06-05-15 प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारा मुख अभी स्वर्ग की तरफ है, तुम नर्क से किनारा कर स्वर्ग की तरफ जा रहे हो,इसलिए
बुद्धि का योग नर्क से निकाल दो |”
प्रश्न:- सबसे
ऊंची और सूक्ष्म मंजिल कौन-सी है, उसे पार कौन कर सकते
हैं?
उत्तर:- तुम बच्चे
स्वर्ग की तरफ मुँह करते, माया तुम्हारा मुँह नर्क की तरफ फेर देती
है, अनेक तूफान लाती है, उन्हीं
तूफानों को पार करना - यही है सूक्ष्म मंजिल। इस मंजिल को पार करने के लिए
नष्टोमोहा बनना पड़े। निश्चय और हिम्मत के आधार पर इसे पार कर सकते हो। विकारियों
के बीच में रहते निर्विकारी हंस बनना - यही है मेहनत।
गीतः निर्बल से लड़ाई बलवान की........
ओम् शान्ति।
बच्चे जो सेन्सीबुल हैं वह अर्थ तो अच्छी रीति समझते हैं, जिनका बुद्धियोग शान्तिधाम
और स्वर्ग तरफ है उन्हों को ही तूफान लगते हैं। बाप तो अभी तुम्हारा मुँह फेरता
है। अज्ञानकाल में भी पुराने घर से मुँह फिर जाता है फिर नये घर को याद करते रहते
हैं-कब तैयार हो! अभी तुम बच्चों को भी ध्यान में है, कब
हमारे स्वर्ग की स्थापना हो फिर सुखधाम में आयेंगे। इस दु:खधाम से तो सबको जाना
है। सारी सृष्टि के मनुष्य मात्र को बाप समझाते रहते हैं-बच्चे अभी स्वर्ग के
द्वार खुल रहे हैं। अब तुम्हारा बुद्धियोग स्वर्ग तरफ जाना चाहिए। हेविन में जाने
वाले को कहा जाता है पवित्र। हेल में जाने वाले को अपवित्र कहा जाता है। गृहस्थ
व्यवहार में रहते भी बुद्धियोग हेविन तरफ लगाना है। समझो बाप का बुद्धियोग हेविन
तरफ और बच्चे का हेल तरफ है तो दोनों एक घर में रह कैसे सकते। हंस और बगुले इकट्ठे
रह न सकें। बहुत मुश्किल है। उनका बुद्धियोग है ही 5 विकारों तरफ। वह हेल तरफ जाने
वाला,वह हेविन तरफ जाने वाला, दोनों
इकट्ठे रह न सकें। बड़ी मंजिल है। बाप देखते हैं हमारे बच्चे का मुँह हेल तरफ है, हेल तरफ जाने बिगर रह नहीं सकता, फिर क्या करना
चाहिए! जरूर घर में झगड़ा चलेगा। कहेंगे यह भी कोई ज्ञान है। बच्चा शादी न करे. .
.! गृहस्थ व्यवहार में रहते तो बहुत हैं ना। बच्चे का मुख हेल तरफ है, वह चाहते हैं नर्क में जायें। बाप कहते नर्क तरफ बुद्धियोग न रखो। परन्तु
बाप का भी कहना मानते नहीं। फिर क्या करना पड़े? इसमें
बड़ी नष्टोमोहा स्थिति चाहिए। यह सारा ज्ञान आत्मा में है। बाप की आत्मा कहती है
इनको हमने क्रियेट किया है, मेरा कहना नहीं मानते हैं।
कोई तो ब्राह्मण भी बने हैं फिर बुद्धि चली जाती है हेल तरफ। तो वह जैसे एकदम
रसातल में चले जायेंगे।
बच्चों को समझाया गया है - यह है ज्ञान सागर की दरबार। भक्ति मार्ग
में इन्द्र की दरबार भी गाई जाती है। पुखराज परी, नीलम परी, माणिक
परी, बहुत ही नाम रखे हुए हैं क्योंकि ज्ञान डांस करती
हैं ना। किस्म-किस्म की परियाँ हैं। वह भी पवित्र चाहिए। अगर कोई अपवित्र को ले
आये तो दण्ड पड़ जायेगा। इसमें बहुत ही पावन चाहिए। यह मंजिल बहुत ऊंची है इसलिए
झाड़ जल्दी-जल्दी वृद्धि को नहीं पाता है। बाप जो ज्ञान देते हैं उसे कोई जानते
नहीं। शास्त्रों में भी यह ज्ञान नहीं है इसलिए थोड़ा निश्चय हुआ फिर माया एक ही
थप्पड़ से गिरा देती है। तूफान है ना। छोटा सा दीवा उनको तो तूफान एक ही थपेड़ से
गिरा देता है। दूसरों को विकार में गिरते देख खुद भी गिर पड़ते हैं। इसमें तो बड़ी बुद्धि
चाहिए समझने की। गाया भी हुआ है अबलाओं पर अत्याचार हुए। बाप समझाते हैं-बच्चे, काम महाशत्रु है, इससे तो तुम्हें बहुत नफरत
आनी चाहिए। बाबा बहुत नफरत दिलाते हैं अभी, आगे यह बात
नहीं थी। हेल तो अभी है ना। द्रोपदी ने पुकारा है, यह
अभी की ही बात है। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। फिर भी बुद्धि में बैठता
