Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

Vices to Virtues: 83: संस्कार परिवर्तन

Vices to Virtues: 83: संस्कार परिवर्तन




Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga (Jwala swaroop) Let us work on one each day.


बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...



पुराने वा अवगुणो का अग्नि .... # ८३ ...... अपने हाथ में लाँ उठाना .........बदलकर....  मैं लवफुल रहमदिल आत्मा, साक्षी होकर, अपने अच्छे वायब्रेशन से मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस पर तत्पर रहने वाला, विशालबुद्धि वाला मास्टर दाता हूँ...


cremate our old sanskars  # 83....taking law in one’s own hands....... replace them by ... I, the love-full merciful soul, the detached observer remaining engaged in the service of changing human beings into deities with my good vibrations, am a  master bestower with a broad and unlimited intellect...


Poorane va avguno ka agni sanskar... # 83   ........... apne haath men lo oothaana  ......badalkar.... mai lavful rahamdil atma  sakshi hokar apne achchhe vibrations se manushya ko devta banaane ki sarvis par tatpar rahnewala, vishaal buddhi mastar data hun.....



पुराने वा अवगुणो का अग्नि .... # ८३ ...... अपने हाथ में लाँ उठाना .........बदलकर....  मैं लवफुल रहमदिल आत्मा, साक्षी होकर, अपने  अच्छे वायब्रेशन से मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस पर तत्पर रहने वाला, विशालबुद्धि वाला मास्टर दाता हूँ...


मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... अपने हाथ में लाँ उठाना.................अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ अपने हाथ में लाँ उठाना........................ के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं लवफुल रहमदिल आत्मा, साक्षी होकर, अपने  अच्छे वायब्रेशन से मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस पर तत्पर रहने वाला, विशालबुद्धि वाला मास्टर दाता हूँ....  मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ ...



cremate our old sanskars  # 83....taking law in one’s own hands....... replace them by ... I, the love-full merciful soul, the detached observer remaining engaged in the service of changing human beings into deities with my good vibrations, am a  master bestower with a broad and unlimited intellect...


I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  taking law in one’s own hands..........I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of ... taking law in one’s own hands................. I, the love-full merciful soul, the detached observer remaining engaged in the service of changing human beings into deities with my good vibrations, am a  master bestower with a broad and unlimited intellect..........I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...




Poorane va avguno ka agni sanskar... # 83   ........... apne haath men lo oothaana  ......badalkar.... mai lavful rahamdil atma  sakshi hokar apne achchhe vibrations se manushya ko devta banaane ki sarvis par tatpar rahnewala, vishaal buddhi mastar data hun.....


.......mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke  saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... .......... apne haath men lo oothaana  ...................avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir .......... apne haath men lo oothaana  .....................ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun...mai atma mai lavful rahamdil atma  sakshi hokar apne achchhe vibrations se manushya ko devta banaane ki sarvis par tatpar rahnewala, vishaal buddhi mastar data hun...... mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...

06-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


06-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

 

मीठे बच्चे - तुम्हारा मुख अभी स्वर्ग की तरफ हैतुम नर्क से किनारा कर स्वर्ग की तरफ जा रहे हो,इसलिए बुद्धि का योग नर्क से निकाल दो |” 

प्रश्न:- सबसे ऊंची और सूक्ष्म मंजिल कौन-सी हैउसे पार कौन कर सकते हैं?

उत्तर:- तुम बच्चे स्वर्ग की तरफ मुँह करतेमाया तुम्हारा मुँह नर्क की तरफ फेर देती हैअनेक तूफान लाती हैउन्हीं तूफानों को पार करना - यही है सूक्ष्म मंजिल। इस मंजिल को पार करने के लिए नष्टोमोहा बनना पड़े। निश्चय और हिम्मत के आधार पर इसे पार कर सकते हो। विकारियों के बीच में रहते निर्विकारी हंस बनना - यही है मेहनत।

गीतः निर्बल से लड़ाई बलवान की........ 

