Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

01-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


01-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

मीठे बच्चे - तुम पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण अभी ईश्वर की गोद में आये हो, तुम्हें मनुष्य से देवता बनना है तो दैवीगुण भी चाहिए

प्रश्न:- ब्राह्मण बच्चों को किस बात में अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है और क्यों?

उत्तर:- सारे दिन की दिनचर्या में कोई भी पाप कर्म न हो इससे सम्भाल करनी है क्योंकि तुम्हारे सामने बाप धर्मराज के रूप में खड़ा है। चेक करो किसी को दु:ख तो नहीं दिया? श्रीमत पर कितना परसेन्ट चलते हैं? रावण मत पर तो नहीं चलते? क्योंकि बाप का बनने के बाद कोई विकर्म होता है तो एक का सौ गुणा हो जाता है।

ओम् शान्ति।

भगवानुवाच। यह तो बच्चों को समझाया गया है, किसी मनुष्य को वा देवताओं को भगवान नहीं कहा जा सकता। यहाँ जब बैठते हैं तो बुद्धि में यह रहता है कि हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। यह भी याद सदा किसको रहती नहीं हैं। अपने को सचमुच ब्राह्मण समझते हैं, ऐसा भी नहीं है। ब्राह्मण बच्चों को फिर दैवीगुण भी धारण करने हैं। हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं, हम शिवबाबा द्वारा पुरूषोत्तम बन रहे हैं। यह याद भी सबको नहीं रहती। घड़ी-घड़ी यह भूल जाते हैं कि हम पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। यह बुद्धि में याद रहे तो भी अहो सौभाग्य। हमेशा नम्बरवार तो होते ही हैं। सब अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार पुरुषार्थी हैं। अभी तुम संगमयुगी हो। पुरूषोत्तम बनने वाले हो। जानते हो हम पुरूषोत्तम तब बनेंगे जब अब्बा को यानी मोस्ट बिलवेड बाप को याद करेंगे। याद से ही पाप नाश होंगे। अगर कोई पाप करता है तो उसका सौ गुणा हिसाब चढ़ जाता है। आगे जो पाप करते थे तो उसका 10 परसेन्ट चढ़ता था। अभी तो 100 परसेन्ट चढ़ता है क्योंकि ईश्वर की गोद में आकर फिर पाप करते हैं ना। तुम बच्चे जानते हो बाप हमको पढ़ाते हैं पुरूषोत्तम सो देवता बनाने। यह याद जिनको स्थाई रहती है वह अलौकिक सर्विस भी बहुत करते रहेंगे। सदैव हार्षितमुख बनने के लिए औरों को भी रास्ता बताना है। भल कहाँ भी जाते हो, बुद्धि में यह याद रहे कि हम संगमयुग पर हैं। यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। वह पुरूषोत्तम मास या वर्ष कहते हैं। तुम कहते हो हम पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। यह अच्छी रीति बुद्धि में धारण करना है-अभी हम पुरूषोत्तम बनने की यात्रा पर हैं। यह याद रहे तो भी मनमनाभव ही हो गया। तुम पुरूषोत्तम बन रहे हो, पुरूषार्थ अनुसार और कर्मों अनुसार। दैवीगुण भी चाहिए और श्रीमत पर चलना पड़े। अपनी मत पर तो सब मनुष्य चलते हैं। वह है ही रावण मत। ऐसे भी नहीं, तुम सब कोई श्रीमत पर चलते हो। बहुत हैं जो रावण मत पर भी चलते हैं। श्रीमत पर कोई कितना परसेन्ट चलते, कोई कितना। कोई तो 2 परसेन्ट भी चलते होंगे। भल यहाँ बैठे हैं तो भी शिवबाबा की याद में नहीं रहते। कहाँ न कहाँ बुद्धियोग भटकता होगा। रोज अपने को देखना है आज कोई पाप का काम तो नहीं किया? किसी को दु:ख तो नहीं दिया? अपने ऊपर बहुत सम्भाल करनी होती है क्योंकि धर्मराज भी खड़ा है ना। अभी का समय है ही हिसाब-किताब चुक्तू करने लिए। सजायें भी खानी पड़े। बच्चे जानते हैं हम जन्म-जन्मान्तर के पापी हैं। कहाँ भी कोई मन्दिर में अथवा गुरू के पास वा कोई ईष्ट देवता पास जाते हैं तो कहते हैं हम तो जन्म-जन्म के पापी हैं, मेरी रक्षा करो, रहम करो। सतयुग में कभी ऐसे अक्षर नहीं निकलते। कोई सच बोलते हैं, कोई तो झूठ बोलते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं। बाबा हमेशा कहते हैं अपनी जीवन कहानी बाबा को लिख भेजो। कोई तो बिल्कुल सच लिखते, कोई छिपाते भी हैं। लज्जा आती है। यह तो जानते हैं-बुरा कर्म करने से उनका फल भी बुरा मिलेगा। वह तो है अल्पकाल की बात। यह तो बहुत काल की बात है। बुरा कर्म करेंगे तो सजायें भी खायेंगे फिर स्वर्ग में भी बहुत पिछाड़ी को आयेंगे। अभी सारा मालूम पड़ता है कि कौन-कौन पुरूषोत्तम बनते हैं। वह है पुरूषोत्तम दैवी राज्य। उत्तम ते उत्तम पुरूष बनते हो ना। और कोई जगह ऐसे किसकी महिमा नहीं करेंगे। मनुष्य तो देवताओं के गुणों को भी नहीं जानते। भल महिमा गाते हैं परन्तु तोते मिसल इसलिए बाबा भी कहते हैं भक्तों को समझाओ। भक्त जब अपने को नीच पापी कहते हैं तो उनसे पूछो कि क्या तुम जब शान्तिधाम में थे तो वहाँ पाप करते थे? वहाँ तो आत्मा सभी पवित्र रहती हैं। यहाँ अपवित्र बनी हैं क्योंकि तमोप्रधान दुनिया है। नई दुनिया में तो पवित्र रहती हैं। अपवित्र बनाने वाला है रावण।

