Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

21-06-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:19-12-79 मधुबन

21-06-15    प्रात:मुरली    ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा”    रिवाइज:19-12-79    मधुबन
सहज याद का साधन - स्वयं को खुदाई खिदमतगार समझो
बापदादा आज अपने सहयोगी वा सहजयोगी बच्चों को, जिनका नाम ही है - खुदाई खिदमतगार, ऐसे बच्चों को देख सदा हर्षित होते हैं। खुदाई खिदमतगार अर्थात् जो खुदा व बाप ने खिदमत अर्थात् सेवा दी है उसी सेवा में सदा तत्पर रहने वाले। बच्चों को यह भी विशेष नशा होना चाहिए कि हम सभी को खुदा ने जो खिदमत दी है, हम उसी सेवा में लगे हुए हैं। कार्य करते हुए, जिसने कार्य दिया है, उसको कभी भूला नहीं जाता। चाहे स्थूल कर्तव्य भी करते हो लेकिन यह कर्मणा सेवा भी खुदाई खिदमत है। डायरेक्ट बाप ने डायरेक्शन दिया है तो कर्मणा सेवा में भी यह स्मृति रहे कि बाप के डायरेक्शन अनुसार कर रहे हैं तो कभी भी बाप को भूल नहीं सकेंगे। जैसे कोई विशेष आत्मा से कोई विशेष कार्य मिलता है, जैसे आजकल का प्रेजीडेन्ट अगर किसी को कहे कि तुम्हें यह कार्य करना है तो वह व्यक्ति उस कार्य को करते हुए प्रेजीडेंट को कभी नहीं भूलेगा। सहज और स्वत: ही उसकी याद रहेगी। न चाहते हुए भी सामने वही आता रहेगा। ऐसे आप सबको यह कार्य ऊंचे-से-ऊंचे बाप ने दिया है, कार्य करते हुए देने वाले को भूल कैसे सकेंगे? तो सहज याद का साधन है - सदा स्वयं को खुदाई खिदमतगार समझो।

भक्ति मार्ग में बिना समझ के भी कहावत है और उनकी मान्यता भी है अगर पत्ता भी हिल रहा है तो उस पत्ते को हिलाने वाला भी बाप है। लेकिन इस रहस्य को आप जानते हो कि उन पत्तों को बाप नहीं हिलाता लेकिन ड्रामा अनुसार यह सब चल रहा है। यह गायन कोई स्थूल पत्तों से नहीं लगता, लेकिन कल्प वृक्ष के आप सब पहले पत्ते हो। संगमयुगी आप सब गोल्डन एजेड पत्ते जो बाप द्वारा लोहे से पारस बन गये हो, इन चैतन्य पत्तों को इस समय डायरेक्ट बाप चला रहे हैं। बाप का डायरेक्शन है कि संकल्प भी जो बाप का हो, वही आपका हो। हर संकल्प बाप-समान, हर बोल बाप-समान, हर कर्म बाप-समान हो अर्थात् इसी श्रीमत के आधार पर आप सभी का संकल्प चलता है। तो इस समय आप सभी पत्तों को श्रीमत के आधार पर हर समय बाप चला रहे हैं। पत्ते-पत्ते को हिला रहा है अर्थात् चला रहा है। अगर श्रीमत के सिवाए संकल्प भी करते हो तो वह व्यर्थ संकल्प हो जाता है, तो यह जो कहावत है, वह भक्ति के समय का नहीं लेकिन संगम समय का गायन है। तो आप सभी पत्ते बाप की श्रीमत पर ही हिल रहे हो अर्थात् चल रहे हो ना। ऐसे ही चल रहे हो ना? चलाने का काम भी बाप का, फिर भी इतना मुश्किल क्यों लगता है? बोझ सारा बाप ने ले लिया फिर भी सदा उड़ते क्यों नहीं हो? हल्की चीज़ तो सदा ऊपर उड़ती है। इतने हल्के जो हर संकल्प भी बाप चलायेंगे तो चलाना है। जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे यह सभी का वायदा है और बाप की गारन्टी है कि चलायेंगे। तो बुद्धि को क्या आर्डर दिया हुआ है? बुद्धि को बाप ने क्या कार्य दिया है - उसको जानते हो ना? बुद्धि के बैठने का स्थान बाप के पास में है। कर्तव्य विश्व सेवा का है। तो जो वायदा किया है जहाँ बिठायेंगे जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे। शरीर से या बुद्धि से? तन के साथ मन भी दिया है या सिर्फ तन दिया है? तन और बुद्धि से जहाँ बिठायें, जैसे चलायें, जो करायें, जो खिलायें, वहीं करेंगे - यह वायदा किया हुआ है ना? तो बुद्धि का भोजन है - शुद्ध संकल्प। जो खिलायें वही खायेंगे - यह वायदा है तो फिर व्यर्थ संकल्प का भोजन क्यों करते हो? जैसे मुख द्वारा तमोगुणी भोजन, अशुद्ध भोजन नहीं खा सकते हो, ऐसे ही बुद्धि द्वारा व्यर्थ संकल्प वा विकल्प का अशुद्ध भोजन कैसे खा सकते हो? जो खिलायेंगे, वह खायेंगे फिर तो यह राँग हो जाता है। कहना और करना समान करने वाले हो ना? तो मन बुद्धि के लिए सदा यह भी वायदा याद रखो तो सहज योगी बन जायेंगे। बाप ने कहा और किया। अपना बोझ अपने ऊपर न रखो। कैसे करूँ, कैसे चलूँ, इस बोझ से हल्के होने बिना ऊंची स्थिति पर जा नहीं सकते हो, इसलिए श्रीमत से संकल्प तक भी चलते चलो तो मेहनत से बच जायेंगे।

