Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

04-03-15 प्रातः मुरली



04-03-15      प्रातः मुरली      ओम् शान्ति      “बापदादा”      मधुबन

मीठे बच्चे - तुम बाप के बच्चे मालिक हो, तुमने कोई बाप के पास शरण नहीं ली है, बच्चा कभी बाप की शरण में नहीं जाता
प्रश्न:-   
किस बात का सदा सिमरण होता रहे तो माया तंग नहीं करेगी?
उत्तर:-
हम बाप के पास आये हैं, वह हमारा बाबा भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है परन्तु है निराकार । हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला निराकार बाबा है, यह बुद्धि में सिमरण रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा फिर माया तंग नहीं करेगी ।
ओम् शान्ति |
त्रिमूर्ति बाप ने बच्चों को समझाया है । त्रिमूर्ति बाप है ना । तीनों को रचने वाला वह ठहरा सर्व का बाप क्योंकि ऊंच ते ऊंच वह बाप ही है । बच्चों की बुद्धि में है हम उनके बच्चे हैं । जैसे बाप परमधाम में रहते हैं वैसे हम आत्मायें भी वहाँ की निवासी हैं । बाप ने यह भी समझाया है कि यह ड्रामा है, जो कुछ होता है वह ड्रामा में एक ही बार होता है । बाप भी एक ही बार पढ़ाने आते हैं । तुम कोई शरणागति नहीं लेते हो । यह अक्षर भक्ति मार्ग के हैं - शरण पड़ी मैं तेरे । बच्चा कभी बाप की शरण पड़ता है क्या! बच्चे तो मालिक होते हैं । तुम बच्चे बाप की शरण नहीं पड़े हो । बाप ने तुमको अपना बनाया है । बच्चों ने बाप को अपना बनाया है । तुम बच्चे बाप को बुलाते ही हो कि बाबा आओ, हमको अपने घर ले जाओ अथवा राजाई दो । एक है शान्तिधाम, दूसरा है सुखधाम । सुखधाम है बाप की मिलकियत और दु:खधाम है रावण की मिलकियत । 5 विकारों में फँसने से दु:ख ही दु:ख है । अब बच्चे जानते हैं-हम बाबा के पास आये हैं । वह बाप भी है, शिक्षक भी है परन्तु है निराकार । हम निराकारी आत्माओं को पढ़ाने वाला भी निराकार है । वह है आत्माओं का बाप । यह सदैव बुद्धि में सिमरण होता रहे तो भी खुशी का पारा चढ़े । यह भूलने से ही माया तंग करती है । अभी तुम बाप के पास बैठे हो तो बाप और वर्सा याद आता है । एम ऑबजेक्ट तो बुद्धि में है ना । याद शिवबाबा को करना है । कृष्ण को याद करना तो बहुत सहज है, शिवबाबा को याद करने में ही मेहनत है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । कृष्ण अगर हो, उस पर तो सभी झट फिदा हो जायें । खास मातायें तो बहुत चाहती हैं हमको कृष्ण जैसा बच्चा मिले, कृष्ण जैसा पति मिले । अभी बाप कहते हैं मैं आया हुआ हूँ, तुमको कृष्ण जैसा बच्चा अथवा पति भी मिलेगा अर्थात् इन जैसा गुणवान सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण सुख देने वाला तुमको मिलेगा । स्वर्ग अथवा कृष्णपुरी में सुख ही सुख है । बच्चे जानते हैं यहाँ हम पढ़ते हैं - कृष्णपुरी में जाने के लिए । स्वर्ग को ही सब याद करते हैं ना । कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ फिर तो खुश होना चाहिए, ताली बजानी चाहिए । नर्क से निकलकर स्वर्ग में गया - यह तो बहुत अच्छा हुआ । जब कोई कहे फलाना स्वर्ग पधारा तो बोलो कहाँ से गया? जरूर नर्क से गया । इसमें तो बहुत खुशी की बात है । सबको बुलाकर टोली खिलानी चाहिए । परन्तु यह तो समझ की बात है । वह ऐसे नहीं कहेंगे 21 जन्म के लिए स्वर्ग गया । सिर्फ कह देते हैं स्वर्ग गया । अच्छा, फिर उनकी आत्मा को यहाँ बुलाते क्यों हो? नर्क का भोजन खिलाने? नर्क में तो बुलाना नहीं चाहिए । यह बाप बैठ समझाते हैं, हर बात ज्ञान की है ना । बाप को बुलाते हैं हमको पतित से पावन बनाओ तो जरूर पतित शरीरों को खत्म करना पड़े । सब मर जायेंगे फिर कौन किसके लिए रोयेंगे? अब तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ जायेंगे अपने घर । अभी यह प्रैक्टिस कर रहे हैं कि कैसे शरीर छोड़ें । ऐसा पुरूषार्श दुनिया में कोई करते होंगे! तुम बच्चों को यह ज्ञान है कि हमारा यह पुराना शरीर है । बाप भी कहते हैं मैं पुरानी जुत्ती का लोन लेता हूँ । ड्रामा में यह रथ ही निमित्त बना हुआ है । यह बदल नहीं सकता । इनको फिर तुम 5 हजार वर्ष बाद देखेंगे । ड्रामा का राज समझ गये ना । यह बाप के सिवाए और कोई में ताकत नहीं जो समझा सके । यह पाठशाला बड़ी वन्डरफुल है, यहाँ बूढ़े भी कहेंगे हम जाते हैं भगवान की पाठशाला में - भगवान भगवती बनने । अरे बुढ़िया थोड़ेही कभी स्कूल पढ़ती है । तुमसे कोई पूछे तुम कहाँ जाते हो? बोलो, हम जाते हैं ईश्वरीय युनिवर्सिटी में । वहाँ हम राजयोग सीखते हैं । अक्षर ऐसे सुनाओ जो वह चक्रित हो जायें । बूढ़े भी कहेंगे हम जाते हैं भगवान की पाठशाला में । यहाँ यह वन्डर है, हम भगवान के पास पढ़ने जाते हैं । ऐसा और कोई कह न सके । कहेंगे निराकार भगवान फिर कहाँ से आया? क्योंकि वह तो समझते हैं भगवान नाम- रूप से न्यारा है । अभी तुम समझ से बोलते हो । हर एक मूर्ति के आक्यूपेशन को तुम जानते हो । बुद्धि में यह पक्का है कि ऊंच ते ऊंच शिवबाबा हैं, जिसकी हम सन्तान हैं । अच्छा, फिर सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, तुम सिर्फ कहने मात्र नहीं कहते हो । तुम तो जिगरी जानते हो कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना कैसे करते हैं । सिवाए तुम्हारे और कोई भी बायोग्राफी बता न सके । अपनी बायोग्राफी ही नहीं जानते हैं तो औरों की कैसे जानेंगे? तुम अभी सब कुछ जान गये हो । बाप कहते हैं मैं जो जानता हूँ सो तुम बच्चों को समझाता हूँ । राजाई भी बाप बिगर तो कोई दे न सके । इन लक्ष्मी-नारायण ने कोई लड़ाई से यह राज्य नहीं पाया है । वहां लड़ाई होती नहीं । यहाँ तो कितना लड़ते-झगड़ते हैं । कितने ढेर मनुष्य हैं । अभी तुम बच्चों के दिल अन्दर यह आना चाहिए कि हम बाप से दादा द्वारा वर्सा पा रहे हैं । बाप कहते हैं-मामेकम याद करो, ऐसे नहीं कहते कि जिसमें प्रवेश किया है उनको भी याद करो । नहीं, कहते हैं मामेकम् याद करो । वो सन्यासी लोग अपना फोटो नाम सहित देते हैं । शिवबाबा का फोटो क्या निकालेंगे? बिन्दी के ऊपर नाम कैसे लिखेंगे! बिन्दी पर शिवबाबा नाम लिखेंगे तो बिन्दी से भी नाम बड़ा हो जायेगा । समझ की बातें हैं ना । तो बच्चों को बड़ा खुश होना चाहिए कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं । आत्मा पढ़ती है ना । संस्कार आत्मा ही ले जाती है । अभी बाबा आत्मा में संस्कार भर रहे हैं । वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है । जो बाप तुमको सिखलाते हैं तुम औरों को भी यह सिखलाओ, सृष्टि चक्र को याद करो और कराओ । जो उनमें गुण हैं वह बच्चों को भी देते हैं । कहते हैं मैं ज्ञान का सागर, सुख का सागर हूँ । तुमको भी बनाता हूँ । तुम भी सभी को सुख दो । मन्सा, वाचा, कर्मणा कोई को भी दुःख न दो । सबके कान में यही मीठी-मीठी बात सुनाओ कि शिवबाबा को याद करो तो याद से विकर्म विनाश होंगे । सबको यह सन्देश देना है कि बाबा आया है, उनसे यह वर्सा पाओ । सबको यह सन्देश देना पड़े । आखरीन अखबार वाले भी डालेंगे । यह तो जानते हो अन्त में सब कहेंगे अहो प्रभू तेरी लीला आप ही सबको सद्गति देते हो । दु:ख से छुड़ाए सबको शान्तिधाम में ले जाते हो । यह भी जादूगरी ठहरी ना । उन्हों की है अल्पकाल के लिए जादूगरी । यह तो मनुष्य से देवता बनाते