January 2015
Special homework to experience the avyakt stage
In order for all Brahmin children to experience
especially the avyakt stage from 1st January to 31st January, make a note of
these points and, while churning them throughout the day, become an embodiment
of the experience of these points, remain introverted and continue to tour
around the subtle region.
इस अव्यक्त मास में अव्यक्त स्थिति का अनुभव
करने के लिए विशेष होमवर्क सभी ब्रह्मा वत्स 1 जनवरी से 31 जनवरी 2015 तक विशेष अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने
के लिए यह प्याइंटस अपने पास नोट करें तथा पूरा दिन इस पर मनन चिंतन करते हुए
अनुभवी मूर्त बनें और अन्तर्मुखी रह अव्यक्त वतन की सैर करते रहें ।
(1) By
paying special attention to adopting good wishes and elevated intentions for
every soul throughout the day, transform impure intentions into pure
intentions, impure wishes into pure wishes and maintain a stage of happiness.
(1) सारा
दिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव को धारण करने का विशेष अटेंशन रख
अशुभ भाव को शुभ भाव में, अशुभ
भावना को शुभ भावना में परिवर्तन कर खुशनुमा स्थिति में रहना है ।
(2) Throughout the whole day, constantly have
benevolent wishes for everyone, have the good wishes to give love and
co-operation, the good wishes to increase courage and enthusiasm, the good
wishes to belong and good wishes of remaining soul conscious. These good wishes
are the basis of creating an avyakt stage.
(2) पूरा ही दिन सर्व के प्रति कल्याण की भावना, सदा स्नेह और सहयोग देने की भावना, हुल्लास बढ़ाने की
भावना, अपनेपन की भावना और आत्मिक स्वरुप की भावना रखना है ।
भावना अव्यक्त स्थिति बनाने का आधार है ।
(3) Verify
your every thought and every deed with avyakt power through the avyakt form.
Constantly keep BapDada personally in front of you and with you and then create
a thought or perform a deed. With the Companion and the experience of His
company, be a detached observer like the Father, that is, be detached and
loving.
(3) अपने हर संकल्प को हर कार्य को अव्यक्त बल से अव्यक्त
रूप द्वारा वेरीफाय कराना है । बापदादा को अव्यक्त रूप से सदा सम्मुख और साथ रखकर
हर संकल्प,
हर कार्य करना है । “साथी” और “साथ” के अनुभव से बाप समान
साक्षी अर्थात् न्यारा और प्यारा बनना है ।
(4) If you
have love for Father Brahma, show the signs of that love in a practical way.
Father Brahma had number one love for the murli through which he became
Murlidhar. Whatever Father Brahma had love for and still has love for now, your
love for that should also be constantly visible. Study every murli with a lot
of love and become an embodiment of it.
(4) ब्रह्मा बाप से प्यार है तो प्यार की
निशानियाँ प्रैक्टिकल में दिखानी है | जैसे ब्रह्मा बाप का नंबरवन प्यार मुरली से
रहा जिससे मुरलीधर बना | तो जिससे ब्रह्मा बाप का प्यार था और अभी भी है उससे सदा
प्यार दिखाई दे | हर मुरली को बहुत प्यार से पढ़कर उसका स्वरुप बनना है |
(5) Before
you perform any deed, speak any words or have any thoughts, first of all check
whether they are the same as those of Father Brahma. The speciality of Father
Brahma was: Whatever he thought, whatever he said, he did that. Follow the
father in the same way. With the awareness of your own self-respect, with the
power of the Father’s companionship and with the power of faith, stay in your
elevated position and finish all opposition.
(5) कोई भी कर्म करो, बोल बोलो वा
संकल्प करो तो पहले चेक करो कि यह ब्रह्मा बाप समान है! ब्रह्मा बाप की विशेषता
विशेष यही रही- जो सोचा वो किया, जो
कहा वो किया । ऐसे फालो फादर | अपने स्वमान की स्मृति से, बाप के साथ की
समर्थी से, दृढ़ता
और निश्चय की शक्ति से श्रेष्ठ पोजीशन पर रह आपोजीशन को समाप्त कर देना ।
(6) In order
to experience the avyakt stage, do not allow yourself to have any form of
attachment with your body, relationships or your possessions. You have promised
that the body, mind and wealth are all “Yours”, so how can there be attachment?
In order to become an angel, have the practical practice of having everything
for the sake of service, that it has all been entrusted to you and that you are
simply a trustee.
