Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

04-03-15 प्रातः मुरली



04-03-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन

मीठे बच्चे - तुम बाप के बच्चे मालिक हो, तुमने कोई बाप के पास शरण नहीं ली है, बच्चा कभी बाप की शरण में नहीं जाता
प्रश्न:-   
किस बात का सदा सिमरण होता रहे तो माया तंग नहीं करेगी?
उत्तर:-
हम बाप के पास आये हैं, वह हमारा बाबा भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है परन्तु है निराकार । हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला निराकार बाबा है, यह बुद्धि में सिमरण रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा फिर माया तंग नहीं करेगी ।
ओम् शान्ति |
त्रिमूर्ति बाप ने बच्चों को समझाया है । त्रिमूर्ति बाप है ना । तीनों को रचने वाला वह ठहरा सर्व का बाप क्योंकि ऊंच ते ऊंच वह बाप ही है । बच्चों की बुद्धि में है हम उनके बच्चे हैं । जैसे बाप परमधाम में रहते हैं वैसे हम आत्मायें भी वहाँ की निवासी हैं । बाप ने यह भी समझाया है कि यह ड्रामा है, जो कुछ होता है वह ड्रामा में एक ही बार होता है । बाप भी एक ही बार पढ़ाने आते हैं । तुम कोई शरणागति नहीं लेते हो । यह अक्षर भक्ति मार्ग के हैं - शरण पड़ी मैं तेरे । बच्चा कभी बाप की शरण पड़ता है क्या! बच्चे तो मालिक होते हैं । तुम बच्चे बाप की शरण नहीं पड़े हो । बाप ने तुमको अपना बनाया है । बच्चों ने बाप को अपना बनाया है । तुम बच्चे बाप को बुलाते ही हो कि बाबा आओ, हमको अपने घर ले जाओ अथवा राजाई दो । एक है शान्तिधाम, दूसरा है सुखधाम । सुखधाम है बाप की मिलकियत और दु:खधाम है रावण की मिलकियत । 5 विकारों में फँसने से दु:ख ही दु:ख है । अब बच्चे जानते हैं-हम बाबा के पास आये हैं । वह बाप भी है, शिक्षक भी है परन्तु है निराकार । हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला भी निराकार है । वह है आत्माओं का बाप । यह सदैव बुद्धि में सिमरण होता रहे तो भी खुशी का पारा चढ़े । यह भूलने से ही माया तंग करती है । अभी तुम बाप के पास बैठे हो तो बाप और वर्सा याद आता है । एम ऑबजेक्ट तो बुद्धि में है ना । याद शिवबाबा को करना है । कृष्ण को याद करना तो बहुत सहज है, शिवबाबा को याद करने में ही मेहनत है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । कृष्ण अगर हो, उस पर तो सभी झट फिदा हो जायें । खास मातायें तो बहुत चाहती हैं हमको कृष्ण जैसा बच्चा मिले, कृष्ण जैसा पति मिले । अभी बाप कहते हैं मैं आया हुआ हूँ, तुमको कृष्ण जैसा बच्चा अथवा पति भी मिलेगा अर्थात् इन जैसा गुणवान सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण सुख देने वाला तुमको मिलेगा । स्वर्ग अथवा कृष्णपुरी में सुख ही सुख है । बच्चे जानते हैं यहाँ हम पढ़ते हैं - कृष्णपुरी में जाने के लिए । स्वर्ग को ही सब याद करते हैं ना । कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ फिर तो खुश होना चाहिए, ताली बजानी चाहिए । नर्क से निकलकर स्वर्ग में गया - यह तो बहुत अच्छा हुआ । जब कोई कहे फलाना स्वर्ग पधारा तो बोलो कहाँ से गया? जरूर नर्क से गया । इसमें तो बहुत खुशी की बात है । सबको बुलाकर टोली खिलानी चाहिए । परन्तु यह तो समझ की बात है । वह ऐसे नहीं कहेंगे 21 जन्म के लिए स्वर्ग गया । सिर्फ कह देते हैं स्वर्ग गया । अच्छा, फिर उनकी आत्मा को यहाँ बुलाते क्यों हो? नर्क का भोजन खिलाने? नर्क में तो बुलाना नहीं चाहिए । यह बाप बैठ समझाते हैं, हर बात ज्ञान की है ना । बाप को बुलाते हैं हमको पतित से पावन