इस समय भारत खास और आम सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। यथा राजा रानी तथा प्रजा। हाइएस्ट, लोएस्ट। यहाँ सब पतित हैं। बाबा कहते हैं मैं तुमको पावन बनाकर जाता हूँ फिर तुमको पतित कौन बनाते हैं? रावण। अब फिर तुम हमारी मत से पावन बन रहे हो फिर आधाकल्प बाद रावण की मत पर पतित बनेंगे अर्थात् देह-अभिमान में आकर विकारों के वश हो जाते हैं। उनको आसुरी मत कहा जाता है। भारत पावन था सो अब पतित बना है फिर पावन बनना है। पावन बनाने के लिए पतित-पावन बाप को आना पड़ता है। इस समय देखो कितने ढेर मनुष्य हैं। कल कितने होंगे! लड़ाई लगेगी, मौत तो सामने खड़ा है। कल इतने सब कहाँ जायेंगे? सबके शरीर और यह पुरानी दुनिया विनाश होती है। यह राज अभी तुम्हारी बुद्धि में है - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। हम किसके सम्मुख बैठे हैं, वह भी कई समझते नहीं। कम से कम पद पाने वाले हैं। ड्रामा अनुसार कर ही क्या सकते हैं, तकदीर में नहीं है। अभी तो बच्चों को सर्विस करनी है, बाप को याद करना है। तुम संगमयुगी ब्राह्मण हो, तुम्हें बाप समान ज्ञान का सागर, सुख का सागर बनना है। बनाने वाला बाप मिला है ना। देवताओं की महिमा गाई जाती है सर्वगुण सम्पन्न....... अभी तो इन गुणों वाला कोई है नहीं। अपने से सदैव पूछते रहो-हम ऊंच पद पाने के लायक कहाँ तक बने हैं? संगमयुग को अच्छी रीति याद करो। हम संगमयुगी ब्राह्मण पुरूषोत्तम बनने वाले हैं। श्रीकृष्ण पुरूषोत्तम है ना, नई दुनिया का। बच्चे जानते हैं हम बाबा के सम्मुख बैठे हैं, तो और ही जास्ती पढ़ना चाहिए। पढ़ाना भी है। पढ़ाते नहीं तो सिद्ध होता है पढ़ते नहीं। बुद्धि में बैठता नहीं है। 5 प्रतिशत भी नहीं बैठता। यह भी याद नहीं रहता है कि हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। बुद्धि में बाप की याद रहे और चक्र फिरता रहे, समझानी तो बहुत सहज है। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करना है। वह है सबसे बड़ा बाप। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हों। हम सो पूज्य, हम सो पुजारी, यह मन्त्र है बहुत अच्छा। उन्होंने फिर आत्मा सो परमात्मा कह दिया है, जो कुछ बोलते हैं बिल्कुल रांग। हम पवित्र थे, 84 जन्म चक्र लगाकर अब ऐसे बने हैं। अब हम जाते हैं वापिस। आज यहाँ, कल घर जायेंगे। हम बेहद बाप के घर में जाते हैं। यह बेहद का नाटक है जो अभी रिपीट होना है। बाप कहते हैं देह सहित देह के सब धर्म भूल अपने को आत्मा समझो। अभी हम इस शरीर को छोड़ घर जाते हैं, यह पक्का याद कर लो, हम आत्मा हैं-यह भी याद रहे और अपना घर भी याद रहे तो बुद्धि से सारी दुनिया का सन्यास हो गया। शरीर का भी सन्यास, तो सबका सन्यास। वह हठयोगी कोई सारे सृष्टि का सन्यास थोड़ेही करते हैं, उनका है अधूरा। तुमको तो सारी दुनिया का त्याग करना है, अपने को देह समझते हैं तो फिर काम भी ऐसे ही करते हैं। देह-अभिमानी बनने से चोरी चकारी, झूठ बोलना, पाप करना........ यह सब आदतें पड़ जाती हैं। आवाज से बोलने की भी आदत पड़ जाती है, फिर कहते हमारा आवाज ही ऐसा है। दिन में 25-30 पाप भी कर लेते हैं। झूठ बोलना भी पाप हुआ ना। आदत पड़ जाती है। बाबा कहते हैं-आवाज कम करना सीखो ना। आवाज कम करने में कोई देरी नहीं लगती है। कुत्ते को भी पालते हैं तो अच्छा हो जाता है, बन्दर कितने तेज होते हैं फिर कोई के साथ हिर जाते हैं तो डांस आदि बैठ करते हैं। जानवर भी सुधर जाते हैं। जानवरों को सुधारने वाले हैं मनुष्य। मनुष्यों को सुधारने वाला है बाप। बाप कहते हैं तुम भी जानवर मिसल हो। तो मुझे भी कच्छ अवतार, वाराह अवतार कह देते हो। जैसे तुम्हारी एक्टिविटी है, उनसे भी बदतर मुझे कर दिया है। यह भी तुम जानते हो, दुनिया नहीं जानती। पिछाड़ी में तुमको साक्षात्कार होगा। कैसे-कैसे सजायें खाते हैं, वह भी तुमको मालूम पड़ेगा। आधाकल्प भक्ति की है, अब बाप मिला है। बाप कहते हैं मेरी मत पर नहीं चलेंगे तो सजा और ही बढ़ती जायेगी इसलिए अब पाप आदि करना छोड़ो। अपना चार्ट रखो फिर साथ में धारणा भी चाहिए। किसको समझाने की प्रैक्टिस भी चाहिए। प्रदर्शनी के चित्रों पर ख्यालात चलाओ। किसको हम कैसे समझायें। पहली- पहली बात यह उठाओ-गीता का भगवान कौन? ज्ञान का सागर तो पतित-पावन परमपिता परमात्मा है ना। यह बाप है सभी आत्माओं का बाप। तो बाप का परिचय चाहिए ना। ऋषि-मुनि आदि कोई को भी न बाप का परिचय है, न रचना के आदि-मध्य-अन्त का इसलिए पहले-पहले तो यह समझाकर लिखवाओ कि भगवान एक है। दूसरा कोई हो नहीं सकता। मनुष्य अपने को भगवान कहला नहीं सकते।

