Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

Vices to Virtues: 84: संस्कार परिवर्तन

Vices to Virtues: 84: संस्कार परिवर्तन




Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga (Jwala swaroop) Let us work on one each day.


बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...


पुराने वा अवगुणो का अग्नि .... # ८४  ...... निष्ठूर बनना, बेरहम...............बदलकर....  मैं नम्र दिल आत्मा, मिलनसार बन बातचीत बड़े मिठास से करने वाला, रहमदिल वृत्ति, दृष्टि और कृति से सृष्टि परिवर्तन करने वाला, रमता योगी हूँ............



cremate our old sanskars #84....being harsh, unsympathetic, unmerciful...replace them... I, the compassionate soul, speak with great sweetness by having a friendly nature and blending in with others... I am a ramta yogi, who changes the world with my merciful attitude, vision and actions...



Poorane va avguno ka agni sanskar... # 84  ........... nishthoor ban na, be raham ......badalkar.... mai namr dil atma, milansaar ban baatchit bade mithaas se karnewala, rahamdil vritti, drishti, kriti se srishti parivartan karnewala, ramta yogi hun ......




Yog Commentary:


पुराने वा अवगुणो का अग्नि .... # ८४  ...... निष्ठूर बनना, बेरहम...............बदलकर....  मैं नम्र दिल आत्मा, मिलनसार बन बातचीत बड़े मिठास से करने वाला, रहमदिल वृत्ति, दृष्टि और कृति से सृष्टि परिवर्तन करने वाला, रमता योगी हूँ............


मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... निष्ठूर बनना, बेरहम.................अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ निष्ठूर बनना, बेरहम........................ के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं नम्र दिल आत्मा, मिलनसार बन बातचीत बड़े मिठास से करने वाला, रहमदिल वृत्ति, दृष्टि और कृति से सृष्टि परिवर्तन करने वाला, रमता योगी हूँ................  मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ ...



cremate our old sanskars  # 84....being harsh, unsympathetic, unmerciful.............. replace them... I, the compassionate soul, speak with great sweetness by having a friendly nature and blending in  with others... I am a ramta yogi, who changes the world with my merciful attitude, vision and actions...


I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  being harsh, unsympathetic, unmerciful.....................I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of ... being harsh, unsympathetic, unmerciful................... I, the compassionate soul, speak with great sweetness by having a friendly nature and blending in  with others... I am a ramta yogi, who changes the world with my merciful attitude, vision and actions..............I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...



Poorane va avguno ka agni sanskar... # 84  ........... nishthoor ban na, be raham ......badalkar.... mai namr dil atma, milansaar ban baatchit bade mithaas se karnewala, rahamdil vritti, drishti, kriti se srishti parivartan karnewala, ramta yogi hun ......


mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke  saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... .......... nishthoor ban na, be raham ...................avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir .......... nishthoor ban na, be raham.....................ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun...mai atma mai namr dil atma, milansaar ban baatchit bade mithaas se karnewala, rahamdil vritti, drishti, kriti se srishti parivartan karnewala, ramta yogi hun ............ mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...

07-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


07-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

मीठे बच्चे अभी ड्रामा का चक्र पूरा होता है, तुम्हें क्षीरखण्ड बनकर नई दुनिया में आना है , वहाँ सब क्षीरखण्ड है, यहाँ लूनपानी है

प्रश्न:- तुम त्रिनेत्री बच्चे किस नॉलेज को जान कर त्रिकालदर्शी बन गये हो?

उत्तर- तुम्हें अभी सारे वल्र्ड की हिस्ट्रीजॉग्राफी की नॉलेज मिली है, सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक की हिस्ट्रीजॉग्राफी तुम जानते हो। तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला कि आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। संस्कार आत्मा में हैं। अब बाप कहते हैं | बच्चे, नामरूप से न्यारा बनी। अपने को आत्मा अशरीरी समझो।

गीत:- धीरज धर मनुवा ………..

ओम्  शान्ति

कल्प-कल्प बच्चों को कहा जाता है और बच्चे जानते हैं, दिल होती है कि जल्दी सतयुग हो जाए तो इस दु:ख से छूट जायें। परन्तु ड्रामा बहुत धीरे-धीरे चलने वाला है। बाप धीरज देते हैं बाकी थोड़ेरोज़ हैं। बड़ों-बड़ों द्वारा भी आवाज़ सुनते रहेंगे दुनिया बदलनी है। जो भी बड़े-बड़े हैं पोप जैसे वह भी कहते हैं दुनिया बदलने वाली है। अच्छा फिर पीस कैसे होगी? इस समय सब लूनपानी हैं। अभी हम क्षीरखण्ड हो रहे हैं। उस तरफ दिन-प्रतिदिन लूनपानी होते जाते हैं। आपस में लड़ झगड़कर खत्म होने वाले हैं, तैयारियाँ हो रही हैं। यह ड्रामा का चक्र अब पूरा होता है। पुरानी दुनिया पूरी होती है। नई दुनिया की स्थापना हो रही है। नई दुनिया सो पुरानी, पुरानी सो नई दुनिया फिर बनेगी। इसको दुनिया का चक्र

