Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

01.7.15 Hindi Murli



01.7.15
``मीठे बच्चे - सभी को यह खुशखबरी सुनाओ कि अब फिर से विश्व में शान्ति स्थापन हो रही है, बाप आये हैं एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करने''
प्रश्न : तुम बच्चों को बार-बार याद में रहने का इशारा क्यों दिया जाता है?
उत्तर:- क्योंकि एवर हेल्दी और सदा पावन बनने के लिए है ही याद इसलिए जब भी टाइम मिले याद में रहो। सवेरे-सवेरे स्नान आदि कर फिर एकान्त में चक्र लगाओ या बैठ जाओ। यहाँ तो कमाई ही कमाई है। याद से ही विश्व के मालिक बन जायेंगे।
ओम् शान्ति। मीठे बच्चे जानते हैं कि इस समय सभी विश्व में शान्ति चाहते हैं। यह आवा॰ज सुनते रहते हैं कि विश्व में शान्ति कैसे हो? परन्तु विश्व में शान्ति कब थी जो फिर अब चाहते हैं-यह कोई नहीं जानते। तुम बच्चे ही जानते हो विश्व में शान्ति थी जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अभी तक भी लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते रहते हैं। तुम कोई को भी यह बता सकते हो विश्व में शान्ति 5 ह॰जार वर्ष पहले थी, अब फिर से स्थापन हो रही है। कौन स्थापन करते हैं? यह मनुष्य नहीं जानते। तुम बच्चों को बाप ने समझाया है, तुम किसको भी समझा सकते हो। तुम लिख सकते हो। परन्तु अभी तक कोई को हिम्मत नहीं है जो किसको लिखे। अखबार में आवा॰ज सुनते तो हैं-सब कहते हैं विश्व में शान्ति हो। लड़ाई आदि होगी तो मनुष्य विश्व में शान्ति के लिए यज्ञ रचेंगे। कौन-सा यज्ञ? रूद्र यज्ञ रचेंगे। अभी बच्चे जानते हैं इस समय बाप जिसको रूद्र शिव भी कहा जाता है, उसने ज्ञान यज्ञ रचा है। विश्व में शान्ति अब स्थापन हो रही है। सतयुग नई दुनिया में जहाँ शान्ति थी जरूर राज्य करने वाले भी होंगे। निराकारी दुनिया के लिए तो नहीं कहेंगे कि विश्व में शान्ति हो। वहाँ तो है ही शान्ति। विश्व मनुष्यों की होती है। निराकारी दुनिया को विश्व नहीं कहेंगे। वह है शान्तिधाम। बाबा बार-बार समझाते रहते हैं फिर भी कोई भूल जाते हैं, कोई-कोई की बुद्धि में है वह समझा सकते हैं। विश्व में शान्ति कैसे थी, अब फिर कैसे स्थापन हो रही है-यह किसको समझाना बहुत सहज है। भारत में जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म का राज्य था तो एक ही धर्म था। विश्व में शान्ति थी, यह बड़ी सहज समझाने की और लिखने की बात है। बड़े-बड़े मन्दिर बनाने वालों को भी तुम लिख सकते हो-विश्व में शान्ति आज से 5 ह॰जार वर्ष पहले थी, जब इनका राज्य था, जिनके ही तुम मन्दिर बनाते हो। भारत में ही इन्हों का राज्य था और कोई धर्म नहीं था। यह तो सहज है और सयानप की बात है। ड्रामा अनुसार आगे चल सब समझ जायेंगे। तुम यह खुशखबरी सबको सुना सकते हो, छपा भी सकते हो, ब्युटीफुल कार्ड पर। विश्व में शान्ति आज से 5 ह॰जार वर्ष पहले थी, जब नई दुनिया नया भारत था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब फिर से विश्व में शान्ति स्थापन हो रही है। यह बातें सिमरण करने से भी तुम बच्चों को बड़ी खुशी होनी चाहिए। तुम जानते हो बाप को याद करने से ही हम विश्व के मालिक बनने वाले हैं। सारा मदार तुम बच्चों के पुरूषार्थ पर है। बाबा ने समझाया है जो भी टाइम मिले बाबा की याद में रहो। सवेरे में स्नान कर फिर एकान्त में चक्र लगाओ या बैठ जाओ। यहाँ तो कमाई ही कमाई करनी है। एवर हेल्दी और सदा पावन बनने के लिए ही याद है। यहाँ भल सन्यासी पवित्र हैं, तो भी बीमार जरूर होते हैं। यह है ही रोगी दुनिया। वह है निरोगी दुनिया। यह भी तुम जानते हो। दुनिया में किसको क्या पता कि स्वर्ग में सब निरोगी होते हैं। स्वर्ग किसको कहा जाता है, कोई को पता नहीं। तुम अभी जानते हो। बाबा कहते हैं-कोई भी मिले तुम समझा सकते हो। समझो कोई राजा-रानी अपने को कहलाते हैं। अब राजा-रानी तो कोई हैं नहीं। बोलो तुम अभी राजा-रानी तो हो नहीं। यह बुद्धि से भी निकालना पड़े। महाराजा-महारानी श्री लक्ष्मी-नारायण की राजधानी तो अब स्थापन हो रही है। तो जरूर यहाँ कोई भी राजा-रानी नहीं होने चाहिए। हम राजा-रानी हैं यह भी भूल जाओ। ऑर्डनरी मनुष्यों के मुआि॰फक चलो। इन्हों के पास भी पैसे सोना आदि रहता तो है ना। अभी कायदे पास हो रहे हैं, यह सब ले लेंगे। फिर कॉमन मनुष्यों के मुआि॰फक हो जायेंगे। यह भी युक्तियां रच रहे हैं। गायन भी है ना, किसकी दबी रहे धूल में, किसकी राजा खाए. . . . अब राजा कोई की खाते नहीं हैं। राजायें तो हैं नहीं। प्रजा ही प्रजा का खा रही है। आजकल का राज्य बड़ा वन्डरफुल है। जब बिल्कुल राजाओं का नाम निकल जाता है तो फिर राजधानी स्थापन होती है। अभी तुम जानते हो-हम वहाँ जा रहे हैं जहाँ विश्व में शान्ति होती है। है ही सुखधाम, सतोप्रधान दुनिया। हम वहाँ जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं। बच्चियां भभके से बैठकर समझायें, बाहर का सिर्फ आर्टाफिशल भभका नहीं चाहिए। आजकल तो आर्टाफिशल भी बहुत निकले हैं ना। यहाँ तो पक्के ब्रह्माकुमार-कुमारियां चाहिए।
