Points to Churn: विचार सागर मंथन: January 28, 2014 (H&E)
प्रश्न:- अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किन बच्चों को हो सकता है?
उत्तर:- 1- जो देही-अभिमानी हैं, इसके लिए जब किसी से बात करते हो या समझाते हो तो समझो मैं आत्मा भाई से बात करता हूँ | भाई-भाई की दृष्टि पक्की करने से देही –अभिमानी बनते जायेंगे | 2- जिन्हें नशा है कि हम भगवान के स्टूडेन्ट हैं उन्हें ही अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होगा |
स्लोगन:- साइन्स के साधनों को यूज़ करो लेकिन अपने जीवन का आधार नहीं बनाओ |
Om Shanti Divine Angels!!!
Points to Churn: January 28, 2014
Praise of the Father: The Highest-on-high Incorporeal...Supreme Father the Supreme Soul...is the Unlimited Father...Creator...Bestower of Salvation, Liberator and Guide...
Points of Self Respect: We, the fortunate souls, the truth, the living beings and the embodiments of bliss... the few out of multimillions ... the maharathis with a broad and unlimited intellect ... the Raj Rishis with the intoxication of the right to all attainments and the alokik intoxication of unlimited disinterest....who experience super sensuous joy by being soul conscious...who become the masters of the world with the power of yoga and purity... who imbibe divine virtues......and become the gods and goddesses of the deity religion... and the crowned emperors and empresses...are the Brahma Kumars and Brahma Kumaris... the mouth-born creations of Brahma...
Knowledge: In the kingdom of Rama, there is just the one original, eternal, deity religion. That is called Arya and Unarya. Those who are reformed are said to be Aryan and those who areunreformedare called Unaryan. Arya was not a religion. Those deities were reformed and then, while taking 84 births, they became unreformed. Those who were the highest,worthy-of-worship ones then became worshippers.
The soul is the truth, theliving being and the embodiment of bliss. What would those who don't consider themselves to be souls beable to imbibe? Only by having remembrance will you be filled with power. It is not said to be the power of knowledge. It is said:The power of yoga. Itis only with the power ofyoga that you become the masters of the world.
Yoga:Father now says: May you be soul conscious! Constantly remember Me alone and you will receive power from Me. This religion is filled with power. Give others light through your remembrance of the Father. Even the world becomes pure with your power of yoga. You make the world pure with yoga. Constantly remain far from all attractions of the old body and world.
Dharna: Your face should be first class. Use the facilities of science, but do not make them the basis of your life. Continue toremember Baba with love, constantly follow shrimat and always payattention to the study and everyone will give you regard. Only those who have the intoxication of being God's students will experience supersensuousjoy.
When you arespeaking or explaining to someone, consider yourself, the soul, to be speaking to your brother soul. In order for your intellect to imbibe true knowledge,you have to make the vessel of your intellect pure and clean. Remove wastefulthings from your intellect.Imbibe divine virtues. Become Raj Rishis with the intoxication of the right to all attainments and the alokik intoxication of unlimited disinterest.
Service: You have to make many others similar to yourselves. First of all, give the Father’s introduction. You can explain the cycle very clearly. This is the confluence age when you receive liberation and liberation-in-life. It is very good to explain the picture of the ladder.Nothing will happen through just giving lectures. When you give lectures, you have to explain: I, this soul, am explaining to my brother souls.
ॐ शान्ति दिव्य फरिश्ते!!!
विचार सागर मंथन:January 28, 2014
बाबा की महिमा : ऊँचते ऊँच निराकार ... परमपिता परमात्मा... बेहद काबाप... क्रियेटर... सद्गति दाता,लिबरेटर, गाइड है...
स्वमान : हम भाग्यशाली सत् चित,आनन्द स्वरूप आत्माएँ..... कोटों में कोई...विशाल बेहद की बुद्धि वाले महारथी .... पुरानी देह वा दुनिया की सर्व आकर्षणों से सहज और सदा दूर रहने वाले राजऋषि... देही-अभिमानी होकर अतीन्द्रिय सुख अनुभव करनेवाले... पवित्रता और योगबल से विश्व के मालिक बनने वाले ... दैवी गुण धारण कर ... देवता धर्म के भगवान भगवती... सिरताज वाले महारानी महाराजा बननेवाले... प्रजापिता ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारियां... ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण... हैं...
