29-03-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:19-11-79 मधुबन
बेहद के
वानप्रस्थी अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप
आज बापदादा सर्व
बच्चों के भाग्य के गुण गा रहे थे। बाप बच्चों के भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं को देख हर्षित
होते हैं। भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं में विशेष क्या-क्या बातें देखी जाती हैं। वह
जानते हो? मुख्य बात
तिथि अर्थात् तारीख, समय, विशेष ग्रह, कुल, धर्म और सम्पत्ति, सम्बन्ध और आक्यूपेशन देखा जाता है।
इन सब बातों से भाग्य को देखते हैं।
आप सभी अपनी इन सब
बातों को अच्छी तरह से जानते हो?
आप सबकी तिथि कौन-सी है?
आज तक भी अपने भाग्य को जन्म की तारीख से या राशि से देखते हैं। तो आप सबकी
राशि और तारीख कौन-सी है? जन्म की
तारीख कौन-सी है? आप सब कब
अवतरित हुए? ब्राह्मण कब
अवतरित हुए? जो बाप के
अवतरण की तारीख है वह आपकी है। ब्रह्मा सहित ब्राह्मण भी पैदा हुए। तो जो आदि रत्न
हैं उनकी तारीख कौन-सी कहेंगे?
बाप के अवतरण की तारीख आदि रत्नों के जन्म की तारीख है। समय कौन-सा है? यह संगम ब्रह्मा मुहूर्त का समय है।
तो सभी के जन्म का समय है - ब्रह्म मुहूर्त और राशि कौन-सी है? लौकिक राशियाँ तो भिन्न-भिन्न प्रकार
की दिखाई हैं लेकिन आप सबकी राशि जो बाप की राशि है विश्व-कल्याणकारी, वही आप सबकी राशि है। जिस राशि में
सर्व बाप के समान गुण समाये हुए हैं। और दशा भी गुरूवार की दशा है। कुल भी
सर्वश्रेष्ठ है। डायरेक्ट ईश्वर के कुल के हो, ईश्वरीय कुल है। पोजीशन-मास्टर सर्वशक्तिमान हो।
सम्पत्ति-अखुट और अविनाशी सम्पत्ति है। धर्म - ब्राह्मण चोटी के हो। बुद्धि की
लाइन विशाल और त्रिकालदर्शी लाइन है। अब सोचो इससे अधिक भाग्य की रेखायें और किसी
की श्रेष्ठ हो सकती हैं! कर्म-रेखा में निरन्तर कर्मयोगी, सहजयोगी, राजयोगी - यह रेखा बाप ने स्पष्ट खींच
ली है। भाग्य के सितारे में ताज और तख्त दिखाई देता है। इससे श्रेष्ठ भाग्य और
क्या होगा!
आज बापदादा सभी
बच्चों के भाग्य को देख रहे थे। जैसे बाप सभी के भाग्य को देख हर्षित होते हैं
वैसे आप सभी स्वयं के भाग्य को देख हर्षित होते हो? छोटी-छोटी बातें क्या हैं? जैसे भक्ति वालों को कहते हो कि यह
पूजा आदि गुड़ियों की पूजा हैं,
गुड़ियों का खेल खेलते हैं। जन्म भी देते हैं, सजाते भी हैं, पूजते भी हैं, और फिर डुबोते भी हैं, तो इसको आप गुड़ियों की पूजा वा
गुड़ियों का खेल कहते हो। ऐसे ही मास्टर भाग्य-विधाता बच्चे भी इन छोटी-छोटी बातों
की गुड़ियों का खेल बहुत करते हैं। रीयल बात नहीं होती लेकिन हिसाब-किताब चुक्तु
होने के लिए व धारणाओं का पेपर लेने के लिए व अपनी स्थिति की चेकिंग होने के लिए
यह बातें जीवन में नये-नये रूप से आती रहती हैं। निर्जीव बातें, असार बातें - लेकिन जब सामने आती हैं, जैसे वह जड़ मूर्ति में प्राण भर देते
हैं और इतना विस्तार बना देते हैं वैसे आप सभी भी कभी ईर्ष्या की गुड़िया, कभी बहम की गुड़िया, कभी अनुमान की गुड़िया, कभी आवेश की गुड़िया, कभी रोब की गुड़िया, अर्थात् मूर्ति बनाकर बात रूपी गुड़िया
में प्राण भर देते हो। और अनुभव करते और कराते हो कि यह सत्य है। यही बात ठीक है -
यह प्राण भर देते हो। और, फिर क्या
करते हो? आप लोगों का
गीत बना हुआ है ना - डूब जा,
डूब जा...तो क्या करते हो?