नहीं।
यह गोले का चित्र बहुत अच्छा है - गेट वे टू हेविन। इस गोले के
चित्र से बहुत अच्छी रीति समझ सकेंगे। सीढ़ी से भी इतना नहीं जितना इनसे समझेंगे।
दिन-प्रतिदिन करेक्शन भी होती जाती है। बाप कहते हैं आज तुमको बिल्कुल ही नया
डायरेक्शन देता हूँ। पहले से थोड़ेही सब डायरेक्शन मिलते हैं। यह कैसी दुनिया है, इसमें कितना दु:ख है।
कितना बच्चों में मोह रहता है। बच्चा मर जाता है तो एकदम दीवाने हो जाते, अथाह दु:ख है। ऐसे नहीं कि साहूकार है, तो सुखी
है। अनेक प्रकार की बीमारियाँ लगी रहती हैं। फिर हॉस्पिटल्स में पड़े रहते हैं।
गरीब जनरल वार्ड में पड़े रहते हैं, साहूकार को अलग
स्पेशल रूम मिल जाता है। परन्तु दु:ख तो जैसा साहूकार को वैसा गरीब को होता है।
सिर्फ उनको जगह अच्छी मिलती है। सम्भाल अच्छी होती है। अभी तुम बच्चे जानते हो
हमको बाप पढ़ा रहे हैं। बाप ने अनेक बार पढ़ाया है। अपनी दिल से पूछना चाहिए हम पढ़ते
हैं वा नहीं? कितने को पढ़ाते हैं? अगर पढ़ायेंगे नहीं तो क्या पद मिलेगा! रोज रात को अपना चार्ट देखो - आज
किसको दु:ख तो नहीं दिया? श्रीमत कहती है - कोई को दु:ख
न दो और सबको रास्ता बताओ। जो हमारा भाती होगा उनको झट टच होगा। इसमें बर्तन चाहिए
सोने का, जिसमें अमृत ठहरे। जैसे कहते हैं ना - शेरणी
के दूध के लिए सोने का बर्तन चाहिए क्योंकि उसका दूध बहुत भारी ताकत वाला होता है।
उनका बच्चों में मोह रहता है। कोई को देखा तो एकदम उछल पड़ेगी। समझेगी बच्चे को मार
न डाले। यहाँ भी बहुत हैं जिनका पति, बच्चों आदि में
मोह रहता है। अभी तुम बच्चे जानते हो स्वर्ग का गेट खुलता है। कृष्ण के चित्र में
बड़ा क्लीयर लिखा हुआ है। इस लड़ाई के बाद स्वर्ग के गेट्स खुलते हैं। वहाँ बहुत
थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी सब मुक्तिधाम में चले जाते हैं। सजायें बहुत खानी पड़ती
हैं। जो भी पाप कर्म किये हैं, एक-एक जन्म का
साक्षात्कार कराते, सजायें खाते रहेंगे। फिर पाई पैसे
का पद पा लेंगे। याद में न रहने के कारण विकर्म विनाश नहीं होते हैं।
कई बच्चे हैं जो मुरली भी मिस कर लेते हैं, बहुत बच्चे इसमें लापरवाह
रहते हैं। समझते हैं हमने नहीं पढ़ी तो क्या हुआ! हम तो पार हो गये हैं। मुरली की
परवाह नहीं करते हैं। ऐसे देह-अभिमानी बहुत हैं,वह अपना ही
नुकसान करते हैं। बाबा जानते हैं इसलिए यहाँ जब आते हैं, तो भी पूछता हूँ, बहुत मुरलियाँ नहीं पढ़ी
होंगी! पता नहीं उनमें कोई अच्छी प्वाइंट्स हों। प्वाइंट्स तो रोज निकलती हैं ना।
ऐसे भी बहुत सेन्टर्स पर आते हैं। परन्तु धारणा कुछ नहीं, ज्ञान नहीं। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो पद थोड़ेही मिलेगा। सत बाप, सत टीचर की ग्लानि व्ाराने से कभी ठौर पा न सकें। परन्तु सब तो राजायें नहीं
बनेंगे। प्रजा भी बनती है। नम्बरवार मर्तबे होते हैं ना। सारा मदार याद पर है, जिस बाप से विश्व का राज्य मिलता है, उनको याद
नहीं कर सकते। तकदीर में ही नहीं है तो फिर तदबीर भी क्या करेंगे। बाप तो कहते हैं
याद की यात्रा से ही पाप भस्म होंगे, तो पुरूषार्थ करना
चाहिए ना। बाबा कोई ऐसे भी नहीं कहते कि खाना पीना नहीं खाओ। यह कोई हठयोग नहीं
है। चलते-फिरते सब काम करते, जैसे आशिक माशूक को याद
करते हैं, ऐसे याद में रहो। उन्हों का नाम-रूप का प्यार
होता है। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक कैसे बनें? किसको
भी पता नहीं है। तुम तो कहते हो कल की बात है। यह राज्य करते थे, मनुष्य तो लाखों वर्ष कह देते हैं। माया ने मनुष्यों को बिल्कुल ही
पत्थरबुद्धि बना दिया है। अभी तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनते हो। पारसनाथ का