तुम बच्चों को अब निश्चय है-भगवान निराकार है। बाप हमको पढ़ाते हैं। हम स्टूडेन्ट्स हैं। वह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। एक को याद करेंगे तो टीचर और गुरू दोनों की याद आयेगी। बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए। सिर्फ शिव भी नहीं कहना है, शिव हमारा बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी है, हमको साथ ले जायेंगे। उस एक की कितनी महिमा है, उनको ही याद करना है। कोई-कोई कहते हैं इसने तो बी.के. को जाए गुरू बनाया है। तुम गुरू तो बनते हो ना। फिर तुमको बाप नहीं कहेंगे। टीचर गुरू कहेंगे, बाप नहीं। तीनों ही फिर उस एक बाप को ही कहेंगे। वह सबसे बड़ा बाप है, इनके ऊपर भी वह बाप है। यह अच्छी रीति समझाना है। प्रदर्शनी में समझाने का अक्ल चाहिए। परन्तु अपने में इतनी हिम्मत नहीं समझते। बड़ी-बड़ी प्रदर्शनी होती है तो जो अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल बच्चे हैं, उनको जाकर सर्विस करनी चाहिए। बाबा मना थोड़ेही करते हैं। आगे चल साधू-सन्त आदि को भी तुम ज्ञान बाण मारते रहेंगे। जायेंगे कहाँ! एक ही हट्टी है। सद्गति सबकी इस हट्टी से होनी है। यह हट्टी ऐसी है, तुम सबको पवित्र होने का रास्ता बताते हो फिर बनें, न बनें।