उसी बात रूपी मूर्ति को आगे-पीछे की स्मृतियों से खूब सजाते हो। साथ-साथ जैसे
वह भोग लगाते हैं देवी को अथवा मूर्ति को वैसे आप भी कौन-सा भोग लगाते हो? ज्ञान की प्वाँइन्ट्स उल्टे रूप से
सोचते हो अर्थात भोग लगाते हो। यह तो होता ही है, यह तो सबमें होता है। ड्रामा अनुसार
पुरूषार्था हैं, कर्मातीत तो
अन्त में बनना है। इसी प्रकार के ज्ञान की भिन्न-भिन्न वैराइटी प्वाँइन्ट्स का रोज
भोग लगाते-लगाते मजबूत कर देते हो, पक्का कर देते हो। पहले कच्चे भोजन का भोग लगाते फिर पक्का
कर देते हो। और फिर उन प्वाँइन्टस को अर्थात् भोग को अकेले नहीं खाते, अपने साथ-साथ पण्डे, कुटुम्ब भी बिठाते हो अर्थात् और भी परिवार
के साथी बनाते हो, उनकी बुद्धि
को भी यह भोजन स्वीकार कराते हो। लेकिन अन्त में क्या करना पड़ता है, ज्ञान-सागर बाप की याद में
बीती-सो-बीती के ज्ञान-सागर की लहर में, स्व उन्नति की लहर में, हाई जम्प लगाने की लहर में, स्मृति स्वरूप के स्मृति की लहर में, मास्टर नॉलेजफुल स्वरूप की लहर में, इन अनेक लहरों के बीच इन गुड़ियों को
अथवा मूर्तियों को डुबोना ही पड़ता है। लेकिन इतने सारे समय को क्या कहेंगे? इस सारे गुड़ियों के खेल को, जैसे भक्ति वालों को कहते हो वेस्ट आफ
टाइम और मनी, वैसे ही
संगम का सर्वश्रेष्ठ समय और ज्ञान वा शक्तियों के खजाने को इतना व्यर्थ कर देते
हो। तो यह छोटी-छोटी बातें क्या हुई? गुड़ियों का खेल। इस खेल में कभी भी अपने को व्यस्त मत करो।
सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को देखो।
वर्तमान समय के
प्रमाण अभी वानप्रस्थ अवस्था के समीप हो। वानप्रस्थी गुड़ियों का खेल नहीं करते
हैं। वानप्रस्थी एकान्त और सुमिरण में रहते हैं। तो आप सब बेहद के वानप्रस्थी सदा
एक के अन्त में अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप रहो। यह है बेहद के
वानप्रस्थी की स्थिति (बाप-दादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) यह स्थिति अच्छी नहीं लगती? जो चीज अच्छी लगती है वह तो सदा याद
रहती है। अब बाप व आप क्या चाहते हो? एक ही बात चाहते हो - बाप और बच्चे समान हो जाएं। सदा याद
में समाये रहें। समाना नहीं चाहते हो! समान बनना ही समाना है। समझा? कि बाप क्या चाहते हैं वा आप क्या
चाहते हो?
