Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

08-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


08-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

मीठे बच्चे - तुम फिर से अपने ठिकाने पर पहुँच गये हो, तुमने बाप द्वारा रचता
और रचना को जान लिया है तो खुशी में रोमांच खड़े हो जाने चाहिए |”

प्रश्न:- इस समय बाप तुम बच्चों का श्रृंगार क्यों कर रहे हैं?

उत्तर:- क्योंकि अभी हमें सज-धज कर विष्णुपुरी (ससुर-घर) में जाना है। हम इस ज्ञान से
सजकर विश्व के महाराजा-महारानी बनते हैं। अभी संगमयुग पर हैं, बाबा टीचर बनकर
पढ़ा रहे हैं - पियरघर से ससुरघर ले जाने के लिए।

गीतः आखिर वह दिन आया आज ..........

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे स्वीट चिल्ड्रेन, मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना। तुम बच्चे
ही जानते हो कि आधाकल्प जिस माशुक को याद किया है, आखरीन वह मिले हैं। दुनिया
यह नहीं जानती कि हम कोई आधाकल्प भक्ति करते हैं, माशूक बाप को पुकारते हैं।
हम आशिक हैं, वह माशूक है-यह भी कोई नहीं जानते। बाप कहते हैं रावण ने तुमको
बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि बना दिया है। खास भारतवासियों को। तुम देवी-देवता थे
यह भी भूल गये हो, तो तुच्छ बुद्धि हुए। अपने धर्म को भूल जाना, यह है तुच्छ
बुद्धि का काम। अभी यह सिर्फ तुम ही जानते हो। हम भारतवासी स्वर्गवासी थे। यह
भारत स्वर्ग था। थोड़ा ही समय हुआ है। 1250 वर्ष तो सतयुग था और 1250 वर्ष
रामराज्य चला। उस समय अथाह सुख था। सुख को याद कर रोमांच खड़े हो जाने चाहिए।
सतयुग, त्रेता...... यह पास हो गये। सतयुग की आयु कितनी थी, यह भी कोई नहीं
जानते। लाखों वर्ष कैसे हो सकती है। अभी बाप आकर समझाते हैं-तुमको माया ने
कितना तुच्छ बुद्धि बना दिया है। दुनिया में कोई अपने को तुच्छ बुद्धि समझते
नहीं हैं। तुम जानते हो हम कल तुच्छ बुद्धि थे। अभी बाबा ने इतनी बुद्धि दी है
जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को हम जान गये हैं। कल नहीं जानते थे, आज
जाना है। जितना-जितना जानते जाते हैं, उतना खुशी में रोमांच खड़े होते जायेंगे।
हम फिर से अपने ठिकाने पर पहुँचते हैं। बरोबर बाप ने हमको स्वर्ग की राजाई दी
थी फिर हमने गँवा दी। अभी पतित बन पड़े हैं। सतयुग को पतित नहीं कहेंगे। वह है
ही पावन दुनिया। मनुष्य कहते हैं हे पतित-पावन आओ। रावण राज्य में पावन ऊंच
कोई हो ही नहीं सकता। ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे बने तो ऊंच भी बनें। तुम बच्चों
ने बाप को जाना है, सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। अपनी दिल से सवेरे उठकर
पूछो, अमृतवेले का समय अच्छा है। सवेरे अमृतवेले बैठकर यह ख्याल करो। बाबा
हमारा बाप भी है, टीचर भी है। ओ गॉडफादर, हे परमपिता परमात्मा तो कहते ही हैं।