ओम् शान्ति।

बच्चे जो सेन्सीबुल हैं वह अर्थ तो अच्छी रीति समझते हैंजिनका बुद्धियोग शान्तिधाम और स्वर्ग तरफ है उन्हों को ही तूफान लगते हैं। बाप तो अभी तुम्हारा मुँह फेरता है। अज्ञानकाल में भी पुराने घर से मुँह फिर जाता है फिर नये घर को याद करते रहते हैं-कब तैयार हो! अभी तुम बच्चों को भी ध्यान में हैकब हमारे स्वर्ग की स्थापना हो फिर सुखधाम में आयेंगे। इस दु:खधाम से तो सबको जाना है। सारी सृष्टि के मनुष्य मात्र को बाप समझाते रहते हैं-बच्चे अभी स्वर्ग के द्वार खुल रहे हैं। अब तुम्हारा बुद्धियोग स्वर्ग तरफ जाना चाहिए। हेविन में जाने वाले को कहा जाता है पवित्र। हेल में जाने वाले को अपवित्र कहा जाता है। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी बुद्धियोग हेविन तरफ लगाना है। समझो बाप का बुद्धियोग हेविन तरफ और बच्चे का हेल तरफ है तो दोनों एक घर में रह कैसे सकते। हंस और बगुले इकट्ठे रह न सकें। बहुत मुश्किल है। उनका बुद्धियोग है ही 5 विकारों तरफ। वह हेल तरफ जाने वाला,वह हेविन तरफ जाने वालादोनों इकट्ठे रह न सकें। बड़ी मंजिल है। बाप देखते हैं हमारे बच्चे का मुँह हेल तरफ हैहेल तरफ जाने बिगर रह नहीं सकताफिर क्या करना चाहिए! जरूर घर में झगड़ा चलेगा। कहेंगे यह भी कोई ज्ञान है। बच्चा शादी न करे. . .! गृहस्थ व्यवहार में रहते तो बहुत हैं ना। बच्चे का मुख हेल तरफ हैवह चाहते हैं नर्क में जायें। बाप कहते नर्क तरफ बुद्धियोग न रखो। परन्तु बाप का भी कहना मानते नहीं। फिर क्या करना पड़ेइसमें बड़ी नष्टोमोहा स्थिति चाहिए। यह सारा ज्ञान आत्मा में है। बाप की आत्मा कहती है इनको हमने क्रियेट किया हैमेरा कहना नहीं मानते हैं। कोई तो ब्राह्मण भी बने हैं फिर बुद्धि चली जाती है हेल तरफ। तो वह जैसे एकदम रसातल में चले जायेंगे।

बच्चों को समझाया गया है - यह है ज्ञान सागर की दरबार। भक्ति मार्ग में इन्द्र की दरबार भी गाई जाती है। पुखराज परीनीलम परीमाणिक परीबहुत ही नाम रखे हुए हैं क्योंकि ज्ञान डांस करती हैं ना। किस्म-किस्म की परियाँ हैं। वह भी पवित्र चाहिए। अगर कोई अपवित्र को ले आये तो दण्ड पड़ जायेगा। इसमें बहुत ही पावन चाहिए। यह मंजिल बहुत ऊंची है इसलिए झाड़ जल्दी-जल्दी वृद्धि को नहीं पाता है। बाप जो ज्ञान देते हैं उसे कोई जानते नहीं। शास्त्रों में भी यह ज्ञान नहीं है इसलिए थोड़ा निश्चय हुआ फिर माया एक ही थप्पड़ से गिरा देती है। तूफान है ना। छोटा सा दीवा उनको तो तूफान एक ही थपेड़ से गिरा देता है। दूसरों को विकार में गिरते देख खुद भी गिर पड़ते हैं। इसमें तो बड़ी बुद्धि चाहिए समझने की। गाया भी हुआ है अबलाओं पर अत्याचार हुए। बाप समझाते हैं-बच्चेकाम महाशत्रु हैइससे तो तुम्हें बहुत नफरत आनी चाहिए। बाबा बहुत नफरत दिलाते हैं अभीआगे यह बात नहीं थी। हेल तो अभी है ना। द्रोपदी ने पुकारा हैयह अभी की ही बात है। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। फिर भी बुद्धि में बैठता नहीं।