यह सीजन स्वरूप
देखने की है या सिर्फ सुनने की है। फिर सुनायेंगे कि समय क्या पुकार रहा है! भक्त
क्या पुकार रहे हैं! दु:खी, अशान्त
आत्मायें क्या पुकार रही हैं,
धर्म-नेतायें, वैज्ञानिक, राजनैतिक क्या पुकार रहे हैं! प्रकृति
भी क्या पुकार रही है! सबकी पुकार - हे उपकारी आत्मायें, सुनने में आती है या गुड़ियों के खेल
में बिजी हो? अच्छा - फिर
सबकी पुकार सुनायेंगे। आप लोग भी कल अमृतवेले सुनना।
सदा भाग्य को सुमिरण
करने वाले, सदा बाप के
समान, याद में समाये हुए
निरन्तर एकान्तवासी, हर घड़ी को
सफल बनाने वाले सफलतामूर्त, भक्ति के
खेल समाप्त कर मास्टर ज्ञान-सागर स्वरूप, स्मृति और समर्थी स्वरूप, ऐसे पदमापदम भाग्यशाली बच्चों को बाप-दादा का
याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों
से मुलाकात
मैसूर - सभी अपने को सर्वश्रेष्ठ आत्मायें अनुभव
करते हो? कितनी
श्रेष्ठ आत्मायें हो जो स्वयं बाप बच्चों से मिलने के लिए अपने वतन को छोड़कर आते
हैं। आधाकल्प गाया कि अपना वतन छोड़कर आ जाओ लेकिन यह मालूम नहीं था कि कब और कैसे
मिलेगा, सिर्फ
इन्तजार में दिन बिताये। अभी इन्तजार खत्म हुआ और सम्मुख मिलन मना रहे हो! ऐसा
श्रेष्ठ भाग्य और किसी का होगा?
स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि भगवान से बातें करेंगे। टोली खायेंगे, बैठेंगे और सभी प्रैक्टिकल में अनुभव
कर रहे हो। प्राप्ति के आगे यह सफर भी क्या है? बाप कितने बड़े सफर से आते हैं। बाप का स्थान दूर है या आप
का? जब खुशी होती है तो
कोई भी थकावट व तकलीफ महसूस नहीं होती। रास्ते के चार दिन निरन्तर योगी की स्टेज
होगी - कब मिलेंगे, कब
पहुँचेंगे, तो निरन्तर
योगी हो गये ना। यह भी कमाई हो गई ना। ब्राह्मण बनना माना हर कदम में कमाई। कष्ट
भी नहीं है लेकिन जैसे गुलाब के पुष्प के साथ काँटा भी होता है, वह काँटा उनके बचाव का साधन होता है।
वैसे यह तकलीफें और ही बाप की याद दिलाने के निमित्त बनती हैं। कोई भी प्रकार का
जब दु:ख आता है तो नास्तिक के मुख से भी - `हे भगवान'
निकलता है। तो दु:ख भी याद दिलाने का साधन हुआ ना। संगम पर कोई कष्ट हो नहीं
सकता। इस समय आप बच्चे बाप के सर्व खजानों के अधिकारी हो। बाप का खजाना क्या है? सुख, शान्ति, आनन्द,
प्रेम - यही तो खजाना है ना! तो अधिकारी और खुश ना रहे, यह हो कैसे सकता है। अमृतवेले सदा
स्मृति का तिलक लगाओ कि हम अधिकारी हैं। अगर तिलक लगा होगा तो सदा हर्षित रहेंगे।
तिलक को मिटने नहीं देना। माया कितना भी मिटाने की कोशिश करे लेकिन मिटाना नहीं तो
सदा `अविनाशी भव' का वरदान मिलता रहेगा। सिल्वर जुबली
मना रहे हो लेकिन गोल्डन एज की स्थिति में रहकर सिल्वर जुबली मनाओ। अच्छी हिम्मत
रखी है। रिजल्ट भी अच्छी है। अच्छे बुजुर्ग, अनुभवी और मेहनती बच्चे हैं, अच्छा सर्टिफिकेट है।
विदेशी
भाई-बहनों से:-
सभी जैसे स्थूल देश
के हिसाब से फारेनर्स हो वैसे ही आत्मा रूप से भी सदा अपने को फारेन अर्थात्
परमधाम निवासी समझ कर चलते हो?
सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व- कल्याण का कर्तव्य करने के
लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा?
जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म
करेंगे, जो भी बोल
बोलेंगे, जहाँ भी नजर
जायेगी, सर्व का
कल्याण करते रहेंगे। यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग
की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्व शक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को
रास्ता दिखाने का कार्य करें। तो सदा इस स्मृति में रहो ताकि जो भी सामने आए वह
समझे कि हम अखुट खजाने की खान के आगे आये हैं। आने से ही ऐसे महसूस करें कि मैं
ऐसे स्थान पर पहुँच गया हूँ जहाँ से सर्व प्राप्तियाँ होनी हैं। विदेशियों को ऐसे
चलते- फिरते लाइट हाउस बनकर सेवा करनी है। अगर एक ही स्थान पर इतने लाइट हाउस हो
जायेंगे तो क्या रिजल्ट निकलेगी! सब वाह-वाह के गीत गायेंगे। सदैव एक चित्र अपने
सामने रखो। जैसे आप लोग चित्र निकालते हो जिसमें अंगुली से ब्रह्मा भी शिवबाबा की
तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसे आप सबका हर कर्म, हर संकल्प बाप की तरफ इशारा करे। तो चेक करो कि मेरा संकल्प
इशारा करने वाला है। जब सर्व आत्माओं को बाप का इशारा मिल जायेगा तो आप के गुण
गाने लग जायेंगे। जैसे अभी और-और गीत गाते हैं ना, वैसे चारों ओर सभी साजों द्वारा बाप और आपके
गुणों का गीत गायेंगे। उस समय क्या सीन होगी और आप लोग कहाँ होंगे? (मधुबन में) सब मधुबन
में भाग आयेंगे तो भक्त क्या करेंगे! उस समय आप सबका साक्षात्कार होगा कि यह
बाप-दादा के दिलतख्तनशीन हैं। उस समय आप तख्तनशीन नजर आयेंगे तब सारी दुनिया
हाय-हाय करेगी और आप लोग उनको वरदान देंगे। ऐसा साक्षात्कार अपने आपको अपना होता
है कि हम तख्तनशीन हैं!
ब्राह्मण अर्थात्
अधिकारी। तो अधिकार लेना है वा जन्म से ही अधिकारी हो? बाप-दादा सभी को सदैव तख्त और ताजधारी
देखते हैं। तख्त से उतर आते हो क्या? जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं वह कभी भी बिना गलीचे के नीचे
पाँव नहीं रखतीं। आप सबसे बड़े-से-बड़े हो तो तख्त से नीचे नहीं पाँव रखना। तख्त पर
ही खाते हो, पीते हो, घूमते हो, चलते हो इतना बड़े-से-बड़ा तख्त है।
समझा।
डबल विदेशी बच्चों
को जो सेवा दी है वह कर रहे हैं ना। अभी सभी इन्तजार कर रहे हैं कि कब फारेन की
आवाज से भारत के कुम्भकरण जागते हैं। अभी बुलन्द आवाज करो। फारेन सर्विस की रिजल्ट
अच्छी है। अभी आगे क्या करना है?