अभी तुम बच्चे जानते हो जिसको याद करते हैं - हे भगवान, अभी वह हमको मिला है।
हम फिर से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। वह है लौकिक बाप, यह है बेहद का बाप।
तुम्हारा लौकिक बाप भी उस बेहद के बाप को याद करते हैं। तो बापों का बाप,
पतियों का पति, वह हो गया। यह भी भारतवासी ही कहते हैं क्योंकि अभी मैं बापों
का बाप, पतियों का पति बनता हूँ। अभी मैं तुम्हारा बाप भी हूँ। तुम बच्चे बने
हो। बाबा- बाबा कहते रहते हो। अभी फिर तुमको विष्णुपुरी ससुरघर ले जाता हूँ।
यह है तुम्हारे बाप का घर, फिर ससुरघर जायेंगे। बच्चे जानते हैं हमको बहुत
अच्छा श्रृंगारा जाता है। अभी तुम पियरघर में हो ना। तुमको पढ़ाया भी जाता है।
तुम इस ज्ञान से सजकर विश्व के महाराजा-महारानी बनते हो। तुम यहाँ आये ही हो
विश्व का मालिक बनने। तुम भारतवासी ही विश्व के मालिक थे जबकि सतयुग था। अभी
तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि हम विश्व के मालिक हैं। अभी तुम जानते हो भारत के
मालिक कलियुगी हैं, हम तो संगमयुगी हैं। फिर हम सतयुग में सारे विश्व के मालिक
बनेंगे। यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में आनी चाहिए। जानते हो विश्व की
बादशाही देने वाला आया है। अभी संगमयुग पर वह आये हैं। ज्ञान दाता एक ही बाप
है। बाप के सिवाए किसी भी मनुष्य को ज्ञान दाता नहीं कहेंगे क्योंकि बाप के
पास ऐसा ज्ञान है जिससे सारे विश्व की सद्गति होती है। तत्वों सहित सबकी
सद्गति हो जाती है। मनुष्यों के पास सद्गति का ज्ञान है नहीं।
इस समय सारी दुनिया तत्वों सहित तमोप्रधान है। इसमें रहने वाले भी तमोप्रधान
हैं। नई दुनिया है ही सतयुग। उसमें रहने वाले भी देवता थे फिर रावण ने जीत
लिया। अब फिर बाप आया हुआ है। तुम बच्चे कहते हो हम जाते हैं बापदादा के पास।
बाप हमको दादा द्वारा स्वर्ग की बादशाही का वर्सा देते हैं। बाप तो स्वर्ग की
बादशाही देंगे और क्या देंगे। तुम बच्चों की बुद्धि में यह तो आना चाहिए ना।
परन्तु माया भुला देती है। स्थाई खुशी रहने नहीं देती है। जो अच्छी रीति
पढ़ेंगे-पढ़ायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। गाया भी जाता है सेकण्ड में जीवन-मुक्ति।
पहचानना एक ही बार चाहिए ना। सभी आत्माओं का बाप एक है, वह सभी आत्माओं का बाप
आया हुआ है। परन्तु सब तो मिल भी नहीं सकेंगे। इम्पासिबुल है। बाप तो पढ़ाने
आते हैं। तुम भी सब टीचर्स हो। कहा जाता है ना गीता पाठशाला। यह अक्षर भी कॉमन
है। कहते हैं कृष्ण ने गीता सुनाई। अब यह कृष्ण की तो पाठशाला है नहीं। कृष्ण
की आत्मा पढ़ रही है। सतयुग में कोई गीता पाठशाला में पढ़ते पढ़ाते हैं क्या?
कृष्ण तो हुआ ही है सतयुग में फिर 84 जन्म लेते हैं। एक भी शरीर दूसरे से मिल
न सके। ड्रामा प्लैन अनुसार हर एक आत्मा में अपना पार्ट 84 जन्मों का भरा हुआ