कहा जाता है जो फिरता रहता है। ऐसे नहीं, लाखों वर्ष बाद पुरानी दुनिया नई होगी। नहीं। तुम बच्चे अच्छी रीति जान चुके हो, भक्ति बिल्कुल ही अलग है। भक्ति का कनेक्शन रावण के साथ है। ज्ञान का कनेक्शन राम के साथ है। यह तुम अभी समझ रहे हो। अभी बाप को बुलाते भी हैं-हे पतितपावन आओ, आकर नई दुनिया स्थापन करो। नई दुनिया में जरूर सुख होता है। अब बच्चे छोटे अथवा बड़े सब जान गये हैं कि अभी घर चलना है। यह नाटक पूरा होता है। हम फिर से सतयुग में जायेंगे फिर 84 जन्मों का चक्र लगाना है। स्व आत्मा को दर्शन होता है सृष्टि चक्र का अर्थात् आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, उसको कहा जाता है त्रिनेत्री। अभी तुम त्रिनेत्री हो और सभी मनुष्यों को यह स्थूलनेत्र हैं। ज्ञान का नेत्र कोई को नहीं है। त्रिनेत्री बनें तब त्रिकालदर्शी बनें क्योंकि आत्मा को ज्ञान मिलता है ना | आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। संस्कार आत्मा में रहते हैं। आत्मा अविनाशी है। अब बाप कहते हैं नामरूप से न्यारा बनी। अपने को अशरीरी समझो। देह नहीं समझो। यह भी जानते हो हम आधाकल्प से परमात्मा को याद करते आये हैं। इसमें जब जास्ती दु:ख होता है तब जास्ती याद करते हैं, अभी कितना दु:ख है। आगे इतना दु:ख नहीं था। जबसे बाहर वाले आये हैं तब से यह राजायें लोग भी आपस में लड़े हैं। जुदा-जुदा हुए हैं। सतयुग में तो एक ही राज्य था।

अभी हम सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक हिस्ट्रीजॉग्राफी समझ रहे हैं। सतयुग-त्रेता में एक ही राज्य था। ऐसे एक ही डिनायस्टी कोई की होती नहीं। क्रिश्चियन में भी देखो फूट है, वहाँ तो सारा विश्व एक के हाथ में रहता है। वह सिर्फ सतयुग-त्रेता में ही होता है। यह बेहद की हिस्ट्रीजॉग्राफी अभी तुम्हारी बुद्धि में है। और कोई सतसंग में हिस्ट्रीजॉग्राफी अक्षर नहीं सुनेंगे। वहाँ तो रामायण, महाभारत आदि ही सुनते हैं। यहाँ वह बातें हैं नहीं। यहाँ है वल्र्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम्हारी बुद्धि में है ऊंच ते ऊंच हमारा बाप है। बाप का शुक्रिया है जिसने सारा ज्ञान सुनाया है। एक आत्माओं का झाड़ है, दूसरा है मनुष्यों का झाड़। मनुष्यों के झाड़ में ऊपर में कौन हैं? ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर ब्रह्मा को ही कहेंगे। यह जानते हैं ब्रह्मा मुख्य है परन्तु ब्रह्मा के पीछे क्या हिस्ट्रीजॉग्राफी है, यह कोई नहीं जानते। अभी तुम्हारी बुद्धि में है ऊंच ते ऊंच बाप रहते भी हैं परमधाम में। फिर सूक्ष्मवतन का भी तुमको मालूम है। मनुष्य ही फ़रिश्ता बनते हैं, इसलिए सूक्ष्मवतन दिखाया है। तुम आत्मायें जाती हो, शरीर तो  सूक्ष्मवतन में नहीं जायेगा। जाते कैसे हैं, उनको कहा जाता है तीसरा नेत्र, दिव्यदृष्टि अथवा ध्यान भी कहते हैं। तुम ध्यान में ब्रह्मा विष्णु शंकर को देखते हो। लोग दिखलाते हैं शंकर के आंख खोलने से विनाश हो जाता है। अब इनसे तो कोई समझ न सके। अभी तुम जानते हो विनाश तो ड्रामा अनुसार होना ही है। आपस में लड़कर विनाश हो जायेंगे। बाकी शंकर क्या करते हैं। यह ड्रामा अनुसार नाम रख दिया