तुम ब्राह्मण ब्रह्मा बाप के साथ विश्व में शान्ति की स्थापना का कार्य कर रहे हो। ऐसे शान्ति स्थापन करने वाले बच्चे बहुत शान्तचित और बहुत मीठे चाहिए क्योंकि जानते हैं-हम निमित्त बने हैं विश्व में शान्ति स्थापन करने। तो पहले हमारे में बहुत शान्ति चाहिए। बातचीत भी बहुत आहिस्ते-आहिस्ते बड़ी रॉयल्टी से करनी है। तुम बिल्कुल गुप्त हो। तुम्हारी बुद्धि में अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना भरा हुआ है। बाप के तुम वारिस हो ना। जितना बाप के पास खजाना है, तुमको भी पूरा भरना चाहिए। सारी मिलकियत आपकी है, परन्तु वह हिम्मत नहीं है तो ले नहीं सकते। लेने वाले ही ऊंच पद पायेंगे। कोई को समझाने का बड़ा शौक चाहिए। हमको भारत को फिर से स्वर्ग बनाना है। धंधा आदि करते साथ में यह भी सार्विस करनी है इसलिए बाबा जल्दी-जल्दी करते हैं। फिर भी होता तो ड्रामा अनुसार ही है। हर एक अपने टाइम पर चल रहा है, बच्चों को भी पुरूषार्थ करा रहे हैं। बच्चों को निश्चय है कि अभी बाकी थोड़ा समय है। यह हमारा अन्तिम जन्म है फिर हम स्वर्ग में होंगे। यह दु:खधाम है फिर सुखधाम हो जायेगा। बनने में टाइम तो लगता है ना। यह विनाश छोटा थोड़ेही है। जैसे नया घर बनता है तो फिर नये घर की ही याद आती है। वह है हद की बात, उसमें कोई सम्बन्ध आदि थोड़ेही बदल जाते हैं। यह तो पुरानी दुनिया ही बदलनी है फिर जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह राजाई कुल में आयेंगे। नहीं तो प्रजा में चले जायेंगे। बच्चों को बड़ी खुशी होनी चाहिए। बाबा ने समझाया है 50-60 जन्म तुम सुख पाते हो। द्वापर में भी तुम्हारे पास बहुत धन रहता है। दु:ख तो बाद में होता है। राजायें जब आपस में लड़ते हैं, फूट पड़ती है तब दु:ख शुरू होता है। पहले तो अनाज आदि भी बहुत सस्ते होते हैं। फैमन आदि भी बाद में पड़ती है। तुम्हारे पास बहुत धन रहता है। सतोप्रधान से तमोप्रधान में धीरे-धीरे आते हो। तो तुम बच्चों को अन्दर में बहुत खुशी रहनी चाहिए। खुद को ही खुशी नहीं होगी, शान्ति नहीं होगी तो वह विश्व में शान्ति क्या स्थापन करेंगे! बहुतों की बुद्धि में अशान्ति रहती है। बाप आते ही हैं शान्ति का वरदान देने। कहते हैं मुझे याद करो तो तमोप्रधान बनने कारण जो आत्मा अशान्त हो पड़ी है वह याद से सतोप्रधान शान्त बन जायेगी। परन्तु बच्चों से याद की मेहनत पहुँचती ही नहीं है, याद में न रहने के कारण ही फिर माया के तूफान आते हैं। याद में रहकर पूरा पावन नहीं बनेंगे तो स॰जा खानी पड़ेगी। पद भी भ्रष्ट होगा। ऐसे नहीं समझना चाहिए स्वर्ग में तो जायेंगे ना। अरे, मार खाकर पाई पैसे का सुख पाना यह कोई अच्छा है क्या। मनुष्य ऊंच पद पाने के लिए कितना पुरूषार्थ करते हैं। ऐसे नहीं कि जो मिला सो अच्छा है। ऐसा कोई नहीं होगा जो पुरूषार्थ नहीं करेगा। भीख मांगने वाले फकीर लोग भी अपने पास पैसे इकùे करते हैं। पैसे के तो सभी भूखे होते हैं। पैसे से हर बात का सुख होता है। तुम बच्चे जानते हो हम बाबा से अथाह धन लेते हैं। पुरूषार्थ कम करेंगे तो धन भी कम मिलेगा। बाप धन देते हैं ना। कहते भी हैं-धन है तो अमेरिका आदि का चक्र लगाओ। तुम जितना बाप को याद करेंगे और सार्विस करेंगे उतना सुख पायेंगे। बाप हर बात में पुरूषार्थ कराते, ऊंच बनाते हैं। समझते हैं बच्चे नाम बाला करेंगे हमारे कुल का। तुम बच्चों को भी ईश्वरीय कुल का, बाप का नाम बाला करना है। यह सत बाप, सत टीचर, सतगुरू ठहरा। ऊंच ते ऊंच बाप ऊंच ते ऊंच सच्चा सतगुरू भी ठहरा। यह भी समझाया है कि गुरू एक ही होता है, दूसरा न कोई। सर्व का सद््गति दाता एक। यह भी तुम जानते हो। अभी तुम पारसबुद्धि बन रहे हो। पारसपुरी के पारसनाथ राजा-रानी बनते हो। कितनी सहज बात है। भारत गोल्डन एजड था, विश्व में शान्ति कैसे थी-यह तुम इस लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर समझा सकते हो। हेविन में शान्ति थी। अभी है हेल। इनमें अशान्ति है। हेविन में यह लक्ष्मी-नारायण रहते हैं ना। कृष्ण को लॉर्ड कृष्णा भी कहते हैं। कृष्ण भगवान भी कहते हैं। अब लॉर्ड तो बहुत हैं, जिसके पास लैण्ड (जमीन) जास्ती होती है उनको भी कहते हैं-लैण्डलार्ड। कृष्ण तो विश्व का प्रिन्स था, जिस विश्व में शान्ति थी। यह भी किसको पता नहीं राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
