आइए हम बने सोला कलाओं के अधिकारी....
1. एक सेकेंड मे बिन्दि स्वरूप बन हर आत्मा की पात्र को साक्षी हो देखते द्वैत भाव से परे रहेंगे।
2. बहुतकाल की अशरीरीपन के अभ्यास से अन्त मे कर्मातीत बन जाना।
3. हर कर्म करते सबसे न्यारे, बाप और ब्राह्मण परिवार के प्यारे।
4. इच्छा (मान, अल्पकाल कि पद, पोजिशन) मात्रम (क्यू, क्या, कैसे, कब, कौन, एसे, वैसे) से अविध्या।
5. अन्तर्मुखता द्वारा जब चाहो आवाज़ मे आए (टाकी) और जब चाहे आवाज़ से परे (मूवी टू सैलेन्स) हो जये।
6. इस बेहद ड्रामा मे हर एक के पार्ट को साक्षि दृष्ठा बनकर देखना हैं।
7. हर प्रकार की सेवा करते करनकरावन बाप के श्रेष्ठ स्मृती से स्वयं को ट्रस्टीपन की अनुभव करना।
8. स्वयं संतुष्ठमणि बन सबको अपने गुण, शक्तियों, विशेषताओ से संतुष्ठ करना।
9. हर घडी स्वयं मे, बाप मे, ड्रामा मे निश्चय बुद्धी रहें।
10. मान, अपमान, निंदा, स्तुति मे एकरस अवस्था मे रहे।
11. इस समय मे स्वयं पर स्वयं का अधिकारीपन से भविष्य मे श्रेष्ठ राज्याधिकार प्राप्त करे।
12. हर घडि स्मृति स्वरूप सो समर्थि स्वरूप रहे।
13. हमारे चहरे और चलन से बाप को प्रत्यक्ष (साक्षात्कार) कराने वाले साक्षातमूर्त बने।
14. माया के बिन्न बिन्न रायल सीसन और स्वरूप को पह्ले जानकर मायाजीत सो जगतजीत बन जाए।
15. स्वयं द्या हृदयी बन हर एक आत्मा के बिन्न बिन्न स्वभाव संस्कारों को देखते हुए भी किसि से भी नफ़रत नहीं करना सबके स्नेही सहयोगी रहना।
16. हर घडी एक बाप से ही सुनते परचिंतन, परदर्शन, परमत से मुक्त रह ब्रह्मण जीवन मे सफ़लता मूर्त बन जाना।
कल्याणकारी संगमयुग मे अमूल्य ब्राह्मण जीवन मे इन सोला कलाओ को अपना बनाना माना भविष्य मे सोला कला संपूर्ण बनना।
एक बाप के मीठी मधुर शक्तिशाली याद मे
गाडली स्टूडेंट
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