है। तो समझाना पड़ता है। ब्रह्मा विष्णु शंकर तीन हैं। स्थापना के लिए ब्रह्मा को रखा है, पालना के लिए विष्णु को, विनाश के लिए शंकर को रख दिया है। वास्तव में यह बना बनाया ड्रामा है। शंकर का पार्ट कुछ भी है नहीं। ब्रह्मा और विष्णु का पार्ट तो सारे कल्प में है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा | ब्रह्मा के भी 84 जन्म पूरे हुए तो विष्णु के भी पूरे हुए। शंकर तो जन्ममरण से न्यारा है इसलिए शिव और शंकर को फिर मिला दिया है। वास्तव में शिव का तो बहुत पार्ट है, पढाते हैं।

भगवान को कहा जाता है नॉलेजफुल अगर वह प्रेरणा से कार्य करता तो सृष्टि चक्र का ज्ञान कैसे देता इसलिए बाप समझाते हैं बच्चे, प्रेरणा की तो कोई बात ही नहीं। बाप को तो आना पड़ता है। बाप कहते-बच्चे, मेरे में सृष्टि चक्र का ज्ञान है। मेरे को यह पार्ट-मिला हुआ है इसलिए मुझे ही ज्ञान सागर नॉलेजफुल कहते हैं। नॉलेज किसको कहा जाता है, वह तो जब मिले तब पता पड़े। मिला ही नहीं है तो अर्थ का कैसे मालूम पड़े। आगे तुम भी कहते थे ईश्वर-प्रेरणा करते हैं। वह सब कुछ जानते हैं। हम जो पाप करते हैं, ईश्वर देखते हैं। बाबा कहते हैं। यह धन्धा मै नहीं करता हूँ। यह तो जैसा कर्म करते हैंउसकी खुद ही सज़ा भोगते हैं, मै किसको नहीं देता हूँ। न कोई प्रेरणा से सज़ा दूँगा। मैं प्रेरणा से करूं तो जैसे मैंने सज़ा दी। कोई को कहना कि इनको मारो, यह भी दोष है। कहने वाला भी फँस पड़े। शंकर प्रेरणा दे तो वह भी फँस जाए। बाप कहते हैं मैं तो तुम बच्चों को सुख देने वाला हूँ। तुम मेरी महिमा करते हो बाबा आकर दु:ख हरो। मैं थोड़े ही दु:ख देता हूँ।

अब तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए यहाँ डायरेक्ट भासना आती है। बाबा हमको पढ़ाते हैं। इनको मेला कहा जाता है। सेन्टर्स पर तुम जाते हो वहाँ कोई आत्माओं, परमात्मा का मेला नहीं कहेंगे। आत्माओं परमात्मा का मेला यहाँ लगता है। यह भी तुम जानते हो मेला लगा हुआ है। बाप बच्चों के बीच में आये हैं। आत्मायें सब यहाँ है। आत्मा ही याद करती हैं कि बाप आये। यह सबसे अच्छा मेला है। बाप आकर सब आत्माओं को रावण राज्य से छुड़ा देते हैं। ये मेला अच्छा हुआ ना, जिससे मनुष्य पारस बुद्धि बनते हैं। उन मेलों पर तो मनुष्य मैले हो जाते हैं। पैसे बरबाद करते रहते हैं, मिलता कुछ भी नहीं। उनको मायावी, आसुरी मेला कहा जायेगा। यह है ईश्वरीय मेला। रातदिन का फ़र्क है। तुम भी आसुरी मेले में थे। अभी हो ईश्वरीय मेले में। तुम ही जानते हो बाबा आया हुआ है। सब जान जाएं तो पता नहीं कितनी भीड़ हो जाए। इतने मकान आदि रहने के लिए कहाँ से लायेंगे ! पिछाड़ी में गाते हैं ना अहो प्रभू तेरी लीला। कौन-सी लीला ? सृष्टि के बदलने की लीला। यह है सबसे बड़ी लीला। पुरानी दुनिया खत्म होने से पहले नई दुनिया की स्थापना होती है इसलिए हमेशा किसको भी समझाओ तो पहले स्थापना, विनाश फिर पालना कहना है। जब स्थापना पूरी होती है तब फिर विनाश शुरू होता है, फिर पालना होगी। तो तुम बच्चों को यह खुशी रहती है हम स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण हैं। फिर हम चक्रवर्ती राजा बनते हैं। यह कोई को पता नहीं, इन देवताओं का राज्य कहाँ गया। नाम-निशान गुम हो गया है। देवता के बदले अपने को हिन्दू कह देते हैं। हिन्दुस्तान में रहने वाले हिन्दू हैं। लक्ष्मीनारायण को तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे। उन्हों को तो देवता कहा जाता है। तो अब इस मेले में ड्रामा अनुसार तुम आये हो। यह ड्रामा में गूंध है। धीरे-धीरे बृदिॄ होती रहेगी। तुम्हारा जो कुछ पार्ट चल रहा है फिर कल्प बाद चलेगा। यह चक्र फिरता रहता है। फिर रावण राज्य में आसुरी पालना होगी। तुम अभी ईश्वरीय बच्चे हो फिर दैवी बच्चे फिर क्षत्रिय बनेंगे। तुम जो अपवित्र प्रवृत्ति वाले बन गये थे सो फिर पवित्र प्रवृत्ति वाले बनते हो। हैं तो यह भी दैवी गुण वाले मनुष्य ना। बाकी इतनी भुजायें आदि दे दी हैं, विष्णु कौन हैं, यह कोई बतान सके। महालक्ष्मी की भी पूजा करते हैं। जगत अम्बा से कभी धन नहीं मांगते हैं। धन जास्ती मिल