तुम्हारे लिए लोग कितनी बातें बनाते हैं, हंगामा मचाते हैं, कहते हैं यह तो भाई-बहन बनाते हैं। समझाया जाता है प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण, जिसके लिए ही गाते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:। ब्राह्मण भी उन्हों को नमस्ते करते हैं क्योंकि वह सच्चे भाई-बहन हैं। पवित्र रहते हैं। तो पवित्र की क्यों नहीं इज्॰जत करेंगे। कन्या पवित्र है तो उनके भी पांव पड़ते हैं। बाहर का विजीटर आयेगा, वह भी कन्या को नमन करेगा। इस समय कन्या का इतना मान क्यों हुआ है? क्योंकि तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो ना। मैजारिटी तुम कन्याओं की है। शिवशक्ति पाण्डव सेना गाई हुई है। इनमें मेल भी हैं, मैजारटी माताओं की है इसलिए गाया जाता है। तो जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वह ऊंच बनते हैं। अभी तुम सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी जान गये हो। चक्र पर भी समझाना बहुत सहज है। भारत पारसपुरी था, अभी है पत्थरपुरी। तो सभी पत्थरनाथ ठहरे ना। तुम बच्चे इस 84 के चक्र को भी जानते हो। अभी जाना है घर तो बाप को भी याद करना है, जिससे पाप कटते हैं। परन्तु बच्चों से याद की मेहनत पहुँचती नहीं है क्योंकि अलबेलापन है। सवेरे उठते नहीं हैं। अगर उठते हैं तो मजा नहीं आता। नींद आने लगती है तो फिर सो जाते हैं। होपलेस हो जाते हैं। बाबा कहते हैं-बच्चे, य्ाह युद्ध का मैदान है ना। इसमें होपलेस नहीं होना चाहिए। याद के बल से ही माया पर जीत पानी है। इसमें मेहनत करनी चाहिए। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे जो यथार्थ रीति याद नहीं करते, चार्ट रखने से घाटे-फायदे का पता पड़ जाता है। कहते हैं चार्ट ने तो मेरी अवस्था में कमाल कर दी है। ऐसे विरला कोई चार्ट रखता है। यह भी बड़ी मेहनत है। बहुत सेन्टर्स में झूठे भी जाकर बैठते हैं, विकर्म करते रहते हैं। बाप के डायरेक्शन पर अमल न करने से बहुत नुकसान कर देते हैं। बच्चों को पता थोड़ेही पड़ता है-निराकार कहते हैं वा साकार? बच्चों को बार-बार समझाया जाता है-हमेशा समझो शिवबाबा डायरेक्शन देते हैं। तो तुम्हारी बुद्धि वहाँ लगी रहेगी।
आजकल सगाई होती है तो चित्र दिखाते हैं, अखबार में भी डालते हैं कि इनके लिए ऐसे-ऐसे अच्छे घर की चाहिए। दुनिया का क्या हाल हो गया है, क्या होने का है! तुम बच्चे जानते हो अनेक प्रकार की मतें हैं। तुम ब्राह्मणों की है एक मत। विश्व में शान्ति स्थापन करने की मत। तुम श्रीमत से विश्व में शान्ति स्थापन करते हो तो बच्चों को भी शान्ति में रहना पड़े। जो करेगा सो पायेगा। नहीं तो बहुत घाटा है। जन्म-जन्मान्तर का घाटा है। बच्चों को कहते हैं अपना घाटा और फायदा देखो। चार्ट देखो हमने किसको दु:ख तो नहीं दिया? बाप कहते हैं तुम्हारा यह समय एक-एक सेकण्ड मोस्ट वैल्युबुल है, मोचरा खाकर मानी टुक्कड़ खाना वह क्या बड़ी बात है। तुम तो बहुत धनवान बनने चाहते हो ना। पहले- पहले जो पूज्य हैं उनको ही पुजारी बनना है। इतना धन होगा, सोमनाथ का मन्दिर बनायें तब तो पूजा करें। यह भी हिसाब है। बच्चों को फिर भी समझाते है चार्ट रखो तो बहुत फायदा होगा। नोट करना चाहिए। सबको पैगाम देते जाओ, चुप करके नहीं बैठो। ट्रेन में भी तुम समझाकर लिटरेचर दे दो। बोलो, यह करोड़ों की मिलकियत है। लक्ष्मी-नारायण का भारत में जब राज्य था तो विश्व में शान्ति थी। अब बाप फिर से वह राजधानी स्थापन करने आये हैं, तुम बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों और विश्व में शान्ति हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉा\नग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा  के  लिए  मुख्य  सार:-
1)    हम विश्व में शान्ति स्थापन करने के निमित्त ब्राह्मण हैं, हमें बहुत-बहुत शान्तचित रहना है, बातचीत बहुत आहिस्ते वा रॉयल्टी से करनी है।
2)    अलबेलापन छोड़ याद की मेहनत करनी है। कभी भी होपलेस नहीं बनना है।


