगा। माया है ना!

कोई- कोई बच्चे बाप के सामने बैठे ध्यान में चले जाते हैं, यह भी टाइम वेस्ट हुआ ना। कमाई तो नहीं हुई। बाप तो कहते हैं याद में रहो, जिससे विकर्म विनाश हों। ध्यान में जाने से बुद्धि में बाप की याद नहीं रहती है। इन सब बातों में बहुत घोटाला है। तुमको तो आंखे बन्द भी नहीं करनी है। याद में बैठना है ना। आंखें खोलने से डरना नहीं चाहिए। आंखे खुली हों। बुद्धि में माशुक ही याद हो। आंखे बन्द करके बैठना, यह कायदा नहीं। बाप कहते हैं याद में बैठो। ऐसे थोड़ेही कहते हैं आंखे बन्द करो। आंख बन्द कर, कांध ऐसे नीचे कर बैठेंगे तो बाबा कैसे देखेंगे। आंखे कभी बन्द नहीं करनी चाहिए। आंखे बन्द हो जाती है तो कुछ दाल में काला होगा, और कोई को याद करते होंगे। बाप तो कहते हैं और कोई मित्र- सम्बन्धियों आदि को याद किया तो तुम सच्चे आशिक नहीं ठहरे। सच्चा आशिक बनेंगे तब ही ऊंच पद पायेंगे। मेहनत सारी याद में है। देह- अभिमान में बाप को भूलते हैं, फिर धक्के खाते रहते हैं और बहुत मीठा भी बनना चाहिए। वातावरण भी मीठा हो, कोई आवाज़ नहीं। कोई भी आये तो देखे- बात कितनी मीठी करते हैं। बहुत साइलेन्स होनी चाहिए। कुछ भी लड़ना- झगड़ना नहीं। नहीं तो जैसे बाप, टीचर, गुरू तीनों की निंदा कराते हैं। वह फिर पद भी बहुत कम पायेंगे। बच्चों को अब समझ तो मिली है। बाप कहते हैं हम तुमको पढ़ाते हैं ऊंच पद पाने। पढ़कर फिर औरों को पढ़ाना है। खुद भी समझ सकते हैं, हम तो कोई को सुनाते नहीं हैं तो क्या पद पायेंगे! प्रजा नहीं बनायेंगे तो क्या बनेंगे! योग नहीं, ज्ञान नहीं तो फिर जरूर पढ़े हुए के आगे भरी ढोनी पड़ेगी। अपने को देखना चाहिए इस समय नापास हुए, कम पद पाया तो कल्प- कल्पान्तर कम पद हो जायेगा। बाप का काम है समझाना, नहीं समझेंगे तो अपना पद भ्रष्ट करेंगे। कैसे किसको समझाना चाहिए- वह भी बाबा समझाते रहते हैं। जितना थोड़ा और आहिस्ते बोलेंगे उतना अच्छा है। बाबा सर्विस करने वालों की महिमा भी करते हैं ना। बहुत अच्छी सर्विस करते हैं तो बाबा की दिल पर चढ़ते हैं। सर्विस से ही तो दिल पर चढ़ेंगे ना। याद की यात्रा भी जरूर चाहिए तब ही सतोप्रधान बनेंगे। सजा जास्ती खायेंगे तो पद कम हो जायेगा। पाप भस्म नहीं होते हैं तो सजा बहुत खानी पड़ती है, पद भी कम हो जाता है। उसको घाटा कहा जाता है। यह भी व्यापार है ना। घाटे में नहीं जाना चाहिए। दैवीगुण धारण करो। ऊंच बनना चाहिए। बाबा उन्नति के लिए किस्म- किस्म की बातें सुनाते हैं, अब जो करेंगे सो पायेंगे। तुमको परिस्तानी बनना है, गुण भी ऐसे धारण करने हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) किसी से भी बहुत नम्रता और धीरे से बातचीत करनी है। बोलचाल बहुत मीठा हो। साइलेन्स का वातावरण हो। कोई भी आवाज़ न हो तब सर्विस की सफलता होगी।

2) सच्चा- सच्चा आशिक बन एक माशुक को याद करना है। याद में कभी आंखे बन्द कर कांध नीचे करके नहीं बैठना है। देही- अभिमानी होकर रहना है।

वरदान:- अव्यभिचारी और निर्विघ्न स्थिति द्वारा फर्स्ट जन्म की प्रालब्ध प्राप्त करने वाले समीप और समान भव!