कई बच्चों की मेहनत के भिन्न-भिन्न पोज़ बापदादा देखते रहते हैं। सारे दिन में अनेक बच्चों के अनेक पोज़ देखते हैं। ऑटोमेटिक कैमरा है। साइन्स वालों ने सब वतन से ही तो कापी की है। कभी वतन में आकर देखना क्या-क्या चीजें वहाँ हैं। जो चाहिए, वह हाज़िर मिलेंगी। आप सब कहेंगे कि मँगाओ। बाप पूछते हैं वतन को देखना चाहते हो या रहना चाहते हो। (ट्रायल करेंगे) शक है क्या जो ट्रायल करेंगे? आप सबको बुलाने के लिए ही ब्रह्मा बाप रूके हुए हैं। तो क्यों नहीं सम्पन्न बन जाते हो। बहुत सहज ही सम्पन्न बन सकते हो, लेकिन द्वापर से मिक्स करने के संस्कार बहुत रहे हैं। पहले पूजा में मिक्स किया, देवताओं को बन्दर का मुँह लगा दिया। शास्त्रों में मिक्स किया जो बाप की जीवन-कहानी में बच्चे की जीवन-कहानी मिक्स की। ऐसे ही गृहस्थी में पवित्र प्रवृत्ति के बजाए अपवित्रता मिक्स कर दी। अभी भी श्रीमत में मनमत मिक्स कर देते हो इसलिए मिक्स होने के कारण, जैसे रीयल सोना हल्का होता है और जब उसमें मिक्स करते हैं तो भारी हो जाता है, ऐसे ही श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ मत हल्का बनाती है, मनमत मिक्स होने से भारी हो जाते हो इसलिए चलने में मेहनत लगती है। तो श्रीमत में मिक्स नहीं करो। सदा हल्का रहने से वतन की सभी सीन-सीनरियाँ यहाँ रहते हुए भी देख सकेंगे। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इस दुनिया की कोई भी सीन स्पष्ट दिखाई देती है। सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात् मन और बुद्धि सदा मनमत से खाली रखो। मन को चलाने की आदत बहुत है ना। एकाग्र करते हो फिर भी चल पड़ता है। फिर मेहनत करते हो। चलाने से बचने का साधन है, जैसे आजकल अगर कोई कन्ट्रोल में नहीं आता, बहुत तंग करता है, बहुत उछलता है या पागल हो जाता है तो उनको ऐसा इन्जेक्शन लगा देते हैं जो वह शान्त हो जाता है। तो ऐसे अगर संकल्प शक्ति आपके कन्ट्रोल में नहीं आती है तो अशरीरी भव का इन्जेक्शन लगा दो। बाप के पास बैठ जाओ। तो संकल्प शक्ति व्यर्थ नहीं उछलेगी, बैठना भी नहीं आता है क्या? सिर्फ बैठने का ही काम दिया है और कुछ नहीं। अभी तो समझ रहे हैं कि बहुत सहज है। बुद्धि की लगाम देकर के फिर ले लेते हो इसलिए मन व्यर्थ की मेहनत में डाल देता है। व्यर्थ मेहनत से छूट जाओ। बाप को बच्चों की मेहनत देख तरस तो पड़ेगा ना।