वरदान:-           अमृतवेले  का  महत्व  जानकर  खुले  भण्डार  से  अपनी  झोली  भरपूर  करने  वाले  तकदीरवान भव

Daily Positive Thoughts: July 01, 2015: Dignity

Daily Positive Thoughts: July 01, 2015: Dignity




 
Mykonos, Greece


Dignity

In order to maintain dignity, I stay in the sunlight of contentment and keep out of the shadow of desires



True Inner power

True power isn't power you have over anyone else, it is a full stock of energy accumulated in your being.

With such power, nothing can bring you down or de-stabilise you. Your inner power becomes a natural protection, not just from the ups and downs of life but also from your own Achilles' heel.

So, tap into your inner power and experience it. Use this power to contribute meaningfully and to protect yourself from your own weaknesses and from negative influences.



Different Thought Types (cont.)

We had explained Necessary Thoughts yesterday. Today we explain:

Unnecessary (Waste) Thoughts
Unnecessary thoughts are thoughts that are produced at untimely moments that fill us with worry and anxiety when they appear in our minds. They have no constructive use. Unnecessary and useless thoughts are quick and repetitive which lead you nowhere. Often they refer to things from the past: * If this hadn't happened? * Why did she have to say that to me? Too many thoughts are about things that we cannot change, or worries about the future: * What will happen tomorrow? * How will it happen? * What will I do if I find myself on my own? * If I had been there at the time, this disaster would not have happened. * If I had had this information at the time, I would have won the case. * When I get the qualification, I will be more respected by my superiors.

Your ability to concentrate is weakened by these useless thoughts. If you have a lot of these thoughts you use more energy and time to undertake each task. The origins of negativity also reside in them.

From the time that the past has already passed and the future is yet to come, these kinds of thoughts are not useful and they also weaken your inner strength and exhaust you. It is vital that we learn to avoid this pattern of thinking. In this way you will be more focused and your decision making capacity will improve.

(To be continued tomorrow .....)


Soul Sustenance

Freedom from the Dependency on the New (Part 1)

One of the dependencies that the consumer society promotes is dependency on the new. You have a car but today a new, better one is coming out. You have a mobile but the new one on the market today has more features and yours is now obsolete. The same thing happens to the television, MP3 players, DVD players, etc. Today you have some clothes but tomorrow the fashion will be different. We find the need to fill ourselves with more and more. This way an addiction to the new is generated. We get bored quickly and we need something apparently new and different all the time.

Some people need to buy new clothes all the time because it makes them feel better; they ‘feel’ the newness, is this normal or is it actually an addiction to the new out of boredom, is it discomfort with oneself and the inner need to impress and please others that sometimes some people seem to possess. It is actually living in the superficiality of the pair of jeans or the saree, not in the inner essence of being or soul. It is to use time to distract oneself and not to construct creatively. It’s not as if buying new stuff or going shopping is wrong but when it becomes a dependency, when it becomes a source of boosting your self esteem, that’s a sign that you are going wrong.

(To be continued tomorrow …)


Message for the day

To consider oneself to be a server means to be humble.

Expression: Each one is endowed with certain specialities and gifts. The one who is able to use these specialties for the benefit of others as a server, is able to make a contribution to better the lives of those around. But the one who only thinks of his specialities and a chance for expressing the specialities is not able to remain humble.

Experience: All the specialties that I have are there for a purpose. The more I use it to benefit others, the more I am able to use them with humility. I am also able to gather the good wishes of those around me and further increase my specialities. I have no expectations from others but am able to give unconditionally, recognizing their need.


