Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

22-03-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:14-11-79 मधुबन


22-03-15    प्रात:मुरली    ओम् शान्ति  अव्यक्त-बापदादा” 






रिवाइज:14-11-79

ब्राह्मण जीवन की निशानी है - सदा खुशी की झलक

आज बापदादा सर्व बच्चों की अन्तिम स्टेज अर्थात् विकर्माजीत स्टेज, विकल्प या व्यर्थ संकल्प-मुक्त स्टेज देख रहे हैं। इस अन्तिम स्टेज तक पहुँचने के लिए पुरूषार्थ तो सब कर रहे हैं लेकिन पुरूषार्थियों में दो प्रकार के बच्चे देखे। एक वे जो पुरूषार्थ करते हुए पुरूषार्थ की प्रारब्ध अर्थात् प्राप्ति साथ-साथ अनुभव करते चल रहे हैं। और दूसरे, जो सिर्फ पुरूषार्थ में ही लगे हुए हैं। मेहनत ज्यादा, प्राप्ति का अनुभव कम होता है, इसलिए चलते-चलते थक भी जाते हैं। यथार्थ पुरूषार्था कभी भी थकावट महसूस नहीं करते। कारण? दोनों के पुरूषार्थ में सिर्फ एक बात समझने का अन्तर हैं; जिससे वे मेहनत में रहते और दूसरे मोहब्बत में मस्त रहते हैं। कौन से संकल्प का अन्तर है, वह जानते हो? छोटा सा ही अन्तर है। एक समझते हैं कि हम स्वयं चल रहे हैं, चलना पड़ता है, सामना करना पड़ता है और दूसरे हैं जो सदैव संकल्प से भी सरेन्डर हैं, इसलिए वह सदैव यह अनुभव करते कि हमें बाप-दादा चला रहे हैं। मेहनत के पाँव से नहीं लेकिन स्नेह की गोदी में चलते रहते हैं इसलिए वे स्नेह के पाँव से चलते, जिसमें थकावट नहीं होती। स्नेह की गोदी वा झूले में सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होने के कारण वह चलते नहीं, लेकिन उड़ते रहते हैं। सदा खुशी में, आन्तरिक सुख में, सर्व शक्तियों से उड़ते रहते हैं। अभी अपने से पूछो कि मैं कौन? संगमयुगी ब्राह्मण बच्चे जियेंगे, चलेंगे हर कदम में स्नेह की गोदी में। ब्राह्मण जीवन की निशानी है - सदा खुशी की झलक प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देगी। खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन भी नहीं। कई बच्चे समझते हैं कि संगमयुग पुरूषार्था जीवन का है और भविष्य जन्म प्रारब्ध का जन्म है। वे समझते हैं कि जो बाप- दादा का वायदा है - एक दो और लाख लो, यह वायदा भविष्य के लिए है, लेकिन नहीं। यह वायदा संगमयुग का ही है। जैसे सर्व श्रेष्ठ समय, सर्व श्रेष्ठ जन्म, सर्व श्रेष्ठ टाइटिल इस समय के हैं, वैसे सर्व प्राप्तियों का अनुभव, सब वायदों की प्राप्ति इस समय होती है। भविष्य तो है ही लेकिन भविष्य से भी वर्तमान श्रेष्ठ है। इस समय ही एक कदम अर्थात् एक संकल्प बच्चे करते हैं कि बाबा हम आपके हैं और रिटर्न में बाप हर संकल्प, बोल और कर्म में अनुभव कराते हैं मैं आपका हूँ अर्थात् बाप आपका है। एक संकल्प का रिटर्न सारे संगमयुग की जीवन में बाप आपका ही हो जाता है। एक का सिर्फ लाख गुणा नहीं मिलता! जब चाहो, जैसे चाहो, जो चाहो, बाप सर्वेन्ट रूप में बाँधे हुए हैं। तो एक का लाख गुणा तो क्या लेकिन अनगिनत बार का रिटर्न मिलता है। वर्तमान समय का महत्व चलते-चलते भूल जाते हो। इस संगमयुग को वरदान है - कौन सा? स्वयं वरदाता ही आपका है। जब वरदाता ही आपका है, तो बाकी क्या रहा? बीज आपके हाथ में है, जिस बीज द्वारा सेकेण्ड में जो चाहो वह ले सकते हो। सिर्फ संकल्प करने की बात है। शक्ति चाहिए, सुख चाहिए, आनन्द चाहिए, सब आपके लिए जी हाजर है क्योंकि हजूर ही आपका है। जैसे स्थूल सेवाधारी बुलाने से हाजर हो जाते हैं वैसे यह सर्व प्राप्तियाँ संकल्प से हाजर हो जायेंगी। लेकिन हजूर आपका है तो यह सब हाजर हैं। बीज आपका है तो यह सब फल आपके हैं।