जो बच्चे यहाँ बाप के गुण और संस्कारों के समीप हैं, सर्व सम्बन्धों से बाप के साथ का वा समानता का अनुभव करते हैं वही वहाँ रायल कुल में फर्स्ट जन्म के सम्बन्ध में समीप आते हैं। 2- फर्स्ट में वही आयेंगे जो आदि से अब तक अव्यभिचारी और निर्विघ्न रहे हैं। निर्विघ्न का अर्थ यह नहीं है कि विघ्न आये ही नहीं लेकिन विघ्न- विनाशक वा विघ्नों के ऊपर सदा विजयी रहें। यह दोनों बातें यदि आदि से अन्त तक ठीक हैं तो फर्स्ट जन्म में साथी बनेंगे।

स्लोगन:- साइलेन्स की पॉवर से निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करो।

Om Shanti ! Sakar Murli April 10, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli April 10, 2015


Essence: Sweet children, the most divine virtue of all is to remain quiet, that is, not to speak loudly and to speak sweetly. You children are now to go from this 'talkie' world into the 'movie' world and then, from `movie', you go into silence. Therefore, do not come into sound too much.

Question: By imbibing which main virtue are you automatically able to imbibe all the other divine virtues?

Answer: The main inculcation is purity. Deities are pure. This is why they have divine virtues in them. No one in this world can have divine virtues. How could there be divine virtues in the kingdom of Ravan? You royal children are now imbibing divine virtues.

Song: No one is as unique as the Innocent Lord. ..Bholenath se niraala koi aur nahi.. भोलेनाथ से निराला...

https://www.youtube.com/watch?v=zPJXnlai9Qc


Om shanti.

