Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

05-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


05-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन
 
 
मीठे बच्चे - तुम्हें संग बहुत अच्छा करना है, बुरे संग का रंग लगा तो गिर पड़ेंगे, कुसंग बुद्धि को तुच्छ बना देता है |”   
प्रश्न:- अभी तुम बच्चों को कौन सी उछल आनी चाहिए?
उत्तर:- तुम्हें उछल आनी चाहिए कि गांव-गांव में जाकर सर्विस करें। तुम्हारे पास जो कुछ है, वह सेवा अर्थ है। बाप बच्चों को राय देते हैं-बच्चे, इस पुरानी दुनिया से अपना पल्लव आजाद करो। कोई चीज में ममत्व नहीं रखो, इनसे दिल नही लगाओ।
गीतः इस पाप की दुनिया से................... 
ओम् शान्ति।
पाप आत्माओं की दुनिया और पुण्य आत्माओं की दुनिया, नाम आत्माओं का ही रखा जाता है। अभी यहाँ दु:ख है तब पुकारते हैं। पुण्य आत्माओं की दुनिया में पुकारते नहीं कि कहाँ ले चलो। तुम बच्चे समझते हो, यह कोई पण्डित वा सन्यासी शास्त्रवादी आदि नहीं सुनाते हैं। यह खुद भी कहते हैं-मैं यह ज्ञान नहीं जानता था, रामायण आदि शास्त्र तो ढेर पढ़ते थे। बाकी यह ज्ञान हम तुमको सुनाते हैं। यह भी सुनते हैं। अभी यह है पाप आत्माओं की दुनिया। पुण्य आत्माओं के लिए सिर्फ कहेंगे कि यह होकर गये हैं। बस, पूजा करके आ जायेंगे, शिव की पूजा करके आयेंगे। तुम बच्चे अब किसकी पूजा करेंगे? तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान शिव है, वह है ओबीडियन्ट बाप, टीचर, ओबीडियन्ट प्रिसेप्टर। साथ ले जाने की गैरन्टी और कोई गुरू आदि कर न सकें। सो भी वह कोई सबको थोड़ेही ले जायेंगे। अभी तुम सम्मुख बैठे हो, यहाँ से अपने घर में जाने से भी तुम भूल जायेंगे। यहाँ सम्मुख सुनने से मजा आयेगा। बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं-बच्चे, अच्छी रीति पढ़ो। इसमें गफलत नहीं करो, कुसंग में नहीं फँसो। नहीं तो और ही तुच्छ बुद्धि हो जायेंगे। बच्चे जानते हैं हम क्या थे, क्या पाप किये। अब हम यह देवता बनते हैं, यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है फिर यहाँ मकान आदि की क्या परवाह रखनी है। इस दुनिया का जो कुछ है वह भूलना है। नहीं तो रूकावट डालेंगे। इसमें दिल लगता नहीं। हम नई दुनिया में अपने हीरे-जवाहरातों के महल जाकर बनायेंगे। यहाँ के पैसे आदि कोई चीज अच्छी लगती होगी तो शरीर छोड़ते समय उसमें मोह चला जायेगा। हमारा-हमारा करेंगे तो वह पिछाड़ी में सामने आ जायेगा। यह तो सब यहाँ खत्म हो जाने हैं। हम अपनी राजधानी में आ जायेंगे, इससे क्या दिल लगानी है। वहाँ बहुत सुख रहता है। नाम ही है स्वर्ग। अभी हम चले अपने वतन, यह तो रावण का वतन है, हमारा नहीं। इनसे छूटने का पुरूषार्थ करना है। पुरानी दुनिया से पल्लव आजाद कराते हैं इसलिए बाप कहते हैं कोई चीज में ममत्व नहीं रखो। पेट कोई जास्ती नहीं मांगता, फालतू चीजों पर खर्चा बहुत होता है। तुम बच्चों को सर्विस करने के लिए उछल आनी चाहिए। कई बच्चे हैं जिनको गांव-गांव में सर्विस करने का शौक है। बाकी जिसको सर्विस का शौक नहीं, उन्हें क्या