ज्ञान : रामराज्यमें एक हीआदि सनातन देवी-देवताधर्म था | उनकोआर्य और अनआर्यकहते हैं | आर्यसुधरे हुए, अनआर्यन सुधरे हुए कोकहा जाता है| आर्य कोई धर्मनहीं था | सुधरेहुए यह देवतायेंथे फिर 84 जन्म केबाद अनसुधरे बनतेहैं | जो ऊँचेते ऊँच पूज्य थेवही पुजारी बनपड़े |
आत्मा सत् चित,आनन्द स्वरूप है| जो अपने को आत्माही नहीं समझते वहक्या धारणा करेंगे| याद से हीतुम्हारे में जौहरभरेगा | ज्ञान कोबल नहीं कहा जाताहै | योगबल कहाजाता है | योगबलसे ही तुम विश्व केमालिक बनते हो|
योग : बाप कहते हैं आत्म-अभिमानी भव | मामेकम् याद करो तो मेरे से शक्ति मिलेगी | यह धर्म बहुत ताकत वाला है | बाप की याद से ही तुम औरों को लाइट देते हो | तुम्हारे योग की ताकत से विश्व भी पवित्र बन जाता है | तुम योग से विश्व को पवित्र बनाते हो | पुरानी देह वा दुनिया की सर्व आकर्षणों से सहज और सदा दूर रहना है |
धारणा : तुम्हारा चेहरा फर्स्टक्लास होना चाहिए | साइन्स के साधनों को यूज़ करो लेकिन अपने जीवन का आधार नहीं बनाओ | बाबा को प्यार से याद करते रहो, श्रीमत पर सदा चलो, पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दो तो तुम्हें सब रिगार्ड देंगे | जिन्हें नशा है कि हम भगवान के स्टूडेन्ट हैं उन्हें ही अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होगा |
जब किसी से बात करते हो या समझाते हो तो समझो मैं आत्मा भाई से बात करता हूँ |
सत्य ज्ञान को बुद्धि में धारण करने के लिए बुद्धि रूपी बर्तन को साफ़ स्वच्छ बनाना है | व्यर्थ बातों को बुद्धि से निकाल देना है | दैवी गुणों की धारणा करनी है | एक तरफ़ सर्व प्राप्ति के अधिकार का नशा और दूसरे तरफ़ बेहद की वैराग्य का अलौकिक नशा रखनेवाले राजऋषि बनना है |
सेवा : तुमकोबहुतों को आपसमान बनाना है| पहले-पहले बापका परिचय देना है| चक्र पर भीतुम अच्छी रीतिसमझा सकते होकि यह है संगम जब किमुक्ति और जीवनमुक्तिमिलती है | सीढीपर समझाना बहुत अच्छाहै | सिर्फ़भाषण से कामनहीं होगा | जबभाषण करते होतो भी समझना है किमैं आत्मा भाई,भाई को समझाताहूँ |
Song: Kaun aaya mere man ke dware कौन आया मेरे मन के द्वारे.. Who came to the door of my mind with the sound of ankle bells?
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28-01-2014:
Essence: Sweet children, continue toremember Baba with love, constantly follow shrimat and always payattention to the study and everyone will give you regard.
Question:Which children can experience supersensuous joy?
Answer:Those who are soul conscious. 1. To achieve this, when you are speaking or explaining to someone, consideryourself, the soul, to be speakingto your brother soul. By making thevision of brotherhood firm, you will continue to become soul conscious. 2. Only those who have the intoxication of being God's students will experience supersensuousjoy.
Song: Who has come to the door of my mind with the sound of ankle-bells?
Essence for Dharna:
1. In order for your intellect to imbibe true knowledge,you have to make the vessel of your intellect pure and clean. Remove wastefulthings from your intellect.
2. Pay full attention to imbibingdivine virtues and the study and experience supersensuousjoy. Always maintain the intoxication of being God's children and that He Himself is teaching you.
Blessing: May you be a Raj Rishi who easily and constantly remai ns far from all attractions of the old body and world.
A Raj Rishi means, on the one hand, to have the intoxication of the right to all attainments and, on the other hand, to have alokik intoxication of unlimited disinterest. Now continue to increase the practice of both these stages. Disinterest does not mean to step away, but, while youhave all attainments, limited attractions should not attract your mind or intellect.There shouldn't be the slightest dependence even in your thoughts. This is known as being a Raj Rishi,that is, one who has unlimited disinterest. It means easily and constantly to remain far fromall the attractions of your old body and the old world of your body, from all gross feelings and material possessions.
Slogan: Use the facilities of science, but do not make them the basis of your life.
Slogan: Use the facilities of science, but do not make them the basis of your life.
28-01-2014:
सार:- मीठे बच्चे – बाबा को प्यार से याद करते रहो, श्रीमत पर सदा चलो, पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दो तो तुम्हें सब रिगार्ड देंगे |
प्रश्न:- अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किन बच्चों को हो सकता है?
उत्तर:- 1- जो देही-अभिमानी हैं, इसके लिए जब किसी से बात करते हो या समझाते हो तो समझो मैं आत्मा भाई से बात करता हूँ | भाई-भाई की दृष्टि पक्की करने से देही –अभिमानी बनते जायेंगे | 2- जिन्हें नशा है कि हम भगवान के स्टूडेन्ट हैं उन्हें ही अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होगा |
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. सत्य ज्ञान को बुद्धि में धारण करने के लिए बुद्धि रूपी बर्तन को साफ़ स्वच्छ बनाना है | व्यर्थ बातों को बुद्धि से निकाल देना है |
2. दैवी गुणों की धारणा और पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है | सदा इसी नशे में रहना है कि हम भगवान के बच्चे हैं, वही हमको पढ़ाते हैं |
वरदान:- पुरानी देह वा दुनिया की सर्व आकर्षणों से सहज और सदा दूर रहने वाले राजऋषि भव
राजऋषि अर्थात् एक तरफ़ सर्व प्राप्ति के अधिकार का नशा और दूसरे तरफ़ बेहद की वैराग्य का अलौकिक नशा | वर्तमान समय इन दोनों अभ्यास को बढाते चलो | वैराग्य माना किनारा नहीं लेकिन सर्व प्राप्ति होते भी हद की आकर्षण मन बुद्धि को आकर्षण में नहीं लाये | संकल्प मात्र भी अधीनता न हो इसको कहते हैं राजऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी | यह पुरानी देह वा देह की पुरानी दुनिया, व्यक्त भाव, वैभवों का भान इन सब आकर्षणों से सदा और सहज दूर रहने वाले |
स्लोगन:- साइन्स के साधनों को यूज़ करो लेकिन अपने जीवन का आधार नहीं बनाओ |
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