Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

Vices to Virtues: 56: संस्कार परिवर्तन

 Vices to Virtues: 56: संस्कार परिवर्तन




Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga ( Jwala swaroop) Let us work on one each day.


बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...


पूरने वा अवगुणो का अग्नि संस्कार.... ५६  ..... संसार समाचार की लेन देन करना... बदलकर....  मैं आत्मा ज्ञान का मंथन करने वाली, ज्ञान सुनाने वाली, मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ.....


cremate our old sanskars: ... 56.........to engage in spreading worldly news (gossip)....... replace them by,  I, the soul, the master sun of knowledge, churn the ocean of knowledge and teach others...


Poorane va avguno ka agni sanskar.... 56....sansar samachar ki len den karna......badalkar.... mai atma gyan ka manthan karnewali, gyan sunaane wali, master gyan soorya hun.....



पूरने वा अवगुणो का अग्नि संस्कार.... ५६  ..... संसार समाचार की लेन देन करना... बदलकर....  मैं आत्मा ज्ञान का मंथन करने वाली, ज्ञान सुनाने वाली, मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ.....


मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... संसार समाचार की लेन देन करना.................अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ संसार समाचार की लेन देन करना....................... के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं आत्मा, ज्ञान का मंथन करने वाली, ज्ञान सुनाने वाली, मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ....    मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ .....


 
Cremate our old sanskars: ... 56.........to engage in spreading worldly news (gossip)....... replace them by,  I, the soul, the master sun of knowledge, churn the ocean of knowledge and teach others...

I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  engaging in spreading worldly news (gossip)..........I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of  engaging in spreading worldly news (gossip)......... by I, the soul, the master sun of knowledge, churn the ocean of knowledge and teach others....I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...
  

Poorane va avguno ka agni sanskar.... 56....sansar samachar ki len den karna......badalkar.... mai atma gyan ka manthan karnewali, gyan sunaane wali, master gyan soorya hun.....


mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... sansar samachar ki len den karna..............avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir sansar samachar ki len den karna.........ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun...mai atma gyan ka manthan karnewali, gyan sunaane wali, master gyan soorya hun.....  mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...


29-03-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:19-11-79 मधुबन


29-03-15  प्रात:मुरली  ओम् शान्ति अव्यक्त-बापदादा रिवाइज:19-11-79 मधुबन


बेहद के वानप्रस्थी अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप

आज बापदादा सर्व बच्चों के भाग्य के गुण गा रहे थे। बाप बच्चों के भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं को देख हर्षित होते हैं। भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं में विशेष क्या-क्या बातें देखी जाती हैं। वह जानते हो? मुख्य बात तिथि अर्थात् तारीख, समय, विशेष ग्रह, कुल, धर्म और सम्पत्ति, सम्बन्ध और आक्यूपेशन देखा जाता है। इन सब बातों से भाग्य को देखते हैं।

आप सभी अपनी इन सब बातों को अच्छी तरह से जानते हो? आप सबकी तिथि कौन-सी है? आज तक भी अपने भाग्य को जन्म की तारीख से या राशि से देखते हैं। तो आप सबकी राशि और तारीख कौन-सी है? जन्म की तारीख कौन-सी है? आप सब कब अवतरित हुए? ब्राह्मण कब अवतरित हुए? जो बाप के अवतरण की तारीख है वह आपकी है। ब्रह्मा सहित ब्राह्मण भी पैदा हुए। तो जो आदि रत्न हैं उनकी तारीख कौन-सी कहेंगे? बाप के अवतरण की तारीख आदि रत्नों के जन्म की तारीख है। समय कौन-सा है? यह संगम ब्रह्मा मुहूर्त का समय है। तो सभी के जन्म का समय है - ब्रह्म मुहूर्त और राशि कौन-सी है? लौकिक राशियाँ तो भिन्न-भिन्न प्रकार की दिखाई हैं लेकिन आप सबकी राशि जो बाप की राशि है विश्व-कल्याणकारी, वही आप सबकी राशि है। जिस राशि में सर्व बाप के समान गुण समाये हुए हैं। और दशा भी गुरूवार की दशा है। कुल भी सर्वश्रेष्ठ है। डायरेक्ट ईश्वर के कुल के हो, ईश्वरीय कुल है। पोजीशन-मास्टर सर्वशक्तिमान हो। सम्पत्ति-अखुट और अविनाशी सम्पत्ति है। धर्म - ब्राह्मण चोटी के हो। बुद्धि की लाइन विशाल और त्रिकालदर्शी लाइन है। अब सोचो इससे अधिक भाग्य की रेखायें और किसी की श्रेष्ठ हो सकती हैं! कर्म-रेखा में निरन्तर कर्मयोगी, सहजयोगी, राजयोगी - यह रेखा बाप ने स्पष्ट खींच ली है। भाग्य के सितारे में ताज और तख्त दिखाई देता है। इससे श्रेष्ठ भाग्य और क्या होगा!