यह गोले का चित्र बहुत अच्छा है - गेट वे टू हेविन। इस गोले के चित्र से बहुत अच्छी रीति समझ सकेंगे। सीढ़ी से भी इतना नहीं जितना इनसे समझेंगे। दिन-प्रतिदिन करेक्शन भी होती जाती है। बाप कहते हैं आज तुमको बिल्कुल ही नया डायरेक्शन देता हूँ। पहले से थोड़ेही सब डायरेक्शन मिलते हैं। यह कैसी दुनिया हैइसमें कितना दु:ख है। कितना बच्चों में मोह रहता है। बच्चा मर जाता है तो एकदम दीवाने हो जातेअथाह दु:ख है। ऐसे नहीं कि साहूकार हैतो सुखी है। अनेक प्रकार की बीमारियाँ लगी रहती हैं। फिर हॉस्पिटल्स में पड़े रहते हैं। गरीब जनरल वार्ड में पड़े रहते हैंसाहूकार को अलग स्पेशल रूम मिल जाता है। परन्तु दु:ख तो जैसा साहूकार को वैसा गरीब को होता है। सिर्फ उनको जगह अच्छी मिलती है। सम्भाल अच्छी होती है। अभी तुम बच्चे जानते हो हमको बाप पढ़ा रहे हैं। बाप ने अनेक बार पढ़ाया है। अपनी दिल से पूछना चाहिए हम पढ़ते हैं वा नहींकितने को पढ़ाते हैंअगर पढ़ायेंगे नहीं तो क्या पद मिलेगा! रोज रात को अपना चार्ट देखो - आज किसको दु:ख तो नहीं दियाश्रीमत कहती है - कोई को दु:ख न दो और सबको रास्ता बताओ। जो हमारा भाती होगा उनको झट टच होगा। इसमें बर्तन चाहिए सोने काजिसमें अमृत ठहरे। जैसे कहते हैं ना - शेरणी के दूध के लिए सोने का बर्तन चाहिए क्योंकि उसका दूध बहुत भारी ताकत वाला होता है। उनका बच्चों में मोह रहता है। कोई को देखा तो एकदम उछल पड़ेगी। समझेगी बच्चे को मार न डाले। यहाँ भी बहुत हैं जिनका पतिबच्चों आदि में मोह रहता है। अभी तुम बच्चे जानते हो स्वर्ग का गेट खुलता है। कृष्ण के चित्र में बड़ा क्लीयर लिखा हुआ है। इस लड़ाई के बाद स्वर्ग के गेट्स खुलते हैं। वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी सब मुक्तिधाम में चले जाते हैं। सजायें बहुत खानी पड़ती हैं। जो भी पाप कर्म किये हैंएक-एक जन्म का साक्षात्कार करातेसजायें खाते रहेंगे। फिर पाई पैसे का पद पा लेंगे। याद में न रहने के कारण विकर्म विनाश नहीं होते हैं।