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


Om Shanti! Sakar Murli July 01, 2015




Om Shanti! Sakar  Murli July 01, 2015
Essence: Sweet children, give everyone the good news (khushkhabari) that peace is once again being established in the world. The Father has come to establish the one original eternal deity religion.
Question:   Why are you children repeatedly given the signal (ishaara) to stay in remembrance?
Answer: Because it is only by having remembrance that you become ever healthy and ever pure.  This is why, whenever you have time, stay in remembrance. Early in the morning, after bathing etc., go for a walk in solitude or sit down. Here, there is nothing but income. It is by having remembrance that you will become the masters of the world.
Om shanti. You sweet children know that, at this time, everyone in the world wants peace. You continually hear the sound of people asking how there can be peace in the world. However, no one knows when there was the peace in the world that they now want. Only you children know that there was peace in the world when it was the kingdom of Lakshmi and Narayan.  Even now, people continue to build temples to Lakshmi and Narayan. You can tell anyone that there was peace in the world 5000 years ago, and that it is now being established once again. Who is establishing it? Human beings don’t know this. The Father has explained everything to you children. Therefore, you can explain this to anyone. You can write to them. However, as yet, no one has had the courage to write to anyone. You hear from the papers that everyone wants peace in the world. When a war takes place, people have a sacrificial fire for there to be peace in the world. Which sacrificial fire? They create a sacrificial fire of Rudra. You children now know that the Father, who is called Rudra Shiva, has created this sacrificial fire of knowledge. Peace is now being established in the world. There must definitely have been rulers in the golden-aged new world where there was peace. You would not say that there should be peace in the world about the incorporeal world; it is peaceful there anyway.  The world is where human beings reside.  The incorporeal world cannot be called the world.  That is the abode of peace. Baba explains this again and again. Nevertheless, some children forget and some are able to keep it in their intellects and are thereby able to explain to others. It is very easy to explain to someone how there was peace in the world and how it is now being established once again. When it was the kingdom of the original eternal religion of the deities in Bharat, there was only that one religion. There used to be peace in the world. This is a very easy thing to explain and write about. You can even write to those who build huge temples: There used to be peace in the world 5000 years ago when it was the kingdom of those to whom you build temples. It used to be their kingdom in Bharat. There were no other religions then. This is very easy and it is a question of common sense. According to the drama, everything will be understood as you progress further. You can give this good news to everyone. Also print it on beautiful cards. There was peace in the world 5000 years ago. When it was the new world and new Bharat, it was the kingdom of Lakshmi and Narayan. Peace is once again being established in the world. Just  by remembering these aspects, you children should remain very happy. You know that it is only by remembering the Father that you can become the masters of the world. Everything depends on the effort you children make. Baba has explained that you should stay in remembrance of Baba whenever you have time. Early in the morning, after bathing, go for a walk in solitude or sit down somewhere. Here, you just have to earn an income. This remembrance is for becoming ever pure and ever healthy. Although the sannyasis here are pure, some definitely fall ill. This is the world of disease. That is the world free from disease. Only you know this. How can anyone in the world know that everyone in heaven is free from disease? No one knows what heaven is. You now know this. Baba says: You can explain to whomever you meet. For instance, someone here may be called a king or queen, but no one here is really a king or queen. Tell them: You are not a king or queen now. This has to be removed from their intellects. The kingdom of emperor Shri Narayan and empress Shri Lakshmi is now being established. Therefore, there surely wouldn’t be any kings or queens here. They were told to forget that they were kings and queens, and that they should continue to act like ordinary human beings. They also have money and gold etc. Laws are now being passed for everything to be taken from them. They will then become like common human beings. These tactics are being created. It is remembered: Some people’s wealth remained buried underground and some people’s wealth was looted by the kings. (kiski dabi rahe dhul men, kiski raja khaaye) Kings do not loot from anyone now.  There are no kings anyway. It is people who loot from other people. Today’s kingdom is so wonderful! When the names of kings have completely disappeared, the kingdom is then re-established. You now understand that you are going to a place where there is peace in the world. That is the land of happiness, the satopradhan world. We are making effort to go there. You children should sit here and explain with splendour. There shouldn’t just be artificial external splendour. Nowadays, there are many who are artificial. Here, you have to become true, firm Brahma Kumars and Kumaris.  You Brahmins are carrying out the task of establishing peace in the world with Father Brahma. Very peaceful and also very sweet children are needed to establish such peace, because you know that you have become instruments to establish peace in the world. So, first of all, we need to have a great deal of peace. You also have to converse very softly and with great royalty. You are totally incognito.  Your intellects are filled with the treasures of the imperishable jewels of knowledge. You are the Father’s heirs. You have to fill yourselves with as many treasures as the Father has. All of His property is yours. However, when you don’t have enough courage, you are unable to take it. Only those who take it will claim a high status. You should be keen to explain to others. We have to make Bharat into heaven once again. While carrying out your business etc., you also have to do this service. This is why Baba is telling us to hurry up. In spite of that, everything happens according to the drama. Each one does everything according to his own time. You children are being inspired to make effort. You children have the faith that very little time now remains. This is our final birth and then we will be in heaven. This is the land of sorrow and it will then become the land of happiness. Of course, it will take time to become that. This destruction is not a small one. When a new home is being built, one only remembers the new home. That is a limited aspect. Relationships etc. don’t change in that. Here, the old world has to change. Then, those who have studied well will go into the royal family. Otherwise, they will become subjects. You children should have great happiness.  Baba has explained that you experience happiness for 50 to 60 births. You also have a great deal of wealth in the copper age. Sorrow comes later. It is when the kings start to fight amongst themselves and split up that sorrow begins. Grain is still very cheap at first; famine comes later on. You have a great deal of wealth. From being satopradhan, you gradually become tamopradhan. Therefore, you children should have a lot of internal happiness. If you yourselves don’t have peace and happiness, how are you going to establish peace in the world? The intellects of many are peaceless. The Father comes to give the blessing of peace. He says: Remember Me. Then, with the power of this remembrance, souls that have been peaceless because of becoming tamopradhan will become satopradhan and peaceful. However, some children are unable to make effort to have remembrance. Because they don’t stay in remembrance, Maya brings many storms. If you don’t stay in remembrance and become completely pure, there will have to be punishment and the status will be destroyed. Don’t think that you will go to heaven anyway.  Oh! is it good to experience a pennyworth of happiness after being beaten?  People make so much effort to claim a high status. You should not think that you will be content with whatever you receive. There isn’t anyone who would not make some effort. Even fakirs (religious beggars) go begging to collect money. Everyone is hungry for money. With money, you can have every type of happiness. You children know that you are receiving limitless wealth from Baba. If you make less effort, you receive less wealth. The Father gives you wealth. People say: If I had wealth, I would travel to America etc. The more you remember the Father and do service, the more happiness you will receive. A father inspires his children to make effort in every respect and become elevated. He believes that his children will glorify the name of his family. You children have to glorify the name of God’s family and also the Father’s name. That One is the true Father, the true Teacher and the true Satguru. The Father is the Highest on High and He is also the true Satguru. You have been told that there is only one Guru and none other. The Bestower of Salvation for all is only One. Only you know this. You are now becoming those with divine intellects. You are becoming divine kings and queens of the land of divinity. It is such an easy matter to explain that Bharat was golden aged.  You can explain, using the picture of Lakshmi and Narayan, how there used to be peace in the world. There used to be peace in heaven.  It is now hell and there is peacelessness. This Lakshmi and Narayan reside in heaven. Krishna is called Lord Krishna. He is also called God Krishna. There are many lords. Even those who own a lot of land are called landlords. Krishna was a prince of the world where there was peace in the world. No one knows that Radhe and Krishna became Lakshmi and Narayan. So many stories have been made up about you. They cause so much upheaval. They say that you make everyone into brothers and sisters. It has been explained that you Brahmins are the mouth-born children of Prajapita Brahma. It is of you that it is said: Salutations to the Brahmins who are to become deities. Worldly brahmins say namaste to you because you are true brothers and sisters; you remain  pure. Therefore, why would they not respect those who are pure? When a kumari is pure, everyone bows down at her feet. Even a visitor from outside would bow down to a kumari. Why is there so much praise for kumaris at this time? Because you are Brahma Kumars and Kumaris and the majority of you is of kumaris. The Shiv Shakti Pandava Army has been remembered. There are males in this army too, but you are remembered because the majority of you is female. Those who study well become elevated. You now know the history and geography of the whole world.  It is very easy to explain the cycle.  Bharat was the land of divinity and it is now the land of stone. Therefore, everyone is a lord of stone. You children know the cycle of 84 births. You now have to return home. Therefore, you also have to remember the Father so that your sins can be absolved. However, some children are unable to make enough effort for remembrance because of their carelessness. They don’t wake up early in the morning. Even if they do wake up, they don’t enjoy it. They begin to feel sleepy and go back to sleep. They become hopeless. Baba says: Children, this is a battlefield. You mustn’t become hopeless in this. You have to gain victory over Maya with the power of remembrance. You have to make effort for this. There are many good children who don’t remember the Father accurately. By keeping a chart, you can tell how much profit and loss you have made. Some say: The chart has really worked wonders on my stage. Scarcely a few write such a chart. This takes great effort. In many centres, there are even some false ones who go and sit there; they continue to perform sinful actions. When they don’t follow the Father’s directions, a lot of damage is caused. Children can’t tell whether it is the incorporeal One speaking or the corporeal one speaking. It has been explained to you children many times that you must always consider it to be Shiv Baba who is giving you directions. Your intellects will then remain connected up above. Nowadays, for an engagement, they show a photograph. They even advertise for a partner by printing a photograph with the words, “Someone from a good home is required for so-and-so.” Look at what the condition of the world has become and what it is to become! You children know that there are many ideas and opinions. You Brahmins only have one direction: The direction to establish peace in the world. You are establishing peace in the world by following shrimat. Therefore, you children have to remain very peaceful. Those who do something receive the reward of it. Otherwise, there would be a great loss. There would be that loss for birth after birth. You children have been told to look at your profit and loss account. Check your chart to see whether you caused anyone sorrow. The Father says: At this time, every second of yours is most valuable. It is not a big thing to receive a little something after experiencing punishment. Your desire is to become very wealthy. Those who were at first worthy of worship have become worshippers. Only when they have so much wealth can they build the temple to Somnath and worship Him. This too is an account. Nevertheless, it is explained to you children: There is benefit for you when you keep a chart. Note everything down. Continue to give everyone the message. Don’t just sit quietly. You can also explain on the trains and give them some literature. Tell them: This is something worth millions. When there was the kingdom of Lakshmi and Narayan in Bharat, there was peace in the world. The Father has now come once again to establish that kingdom. Remember the Father and your sins will be absolved and there will be peace in the world. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:
1.      We Brahmins are instruments to establish peace in the world so we have to remain very, very peaceful. We have to speak very softly and with great royalty.
2.      Renounce being careless (albelapan) and make effort for remembrance. Never become hopeless.