आज बापदादा सभी बच्चों के भाग्य को देख रहे थे। जैसे बाप सभी के भाग्य को देख हर्षित होते हैं वैसे आप सभी स्वयं के भाग्य को देख हर्षित होते हो? छोटी-छोटी बातें क्या हैं? जैसे भक्ति वालों को कहते हो कि यह पूजा आदि गुड़ियों की पूजा हैं, गुड़ियों का खेल खेलते हैं। जन्म भी देते हैं, सजाते भी हैं, पूजते भी हैं, और फिर डुबोते भी हैं, तो इसको आप गुड़ियों की पूजा वा गुड़ियों का खेल कहते हो। ऐसे ही मास्टर भाग्य-विधाता बच्चे भी इन छोटी-छोटी बातों की गुड़ियों का खेल बहुत करते हैं। रीयल बात नहीं होती लेकिन हिसाब-किताब चुक्तु होने के लिए व धारणाओं का पेपर लेने के लिए व अपनी स्थिति की चेकिंग होने के लिए यह बातें जीवन में नये-नये रूप से आती रहती हैं। निर्जीव बातें, असार बातें - लेकिन जब सामने आती हैं, जैसे वह जड़ मूर्ति में प्राण भर देते हैं और इतना विस्तार बना देते हैं वैसे आप सभी भी कभी ईर्ष्या की गुड़िया, कभी बहम की गुड़िया, कभी अनुमान की गुड़िया, कभी आवेश की गुड़िया, कभी रोब की गुड़िया, अर्थात् मूर्ति बनाकर बात रूपी गुड़िया में प्राण भर देते हो। और अनुभव करते और कराते हो कि यह सत्य है। यही बात ठीक है - यह प्राण भर देते हो। और, फिर क्या करते हो? आप लोगों का गीत बना हुआ है ना - डूब जा, डूब जा...तो क्या करते हो? उसी बात रूपी मूर्ति को आगे-पीछे की स्मृतियों से खूब सजाते हो। साथ-साथ जैसे वह भोग लगाते हैं देवी को अथवा मूर्ति को वैसे आप भी कौन-सा भोग लगाते हो? ज्ञान की प्वाँइन्ट्स उल्टे रूप से सोचते हो अर्थात भोग लगाते हो। यह तो होता ही है, यह तो सबमें होता है। ड्रामा अनुसार पुरूषार्था हैं, कर्मातीत तो अन्त में बनना है। इसी प्रकार के ज्ञान की भिन्न-भिन्न वैराइटी प्वाँइन्ट्स का रोज भोग लगाते-लगाते मजबूत कर देते हो, पक्का कर देते हो। पहले कच्चे भोजन का भोग लगाते फिर पक्का कर देते हो। और फिर उन प्वाँइन्टस को अर्थात् भोग को अकेले नहीं खाते, अपने साथ-साथ पण्डे, कुटुम्ब भी बिठाते हो अर्थात् और भी परिवार के साथी बनाते हो, उनकी बुद्धि को भी यह भोजन स्वीकार कराते हो। लेकिन अन्त में क्या करना पड़ता है, ज्ञान-सागर बाप की याद में बीती-सो-बीती के ज्ञान-सागर की लहर में, स्व उन्नति की लहर में, हाई जम्प लगाने की लहर में, स्मृति स्वरूप के स्मृति की लहर में, मास्टर नॉलेजफुल स्वरूप की लहर में, इन अनेक लहरों के बीच इन गुड़ियों को अथवा मूर्तियों को डुबोना ही पड़ता है। लेकिन इतने सारे समय को क्या कहेंगे? इस सारे गुड़ियों के खेल को, जैसे भक्ति वालों को कहते हो वेस्ट आफ टाइम और मनी, वैसे ही संगम का सर्वश्रेष्ठ समय और ज्ञान वा शक्तियों के खजाने को इतना व्यर्थ कर देते हो। तो यह छोटी-छोटी बातें क्या हुई? गुड़ियों का खेल। इस खेल में कभी भी अपने को व्यस्त मत करो। सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को देखो।