तुम बच्चों का ध्यान विशेष सर्विस पर होना चाहिए। भल बच्चे समझदार हैं परन्तु सर्विस पूरी नहीं करते तो बाबा समझते हैं राहू की दशा बैठी है। दशायें तो सब पर फिरती हैं ना। माया का परछाया पड़ता है फिर दो रोज बाद ठीक हो जाते हैं। बच्चों को सर्विस का अनुभव पाकर आना चाहिए। प्रदर्शनी तो करते रहते हैं, क्यों नहीं मनुष्य समझकर झट लिखते हैं कि बरोबर गीता कृष्ण की नहीं, शिव भगवान की गाई हुई है। कोई तो सिर्फ कह देते हैं यह बहुत अच्छा है। मनुष्यों के लिए बहुत कल्याणकारी है, सबको दिखाना चाहिए। परन्तु मैं भी यह वर्सा लूँगा.... ऐसे कोई कहते नहीं हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) देह-अभिमान में आकर आवाज से बात नहीं करनी है। इस आदत को मिटाना है। चोरी करना, झूठ बोलना...... यह सब पाप हैं, इनसे बचने के लिए देही-अभिमानी होकर रहना है।

2) मौत सामने है इसलिए बाप की श्रीमत पर चलकर पावन बनना है। बाप का बनने के बाद कोई भी बुरा कर्म नहीं करना है। सजाओं से बचने का पुरूषार्थ करना है।

वरदान:- सम्पूर्ण आहुति द्वारा परिवर्तन समारोह मनाने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव!

जैसे कहावत है ``धरत परिये धर्म न छोड़िये'', तो कोई भी सरकमस्टांश आ जाए, माया के महावीर रूप सामने आ जाएं लेकिन धारणायें न छूटे। संकल्प द्वारा त्याग की हुई बेकार वस्तुयें संकल्प में भी स्वीकार न हों। सदा अपने श्रेष्ठ स्वमान, श्रेष्ठ स्मृति और श्रेष्ठ जीवन के समर्थी स्वरूप द्वारा श्रेष्ठ पार्टधारी बन श्रेष्ठता का खेल करते रहो। कमजोरियों के सब खेल समाप्त हो जाएं। जब ऐसी सम्पूर्ण आहुति का संकल्प दृढ़ होगा तब परिवर्तन समारोह होगा। इस समारोह की डेट अब संगठित रूप में निश्चित करो।

स्लोगन:- रीयल डायमण्ड बनकर अपने वायब्रेशन की चमक विश्व में फैलाओ।

Om Shanti ! Sakar Murli April 01, 2015






Om Shanti ! Sakar Murli April 01, 2015


Essence: Sweet children, you most elevated Brahmins of the confluence age have now come into the lap of God. You have to change from ordinary humans into deities and so you also need divine virtues. 


Question: In which aspect should you Brahmin children remain very, very cautious and why?


 Answer: You have to remain very cautious throughout the whole day that you do not perform any sinful acts because the Father, in the form of Dharamraj, is standing in front of you. Check yourself and ask: Have I caused sorrow for anyone? To what percentage am I following shrimat? Am I following the dictates of Ravan? Once you belong to the Father, there will be one hundred-fold punishment for every sinful act you perform. 


Om shanti. 