काम के कहेंगे। जैसे बाप वैसे बच्चों को बनना चाहिए। बाप का ही परिचय देना है। बाप को याद करो और बाप से वर्सा लो। बच्चों को शौक होता - हम बाबा की सर्विस पर जाते हैं। तो बाप भी हिम्मत बढ़ाते हैं। बाप आये हैं सर्विस पर, सर्विस के लिए सब कुछ है। यह तो बाप का परिचय सबको देना है। बाप एक ही है। भारत में आया था, भारत में देवताओं का राज्य था। कल की बात है, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर राम-सीता का। फिर वाम मार्ग में गिरे। रावण राज्य शुरू हुआ, सीढ़ी नीचे उतरे अब फिर चढ़ती कला सेकण्ड की बात है।
एक होता है रीयल लव, दूसरा होता है आर्टाफिशियल लव। रीयल लव बाप से तब हो जब अपने को आत्मा समझे। अब तुम बच्चों का इस दुनिया में आर्टाफिशियल लव है। यह तो खत्म होनी है। सर्विस करने वाले कभी भूख नहीं मर सकते। तो सर्विस का बच्चों को शौक रखना चाहिए। तुम्हारी ईश्वरीय मिशन बड़ी सहज है। कोई समझते नहीं कि धर्म कैसे स्थापन होता है। क्राइस्ट आया, क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया, धर्म बढ़ता गया। उसकी मत पर चलते-चलते गिरते आये, अब तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनना है। आधाकल्प रावण राज्य में हम बाप को भूल गये, अब बाप ने आकर सुजाग किया है। बाबा कहते ड्रामा अनुसार तुमको गिरना ही था। तुम्हारा भी दोष नहीं। रावण राज्य में दुनिया की ऐसी हालत हो जाती है। बाप कहते हैं अब मैं आया हूँ पढ़ाने। तुम फिर से अपनी राजाई लो। मैं और कोई तकलीफ नहीं देता हूँ। एक तो बाजार की छी-छी गंदी चीजें न खाओ और मामेकम् याद करो। अभी तुम बच्चे जानते हो - यह ड्रामा का चक्र है, जो फिर रिपीट होगा। तुम्हारी बुद्धि में ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है। तुम कोई को भी समझा सकते हो। पहले तो बाप की याद रहनी चाहिए। सर्विस के लिए आपस में मिलकर साथी बना लेना चाहिए। माताओं को भी निकलना चाहिए। इसमें डरने की कोई बात नहीं है। चित्र आदि सब तुमको मिलेंगे। तुम्हारी सर्विस जास्ती होगी। कहेंगे आप चले जाते हो, फिर हमको कौन सिखायेंगे? बोलो, हम सर्विस करने के लिए तैयार हैं। मकान आदि का प्रबन्ध करो। बहुतों के कल्याण अर्थ निमित्त बन जायेंगे। बाबा सर्विस का उमंग दिलाते हैं। बच्चों में हिम्मत है, तो सर्विस भी बढ़ती है। यह कोई मेला नहीं है जो 10-15 दिन मेला चला फिर खलास। यह मेला तो चलता ही रहता है। यहाँ आत्माओं और परमात्मा का मिलन होता है, जिसको ही सच्चा मेला कहा जाता है। वह तो अभी चल ही रहा है। मेला बन्द तब होगा जब सर्विस पूरी होगी। ड्रामा अनुसार बच्चों को सर्विस का बड़ा शौक चाहिए। जो बेहद के बाप में नॉलेज है, वह बच्चों की बुद्धि में है। ऊंच ते ऊंच बाप से हम कितना ऊंच बनते आये हैं। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी हैं। आपस में सेमीनार करना है। बाबा से राय कर सर्विस में लग जाओ। कोई मदद की दरकार हो तो बाबा दुल्हेलाल बैठा है। यह सब ड्रामा में नूँध है। फिक्र की कोई बात नहीं। नहीं तो स्थापना कैसे होगी। दूसरी बात यह भी है, जो करेगा वह पायेगा। अभी तुम बच्चे पत्थरबुद्धि से हीरे जैसा बनते हो। बाप ज्ञान से इतना सीधा करते, माया फिर नाक से पकड़कर पीठ दिला देती है।