बनाओ तो जरूर पतित शरीरों को खत्म करना पड़े । सब मर जायेंगे फिर कौन किसके लिए रोयेंगे? अब तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ जायेंगे अपने घर । अभी यह प्रैक्टिस कर रहे हैं कि कैसे शरीर छोड़ें । ऐसा पुरूषार्श दुनिया में कोई करते होंगे! तुम बच्चों को यह ज्ञान है कि हमारा यह पुराना शरीर है । बाप भी कहते हैं मैं पुरानी जुत्ती का लोन लेता हूँ । ड्रामा में यह रथ ही निमित्त बना हुआ है । यह बदल नहीं सकता । इनको फिर तुम 5 हजार वर्ष बाद देखेंगे । ड्रामा का राज समझ गये ना । यह बाप के सिवाए और कोई में ताकत नहीं जो समझा सके । यह पाठशाला बड़ी वन्डरफुल है, यहाँ बूढ़े भी कहेंगे हम जाते हैं भगवान की पाठशाला में - भगवान भगवती बनने । अरे बुढ़िया थोड़ेही कभी स्कूल पढ़ती है । तुमसे कोई पूछे तुम कहाँ जाते हो? बोलो, हम जाते हैं ईश्वरीय युनिवर्सिटी में । वहाँ हम राजयोग सीखते हैं । अक्षर ऐसे सुनाओ जो वह चक्रित हो जायें । बूढ़े भी कहेंगे हम जाते हैं भगवान की पाठशाला में । यहाँ यह वन्डर है, हम भगवान के पास पढ़ने जाते हैं । ऐसा और कोई कह न सके । कहेंगे निराकार भगवान फिर कहाँ से आया? क्योंकि वह तो समझते हैं भगवान नाम- रूप से न्यारा है । अभी तुम समझ से बोलते हो । हर एक मूर्ति के आक्यूपेशन को तुम जानते हो । बुद्धि में यह पक्का है कि ऊंच ते ऊंच शिवबाबा हैं, जिसकी हम सन्तान हैं । अच्छा, फिर सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, तुम सिर्फ कहने मात्र नहीं कहते हो । तुम तो जिगरी जानते हो कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना कैसे करते हैं । सिवाए तुम्हारे और कोई भी बायोग्राफी बता न सके । अपनी बायोग्राफी ही नहीं जानते हैं तो औरों की कैसे जानेंगे? तुम अभी सब कुछ जान गये हो । बाप कहते हैं मैं जो जानता हूँ सो तुम बच्चों को समझाता हूँ । राजाई भी बाप बिगर तो कोई दे न सके । इन लक्ष्मी-नारायण ने कोई लड़ाई से यह राज्य नहीं पाया है । वहां लड़ाई होती नहीं । यहाँ तो कितना लड़ते-झगड़ते हैं । कितने ढेर मनुष्य हैं । अभी तुम बच्चों के दिल अन्दर यह आना चाहिए कि हम बाप से दादा द्वारा वर्सा पा रहे हैं । बाप कहते हैं-मामेकम याद करो, ऐसे नहीं कहते कि जिसमें प्रवेश किया है उनको भी याद करो । नहीं, कहते हैं मामेकम् याद करो । वो सन्यासी लोग अपना फोटो नाम सहित देते हैं । शिवबाबा का फोटो क्या निकालेंगे? बिन्दी के ऊपर नाम कैसे लिखेंगे! बिन्दी पर शिवबाबा नाम लिखेंगे तो बिन्दी से भी नाम बड़ा हो जायेगा । समझ की बातें हैं ना । तो बच्चों को बड़ा खुश होना चाहिए कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं । आत्मा पढ़ती है ना । संस्कार आत्मा ही ले जाती है । अभी बाबा आत्मा में संस्कार भर रहे हैं । वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है । जो बाप तुमको सिखलाते हैं तुम औरों को भी यह सिखलाओ, सृष्टि चक्र को याद करो और कराओ । जो उनमें गुण हैं वह बच्चों को भी देते हैं । कहते हैं मैं ज्ञान का सागर, सुख का सागर हूँ । तुमको भी बनाता हूँ । तुम भी सभी को सुख दो । मन्सा, वाचा, कर्मणा कोई को भी दुःख न दो । सबके कान में यही मीठी-मीठी बात सुनाओ कि शिवबाबा को याद करो तो याद से विकर्म विनाश होंगे । सबको यह सन्देश देना है कि बाबा आया है, उनसे यह वर्सा पाओ । सबको यह सन्देश देना पड़े । आखरीन अखबार वाले भी डालेंगे । यह तो जानते हो अन्त में सब कहेंगे अहो प्रभू तेरी लीला आप ही सबको सद्गति देते हो । दु:ख से छुड़ाए सबको शान्तिधाम में ले जाते हो । यह भी