God speaks. It has been explained to you children that no human being or deity can be called God. Whilst sitting here, it remains in your intellects that you are Brahmins of the confluence age. Some of you are not even able to remember this much constantly. It isn't that you really and truly consider yourselves to be Brahmins. Brahmin children have to imbibe divine virtues. We are Brahmins of the confluence age and we are being made into the most elevated human beings by Shiv Baba. Not all of you are able to remember this. You repeatedly forget that you are the most elevated Brahmins of the confluence age. Even to keep this much in your intellect is great fortune. Everything is always numberwise. Each of you is an effort-maker according to your intellect. You now belong to the confluence age. You are the ones who are becoming the most elevated human beings. You know that you will become the most elevated human beings when you remember Abba (Father), the most beloved Father. Only by remembering Him will your sins be absolved. If someone commits sin now, one hundred-fold punishment is accumulated in that one's account. Previously, whatever sin you committed, you accumulated ten-fold. Now, having come into the lap of God, if you commit sin, you will accumulate one hundred-fold. You children know that the Father is teaching you in order to make you into the most elevated human beings who then become deities. Those who remember this constantly will continue to do a lot of spiritual service. In order to remain constantly cheerful, show the path to others. No matter where you go, always keep it in your intellects that you are at the confluence age. This is the most elevated confluence age. Others speak of the most elevated month or year. You say that you are the most elevated Brahmins of the confluence age. Instil this very well in your intellects. We are now on the pilgrimage for becoming the most elevated humans. Even if you remember this much, this is "Manmanabhav". You are becoming the most elevated humans according to your efforts and your actions. You also need divine virtues and you have to follow shrimat too. All other human beings follow their own dictates, which are the dictates of Ravan. It isn't that all of you are following shrimat. There are many who still follow the dictates of Ravan. Some follow shrimat to a certain percentage and others to another percentage. Some follow shrimat only two per cent. Even though they are sitting here, they do not stay in remembrance of Shiv Baba. Their intellects' yoga wanders somewhere or other. Check yourself every day: Did I perform any sinful act today? Did I cause sorrow for anyone? You have to caution yourself a great deal because Dharamraj is also standing here. This is now the time for settling all your accounts. Punishment will also have to be experienced. You children know that you have been sinful for birth after birth. Whenever someone goes to a temple or his guru or a special beloved deity, he says: I have been sinful for birth after birth. Forgive me and have mercy on me! Such words are never spoken in the golden age. Some tell the truth whereas others tell lies. It is the same here. Baba always says: Write your life story and send it to Baba. Some write the total truth whereas others hide certain things because they are too ashamed to write them. You know that if you do something bad, the fruit you receive from that will also be bad. Elsewhere, it is a matter of a temporary period, whereas here it is a matter of a long period of time. If you perform bad acts now, punishment has to be experienced and you will only go to heaven at the very end. You now know everything about who will become elevated. That is the most elevated divine kingdom. You are becoming the most elevated of human beings. Nowhere else would anyone be praised in this way. Human beings do not know about the virtues of deities. Although people sing their praise, they are like parrots. This is why Baba says: Explain to the devotees. When devotees call themselves degraded sinners, ask them: Did you commit sin when you were in the land of silence? There, all souls are pure. They became impure here because this is the tamopradhan world. Only pure ones live in the new world. It is Ravan that makes you impure. At present, there is the kingdom of Ravan over Bharat in particular and the whole world in general. As are the king and queen, so the subjects: the highest to the lowest. Everyone here is impure. Baba says: I come and make you pure and then return home. Who then makes you impure? It is Ravan. By following My directions, you are now becoming pure once again. Then, after half a cycle, you again become impure by following the dictates of Ravan, that is, you become body conscious and are influenced by the vices. Those are called devilish directions. The Bharat that was pure has now become impure and it has to become pure once again. The Father, the Purifier, has come to purify it. Just look how many people there are today! How many will there be tomorrow? War will take place. Death is standing in front of you. Where will all of those people be tomorrow? Everyone's body and this old world will be destroyed. The significance of this is now in your intellects, numberwise, according to the efforts you make. In front of whom are we sitting? Those who do not understand this are the ones who claim the lowest status. What can one do if, according to the drama, it is not in someone's fortune? You children now have to do service and remember the Father. You are the Brahmins of the confluence age. You also have to become like the Father, the Ocean of Knowledge and the Ocean of Happiness. You have found the Father who is making you this. The praise of the deities is: Full of all virtues etc. At present, no one has these virtues. Constantly ask yourself: To what extent