You children now understand that there is only the One who reforms that which has been spoilt (bigdi ko banaanewala). People go to many others on the path of devotion. They go on so many pilgrimages etc. There is only the One who reforms that which has been spoilt, only the One who purifies the impure. There is also only the one Bestower of Salvation, the Guide and the Liberator. This is the praise of Him, but because there are innumerable human beings, many religions, sects, 'isms' and scriptures, people seek God on many paths. They go to satsangs (spiritual gatherings) for peace and happiness. Those who do not go to those satsangs remain intoxicated with Maya's intoxication. You children know that it is now the end of the iron age. People do not know when the golden age will come or what age it is now. Any child can understand this. There is definitely happiness in the new world and sorrow in the old world. There are many people and many religions in this old world. You can explain to anyone that the golden age existed in the past and that this is now the iron age. There was only the one original eternal deity religion in the golden age. No other religions existed there. Baba has already explained to you many times, and He is telling you again: Show the contrast between the old world and the new world to anyone who comes. It doesn't matter what they say. Some say that the duration of each cycle is 10,000 years and others say that it is 30,000 years. There are innumerable opinions. They have the directions of the scriptures. There are many scriptures and many directions; they are the directions of human beings. Scriptures are also written by human beings. Deities do not write them. In the golden age, there is the deity religion; they are not even called human beings. Tell all of this to your friends and relatives that you meet. These things have to be thought about. There are very few people in the new world, whereas the population of the old world has grown so much. In the golden age there is only the one deity religion and there are very few human beings. Only deities have divine virtues; human beings do not have them. This is why human beings give salutations to the deities, why they sing songs of praise to the deities. They know that the deities reside in heaven and that they themselves are living in hell, in this iron age. Human beings cannot have divine virtues. If someone says that so-and-so has very good, divine virtues, tell him: No; only deities have divine virtues because only they are pure. Here, because no one is pure, no one can have divine virtues. This is the devilish kingdom of Ravan. The deities with divine virtues belong to the new tree. Then the tree becomes old. No one with divine virtues can exist in the kingdom of Ravan. In the golden age, there is the family path of the original eternal deity religion. Those on the family path are praised. In the golden age, we are pure deities. The path of renunciation does not exist there. You receive so many points. However, all of these points cannot stay in anyone's intellect. You fail because you forget the points. You do not imbibe divine virtues. This one divine virtue is very good: not to talk too much to anyone unnecessarily and to speak sweetly and to speak less, because you children now have to go from this 'talkie' world into the 'movie' world and then into the world of silence. Therefore, stop talking too much! Someone who speaks very little and very softly is understood to be from a royal family. Let there be jewels constantly emerging from your mouth. No matter who it is you speak to, even if it is a sannyasi, explain to him the contrast between the old world and the new world: In the golden age, there were deities with divine virtues; that was the household path. The religion of you sannyasis is totally separate. Nevertheless, you do understand that the new world was satopradhan and that it is now tamopradhan. When souls become tamopradhan, they receive tamopradhan bodies. This is now the impure world. Everyone is called impure. That is the pure, satopradhan world. That new world then becomes old. At present, all humans are atheists. This is why there is so much chaos. Because they do not know their Lord and Master, they continue to fight and battle amongst themselves. Those who know the Creator and creation are called theists. Those who belong to the religion of renunciation do not know the new world. Therefore, they do not even go there. The Father has explained that all souls are at present tamopradhan. Who can now make all souls satopradhan? Only the Father can do this. There are very few people in the satopradhan world. At that time, all the rest are in the land of liberation. That is the element of brahm where we souls reside. It is called Brahmand. Souls are imperishable. This is an eternal play in which all souls have a part to play. No one can tell you when this play began. This drama is eternal. The Father simply has to come and change the old world into a new one. It isn't that the Father creates a new world. When people are impure, they call out to Him. No one in the golden age calls out to Him, because that world is pure. Ravan makes you impure and then the Supreme Father, the Supreme Soul, comes and makes you pure. The day of Brahma and the night of Brahma are said to be half and half. The day dawns through knowledge. There is no ignorance there. The path of devotion is called the path of the darkness of ignorance. Whilst taking rebirth, the deities enter darkness. This is why it is shown in the picture of the ladder how people go through the stages of sato, rajo and tamo. Everyone is now in a state of total decay. The Father comes in order to transfer you, that is, to change human beings into deities. When the deities exist, human beings with devilish traits do not exist. Now, who would make those with devilish traits into those with divine virtues? There are now many religions and so many people; they continue to fight and quarrel. In the golden age, there is only the one religion. There is no question of sorrow there. Many tall stories are written in the scriptures; people have been reading them for birth after birth. The Father says: All of those scriptures belong to the path of devotion. No one can attain Me through those. Only once do I, Myself, have to come and grant salvation to all. No one can return home just like that. Sit them down and patiently explain to them. There shouldn't be any arguing. Those people have their own ego. Sages and holy men have their followers with them. They would instantly say that he has had the magic of the Brahma Kumaris cast on him. A sensible person would say that these matters are worth thinking about. All types of people come to the exhibitions and fairs. When any of them come to your exhibition, patiently explain to them just as Baba explains to you with so much patience. Do not speak too loudly. Many people gather together at exhibitions. Therefore, tell them: Allow yourself some time and come on your own and understand. I will tell you the secrets of the Creator and creation. Only the Father, the Creator, is able to explain to you the beginning, the middle and the end of creation. Everyone else simply says, "neti, neti" (neither this nor that). Not a single person can return yet. Once salvation has been received through knowledge, there is no further need of knowledge. No one but the Father can explain this knowledge to you. When a mature person explains, people think that he is experienced, that he must have gone to satsangs etc. When a child explains, they think: What does this one know? Therefore, such people can be influenced by you mature ones. The Father only comes once to explain this knowledge to you. He makes you satopradhan from tamopradhan. If you mothers sit with others and explain to them they can become happy. Tell them: The Father, the Ocean of Knowledge, has given the urn of nectar to us mothers. We then give it to others. Continue to speak with a lot of humility. Only Shiva is the Ocean of Knowledge and He gives that knowledge to us. He says: I open the gates of liberation and liberation in life through you mothers. No one else can open them. We are all studying with the Supreme Soul. It is not a human being teaching us. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. All of you are oceans of devotion. You are authorities of devotion, not knowledge. I alone am the Authority of knowledge. People sing the praise of the One alone. He alone is the Highest on High. We only believe in Him. It is because He teaches us through the body of Brahma that the Brahma Kumars and Kumaris are remembered. Sit with them and explain very sweetly in this way. No matter how educated someone is, he will still ask many questions. First of all, make them have faith in the Father. Tell them: First of all, understand whether the Father is the Creator or not. Only Shiv Baba is the Creator of all. He is the Ocean of Knowledge. He is the Father, Teacher and Satguru. The intellect should have the faith that only the Father, the Creator, gives us the knowledge of the beginning, the middle and the end of creation. Only He explains to us. He would definitely only explain to us that which is right. No one can then raise any questions. The Father only comes at the confluence age. He simply says: Remember Me and your sins will be burnt away. My task is to purify the impure. The world is now tamopradhan. No one could receive liberation in life until the Purifier Father comes. They all go to bathe in the Ganges. Therefore, they must all be impure. I do not tell you to bathe in the Ganges. I say: Remember Me alone. I am the Beloved of all you lovers. Everyone remembers the one Beloved. Only the one Father is the Creator of creation. He says: Become soul conscious and remember Me and your sins will be absolved in this fire of yoga. It is only at this time, when the old world has to be transformed, that the Father teaches this yoga. Destruction is standing ahead. We are now becoming deities. The Father tells us everything so easily. Some of you who listen directly to the Father are not stable when you listen; your intellects keep running in other directions. The same thing happens in devotion. The whole day is wasted. Their intellects also wander here and there during the time they had kept aside for devotion. The same thing probably happens to everyone because of Maya. Some children go into trance whilst sitting in front of the Father. That time too is wasted. No income is earned. The Father says: Stay in remembrance and your sins will be absolved. When you go into trance, your intellect doesn't have remembrance of the Father. There is a lot of confusion about these matters. Do not even close your eyes. You have to sit in remembrance. Do not be afraid to keep your eyes open. Keep your eyes open and keep the remembrance of the Beloved in your intellects. To sit with your eyes closed is not the system here. The Father says: Sit in remembrance. He does not tell you to close your eyes. If you close your eyes or lower your head, how would the Father be able to see you? Never close your eyes. If you close your eyes, there must be something wrong. You must be remembering someone else. The Father says: If you remember your friends and relatives, you can't be a true lover. Only when you become a true lover can you claim a high status. All the effort lies in this remembrance. It is due to body consciousness that you forget the Father and stumble around. Become very sweet. The atmosphere should also be very sweet; there should be no noise. Anyone who comes should be able to hear how sweetly you talk. There should be a lot of silence; you mustn't fight or quarrel. Otherwise, it would be as though you defame all three: the Father, Teacher and Guru. Then you would claim a low status. You children have now received understanding. The Father says: I am teaching you to enable you to claim a high status. You must study and also teach others. Since you are not giving knowledge to anyone, you can understand for yourselves what status you would claim. What would you become if you don't create subjects? If you don't have yoga and there is no knowledge, you would definitely have to bow down to those who have studied. Check yourselves. If you fail now and claim a low status, you will claim a low status for cycle after cycle. The Father's duty is to explain to you. If you do not understand, you destroy your own status. Baba also continues to tell you how you should explain to others. It is better to speak less and to speak softly. Baba praises those who do service. Those who do service very well are able to sit in Baba's heart. You can sit in His heart by doing service. You also definitely need the pilgrimage of remembrance. Only then will you become satopradhan. If more punishment is experienced, your status is reduced. If your sins are not absolved, a lot of punishment has to be experienced and your status is reduced. That is called a loss. This too is a business. Do not incur a loss! Imbibe divine virtues! Become elevated! Baba tells you different things to help you make progress. Those who do something receive the reward of that. You have to become the residents of the land of angels. Therefore, imbibe virtues accordingly. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

1. When explaining to anyone, speak with a great deal of humility and patience. Your words and behaviour should be very sweet. Create an atmosphere of silence. Only when there is no noise will service become successful.

2. Become a true lover and remember the one Beloved. Never sit in remembrance with your eyes closed or with your head lowered. Remain soul conscious. 




Blessing: May you be close and equal (sameep  samaan) and by having an unadulterated stage that is free from obstacles, attain the reward of the first birth.

The children who are close to the Father's virtues and sanskars here and who experience the Father's company and equality by having all relationships with Him will come close in the first birth in the royal family. Those who have been unadulterated and free from obstacles from the beginning until now will come first. "Free from obstacles" does not mean that no obstacles will come to you, but that you are a destroyer of obstacles and are always victorious over the obstacles. If you have been all right in both of these aspects from the beginning and remain so until the end, you will then become companions in the first birth.

Slogan: Transform the negative into positive with the power of silence.

***OM SHANTI***

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