जादूगरी ठहरी ना । उन्हों की है अल्पकाल के लिए जादूगरी । यह तो मनुष्य से देवता बनाते हैं, 21 जन्म के लिए । इस मनमनाभव के जादू से तुम लक्ष्मी- नारायण बनते हो । जादूगर, रत्नागर यह सब नाम शिवबाबा पर हैं, न कि ब्रह्मा पर । यह ब्राह्मण - ब्राह्मणियां सब पढ़ते हैं । पढ़कर फिर पढ़ाते हैं । बाबा अकेला थोड़ेही पढ़ाते हैं । बाबा तुमको इक्ट्ठा पढ़ाते हैं, तुम फिर औरों को पढ़ाते हो । बाप राजयोग सिखला रहे हैं । वही बाप रचयिता है, कृष्ण तो रचना है ना । वर्सा रचयिता से मिलता है, न कि रचना से । कृष्ण से वर्सा नहीं मिलता है । विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी-नारायण हैं । छोटेपन में राधे-कृष्ण हैं । यह बातें भी पक्का याद कर लो । बूढ़े भी तीखे चले जाएं तो ऊंच पद पा सकते हैं । बुढ़ियों का फिर थोड़ा ममत्व भी रहता है । अपने ही रचना रूपी जाल में फँस पड़ती हैं । कितनों की याद आ जाती है, उनसे बुद्धियोग तोड़ और फिर एक बाप से जोड़ना इसमें ही मेहनत है । जीते जी मरना है । बुद्धि में एक बार तीर लग गया तो बस । फिर युक्ति से चलना होता है । ऐसे भी नहीं कोई से बातचीत नहीं करनी है । गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, सबसे बातचीत करो । उनसे भी रिश्ता भल रखो । बाप कहते हैं-चैरिटी बिगन्स एट होम । अगर रिश्ता ही नहीं रखेंगे तो उनका उद्धार कैसे करेंगे? दोनों से तोड़ निभाना है । बाबा से पूछते हैं-शादी में जाऊ? बाबा कहेंगे क्यों नहीं जाओ । बाप सिर्फ कहते हैं काम महाशत्रु है, उस पर जीत पानी है तो तुम जगत जीत बन जायेंगे । निर्विकारी होते ही हैं सतयुग में । योगबल से पैदाइस होती है । बाप कहते हैं निर्विकारी बनो । एक तो यह पक्का करो कि हम शिवबाबा के पास बैठे हैं, शिवबाबा हमको 84 जन्मों की कहानी बताते हैं । यह सृष्टि चक्र फिरता रहता है । पहले- पहले देवी-देवतायें आते हैं सतोप्रधान, फिर पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बनते हैं । दुनिया पुरानी पतित बनती है । आत्मा ही पतित है ना । यहाँ की कोई चीज में सार नहीं है । कहाँ सतयुग के फल-फूल कहॉ यहाँ के! वहाँ कभी खट्टी बासी चीज होती नहीं । तुम वहाँ का साक्षात्कार भी कर आते हो । तुम्हारी दिल होती है यह फल-फूल ले जायें । परन्तु यहाँ आते हो तो वह गुम हो जाता । यह सब साक्षात्कार कराए बच्चों को बाप बहलाते हैं । यह है रूहानी बाप, जो तुमको पढ़ाते हैं । इस शरीर द्वारा पढ़ती आत्मा है, न कि शरीर । आत्मा को शुद्ध अभिमान है-मैं भी यह वर्सा ले रहा हूँ, स्वर्ग का मालिक बन रहा हूँ । स्वर्ग में तो सब जायेंगे परन्तु सबका नाम तो लक्ष्मी-नारायण नहीं होगा ना । वर्सा आत्मा पाती है । यह ज्ञान और कोई दे न सके सिवाए बाप के । यह तो युनिवर्सिटी है, इसमें छोटे बच्चे, जवान सब पढ़ते हैं । ऐसा कॉलेज कभी देखा? वह मनुष्य से बैरिस्टर डॉक्टर आदि बनते हैं । यहाँ तुम मनुष्य से देवता बनते हो ।
तुम जानते हो-बाबा हमारा टीचर, सतगुरू है, वह हमको साथ ले जायेंगे । फिर हम पढ़ाई अनुसार आकर सुखधाम में पद पायेंगे । बाप तो कभी तुम्हारे सतयुग को देखता भी नहीं । शिवबाबा पूछते हैं-हम सतयुग देखते हैं? देखना तो शरीर से होता है, उनको अपना शरीर तो है नहीं, तो कैसे देखेंगे? यहाँ तुम बच्चों से बात करते हैं, देखते हैं यह सारी पुरानी दुनिया है । शरीर बिगर तो कुछ देख न सकें । बाप कहते हैं मैं पतित दुनिया पतित शरीर में आकर तुमको पावन बनाता हूँ । मैं स्वर्ग देखता भी नहीं हूँ । ऐसे नहीं कि कोई के शरीर से छिप कर देख आऊं । नहीं, पार्ट ही नहीं हैं । तुम कितनी नई-नई बातें सुनते हो । तो अब इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है । बाप कहते हैं जितना पावन बनेंगे तो ऊंच पद मिलेगा । सारी याद के यात्रा की बाजी है । यात्रा पर भी मनुष्य पवित्र रहते हैं फिर जब लौट आते हैं तो फिर अपवित्र बनते हैं । तुम बच्चों को खुशी बहुत होनी चाहिए । जानते हो बेहद के बाप से हम बेहद स्वर्ग का वर्सा लेते हैं तो उनकी श्रीमत पर चलना है । बाप की याद से ही सतोप्रधान बनना है । 