है। एक सेकण्ड न मिले दूसरे से। 5 हजार वर्ष तुम पार्ट बजाते हो। एक सेकण्ड का
पार्ट दूसरे सेकण्ड से मिल न सके। कितनी समझ की बात है। ड्रामा है ना। पार्ट
रिपीट होता जाता है। बाकी वह शास्त्रों सभी हैं भक्ति मार्ग के। आधाकल्प भक्ति
चलती है फिर सर्व को सद्गति मैं ही आकर देता हूँ। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष
पहले राज्य करते थे। सद्गति में थे। दु:ख का नाम नहीं था। अभी तो दु:ख ही दु:ख
है। इसको दु:खधाम कहा जाता है। शान्तिधाम, सुखधाम और दु:खधाम। भारतवासियों को
ही आकर सुखधाम का रास्ता बताता हूँ। कल्प- कल्प फिर हमको आना पड़ता है। अनेक
बार आया हूँ, आता रहूँगा। इसकी इन्ड नहीं हो सकती। तुम चक्र लगाकर दु:खधाम में
आते हो फिर मुझे आना पड़ता है। अभी तुमको स्मृति आई है 84 जन्मों के चक्र की।
अब बाप को रचता कहा जाता है। ऐसे नहीं कि ड्रामा का कोई रचता है। रचता अर्थात्
इस समय सतयुग को आकर रचते हैं। सतयुग में जिन्हों का राज्य था फिर गँवाया,
उन्हों को ही बैठ पढ़ाता हूँ। बच्चों को एडाप्ट करते हैं। तुम मेरे बच्चे हो
ना। तुमको कोई साधू-सन्त आदि नहीं पढ़ाते हैं। पढ़ाने वाला एक बाप है, जिसको सब
याद करते हैं। याद जिसको करते हैं जरूर कभी आयेंगे भी ना। यह भी किसको समझ
नहीं है कि याद क्यों करते हैं! तो जरूर पतित-पावन बाप आते हैं। क्राइस्ट को
ऐसे नहीं कहेंगे कि फिर से आओ। वह तो समझते हैं, लीन हो गया। फिर आने की बात
ही नहीं। याद फिर भी पतित-पावन को करते हैं। हम आत्माओं को फिर से वर्सा दो।
अभी तुम बच्चों को स्मृति आई - बाबा आया हुआ है। नई दुनिया की स्थापना करेंगे।
वह फिर भी अपने समय पर रजो, तमो में ही आयेंगे। अभी तुम बच्चे समझते हो हम
मास्टर नॉलेजफुल बनते हैं।
एक बाप ही है जो तुम बच्चों को पढ़ाकर विश्व का मालिक बना देते हैं। खुद नहीं
बनते हैं इसलिए उनको कहा जाता है निष्काम सेवाधारी। मनुष्य कहते हैं हम फल की
आश नहीं रखते हैं, निष्काम सेवा करते हैं। परन्तु ऐसे होता नहीं है। जैसे
संस्कार ले जाते हैं, उस अनुसार जन्म मिलता है। कर्म का फल अवश्य मिलता है।
सन्यासी भी पुनर्जन्म गृहस्थियों के पास लेकर फिर संस्कार अनुसार सन्यास धर्म
में चले जाते हैं। जैसे बाबा लड़ाई वालों का भी मिसाल देते हैं। कहते हैं गीता
में लिखा हुआ है जो युद्ध के मैदान में मरेगा वह स्वर्ग में जायेगा, परन्तु
स्वर्ग का भी समय चाहिए ना। स्वर्ग तो लाखों वर्ष कह देते हैं। अब तुम जानते
हो बाप क्या समझाते हैं, गीता में क्या लिख दिया है। कहते, भगवानुवाच मैं
सर्वव्यापी हूँ। बाप कहते हैं मैं अपने को ऐसी गाली कैसे दूँगा कि मैं
सर्वव्यापी हूँ, कुत्ते-बिल्ली सबमें हूँ। मुझे तो ज्ञान सागर कहते हो। मैं
अपने को फिर यह कैसे कहूँगा? कितना झूठ है। ज्ञान तो कोई में है नहीं।
सन्यासियों आदि का मान कितना है, क्योंकि पवित्र हैं। सतयुग में गुरू तो कोई
होता नहीं। यहाँ तो स्त्री को कहते तुम्हारा पति गुरू ईश्वर है, दूसरा कोई