(6) अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए देह,
सम्बन्ध वा पदार्थ का कोई भी लगाव नीचे न लाये । जो वायदा है यह तन,
मन, धन सब तेरा तो लगाव कैसे हो सकता! फरिश्ता
बनने के लिए यह प्रैक्टिकल अभ्यास करो कि यह सब सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ।
(7) While
experiencing newness at every moment, also put new zeal and enthusiasm into
others. Dance in happiness and continue to sing songs of the Father’s virtues.
While sweetening your own mouth with the toli of sweetness, also sweeten the
mouths of others with sweet words, sweet sanskars and a sweet nature.
(7) हर समय नवीनता का अनुभव करते औरों को भी
नये उमंग-उत्साह में लाना । खुशी में नाचना और बाप के गुणों के गीत गाना । मधुरता
की मिठाई से स्वयं का मुख मीठा करते दूसरों को भी मधुर बोल, मधुर
संस्कार, मधुर स्वभाव द्वारा मुख मीठा कराना ।
(8) In order
for you to stay in the avyakt stage, the Father’s shrimat is: Children, think
less but do more. Finish all confusion and become bright and clear. Merge the
ashes of old situations and old sanskars into the ocean of your complete stage.
Finish old matters in such a way as you forget matters of the old birth.
(8) अव्यक्त स्थिति में रहने के लिए बाप की
श्रीमत है बच्चे, “सोचो कम, कर्तव्य
अधिक करो”। सर्व उलझनों को समाप्त कर उज्जवल बनो । पुरानी
बातों अथवा पुराने संस्कारों रूपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा दो
। पुरानी बातें ऐसे भूल जाएं जैसे पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं ।
(9) Let the
foot of your intellect not stay on the ground. It is said that the feet of
angels are never on the ground. Similarly, the intellect should remain beyond
the ground of the body, that is, beyond the attraction of matter. Become those
who make matter dependent, not those who depend on it.
(9) बुद्धि रूपी पांव पृथ्वी पर न रहें ।
जैसे कहावत है कि फरिश्तों के पांव पृथ्वी पर नहीं होते । ऐसे बुद्धि इस देह रूपी
पृथ्वी अर्थात् प्रकृति की आकर्षण से परे रहे । प्रकृति को अधीन करने वाले बनो न
कि अधीन होने वाले ।
(10) Check:
Is every thought that I have for the benefit of the self and everyone? How many
thoughts did I have in one second? How many were worthwhile and how many were
not worthwhile? Let there not be any difference between your thoughts and
actions. Thoughts are an invaluable treasure of life. Just as you do not waste
physical treasures, similarly, let not a single thought go to waste.
(10) चेक करो - जो भी संकल्प उठता है वह
स्वयं वा सर्व के प्रति कल्याण का है? सेकेण्ड में कितने
संक्ल्प उठे - उसमें कितने सफल हुए और कितने असफल हुए? संकल्प
और कर्म में अन्तर न हो । संकल्प जीवन का अमूल्य खजाना है । जैसे स्थूल खजाने को
व्यर्थ नहीं करते वैसे एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये ।
(11) Check
your ropes of attachment and see whether your intellect is trapped somewhere in
the weak threads. Let there be no subtle bondages or any attachment to your own
body. To have such freedom, that is, in order to become so clear, be one who
has unlimited renunciation for only then will you be able to stay in the avyakt
stage.
(11) लगाव की रस्सियों को चेक करो । बुद्धि कहीं कच्चे
धागों में भी अटकी हुई तो नहीं है? कोई सूक्ष्म बंधन भी न
हो, अपनी देह से आई लगाव न हो - ऐसे स्वतन्त्र अर्थात्
स्पष्ट बनने के लिए बेहद के वैरागी बनो तब अव्यक्त रिथति में स्थित रह सकेंगे ।
(12) In
order to receive a degree of being a perfect angel or an avyakt angel, become
full of all virtues. Together with being knowledge-full, be faithful, powerful
and successful. Now, stop moving along delicately with the sensitive times and
finish all sinful and wasteful actions with your fearsome (powerful) form.
(12) सम्पूर्ण फरिश्ता वा अव्यक्त फरिश्ता की
डिग्री लेने के लिए सर्व गुणों में फुल बनो। नॉलेजकुल के साथ-साथ फेथफुल, पावरफुल, सक्सेसफुल बनो ।
अभी नाजुक समय में नाजों से चलना छोड़ विकर्मों और व्यर्थ कर्मों को अपने विकराल
रूप (शक्ति रूप) से समाप्त करो।
(13) Practice
entering your physical body and enabling your physical organs to perform all
tasks. Enter it when you want and become detached from it when you want. Imbibe
and renounce the consciousness of the body in a second and become soul
conscious in a second.
