Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

02-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन



02-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

मीठे बच्चे - तुम्हें खिवैया मिला है इस पार से उस पार ले जाने के लिए, तुम्हारे पैर अब इस पुरानी दुनिया पर नहीं हैं, तुम्हारा लंगर उठ चुका है |”   
प्रश्न:- जादूगर बाप की वन्डरफुल जादूगरी कौन-सी है जो दूसरा कोई नहीं कर सकता?
उत्तर:- कौड़ी तुल्य आत्मा को हीरे तुल्य बना देना, बागवान बनकर काँटों को फूल बना देना - यह बहुत वन्डरफुल जादूगरी है जो एक जादूगर बाप ही करता है, दूसरा कोई नहीं। मनुष्य पैसा कमाने के लिए सिर्फ जादूगर कहलाते हैं, लेकिन बाप जैसा जादू नहीं कर सकते हैं।
ओम् शान्ति।
सारे सृष्टि चक्र वा ड्रामा में बाप एक ही बार आते हैं। और कोई सतसंग आदि में ऐसे नहीं समझते होंगे। न वह कथा करने वाला बाप है, न वह बच्चे हैं। वह तो वास्तव में फालोअर्स भी नहीं हैं। यहाँ तो तुम बच्चे भी हो, स्टूडेन्ट भी हो और फालोअर्स भी हो। बाप बच्चों को साथ में ले जायेंगे। बाबा जायेंगे तो फिर बच्चे भी इस छी-छी दुनिया से अपनी गुल-गुल दुनिया में चलकर राज्य करेंगे। यह तुम बच्चों की बुद्धि में आना चाहिए। इस शरीर के अन्दर जो रहने वाली आत्मा है वह बहुत खुश होती है। तुम्हारी आत्मा बहुत खुश होनी चाहिए। बेहद का बाप आया हुआ है जो सभी का बाप है, यह भी सिर्फ तुम बच्चों को समझ है। बाकी सारी दुनिया में तो सब बेसमझ ही हैं। बाप बैठ समझाते हैं रावण ने तुमको कितना बेसमझ बना दिया है। बाप आकर समझदार बनाते हैं। सारे विश्व पर राज्य करने लायक, इतना समझदार बनाते हैं। यह स्टूडेन्ट लाइफ भी एक ही बार होती है, जबकि भगवान आकर पढ़ाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह है, बाकी जो अपने धन्धे धोरी आदि में फँसे हुए बहुत रहते हैं, उनको कभी यह बुद्धि में आ न सके कि भगवान पढ़ाते हैं। उन्हें तो अपना धन्धा आदि ही याद रहता है। तो तुम बच्चे जबकि जानते हो भगवान हमको पढ़ाते हैं तो कितना हार्षित रहना चाहिए और तो सब हैं पाई- पैसे वालों के बच्चे, तुम तो भगवान के बच्चे बने हो, तो तुम बच्चों को अथाह खुशी रहनी चाहिए। कोई तो बहुत हार्षित रहते हैं। कोई कहते हैं बाबा हमारी मुरली नहीं चलती, यह होता......। अरे, मुरली कोई मुश्किल थोड़ेही है। जैसे भक्ति मार्ग में साधू-सन्त आदि से कोई पूछते हैं-हम ईश्वर से कैसे मिलें? परन्तु वह जानते नहीं। सिर्फ अंगुली से इशारा करेंगे कि भगवान को याद करो। बस, खुश हो जाते हैं। वह कौन है-दुनिया में कोई भी नहीं जानते। अपने बाप को कोई भी नहीं जानते। यह ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है, फिर भी भूल जायेंगे। ऐसे नहीं कि तुम्हारे में सभी बाप और रचना को जानते हैं। कहाँ-कहाँ तो चलन ऐसी चलते हैं, बात मत पूछो। वह नशा ही उड़ जाता है। अभी तुम बच्चों का पैर पुरानी दुनिया पर जैसेकि है नहीं। तुम जानते हो कलियुगी दुनिया से अब पैर उठ गया है, बोट (नांव) का लंगर उठाया हुआ है। अभी हम जा रहे हैं, बाप हमको कहाँ ले जायेंगे यह बुद्धि में है क्योंकि बाप खिवैया भी है तो बागवान भी है। काँटों को फूल बनाते हैं। उन जैसा बागवान कोई है नहीं जो काँटों को फूल बना दे। यह जादूगरी कोई कम थोड़ेही है। कौड़ी तुल्य आत्मा को हीरे तुल्य बनाते हैं। आजकल जादूगर बहुत निकले हैं, यह है ठगों की दुनिया। बाप है सतगुरू। कहते भी हैं सतगुरू अकाल। बहुत धुन से कहते हैं। अब जबकि खुद कहते हैं सतगुरू एक है, सर्व का सद्गति दाता एक है, फिर अपने को गुरू क्यों कहलाना चाहिए? न वह समझते हैं, न लोग ही कुछ समझते हैं। इस पुरानी दुनिया में रखा ही क्या है। बच्चों को जब मालूम होता है, बाबा नया घर बना रहे हैं तो ऐसा कौन होगा जो नये घर से नफरत, पुराने घर से प्रीत रखेंगे। बुद्धि में नया घर ही याद रहता है। तुम बेहद बाप के बच्चे बने हो तो तुम्हें स्मृति रहनी चाहिए कि बाप हमारे लिए न्यु वर्ल्ड बना रहे हैं। हम उस न्यु वर्ल्ड में जाते हैं। उस न्यु वर्ल्ड के अनेक नाम हैं। सतयुग, हेविन, पैराडाइज, वैकुण्ठ आदि...... तुम्हारी बुद्धि अब पुरानी दुनिया से उठ गई है क्योंकि पुरानी दुनिया में दु:ख ही दु:ख है। इसका नाम ही है हेल, काँटों का जंगल, रौरव नर्क, कंसपुरी। इनका अर्थ भी कोई नहीं जानते। पत्थरबुद्धि हैं ना। भारत का देखो हाल क्या है। बाप कहते हैं इस समय सब पत्थरबुद्धि हैं। सतयुग में सब हैं पारसबुद्धि, यथा राजा रानी तथा प्रजा। यहाँ तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य इसलिए सबकी स्टैम्प बनाते रहते हैं।
तुम बच्चों की बुद्धि में यह याद रहना चाहिए। ऊंच ते ऊंच है बाप। फिर सेकेण्ड नम्बर में ऊंच कौन है? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की तो कोई ऊंचाई नहीं है। शंकर की तो पहरवाइस आदि ही कैसी बना दी है। कह देते हैं वह भांग पीते, धतूरा खाते....... यह तो इनसल्ट है ना। यह बातें होती नहीं। यह अपने धर्म को ही भूले हुए हैं। अपने देवताओं के लिए क्या- क्या कहते रहते हैं, कितनी बेइज्जती करते हैं! तब बाप कहते हैं मेरी भी बेइज्जती, शंकर की, ब्रह्मा की भी बेइज्जती। विष्णु की बेइज्जती नहीं होती। वास्तव में गुप्त उनकी भी करते हैं, क्योंकि विष्णु ही राधे-कृष्ण हैं। अब कृष्ण छोटा बच्चा तो महात्मा से भी ऊंच गाया जाता है। यह (ब्रह्मा) तो पीछे सन्यास करते हैं, वह तो छोटा बच्चा है ही पवित्र। पाप आदि को जानते नहीं। तो ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा, फिर भी बिचारों को पता नहीं है कि प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ होना चाहिए। प्रजापिता ब्रह्मा को दिखाते भी शरीरधारी हैं। अजमेर में उनका मन्दिर है। दाढ़ी मूँछ देते हैं ब्रह्मा को, शंकर वा विष्णु को नहीं देते। तो यह समझ की बात है। प्रजापिता ब्रह्मा सूक्ष्मवतन में कैसे होगा! वह तो यहाँ होना चाहिए। इस समय ब्रह्मा की कितनी सन्तान हैं? लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ इतने ढेर हैं तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा होगा। चैतन्य है तो जरूर कुछ करते होंगे। क्या प्रजापिता