हैं, 21 जन्म के लिए । इस मनमनाभव के जादू से तुम लक्ष्मी- नारायण बनते हो । जादूगर, रत्नागर यह सब नाम शिवबाबा पर हैं, न कि ब्रह्मा पर । यह ब्राह्मण - ब्राह्मणियां सब पढ़ते हैं । पढ़कर फिर पढ़ाते हैं । बाबा अकेला थोड़ेही पढ़ाते हैं । बाबा तुमको इक्ट्ठा पढ़ाते हैं, तुम फिर औरों को पढ़ाते हो । बाप राजयोग सिखला रहे हैं । वही बाप रचयिता है, कृष्ण तो रचना है ना । वर्सा रचयिता से मिलता है, न कि रचना से । कृष्ण से वर्सा नहीं मिलता है । विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी-नारायण हैं । छोटेपन में राधे-कृष्ण हैं । यह बातें भी पक्का याद कर लो । बूढ़े भी तीखे चले जाएं तो ऊंच पद पा सकते हैं । बुढ़ियों का फिर थोड़ा ममत्व भी रहता है । अपने ही रचना रूपी जाल में फँस पड़ती हैं । कितनों की याद आ जाती है, उनसे बुद्धियोग तोड़ और फिर एक बाप से जोड़ना इसमें ही मेहनत है । जीते जी मरना है । बुद्धि में एक बार तीर लग गया तो बस । फिर युक्ति से चलना होता है । ऐसे भी नहीं कोई से बातचीत नहीं करनी है । गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, सबसे बातचीत करो । उनसे भी रिश्ता भल रखो । बाप कहते हैं-चैरिटी बिगन्स एट होम । अगर रिश्ता ही नहीं रखेंगे तो उनका उद्धार कैसे करेंगे? दोनों से तोड़ निभाना है । बाबा से पूछते हैं-शादी में जाऊ? बाबा कहेंगे क्यों नहीं जाओ । बाप सिर्फ कहते हैं काम महाशत्रु है, उस पर जीत पानी है तो तुम जगत जीत बन जायेंगे । निर्विकारी होते ही हैं सतयुग में । योगबल से पैदाइस होती है । बाप कहते हैं निर्विकारी बनो । एक तो यह पक्का करो कि हम शिवबाबा के पास बैठे हैं, शिवबाबा हमको 84 जन्मों की कहानी बताते हैं । यह सृष्टि चक्र फिरता रहता है । पहले- पहले देवी-देवतायें आते हैं सतोप्रधान, फिर पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बनते हैं । दुनिया पुरानी पतित बनती है । आत्मा ही पतित है ना । यहाँ की कोई चीज में सार नहीं है । कहाँ सतयुग के फल-फूल कहॉ यहाँ के! वहाँ कभी खट्टी बासी चीज होती नहीं । तुम वहाँ का साक्षात्कार भी कर आते हो । तुम्हारी दिल होती है यह फल-फूल ले जायें । परन्तु यहाँ आते हो तो वह गुम हो जाता । यह सब साक्षात्कार कराए बच्चों को बाप बहलाते हैं । यह है रूहानी बाप, जो तुमको पढ़ाते हैं । इस शरीर द्वारा पढ़ती आत्मा है, न कि शरीर । आत्मा को शुद्ध अभिमान है-मैं भी यह वर्सा ले रहा हूँ, स्वर्ग का मालिक बन रहा हूँ । स्वर्ग में तो सब जायेंगे परन्तु सबका नाम तो लक्ष्मी-नारायण नहीं होगा ना । वर्सा आत्मा पाती है । यह ज्ञान और कोई दे न सके सिवाए बाप के । यह तो युनिवर्सिटी है, इसमें छोटे बच्चे, जवान सब पढ़ते हैं । ऐसा कॉलेज कभी देखा? वह मनुष्य से बैरिस्टर डॉक्टर आदि बनते हैं । यहाँ तुम मनुष्य से देवता बनते हो ।
तुम जानते हो-बाबा हमारा टीचर, सतगुरू है, वह हमको साथ ले जायेंगे । फिर हम पढ़ाई अनुसार आकर सुखधाम में पद पायेंगे । बाप तो कभी तुम्हारे सतयुग को देखता भी नहीं । शिवबाबा पूछते हैं-हम सतयुग देखते हैं? देखना तो शरीर से होता है, उनको अपना शरीर तो है नहीं, तो कैसे देखेंगे? यहाँ तुम बच्चों से बात करते हैं, देखते हैं यह सारी पुरानी दुनिया है । शरीर बिगर तो कुछ देख न सकें । बाप कहते हैं मैं पतित दुनिया पतित शरीर में आकर तुमको पावन बनाता हूँ । मैं स्वर्ग देखता भी नहीं हूँ । ऐसे नहीं कि कोई के शरीर से छिप कर देख आऊं । नहीं, पार्ट ही नहीं हैं । तुम कितनी नई-नई बातें सुनते हो । तो अब इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है । बाप कहते हैं जितना पावन बनेंगे तो ऊंच पद मिलेगा । सारी याद के यात्रा की बाजी है । यात्रा पर भी मनुष्य पवित्र रहते हैं फिर जब लौट आते हैं तो फिर अपवित्र बनते हैं । तुम बच्चों को खुशी बहुत होनी चाहिए । जानते हो बेहद के बाप से हम बेहद स्वर्ग का वर्सा लेते हैं तो उनकी श्रीमत पर चलना है । बाप की याद से ही सतोप्रधान बनना है । 