have I become worthy of claiming a high status? Remember the confluence age very well. We Brahmins of the confluence age are the ones who become the most elevated human beings. Shri Krishna is the most elevated human being of the new world. You children know that you are personally sitting in front of Baba. Therefore, you should study even more. You also have to teach others. If you do not teach others, it proves that you yourself are not studying, that nothing sits in your intellect. Not even five per cent sits in the intellect. You don't even remember that you are the Brahmins of the confluence age. Let there be remembrance of the Father in your intellects and also continue to spin the discus. The explanation is very easy. Consider yourself to be a soul and remember the Father. He is the greatest Father of all. The Father says: Remember Me and your sins will be absolved. We were those worthy-of-worship ones who then became worshippers. This mantra is very good. They say that the soul is the Supreme Soul. Whatever they say is completely wrong. We were pure and then, while taking 84 births, we became like this. We are now to return home. Today, we are here. Tomorrow, we will return home. We are going to the home of the unlimited Father. This drama is unlimited; it has to repeat. The Father says: Forget all the religions of the body, including your own body, and consider yourself to be a soul. We are now to leave our bodies and return home. Remember this very firmly: I am a soul. To remember this and also to remember your home means that your intellect has renounced the whole world: the renunciation of the body and the renunciation of everything else. Those hatha yogis do not renounce the whole world. Their renunciation is incomplete. You have to renounce the whole world. Those who consider themselves to be their bodies act accordingly. By being body conscious they adopt all the habits of stealing, telling lies, committing sin etc. They form the habit of speaking loudly too. Then, they say: But, my voice is like that! They even commit sin 25 to 30 times during the whole day. Telling lies is also a sin. They form those habits. Baba says: Learn to lower your voice. It doesn't take long to lower your voice. Even dogs can be trained to become good. Monkeys are very sharp. They become familiar with some people and start dancing etc. Even animals can be reformed. Human beings reform animals, and the Father reforms human beings. The Father says: You are also like animals. Therefore, you say that I incarnate in a tortoise and a boar. As is your activity, so you have portrayed Me in an even worse way than that. Only you know this; the world does not know this. At the end, you will have visions of what you did. You will also come to know how punishment is experienced. You have been performing devotion for half a cycle. You have now found the Father. He says: If you don't follow My directions, punishment will continue to increase. Therefore, stop committing any more sin. Keep a chart of yourself and also imbibe this knowledge. You also need to practise explaining to others. Think about the exhibition pictures and how you can explain them to others. First of all, take up the topic, "Who is the God of the Gita?" Only the Purifier, the Supreme Father, the Supreme Soul, can be the Ocean of Knowledge. That Father is the Father of all souls. The Father's introduction is needed by everyone. Rishis and munis etc. neither have the introduction of the Father nor of the beginning, middle and end of creation. Therefore, first of all, explain and make them understand so that they write: There is only one God; no one else can be God. Human beings cannot call themselves God. You children now have the faith that God is incorporeal. The Father is teaching us and we are His students. As well as the Father, He is also the Teacher and the Satguru. When you remember the one Father, you will also be reminded of both the Teacher and the Guru. Your intellects should not wander. Do not simply continue to say "Shiva". He is our Father, the Supreme Teacher. He will take us back with Him. There is so much praise of that One. We have to remember that One. People say of some of you that he made the Brahma Kumaris his guru. You do become their gurus, do you not? However, you wouldn't be called the Father. You might be called a teacher or a guru but not the Father. Only that one Father would be called all three. He is the greatest Father of all. Even above this one (Avyakt Brahma) is that One. You have to explain this very clearly. You also need wisdom in order to explain at exhibitions. You think that you don't have the courage. When there are very large exhibitions, those who are good serviceable children should go there and serve. Baba does not forbid you. As you make progress, you will continue to shoot arrows of knowledge at the sages and holy men. Where else can they go? There is only the one shop. Everyone will receive salvation from this one shop. This shop is such that it enables you to show everyone the way to become pure. Then, it's up to them whether they become this or not. You children should pay special attention to service. Although you children are sensible, you don't do service fully. Therefore, Baba understands that there are the omens of an eclipse over you. There are omens over everyone. Some are overshadowed by Maya. Then, after two days, they become all right. Children should get some experience of service and then come back here. You continue to hold exhibitions anyway. Why is it that people do not understand enough for them to write straightaway that the Gita was truly spoken by God Shiva and not Krishna? Some simply say that this is very good, that it is very beneficial for human beings and that everyone should be shown this, but none of them say: I too will claim this inheritance. Achcha. 