कई बच्चे हैं जो मुरली भी मिस कर लेते हैंबहुत बच्चे इसमें लापरवाह रहते हैं। समझते हैं हमने नहीं पढ़ी तो क्या हुआ! हम तो पार हो गये हैं। मुरली की परवाह नहीं करते हैं। ऐसे देह-अभिमानी बहुत हैं,वह अपना ही नुकसान करते हैं। बाबा जानते हैं इसलिए यहाँ जब आते हैंतो भी पूछता हूँबहुत मुरलियाँ नहीं पढ़ी होंगी! पता नहीं उनमें कोई अच्छी प्वाइंट्स हों। प्वाइंट्स तो रोज निकलती हैं ना। ऐसे भी बहुत सेन्टर्स पर आते हैं। परन्तु धारणा कुछ नहींज्ञान नहीं। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो पद थोड़ेही मिलेगा। सत बापसत टीचर की ग्लानि व्ाराने से कभी ठौर पा न सकें। परन्तु सब तो राजायें नहीं बनेंगे। प्रजा भी बनती है। नम्बरवार मर्तबे होते हैं ना। सारा मदार याद पर हैजिस बाप से विश्व का राज्य मिलता हैउनको याद नहीं कर सकते। तकदीर में ही नहीं है तो फिर तदबीर भी क्या करेंगे। बाप तो कहते हैं याद की यात्रा से ही पाप भस्म होंगेतो पुरूषार्थ करना चाहिए ना। बाबा कोई ऐसे भी नहीं कहते कि खाना पीना नहीं खाओ। यह कोई हठयोग नहीं है। चलते-फिरते सब काम करतेजैसे आशिक माशूक को याद करते हैंऐसे याद में रहो। उन्हों का नाम-रूप का प्यार होता है। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक कैसे बनेंकिसको भी पता नहीं है। तुम तो कहते हो कल की बात है। यह राज्य करते थेमनुष्य तो लाखों वर्ष कह देते हैं। माया ने मनुष्यों को बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि बना दिया है। अभी तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनते हो। पारसनाथ का मन्दिर भी है। परन्तु वह कौन हैयह कोई नहीं जानते। मनुष्य बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं। अब बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं। फिर हर एक की बुद्धि पर है। पढ़ाने वाला तो एक ही हैपढ़ने वाले ढेर होते जायेंगे। गली-गली में तुम्हारा स्कूल हो जायेगा। गेट वे टू हेविन। मनुष्य एक भी नहीं जो समझे कि हम हेल में हैं। बाप समझाते हैं सब पुजारी हैं। पूज्य होते ही हैं सतयुग में। पुजारी होते हैं कलियुग में। मनुष्य फिर समझते भगवान ही पूज्यभगवान ही पुजारी बनते हैं। आप ही भगवान होआप ही यह सब खेल करते हो। तुम भी भगवानहम भी भगवान। कुछ भी समझते नहीं हैंयह है ही रावण राज्य। तुम क्या थेअब क्या बनते हो। बच्चों को बड़ा नशा रहना चाहिए। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पुण्य आत्मा बन जायेंगे।

बाप बच्चों को पुण्य आत्मा बनने की युक्ति बताते हैं - बच्चेइस पुरानी दुनिया का अभी अन्त है। मैं अभी डायरेक्ट आया हुआ हूँयह है पिछाड़ी का दानएकदम सरेन्डर हो जाओ। बाबायह सब आपका है। बाप तो देने के लिए ही कराते हैं। इनका कुछ भविष्य बन जाए। मनुष्य ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैंवह है इनडायरेक्ट। उनका फल दूसरे जन्म में मिलता है। यह भी ड्रामा में नूँध है। अभी तो मैं हूँ डायरेक्ट। अभी तुम जो करेंगे उनका रिटर्न पद्मगुणा मिलेगा। सतयुग में तो दान-पुण्य आदि की बात नहीं होती। यहाँ कोई के पास पैसे हैं तो बाबा कहेंगे अच्छातुम जाकर सेन्टर खोलो। प्रदर्शनी बनाओ। गरीब हैं तो कहेंगे अच्छाअपने घर में ही सिर्फ बोर्ड लगा दो-गेट वे टू हेविन। स्वर्ग और नर्क है ना। अभी हम नर्कवासी हैंयह भी कोई समझते नहीं हैं। अगर स्वर्ग पधारा तो फिर उनको नर्क में क्यों बुलाते हो। स्वर्ग में थोड़ेही कोई कहेगा स्वर्ग पधारा। वह तो है ही स्वर्ग में। पुनर्जन्म स्वर्ग में ही मिलता है। यहाँ पुनर्जन्म नर्क में ही मिलता है। यह बातें भी तुम समझा सकते हो। भगवानुवाच - मामेकम् याद करो क्योंकि वही पतित-पावन हैमुझे याद करो तो तुम पुजारी से पूज्य बन जायेंगे। भल स्वर्ग में सुखी तो सभी होंगे परन्तु नम्बरवार मर्तबे होते हैं। बहुत बड़ी मंजिल है। कुमारियों को तो बहुत सर्विस का जोश आना चाहिए। हम भारत को स्वर्ग बनाकर दिखायेंगे। कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे अर्थात् 21 जन्म लिए उद्धार कर सकती है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) इस पुरानी दुनिया का अन्त हैबाप डायरेक्ट आया है तो एकदम सरेन्डर हो जाना हैबाबा यह सब आपका है. . . इस युक्ति से पुण्यात्मा बन जायेंगे।