ब्रह्मा सिर्फ बच्चे ही पैदा करते हैं या और भी कुछ करते हैं। भल आदि देव ब्रह्मा, आदि देवी सरस्वती कहते हैं परन्तु उनका पार्ट क्या है, यह किसको भी पता नहीं है। रचता है तो जरूर यहाँ होकर गया होगा। जरूर ब्राह्मणों को शिवबाबा ने एडाप्ट किया होगा। नहीं तो ब्रह्मा कहाँ से आये? यह नई बातें हैं ना। जब तक बाप नहीं आया है तब तक कोई जान नहीं सकते। जिसका जो पार्ट है वही बजाते हैं। बुद्ध ने क्या पार्ट बजाया, कब आया, क्या आकर किया - कोई नहीं जानते। तुम अभी जानते हो क्या वह गुरू है, टीचर है, बाप है? नहीं। सद्गति तो दे न सके। वह तो सिर्फ अपने धर्म के रचता ठहरे, गुरू नहीं। बाप बच्चों को रचते हैं। फिर पढ़ाते हैं। बाप, टीचर, गुरू तीनों ही हैं। दूसरे कोई को थोड़ेही कहेंगे कि तुम पढ़ाओ। और कोई के पास यह नॉलेज है ही नहीं। बेहद का बाप ही ज्ञान का सागर है। तो जरूर ज्ञान सुनायेंगे। बाप ने ही स्वर्ग का राज्य-भाग्य दिया था। अभी फिर से दे रहे हैं। बाप कहते हैं तुम फिर से 5 हजार वर्ष बाद आकर मिले हो। बच्चों को अन्दर में खुशी है जिसको सारी दुनिया ढूँढ रही है, वह हमें मिल गया। बाबा कहते हैं बच्चे तुम 5 हजार वर्ष के बाद फिर से आकर मिले हो। बच्चे कहते-हाँ बाबा, हम आपको अनेक बार मिले हैं। भल कितना भी कोई तुमको मारे-पीटे अन्दर में तो वह खुशी है ना। शिवबाबा के मिलने की याद तो है ना। याद से ही कितने पाप कटते हैं। अबलाओं, बांधेलियों के तो और ही जास्ती कटते हैं क्योंकि वह जास्ती शिवबाबा को याद करती हैं। अत्याचार होते हैं तो बुद्धि शिवबाबा की तरफ चली जाती है। शिवबाबा रक्षा करो। तो याद करना अच्छा है ना। भले रोज मार खाओ, शिवबाबा को याद करेंगी, यह तो भलाई है ना। ऐसे मार पर तो बलिहार जाना चाहिए। मार पड़ती है तो याद करते हैं। कहते हैं गंगा जल मुख में हो, गंगा का तट हो, तब प्राण तन से निकलें। तुमको जब मार मिलती है, बुद्धि में अल्फ और बे याद हो। बस। बाबा कहने से वर्सा जरूर याद आयेगा। ऐसा कोई भी नहीं होगा, जिसको बाबा कहने से वर्सा याद न पड़े। बाप के साथ मिलकियत जरूर याद आयेगी। तुमको भी शिवबाबा के साथ वर्सा जरूर याद आयेगा। वह तो तुमको विष के लिए (विकार के लिए ) मार देकर शिवबाबा की याद दिलाते हैं। तुम बाप से वर्सा पाते हो, पाप कट जाते हैं। यह भी ड्रामा में तुम्हारे लिए गुप्त कल्याण है। जैसे कहा जाता है लड़ाई कल्याणकारी है तो यह मार भी अच्छी हुई ना।
आजकल बच्चों का प्रदर्शनी मेलों की सर्विस पर जोर है। नव निर्माण प्रदर्शनी के साथ-साथ लिख दो गेट वे टू हेविन। दोनों अक्षर होने चाहिए। नई दुनिया कैसे स्थापन होती है, उनका एग्जीवीशन है तो मनुष्यों को सुनकर खुशी होगी। नई दुनिया कैसे स्थापन होती है, उनके लिए यह चित्र बनाये हैं। आकर देखो। गेट वे टू न्यु वर्ल्ड, यह अक्षर भी ठीक है। यह जो लड़ाई है इनके द्वारा गेट्स खुलते हैं। गीता में भी है भगवान आया था, आकर राजयोग सिखाया था। मनुष्य से देवता बनाया तो जरूर नई दुनिया स्थापन हुई होगी। मनुष्य कितना कोशिश करते हैं मून (चांद) में जाने की। देखते हैं धरती ही धरती है। मनुष्य कुछ भी देखने में नहीं आते। इतना सुनाते हैं। इससे फायदा ही क्या! अभी तुम रीयल साइलेन्स में जाते हो ना। अशरीरी बनते हो। वो है साइलेन्स वर्ल्ड। तुम मौत चाहते हो, शरीर छोड़ जाना चाहते हो। बाप को भी मौत के लिए ही बुलाते हो कि आकर अपने साथ मुक्ति-जीवनमुक्ति में ले जाओ। परन्तु समझते थोड़ेही हैं, पतित-पावन आयेंगे तो जैसे हम कालों के काल को बुलाते हैं। अभी तुम समझते हो, बाबा आया हुआ है, कहते हैं चलो घर और हम घर जाते हैं। बुद्धि काम करती है ना। यहाँ कई बच्चे होंगे जिनकी बुद्धि धन्धे आदि तरफ दौड़ती होगी। फलाना बीमार है, क्या हुआ होगा। अनेक प्रकार के संकल्प आ जाते हैं। बाप कहते हैं तुम यहाँ बैठे हो, आत्मा की बुद्धि बाप और वर्से तरफ रहे। आत्मा ही याद करती है ना। समझो कोई का बच्चा लण्डन में है, समाचार आया बीमार है। बस, बुद्धि चली जायेगी। फिर ज्ञान बुद्धि में बैठ न सके। यहाँ बैठे हुए बुद्धि में उनकी याद आती रहेगी। कोई का पति बीमार हो गया तो स्त्री के अन्दर उथल-पाथल होगी। बुद्धि जाती तो है ना। तो तुम भी यहाँ बैठे सब कुछ करते शिवबाबा को याद करते रहो। तो भी अहो सौभाग्य। जैसे वह पति को अथवा गुरू को याद करते हैं, तुम बाप को याद करो। तुम्हें अपना एक मिनट भी वेस्ट नहीं करना चाहिए। बाप को जितना याद करेंगे तो सर्विस करने में भी बाप ही याद आयेगा। बाबा ने कहा है मेरे भक्तों को समझाओ। यह किसने कहा? शिवबाबा ने। कृष्ण के भक्तों को क्या समझायेंगे? उनको कहो कृष्ण नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं। मानेंगे? क्रियेटर तो गॉड फादर है, कृष्ण थोड़ेही है। परमपिता परमात्मा ही पुरानी दुनिया को नई बना रहे हैं, यह मानेंगे भी। नई सो पुरानी, पुरानी सो फिर नई होती है। सिर्फ टाइम बहुत दे देने से मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं। तुम्हारे लिए तो अब हथेली पर बहिश्त है। बाप कहते हैं मैं तुमको उस स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। बनेंगे? वाह, क्यों नहीं बनेंगे! अच्छा, मुझे याद करो, पवित्र बनो। याद से ही पाप भस्म हो जायेंगे। तुम बच्चे जानते हो विकर्मों का बोझ आत्मा पर है, न कि शरीर पर। अगर शरीर पर बोझा होता तो जब शरीर को जला देते हैं तो उसके साथ पाप भी जल जाते। आत्मा तो है ही अविनाशी, उसमें सिर्फ खाद पड़ती है। जिनको निकालने के लिए बाप एक ही युक्ति बतलाते हैं कि याद करो। पतित से पावन बनने की युक्ति कैसी अच्छी है। मन्दिर बनाने वाले, शिव की पूजा करने वाले भी भक्त हैं ना। पुजारी को कभी पूज्य कह न सकें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) जिसे सारी दुनिया ढूँढ रही है, वह बाबा हमें मिल गया - इसी खुशी में रहना है। याद से ही पाप कटते हैं इसलिए किसी भी परिस्थिति में बाप और वर्से को याद करना है। एक मिनट भी अपना समय वेस्ट नहीं करना है।
2) इस पुरानी दुनिया से बुद्धि का लंगर उठा देना है। बाबा हमारे लिये नया घर बना रहे हैं, यह है रौरव नर्क, कंस पुरी, हम जाते हैं वैकुण्ठपुरी में। सदा इस स्मृति में रहना है। 