(प्लान सुनाया) प्लान तो अच्छा है, यह तो करेंगे ही लेकिन अभी ऐसा कोई वातावरण बनाओ जो वातावरण
चुम्बक जैसा कार्य करे। चारों ओर फैल जाए कि अगर शान्ति, सुख या प्रेम चाहिए तो यहाँ से मिल
सकता है। एडवरटाइजमेन्ट हो जाए। आजकल वाणी की बजाय वायब्रेशन्स से प्राप्ति करने
के इच्छुक ज्यादा हैं। स्पीच करो लेकिन उसके पहले ऐसे वातावरण की आवाज जरूर फैलाओ।
सभी अनुभव करें - जैसे प्यासे की प्यास पानी से बुझ जाती है ऐसे आत्माओं की शान्ति, सुख की प्यास बुझ जाए। जैसे स्थापना
के शुरू में एक दिन भी कोई सत्संग में आ जाते थे तो पहले दिन ही कुछ- न-कुछ अनुभव
करके जाते थे। जो आदि में वह अन्त में विस्तार के रूप में होना है। ऐसा कुछ
वातावरण बनाओ। वह तब होगा जब आप सभी निरन्तर इस स्थिति में स्थित रहेंगे। फिर
सूर्य की किरणों के मुआिफक सब अनुभव करेंगे। सबकी नजर जायेगी कि यह कहाँ से किरणें
आ रही हैं। ऐसा अभी पुरूषार्थ करना। सभी रिफ्रेश तो बहुत हो रहे हो। ऐसे रिफ्रेश
हुए हो जो अनेकों को रिफ्रेश करते हुए सदा रिफ्रेश रहें! इस बारी विशेष एक शब्द पर
डबल अन्डर लाइन करके जाना। वह कौन सा? निरन्तर। चाहे संकल्प, चाहे बोल लेकिन - `निरन्तर'
शब्द को डबल अन्डरलाइन करके जाना। याद की यात्रा में निरन्तर, ज्ञान स्वरूप में निरन्तर, धारणा में निरन्तर, सेवा में भी निरन्तर। चारों सबजेक्टस
में निरन्तर को डबल अन्डरलाइन करके जाना। समझा - यह एक शब्द वरदान के रूप में ले
जाना।
प्लान लम्बे नहीं
बनाओ लेकिन प्रैक्टिकल के और जल्दी के बनाओ, उसके लिए यही इशारा है अपना तन-मन-धन शक्तियाँ जितना जल्दी
यूज करेंगे उतना फायदा है। अभी समय है, फिर टू-लेट हो जायेंगे। करने के लिए डेट का इन्तजार नहीं
करो, कल भी नहीं, आज भी नहीं, अभी करो क्योंकि अगर डेट बतायेंगे तो
बहुत समय का जमा नहीं होगा - डेट का जमा हो जायेगा। फिर डेट की इन्तजार में चले
जायेंगे। इन्तजाम कम करेंगे। डेट कान्सेस हो जायेंगे। सोल कान्सेस नहीं रहेंगे।
हर एरिया में सन्देश
पहुंचाने की कोशिश करो जिससे कोई उलहना न दे कि हमें पता नहीं है। सर्विस करते जाओ
तो सब आपेही ऑफर करेंगे कि यहाँ सेन्टर खोलो। अच्छा।
वरदान:- पावरफुल वृत्ति
द्वारा मन्सा सेवा करने वाले विश्व कल्याणकारी भव !
विश्व की तड़पती हुई
आत्माओं को रास्ता बताने के लिए साक्षात बाप समान लाइट हाउस, माइट हाउस बनो। लक्ष्य रखो कि हर
आत्मा को कुछ न कुछ देना है। चाहे मुक्ति दो चाहे जीवनमुक्ति। सर्व के प्रति
महादानी और वरदानी बनो। अभी अपने-अपने स्थान की सेवा तो करते हो लेकिन एक स्थान पर
रहते मन्सा शक्ति द्वारा वायुमण्डल, वायब्रेशन द्वारा विश्व सेवा करो। ऐसी पावरफुल वृत्ति बनाओ
जिससे वायुमण्डल बने - तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी आत्मा।
स्लोगन:- अशरीरी पन की एक्सरसाइज और व्यर्थ संकल्प रूपी
भोजन की परहेज से स्वयं को तन्दरूस्त बनाओ।
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