वर्तमान समय के प्रमाण अभी वानप्रस्थ अवस्था के समीप हो। वानप्रस्थी गुड़ियों का खेल नहीं करते हैं। वानप्रस्थी एकान्त और सुमिरण में रहते हैं। तो आप सब बेहद के वानप्रस्थी सदा एक के अन्त में अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप रहो। यह है बेहद के वानप्रस्थी की स्थिति (बाप-दादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) यह स्थिति अच्छी नहीं लगती? जो चीज अच्छी लगती है वह तो सदा याद रहती है। अब बाप व आप क्या चाहते हो? एक ही बात चाहते हो - बाप और बच्चे समान हो जाएं। सदा याद में समाये रहें। समाना नहीं चाहते हो! समान बनना ही समाना है। समझा? कि बाप क्या चाहते हैं वा आप क्या चाहते हो?

यह सीजन स्वरूप देखने की है या सिर्फ सुनने की है। फिर सुनायेंगे कि समय क्या पुकार रहा है! भक्त क्या पुकार रहे हैं! दु:खी, अशान्त आत्मायें क्या पुकार रही हैं, धर्म-नेतायें, वैज्ञानिक, राजनैतिक क्या पुकार रहे हैं! प्रकृति भी क्या पुकार रही है! सबकी पुकार - हे उपकारी आत्मायें, सुनने में आती है या गुड़ियों के खेल में बिजी हो? अच्छा - फिर सबकी पुकार सुनायेंगे। आप लोग भी कल अमृतवेले सुनना।

सदा भाग्य को सुमिरण करने वाले, सदा बाप के समान, याद में समाये हुए निरन्तर एकान्तवासी, हर घड़ी को सफल बनाने वाले सफलतामूर्त, भक्ति के खेल समाप्त कर मास्टर ज्ञान-सागर स्वरूप, स्मृति और समर्थी स्वरूप, ऐसे पदमापदम भाग्यशाली बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

मैसूर - सभी अपने को सर्वश्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हो जो स्वयं बाप बच्चों से मिलने के लिए अपने वतन को छोड़कर आते हैं। आधाकल्प गाया कि अपना वतन छोड़कर आ जाओ लेकिन यह मालूम नहीं था कि कब और कैसे मिलेगा, सिर्फ इन्तजार में दिन बिताये। अभी इन्तजार खत्म हुआ और सम्मुख मिलन मना रहे हो! ऐसा श्रेष्ठ भाग्य और किसी का होगा? स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि भगवान से बातें करेंगे। टोली खायेंगे, बैठेंगे और सभी प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो। प्राप्ति के आगे यह सफर भी क्या है? बाप कितने बड़े सफर से आते हैं। बाप का स्थान दूर है या आप का? जब खुशी होती है तो कोई भी थकावट व तकलीफ महसूस नहीं होती। रास्ते के चार दिन निरन्तर योगी की स्टेज होगी - कब मिलेंगे, कब पहुँचेंगे, तो निरन्तर योगी हो गये ना। यह भी कमाई हो गई ना। ब्राह्मण बनना माना हर कदम में कमाई। कष्ट भी नहीं है लेकिन जैसे गुलाब के पुष्प के साथ काँटा भी होता है, वह काँटा उनके बचाव का साधन होता है। वैसे यह तकलीफें और ही बाप की याद दिलाने के निमित्त बनती हैं। कोई भी प्रकार का जब दु:ख आता है तो नास्तिक के मुख से भी - `हे भगवान' निकलता है। तो दु:ख भी याद दिलाने का साधन हुआ ना। संगम पर कोई कष्ट हो नहीं सकता। इस समय आप बच्चे बाप के सर्व खजानों के अधिकारी हो। बाप का खजाना क्या है? सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम - यही तो खजाना है ना! तो अधिकारी और खुश ना रहे, यह हो कैसे सकता है। अमृतवेले सदा स्मृति का तिलक लगाओ कि हम अधिकारी हैं। अगर तिलक लगा होगा तो सदा हर्षित रहेंगे। तिलक को मिटने नहीं देना। माया कितना भी मिटाने की कोशिश करे लेकिन मिटाना नहीं तो सदा `अविनाशी भव' का वरदान मिलता रहेगा। सिल्वर जुबली मना रहे हो लेकिन गोल्डन एज की स्थिति में रहकर सिल्वर जुबली मनाओ। अच्छी हिम्मत रखी है। रिजल्ट भी अच्छी है। अच्छे बुजुर्ग, अनुभवी और मेहनती बच्चे हैं, अच्छा सर्टिफिकेट है।