वरदान:- सर्व खजानों को स्व के प्रति और औरों के प्रति यूज करने वाले अखण्ड महादानी भव!   
जैसे बाप का भण्डारा सदा चलता रहता है, रोज देते हैं ऐसे आपका भी अखण्ड लंगर चलता रहे क्योंकि आपके पास ज्ञान का, शक्तियों का, खुशियों का भरपूर भण्डारा है। इसे साथ में रखने वा यूज करने में कोई भी खतरा नहीं है। यह भण्डारा खुला होगा तो चोर नहीं आयेगा। बंद रखेंगे तो चोर आ जायेंगे इसलिए रोज अपने मिले हुए खजानों को देखो और स्व के प्रति और औरों के प्रति यूज करो तो अखण्ड महादानी बन जायेंगे।
स्लोगन:- सुने हुए को मनन करो, मनन करने से ही शक्तिशाली बनेंगे।  

Om Shanti ! Sakar Murli May 02, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli May 02, 2015


Essence: Sweet children, you have now found the Boatman (Khivaiya) to take you from this side to the other side. Your feet are no longer in this old world. Your anchor (langar) has been raised.

Question: What wonderful magic (jaadoogari)  that no one else can perform does the Father, the Magician (Jaadoogar), perform?

Answer: To change souls, who are as worthless as shells, into those who are as valuable as diamonds. He becomes the Master of the Garden (Baagwaan) and changes thorns into flowers. This is wonderful magic. Only the Father, the Magician, performs this wonderful magic. No one else can perform this magic. People call themselves magicians simply to earn money, but none of them can perform magic like the Father.

Om shanti.

Only once does the Father come into the world cycle, into the drama. No one in any other satsang would think like this. In those places, the one who relates the religious story is not their father, nor are they his children. In fact, they are not even followers. Here, you are children as well as students and also followers. The Father will take you children back with Him. When Baba leaves, you children will also leave this dirty world and go to the new beautiful world and rule there. This should enter the intellects of you children. The soul, living in the body, becomes very happy. You souls should become very happy. The unlimited Father, who is the Father of all, has come. Only you children understand this. Everyone else in the world is senseless. The Father sits here and explains: Ravan has made you so senseless. The Father comes and makes you sensible. He makes you so sensible that you become worthy of ruling the whole world. Only once, when God comes and teaches you, do you have this student life. This can only be in your intellects. It can never enter the intellects of those who are trapped in their business etc. that God teaches them. They only remember their business etc. Therefore, since you children know that God is teaching you, you should be so cheerful. All others are children of those who are worth only a few pennies. Here, you have become God's children and so you should have limitless happiness. Some of you do remain very cheerful. Others say: Baba, we cannot speak knowledge; this happens, that happens. However, speaking knowledge is not very difficult. On the path of devotion, people go to the sages and holy men and ask how they can meet God, but none of them knows. They simply signal upwards with their finger for them to remember God, that's all! They become happy with that answer. No one in the world knows who He is. No one knows their Father. The drama is created in this way. Then you will forget again. It is not, that among you too, everyone knows the Father and the creation. At some places, the behaviour of children is such, don't even ask! That intoxication disappears. It should be as though the feet of you children are no longer in this old world. You know that your feet have been raised above the iron-aged world. The anchor of the boat has been raised. We are now about to leave. It is in your intellects where the Father is taking you, because the Father is the Boatman as well as the Master of the Garden. He comes and changes thorns into flowers. There is no other Master of the Garden like Him who could change thorns into flowers. He changes souls who are as worthless as shells into those who are as valuable as diamonds; this magic is not a small thing. Nowadays, there are many magicians. This is the world of cheats. The Father is the Satguru. They speak of the Satguru, the Immortal One. They say this with a lot of intoxication. Since they themselves say that the Satguru is only One, that the Bestower of Salvation for all is only One, why do they call themselves gurus? Neither do they themselves understand anything nor do the people who believe in them understand anything. What is there in this old world? Since you children know that Baba is building a new home for you, who would dislike the new home and still love the old one? One's intellect would only remember the new home. You have now become children of the unlimited Father, and so you should be aware that the Father is creating a new world for you and that you are going to that new world. That new world has many names: the golden age, heaven, Paradise, Vaikunth etc. Your intellects have now been removed from this old world because there is nothing but sorrow here. What is its name? Its name is hell, the forest of thorns, the extreme depths of hell the land of Kans (the devil). No one understands its meaning because everyone has a stone intellect. Just look at the state of Bharat! The Father says: At this time, everyone has a stone intellect. In the golden age, everyone's intellect is divine. As are the rulers, so the people. Here, it is the rule of the people over the people. This is why stamps are made of everyone. Therefore, the intellects of you children must remember that the Highest on High is the Father. Who is the second highest? Brahma, Vishnu and Shankar cannot be considered to be this. Just look at the dress that they have depicted for Shankar! They say that he used to drink an intoxicating drink (bhaang) and eat bitter flowers (dhatoora). All of that is an insult to him. Such things do not exist there. All of those people have forgotten their own religion. Just look at what they say about their deities! They are so disrespectful to their deities. Therefore, the Father says: They have defamed Me, defamed Shankar and Brahma too. Vishnu is not defamed. However, they do defame him in an incognito way because Vishnu is also Radhe and Krishna. Krishna is an infant and considered to be more elevated than a great soul. This Brahma renounced everything when he became old, whereas an infant is pure and innocent anyway; he doesn't know anything about sin. The Highest on High is Shiv Baba. Even then, those poor things don't know where Prajapita Brahma has to be. Prajapita Brahma is shown as a bodily being. There is a temple to him in Ajmer. Brahma is portrayed with a beard and moustache. Neither Shankar nor Vishnu is portrayed like that. Therefore, it is a matter of understanding. How could Brahma, the Father of Humanity, be in the subtle region? He has to be down here. There are so many children of Brahma at this time. It has been written that there are so many Prajapita Brahma Kumars and Kumaris. Therefore, there must definitely be Prajapita Brahma. Since he is in a living form, he must definitely be doing something. Would Prajapita Brahma simply be creating children or would he also be doing something else? Although Adi Dev Brahma and Adi Devi Saraswati are mentioned, no one knows what their parts are. Since they are creators, they must surely have existed here. Shiv Baba must surely have adopted Brahmins. Where else could Brahma have come from? This is a new aspect. No one can understand this until the Father comes and explains. Whatever someone's part is, it can only be enacted by that person. What part did Buddha play? When did he come and what did he do when he came? No one knows this. Do you know whether he was a guru or a teacher or a father? No; he cannot grant anyone salvation. He is simply the creator of his own religion. He is not a guru. The Father creates children and then He teaches them. He is the Father, the Teacher and the Guru; all three. He doesn't ask anyone else to teach you. No one else has this knowledge. Only the unlimited Father is the Ocean of Knowledge and so He would definitely give us knowledge. Only the Father gave us our fortune of the kingdom of heaven and He is now giving us that once again. The Father says: You have come and met Me once again after 5000 years. You children should have the internal happiness that you have now found the One for whom everyone else in the world is still searching. Baba says: Children, you have now come and met Me once again after 5000 years. You children reply: Yes Baba, we have met You innumerable times before. No matter how much someone beats you, there should be this happiness inside you. At least you can remember that you have met Shiv Baba. It is only by having remembrance of Him that your sins can be cut away. The sins of innocent ones, those in bondage, are cut away even more because they remember Shiv Baba a lot more. When they are being assaulted, their intellects go to Shiv Baba; "Shiv Baba, protect me!" Therefore, it is good to remember Him. If you are being beaten every day, at least you would remember Shiv Baba, and that is an act of benefit. So, you should be thankful for such beatings. Since you are being beaten, you are at least remembering Baba! It is said: At the time of death, one should be on a bank of the Ganges and there should be the water of the Ganges on your lips. Therefore, at that time of being beaten, let there be the remembrance of Alpha and beta in the intellect. That's all! By saying "Baba" you definitely remember your inheritance. There isn't anyone who wouldn't remember his inheritance when he says "Baba". Together with remembering one's father, one definitely remembers the property of one's father. Together with Shiv Baba you also remember the inheritance. Although they beat you for vice, they do make you remember Shiv Baba. Therefore, you receive your inheritance from the Father, and your sins are also being cut away. This is incognito benefit for you in the drama. Just as it is said that there is benefit in war, in the same way, there is benefit in this beating too. You children are now paying a lot of attention to service at exhibitions and fairs. Together with the exhibition of, "The Creation of the New World", also write: Gateway to Heaven. Both these statements should be there. When people hear that there is an exhibition on how the new world is being established, they will become very happy. These pictures have been created to explain how the new world is being established. Come and see them. The words, "Gateway to the New World", are also very good. Those gates open through the war that is to take place. In the Gita, it is mentioned that God came and taught Raja Yoga. He changed human beings into deities. Therefore, the new world must definitely have been established by Him. People make so much effort to go to the moon. They can see that there is nothing but land there, that there aren't any human beings to be seen there. They are only able to tell you this much. What is the benefit of that? You now go into real silence. You become bodiless. That is the world of silence. You want to die, you want to renounce your body. You called out to the Father for death. You called out to Him to take you with Him into liberation and liberation-in-life. However, people do not understand that when they invited the Purifier to come, it was as though they were inviting the Death of all Deaths to come. You now understand that Baba has come. He says: Come, let us now return home. So, we are now returning home. The intellect continues to work. There are some children here whose intellects run to their business etc., or that So-and-so is ill, or they wonder what would have happened to him. There are many different kinds of thought. The Father says: While you are sitting here, let the soul's intellect go to the Father and the inheritance. It is the soul that remembers. For instance, when a father receives news that his child in London is unwell, his intellect would very quickly go there. This knowledge would not then sit in his intellect. While sitting here, his intellect would continue to remember his child. When a woman's husband is ill, there would be upheaval within her; her intellect would be diverted there. You must continue to remember Shiv Baba while sitting here or whatever else you're doing. This, too, is your great fortune. Just as they remember their husband or guru, you must remember the Father. Don't waste even a minute! The more you remember the Father, the more you will be able to remember Him while doing service. The Father has said: Explain to My devotees. Who said this? Shiv Baba. What would you explain to the devotees of Krishna? Would they believe you if you told them that Krishna is establishing the new world? God, the Father, not Krishna, is the Creator. They will accept it when you tell them that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the One who makes the old world new. The new world becomes old and then the old becomes new. However, because it has been given a long duration, people are in total darkness. He is offering you heaven on the palm of His hand. The Father says: I have come to make you into the masters of that heaven. Will you become that? Wonderful! Why should we not become that? Achcha, remember Me, and become pure! Only by you having this remembrance can your sins be burnt away. You children know that your burden of sins is on the soul and not the body. If the burden were on the body, then, when the body is burnt, the sins would be burnt as well. The soul is imperishable. It is simply that alloy has been mixed into the soul. The Father shows you the only way to remove it: Remember Me! The way to become pure from impure is very good. Those who build temples and worship Shiva are devotees. A worshipper can never be called worthy of worship. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