बाप कहते हैं हर बच्चा बाप के साथ तख्त पर आराम से बैठ जाओ। तख्तनशीन होकर अपनी स्थूल कर्मेन्द्रियों को और सूक्ष्म शक्तियों अर्थात् मन, बुद्धि संस्कार को भी आर्डर से चलाओ। तख्तनशीन होंगे तो आर्डर चला सकेंगे। तख्त से नीचे उतर आर्डर करते हो इसलिए कर्मेन्द्रियाँ भी मानती नहीं हैं। आजकल काँटों की कुर्सी की भी हलचल कर रहे हैं। आपको तो तख्तनशीन की ऑफर है। फिर भी नीचे क्यों आ जाते हो? नीचे आना अर्थात् सर्वेन्ट बनना। किसका सर्वेन्ट? अपने ही अनेक कर्मेन्द्रियों के सर्वेन्ट के भी सर्वेन्ट हो जाते हैं इसीलिए मेहनत करते हो। ईश्वरीय सर्वेन्ट बनो, ईश्वरीय सेवाधारी बनो। सर्वेन्ट के भी सर्वेन्ट नहीं बनो। ईश्वरीय सेवा तख्त पर बैठे हुए भी कर सकते हो। नीचे आने की जरूरत नहीं। बाप अपने साथ बिठाना चाहते हैं लेकिन करते क्या हो? संगमयुगी साहेब और बीबी बनने की बजाए गुलाम बन जाते हो। तो सच्चे साहेब की सच्ची बीबियां बनो, गुलाम नहीं बनो। जो सदा सबकी नजर से बची हुई पर्दापोश में रहती, उन पर किसी की नज़र नहीं पड़ती। तो माया से पर्दापोश और साहेब के साथ बैठ जाओ। तो सभी गुलाम आपकी सेवा में हाज़िर रहेंगे। समझा - क्या करना है? आज मेहनत से किनारा कर दो। सदा सहजयोगी तख्तनशीन बाप के साथ-साथ बैठ जाओ।