मिल गया तो कहेंगे लक्ष्मी की पूजा की इसलिए उसने भण्डारा भर दिया। यहाँ तो तुम जगत अम्बा से पा रहे हो परमपिता परमात्मा शिव दॄारा, देने वाला वह है। तुम बच्चे बापदादा से भी लक्की हो। देखो, जगदम्बा का कितना मेला लगता है, ब्रह्मा का इतना नहीं। ब्रह्मा को तो एक ही जगह बिठा दिया है, अजमेर में बड़ा मन्दिर है। देवियों के मन्दिर बहुत हैं क्योंकि इस समय तुम्हारी बहुत महिमा है। तुम भारत की सेवा करते हो। पूजा भी तुम्हारी जास्ती होती है। तुम लकी हो। जगत अम्बा के लिए ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि वह सर्वव्यापी है। तुम्हारी महिमा होती रहती है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सर्वव्यापी नहीं कहते, मुझे कह देते कण-कण में है, कितनी ग्लानि करते हैं।

तुम्हारी मै कितनी महिमा बढ़ाता हूँ। भारत माता की जय कहते हैं ना। भारत माता तो तुम हो ना। धरनी नहीं। धरनी आदि जो अब तमोप्रधान है, सतयुग में सतोप्रधान हो जाती है इसलिए कहते हैं देवताओं के पैर पतित दुनिया में नहीं आते। जब सतोप्रधान धरनी होती है तब आते हैं। अभी तुमको सतोप्रधान बनना है। श्रीमत पर चलते बाप को याद करते रहेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। यह ख्याल रखना है। याद करेंगे तो विकर्म विनाश होगे। श्रीमत मिलती रहती है। सतयुग में तो तुम्हारी आत्मा पवित्र कंचन हो जाती है तो शरीर भी कंचन मिलता है। सोने में खाद पड़ती है तो फिर जेवर भी ऐसा बनता है। आत्मा झूठी तो शरीर भी झूठा। खाद पड़ने से सोने का मूल्य भी कम हो जाता है। तुम्हारा मूल्य अब कुछ भी नहीं है। पहले तुम विश्व के मालिक 24 कैरेट थे। अभी 9 कैरेट  कहेंगे। यह बाप बच्चों से रूहरिहान करते हैं। बच्चों को बैठ बहलाते हैं, जो तुम सुनते-सुनते चेज हो जाते हो। मनुष्य से देवता बन जाते हो। वहाँ हीरे-जवाहरातों के महल होगे, स्वर्ग तो फिर क्या वहाँ के शूबीरस आदि भी तुम पीकर आते हो। वहाँ के फल ही इतने बड़े-बड़े होते हैं। यहाँ तो मिल न सकें। सूक्ष्मवतन में तो कुछ है नहीं। अभी तुम प्रैक्टिकल में जाते हो। यह है आत्मा और परमात्मा का मेला, इनसे तुम उज्जवल बनते हो।

तुम बच्चे जब यहाँ आते हो तो फ्री हो, घर-बार धन्धे आदि का कोई फुरना नहीं है। तो यहाँ तुमको याद की यात्रा में रहने का चांस अच्छा है। वहाँ तो घर-घाट आदि याद आता रहेगा। यहाँ तो कुछ है नहीं। रात को दो बजे उठकर यहाँ बैठ जाओ। सेन्टर्स पर तो रात को तुम जा नहीं सकते। यहाँ तो सहज है। शिवबाबा की याद में आकर बैठो, और कोई याद न आये। यहाँ तुमको मदद भी मिलेगी। सवेरे (जल्दी) सो जाओ फिर सवेरे उठो। 3 से 5 बजे तक आकर बैठो | बाबा भी आ जायेंगे, बच्चे खुश होगे। बाबा है योग सिखलाने वाला। यह भी सीखने वाला है तो दोनों बाप और दादा आ जायेंगे फिर