2) मुरली कभी भी मिस नहीं करना हैमुरली में लापरवाह नहीं रहना है। ऐसे नहींहमने नहीं पढ़ी तो क्या हुआ। हम तो पार हो गये हैं। नहीं। यह देह-अभिमान है। मुरली जरूर पढ़नी है।

वरदान:- भिन्नता को मिटाकर एकता लाने वाले सच्चे सेवाधारी भव

ब्राह्मण परिवार की विशेषता है अनेक होते भी एक। आपकी एकता द्वारा ही सारे विश्व में एक धर्म,एक राज्य की स्थापना होती है इसलिए विशेष अटेन्शन देकर भिन्नता को मिटाओ और एकता को लाओ तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी। सेवाधारी स्वयं प्रति नहीं लेकिन सेवा प्रति होते हैं। स्वयं का सब कुछ सेवा प्रति स्वाहा करते हैंजैसे साकार बाप ने सेवा में हड्डियां भी स्वाहा की ऐसे आपकी हर कर्मेन्द्रिय द्वारा सेवा होती रहे।

स्लोगन:- परमात्म प्यार में खो जाओ तो दु:खों की दुनिया भूल जायेगी।

 

Daily Positive Thoughts: May 06, 2015: Overcome Overwhelm

Daily Positive Thoughts: May 06, 2015: Overcome Overwhelm





Bruce Irons is an American regularfoot professional surfer from Hanalei, Kauai


Overcome Overwhelm

When you keep thinking about having too much to do in
too little time, you can end up feeling overwhelmed. 
Overwhelm clouds the mind, drains the energy and, as a result, not much gets done.

When overwhelm happens, remind yourself: I don't have to live in a state of overwhelm.  Overcome overwhelm by rethinking: I have exactly the right amount of time to do what there is to do.



Appreciation


When I appreciate the Higher Power, the truth, myself as well as other
human beings then, in effect I have made the commitment to
transforming my life. Appreciating others, appreciating nature,
appreciating my fortune, the blessings of circumstances, the value in
the lessons of life (especially those that appear to be painful and of
loss) is the result of understanding the secrets of this eternal drama
of life. Appreciate what you see now and that becomes an eternal
moment; disapprove of it and you kill it. Appreciate each second in
this way, and then your life will be filled with unlimited moments of
beauty and love.



The Relationship Between My Conscience And Intellect

To act from a state of truth, it is important to realize the relationship between my intellect and conscience and what role these two play in experiencing this state of truth in my thoughts, words and actions. The quality of my thoughts, words and actions is based on the quality of my intellect and conscience. There are three different stages of the intellect conscience relationship.

* The first stage is one in which my conscience and my intellect, both are so pure and transparent that whatever is right and true is naturally brought into my thoughts, words and actions and nothing negative or impure manages to enter into my thoughts, words and actions. 

* The second stage is one in which my conscience acknowledges that which is the truth, but the intellect does not have the strength to be able to bring the truth into practical. The conscience tells me one thing, but my intellect pulls me elsewhere, and it overpowers me. I do what I know I shouldn't.

* The third stage is one in which my conscience is not clean enough or aware enough to acknowledge the truth so the question of it influencing the intellect to bring the truth into practical does not arise. As a result my intellect, which is not at all backed by the conscience in this state, takes complete control of me. I do what I shouldn't and I am not even aware of it. 