 1. We have now found that Baba for whom the whole world is still searching. Stay in this happiness! Only by having this remembrance can your sins be cut away. Therefore, no matter what the circumstances are, remember the Father and the inheritance. Do not waste even one minute of your time.

2. Remove the anchor of your intellect from this old world. Baba is now building a new home for us. Always stay in the awareness that this world is the extreme depths of hell, the land of Kans (the devil) (raurav nark, Kanspuri), and that we are now going to the land of Paradise (Vaikunthpuri).

Blessing: May you be a constant and great donor (akhand mahadaani) who uses all the treasures for yourself and for others.

Just as the Father's treasure-store continues endlessly and He gives treasures to us every day, similarly, let there be a constant "langar" (sikh tradition where food is continuously provided day and night) for anyone who comes because you have the over-flowing treasure-store (bharpoor bhandaara) of knowledge, powers and happiness. There is no danger in keeping this with you and using it. Where this treasure-store is open, thieves will not come. If you keep it closed, thieves would come. Therefore, every day, look at the treasures you have received and use them for yourself and for others and you will become a constant and great donor.

Slogan: Churn everything that you have heard because it is only by churning that you will become powerful (shaktishaali).

***OM SHANTI***

Daily Positive Thoughts: May 02, 2015: Coolness

Daily Positive Thoughts: May 02, 2015: Coolness




Coolness

Maintaining a state of inner calmness protects me from becoming a slave to my emotions. It also helps me to keep a cool head when I see others becoming heated or angry. Coolness is not to be distant or uncaring; rather it requires that I develop the deeply caring nature of a peacemaker and serve others in the best possible way.


Independence

Think of those people you are giving some kind of help or support.
Check if you are helping in such a way to make them independent or is
your help making them dependent on you. Remind yourself that your aim
in helping is to make people independent and strong in such a way that
they are able to support others too. Remind yourself that your help
should never make people weak.


The Hurting Of The Ego

Almost everyday or every second day we come across a situation when someone says something to us which is not very pleasurable or we chose to perceive it to be so. In either case, we feel insulted and get upset as a result. In some cases we react and display our feelings. In some, we don't. In either case, the result is a depreciation (decrease) in our happiness index. Why does this happen? It's because you have created, attached to and identified with an image of yourself in your mind that does not match with how the other sees or perceives you, as a result of which you believe you have been insulted and you get upset.

As long as people's perception of you matches the image that you have created inside your mind of yourself, you are content with them, but as soon as the opposite happens, even if it is to a very small extent, you become disturbed, because you are attached to that image. The more the attachment, the greater the hurt, the disturbance or reaction. You could examine this phenomenon very closely, taking place inside yourself everyday. This kind of attachment mentioned above is called ego. That's why the phenomenon explained above is called in common language 'the hurting of the ego'.

In tomorrow's message, we shall explain this phenomenon further with an example.