यहाँ और वहाँ योग में बैठने के फ़र्क का भी पता पड़ेगा। यहाँ कुछ भी याद नहीं पड़ेगा, इसमें फायदा बहुत है। बाबा राय देते हैं यह बहुत अच्छा हो सकता है। अब देखें बच्चे उठ सकते हैं? कइयों को सवेरे उठने का अभ्यास है। तुम्हारा सन्यास है 5 विकारों का और वैराग्य है सारी पुरानी दुनिया से। अच्छा

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मातपिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग |  रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सारः

1) अभी सृष्टि बदलने की लीला चल रही है इसलिए स्वयं को बदलना है। क्षीरखण्ड होकर रहना है।

2) सवेरे उठकर एक बाप की याद में बैठना है, उस समय और कोई भी याद न आये। पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बन 5 विकारों का सन्यास करना है।
 
 

वरदान- मन्सा संकल्प वा वृत्ति द्वारा श्रेष्ठ वायबेृशन्स की खुशबू फैलाने वाले शिव शक्ति कम्बाइन्ड भव

जैसे आजकल स्थूल खुशबू के साधनों से गुलाब, चंदन व भिन्न-भिन्न प्रकार की खुशबू फैलाते हैं। ऐसे आप शिव शक्ति कम्बाइन्ड बन मन्सा संकल्प व वृत्ति द्वरा सुखशान्ति, प्रेम, आनंद की खुशबू फैलाओ। रोज़ अमृतवेले भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ वायब्रेशन के फाउन्टेन के माफिक आत्माओं के ऊपर गुलाबवाशी डालो। सिर्फ संकल्प का आटोमेटिक स्विच आन करो तो विश्व में जो अशुद्ध वृत्तियों की बदबू है वह समाप्त हो जायेगी।

स्लोगन- सुखदाता द्वारा सुख का भण्डार प्राप्त होना यही उनके प्यार की निशानी है।

 

 

 
 

Om Shanti ! Hapy Satguruvar! Sakar Murli May 07, 2015




Om Shanti ! Hapy Satguruvar! Sakar Murli May 07, 2015

 

Essence: Sweet children, this drama cycle is now ending. Therefore, in order to go to the new world, you have to become like milk and sugar. Everyone there is like milk and sugar (kshirkhand), whereas everyone here is like salt water (loonpaani).

Question: By knowing which knowledge have you children, who have the third eyes of knowledge, become knowers of the three aspects of time? (trinetri trikaaldarshi)

Answer: You have now received the knowledge of the history and geography of the whole world. You know the history and geography from the beginning of the golden age to the end of the iron age. You have each received the third eye of knowledge. A soul leaves one body and takes another. Sanskars are in each soul. The Father says: Children, now become detached (nyara) from name and form. Consider yourself to be a bodiless (ashareeri) soul.

Song: Have patience o man! Your days of happiness are about to come.

Om shanti.