गुरू नहीं करना। वह तो तब समझाया जाता था जब भक्ति भी सतोप्रधान थी। सतयुग में
तो गुरू था नहीं। भक्ति की शुरूआत में भी गुरू होते नहीं। पति ही सब कुछ है।
गुरू नहीं करते। इन सब बातों को अब तुम समझते हो।
कई मनुष्य तो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम सुनकर ही डर जाते हैं क्योंकि
समझते हैं यह भाई-बहन बनाते हैं। अरे, प्रजापिता ब्रह्मा का बच्चा बनना तो
अच्छा है ना। बी.के. ही स्वर्ग का वर्सा लेते हैं। अभी तुम ले रहे हो। तुम
बी.के. बने हो। दोनों कहते हैं हम भाई-बहन हैं। शरीर का भान, विकार की बांस
निकल जाती है। हम एक बाप के बच्चे भाई-बहन विकार में कैसे जा सकते हैं। यह तो
महान पाप है। यह पवित्र रहने की युक्ति ड्रामा में है। सन्यासियों का है
निवृत्ति मार्ग। तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले। अब तुम्हें इस छी-छी दुनिया की
रस्म-रिवाज को छोड़कर इस दुनिया को ही भूल जाना है। तुम स्वर्ग के मालिक थे फिर
रावण ने कितना छी-छी बनाया है। यह भी बाबा ने समझाया है, कोई कहे हम कैसे
मानें कि हमने 84 जन्म लिये हैं। 84 जन्म लिये हैं, यह तो हम अच्छा कहते हैं
ना। 84 जन्म नहीं लिया तो ठहरेगा ही नहीं। समझा जाता है यह देवी-देवता धर्म का
नहीं है, स्वर्ग में आ नहीं सकेगा। प्रजा में भी कम पद लेंगे। प्रजा में भी
अच्छा पद, कम पद है ना। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। भगवान आकर
किंगडम स्थापन करते हैं। श्रीकृष्ण तो बैकुण्ठ का मालिक था। स्थापना बाप करते
हैं। बाप ने गीता सुनाई जिससे यह पद पाया फिर तो पढ़ने-पढ़ाने की दरकार ही नहीं।
तुम पढ़कर पद पा लेते हो। फिर थोड़ेही गीता का ज्ञान पढ़ेंगे। ज्ञान से सद्गति
मिल गई, जितना पुरूषार्थ उतना ऊंच पद पायेंगे। जितना पुरूषार्थ कल्प पहले किया
था वह करते रहते हैं। साक्षी हो देखना है। टीचर को भी देखना है, इसने हमको
पढ़ाया है, हमको इनसे भी होशियार होना है। मार्जिन बहुत है। कोशिश करनी है ऊंच
ते ऊंच बनने की। मूल बात है तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह समझने की बात
है ना। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है, बाप को याद करना है तो पावन बन
जायेंगे। यहाँ सब पतित हैं इसमें दु:ख ही दु:ख है। सुख का राज्य कब था, यह
किसको पता नहीं है। दु:ख में कहते हैं हे भगवान, हे राम, यह दु:ख क्यों दिया?
अब भगवान तो किसको दु:ख देते नहीं। रावण दु:ख देते हैं। अभी तुम जानते हो
हमारे राज्य में और कोई धर्म नहीं होगा। फिर बाद में और धर्म आयेंगे। तुम भल
कहाँ भी जाओ। पढ़ाई साथ है, मनमनाभव का लक्ष्य तो मिला है, बाप को याद करो। बाप
से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह भी याद नहीं कर सकते। यह याद पक्की
चाहिए। तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। अच्छा!


मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) सवेरे-सवेरे अमृतवेले उठ ख्याल करना है - बाबा हमारा बाप भी है, टीचर भी
है, अभी बाबा आया है हमारा ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करने। वह बापों का बाप,
पतियों का पति है, ऐसे ख्याल करते अपार खुशी का अनुभव करना है।

2) हर एक के पुरूषार्थ को साक्षी होकर देखना है, ऊंच पद की मार्जिन है इसलिए
तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।

वरदान:- विघ्न प्रूफ चमकीली फरिश्ता ड्रेस धारण करने वाले सदा विघ्न-विनाशक भव!

स्व के प्रति और सर्व के प्रति सदा विघ्न विनाशक बनने के लिए क्वेश्चन मार्क
को विदाई देना और फुल स्टॉप द्वारा सर्व शक्तियों का फुल स्टॉक करना। सदा
विघ्न प्रूफ चमकीली फरिश्ता ड्रेस पहनकर रखना, मिट्टी की ड्रेस नहीं पहनना।
साथ-साथ सर्व गुणों के गहनों से सजे रहना। सदा अष्ट शक्ति शस्त्रधारी सम्पन्न
मूर्ति बनकर रहना और कमल पुष्प के आसन पर अपने श्रेष्ठ जीवन के पांव रखना।

स्लोगन:- अभ्यास पर पूरा-पूरा अटेन्शन दो तो फर्स्ट डिवीजन में नम्बर आ जायेगा।

Om Shanti ! Sakar Murli May 08, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli May 08, 2015


Essence: Sweet children, you have once again reached your destination. You have now come to know the Creator and creation from the Father. You should therefore have goose pimples of happiness.

Question: Why does the Father adorn you children at this time?

Answer: Because, you now have to become fully adorned and go to the land of Vishnu (your in-law's home). After being decorated with this knowledge, you become the emperors and empresses of the world. You are now at the confluence age. Baba, as the Teacher, is teaching you in order to send you from your Parents' home to your in-laws' home. (piyarghar to sasurghar)

Song: At last the day for which we had been waiting has come! ... Akhir vo din aya aaj आखिर वह दिन आया आज.... http://www.youtube.com/watch?v=NFequAGlNug&feature=youtu.be


Om shanti.