अभी गुजरात और इन्दौर आया है ना। तो पर्देपोश हो जाओ अर्थात् इन डोर हो जाओ। इन्दौर वाले तो सदा `इन-डोर' रहते हैं ना। बाहर तो नहीं आते हैं ना। हरेक ज़ोन अपना-अपना विस्तार अच्छा ही कर रहे हैं। गुजरात ने हाल तो फुल कर दिया है, अभी गुजरात वाले अपने को फुल करो और जल्दी फिर वतन में आराम से बैठेंगे। अब तो समय के प्रमाण ब्रह्मा बाप बच्चों का आह्वान कर रहे हैं। गुजरात वाले क्या करेंगे? गुजरात वाले बड़े आवाज़’ वाले माइक यहाँ लाओ, स्थूल आवाज वाले माइक नहीं, चैतन्य माइक। ऐसे पॉवरफुल माइक के सेट लाओ जो प्रत्यक्षता का आवाज़’ बुलन्द करें। अच्छा, इन्दौर ज़ोन क्या लायेगा? इन्दौर ज़ोन से पावरफुल टी.वी. सेट लाओ जिस द्वारा विश्व को विनाशकाल स्पष्ट दिखाई दे और भविष्य उज्जवल दिखाई दे। समझा, क्या करना है? ऐसे-ऐसे व्यक्तियों को तैयार करो - जिनके अनुभव की टी.वी. द्वारा दुनिया को विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हो जाए। तो दोनों ही ज़ोन ऐसे सेट तैयार करके आना। अच्छा।

ऐसे खुदाई खिदमतगार, सदा मेहनत से मुक्त, सदा युक्तियुक्त संकल्प और कर्म करने वाले, सदा बाप की श्रीमत प्रमाण हर संकल्प और कर्म करने वाले, सदा कहने और करने को समान करने वाले, ऐसे सदा बाप के साथी बच्चों को बाप- दादा की याद, प्यार और नमस्ते।

अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य विशेष टीचर्स प्रति:-

टीचर्स का विशेष पुरूषार्थ किस बात का होना चाहिए? सर्विसएबुल बच्चों का महीन पुरूषार्थ क्या है? महीन पुरूषार्थ है - बैलेन्स रहा? हर संकल्प पावरफुल रहा? सर्विसएबुल बच्चों के संकल्प की भी चेकिंग। संकल्प में याद और सेवा का संकल्प कभी भी व्यर्थ नहीं होने चाहिए क्योंकि आप विश्व कल्याणकारी हो, विश्व की स्टेज पर एक्ट करने वाले हो। आपको सारी विश्व कॉपी करती है। अगर आपका एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो सभी उसको कॉपी करने वाले हैं। अपने प्रति नहीं किया लेकिन अनेकों के प्रति निमित्त बन गए। जैसे आपको सेवा के लिफ्ट की गिफ्ट मिलती है, अनेकों की सेवा का शेयर मिल जाता है। वैसे ही अगर कोई ऐसा कार्य करते हो तो अनेकों को व्यर्थ सिखाने के निमित्त भी बन जाते हो इसलिए अब व्यर्थ का खाता समाप्त। जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा मन की एकाग्रता को चेक करते हैं ना। लण्डन वा अन्य स्थानों पर किया ना - ये हैं साइन्स के साधन। लेकिन आपको हर कदम में अपनी चेकिंग के साधन साथ-साथ रखने चाहिए। जैसे वह चेकिंग के औजार साथ में रखते हैं और चेक करते समय ऊपर डालते हैं। सर्विसएबुल बच्चों को हर समय चेकिंग का साधन साथ रखना चाहिए। तो टीचर्स बनना कोई छोटी-सी बात नहीं है, नाम ही नहीं है लेकिन नाम के साथ काम भी है।