(13) अभ्यास करो कि इस स्थूल देह में प्रवेश
कर कमीन्द्रयों से कार्य कर रहे हैं । जब चाहे प्रवेश करो और जब चाहे न्यारे हो
जाओ । एक सेकेण्ड में धारण करो और एक सेकेण्ड में देह के भान को छोड़ देही बन जाओ ।
(14) From
the moment of waking up at amrit vela, become regular in your every action,
thought and word. Let there not be a single word that is wasteful. Just as
important people have their speeches fixed, similarly, your words should be
fixed. Do not speak anything extra.
(14) अमृतवेले उठने से लेकर हर कर्म, हर संकल्प और हर
वाणी में रेग्युलर बनो । एक भी बोल ऐसा न निकले जो व्यर्थ हो । जैसे बड़े आदमियों
के बोलने के शब्द फिक्स होते हैं ऐसे आपके बोल फिक्स हो । एक्स्ट्रा नहीं बोलना है
।
(15) In
order to experience the avyakt stage, constantly remember: “We have to chase
problems far away and bring perfection close.” For this, we must not be
careless about any Godly code of conduct, but be careless towards devilish
codes of conduct and Maya. Confront the problems and the problems will finish.
(15) अव्यक्त रिथति का अनुभव करने के लिए सदा
याद रहे कि “समस्याओं
को दूर भगाना है सम्पूर्णता को समीप लाना है” । इसके लिए किसी
भी ईश्वरीय मर्यादा में बेपरवाह नहीं बनना, आसुरी मर्यादा वा माया से बेपरवाह बनना । समस्या का सामना
करना तो समस्या समाप्त हो जायेगी ।
(16) Every
now and again, practice stopping the traffic of your thoughts. For one minute,
stop your thoughts and also the actions being performed through the body and
practice becoming the point form. This practice of a minute will help you to
create an avyakt stage throughout the day.
(16) बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक को
स्टॉप करने का अभ्यास करो । एक मिनट के लिए संकल्पों को, चाहे शरीर
द्वारा चलते हुए कर्म को रोककर बिन्दु रुप की प्रैक्टिस करो । यह एक सेकेण्ड का भी
अनुभव सारा दिन अव्यक्त रिथति बनाने में मदद करेगा ।
(17) If any
type of obstacle is disturbing your intellect, then with the experimentation of
yoga, first of all finish that obstacle. Let there not be the slightest
disturbance in your mind or intellect. Let there be such a practice of
remaining stable in the avyakt stage that the soul, the spirit, is easily able
to know what another soul, spirit, is saying and know the feelings in anyone’s
mind.
(17) किसी भी प्रकार का विघ्न बुद्धि को
सताता हो तो योग के प्रयोग द्वारा पहले उस विघ्न को समाप्त करो । मन-बुद्धि में
जरा भी डिस्टरबेन्स न हो । अव्यक्त स्थिति में स्थित होने का ऐसा अभ्यास हो जो रूह, रूह की बात को
या किसी के भी मन के भावों को सहज ही जान जाये ।
(18) On the
basis of faith and spiritual intoxication, Father Brahma came to know the
guaranteed destiny and used everything in a worthwhile way in a second. He
didn’t keep anything for himself. So, the sign of love is to use everything in
a worthwhile way. To use something in a worthwhile way means to use it for an
elevated purpose.
(18) जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रुहानी नशे के
आधार पर, निश्चित
भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब सफल कर दिया । अपने लिए कुछ नहीं रखा । तो स्नेह
की निशानी है सब कुछ सफल करो । सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना ।
(19) The
language of Brahmins among themselves should be filled with avyakt feelings.
Never accept even in your mind anyone’s mistakes that you may have heard about
or speak about them. Within the gathering, specially have an exchange of avyakt
experiences.
(19) ब्राह्मणों की भाषा आपस ने अव्यक्त भाव
की होनी चाहिए । किसी की सुनी हुई गलती को संकल्प में भी न तो स्वीकार करना है, न कराना है ।
संगठन में विशेष अव्यक्त अनुभवों की आपस में लेन-देन करनी है ।
(20) Always remain in the
gathering considering it to be your responsibility to create a powerful atmosphere.