63 जन्मों की कट चढ़ी हुई है । वह इस जन्म में उतारनी है, और कोई तकलीफ नहीं है । विष पीने की जो भूख लगती है, वह छोड़ देनी है, उनका तो ख्याल भी न करो | बाप कहते हैं इन विकारों से ही तुम जन्म- जन्मान्तर दु:खी हुए हो । कुमारियों पर तो बहुत तरस पड़ता है । बाइसकोप में जाने से ही खराब हो पड़ते हैं, इससे ही हेल में चले जाते हैं । भल बाबा कोई को कहते हैं देखने में हर्जा नहीं है, परन्तु तुमको देख और भी जाने लग पड़ेंगे इसलिए तुम्हें नहीं जाना है । यह है भागीरथ । भाग्यशाली रथ है ना जो निमित्त बना है-ड्रामा में अपने रथ का लोन देने । तुम समझते हो-बाबा इनमें आते हैं, यह है हुसैन का घोड़ा । तुम सबको हसीन बनाते हैं । बाप खुद हसीन है, परन्तु रथ यह लिया है । ड्रामा में इनका पार्ट ही ऐसा है । अब आत्मायें जो काली बन गई हैं उनको गोल्डन एजड बनाना है ।
बाप सर्वशक्तिमान है या ड्रामा? ड्रामा है फिर उनमें जो एक्टर्स हैं उनमें सर्वशक्तिमान कौन है? शिवबाबा । और फिर रावण । आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य । घड़ी-घड़ी बाप को लिखते हैं हम बाप की याद भूल जाते हैं । उदास हो जाते हैं । अरे तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ फिर तुम उदास क्यों रहते हो! मेहनत तो करनी है, पवित्र बनना है । ऐसे ही तिलक दे देवें क्या! आपेही अपने को राजतिलक देने के लायक बनाना है - ज्ञान और योग से । बाप को याद करते रहो तो तुम आपेही तिलक के लायक बन जायेंगे । बुद्धि में है शिवबाबा हमारा स्वीट बाप, टीचर, सतगुरू है । हमको भी बहुत स्वीट बनाते हैं । तुम जानते हो हम कृष्णपुरी में जरूर जायेंगे । हर 5 हजार वर्ष के बाद भारत स्वर्ग जरूर बनना है । फिर नर्क बनता है । मनुष्य समझते हैं जो धनवान हैं उनके लिए यहाँ ही स्वर्ग है, गरीब नर्क में हैं । परन्तु ऐसा नहीं है । यह है ही नर्क । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. बाइसकोप (सिनेमा) हेल में जाने का रास्ता है, इसलिए बाइसकोप नहीं देखना है । याद की यात्रा से पावन बन ऊंच पद लेना है, इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है ।
2. मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को भी दुःख नहीं देना है । सबके कानों में मीठी-मीठी बातें सुनानी है, सबको बाप की याद दिलानी है । बुद्धियोग एक बाप से जुड़ाना है ।
वरदान:-
किसी भी विकराल समस्या को शीतल बनाने वाले सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि भव !
जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में और ड्रामा में भी समूर्ण निश्चय हो । स्वयं में यदि कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन जाते हैं, इसलिए व्यर्थ संकल्प रूपी कमजोरी के जर्मस अपने अन्दर प्रवेश होने नहीं देना । साथ-साथ जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, हलचल की सीन में भी कल्याण का अनुभव हो, वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबद्धि विजयी बनो तो विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी ।