परन्तु बच्चे चलते-चलते करते क्या हैं? दो लड्डू हाथ में उठाने की कोशिश करते हैं। लेने के लिए तो तैयार हो जाते है लेकिन छोड़ने वाली चीज भी फिर ले लेते हैं इसलिए विस्तार में जाने से सार को छोड़ देते हैं। बीच में से खिसक जाता है, यह मालूम नहीं पड़ता इसलिए फिर खाली हो जाते हैं और मेहनत करते हैं अपने को भरपूर करने की, लेकिन बीज छूट जाने के कारण प्रत्यक्षफल की प्राप्ति हो नहीं पाती है इसलिए थक जाते हैं। भविष्य के दिलासे से अपने को चलाते रहते हैं। प्रत्यक्षफल की बजाय भविष्य फल के उम्मीदवार बनकर चलते हैं, इसलिए खुशी की झलक सदा नजर नहीं आती। मेहनत की रेखायें ज्यादा नजर आती हैं, प्राप्ति की रेखायें कम नजर आती हैं। त्याग की महसूसता ज्यादा होती है भाग्य की महसूसता कम होती है।
तो अब क्या करना है? वर्तमान समय में जो आपके सम्पर्क में आते हैं, वे लोग भी समय प्रति समय अब भी यह बोल बोलते हैं कि आप लोगों का त्याग बहुत बड़ा है लेकिन अब यह बोल कहें कि आप लोगों का भाग्य बहुत बड़ा है। त्याग उनको दिखाई देता है लेकिन भाग्य अभी तक दिखाई नहीं देता है। भाग्य अभी गुप्त है। त्याग की महिमा बहुत करते हैं, इतनी ही भाग्य की महिमा करें तो सेकेण्ड में स्वयं का भी भाग्य खुल जायेगा। त्याग देख करके सोच में पड़ जाते हैं। भाग्य देखकर स्वयं भी भाग्यशाली बन जायेंगे। अब समझा, क्या चेन्ज करना है?
मेहनत से निकल स्नेह की, मोहब्बत की गोदी में आ जाओ। चल रहे हैं - नहीं, लेकिन चला रहे हैं। (लाइट बन्द हो गई) बच्चे अन्धकार में रहते हैं तो बाप को भी अनुभव होना चाहिए कि ऐसी दुनिया में बच्चे रहते हैं, यह प्रैक्टिकल अनुभव होता है।
अच्छा; अब समझा क्या करना है? भविष्य फल के पहले प्रत्यक्ष फल खाओ। सदा हजूर को बुद्धि में हाजर रखो तो सर्व प्राप्तियाँ भी सदा जी हजूर करेंगी। अगर हजूर हाजर है तो सर्व प्राप्तियाँ चुम्बक के समान आपेही आकार्षित होती आयेंगी। समझा? बाप-दादा बच्चों की मेहनत देख सहन नहीं कर सकते। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें, डायरेक्ट बीज से निकले हुए तना स्वरूप बच्चे हो। ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को सर्व सहज प्राप्तियों का अनुभवी बनना है। अच्छा।
ऐसे सर्व सहज प्राप्तिवान, सदा सागर के समान सर्व में सम्पन्न, सदा बीज को साथ रखने वाले, बीजरूप स्टेज में स्थित रहने वाले, विकर्माजीत, विकल्प जीत ऐसे लक्ष्य को पाने वाले, सदा निश्चय बुद्धि और निश्चिन्त रहने वाले बच्चों को बाप- दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बाप-दादा की मधुर मुलाकात:

नेपाल - सभी बहुत दूर-दूर से स्नेह के आधार पर खिंचे हुए आ गये। जैसे बच्चे स्नेह की डोर में बँधे हुए अपने घर पहुँच गये हैं, ऐसे बाप भी इतना ही बच्चों को स्नेह का रेसपान्स दे रहे हैं। स्नेह का रेसपान्स क्या है? स्नेह का रेसपान्स है सदा अथक, सदा सफलतामूर्त भव। कभी भी माया आये तो यह स्थान, यह दिन, यह घड़ी, यह बाप का वरदान याद रखना तो वरदान से माया मूर्छित हो जायेगी। आप लोगों के देश में भी ऐसे जन्त्र-मंत्र बहुत करते हैं ना। तो आप भी इस जन्त्र-मन्त्र से माया को मूर्छित कर देना। बाप ने बच्चों को जन्मते ही कौन-सा वरदान दिया है? अमरनाथ बाप का पहला वरदान है - बच्चे अमरभव! अमरनाथ की कथा सुनने वाले आप सब हो ना? यह खुशी होती है कि हम सबका यादगार अब तक भी चल रहा है? कल्प पहले का यादगार अभी भी देख रहे हो। अमरनाथ में आपका ही यादगार है। एक-एक बच्चे की कितनी महिमा करें। जितनी आप सबने द्वापर से बाप की महिमा गाई है उतनी बाप अभी आप बच्चों की गाते हैं। रोज नया टाइटिल देते हैं तो महिमा हुई ना। बहुत-बहुत लक्की हो। जिन माताओं को दुनिया वालों ने ठुकराया उन्हें बाप ने ठाकुर बना दिया। तो माताओं को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। खुशी-खुशी में चलने से थकावट फील नहीं होगी।
हर ब्राह्मण बच्चों के घर में बाप का यादगार (गीता-पाठशाला) जरूर होनी चाहिए। जैसे घर-घर में राजा-रानी का फोटो लगाते हैं ना। तो ब्राह्मणों के घर में यह विशेष यादगार हो। जो भी आये उसको बाप का परिचय देते रहो। अच्छा।

आसाम - आसाम वाले तो बहुत बड़ी आसामी होंगे! बड़े आदमी को बड़ी आसामी कहते हैं। तो आप बड़े से बड़े लोग बड़ी आसामी हो। वह लोग अखबार में निकालते हैं कि कौन-कौन बड़े हैं। हू इज हू? आप लोग तो जन्म-जन्मान्तर के लिए पूज्य बनते हो। वह तो आज हू इज हू की लिस्ट में हैं कल साधारण प्रजा की लिस्ट में हैं। आप सदा से इसी लिस्ट में हो। सदा के पूज्य हो। आधा कल्प चैतन्य में पूज्य के रूप में हो, आधाकल्प जड़ चित्रों के रूप में पूजे जाते हो। तो सारा ही कल्प हू इज हू हुए। ऐसा नशा रहता है कि हम बहुत बड़े लोग हैं? किसी भी प्रकार की समस्या कमजोर तो नहीं बनाती? महावीर हो? बाप-दादा भी बच्चों को देख खुश होते हैं कि कैसे कल्प पहले वाला अपना भाग्य ले रहे हैं। कल्प- कल्प के तकदीरवान हो। ऐसी तकदीर कभी किसी की बन भी नहीं सकती। तो यह नशा और खुशी निरन्तर रहे।

बिहार - सदा बहार में रहने वाला बिहार है। सदैव अपने को ऐसे अनुभव करते हो जैसे ऊपर से अवतरित होकर साकार सृष्टि में सेवा के लिए आये हुए हैं। जो अवतार होते हैं उनको क्या याद रहता है? जिस कर्तव्य के लिए अवतरित होते हैं वही कर्तव्य याद रहता है। अवतार आते ही हैं कोई महान कर्तव्य करने के लिए। तो आप भी किसलिए अवतरित हुए हो? विश्व-परिवर्तन के कर्तव्य के लिए। तो सदा यह याद रहता है? कहीं भी रहते आपका मूल कर्तव्य विश्व-परिवर्तन का है। चाहे कोई भी धन्धा करो, घर का कार्य करो लेकिन याद क्या रहना चाहिए - परिवार या परिवर्तन? परिवार में रहते हो तो किस लक्ष्य से रहते हो? यही लक्ष्य रहता है ना कि इनको भी परिवर्तन करना है। गृहस्थी होकर नहीं, सेवाधारी होकर रहते हो! सेवाधारी को सेवा ही याद रहती, बाकी सब काम निमित्त मात्र हैं। असली कार्य है विश्व- परिवर्तन का। विश्व परिवर्तन वही कर सकते हैं जो पहले स्वयं का परिर्वतन करते हैं। पहले खुद को उदाहरण बनना पड़ता है फिर आपको देखकर सब करने लग पड़ेंगे। तो स्व परिवर्तन कर लिया है ना? बाकी जो थोड़ा समय रहा है वह किसलिए? सेवा के लिए। अन्य की सेवा करते स्व की सेवा हो ही जायेगी। अवतार हूँ - यह याद रहे तो जैसी स्मृति होगी वैसा ही कर्म होगा। तो बिहार वाले बहारी मौसम लाने वाले हो। आजकल तो देश की हालत क्या है? कहाँ सूखा है, कहाँ बहुत पानी है, लेकिन आप क्या करेंगे? सदा बहार लायेंगे। आपका ऐसा कर्तव्य देख सब आपको आशीर्वाद देंगे, सब नमस्कार करने आयेंगे। अभी तो कोई-कोई गाली भी देते हैं क्योंकि गुप्त हो ना। जब प्रत्यक्ष होंगे तो आपेही सब नमस्कार करने के लिए आयेंगे। जितनी गालियाँ देते हैं उतने पुष्प चढ़ायेंगे। एक गाली के बजाए कितनी बार फूलों की मालायें चढ़ानी पड़ेगी। जैसे बाप ने बहुत गालियाँ खाई तो पूजन भी इतना ही होता है ना। ऐसे जितनी गाली खायेंगे उतने बड़े पूज्य बनेंगे, इसलिए घबराना नहीं। मालायें तैयार हो रही हैं।