Soul Sustenance

Factors That Bring Us Closer to Success

Given below are some factors that bring us closer to success:

• High self-esteem.
• Constancy.
• Courage and determination.
• Integrity and honesty.
• Self-acceptance and acceptance of others.
• Believing in what you do, regardless of external factors.
• Responsibility.
• Dedication, determination and tranquility.
• Being positive in the face of adversities (negative circumstances).
• Being consistent with your values.
• Precision in decisions and choices.
• Focus.
• Performing all karmas with love and happiness.
• Giving the maximum of yourself in everything you do.
• Creativity.
• Thoughts and actions in tune with each other.
• Appreciation and blessings (good wishes) from others.
• Gratitude toward oneself and others.


Message for the day

To have an open mind is to be prepared for mistakes too.

Expression: The one with an open mind is the one who is able to see things for what they are and accept them. He is able to take the lesson from each situation that happens and move forward with confidence. He never lets any situation or even his own mistake discourage him, but he is able to move forward with renewed confidence.

Experience: I am able to learn from my mistakes and be ready for the next learning too when I am able to keep my mind open. Each mistake that happens is also a beautiful teaching when I am willing to learn. With each new situation I find myself growing very beautifully within.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


01-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


01-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

 

मीठे बच्चे - तुम इन आंखों से जो कुछ देखते हो यह सब पुरानी दुनिया की सामग्री हैयह समाप्त होनी हैइसलिए इस दु:खधाम को बुद्धि से भूल जाओ |” 

प्रश्न:- मनुष्यों ने बाप पर कौन-सा दोष लगाया है लेकिन वह दोष किसी का भी नहीं है?

उत्तर:- इतना बड़ा जो विनाश होता हैमनुष्य समझते हैं भगवान ही कराता हैदु:ख भी वह देतासुख भी वह देता। यह बहुत बड़ा दोष लगा दिया है। बाप कहते-बच्चेमैं सदा सुख दाता हूँमैं किसी को दु:ख नहीं दे सकता। अगर मैं विनाश कराऊं तो सारा पाप मेरे पर आ जाए। वह तो सब ड्रामा अनुसार होता हैमैं नहीं कराता हूँ।

गीत:- रात के राही........... 

ओम् शान्ति।

बच्चों को सिखलाने के लिए कई गीत बड़े अच्छे हैं। गीत का अर्थ करने से वाणी खुल जायेगी। बच्चों की बुद्धि में तो है कि हम सभी दिन की यात्रा पर हैंरात की यात्रा पूरी होती है। भक्ति मार्ग है ही रात की यात्रा। अन्धियारे में धक्का खाना होता है। आधाकल्प रात की यात्रा कर उतरते आये हो। अभी आये हो दिन की यात्रा पर। यह यात्रा एक ही बारी करते हो। तुम जानते हो याद की यात्रा से हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन फिर सतोप्रधान सतयुग के मालिक बनते हैं। सतोप्रधान बनने से सतयुग के मालिक,तमोप्रधान बनने से कलियुग के मालिक बनते हो। उनको कहा जाता है स्वर्गइनको कहा जाता है नर्क। अब तुम बच्चे बाप को याद करते हो। बाप से सुख ही मिलता है। जो और कुछ बोल नहीं सकते हैं वह सिर्फ यह याद रखें - शान्तिधाम है हम आत्माओं का घरसुखधाम है स्वर्ग की बादशाही और अभी यह है दु:खधामरावणराज्य। अब बाप कहते हैं इस दु:खधाम को भूल जाओ। भल यहाँ रहते हो परन्तु बुद्धि में यह रहे कि इन आंखों से जो कुछ देखते हैं वह सब रावणराज्य है। इन शरीरों को देखते हैंयह भी सारी पुरानी दुनिया की सामग्री है। यह सारी सामग्री इस यज्ञ में स्वाहा होनी है। वह पतित ब्राह्मण लोग यज्ञ रचते हैं तो उनमें जौं-तिल आदि सामग्री स्वाहा करते हैं। यहाँ तो विनाश होना है। ऊंच ते ऊंच है बापपीछे है ब्रह्मा और विष्णु। शंकर का इतना कोई पार्ट है नहीं। विनाश तो होना ही है। बाप तो विनाश उनसे कराते हैं जिस पर कोई पाप न लगे। अगर कहें भगवान विनाश कराता है तो उस पर दोष आ जाए इसलिए यह सब ड्रामा में नूँध है। यह बेहद का ड्रामा हैजिसको कोई जानते नहीं हैं। रचता और रचना को कोई नहीं जानते। न जानने कारण निधनके बन पड़े हैं। कोई धनी है नहीं। कोई घर में बाप नहीं होता है और आपस में लड़ते हैं तो कहते हैं तुम्हारा कोई धनी नहीं है क्या! अभी तो करोड़ों मनुष्य हैंइनका कोई धनीधोणी नहीं है। नेशन-नेशन में लड़ते रहते हैं। एक ही घर में बच्चे बाप के साथपुरूष स्त्री के साथ लड़ते रहते हैं। दु:खधाम में है ही अशान्ति। ऐसे नहीं कहेंगे भगवान बाप कोई दु:ख रचते हैं। मनुष्य समझते हैं दु:ख-सुख बाप ही देते हैं परन्तु बाप कभी दु:ख दे न सके। उनको कहा ही जाता है सुख-दाता तो फिर दु:ख कैसे देंगे। बाप तो कहते हैं हम तुमको बहुत सुखी बनाते हैं। एक तो अपने को आत्मा समझो। आत्मा है अविनाशीशरीर है विनाशी। हम आत्माओं के रहने का स्थान परमधाम हैजिसको शान्तिधाम भी कहा जाता है। यह अक्षर ठीक है। स्वर्ग को परमधाम नहीं कहेंगे। परम माना परे ते परे। स्वर्ग तो यहाँ ही होता है। मूलवतन है परे ते परेजहाँ हम आत्मायें रहती हैं। सुख-दु:ख का पार्ट तुम यहाँ बजाते हो। यह जो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। यह है बिल्कुल रांग। स्वर्ग तो यहाँ है नहीं। अभी तो है कलियुग। इस समय तुम हो संगमयुगीबाकी सब हैं कलियुगी। एक ही घर में बाप कलियुगी तो बच्चा संगमयुगी। स्त्री संगमयुगीपुरूष कलियुगी....... कितना फर्क हो जाता है। स्त्री ज्ञान लेतीपुरूष ज्ञान नहीं लेते तो एक-दो को साथ नहीं देते। घर में खिट-खिट हो जाती है। स्त्री फूल बन जाती हैवह कांटे का कांटा रह जाता। एक ही घर में बच्चा जानता है हम संगमयुगी पुरूषोत्तम पवित्र देवता बन रहे हैंलेकिन बाप कहते शादी बरबादी कर नर्कवासी बनो। अब रूहानी बाप कहते हैं-बच्चेपवित्र बनो। अभी की पवित्रता 21 जन्म चलेगी। ये रावणराज्य ही खलास हो जाना है। जिससे दुश्मनी होती है तो उनका एफिजी जलाते हैं ना। जैसे रावण को जलाते हैं। तो दुश्मन से कितनी घृणा होनी चाहिए। परन्तु यह किसको मालूम नहीं कि रावण कौन हैबहुत ही खर्चा करते हैं। मनुष्य को जलाने के लिए इतना खर्चा नहीं करते। स्वर्ग में तो ऐसी कोई बात होती नहीं। वहाँ तो बिजली में रखा और खत्म। वहाँ यह ख्याल नहीं रहता कि उनकी मिट्टी काम में आये। वहाँ की तो रस्म-रिवाज ऐसी है जो कोई तकलीफ अथवा थकावट की बात नहीं रहती। इतना सुख रहता है। तो अब बाप समझाते हैं - मामेकम् याद करने का पुरूषार्थ करो। यह याद करने की ही युद्ध है। बाप बच्चों को समझाते रहते हैं-मीठे बच्चेअपने ऊपर अटेन्शन का पहरा देते रहो। माया कहाँ नाक-कान काट न जाये क्योंकि दुश्मन है ना। तुम बाप को याद करते हो और माया तूफान में उड़ा देती है इसलिए बाबा कहते हैं हर एक को सारे दिन का चार्ट लिखना चाहिए कि कितना बाप को याद कियाकहाँ मन भागाडायरी में नोट करोकितना समय बाप को याद कियाअपनी जांच करनी चाहिए तो माया भी देखेगी यह तो अच्छा बहादुर हैअपने पर अच्छा अटेन्शन रखते हैं। पूरा पहरा रखना है। अभी तुम बच्चों को बाप आकर परिचय देते हैं। कहते हैं भल घरबार सम्भालो सिर्फ बाप को याद करो। यह कोई उन सन्यासियों मुआफ़िक नहीं है। वह भीख पर चलते हैं फिर भी कर्म तो करना पड़ता है ना। तुम उनको भी कह सकते हो कि तुम हठयोगी होराजयोग सिखलाने वाला एक ही भगवान है। अभी तुम बच्चे संगम पर हो। इस संगमयुग को ही याद करना पड़े। हम अभी संगमयुग पर सर्वोत्तम देवता बनते हैं। हम उत्तम पुरूष अर्थात् पूज्य देवता थेअब कनिष्ट बन पड़े हैं। कोई काम के नहीं रहे हैं। अब हम क्या बनते हैंमनुष्य जिस समय बैरिस्टरी आदि पढ़ते हैंउस समय मर्तबा नहीं मिलता। इम्तहान पास कियामर्तबे की टोपी मिली। जाकर गवर्मेन्ट की सर्विस में लगेंगे। अभी तुम जानते हो हमको ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर ऊंच ते ऊंच पद भी देंगे। यह एम ऑब्जेक्ट है। अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करोमैं जो हूँजैसा हूँसो समझा दिया है। आत्माओं का बाप मैं बिन्दी हूँमेरे में सारा ज्ञान हैतुमको भी पहले यह ज्ञान थोड़ेही था कि आत्मा बिन्दी है। उनमें सारा 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है। क्राइस्ट पार्ट बजाकर गये हैंफिर जरूर आयेंगे तो सही ना। क्राइस्ट के अभी सब जायेंगे। क्राइस्ट की आत्मा भी अभी तमोप्रधान होगी। जो भी ऊंच ते ऊंच धर्म स्थापक हैंवह अब तमोप्रधान हैं। यह भी कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में तमोप्रधान बनाअब फिर सतोप्रधान बनते हैं। तत् त्वम्।