When my intellect overpowers my conscience repeatedly, my conscience loses its influence on my intellect. As a result the conscience keeps weakening until its voice is stifled or silenced. As a result of that, I can then no longer discriminate between truth and falsehood. I will feel that there are no fixed ways of defining right and wrong, that each has their own judgment or definition of truth and falsehood. True spiritual knowledge, which gets stored in the intellect, and the experience of meditation, which purifies the intellect as well as my conscience, both together, make me aware of the definition as well as give me an experience of what is the truth and what is false, what is right and what is wrong. As a result of that, I am able to maintain the first stage of the intellect conscience relationship very easily in my day-to-day actions.


Soul Sustenance


Absorbing Spiritual Light - Part 3

Continuing from yesterday’s message, we should not keep the vices bottled up inside us like prisoners. Prisoners are always plotting to escape. If we change them into our friends they can help us. For example, the energy required to be stubborn is almost the same as that required to be determined except that one is positive and the other negative. The soul learns to transfer such energy. Anger becomes tolerance. Greed can be transformed into contentment. Arrogance, or the respect for false identity, can become self-respect. Attachment can be changed into pure love.

The more I inculcate the Supreme Soul or God’s virtues, the closer I feel to Him, but if I allow inner disturbances due to any vice, my high stage is grounded. All the power stored up until that moment will leak away. I must recognize that I really do not like being body-conscious. As I wish for higher experiences I choose to live the life of a meditator with purity in thought, word and action. Obstructions come within and without, but through my connection with God I am drawing so much power so as to remain unaffected. This needs soul-consciousness. So in discarding the rubbish of the vices I have gathered over many births, I become my original form and maintain it through my closeness or companionship with God.


Message for the day


True detachment gives a chance for others to grow.

Expression: Where there is detachment there is the ability to let go. There is also an equal amount of love, but along with it is the ability to give others an opportunity to be themselves. One's own attitude or expectations don't colour the perception and others get a chance to express themselves easily and naturally.

Experience: When I am detached, I am also loving. I am able to watch with inner happiness all that life brings into each one's lives. Neither do I take over other peoples' lives and feel disappointed when things go wrong, nor do I leave them to their fate. I am able to see their inner capabilities and get each one to become self-reliant.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


Om Shanti ! Sakar Murli May 06, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli May 06, 2015

Essence: Sweet children, your faces are now towards heaven. You are stepping away from the shores of hell (nark) and going to heaven (swarg). Therefore, remove your intellects' yoga from hell.

Question: What is the highest and most subtle (sukshm) destination? Who can reach it?

Answer: You children turn your faces to heaven and Maya turns your faces towards hell; she brings many storms. You have to overcome all of those storms; this is your subtle destination. In order to reach your destination, you have to become destroyers of attachment (nashtomoha) . On the basis of your faith and courage you can overcome this. While living amongst people who indulge in vice, your effort is to become a swan free from vices (nirvikaari hans).

Song: This is the battle of the weak with the powerful. This is the story of the flame and the storms. (nirbal se ladaai balwaaln ki; ye kahani hai diye aur toofaan ki)

Om shanti.