This is said to the children every cycle; you children also know this. Your hearts' desire is for the golden age to come soon, so that you can be liberated from this world of sorrow. However, the drama moves very slowly. The Father tells you to have patience: Only a few more days remain. The sound is also coming from the eminent people that this world has to change. All the leaders, for example, the Pope etc., say that the world is going to change. Achcha, how would there then be peace? At present, everyone is like salt water. Here, we are becoming like milk and sugar, whereas those on the other side are becoming more and more like salt water day by day. They will all fight among themselves and finish one another off. All the preparations are being made for that. The cycle of the drama is now ending. The old world is about to end and the new world is being established. The new world becomes old and then the old world is made new again. This is called the cycle of the world and it continues to turn. It is not that the old world becomes new after hundreds of thousands of years; no. You children know very clearly that devotion is completely separate from knowledge. Devotion is connected with Ravan, and knowledge is connected with Rama. You now understand this. You call out to the Father and pray: 0 Purifier, come! Come and establish a new world. There is definitely happiness in the new world. Both young and old children know that we now have to return home. This drama is now ending. Once again, we are to go to the golden age and then go around the cycle of 84 births. We souls have recognised ourselves. We souls have the third eye of knowledge, which means we know the world cycle. This is called being Trinetri. You now have the third eye, whereas all other human beings simply have their physical eyes. None of them has the eye of knowledge. Only when they each have the third eye through which the soul receives knowledge, can they become knowers of the three aspects of time. It is the soul that leaves one body and takes the next. The sanskars are in the soul. Souls are imperishable. The Father now says: Become detached from name and form. Consider yourself to be a bodiless soul. Do not consider yourself to be a body. You also know that you have been remembering the Supreme Soul for half a cycle, and that you remember Him more when you have a lot of sorrow. There is so much sorrow now. Previously, there wasn't so much sorrow. Those kings started to fight among themselves when the outsiders came; they became disunited. In the golden age there was only one kingdom. We now understand the history and geography from the beginning of the golden age to the end of the iron age. There was only one kingdom in the golden and silver ages. Otherwise, there isn't usually just one dynasty. Just look at the Christians. They are all disunited. There, in the golden age, the whole world is in the hands of just one. That only exists in the golden and silver ages. This unlimited history and geography is now in your intellects. You won't hear the words "history and geography" in other satsangs. There, you only hear the Ramayana and the Mahabharata. Those things do not exist here. Here, you have the history and geography of the world. It is in your intellects that the Highest on High is your Father. It is thanks to the Father who has spoken all of this knowledge. One tree is that of souls and the other tree is that of human beings. Who is shown standing at the top of the tree of human beings? Only Brahma is called the great-great-grandfather. You know that Brahma is the main one, but no one knows the history and geography of Brahma. It is now in your intellects that the highest-on-high Father lives in the supreme abode. You also know about the subtle region. You human beings are to change into angels. This is why the subtle region is shown. You souls go there; your bodies won't go to the subtle region. How do you go there? That is called the third eye. It is also called divine vision or trance. When you go into trance, you see Brahma, Vishnu and Shankar. People have shown destruction taking place when the eye of Shankar opened. No one can understand anything from that. You know that, according to the drama, destruction has to take place. People will fight among themselves and destruction will take place. However, what does Shankar do? His name is mentioned simply according to the drama. Therefore, you have to explain that there are the three: Brahma, Vishnu and Shankar. Brahma is shown for establishment, Vishnu for sustenance and Shankar for destruction. In fact, this drama is predestined. Shankar has no part to play. The part that Brahma and Vishnu play exist for the entire cycle. Brahma becomes Vishnu and Vishnu becomes Brahma. The 84 births of Brahma have been completed and so the 84 births of Vishnu have also been completed. Shankar is beyond birth and death. This is why they have combined Shiva with Shankar. In fact, Shiva has the greatest part. He teaches you. God is called knowledge-full. If He had to carry out His task through inspiration, how would He give us the knowledge of the world cycle? This is why the Father explains: Children, there is no question of inspiration. The Father has to come here. The Father says: Children, I have the knowledge of the world cycle. I have received this part to play. This is why I am called the Ocean of Knowledge, the knowledge full One. It is only when you receive knowledge that you can know what knowledge is. If you haven't received it, how could you know its meaning? Previously, you also used to say that God gives inspiration, that He knows everything and that God sees whatever sins we commit. Baba says: I do not do that business. Whatever actions you perform, you yourself have to experience the punishment for them; I do not give it to anyone. Neither do I see anyone, nor do I give punishment through inspiration. If I did anything through inspiration, it would be as though I gave punishment. If I were to tell someone to kill another person, I would be blamed. The one who tells the other person would be trapped. If Shankar were to give inspiration, he too would be trapped. The Father says: I give happiness to you children. You praise Me. You sing: Baba, come and remove our sorrow. I do not cause you any sorrow. You children are now sitting