तुम जानते हो - हम अभी ब्राह्मण बने हैं देवता बनने के लिए। विराट रूप के चित्र का अर्थ कोई नहीं जानते। अभी तुम बच्चे जानते हो आत्मा स्वीट होम में रहती है तो पवित्र है। यहाँ आने से पतित बनी है। तब कहते हैं-हे पतित-पावन आकर हमको पवित्र बनाओ तो हम अपने घर मुक्तिधाम में जायें। यह भी प्वाइंट धारण करने के लिए है। मनुष्य नहीं जानते मुक्ति-जीवनमुक्तिधाम किसको कहा जाता है। मुक्तिधाम को शान्तिधाम कहा जाता है। जीवनमुक्तिधाम को सुखधाम कहा जाता है। यहाँ है दु:ख का बंधन। जीवनमुक्ति को सुख का संबंध कहेंगे। अब दु:ख का बंधन दूर हो जायेगा। हम पुरूषार्थ करते हैं ऊंच पद पाने के लिए। तो यह नशा होना चाहिए। हम अभी श्रीमत पर अपना राज्य-भाग्य स्थापन कर रहे हैं। जगत अम्बा नम्बरवन में जाती है। हम भी उनको फालो करेंगे। जो बच्चे अभी मात-पिता के दिल पर चढ़ते हैं वही भविष्य में तख्तनशीन बनेंगे। दिल पर वह चढ़ते जो दिन-रात सर्विस में बिजी रहते हैं। सबको पैगाम देना है कि बाप को याद करो। पैसा-कौड़ी कुछ भी लेने का नहीं है। वह समझते हैं यह राखी बांधने आती हैंकुछ देना पड़ेगा। बोलो हमको और कुछ चाहिए नहीं सिर्फ 5 विकारों का दान दो। यह दान लेने लिए हम आये हैं इसलिए पवित्रता की राखी बांधते हैं। बाप को याद करोपवित्र बनो तो यह (देवता) बनेंगे। बाकी हम पैसा कुछ भी नहीं ले सकते हैं। हम वह ब्राह्मण नहीं हैं। सिर्फ 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूटें। अभी कोई कला नहीं रही है। सब पर ग्रहण लगा हुआ है। तुम ब्राह्मण हो ना। जहाँ भी जाओ-बोलोदे दान तो छूटे ग्रहण। पवित्र बनो। विकार में कभी नहीं जाना। बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और तुम फूल बन जायेंगे। तुम ही फूल थे फिर कांटे बने हो। 84 जन्म लेते-लेते गिरते ही आये हो। अब वापिस जाना है। बाबा ने डायरेक्शन दिया है इन द्वारा। वह है ऊंच ते ऊंच भगवान। उनको शरीर नहीं है। अच्छाब्रह्मा-विष्णु-शंकर को शरीर हैतुम कहेंगे-हाँ,सूक्ष्म शरीर है। परन्तु वह मनुष्यों की सृष्टि तो नहीं है। खेल सारा यहाँ है। सूक्ष्मवतन में नाटक कैसे चलेगावैसे मूलवतन में भी सूर्य-चांद ही नहीं तो नाटक भी काहे का होगा! यह बहुत बड़ा माण्डवा है। पुनर्जन्म भी यहाँ होता है। सूक्ष्मवतन में नहीं होता। अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा बेहद का खेल है। अभी पता पड़ा है-हम जो देवी-देवता थे सो फिर कैसे वाम मार्ग में आते हैं। वाम मार्ग विकारी मार्ग को कहा जाता है। आधाकल्प हम पवित्र थेहमारा ही हार और जीत का खेल है। भारत अविनाशी खण्ड है। यह कभी विनाश होता नहीं है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था। तुम्हारी इन बातों को मानेंगे वह जिन्होंने कल्प पहले माना होगा। 5 हजार वर्ष से पुरानी ची॰ज कोई होती नहीं। सतयुग में फिर तुम पहले जाकर अपने महल बनायेंगे। ऐसे नहीं कि सोनी-द्वारिका कोई समुद्र के नीचे है वह निकल आयेगी। दिखलाते हैं सागर से देवतायें रत्नों की थालियाँ भरकर देते थे। वास्तव में ज्ञान सागर बाप है जो तुम बच्चों को ज्ञान रत्न की थालियाँ भरकर दे रहे हैं। दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई। ज्ञान रत्नों से झोली भरी। शंकर के लिए कहते-भांग-धतूरा पीता थाफिर उनके आगे जाकर कहते झोली भर दोहमको धन दो। तो देखो शंकर की भी ग्लानि कर दी है। सबसे जास्ती ग्लानि करते हैं हमारी। यह भी खेल है जो फिर भी होगा। इस नाटक को कोई जानते नहीं। मैं आकर आदि से अन्त तक सारा राज समझाता हूँ। यह भी जानते हो ऊंचे ते ऊंच बाप है। विष्णु सो ब्रह्मा,ब्रह्मा सो विष्णु कैसे बनते हैं-यह कोई समझ न सके।