Children who are sensible understand the meaning of this song very well. Storms only come to those whose intellects' yoga is facing the land of peace and heaven. The Father is now turning your faces to heaven. On the path of ignorance, too, your faces turn away from your old home and you remember your new home; you wonder when it will be ready. You children are aware when your heaven is to be established so that you can then go to the land of happiness. Everyone has to leave this land of sorrow. The Father explains to all human beings of the whole world: Children, the gates of heaven are now opening. Your intellects' yoga should now be towards heaven. Those who go to heaven are called pure, whereas those who are in hell are called impure. While living at home with your families, your intellects' yoga should be with heaven. For example, if the father's intellect's yoga is with heaven, but the child's intellect has yoga with hell, how would it be possible for them to live in the one home? Swans and storks (hans aur bagule) cannot live together; it would be very difficult. Those whose intellects have yoga with the five vices are the ones who go to hell, whereas you are the ones who go to heaven. The two cannot live together. The destination is very high. When a father sees that the faces of his children are towards hell, that they cannot stop going towards hell, what should he do? There would definitely be quarrelling in the home. The children would ask: What kind of knowledge is this that says I cannot get married? There are many like this who live in a household, where the faces of their children are towards hell. They want to go to hell, even though their father says: Do not keep your intellects' yoga with hell. However, they still do not listen to their father. What should he do then? Your stage needs to be that of a destroyer of attachment. All of this knowledge is in you souls. The soul of the father says: I created him, but he doesn't even listen to me. Even when some become Brahmins, their intellects still go towards hell; they go into the extreme depths of hell. It has been explained to you children that this is the Court of the Ocean of Knowledge (Darbaar of Gyan Sagar). On the path of devotion, the Court of Indra has been remembered. Many names such as Pukhraj pari (topaz), Neelampari (sapphire) and Manekpari (ruby) have been given; they perform the dance of knowledge. There are various types of fairies. They have to remain pure. Anyone who brings someone impure here will be punished. You need to be very pure. The destination here is very high. This is why the tree doesn't grow very quickly. No one knows the knowledge that the Father gives. This knowledge is not mentioned in the scriptures. Because they only have a little faith, Maya just has to slap them once to make them fall down. There are storms. A little flame is blown out by just one gust of a storm. When they see others indulging in vice, they too fall. You have to be very wise to understand all of these things. It is sung: Innocent ones were assaulted. The Father explains: Children, lust is your greatest enemy. Therefore, you should hate it. Baba inspires you to detest it very much. It wasn't like this previously. Hell only exists now. Draupadi's calling for help refers to this time. Even though it has been explained to you so clearly, this doesn't sit in your intellects. This picture of the cycle is very good: "The Gateway to Heaven". People can understand very clearly from the picture of the cycle. They cannot understand as much from the picture of the ladder as they can from this one. Day by day, you receive corrections. The Father says: Today, I give you completely new directions. You cannot receive all the directions together at the beginning. Just look what the world is like now. There is so much sorrow within it. They have so much attachment to their children. If a child dies, they go completely crazy. There is limitless sorrow. It isn't that if they are wealthy, they are happy. There are still many types of illness. They simply lie in a hospital. The poor stay in the general wards, whereas the wealthy have a special room to themselves. However, the wealthy also experience the same pain and sorrow that the poor do. It is just that they have a better room and are looked after better. You children know that the Father is now teaching you. The Father has taught you many times before. Ask your heart: Am I studying or not? How many others do I teach? If you do not teach others, what status would you claim? Check your chart every night and ask yourself: Did I cause anyone sorrow today? Shrimat says: Do not cause anyone sorrow but show the path to everyone. Those who belong to our clan will very quickly be touched by this knowledge. A golden vessel is needed to hold this nectar. It is said that only a golden vessel can hold the milk of a lioness. This is because the milk she gives is very rich and nourishing. A lioness too has a lot of attachment to her children. She would instantly leap up if she sees anyone, because she thinks that they might kill her cubs. Here, too, there are many who have a lot of attachment to their husbands and children. You children know that the gates of heaven are now opening. This is written very clearly in the picture of Krishna: "The gates of heaven will open after this war." There will be very few people there. Everyone else will remain in the land of liberation. A great deal of punishment will have to be experienced. They receive visions of all the sins they have committed in every birth and experience punishment for them. Then they receive a status worth a few pennies. Because they don't stay in remembrance their sins are not absolved. There are many children who even miss hearing the