स्लोगन:- 
जिसका बाप और सेवा से प्यार है उसे परिवार का प्यार स्वतःमिलता है ।

ओम् शान्ति |

Vices to Virtues: 32: संस्कार परिवर्तन

Vices to Virtues: 32: संस्कार परिवर्तन







Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga ( Jwala swaroop) Let us work on one each day.


बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...


पुराने वा अवगुणों का अग्नि संस्कार   : ३२ ..........गिराने की वृत्ति, ठुकराने की भावना ........ बदलकर   मैं आत्मा  परोपकारी हूँ... उपकारी हूँ ...गिरे हुए को तुरंत उठाने वाली  हूँ ......


Cremate our old sanskars 32.......to undermine, dismiss and reject others.......... replace them with being benevolent, immediately uplifting those who have fallen.....


Poorane va avguno ka agni sanskar...32......giraneki vritti, thukraane ki bhavna......badalkar.... mai atma paropkari hun, upkari hun, gire hue ko turant uthane wali hun...


पुराने वा अवगुणों का अग्नि संस्कार   : ३२ ..........गिराने की वृत्ति, ठुकराने की भावना ........ बदलकर   मैं आत्मा  परोपकारी हूँ... उपकारी हूँ ...गिरे हुए को तुरंत उठाने वाली  हूँ ......


मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... गिराने की वृत्ति, ठुकराने की भावना.......अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ गिराने की वृत्ति, ठुकराने की भावना......... के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं आत्मा परोपकारी हूँ... उपकारी हूँ ...गिरे हुए को तुरंत उठाने वाली  हूँ ...... मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ .....  


Cremate our old sanskars 32.......to undermine, dismiss and reject others.......... replace them with being benevolent, immediately uplifting those who have fallen.....


I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  undermining, dismissing and rejecting others......I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of ... undermining, dismissing and rejecting others......... being benevolent, immediately uplifting those who have fallen...........I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...


Poorane va avguno ka agni sanskar...32......giraneki vritti, thukraane ki bhavna......badalkar.... mai atma paropkari hun, upkari hun, gire hue ko turant uthane wali hun...

mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... giraneki vritti, thukraane ki bhavna......avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir giraneki vritti, thukraane ki bhavna...........ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun...mai atma paropkari hun, upkari hun, gire hue ko turant uthane wali hun..mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...

Daily Positive Thoughts: March 04, 2015: Everything You Do

Daily Positive Thoughts: March 04, 2015: Everything You Do






Broadway and West End Classic, “Annie”


Everything You Do


Do everything with love and love everything you do!  From the mundane chores to the projects that really interest you.

Do everything with love, and you're able to accomplish the task with ease, simply because there's no anxiety or tension about what you have to do.

Love everything you do, and you transform work into entertainment.  And when you're enjoying yourself, others will want to be involved in everything you do.