अभी तुम बच्चे पुरूषार्थ करते हो कि हम विष्णु कुल का बनें। विष्णुपुरी का मालिक बनने के लिए तुम ब्राह्मण बने हो। तुम्हारी दिल में है - हम ब्राह्मण अपने लिए सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर। इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। देवताओं और असुरों की लड़ाई कभी होती नहीं। देवतायें हैं सतयुग में। वहाँ लड़ाई कैसे होगी। अभी तुम ब्राह्मण योगबल से विश्व के मालिक बनते हो। बाहुबल वाले विनाश को प्राप्त हो जायेंगे। तुम साइलेन्स बल से साइंस पर विजय पाते हो। अब तुमको आत्म-अभिमानी बनना है। हम आत्मा हैंहमको जाना है अपने घर। आत्मायें तीखी हैं। अभी एरोप्लेन ऐसा निकाला है जो एक घण्टे में कहाँ से कहाँ चला जाता है। अब आत्मा तो उनसे भी तीखी है। चपटी में आत्मा कहाँ की कहाँ जाकर जन्म लेती है। कोई विलायत में भी जाकर जन्म लेते हैं। आत्मा सबसे तीखा रॉकेट है। इसमें मशीनरी आदि की कोई बात नहीं। शरीर छोड़ा और यह भागा। अब तुम बच्चों की बुद्धि में है हमको घर जाना हैपतित आत्मा तो जा न सके। तुम पावन बनकर ही जायेंगे बाकी तो सब सजायें खाकर जायेंगे। सजायें तो बहुत मिलती हैं। वहाँ तो गर्भ महल में आराम से रहते हैं। बच्चों ने साक्षात्कार किया है। कृष्ण का जन्म कैसे होता हैकोई गंद की बात नहीं। एकदम जैसे रोशनी हो जाती है। अभी तुम बैकुण्ठ के मालिक बनते हो तो ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए। शुद्ध पवित्र खान- पान होना चाहिए। दाल भात सबसे अच्छा है। ऋषिकेश में सन्यासी एक खिड़की से लेकर चले जातेहाँ कोई कैसेकोई कैसे होते हैं। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) अपने ऊपर अटेन्शन का पूरा-पूरा पहरा देना है। माया से अपनी सम्भाल करनी है। याद का सच्चा- सच्चा चार्ट रखना है।

2) मात-पिता को फालो कर दिलतख्तनशीन बनना है। दिन-रात सर्विस पर तत्पर रहना है। सबको पैगाम देना है कि बाप को याद करो। 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूटे।

 


वरदान:- बीती को चिंतन में न लाकर फुलस्टॉप लगाने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव! 

अभी तक जो कुछ हुआ-उसे फुलस्टॉप लगाओ। बीती को चिंतन में न लाना-यही तीव्र पुरूषार्थ है। यदि कोई बीती को चिंतन करता है तो समयशक्तिसंकल्प सब वेस्ट हो जाता है। अभी वेस्ट करने का समय नहीं है क्योंकि संगमयुग की दो घड़ी अर्थात् दो सेकेण्ड भी वेस्ट किया तो अनेक वर्ष वेस्ट कर दिये इसलिए समय के महत्व को जान अब बीती को फुलस्टॉप लगाओ। फुलस्टॉप लगाना अर्थात् सर्व खजानों से फुल बनना।

स्लोगन:- जब हर संकल्प श्रेष्ठ होगा तब स्वयं का और विश्व का कल्याण होगा।

 

Om Shanti ! Sakar Murli May 01, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli May 01, 2015

Essence: Sweet children, whatever you see with your eyes is all the paraphernalia (saamagri) of the old world. It has to be destroyed. Therefore, remove this land of sorrow from your intellects.

Question: What do human beings blame the Father for when, in fact, it is no one's fault?

Answer: Human beings believe that the huge destruction that takes place is inspired by God, that He is the One who causes sorrow as well as happiness. They have put all the blame on the Father. The Father says: Children, I am always the Bestower of Happiness. I cannot cause sorrow for anyone. If I inspired destruction to take place, all the sin would then fall on Me. Everything happens according to the drama. I do not inspire it.

Song: 0 traveller of the night, do not become weary. The destination of dawn is not far off. Raat ke rahi thak mat jana रात के राही थक मत जाना..... http://www.youtube.com/watch?v=qTmzjkAhtFw&feature=email


Om shanti.