personally in front of the Father. Therefore, you should have so much happiness. You receive the direct feeling here that Baba is personally teaching us. This is called a meeting (mela). You go to the centres, but, you wouldn't call it a meeting of souls with the Supreme Soul there. The meeting of souls with the Supreme Soul takes place here. Only you know that the meeting is taking place now; the Father has come amidst His children. All souls are here. It is the soul that remembers the Father and asks Him to come. This is the best meeting. The Father comes and liberates all souls from the kingdom of Ravan. This is a good meeting then, is it not? It is a meeting through which human beings become those with divine intellects. Human beings become dirty at those melas (fairs). They do not receive anything but simply continue to waste their money. Those are called Maya's devilish melas. This is God's mela. There is the difference of day and night. You too used to belong to the devilish melas, but you now belong to God's mela. You too know that Baba has come. If everyone were to know this, there's no telling how big the crowd here would be. Where would Baba obtain so many buildings for people to stay in? It is remembered that people sang at the end: 0 God, Your play is wonderful! Which play? That of transforming the world. This is the greatest wonderful play. Before the old world is destroyed, the new world has to be established. Therefore, when you explain to anyone, always first of all speak of establishment, then destruction and then sustenance. When establishment has been completed, destruction will begin, and then sustenance will take place. So, you children have the happiness that you are the Brahmins who are spinners of the discus of self-realisation. You then become rulers of the globe. No one knows what happened to the kingdom of deities. All name and trace of it are lost. Instead of calling themselves deities, they call themselves Hindus. Those who live in Hindustan are called Hindus. Lakshmi and Narayan would never be called that. They are called deities. So, you have come to this mela according to the drama. This is fixed in the drama. Expansion will continue to take place gradually. Whatever parts you are playing now, you will play those parts in the next cycle. This cycle continues to turn. You have had devilish sustenance in the kingdom of Ravan. You are now God's children. You will become the children of deities, then the children of warriors. You became part of the impure family path, but you are now becoming part of the pure family path. They too are human beings but they have divine virtues. They have been portrayed with many arms. No one can tell you who Vishnu is. They worship Maha-Lakshmi. People never ask Jagadamba for wealth. If they receive a lot of money, they say that it is because they worshipped Lakshmi, that that is why she filled their treasure-store. Here, you are attaining everything from the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, through Jagadamba. He is the Bestower. You children are even luckier than BapDada. Just look how many fairs are held for Jagadamba. There aren't as many held for Brahma. Brahma has been made to sit in only one place. There is a huge temple to Brahma near Ajmer. There are many temples to the goddesses because of all the praise of the things you do now. Because you serve Bharat, you are worshipped more. You are lucky. Jagadamba is never called omnipresent. You are praised. Brahma, Vishnu and Shankar are never called omnipresent, but I am said to be in every particle! You defame Me so much! I increase your praise so much! It is said: Victory to Mother Bharat. You, not the earth, are the mothers of Bharat. In the golden age, the earth that is now tamopradhan will then be satopradhan. This is why it is said that deities never place their feet on this impure world. They come when the land becomes satopradhan. You now have to become satopradhan. If you continue to follow shrimat and remember the Father, you claim a high status. You must have this concern. When you remember Baba your sins are absolved. You will continue to receive shrimat. In the golden age, you souls will have become pure. Therefore, you will receive pure bodies. When gold has alloy mixed into it, the jewellery made from it is also like that. Similarly, when souls are false, their bodies are also false. The value of gold is reduced when it has alloy mixed into it. You now have no value. Previously, you were 24 carat gold, masters of the world. Now you are said to be nine carat. The Father has this heart-to-heart conversation with you children. He sits here and entertains you children. Therefore, just by listening to Him, you change from ordinary humans into deities. There will be palaces of diamonds and jewels. What else could heaven be? You even drink mango juice there (in trance) and then come back here. The fruit there is so large. You wouldn't find such fruit here. There is nothing in the subtle region. You are soon to go there in a practical way. This is the meeting of souls with the Supreme Soul. Through this meeting you become clean and bright. When you children come here, you are free because you have no worries of your home and business. Therefore, while you are here, you have a very good chance to stay on the pilgrimage of remembrance. There, you remember your home and everything. Here, there is nothing to remember. You can wake up at two in the morning and sit here. You cannot go to the centres at night. Here, it is very easy. You can come and sit in remembrance of Shiv Baba. Do not remember anyone else. You also receive help here. Go to sleep early and wake up early. Come and sit here from three to five. Baba will come, and you children will also be very happy. Baba is the One who teaches yoga. This one is also studying. Therefore, both Bap and Dada will come here. Then you will notice the difference between sitting here in remembrance and sitting there. You don't have to remember anything else here. There is a lot of benefit in this. Baba advises you that this is very good. We shall now see if you children can wake up. Some of you have the practice of waking up early in the morning. You have renounced the five vices and have disinterest in the whole of the old world. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