Sharing


Normally there is a tendency to think of what we need and what we have
to acquire. So we tend to think of ourselves alone. We think of
sharing with others only when we have sufficient for ourselves. This
creates expectations from others and there is disappointment when
these expectations are not fulfilled. There are lots of resources in
our lives that we can share with others. The more there is the
consciousness of giving there is the ability to give and share these
inner resources with others. We discover new treasures and use them
for the benefit of all and also for the self. Then there is constant
satisfaction in our lives. There are also constant good wishes that we
receive from others.



The Three Mirrors For Inner Beauty (cont.)

In yesterday's message, we had discussed the first mirror, the mirror of spiritual knowledge. Elaborating further, this mirror will also show you the Supreme Soul and it will remind you about His virtues and actions which will help you check where you stand in comparison to Him in terms of virtues and actions and will influence you to follow him by imbibing those virtues and performing actions in the similar way. Lastly this mirror will remind you of your relationship with the Supreme and forging a deep and personal connection with Him in different ways which will benefit you and others.

The knowledge read every morning will help you see and realize what mistakes you have committed in the last 24 hours while performing actions and also in maintaining a connection with the Supreme and also see what you have done positively in the same regard during the same time, which will encourage you further to do the same in the future. The mirror of knowledge will also help you remain careful for the day ahead and perform actions and experience a relationship with the Supreme based on what you have read. It is a common experience of a lot of people that the spiritual knowledge read in the morning is always what the need of the moment for them is. The spiritual knowledge read is very commonly an exact reflection of the activities and mental state of your last 24 hours and/or something which you require for the coming day for the self, for your relationships, for facing different types of obstacles in your personal and professional life. This is the Law of Spiritual Attraction that works in each one's life, but to different extents. Our consciousness and inner requirements attract towards us the spiritual knowledge of a similar nature.

(To be continued tomorrow ....)



Soul Sustenance


The Five Spiritual and Five Physical Elements (Part 1)

There are various ancient teachings in the East including India which describe the five physical elements - earth, air, water, fire and sky as the five pillars of Creation or the building blocks of Creation. These teachings suggest that every particle of the physical Creation is made of these building blocks. The human body is also made of these five primary elements. These elements need to remain in balance for the Universe to stay in order and the human body to stay in order or good health. Bad health generally means one or more of these elements is out of place. There are various techniques mentioned in these teachings which are used to create this balance, including ancient Indian mantras. The popular ancient Indian Vedic Vaastu science, used by many to build homes even today, also works on creating a balance between these five physical elements.

According to spiritual principles given by the Supreme Being or the Supreme Soul, in the same way, on a spiritual level, the soul also comprises of five original constituent qualities or building blocks or elements– peace, purity, wisdom (or truth), love and joy. When the soul first comes down from the soul world and starts playing its part on the physical world, there is a complete balance of these five qualities in its personality. This is the reason that at the beginning of the world cycle, in the period that we commonly call the Golden Age or Paradise or Satyuga, there is complete happiness, love and peace within the self and even in relationships. The balance of the spiritual elements in the souls, causes the five physical elements earth, air, water, fire and sky also to remain in complete balance; hence in the Golden Age, there is complete physical prosperity and richness; there is no trace of illnesses and natural calamities like earthquakes, floods, etc. Due to the double balance, nature is not only in order but very very beautiful. Even the physical bodies are not only healthy but very beautiful. Even the animals and birds are completely full of all virtues and live in absolute love and harmony with each other. So the balance of the five virtues in souls reflects itself not only on a subtle level i.e. in the personalities and interactions but also on a physical level i.e. in the physical bodies, flora (plants) and fauna (animals), nature in general, etc.

In tomorrow's message, we shall explain the reason for this. 


Message for the day

To have a positive outlook is to remain in peace.

Expression: The more one hears and talks about positive things, the more one is able to be free from negative influences. The environment today doesn't give much of a chance for hearing to positivity because of the continuous flow of news about conflict and violence. But changing the theme of conversation and talking about what life gives is to change the responses to the world in a more positive way.

Experience: When I have a positive outlook, it creates in me hope and enthusiasm for the future. I also have a more positive view of the present reality. I remain in peace, whatever the challenges or negative situations I may have to face. I am able to be in touch with the inner peace and maintain this state of mind under all circumstances.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


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