murli. Many children remain careless about this. They think: What does it matter if I don't study it? I have already achieved everything. They don't care about the murli. There are many who are body conscious in this way. They only create a loss for themselves. Baba knows this. Therefore, when you come here, He asks you how many murlis you have not heard. How could you know if there are some very good points in them? There are many points every day. There are many like that who go to a centre but who neither have knowledge nor dharna. How could you receive a status if you don't follow shrimat? You will never claim a status by defaming the true Father and the true Teacher. Not everyone can become a king; subjects still have to be created. Status is numberwise. Everything depends on remembrance. Can you not remember the Father from whom you receive the kingdom of the whole world? If it is not in your fortune, what effort would you then make? The Father says: It is only through the pilgrimage of remembrance that your sins can be burnt away. Therefore, you have to make effort. Baba does not say, "Do not eat or drink". This is not hatha yoga. While walking and moving around and doing everything else, just stay in remembrance of Baba in the same way as a lover remembers her beloved. They have love for their names and forms. No one knows how Lakshmi and Narayan became the masters of the world. You say that it was just a matter of yesterday when they used to rule. However, people mention hundreds of thousands of years. Maya has made the intellects of people completely like stone. From having stone intellects you are now becoming those with divine intellects. There is a temple to the Lord of Divinity. However, no one knows who He is. Human beings are in absolute darkness. The Father now explains very good things to you. Then it depends on the intellect of each one. There is only the one who teaches but there will be many who come here to study. In every street, you will have a school with a board that says: Gateway to Heaven. Not a single human being understands that they are in hell. The Father explains: They are all worshippers. Those who are worthy of worship can only exist in the golden age, whereas worshippers exist in the iron age. People believe that God is worthy of worship and that He then becomes a worshipper. They chant, "Only You are God, and only you perform these wonderful acts. You are God and we too are God." They do not understand anything. This is the kingdom of Ravan. What were you and what are you now becoming? You children should have a lot of intoxication. The Father says: Simply remember Me alone and you will become pure, charitable souls. The Father shows you children ways to become pure, charitable souls. He says: Children, it is now the end of this old world. I have now come here to you directly. You now have to make the final donation. Therefore, surrender everything completely, and say: Baba, all of this is Yours. The Father inspires you to donate so that your future can be created. People donate and perform charity in the name of God. However, that is indirect. They receive the fruit of that in their next birth. That too is fixed in the drama. I have now come here directly. Whatever you do now, you will receive the return of that multimillion-fold. There is no question of making donations or performing charity etc. in the golden age. If someone here has money, Baba says: Achcha, go and open a centre. Go and create an exhibition. If someone is poor, Baba says: Achcha, just put up a board outside your home that says: Gateway to Heaven. There is heaven and hell. At present, you are residents of hell. No one else knows this. If someone has gone to heaven, why do they then call him back into hell? No one in heaven will say that so-and-so has gone to heaven. He would already be in heaven anyway. Therefore, he would take rebirth in heaven. Here, everyone has to take rebirth in hell. Only you can explain these things. God speaks: Constantly remember Me alone. He is the Purifier. He says: Remember Me alone and you will become worthy of worship from a worshipper. Although everyone in heaven is happy, the status there is still numberwise. The destination is very high. You kumaris should have a lot of enthusiasm for doing service and explaining to everyone that you are making Bharat into heaven. A kumari is one who uplifts 21 generations. This means she can uplift others for 21 births. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

 1. This old world is now to end. The Father has come here directly. Therefore, completely surrender yourself and say: Baba, all of this belongs to You. By using this method, you will become a pure, charitable soul (punyaatma).

 2. Never miss a murli. Do not become careless (laaparvaah)  about hearing a murli. Do not think "What does it matter if I don't study a murli. I have already achieved everything". No; that is body consciousness. Definitely study the murli.

Blessing: May you be a true server who finishes diversity (bhinnata) and brings about unity (ekta).

The speciality of the Brahmin family is to be united while there is variety. It is through your unity that one religion and one kingdom is established. Therefore, pay special attention and finish all diversity and bring about unity and you will then be called a true server. A server does not exist just for the self but who exists for service; he sacrifices everything of his for service. Just as sakar Baba sacrificed his bones (haddi) in service, so, let service also continue to happen through your every physical organ.

Slogan: Become lost in God's love (Parmaatm pyaar) and the world of sorrow will be forgotten.

* * *OM SHANTI***

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...