विदेशी भाई-बहनों से:-

सभी जैसे स्थूल देश के हिसाब से फारेनर्स हो वैसे ही आत्मा रूप से भी सदा अपने को फारेन अर्थात् परमधाम निवासी समझ कर चलते हो? सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व- कल्याण का कर्तव्य करने के लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा? जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म करेंगे, जो भी बोल बोलेंगे, जहाँ भी नजर जायेगी, सर्व का कल्याण करते रहेंगे। यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्व शक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को रास्ता दिखाने का कार्य करें। तो सदा इस स्मृति में रहो ताकि जो भी सामने आए वह समझे कि हम अखुट खजाने की खान के आगे आये हैं। आने से ही ऐसे महसूस करें कि मैं ऐसे स्थान पर पहुँच गया हूँ जहाँ से सर्व प्राप्तियाँ होनी हैं। विदेशियों को ऐसे चलते- फिरते लाइट हाउस बनकर सेवा करनी है। अगर एक ही स्थान पर इतने लाइट हाउस हो जायेंगे तो क्या रिजल्ट निकलेगी! सब वाह-वाह के गीत गायेंगे। सदैव एक चित्र अपने सामने रखो। जैसे आप लोग चित्र निकालते हो जिसमें अंगुली से ब्रह्मा भी शिवबाबा की तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसे आप सबका हर कर्म, हर संकल्प बाप की तरफ इशारा करे। तो चेक करो कि मेरा संकल्प इशारा करने वाला है। जब सर्व आत्माओं को बाप का इशारा मिल जायेगा तो आप के गुण गाने लग जायेंगे। जैसे अभी और-और गीत गाते हैं ना, वैसे चारों ओर सभी साजों द्वारा बाप और आपके गुणों का गीत गायेंगे। उस समय क्या सीन होगी और आप लोग कहाँ होंगे? (मधुबन में) सब मधुबन में भाग आयेंगे तो भक्त क्या करेंगे! उस समय आप सबका साक्षात्कार होगा कि यह बाप-दादा के दिलतख्तनशीन हैं। उस समय आप तख्तनशीन नजर आयेंगे तब सारी दुनिया हाय-हाय करेगी और आप लोग उनको वरदान देंगे। ऐसा साक्षात्कार अपने आपको अपना होता है कि हम तख्तनशीन हैं!

ब्राह्मण अर्थात् अधिकारी। तो अधिकार लेना है वा जन्म से ही अधिकारी हो? बाप-दादा सभी को सदैव तख्त और ताजधारी देखते हैं। तख्त से उतर आते हो क्या? जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं वह कभी भी बिना गलीचे के नीचे पाँव नहीं रखतीं। आप सबसे बड़े-से-बड़े हो तो तख्त से नीचे नहीं पाँव रखना। तख्त पर ही खाते हो, पीते हो, घूमते हो, चलते हो इतना बड़े-से-बड़ा तख्त है। समझा।