Blessing:   May you be a fortunate soul and fill your apron to overflowing from the open treasure-store by knowing the importance of amrit vela.
You can draw whatever line of fortune you want from the Bestower of Blessings and the Bestower of Fortune (Vardaata, Bhaagya  Vidhaata) at amrit vela because He is love-full at that time in the form of the Innocent Lord of all treasures. Therefore, become a master and claim your rights. There is no lock or key on the treasure (taala-chaabi) At that time, simply let go of Maya’s game of excuses and have the one thought: However I am, whatever I am, I am Yours.  Surrender your mind and intellect to the Father and be seated on your throne and you will experience all the Father’s treasures to be your treasures.
Slogan:      If selfishness (swaarth) is mixed into service success will also then be mixed.   Therefore, become an altruistic server (niswaarth sevaadhaari).
* * * O M  S H A N T I * * *

30.6.15 Sakar Murli Hindi



30.6.15
``मीठे  बच्चे  -  बाप  का  प्यार  लेना  हो  तो  आत्म-अभिमानी  होकर  बैठो,  बाप  से  हम  स्वर्ग  का वर्सा  ले  रहे  हैं,  इस  खुशी  में  रहो''
प्रश्न : संगमयुग पर तुम ब्राह्मण से ॰फरिश्ता बनने के लिये कौन-सी गुप्त मेहनत करते हो?
उत्तर:-  तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई- बहन हो, भाई-बहन की गन्दी दृष्टि रह नहीं सकती। ðा-पुरूष साथ रहते दोनों अपने को बी.के. समझते हो। इस स्मृति से जब पूरा पवित्र बनो तब ॰फरिश्ता बन सकेंगे।
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझकर यहाँ बैठना है। यह रा॰ज तुम बच्चों को भी समझाना है। आत्म-अभिमानी होकर बैठेंगे तो बाप के साथ प्यार रहेगा। बाबा हमको राजयोग सिखलाते हैं। बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह याद सारा दिन बुद्धि में रहे-इसमें ही मेहनत है। यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं तो खुशी का पारा डल हो जाता है। बाबा सावधान करते हैं कि बच्चे देही-अभिमानी होकर बैठो। अपने को आत्मा समझो। अभी आत्माओं और परमात्मा का मेला है ना। मेला लगा था, कब लगा था? जरूर कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर ही लगा होगा। आज बच्चों को टॉपिक पर समझाते हैं। तुमको टॉपिक तो जरूर लेनी है। ऊंच ते ऊंच है भगवान फिर नीचे आओ तो ब्रह्मा- विष्णु-शंकर। बाप और देवतायें। मनुष्यों को यह पता नहीं है शिव और ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का सम्बन्ध क्या है? किसी को भी उन्हों की जीवन कहानी का पता नहीं है। त्रिमूर्ति का चित्र नामीग्रामी है। यह तीनों हैं देवतायें। सिर्फ 3 का धर्म थोड़ेही होता है। धर्म तो बड़ा होता है, डीटी धर्म। यह है सूक्ष्मवतन वासी, ऊपर में है शिवबाबा। मुख्य है ब्रह्मा और विष्णु। अभी बाप समझाते हैं तुमको टॉपिक देनी है-ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। जैसे तुम कहते हो हम शूद्र सो ब्राह्मण, ब्राह्मण सो देवता, वैसे इनका भी है, पहले-पहले ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। यह तो है रांग। हो भी नहीं सकता। तो इस टॉपिक पर अच्छी रीति समझाना है, कोई कहते हैं परमात्मा कृष्ण के तन में आये हैं। अगर कृष्ण में आये फिर तो ब्रह्मा का पार्ट खत्म हो जाता है। कृष्ण तो है सतयुग का पहला प्रिन्स। वहाँ पतित हो कैसे सकते, जिनको आकर पावन बनायें। बिल्कुल ही गलत है। यह बातें भी महारथी सार्विसएबुल बच्चे ही समझते हैं। बाकी तो किसकी बुद्धि में बैठता ही नहीं है। यह टॉपिक तो बहुत फर्स्टक्लास है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। उनकी जीवन कहानी बतलाते हैं क्योंकि इनका कनेक्शन है। शुरू ही ऐसे करना है। ब्रह्मा सो विष्णु एक सेकण्ड में। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 84 जन्म लगते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। अभी तुम हो ब्राह्मण कुल के। प्रजापिता ब्रह्मा का ब्राह्मण कुल कहाँ गया? प्रजापिता ब्रह्मा की तो नई दुनिया चाहिए ना। नई दुनिया है सतयुग। वहाँ तो प्रजापिता है नहीं। कलियुग में भी प्रजापिता हो नहीं सकता। वह हैं संगमयुग पर। तुम अभी संगम पर हो। शूद्र से तुम ब्राह्मण बने हो। बाप ने ब्रह्मा को एडाप्ट किया है। शिवबाबा ने इनको कैसे रचा, यह कोई नहीं जानते हैं। त्रिमूर्ति में रचता शिव का चित्र ही नहीं है, तो मालूम कैसे पड़े कि ऊंच ते ऊंच भगवान है। बाकी सब हैं उनकी रचना। यह है ब्राह्मण सम्प्रदाय तो जरूर प्रजापिता चाहिए। कलियुग में तो हो न सके। सतयुग में भी नहीं। गाया जाता है ब्राह्मण देवी- देवताए नम:। अब ब्राह्मण कहाँ के हैं? प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ का है? जरूर संगमयुग का कहेंगे। यह है पुरूषोत्तम संगम युग। इस संगमयुग का कोई भी शाðां में वर्णन नहीं है। महाभारत लड़ाई भी संगम पर लगी है, न कि सतयुग या कलियुग में। पाण्डव और कौरव, यह हैं संगम पर। तुम पाण्डव संगमयुगी हो, तो कौरव कलियुगी हैं। गीता में भी भगवानुवाच है ना। तुम हो पाण्डव दैवी सम्प्रदाय। तुम रूहानी पण्डे बनते हो। तुम्हारी है रूहानी यात्रा, जो तुम बुद्धि से करते हो।