You sweetest, long-lost and now-found children heard the song. You children know that you have finally found the Beloved whom you have been remembering for half the cycle. No one in the world knows that you do devotion for half the cycle. They call out to the Father, the Beloved. We are His lovers and He is our Beloved. No one knows this either. The Father says: Ravan has made everyone's intellect completely degraded. This applies to the people of Bharat especially. You have forgotten that you were deities. Therefore, your intellects are degraded. To forget one's own religion is a sign of a degraded intellect. Only you know this now that we people of Bharat were the residents of heaven. This Bharat was heaven only a short while ago. For 1250 years it was the golden age and then, for the next 1250 years, it was the kingdom of Rama. At that time there was limitless happiness. On remembering this happiness, you should have goose pimples. The golden and silver ages have passed. What is the duration of the golden age? No one knows this. How could it possibly be hundreds of thousands of years? The Father now comes and explains that Maya has made your intellects so degraded! No one in the world considers himself to have a degraded intellect. You know that, yesterday, you had degraded intellects. Baba has now given you enough wisdom to recognise the Creator and to understand the beginning, the middle and the end of creation. Yesterday, we did not know this. Today, we do know it. The more you know, the more goose pimples of happiness you will have. We have now, once again, reached our destination. The Father really did give us the kingdom of heaven and then we lost it. We have now become impure. The golden age is not considered to be impure. That is the pure world. People say: 0 Purifier, come! There can't be anyone pure or elevated in Ravan's kingdom. You have now become the children of the highest-on-high Father. Therefore, you too have become elevated. You children now know the Father but that too is numberwise according to the effort you make. Wake up early in the morning and ask your heart. The morning time of nectar is a very good time to sit and churn these things. Baba is our Father and our Teacher. People say: Oh God the Father! Oh Supreme Father, Supreme Soul! You children now know that you have found the One whom they remember and to whom they call out: Oh God! We are once again claiming our unlimited inheritance. That one is your physical father. This One is the unlimited Father. Even your physical father remembers that unlimited Father. Therefore, He is the Father of all fathers, the Husband of all husbands. The people of Bharat say this, because I now become the Father of all fathers and the Husband of all husbands. I am now your Father and you have become My children. You continue to say: Baba! Baba! I have now come once again to take you to the land of Vishnu, your in-laws' home. This is your Father's home and you will then go to your in-laws' home. You children know that you are being adorned very beautifully. You are now at home with your Father. You are also being educated. Having been adorned with this knowledge, you then become the emperors and empresses of the world. You have come here in order to become the masters of the world. When it was the golden age, you people of Bharat were the masters of the world. You wouldn't say now that you are the masters of the world. You know that, at present, the masters of Bharat belong to the iron age, whereas you belong to the confluence age. Then, in the golden age, you will be the masters of the whole world. These things should enter the intellects of you children. You know that the One who gives you the kingdom of the world has now come. He has now come at this confluence age. Apart from the Father, no human being can be called the Bestower of Knowledge because the Father has the knowledge with which He bestows salvation to the whole world. Everything, including nature is given salvation. Human beings have no knowledge of salvation. The whole world, including nature, is now tamopradhan. Everyone who resides here is also tamopradhan. The new world is called the golden age. Deities used to live there. Then Ravan defeated them. The Father has now come once again. You children say that you are going to BapDada. The Father gives you your inheritance of the kingdom of heaven through this Dada. The Father will give you the kingdom of heaven; what else would He give? At least, this should enter the intellects of you children. However, Maya makes you forget this. She doesn't allow you to have constant happiness. Those who study well and also teach well will claim a high status. "Liberation-in-life in a second", has been remembered. You just have to recognise Him once. There is the one Father of all souls and that Father of all souls has now come. However, not everyone will be able to meet Him; that would be impossible. The Father comes to teach you. All of you are teachers. This is called the Gita Pathshala (study place). These words are common. They say that Krishna spoke the Gita. However, this is not Krishna's pathshala. The Krishna soul is studying here. Does anyone study or teach in a Gita pathshala in the golden age? Krishna exists in the golden age and he takes 84 births. No one's body can be identical to another's. According to the drama plan each soul has a part of 84 births recorded in him. One second cannot be identical to the next. You play your parts for 5000 years. The part you perform one second cannot be identical to your part in the next second. This is a matter of great understanding. This is the drama. Your parts continue to repeat. All the scriptures belong to the path of devotion. Devotion lasts for half a cycle. Then I come and grant everyone salvation. You know that you were given salvation 5000 years ago and that you used to rule there. There was no mention of sorrow. Now there is nothing but sorrow; it is called the land of sorrow. There are the lands of peace, happiness and sorrow. I