तुम बच्चों को संग बड़ा अच्छा करना चाहिए। बुरे संग का रंग लगने से गिर पड़ेंगे। बाबा बाइसकोप (सिनेमा) आदि देखने की मना करते हैं। जिसको बाइसकोप की आदत पड़ी वह पतित बनने बिगर रह नहीं सकेंगे। यहाँ हर एक की एक्टिविटी डर्टी है, नाम ही है वेश्यालय। बाप शिवालय स्थापन कर रहे हैं। वेश्यालय को पूरी आग लगनी है। कुम्भकरण जैसे आसुरी नींद में सोये पड़े हैं। तुम समझते हो कि हम शिवालय में जा रहे हैं। पहले हम भी बन्दर सदृश्य थे, इस पर रामायण में भी कहानी है। अभी तुम बाप के मददगार बने हो। तुम अपनी शक्ति से राज्य स्थापन कर रहे हो। फिर यह रावण राज्य खलास हो जाना है। तुम बच्चों को अनेक प्रकार की युक्तियाँ बताते रहते हैं। किसको दान नहीं करेंगे तो फल भी कैसे मिलेगा। पहले-पहले 10-15 को रास्ता बताकर फिर बाद में भोजन खाना चाहिए। पहले शुभ काम करके आओ, इसमें ही तुम्हारा कल्याण है। कोई भी देहधारी को याद नहीं करो। यह तो पतित दुनिया है। पतित-पावन एक बाप को याद करो तो पावन दुनिया के मालिक बन जायेंगे। अन्त मती सो गति हो जायेगी। तो किसी न किसी को सन्देश सुनाकर फिर आए भोजन खाना चाहिए। तुम सबको यही बताते रहो कि बाप को याद करने से इतना ऊंच बन जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास - 17-3-68
कभी भी कोई भाषण आदि करना हो तो आपस में मिलकर दो चार बारी रिहर्सल करो, प्वाइन्ट्स एडीशन करेक्शन कर तैयार करो तो फिर रिफाईन भाषण करेंगे। मूल एक बात पर (गीता के भगवान पर) ही तुमने विजय पाई तो फिर सभी बातों में विजय हो जायेगी, इसके लिये कान्फरेंस तो होगी ना! समझते रहेंगे झाड़ की वृद्वि तो जरूर होनी है। माया के तूफान तो सभी को लगते हैं। अक्सर करके लिखते हैं बाबा हमने काम की चमाट खाई, इसको कहा जाता है की कमाई चट।
क्रोध आदि किया तो कहेंगे कुछ घाटा पड़ा। इसके लिये समझाना पड़ता है, काम पर जीत पहन जगत् जीत बनते हैं। काम से हारे हार होती है। काम से हारने वाले की कमाई चट हो जाती है, दण्ड पड़ जाता है। मंजिल बहुत बड़ी है इसलिये बड़ी खबरदारी रखनी पड़ती है। तुम बच्चे जानते हो 5000 वर्ष पहले भी हमको बादशाही मिली थी। अभी फिर से दैवी राजधानी स्थापन हो रही है। इस पढ़ाई से हम उस राजधानी में जाते हैं, सारा मदार है पढ़ाई पर। पढ़ाई और धारणा से ही बाप समान बनेंगे। रजिस्टर भी चाहिए ना जो मालूम पड़े कितनों को आप समान बनाया। जितना जास्ती धारणा करेंगे उतना ही मीठा बनेंगे। बहुत लवली बच्चे चाहिए। तुम बच्चों के लिये ही वह दिन आया आज, जिसके लिये मनुष्य बहुत कोशिश करते हैं कि मुक्ति में जावें। बाप सभी को इकट्ठा ही मुक्ति जीवनमुक्ति देते हैं। जो देवता बनने का पुरूषार्थ करते हैं वही जीवनमुक्ति में आयेंगे। बाकी सभी मुक्ति में जायेंगे। हिसाब एक्यूरेट नहीं निकाल सकते। कोई तो रहेंगे भी। विनाश का साक्षात्कार करेंगे। यह सुहावना समय भी देखेंगे। हर बात में पुरूषार्थ करना होता है। ऐसे भी नहीं याद में बैठेंगे तो काम हो जायेगा। मकान मिल जायेगा। नहीं। वह तो ड्रामा में जो है वही होता है, आश नहीं रखनी चाहिए। पुरूषार्थ करना होता है। बाकी होता तो वही है जो ड्रामा में नूंध है। आगे चल तुम्हारी वृत्ति भी भाई भाई की हो जायेगी। जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना वह वृत्ति रहेगी। हम अशरीरी आये थे। 84 जन्म का चक्र पूरा किया। अब बाप कहते हैं कर्मातीत अवस्था में जाना है।