मन्दिर भी है। परन्तु वह कौन है, यह कोई नहीं जानते।
मनुष्य बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं। अब बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते
हैं। फिर हर एक की बुद्धि पर है। पढ़ाने वाला तो एक ही है, पढ़ने वाले ढेर होते जायेंगे। गली-गली में तुम्हारा स्कूल हो जायेगा। गेट
वे टू हेविन। मनुष्य एक भी नहीं जो समझे कि हम हेल में हैं। बाप समझाते हैं सब
पुजारी हैं। पूज्य होते ही हैं सतयुग में। पुजारी होते हैं कलियुग में। मनुष्य फिर
समझते भगवान ही पूज्य, भगवान ही पुजारी बनते हैं। आप ही
भगवान हो, आप ही यह सब खेल करते हो। तुम भी भगवान, हम भी भगवान। कुछ भी समझते नहीं हैं, यह है ही
रावण राज्य। तुम क्या थे, अब क्या बनते हो। बच्चों को
बड़ा नशा रहना चाहिए। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पुण्य आत्मा बन
जायेंगे।
बाप बच्चों को पुण्य आत्मा बनने की युक्ति बताते हैं - बच्चे, इस पुरानी दुनिया का अभी
अन्त है। मैं अभी डायरेक्ट आया हुआ हूँ, यह है पिछाड़ी
का दान, एकदम सरेन्डर हो जाओ। बाबा, यह सब आपका है। बाप तो देने के लिए ही कराते हैं। इनका कुछ भविष्य बन जाए।
मनुष्य ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं, वह है
इनडायरेक्ट। उनका फल दूसरे जन्म में मिलता है। यह भी ड्रामा में नूँध है। अभी तो
मैं हूँ डायरेक्ट। अभी तुम जो करेंगे उनका रिटर्न पद्मगुणा मिलेगा। सतयुग में तो
दान-पुण्य आदि की बात नहीं होती। यहाँ कोई के पास पैसे हैं तो बाबा कहेंगे अच्छा, तुम जाकर सेन्टर खोलो। प्रदर्शनी बनाओ। गरीब हैं तो कहेंगे अच्छा, अपने घर में ही सिर्फ बोर्ड लगा दो-गेट वे टू हेविन। स्वर्ग और नर्क है
ना। अभी हम नर्कवासी हैं, यह भी कोई समझते नहीं हैं।
अगर स्वर्ग पधारा तो फिर उनको नर्क में क्यों बुलाते हो। स्वर्ग में थोड़ेही कोई
कहेगा स्वर्ग पधारा। वह तो है ही स्वर्ग में। पुनर्जन्म स्वर्ग में ही मिलता है।
यहाँ पुनर्जन्म नर्क में ही मिलता है। यह बातें भी तुम समझा सकते हो। भगवानुवाच -
मामेकम् याद करो क्योंकि वही पतित-पावन है, मुझे याद
करो तो तुम पुजारी से पूज्य बन जायेंगे। भल स्वर्ग में सुखी तो सभी होंगे परन्तु
नम्बरवार मर्तबे होते हैं। बहुत बड़ी मंजिल है। कुमारियों को तो बहुत सर्विस का जोश
आना चाहिए। हम भारत को स्वर्ग बनाकर दिखायेंगे। कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे
अर्थात् 21 जन्म लिए उद्धार कर सकती है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार
:-
1) इस
पुरानी दुनिया का अन्त है, बाप डायरेक्ट आया है तो एकदम
सरेन्डर हो जाना है, बाबा यह सब आपका है. . . इस युक्ति
से पुण्यात्मा बन जायेंगे।
2) मुरली
कभी भी मिस नहीं करना है, मुरली में लापरवाह नहीं रहना
है। ऐसे नहीं, हमने नहीं पढ़ी तो क्या हुआ। हम तो पार हो
गये हैं। नहीं। यह देह-अभिमान है। मुरली जरूर पढ़नी है।
वरदान:- भिन्नता को मिटाकर एकता लाने वाले सच्चे सेवाधारी भव!
ब्राह्मण परिवार की विशेषता है अनेक होते भी एक। आपकी एकता द्वारा
ही सारे विश्व में एक धर्म,एक
राज्य की स्थापना होती है इसलिए विशेष अटेन्शन देकर भिन्नता को मिटाओ और एकता को
लाओ तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी। सेवाधारी स्वयं प्रति नहीं लेकिन सेवा प्रति होते
हैं। स्वयं का सब कुछ सेवा प्रति स्वाहा करते हैं, जैसे
साकार बाप ने सेवा में हड्डियां भी स्वाहा की ऐसे आपकी हर कर्मेन्द्रिय द्वारा
सेवा होती रहे।
स्लोगन:- परमात्म प्यार
में खो जाओ तो दु:खों की दुनिया भूल जायेगी।
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