 

Essence for dharna:

1. The wonderful act of transforming the world is now taking place. Therefore, transform yourself. Live together like milk and sugar.

2. Wake up early in the morning and sit in remembrance of the one Father. Do not remember anyone else at that time. Have unlimited disinterest in the old world and renounce the five vices.

Blessing: May you Shaktis be combined with Shiva and spread the fragrance of elevated vibrations through the thoughts and attitude of your mind.

Just as the fragrance of roses, sandalwood and other types of fragrances are spread with physical means, similarly, you Shiva Shaktis have to remain combined and with the thoughts and attitude of your minds spread the fragrance of happiness, peace, love and bliss. Every day at amrit vela, sprinkle the rose water of different elevated vibrations on souls like a fountain. Simply put on the automatic switch of your thoughts and any bad odour of impure attitudes in the world will finish.

Slogan: To attain the treasure-store of happiness from the Bestower of Happiness (Sukhdaata) is a sign of His love.

* * *OM SHANTI***

Daily Positive Thoughts: May 07, 2015: Life's Curveballs

Daily Positive Thoughts: May 07, 2015: Life's Curveballs



Clayton Kershaw’s devastating curveballs


Life's Curveballs

When life throws you a curve ball, are you ready for the unexpected?

Take a deep breath and adapt to the new reality.  Be brave enough to think on your feet and rethink your strategy.

Catch the ball, drop it; or find a way to get over, under or around it!  Keep your momentum to keep pace with life's curveballs.



Victory

We normally attribute success to the resources available, or the help
of the people around. But in spite of our best efforts, we sometimes
find ourselves failing. We then tend to blame it on luck or on some
negative situation. Our victory is not so much based on what we have,
but it is more based on what we do with what we have. When we believe
that we can win, we will be able to use all the available resources to
ensure our victory. And so we will also be able to get the best help
from the people around us too.



Fulfilling Desires By Changing Your Belief  System

One most important characteristic that differentiates the Supreme Soul from human souls is that the Supreme Soul is the only entity that exists in this World Drama that is completely desire-less and remains that way eternally. If we were to make a list of desires that human beings have, we would name a lot many and various different types of desires. Whatever karma or action any soul performs at different points in the World Drama, whether positive or even negative, pure or even impure, they are all performed to fulfill these different types of desires. But when seen from a spiritual perspective, whatever the external form of the desire may be, the internal desire is always very simple - to go back to its eternal (or inert) state of peace or original state of peace, love, joy and power. The eternal or inert state of each soul is the state in which it exists before it begins its journey of birth and rebirth, when it resides in the soul world and the original state of each soul is the state in which it exists when it has just begun its journey of birth and rebirth i.e. at the beginning of the birth-rebirth cycle. Even negative karmas based on the personality traits of anger, greed, ego, lust, etc. may externally seem to be filled with violence or impurity, but internally, each time any soul performs such karmas, all it desires is a return to its eternal and original state (we shall explain this in tomorrow's message). But it does not realize how these karmas take the soul away and not close to these states.

This is where the role of the Supreme Soul comes in. The Supreme Soul is completely desire-less and possesses the capability, knowledge and power to fulfill these desires of the soul. Being the Supreme Teacher, He guides and teaches us what are the right karmas or actions that can help us fulfill our desires and take us closer to our eternal and original state and which actions, take us away from it. Also He is the only one who can teach us how to connect with Him so that these desires are fulfilled, because he is the Ocean of all the qualities that exist inside us in our eternal and original state and connecting with Him fills us with these qualities. The connection and the right actions, both, are vital for our progress.

(To be continued tomorrow...)


Soul Sustenance

Going Beyond False Identifications

The more I identify with the physical factors of my life, the more I become a prisoner to my destiny or the various up and downs of my life. E.g. if my self-respect is attached to my beautiful new car, how will I feel about myself when the car becomes old and its beauty and shine reduce? Or if I my car is stolen or gets immensely damaged in a road accident? Then, I shall find myself in an identity crisis. The same will be true if my business or job is everything to me. If one day, I am in a good financial state and I enjoy a very respectable and dominant position, and the next day I find myself in a dispute in my profession and I suddenly lose all of that, and nobody wants to know me, I will feel as if I have lost my soul and have almost died. The problem is sometimes so great that people do, literally, lose their desire to live. It happens, too, in relationships, when your partner leaves you either due to a separation, a divorce or even death - a partner in whom you have invested all your love and emotions. Or if my identity is tied to my back balance or property, and suddenly I am broke.

All of these are actually false identifications, and the crazy part of living this way is that I can never be satisfied, even if I succeed in maintaining my false identity. These kind of false identifications do not keep me placed stably on my seat of self-respect and either bring about an inferiority complex or a superiority complex - both of which are false, so both bring insecurity. Even while I am externally successful, having my identity based on that success means I am a slave to them. I've handed over my self-esteem to them. I become addicted to it.

Message for the day


The method to stay in constant enthusiasm and to keep others enthusiastic is to see specialties in others. 

Projection: Many times while I am sincerely working towards my task, I find myself losing my enthusiasm. I also might find people not very happy with me or my work. I do make an attempt to understand their feelings but fail to do so Such negative responses further reduce my enthusiasm.

Solution: I need to develop the art of looking at specialties in people. The more I am able to see their positive qualities, the more I am able to relate to them with that specialty. This encourages the other person further to use that specialty. This will naturally keep me constantly enthusiastic.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


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