बंगाल-कलकत्ता :- कलकत्ता निवासी क्या प्लान बना रहे हैं? मेले तो बहुत किये अभी क्या सोचा है? अभी हर वर्ष में कोई नया प्लान बनाना चाहिए। कलकत्ता भक्तिमार्ग में भी मशहूर है वहाँ की विशेषता है बलि चढ़ने की। जैसे भक्तिमार्ग की बलि मशहूर है वैसे ज्ञान में महाबलि चढ़ने वाले ज्यादा होंगे ना। एक तरफ भक्ति का फोर्स दूसरी तरफ ज्ञान का फोर्स। मेले के साथ अभी और कोई विधि अपनाओ। जितना बड़ा कलकत्ता है उतनी बड़ी आवाज हो। पुरानी गद्दी का स्थान है तो और कोई ऊंची आवाज निकालो। अच्छा - हरेक रोज अपनी चेकिंग कर तीव्रगति को प्राप्त हो रहे हो। संगमयुग पर ही चढ़ती कला का चान्स है। रोज अपनी चेकिंग करो। सिर्फ चल रहे हैं, यह नहीं लेकिन किस गति से चल रहे हैं। हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते पदमापदम भाग्यशाली बनो। साधारण चेकिंग नहीं लेकिन अभी महीन चेकिंग चाहिए।
यह मरजीवा जन्म है है ही प्रत्यक्षफल खाने के लिए, किया और प्राप्ति हुई। अब मेहनत की जरूरत नहीं, फल खाने का समय है। अतीन्द्रिय सुख की जीवन में रहने का समय है। तो अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदा झूलने वाले हो ना? जो अभी सदा इस झूले में झूलते वही श्रीकृष्ण के साथ-साथ झूलेंगे। ऐसा पुरूषार्थ है ना? इसको कहा जाता है तीव्र पुरूषार्थ।

तामिलनाडू - संगमयुग पर बाप द्वारा जो खजाने मिले हैं उन सभी खजानों की अच्छी तरह से जमा किया है! माया खजाने को लूट तो नहीं लेती? पहले भी सुनाया था कि डबल लाक लगा दो एक बाप की याद और दूसरी सेवा, यह डबल लॉक लगाने से कभी भी माया खजाना लूट नहीं सकती। सदा भरपूर रहेंगे। अमृतवेले स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिमान का तिलक दो। सारा दिन तिलकधारी रहने से कभी भी माया सामना नहीं करेगी। तिलक आपके विजय की निशानी है। अमृतवेला वरदानों का समय है, जि



वरदान:- श्रीमत से मनमत और जनमत की मिलावट को समाप्त करने वाले सच्चे स्व कल्याणी भव !

बाप ने बच्चों को सभी खजाने स्व कल्याण और विश्व कल्याण के प्रति दिए हैं लेकिन उन्हें व्यर्थ तरफ लगाना, अकल्याण के कार्य में लगाना, श्रीमत में मनमत और जनमत की मिलावट करना-यह अमानत में ख्यानत है। अब इस ख्यानत और मिलावट को समाप्त कर रूहानियत और रहम को धारण करो। अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहम कर स्व कल्याणी बनो। स्व को देखो, बाप को देखो औरों को नहीं देखो।
 
स्लोगन:- सदा हर्षित वही रह सकते हैं जो कहीं भी आकर्षित नहीं होते हैं।

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