डबल विदेशी बच्चों को जो सेवा दी है वह कर रहे हैं ना। अभी सभी इन्तजार कर रहे हैं कि कब फारेन की आवाज से भारत के कुम्भकरण जागते हैं। अभी बुलन्द आवाज करो। फारेन सर्विस की रिजल्ट अच्छी है। अभी आगे क्या करना है? (प्लान सुनाया) प्लान तो अच्छा है, यह तो करेंगे ही लेकिन अभी ऐसा कोई वातावरण बनाओ जो वातावरण चुम्बक जैसा कार्य करे। चारों ओर फैल जाए कि अगर शान्ति, सुख या प्रेम चाहिए तो यहाँ से मिल सकता है। एडवरटाइजमेन्ट हो जाए। आजकल वाणी की बजाय वायब्रेशन्स से प्राप्ति करने के इच्छुक ज्यादा हैं। स्पीच करो लेकिन उसके पहले ऐसे वातावरण की आवाज जरूर फैलाओ। सभी अनुभव करें - जैसे प्यासे की प्यास पानी से बुझ जाती है ऐसे आत्माओं की शान्ति, सुख की प्यास बुझ जाए। जैसे स्थापना के शुरू में एक दिन भी कोई सत्संग में आ जाते थे तो पहले दिन ही कुछ- न-कुछ अनुभव करके जाते थे। जो आदि में वह अन्त में विस्तार के रूप में होना है। ऐसा कुछ वातावरण बनाओ। वह तब होगा जब आप सभी निरन्तर इस स्थिति में स्थित रहेंगे। फिर सूर्य की किरणों के मुआिफक सब अनुभव करेंगे। सबकी नजर जायेगी कि यह कहाँ से किरणें आ रही हैं। ऐसा अभी पुरूषार्थ करना। सभी रिफ्रेश तो बहुत हो रहे हो। ऐसे रिफ्रेश हुए हो जो अनेकों को रिफ्रेश करते हुए सदा रिफ्रेश रहें! इस बारी विशेष एक शब्द पर डबल अन्डर लाइन करके जाना। वह कौन सा? निरन्तर। चाहे संकल्प, चाहे बोल लेकिन - `निरन्तर' शब्द को डबल अन्डरलाइन करके जाना। याद की यात्रा में निरन्तर, ज्ञान स्वरूप में निरन्तर, धारणा में निरन्तर, सेवा में भी निरन्तर। चारों सबजेक्टस में निरन्तर को डबल अन्डरलाइन करके जाना। समझा - यह एक शब्द वरदान के रूप में ले जाना।

प्लान लम्बे नहीं बनाओ लेकिन प्रैक्टिकल के और जल्दी के बनाओ, उसके लिए यही इशारा है अपना तन-मन-धन शक्तियाँ जितना जल्दी यूज करेंगे उतना फायदा है। अभी समय है, फिर टू-लेट हो जायेंगे। करने के लिए डेट का इन्तजार नहीं करो, कल भी नहीं, आज भी नहीं, अभी करो क्योंकि अगर डेट बतायेंगे तो बहुत समय का जमा नहीं होगा - डेट का जमा हो जायेगा। फिर डेट की इन्तजार में चले जायेंगे। इन्तजाम कम करेंगे। डेट कान्सेस हो जायेंगे। सोल कान्सेस नहीं रहेंगे।

हर एरिया में सन्देश पहुंचाने की कोशिश करो जिससे कोई उलहना न दे कि हमें पता नहीं है। सर्विस करते जाओ तो सब आपेही ऑफर करेंगे कि यहाँ सेन्टर खोलो। अच्छा।

वरदान:- पावरफुल वृत्ति द्वारा मन्सा सेवा करने वाले विश्व कल्याणकारी भव !

विश्व की तड़पती हुई आत्माओं को रास्ता बताने के लिए साक्षात बाप समान लाइट हाउस, माइट हाउस बनो। लक्ष्य रखो कि हर आत्मा को कुछ न कुछ देना है। चाहे मुक्ति दो चाहे जीवनमुक्ति। सर्व के प्रति महादानी और वरदानी बनो। अभी अपने-अपने स्थान की सेवा तो करते हो लेकिन एक स्थान पर रहते मन्सा शक्ति द्वारा वायुमण्डल, वायब्रेशन द्वारा विश्व सेवा करो। ऐसी पावरफुल वृत्ति बनाओ जिससे वायुमण्डल बने - तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी आत्मा।

स्लोगन:- अशरीरी पन की एक्सरसाइज और व्यर्थ संकल्प रूपी भोजन की परहेज से स्वयं को तन्दरूस्त बनाओ।

Avyakt Murli: March 29, 2015 Revised from: November 19, 1979







Avyakt Murli: March 29, 2015


Revised from: November 19, 1979 


To be in the unlimited stage of retirement means to be constantly in solitude and a constant embodiment of remembrance.