सविसएबुल बच्चों का व्यर्थ कभी नहीं चलना चाहिए। अगर आप ही यह कहें कि व्यर्थ संकल्प आते हैं तो और क्या करेंगे? और तो विकल्प में चले जायेंगे। ऐसे तो हरेक अटेन्शन रखता ही है लेकिन अब महीन अटेन्शन चाहिए। संकल्प से भी सेवा हो। अगर संकल्प शक्ति को सेवा में बिजी कर देते हो तो व्यर्थ ऑटोमेटिकली खत्म हो जायेगा। जैसे आजकल के यूथ ग्रुप को कोई-न-कोई कार्य में बिजी करने की कोशिश करते हैं जिससे युवा शक्ति नुकसानकारक कार्य में न चली जाए। कहीं बारिश का पानी व्यर्थ जाता है तो बाँध बनाकर व्यर्थ भी सफल कर देते हैं। ऐसे संकल्प शक्ति जो व्यर्थ चली जाती है उसको सेवा में बिजी रखेंगे तो व्यर्थ के बजाए समर्थ हो जायेगा। संकल्प, बोल, कर्म व ज्ञान की शक्तियाँ कुछ भी व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। तो ऐसे हर संकल्प, कर्म, बोल और सर्व शक्तियों की इकॉनामी करने वाले हो ना? वैसे भी लौकिक रीति से अगर इकॉनामी वाला घर न हो तो ठीक रीति से चल नहीं सकता। ऐसे ही अगर निमित्त बने हुए बच्चे इकॉनामी वाले नहीं हैं तो सेन्टर ठीक नहीं चलता, वह हुई हद की प्रवृत्ति यह है बेहद की। तो चेक करना चाहिए एक्स्ट्रा खर्च क्या-क्या किया - संकल्प में, बोल में, शक्तियों में? फिर उसको चेन्ज करना चाहिए। महीन पुरूषार्थ है सर्व खजानों की इकॉनामी का बजट बनाना और उसी के अनुसार चलना। बजट बनाना तो आता है ना? जैसे स्थूल खजाने का पोतामेल बनाते हो, ऐसे यह सूक्ष्म पोतामेल बनाओ। निमित्त बने हो, त्याग किया है उसका यह प्रत्यक्षफल है जो सेन्टर मिल गया, जिज्ञासु मिल गये, अभी और आगे बढ़ो। जितना किया है उतना मिला है। अभी फिर प्रजा और भक्त आपके चरणों पर झुकें। अभी यह प्रत्यक्ष फल दिखाओ। बाप-समान टाइटल भी मिल गया, प्रकृति भी यथाशक्ति दासी होती रहती है अभी इससे भी आगे चलो। यह प्रत्यक्षफल प्राप्त जरूर होता है लेकिन इसे स्वीकार नहीं करना। अब संकल्प से भी सेवाधारी बनो। वाचा सेवा तो सात दिन के कोर्स वाले भी करते हैं। कर्मणा सेवा भी सब करते हैं लेकिन आपकी विशेषता है मन्सा सेवा। इस विशेषता को अपनाकर विशेष नम्बर ले लो। सभी सन्तुष्ट तो रह रहे हो और सन्तुष्ट रहना भी है। जहाँ डायरेक्शन मिले उसी अनुसार चलना - यह भी अनेकों को पाठ सिखाने के निमित्त बन जाते हो। प्रैक्टिकल पाठ सिखाने वाली हो, मुख से नहीं। जम्प तो अच्छा लगाया है अभी क्या करना है? जम्प के बाद की स्टेज है उड़ने की। सदा अव्यक्त वतन में विदेही स्थिति में उड़ते रहो। अशरीरी स्टेज पर उड़ते रहो। अच्छा। 



वरदान:
श्रेष्ठ पुरूषार्थ द्वारा फाइनल रिजल्ट में फर्स्ट नम्बर लेने वाले उड़ता पंछी भव!  
फाइनल रिजल्ट में फर्स्ट नम्बर लेने के लिए 1- दिल के अविनाशी वैराग्य द्वारा बीती हुई बातों को, संस्कार रूपी बीज को जला दो। 2- अमृतवेले से रात तक ईश्वरीय नियमों और मर्यादाओं का सदा पालन करने का व्रत लो और 3- मन्सा द्वारा, वाणी द्वारा या सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा निरन्तर महादानी बन, पुण्य आत्मा बन दान पुण्य करते रहो। जब ऐसा श्रेष्ठ हाई जम्प देने वाला पुरूषार्थ हो तब उड़ता पंछी बन फाइनल रिजल्ट में नम्बर वन बन सकेंगे।
स्लोगन:
वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को पावरफुल बनाना यही लास्ट का पुरूषार्थ व सर्विस है।

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