Many songs are very good for teaching you children. You will be able to speak knowledge by extracting the meaning of such songs. It is in the intellects of you children that the pilgrimages of the night have come to an end and that you are all on the pilgrimage of the day. The path of devotion is the pilgrimage of the night where you stumble around in the dark. While going on the pilgrimages of the night for half a cycle, you have been continuing to come down. You have now come here to go on the pilgrimage of the day. Only once do you go on this pilgrimage. You know that by going on the pilgrimage of remembrance, you change from tamopradhan to satopradhan and that you then become the masters of the satopradhan golden age. By becoming satopradhan, you become the masters of the golden age. Then, by becoming tamopradhan, you become the masters of the iron age. That is called heaven and this is called hell. You children are now remembering the Father. You only receive happiness from the Father. Those who are unable to speak knowledge should simply remember that the land of peace is the home of us souls, that the land of happiness is the kingdom of heaven, and that this is now the land of sorrow, the kingdom of Ravan. The Father says: Now forget this land of sorrow. Although you are living here, your intellects should remember that whatever you see with your eyes, it all belongs to the kingdom of Ravan. All of those bodies you see are also the paraphernalia of the old world. All of that paraphernalia has to be sacrificed into this sacrificial fire. When those impure brahmins create a sacrificial fire, they sacrifice sesame seeds etc. into it. Destruction has to take place. The Highest on High is the Father. Then comes Brahma and Vishnu. Shankar does not have such an important part. Destruction has to take place. The Father inspires destruction to take place in such a way that no one accumulates sin for that. If it were said that God carries out destruction, He would be blamed for it. This is why it is all fixed in the drama. This is the unlimited drama, which no one knows. No one knows the Creator or creation. Because they don't know Him, they have become orphans; they have no Lord or Master. When there is no father in a family, the children fight and they are asked: Do you not have a master? There are now millions of human beings who have no master. There is fighting in every nation. In the same home, children fight with their father, and the wife fights with her husband. There is peacelessness in the land of sorrow. It is not that God, the Father, creates sorrow. People think that it is the Father, who gives happiness and sorrow. However, the Father can never cause sorrow. He is called the Bestower of Happiness and so how could He cause sorrow? The Father says: I make you very happy. First of all, consider yourself to be a soul. The soul is imperishable and the body is perishable. The supreme abode is the place of residence of us souls and it is also called the abode of silence. These words are accurate. Heaven would not be called the supreme abode. Param means the land beyond. Heaven exists here. The incorporeal world is the land beyond, where we souls reside. You play your parts of happiness and sorrow here. When people say that So-and-so went to heaven, that is absolutely wrong. Heaven does not exist now; it is now the iron age. At this time, you are in the confluence age whereas everyone else is in the iron age. In the same home, the father is in the iron age whereas the child is in the confluence age; the wife is in the confluence age and the husband is in the iron age. There is such a difference! If the wife takes knowledge but the husband does not, they don't co-operate with each other. Then there is conflict in that home. The wife becomes a flower, whereas he remains a thorn. In the same home, the child knows that, while in the confluence age, he is becoming a pure elevated deity but the father tells him to get married and ruin himself; to become a resident of hell. The spiritual Father says: Children, now become pure. Your purity of the present time will last you for 21 births. This kingdom of Ravan has to be destroyed. People burn an effigy of whomever their enemy is. Therefore, the effigy of Ravan is burnt. There should be so much hatred for that enemy, but no one knows who Ravan is. They incur a great deal of expense in burning that effigy. They do not incur as much expense in burning human beings. These things do not exist in heaven. There, they simply switch on electricity and it's all over. There, they do not even have the thought that those ashes will be of some use. There, the systems and customs are such that there is no question of any difficulty or tiredness. There is so much happiness there. Therefore, the Father explains: Now, constantly make effort to remember Me alone. This is the battle of staying in remembrance. The Father continues to explain to you children: Sweet children, continue to be vigilant and pay special attention to yourselves. Take care that Maya does not cut off your nose and ears because she is your enemy. You remember the Father and then Maya blows you away in her storms. That is why Baba says: Each of you should write a chart as to how much you remembered the Father throughout the day. Where did your mind wander to? Note down in your diary for how long you remembered the Father. Check yourself so that Maya can see that you are very courageous, and that you are paying attention to yourself very well. Be fully vigilant. The Father now comes to give you children His introduction. He says: You may look after your home and family, simply remember the Father. This one is not like those sannyasis. They live on what they have begged for, and they still have to perform actions. You can tell them that they are hatha yogis. Only the one God can teach Raja Yoga. You children are now at the confluence age. You have to remember this confluence age. It is at this confluence age that we become the most elevated deities. We used to be the most elevated human beings, that is, worthy of worship deities, and we have now become the lowest of beings. We have become useless. What are we now becoming? When people study to become barristers, they do not claim a status at that time. Only when they pass the exam can they claim the hat of their status. Then they become engaged in government service. You understand that God, the Highest on High, is now teaching you. Therefore, He will definitely give you the highest on high status. This is your aim and objective. The Father says: Now, constantly remember Me alone. I have explained to you who I am. I am the Father of all souls, a point of light. I have the entire knowledge. You did not know previously that a soul is a point of light. The entire imperishable parts of your 84 births are recorded in you. Christ played his part and left; he will definitely return once again. All the followers of Christ will also return. Even the Christ soul must now be tamopradhan. All the founders of religions, who were the highest of all, are now tamopradhan. This one also says: I have become tamopradhan at the end of my many births and I am now becoming satopradhan again. The same applies to you. You know that you have now become Brahmins in order to become deities. No one knows the meaning of the variety-form image. You children now know that when you souls reside in the sweet home, you are pure. You become impure after coming here. This is why you called out: 0 Purifier come and purify us so that we can go home to the land of liberation. This point also has to be imbibed. Human beings do not understand what the land of liberation is or what the land of liberation-in-life is. The land of liberation is called the land of peace. The land of liberation in life is called the land of happiness. Here, there is the bondage of the land of sorrow. Liberation in life is called relationships of happiness. The bondages of sorrow are now to be removed. We are making effort to claim a high status. Therefore, you should have the intoxication that you are establishing your kingdom by following shrimat. Jagadamba becomes number one. We will also follow her. The children who now sit on the heart-throne of the mother and father claim their throne in the future. Only those who remain busy in service day and night can sit on the heart-throne. Give everyone the message to remember the Father. You must not take even one penny. People think that when you go to tie a rakhi on them, they have to give you something. Tell them: Simply give us the donation of the five vices; we do not want anything else. We have come to take this donation from you. This is why a rakhi for purity is tied on you. Remember the Father, become pure and you will become deities. We cannot accept money from you. We are not those brahmins. Simply give us the donation of the five vices and the bad omens will be removed. There are no celestial degrees remaining. There is an eclipse over everyone. You are Brahmins, are you not? Wherever you go, tell them: Give this donation and the eclipse will be removed. Become pure. Never indulge in vice. Remember the Father and your sins will be absolved and you will become flowers. You were once flowers, but you have now become thorns. Whilst taking 84 births, you have been coming down. You now have to return home. Baba has given directions through this one. He is God, the Highest on High. He doesn't have a body of His own. Achcha, do Brahma, Vishnu and Shankar have bodies? You would say: Yes, they have subtle bodies. However, that is not a world of human beings. The whole play takes place here. How could there be a play in the subtle region? In fact, there is no sun or moon in the incorporeal world, and so, how could there be a play there? This is a huge canopy. Rebirth takes place here; it does not take place in the subtle region. The whole of this unlimited play is now in your intellects. You have now come to know that you were deities and that you then fell onto the path of sin. The path of sin is also called the path of viciousness. We were pure for half a cycle. This play of victory and defeat is all about us. Bharat is the imperishable land; it can never be destroyed. At that time, when the original eternal deity religion used to exist, there were no other religions. Only those who accepted these things a cycle ago will do so again. There cannot be anything older than 5000 years. You will go first to the golden age and build your own palaces. It is not that your city of gold will emerge from the sea. They have portrayed deities emerging from the sea giving platefuls of jewels. In fact, the Father, who is the Ocean of Knowledge, is giving you platefuls of the jewels of knowledge. Shankar has been portrayed telling the story of immortality to Parvati and filling her apron with jewels of knowledge. They also say of Shankar that he used to drink an intoxicating drink. People go in front of an idol of him and ask him to fill their aprons and give them wealth. Therefore, just look how they have also defamed Shankar! They defame Me the most. This too is part of the play, and it will take place again. No one knows this play. I come and explain the secrets of everything to you from the beginning to the end. You also know that the Father is the Highest on High. No one understands how Vishnu becomes Brahma or how Brahma becomes Vishnu. You children are now making effort to become part of Vishnu's clan. You have become Brahmins in order to become the masters of the land of Vishnu. It is in the hearts of you Brahmins that you are establishing the sun and moon dynasty kingdoms for yourselves by following shrimat. There is no question of fighting etc. in this. No battle between deities and devils ever takes place. Deities exist in the golden age. How could a battle take place there? You Brahmins are now becoming the masters of the world through the power of yoga. Those with physical power attain destruction. With your power of silence, you gain victory over science. You now have to become soul conscious. I am a soul; I now have to return home. Souls are very fast. Such aeroplanes have now been invented that they can take you from one place to another place far away within an hour. Souls are even faster than that. A soul leaves one place and takes birth somewhere else just at the snap of the fingers. Some even go to foreign lands and take birth there. A soul is the fastest rocket. There is no question of any machinery in this. They renounce their bodies and run somewhere else. It is in the intellects of you children that you now have to return home. Impure souls cannot return home. You will return home having become pure; all the rest will go after experiencing punishment. A lot of punishment is experienced. There, they stay in great comfort in the palace of a womb. Some children have had visions of how Krishna takes birth. There is no question of anything dirty in that. Suddenly, there is a lot of light. You are now becoming the masters of Paradise. Therefore, you should make effort accordingly. Your food and drink should be clean and pure. Dal and rice are the best. At Rishikesh, sannyasis just take food from a window and then leave. They are of different types. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

 1. Remain vigilant in paying attention to yourself. Beware of Maya. Keep an honest chart of remembrance.

2. Follow the mother and father and become seated on the heart throne (dil takht nasheen). Remain busy in service day and night. Give everyone the message (paigaam) to remember the Father. Give the donation of the five vices and the eclipse will be removed.

Blessing: May you be an intense effort-maker (tivr purushaarthi) who applies a full stop and doesn't think about the past.

Put a full stop to whatever has happened until now. Not to bring the past into your thoughts is to make intense effort. If you think about the past, your time, energy and thoughts are all being wasted. Now is not the time to waste anything because if even two moments of the confluence age are wasted, then it is not just two seconds that are wasted, but you have wasted many years. Therefore, now know the importance of this time and put a full stop to the past. To put a full stop means to become full of all treasures.

Slogan: When your every thought is elevated, (shreshth) you yourself and the world will benefit.

* * *OM SHANTI***

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