To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children. 


Essence for dharna: 

1. Do not become body conscious and speak loudly. Finish that habit. To steal, tell lies etc. are all sins. In order to be saved from that, remain soul conscious. 

2. Death is standing in front of you. Therefore, follow the Father's shrimat and become pure. After belonging to the Father, do not perform any sinful act. Make effort to be saved from punishment. 


Blessing: May you have the determination to celebrate the transformation ceremony (parivartan samaaroh) by making the complete sacrifice (sampoorn aahuti).
 
Just as it is said, "You may die but do not renounce your religion" (dharat pariye dharm n chhodiye), so, no matter what circumstances come in front of you, even if a mahavir form of Maya comes in front of you, do not let go of your dharna. Do not even take into your thoughts the useless things you have renounced from your mind. With the powerful form of your elevated self-respect, your elevated awareness and your elevated life, become an elevated actor and continue to act the play of greatness. Finish all games of weakness. When you have determination to make the complete sacrifice, there will be the transformation ceremony. Now, collectively fix a date for this ceremony. 

Slogan: Be a real diamond and spread the sparkle of your vibrations into the world. 

***OM SHANTI***

Vices to Virtues: 59: संस्कार परिवर्तन

Vices to Virtues: 59: संस्कार परिवर्तन





Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga ( Jwala swaroop) Let us work on one each day.


बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...


पुराने वा अवगुणो का अग्नि संस्कार..... ५९ ....... टोन्ट करना, टोकना...............बदलकर....  मैं आत्मा मन्सा से शुभ भावना देने वाली, वाचा से मधुर बोलने वाली, सभी की सिर्फ विशेषतायें देखने वाली, प्रीत बुद्धि  हूँ...

cremate our old sanskars:  59.........to taunt others, to point mistakes........ replace them I , the soul with a loving intellect,  give pure feelings though my thoughts, pleasant and melodious words through my speech and have vision for only the specialties of others...

Poorane va avguno ka agni sanskar.... 59....Tont karna , tokna...........badalkar.... mai atma,  mansa se shubh bhavna dene wali, vacha se madhur bolnewali, sabhiki sirf visheshtaayen dekhne wali, preet buddhi hun...



पुराने वा अवगुणो का अग्नि संस्कार..... ५९ ....... टोन्ट करना, टोकना...............बदलकर....  मैं आत्मा मन्सा से शुभ भावना देने वाली, वाचा से मधुर बोलने वाली, सभी की सिर्फ विशेषतायें देखने वाली, प्रीत बुद्धि  हूँ...



मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... टोन्ट करना, टोकना.................अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ टोन्ट करना, टोकना........................ के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं आत्मा, मन्सा से शुभ भावना देने वाली, वाचा से मधुर बोलने वाली, सभी की सिर्फ विशेषतायें देखने वाली, प्रीत बुद्धि  हूँ....    मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ .....



cremate our old sanskars:  59.........to taunt others, to point mistakes........ replace them by, I , the soul with a loving intellect,  give pure feelings though my thoughts, pleasant and melodious words through my speech and have vision for only the specialties of others...


I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  taunting others, pointing mistakes..........I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of  taunting others, pointing mistakes......... I , the soul with a loving intellect,  give pure feelings though my thoughts, pleasant and melodious words through my speech and have vision for only the specialties of others...
...........I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...



Poorane va avguno ka agni sanskar.... 59....Tont karna , tokna...........badalkar.... mai atma,  mansa se shubh bhavna dene wali, vacha se madhur bolnewali, sabhiki sirf visheshtaayen dekhne wali, preet buddhi hun...


mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... Tont karna , tokna............avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir Tont karna , tokna.....................ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun...mai atma mansa se shubh bhavna dene wali, vacha se madhur bolnewali, sabhiki sirf visheshtaayen dekhne wali, preet buddhi hun...mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...


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