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। याद की यात्रा पर रहो। जिस्मानी यात्रा में तीर्थों आदि पर जाकर फिर लौट आते हैं। वह आधाकल्प चलती है। यह संगमयुग की यात्रा एक ही बार की है। तुम जाकर मृत्युलोक में वापिस नहीं आयेंगे। पवित्र बन फिर तुमको पवित्र दुनिया में आना है इसलिए तुम अब पवित्र बन रहे हो। तुम जानते हो अभी हम ब्राह्मण सम्प्रदाय के हैं। फिर दैवी सम्प्रदाय, विष्णु सम्प्रदाय बनते हैं। सतयुग में देवी-देवतायें विष्णु सम्प्रदाय हैं। वहाँ चतुर्भुज की प्रतिमा रहती है, जिससे मालूम पड़ता है यह विष्णु सम्प्रदाय हैं। यहाँ प्रतिमा है रावण की, तो रावण सम्प्रदाय हैं। तो यह टॉपिक रखने से मनुष्य वण्डर खायेंगे। अब तुम देवता बनने के लिए राजयोग सीख रहे हो। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण, तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो। एडाप्ट किये हुए हो। ब्राह्मण भी यहाँ हैं फिर देवता भी यहाँ बनेंगे। डिनायस्टी यहाँ ही होती है। डिनायस्टी राजाई को कहा जाता है। विष्णु की डिनायस्टी है। ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं कहेंगे। डिनायस्टी में राजाई चलती है। एक पिछाड़ी दूसरा फिर तीसरा। अभी तुम जानते हो हम हैं ब्राह्मण कुल भूषण। फिर देवता बनते हैं। ब्राह्मण सो विष्णु कुल में, विष्णु कुल से आते हैं क्षत्रिय चन्द्रवंशी कुल में, फिर वैश्य कुल में फिर शूद्र कुल में। फिर ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। अर्थ कितना क्लीयर है। चित्रों में क्या-क्या दिखाते हैं। हम ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के मालिक बनते हैं। इसमें मूँझना नहीं चाहिए। बाबा जो एसे (निबंध) देते हैं उस पर फिर विचार सागर मंथन करना चाहिए-किसको कैसे समझायें, जो मनुष्य वण्डर खायें कि यह इनकी समझानी तो बहुत अच्छी है। सिवाए ज्ञान सागर और तो कोई समझा न सके। विचार सागर मंथन कर फिर बैठ लिखना चाहिए। फिर पढ़ो तो ख्याल में आयेगा। यह-यह अक्षर एड करने चाहिए। बाबा भी पहले-पहले मुरली लिखकर तुमको हाथ में दे देते थे। फिर सुनाते थे। यहाँ तो तुम घर में बाबा के साथ रहते हो। अब तो तुमको बाहर में जाकर सुनाना पड़ता है, यह टॉपिक बड़ी वन्डरफुल है, ब्रह्मा सो विष्णु, इनको कोई नहीं जानते। विष्णु की नाभी से ब्रह्मा दिखाते हैं। जैसे गांधी की नाभी से नेहरू। परन्तु डिनायस्टी तो चाहिए ना। ब्राह्मण कुल में राजाई नहीं है, ब्राह्मण सम्प्रदाय सो बनते हैं डीटी डिनायस्टी। फिर चन्द्रवंशी डिनायस्टी में जायेंगे फिर वैश्य डिनायस्टी। ऐसे हर एक डिनायस्टी चलती है ना। सतयुग है वाइसलेस वर्ल्ड, कलियुग है विशश वर्ल्ड। यह दो अक्षर भी कोई की बुद्धि में नहीं हैं। नहीं तो यह जरूर बुद्धि में होने चाहिए कि विशश से वाइसलेस कैसे बनते हैं। मनुष्य न वाइसलेस को जानते हैं, न विशश को। तुमको समझाया जाता है, देवतायें वाइसलेस हैं। ऐसे कभी नहीं सुना कि ब्राह्मण वाइसलेस हैं। नई दुनिया है वाइसलेस, पुरानी दुनिया है विशश। तो जरूर संगमयुग दिखाना पड़े। इसका किसको भी पता नहीं है। पुरूषोत्तम मास मनाते हैं ना। वह 3 वर्ष बाद एक मास मनाते हैं। तुम्हारा 5 ह॰जार वर्ष बाद एक संगमयुग आता है। मनुष्य आत्मा और परमात्मा को यथार्थ नहीं जानते हैं सिर्फ कह देते हैं चमकता है-अ॰जब सितारा। बस जैसे दिखाते हैं, रामकृष्ण परमहंस का चेला विवेकानंद कहता था मैं गुरू के सामने बैठा था, गुरू का भी ध्यान तो करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। ध्यान की तो बात ही नहीं, गुरू तो याद है ही। खास बैठ करवे याद करने से याद आयेगा क्या। उनकी गुरू में भावना थी कि यह भगवान है तो देखा कि उनकी आत्मा निकल मेरे में लीन हो गई। उनकी आत्मा कहाँ जाकर बैठी फिर क्या हुआ, कुछ भी वर्णन नहीं, बस। खुश हुआ हमको भगवान का साक्षात्कार हुआ। भगवान क्या है, वह नहीं जानते। बाप समझाते हैं सीढ़ी के चित्र पर तुम समझाओ। यह है भक्ति मार्ग। तुम जानते हो एक है भक्ति की बोट (नांव), दूसरी है ज्ञान की। ज्ञान अलग, भक्ति अलग है। बाबा कहते हैं हमने तुमको कल्प पहले ज्ञान दिया था, विश्व का मालिक बनाया था। अब तुम कहाँ हो। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है, कैसे और डिनायस्टी आती, कैसे झाड़ बढ़ता है। जैसे गुलदस्ता होता है ना। यह सृष्टि