Today, BapDada was singing praise of all the children's fortune. The Father was pleased to see the elevated lines of fortune of His children. Do you know exactly what can be seen from the elevated lines of fortune? The first thing that Baba looked at was the time of birth (tithi), which includes the date, time, special omens, clan, religion, prosperity, relationships and occupation. Your fortune can be recognised from all of these things.
Do you all know these aspects of yourselves clearly? What is the time of birth of all of you? Even today, your fortune is known from your date of birth or your horoscope. So, what is the horoscope and date of birth of all of you? What is your date of birth? When did you all incarnate? When did Brahmins incarnate? The date of the Father's incarnation is also the date of your incarnation. Brahmins are created at the same time as Brahma. What would you say is the date of the original jewels? The date of the Father's incarnation is the date of birth of the original jewels. What is the time (of birth)? This confluence age is the time of the muhurat of Brahma (time of auspicious omens of Brahma). So, the time of everyone's birth is the Brahm-muhurat (auspicious time of creation). What is your horoscope? There are many different aspects of horoscope that have been shown for people in the world outside, but your horoscope is the same as that of the Father, the World Benefactor. This is also the horoscope of all of you, in which all the virtues of the Father are merged. The omens are the omens of Thursday (the day of the Satguru). Your clan is the most elevated clan. You belong directly to the clan of God; you belong to the Godly clan. Your position is that of a master almighty authority. Your wealth is limitless and imperishable. Your religion is that of the Brahmin topknot. Your line of the intellect is broad and one that understands the three aspects of time. Now just think about these things. Could anyone else have more lines of elevated fortune than you? Your line of action shows that you are a constant karma yogi, an easy yogi and a Raja Yogi - the Father has clearly drawn this line for you. The crown and throne are visible in the stars of fortune. What fortune could be more elevated than this? 

Today, BapDada was seeing the fortune of all of you children. Just as the Father is pleased to see the fortune of all of you children, are you just as pleased to see your own fortune? What do the trivial things matter? You tell people on the path of devotion that all their worshipping is like playing with dolls. They give them birth, decorate them, worship them and then drown them. Just as you refer to this as playing with or worshipping dolls, in the same way, you children, who are master bestowers of fortune, play with the dolls of all the trivial situations that come up from time to time. The situations may not be anything real (significant), but they come up in your life in new forms in order for you to settle your karmic accounts, or for you to give yourself a test paper of dharna or to examine your own stage. The situations are totally lifeless and without any essence and yet, they come in front of you. Just as they give life to the non living images and make them grow, in the same way, you also create dolls of jealousy, dolls of doubt, dolls of imagination, dolls of force, dolls of bossiness; you create idols of the situations and give them life. You yourself experience them to be true and you also make others feel that that they are true. You give life to that doll by saying, "The situation is really this." What do you then do? You have composed a song about this: "Drown! Drown!" So, what do you do? You decorate the idol of that situation with so many memories of the past and assumptions for the future. Then, just as people offer bhog to the deities or their idols, so, what bhog do you also offer? You think of points of knowledge in the wrong way; you offer bhog in this way. "This happens all the time." "This happens to everyone." "According to the drama, I am only an effort-maker at present. It is only at the end that we will become karmateet." Whilst offering this bhog of various points of knowledge, you very firmly justify yourself with regard to everything. So, first you offer unprepared (kachcha) food, and then you offer properly cooked food! Then, not only do you take this bhog (points of knowledge) yourself, but you also offer it to your companions and family members who are with you: you make the family sit with you. You make their intellects consume that food. However, what will you have to do at the end? You will have to drown those idols, those dolls, in the remembrance of the Father, the Ocean of Knowledge - in the waves of the Ocean of Knowledge by allowing the past to be the past; in the waves of self-progress, in the waves of taking a high jump, in the waves of the awareness of being an embodiment of remembrance and in the waves of being a master embodiment of knowledge. However, what would you say about all the time you spend on this? Just as you tell people on the path of devotion that their playing with dolls is a waste of time and money, so you also waste the most elevated time, knowledge and the treasure of all powers of the confluence age. What are all of those trivial matters? A game of dolls! Don't busy yourself with playing those games. Constantly see your elevated fortune.
According to the present time, you are close to your stage of retirement. Those who are in the stage of retirement do not play with dolls. They stay in solitude and maintain remembrance. So, all of you who are in the unlimited stage of retirement should constantly stay in the depths of One, that is, you should be in constant solitude and remain constant embodiments of remembrance. This is the unlimited stage of retirement. (BapDada conducted drill for three minutes.) Do you not like this stage? You would constantly remember something you like, would you not? So, what does the Father now want and what do you now want? Both want the same thing: that the children become equal to the Father and remain constantly absorbed in remembrance of Him. You do not want to become merged: to become equal means to be merged. Do you understand? Or, is it that the Father wants one thing and you children want something else? 