When you see that someone is in gross feelings too much, then, without saying
anything to that one, imbibe within yourself such an avyakt and silent form
that that one understands through signals and becomes silent. In this way the
atmosphere will become avyakt.
(20) संगठित रूप में शक्तिशाली वायुमण्डल
बनाने की जिम्मेवारी समझकर रहना । जब देखो कि कोई व्यक्त भाव में ज्यादा है तो
उनको बिना कहे अपना ऐसा अव्यक्ति शान्त रूप धारण कर लो जो वह इशारे से समझकर शान्त
हो जाए, इससे
वातावरण अव्यक्त बन जायेगा ।
(21) Just as
souls who come into connection now are able to glimpse Godly love, elevated
knowledge and the elevated activities, similarly, let them clearly have a
glimpse of the avyakt stage. Just as Father Brahma in the sakar form, while
having many other responsibilities, gave the experience of the subtle and the
incorporeal stages, similarly, you children while being in the corporeal form
have to give the experience of the angelic form.
(21) जैसे अभी सम्पर्क में आने वाली आत्माओं
को ईश्वरीय स्नेह, श्रेष्ठ
ज्ञान और श्रेष्ठ चरित्रों का साक्षात्कार होता है, ऐसे अव्यक्त रिथति का भी स्पष्ट
साक्षात्कार हो । जैसे साकार में ब्रह्मा बाप अन्य सब जिम्मेवारियाँ होते हुए भी
आकारी और निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे, ऐसे आप बच्चे भी साकार रूप में रहते फरिश्तेपन का अनुभव
कराओ ।
(22) Even
while you are performing an ordinary action, pay attention every now and again
to creating an avyakt stage. When you perform any task, always perform it with
double force, considering BapDada to be your Companion and there will then be
easy remembrance. While making a programme for physical activities, also set a
programme for your intellect and time will then be saved.
(22) चाहे कोई भी साधारण कर्म भी कर रहे हो
तो भी बीच-बीच में अव्यक्त स्थिति बनाने का अटेंशन रहे । कोई भी कार्य करो तो सदैव
बापदादा को अपना साथी समझकर डबल फोर्स से कार्य करो तो स्मृति बहुत सहज रहेगी । स्थूल
कारोबार का प्रोग्राम बनाते बुद्धि का प्रोग्राम भी सेट कर लो तो समय की बचत हो
जायेगी ।
(23) While
performing any task, always have the awareness that BapDada is with you in
every action and that that hand of your alokik life is in His hands, that is,
your life is surrendered to Him. Then, it becomes His responsibility. Place all
your burdens on the Father and make yourself light and you will become a karma
yogi angel.
(23) कोई भी कर्म करते सदैव यही स्मृति रहे
कि हर कर्म में बापदादा मेरे साथ भी है और हमारे इस अलौकिक जीवन का हाथ उनके हाथ
में हैं अर्थात् जीवन उनके हवाले है । फिर जिम्मेवारी उनकी हो जाती है । सभी बोझ
बाप के ऊपर रख अपने को हल्का कर दो तो कर्मयोगी फरिश्ता बन जायेंगे ।
(24) You are
spiritual, royal souls and you must, therefore, never let wasteful or ordinary
words emerge from your lips. Let every word be yuktiyukt and be beyond gross
intentions and filled with avyakt intentions and you will then be able to enter
the royal family.
(24) आप रूहानी रॉयल आत्मायें हो इसलिए मुख
से कभी व्यर्थ वा साधारण बोल न निकलें । हर बोल युक्तियुक्त हो । व्यर्थ भाव से
परे अव्यक्त भाव वाला हो तब रॉयल फैमली में आयेंगे ।
(25) No
matter how much waste someone speaks in front of you, just transform that waste
and make it powerful. Do not take any waste into your intellect. If you accept
even one wasteful word, then that one wasteful word will give birth to many
wasteful words. Pay full attention to your words. “Speak less, speak softly and
speak sweetly” and you will easily make your stage avyakt.
(25) आपके सामने कोई कितना भी व्यर्थ बोले
लेकिन आप व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो । व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार
नहीं करो । अगर एक भी व्यर्थ बोल स्वीकार कर लिया तो एक व्यर्थ अनेक व्यर्थ को
जन्म देगा । अपने बोल पर भी पूरा ध्यान दो, “कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो” तो अव्यक्त
स्थिति सहज बन जायेगी ।
(26) Consider yourself to be
an incorporeal soul as you walk, move around and while performing actions,
consider yourself to be an avyakt angel and you will become a detached
observer. No matter what happens in the physical world, an angel becomes a
detached observer and watches the part from up above and gives sakaash, that
is, co-operation. To give sakaash means to fulfil your responsibility.