तुमको वास्तव में किसी से भी शास्त्रों आदि पर विवाद करने की दरकार नहीं है। मूल बात है ही याद की और सृष्टि के आदि मध्य अन्त को समझना है। चक्रवर्ता राजा बनना है। इस चक्र को ही सिर्फ समझना है। इनका ही गायन है सेकण्ड में जीवनमुक्ति। तुम बच्चों को वन्डर लगता होगा, आधा कल्प भक्ति चलती है। ज्ञान रिंचक नहीं। ज्ञान है ही बाप के पास। बाप द्वारा ही जानना है। यह बाप कितना अनकामन है, इसलिये कोटों में कोऊ निकलते हैं। वह टीचर्स ऐसे थोड़ेही कहेंगे। यह तो कहते हैं मैं ही बाप, टीचर, गुरू हूँ। तो मनुष्य सुनकर वन्डर खायेंगे। भारत को मदरकन्ट्री कहते हैं क्योंकि अम्बा का नाम बहुत बाला है। अम्बा के मेले भी बहुत लगते हैं। अम्बा मीठा अक्षर है। छोटे बच्चे भी माँ को प्यार करते हैं ना क्योंकि माँ खिलाती पिलाती सम्भालती है। अब अम्बा का बाबा भी चाहिए ना। यह तो बच्ची है एडाप्टेड, इनका पति तो है नहीं। यह नई बात है ना। प्रजापिता ब्रह्मा जरूर एडाप्ट करते होंगे। यह सभी बातें बाप ही आकर तुम बच्चों को समझाते हैं। कितना मेला लगता है पूजा होती है, क्योंकि तुम बच्चे सर्विस करते हो। मम्मा ने जितने को पढ़ाया होगा उतना और कोई पढ़ा न सके। मम्मा का नामाचार बहुत है, मेला भी बहुत लगता है। अभी तुम बच्चे जानते हो बाप ने ही आकर रचना के आदि-मध्य-अन्त का सारा राज तुम बच्चों को समझाया है। तुमको बाप के घर का भी मालूम पड़ा है। बाप से ही लव है, घर से भी लव है। यह ज्ञान तुमको अभी मिलता है। इस पढ़ाई से कितनी कमाई होती है। तो खुशी होनी चाहिए ना और तुम हो बिल्कुल साधारण। दुनिया को पता नहीं है, बाप आकर यह नॉलेज सुनाते हैं। बाप ही आकर सभी नई नई बातें बच्चों को सुनाते हैं। नई दुनिया बनती है बेहद की पढ़ाई से। पुरानी दुनिया से वैराग्य आ जाता है। तुम बच्चों के अन्दर में ज्ञान की खुशी रहती है। बाप को और घर को याद करना है। घर तो सभी को जाना ही है। बाप तो सभी को कहेंगे ना बच्चों हम तुमको मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा देने आया हूँ। फिर भूल क्यों जाते हो! मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ, राजयोग सिखलाने आया हूँ। तो क्या तुम श्रीमत पर नहीं चलेंगे। फिर तो बहुत घाटा पड़ जायेगा। यह है बेहद का घाटा। बाप का हाथ छोड़ा तो कमाई में घाटा पड़ जायेगा। अच्छा गुडनाईट। ओम् शान्ति।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) इस दुनिया का जो कुछ है उसे भूलना है। बाप समान ओबीडियन्ट बन सर्विस करनी है। सबको बाप का परिचय देना है।
2) इस पतित दुनिया में अपने आपको कुसंग से बचाना है। बाजार का गंदा भोजन नहीं खाना है, बाइसकोप नहीं देखना है।
 