Is this the season when you become the practical form of what Baba says, or is it just of listening to Baba? Baba will tell you later what the time is calling out for, what your devotees are calling out for, what the sorrowful and peaceless souls are calling out for, what the religious leaders, scientists and political leaders are calling out for and what the elements too are calling out for. Hey souls, who are benefactors for everyone, are you able to hear everyone's call? Or, are you still busy playing with dolls? Achcha! BapDada will tell you later what everyone is calling out for. Tomorrow, you can hear it at amrit vela, too. 

To those who constantly sing of their fortune, to those who are constantly equal to the Father, to those who are constantly in solitude and absorbed in remembrance of Baba, to the embodiments of success who use every moment in a worthwhile way, to the master embodiments of knowledge who have finished playing games of devotion, to those who are embodiments of remembrance and power, to such multimillion-times fortunate children, BapDada's love, remembrance and namaste. 

BapDada meeting groups: 

Mysore: Do all of you experience yourselves to be the most elevated souls? You are such elevated souls that your Father Himself leaves His home to come and meet you children. For half a cycle you have been singing: Leave Your home and come down here, but you didn't know how or when He would come and meet you. You spent all your days waiting. Now, your waiting has ended and you are celebrating a meeting in person. Would anyone else have such elevated fortune? You never even dreamt that you would talk to God, or that you would actually sit and eat toli with Him. You are experiencing all of this in a practical way. What is the journey you made when compared to the attainments you receive? The Father has to journey from such a long way away. Is the Father's place further away or is yours? When you are happy, you don't feel tired or experience any difficulty. On your four-day journey, you would have the stage of a constant yogi. You would think: "When will we arrive there and meet Baba?" So this is being a constant yogi, is it not? This is also an income. To be a Brahmin means to earn an income at every step and not suffer in any way at all. Just as a rose has thorns for its protection, so too, all the difficulties you experience are just instruments to make you remember the Father even more. Even when an atheist experiences any type of pain, he says, "Oh God!" So, even pain becomes an instrument to remind him of God. Nothing can be a difficulty at the confluence age. At this time, all of you children have full rights to all of the Father's treasures. What are the Father's treasures? Peace, happiness, bliss, love etc. are the Father's treasures. So, how is it possible that one who has full rights to all of this is not happy? Every day at amrit vela, apply a tilak of the awareness of being one with full rights. If you have put this tilak on yourself, you can remain constantly cheerful. Don't let your tilak be rubbed off. No matter how much Maya tries to rub it off, don't allow that to happen. Then, you will continue to receive the blessing of: "May you be imperishable!" You are celebrating your silver jubilee, but celebrate the silver jubilee while being in the golden-aged stage. You have been very courageous. Your result is good! All of you children are good, mature, experienced and hard working. You have received a good certificate. 