come and show you people of Bharat the path to the land of happiness. I have to come every cycle. I have come many times before and I will continue to come. There can be no end to this. Whilst going around the whole cycle, you enter the land of sorrow and I then have to come. You now remember the cycle of your 84 births. The Father is called the Creator. This doesn't mean that He creates the drama. To be the Creator means He comes at this time and creates the golden age. I come and teach those who had the kingdom in the golden age and then lost it. I adopt you children. You are My children, are you not? It isn't a sage or a holy man teaching you. Only the one Father whom everyone remembers is teaching you. The One whom they remember would definitely come here at some point. No one understands why they remember Him. So the Purifier Father definitely comes. They wouldn't say to Christ: Come again! People think that that soul has merged and so there is no question of him coming back. Nevertheless, it is still the Purifier whom they remember: Give us souls our inheritance once again. You children are now aware that Baba has come. He comes to establish the new world. Other founders of religions will come at their own time; at the time of rajo and tamo. You children know that you are now becoming master knowledge-full. Only the one Father teaches you and makes you into the masters of the world. He, Himself, does not become that; this is why He is called the altruistic Server. People say that they don't want any reward for what they do, that they are serving altruistically. However, that is not so. They take their next birth according to the sanskars they have taken with them. They definitely do receive the fruit of their deeds. Sannyasis also take rebirth to householders and then, according to their sanskars, they go into the religion of renunciation. In the same way, Baba gives the example of soldiers. They quote the Gita where it says: If you die on the battlefield you go to heaven. However, there has to be a time for heaven. They say that the duration of heaven is hundreds of thousands of years. You now understand what the Father tells you and what is written in the Gita. They say that the versions of God say: I am omnipresent. The Father says: How could I insult Myself by saying I am omnipresent? How could I be in the cats and dogs? You call Me the Ocean of Knowledge. Therefore, how could I call Myself those things? It is such a lie! No one has any knowledge. Because sannyasis are pure people have so much regard for them. There are no gurus in the golden age. Here, a bride is told that her bridegroom is her guru and her god, and that she must not adopt any other guru. That explanation was for when devotion was first satopradhan. There are no gurus in the golden age. Even at the beginning of devotion, there are no gurus. The husband is considered to be everything, so they don't take a guru. You now understand these things. Some people become afraid just on hearing the name, Brahma Kumars and Kumaris, because they think that we make everyone into brothers and sisters. Oh! But it is good to become a child of Prajapita Brahma. Only B Ks claim the inheritance of heaven. You are now claiming that. You have now become Brahma Kumars and Kumaris. Husband and wife both say that they are brother and sister, and this is how the consciousness of the body and the odour of vice are removed. How could we brothers and sisters, children of the one Father, indulge in vice? That would be a very big sin. This is a tactic in the drama to enable you to remain pure. Sannyasis belong to the path of isolation, whereas you belong to the family path. You now have to stop following the customs and systems of this dirty world and forget this world. You used to be the masters of heaven. Then Ravan made you so dirty. Baba has also told you what to say when people ask how they can accept that they have taken 84 births. It is something good that we are telling you, that you have taken 84 births. If they haven't taken 84 births, they will not remain here. You can then understand that they don't belong to the deity religion and that they cannot come to heaven. They would attain a low status amongst the subjects. Among the subjects too, there is a high status and a low status. These things are not mentioned in the scriptures. God comes and establishes a kingdom. Shri Krishna was the master of Vaikunth, Paradise. It is the Father who establishes that Paradise. The Father speaks the Gita through which we attain a status. At that time there is no need to study or teach others. You study this knowledge now and claim a status. Then you will not study this knowledge of the Gita there because you will have received salvation. The more effort you make now, the higher the status you will claim there. You will continue to make exactly the same effort as you did in the previous cycle. You have to observe everything in a detached way. You have to observe the teacher who taught you and you have to become cleverer than him or her. There is a big margin. You have to make effort to become the highest-on-high. The main thing is to become satopradhan from tamopradhan. These matters have to be understood. Stay at home with your family and remember the Father. Then you will become pure. Here, everyone is impure and there is nothing but sorrow. No one knows when it was the kingdom of happiness. At the time of sorrow, they call out: 0 God, 0 Rama, why did You cause us this sorrow? However, God does not cause sorrow for anyone. It is Ravan that causes sorrow. You now know that there will not be any other religion in your kingdom. All other religions come later. Wherever you go, you take this study with you. You have received the aim of "Manmanabhav"; remember the Father. We are claiming our inheritance of heaven from the Father. Are you not able to remember even this much? This remembrance must remain firm, because your final thoughts lead you to your destination. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