 
 
वरदान:- रूहानियत की श्रेष्ठ स्थिति द्वारा वातावरण को रूहानी बनाने वाले सहज पुरुषार्थी भव!   
रूहानियत की स्थिति द्वारा अपने सेवाकेन्द्र का ऐसा रूहानी वातावरण बनाओ जिससे स्वयं की और आने वाली आत्माओं की सहज उन्नति हो सके क्योंकि जो भी बाहर के वातावरण से थके हुए आते हैं उन्हें एकस्ट्रा सहयोग की आवश्यकता होती है इसलिए उन्हें रूहानी वायुमण्डल का सहयोग दो। सहज पुरुषार्थी बनो और बनाओ। हर एक आने वाली आत्मा अनुभव करे कि यह स्थान सहज ही उन्नति प्राप्त करने का है।
स्लोगन:- वरदानी बन शुभ भावना और शुभ कामना का वरदान देते रहो।   
 

 

Vices to Virtues: 82: संस्कार परिवर्तन

Vices to Virtues: 82: संस्कार परिवर्तन






Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga (Jwala swaroop) Let us work on one each day.


बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...


पुराने वा अवगुणो का अग्नि ....    # ८२   ........... परपंच रखना, छूतीपन के संस्कार .........बदलकर....  मैं आत्मा , स्वदर्शन, स्वचिंतन शुभ चिंतन करने वाला,  स्वस्थिति की शक्ति से  श्रीमत पर चल स्व उन्नति करनेवाला, स्वराज्य अधिकारी सो राज्य अधिकारी हूँ.............


cremate our old sanskars  # 82....interfering and taking interest in other’s matters.............. replace them by.... With introspection of the self and the power of the original self, I, the soul with a right to self sovereignty and thereby a right to a kingdom, follow shrimat, have good wishes for all and make self progress...


Poorane va avguno ka agni sanskar... # 82   ........... parpanch rakhna, chootipan ke sanskar  ......badalkar.... mai atma sw darshan, swa chintan shubh chintan karne wala,  sw-sthiti ki shakti se shrimat par chal sw-unnati karnewala, sw-rajya adhikaari so raajya adhikaari hun...



Yog Commentary

पुराने वा अवगुणो का अग्नि ....    # ८२   ........... परपंच रखना, छूतीपन के संस्कार .........बदलकर....  मैं आत्मा , स्वदर्शन, स्वचिंतन शुभ चिंतन करने वाला,  स्वस्थिति की शक्ति से  श्रीमत पर चल स्व उन्नति करनेवाला, स्वराज्य अधिकारी सो राज्य अधिकारी हूँ....


 मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... परपंच रखना, छूतीपन के संस्कार.................अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ परपंच रखना, छूतीपन के संस्कार........................ के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं आत्मा , स्वदर्शन, स्वचिंतन शुभ चिंतन करने वाला,  स्वस्थिति की शक्ति से  श्रीमत पर चल स्व उन्नति करनेवाला, स्वराज्य अधिकारी सो राज्य अधिकारी हूँ....  मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ ...



cremate our old sanskars  # 82....interfering and taking interest in other’s matters.............. replace them by.... With introspection of the self and the power of the original self, I, the soul with a right to self sovereignty and thereby a right to a kingdom, follow shrimat, have good wishes for all and make self progress...


I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  interfering and taking interest in other’s matters.............I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of ... interfering and taking interest in other’s matters.............. With introspection of the self and the power of the original self, I, the soul with a right to self sovereignty and thereby a right to a kingdom, follow shrimat, have good wishes for all and make self progress..............I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...



Poorane va avguno ka agni sanskar... # 82   ........... parpanch rakhna, chootipan ke sanskar  ......badalkar.... mai atma sw darshan, swa chintan shubh chintan karne wala,  sw-sthiti ki shakti se shrimat par chal sw-unnati karnewala, sw-rajya adhikaari so raajya adhikaari hun...


mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke  saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... .......... parpanch rakhna, chootipan ke sanskar  ...................avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir .......... parpanch rakhna, chootipan ke sanskar  .....................ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun... mai atma sw darshan, swa chintan shubh chintan karne wala,  sw-sthiti ki shakti se shrimat par chal sw-unnati karnewala, sw-rajya adhikaari so raajya adhikaari hun........... mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...



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