63 जन्मों की कट चढ़ी हुई है । वह इस जन्म में उतारनी है, और कोई तकलीफ नहीं है । विष पीने की जो भूख लगती है, वह छोड़ देनी है, उनका तो ख्याल भी न करो | बाप कहते हैं इन विकारों से ही तुम जन्म- जन्मान्तर दु:खी हुए हो । कुमारियों पर तो बहुत तरस पड़ता है । बाइसकोप में जाने से ही खराब हो पड़ते हैं, इससे ही हेल में चले जाते हैं । भल बाबा कोई को कहते हैं देखने में हर्जा नहीं है, परन्तु तुमको देख और भी जाने लग पड़ेंगे इसलिए तुम्हें नहीं जाना है । यह है भागीरथ । भाग्यशाली रथ है ना जो निमित्त बना है-ड्रामा में अपने रथ का लोन देने । तुम समझते हो-बाबा इनमें आते हैं, यह है हुसैन का घोड़ा । तुम सबको हसीन बनाते हैं । बाप खुद हसीन है, परन्तु रथ यह लिया है । ड्रामा में इनका पार्ट ही ऐसा है । अब आत्मायें जो काली बन गई हैं उनको गोल्डन एजड बनाना है ।
बाप सर्वशक्तिमान है या ड्रामा? ड्रामा है फिर उनमें जो एक्टर्स हैं उनमें सर्वशक्तिमान कौन है? शिवबाबा । और फिर रावण । आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य । घड़ी-घड़ी बाप को लिखते हैं हम बाप की याद भूल जाते हैं । उदास हो जाते हैं । अरे तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ फिर तुम उदास क्यों रहते हो! मेहनत तो करनी है, पवित्र बनना है । ऐसे ही तिलक दे देवें क्या! आपेही अपने को राजतिलक देने के लायक बनाना है - ज्ञान और योग से । बाप को याद करते रहो तो तुम आपेही तिलक के लायक बन जायेंगे । बुद्धि में है शिवबाबा हमारा स्वीट बाप, टीचर, सतगुरू है । हमको भी बहुत स्वीट बनाते हैं । तुम जानते हो हम कृष्णपुरी में जरूर जायेंगे । हर 5 हजार वर्ष के बाद भारत स्वर्ग जरूर बनना है । फिर नर्क बनता है । मनुष्य समझते हैं जो धनवान हैं उनके लिए यहाँ ही स्वर्ग है, गरीब नर्क में हैं । परन्तु ऐसा नहीं है । यह है ही नर्क । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. बाइसकोप (सिनेमा) हेल में जाने का रास्ता है, इसलिए बाइसकोप नहीं देखना है । याद की यात्रा से पावन बन ऊंच पद लेना है, इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है ।
2. मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को भी दुःख नहीं देना है । सबके कानों में मीठी-मीठी बातें सुनानी है, सबको बाप की याद दिलानी है । बुद्धियोग एक बाप से जुड़ाना है ।
वरदान:-
किसी भी विकराल समस्या को शीतल बनाने वाले सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि भव !
जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में और ड्रामा में भी समूर्ण निश्चय हो । स्वयं में यदि कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन जाते हैं, इसलिए व्यर्थ संकल्प रूपी कमजोरी के जर्मस अपने अन्दर प्रवेश होने नहीं देना । साथ-साथ जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, हलचल की सीन में भी कल्याण का अनुभव हो, वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबद्धि विजयी बनो तो विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी ।

स्लोगन:- 
जिसका बाप और सेवा से प्यार है उसे परिवार का प्यार स्वतःमिलता है ।

ओम् शान्ति |

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