1. Wake up in the early hours of nectar and think about how Baba is our Father and also our Teacher. Baba has now come to adorn us with jewels of knowledge. He is the Father of all fathers and the Husband of all husbands (pation ka pati). Have such thoughts and experience unlimited happiness.

2. Observe each one's efforts as a detached observer. There is still a margin for making effort to claim a high status. Therefore, change from tamopradhan to satopradhan.

Blessing: May you constantly be a destroyer of obstacles (vighn vinaashak) and wear the sparkling angelic dress that is obstacle proof

In order to be constantly a destroyer of obstacles for the self and for everyone, bid farewell to question marks. Put a full stop and accumulate a full stock of all powers. Always wear the sparkling angelic dress that is obstacle proof. do not wear a dress of mud. Along with this, remain decorated with the jewellery of all virtues. Always remain a perfect idol that is holding the weapons of the eight powers and keep the feet of your elevated life on the lotus seat.

Slogan: Pay full attention to what you practise and you will claim a number in the first division.

 * * *OM SHANTI***

Daily Positive Thoughts: May 08, 2015: That Gift Called 'Faith'

Daily Positive Thoughts: May 08, 2015: That Gift Called 'Faith'





That Gift Called 'Faith'

When I am continuously being battered by the storms of life, and my very spirit is ebbing away, then all I need to do is hang onto that gift called 'Faith', that one support which will weather the storms. Faith does not depend on a clever head, only belief: belief in the self and the strength that lies within. Faith is the seed of victory and the foundation of making the impossible possible.


True love


True love is free from expectations. When you discover the love within
you, you can continue to give. Whether the other person gives or not,
true love enables you to give unselfishly. Let today be the day for
discovering and giving others the love within you. Make sure you do at
least one act that shows your love towards anyone around you. Feel the
love flowing from within to the ones around you.



Fulfilling Desires By Changing Your Belief System (cont.)


We have been holding a lot of incorrect beliefs as to what can lead us to back to our eternal and original state (these states were discussed in yesterday's message) and many of our actions are based on these beliefs. We have mentioned a few examples of incorrect beliefs below. There are many more, which you could reflect on.

Lust and attachment increases love in a relationship.

Anger is necessary for success in relationships and is important for getting work done and gaining respect. It provides a mental upsurge of energy.

Greed attracts physical prosperity and brings happiness.

Ego is power; a person with no ego is generally timid or submissive.

Worry prepares us for the worst, worrying for someone close is expressing our love for them.

Being emotional and crying for our loved ones in bad times, is expressing love for them. Being emotional and crying in good times is expressing and experiencing joy. 

Gossiping increases social bonding and gives one an experience of joy.

Jealousy inspires us to do better and achieve more.


The Supreme Teacher changes our belief system and not only makes us aware of these incorrect beliefs but reconditions us by incorporating correct beliefs inside us so that we start performing karmas or actions based on them and start progressing towards our eternal and original state.


Soul Sustenance

Discover Your Inner Mentor (Guide) – A Meditation

If you can become your own mentor (guide), a mentor that you would always have liked to have, then you will experience life as an exciting adventure. What would happen if you had someone in your life that walked with you each step of your way, loved you unconditionally and supported you without putting conditions, even when you were wrong? What would happen if you felt absolutely safe, secure, cared for and loved? Would you be more willing to accept the challenges that life brings forth in front of you? Would you take on your life with greater responsibility and confidence?

Your internal mentor is a part of you and is always present, always kind, always loves you, is always there for you. If you still haven't met it, take a moment to guide yourself through this meditation exercise:

1. Relax your body and allow yourself to be fully present, here, reading these words, listening to the sounds around you, feeling what you feel. Read slowly!

2. Now send love to each part of your body: your feet, your lungs, your back, your face, your eyes, your nose, until you feel the love from your feet to your head.

3. Now send love to each thought that appears on the screen of your mind, visualize how your energy is concentrated at the inner part of the centre of your forehead. See the screen of your mind, and try to make each thought that you generate full of the energy of love that is slowly invading you. The energy of love is present in each thought that appears in your mind.
Love what you yourself create: each thought.

4. By practicing the above exercise, you emerge sanskars inside yourself of giving unconditional love and support to your own self. This is a way to awaken your inner mentor. As you practice spending time with yourself in this way, you will start to see that your insecurity and your fears begin to disappear and new possibilities open up in front of you.

Message for the day

To appreciate variety is to harmonise.

Expression: When there is recognition that each human being is unique with his own unique set of capabilities, there is the ability to respect him for what he is. Then all attempts are made to harmonise with him instead of trying to make him just like oneself. So energy is channelised in the right direction and one becomes an inspiration for others too.

Experience: To appreciate variety means to see the beauty and specialities of each and every individual. It means to appreciate the natural positive qualities in everyone and learn to blend my own qualities with theirs. This gives me the satisfaction of the beauty of relationships, because there are no expectations and no disappointments.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


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