रूपी झाड़ भी फूलदान है। बीच में तुम्हारा धर्म फिर इनसे और 3 धर्म निकलते हैं फिर उनसे वृद्धि होती जाती है। तो इस झाड़ को भी याद करना है। कितनी टाल-टालियां आदि निकलती रहती हैं। पिछाड़ी में आने वाले का मान भी हो जाता है। बड़ का झाड़ होता है ना, थुर है नहीं। बाकी सारा झाड़ खड़ा है। देवी-देवता धर्म भी खत्म हुआ पड़ा है। बिल्कुल सड़ गया है। भारतवासी अपने धर्म को बिल्कुल नहीं जानते और सब अपने धर्म को जानते हैं, यह कहते हम धर्म को मानते ही नहीं। मुख्य है ही 4 धर्म। बाकी छोटे-छोटे तो अनेक हैं। इस झाड़ और सृष्टि चक्र को तुम अभी जानते हो। देवी-देवता धर्म का नाम ही गुम कर दिया है। फिर बाप उसकी स्थापना कर बाकी सब धर्म का विनाश कर देते हैं। गोले के चित्र पर भी जरूर ले जाना चाहिए। यह सतयुग, यह कलियुग। कलियुग में कितने धर्म हैं, सतयुग में है एक धर्म। एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश कौन करता होगा? भगवान भी जरूर किसके द्वारा तो करायेंगे ना। बाप कहते हैं ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ। ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के देवता बनते हैं।
संगम पर तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई-बहन हो। गन्दी दृष्टि भाई-बहन की रह नहीं सकती। ðा-पुरूष दोनों अपने को बी.के. समझते हैं। इसमें बड़ी मेहनत है। ðा-पुरूष की कशिश ऐसी है जो बस, हाथ लगाने के बिगर रह नहीं सकते। यहाँ भाई-बहन को हाथ तो लगाना ही नहीं है, नहीं तो पाप की फीलिंग आती है। हम बी.के. हैं, यह भूल जाते हैं तो फिर खत्म हो जाते हैं। इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है। भल युगल हो रहते हैं किसको क्या पता, वह खुद जानते हैं हम बी.के. हैं, ॰फरिश्ते हैं। हाथ लगाना नहीं है। ऐसे करते-करते सूक्ष्मवतन वासी ॰फरिश्ते बन जायेंगे। नहीं तो ॰फरिश्ता बन नहीं सकते। ॰फरिश्ता बनना है तो पवित्र रहना पड़े। ऐसी जोड़ी निकले तो नम्बरवन जाए। कहते हैं दादा ने तो सब अनुभव किया, पिछाड़ी में करके सन्यास किया है, बहुत मेहनत तो उनको है जो जोड़ा बन जाते हैं। फिर उसमें ज्ञान और योग भी चाहिए। बहुतों को आपसमान बनायें तब बड़ा राजा बनें। सिर्फ एक बात तो नहीं है ना। बाप कहते हैं तुम शिवबाबा को याद करो। यह है प्रजापिता। बहुत ऐसे भी हैं जो कहते हैं हमारा काम तो शिवबाबा से है। हम ब्रह्मा को याद ही क्यों करें! उनको पत्र ही क्यों लिखें! ऐसे भी हैं। तुमको याद करना है शिवबाबा को इसलिए बाबा फोटो आदि भी नहीं देते हैं। इनमें शिवबाबा आता है, यह तो देहधारी है ना। अभी तो तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है। वह अपने को ईश्वर कहते हैं फिर उनसे क्या मिलता है, कितना घाटा पड़ा है भारतवासियों को। एकदम भारतवासियों ने देवाला मारा है। प्रजा से भीख मांगते रहते हैं। 10-20 वर्ष का लोन लेते हैं फिर देना थोड़ेही है। लेने वाले, देने वाले दोनों ही खत्म हो जायेंगे। खेल ही खत्म हो जाना है। अनेक मुसीबतें सिर पर हैं। देवाला, बीमारियां आदि बहुत हैं। कोई साहूकारों के पास रख देते हैं और वह देवाला मार देते हैं तो गरीबों को कितना दु:ख होता है। कदम-कदम पर दु:ख ही दु:ख है। अचानक बैठे-बैठे मर जाते हैं। यह है ही मृत्युलोक। अमरलोक में तुम अभी जा रहे हो। अमरपुरी के बादशाह बनते हो। अमरनाथ तुम पार्वतियों को सच्ची-सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं। तुम जानते हो अमर बाबा है, उनसे हम अमरकथा सुन रहे हैं। अब अमरलोक जाना है। इस समय तुम हो संगमयुग पर। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉा\नग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा  के  लिए  मुख्य  सार:-
1)    विचार सागर मंथन कर ``ब्रह्मा सो विष्णु'' कैसे बनते हैं, इस टॉपिक पर सुनाना है। बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखना है।
2)    राजाई पद प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग के साथ-साथ आपसमान बनाने की सार्विस भी करनी है। अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध बनानी है।


वरदान:-     शुभ  भावना  से  सेवा  करने  वाले  बाप  समान  अपकारियों  पर  भी  उपकारी  भव
जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं, ऐसे आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर दो-यही है सच्ची सेवा। जैसे साइन्स वाले रेत में भी खेती पैदा कर देते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से रहमदिल बन अपकारियों पर भी उपकार कर धरनी को परिवर्तन करो। स्व परिवर्तन से, शुभ भावना से कैसी भी आत्मा परिवर्तन हो जायेगी क्योंकि शुभ भावना सफलता अवश्य प्राप्त कराती है।
स्लोगन:-  ज्ञान का सिमरण करना ही सदा हार्षित रहने का आधार है।

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