Meeting double-foreign brothers and sisters: 

Just as you are foreigners in terms of your physical country, so too, do all of you souls continue to move along whilst considering yourselves to be foreigners, that is, to be residents of supreme abode? Always experience this: I, the soul, have incarnated from supreme abode in order to carry out the task of world benefit. What will happen when you always have this awareness? Whatever thoughts you create, deeds you perform, words you speak and wherever your vision falls, you will continue to benefit everyone. This awareness will work like a lighthouse. A physical lighthouse would only radiate light of one colour, but here, you lighthouses of all powers carry out the task of showing souls the path at every step. Always maintain this awareness so that whoever comes in front of you will experience themselves to have come in front of a limitless mine of treasures. As soon as they come to you, they should feel that they have come to a place where they are going to experience all attainments. All of you foreigners have to serve as mobile lighthouses. What would be the result of so many lighthouses in one place? Everyone would sing songs of wonder. Constantly keep one image in front of you. You have a picture in which Brahma is pointing upwards to Shiv Baba. In the same way, every deed and thought of yours should signal towards the Father. So check whether your thoughts are giving this signal to others. When all souls have received a signal about the Father, people will begin praising you. Just as, at present, they sing other songs, so they will then sing praise of you and the Father everywhere with all types of music. What would the scene be at that time and where would all of you be? (In Madhuban). What would the devotees do if all of you were to come running to Madhuban? At that time, they would have visions of all of you as those who are seated on BapDada's heart throne. At that time, people will see you seated on BapDada's heart throne; the whole world would be crying out in distress and you would bless them. Do you have a vision of yourself being seated on the heart throne in this way?
To be a Brahmin means to be someone with all rights. Do you still have to claim your rights or did you receive all rights from birth? BapDada constantly sees all of you as those who have the throne and crown. Do you get down from your throne? Elevated people never step on anything other than a carpet. You souls are the most elevated of all and so your feet mustn't come off the throne (touch the earth); you must stay on your throne. Do everything whilst remaining seated on your throne: eating, drinking, touring, walking etc. all must take place whilst you remain seated on your throne. Do you understand?
Are all of you double foreigners doing the service you have been given? Everyone here is now waiting for the sound from abroad to awaken the Kumbhakarna of Bharat. You have to make a loud sound. The result of service in the foreign lands is good. What do you have to do now? (Plans were put to BapDada.) Your plans are good. You will of course do this, but you now also have to create such an atmosphere that it works like a magnet. The sound should spread in all directions that if anyone wants peace, happiness and love, they can find them here. Let it be advertised in this way. Nowadays, people want to experience something a lot more through vibrations than through words. Give your speech, but, before you do so, spread the sound of such an atmosphere. Then, just as the thirst of someone is quenched with water, so the thirst that all souls have for peace and happiness will also be quenched. When this establishment began, even when someone came for the first time, that person would return with an experience on the first day. Whatever happened at the beginning will happen a lot more at the end. Now create this type of atmosphere. However, that can only happen when all of you are constantly stable in this stage. At that time, everyone will experience it to be like the rays of the sun. Everyone will wonder where the rays are coming from. You now have to make such effort. All of you have been refreshed very much. All of you have been refreshed to such an extent that you remain constantly refreshed while refreshing others. This time, doubly underline one word in particular. What is that word? "Constant". Whether it is thoughts or words, doubly underline the word "constant" before you leave here. Constantly remain on the pilgrimage of remembrance, constantly be an embodiment of knowledge, be constant in your dharna and service. Doubly underline all four subjects before you leave. Do you understand? Take this one word as a blessing with you. 

Do not make big plans, but make practical plans quickly. The signal for that is: The quicker you use your body, mind, wealth and powers, the more beneficial it is. Now is the time; it will then become "too late". 

Do not wait for a date to do this. Not tomorrow, not today, but now! If you are given a date, you would then not accumulate "over a long period of time", but you would only accumulate up to that date, and you would spend your time waiting for that date and make fewer preparations. You would become date conscious and not remain soul conscious. 

Try to make the message reach every area so that there are no complaints of, "We did not know!" Continue to serve and people will offer of their own accord, "Open a centre here." Achcha. 



Blessing: May you be a world benefactor who serves with your mind through a powerful attitude. 

In order to show the path to the desperate souls in the world, become a lighthouse and might house, just like the Father. Have the definite aim to give something or other to each soul, whether you give them liberation or liberation-in-life. Be a great donor and a bestower of blessings for all. You are now serving your own places, but, while living in one place, serve the world with the power of your mind through your vibrations and the atmosphere. Create such a powerful attitude that it creates that atmosphere. You would then be said to be world benefactor souls. 

Slogan: Make yourself healthy by doing the exercise of becoming bodiless and being cautious about waste thoughts and your diet. 


***OM SHANTI***

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