(26) चलते-फिरते अपने को निराकारी आत्मा और
कर्म करते अव्यक्त फरिश्ता समझो तो साक्षी दृष्टा बन जायेंगे। इस देह की दुनिया
में कुछ भी होता रहे, लेकिन
फरिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखते, सकाश अर्थात् सहयोग देता है । सकाश देना ही निभाना है।
(27) If there is any type of
heaviness or burden then do the spiritual exercise. Be a karma yogi one minute,
that is, be one who has adopted the corporeal form and play your part in the
corporeal world. The next minute, be a subtle angel and experience being the
subtle form, a resident of the subtle region, the next minute be incorporeal
and experience being a resident of the incorporeal world. With this exercise
you will become light and heaviness will finish.
(27) यदि किसी भी प्रकार का भारीपन अथवा बोझ
है तो आत्मिक एक्सरसाइज करो । अमी- अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन
साकार सष्ठि का पार्ठ बजाओ, अभी- अभी आकरी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का
अनुअव करो, अभी-
अमी निराकारी बन मूलवतनवासी का अनुभव करो, इस एक्सरसाइज से हल्के हो जायेंगे, भारीपन खत्म हो
जायेगा ।
(28) Constantly
experience the Father as your Companion in the avyakt form and always continue
to swing with zeal, enthusiasm and happiness. Even if there is something not
quite right, understand the play of the drama and continue to say “Very good,
very good”, become good. Then, with the vibrations of becoming good, transform
the negative into positive.
(28) बाप को अव्यक्त रूप में सदा साथी अनुभव
करना और सदा उमंग-उत्साह और खुशी में झूमते रहना । कोई बात नीचे ऊपर आई हो तो भी
ड्रामा का खेल समझकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा करते अच्छा बनना और अच्छे बनने के वायब्रेशन से
नगेटिव को पाजिटिव में बदल देना ।
(29) Concentration of the
mind will enable you to experience a constant and stable stage. With the power
of concentration you will easily be able to experience the stage of an avyakt
angel. Concentration means to be able to concentrate your mind wherever you
want, as you want for as long as you want. The mind should be under your
control.
(29) मन की एकाग्रता ही एकरस स्थिति का अनुभव
करायेगी । एकाग्रता की शक्ति हारा अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव कर सकेंगे
। एकाग्रता अर्थात् मन को जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना
समय चाहो उतना समय एकाग्र कर लो । मन वश में हो ।
(30) We are
Brahmins who are to become angels. The experience of this combined form will
make you an image that grants visions in front of the world. By walking and
moving around with the awareness of being a Brahmin who is to become an angel,
while in a physical body and playing a part in the physical world, you will
experience yourself to be a companion of Father Brahma, an angel of the subtle
region, one with an avyakt form.
(30) हम ब्राह्मण सो फरिश्ता हैं, यह कम्बाइल्ड
रुप की अनुभूति विश्व के आगे साक्षात्कार मूर्त बनायेगी । ब्राह्मण सो फरिश्ता इस
स्मृति द्वारा चलते-फिरते अपने को व्यक्त शरीर, व्यक्त देश में पार्ट बजाते हुए भी ब्रह्मा बाप के साथी
अव्यक्त वतन के फरिश्ते, अव्यक्त
रूपधारी अनुभव करेंगे ।
(31)The
speciality of an angelic or avyakt life is to be ignorant of the knowledge of
desire. There is no question of any desires in the deity life. When your life
becomes a Brahmin life and so an angelic life, that is, when you have attained
the karmateet stage, then you cannot be bound by any type of action, whether it
is a pure action, a wasteful action, a sinful action or an action of the past.
(31) फरिश्ता वा अव्यक्त जीवन की विशेषता है
इच्छा मात्रम् अविद्या । देवताई जीवन में तो इच्छा की बात ही नहीं । जब ब्राह्मण
जीवन सो फरिश्ता जीवन बन जाती अर्थात् कर्मातीत रिथति को प्राप्त हो जाते तब किसी
आई शुद्ध कर्म, व्यर्थ कर्म, विकर्म या पिछला कर्म, किसी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंध सकते।
No comments:
Post a Comment