28-03-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
सार :- “मीठे बच्चे
- तुम्हें इस
पुरानी दुनिया,
पुराने शरीर से
जीते जी मरकर
घर जाना है, इसलिए
देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी
बनो”
प्रश्न:- अच्छे-अच्छे
पुरुषार्थी बच्चों की निशानी क्या होगी?
उत्तर:- जो अच्छे पुरुषार्थी हैं वह सवेरे-सवेरे उठकर
देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। वह एक बाप को याद करने का पुरूषार्थ
करेंगे। उन्हें लक्ष्य रहता कि और कोई देहधारी याद न आये, निरन्तर बाप और 84 के चक्र की
याद रहे। यह भी अहो सौभाग्य कहेंगे।
ओम् शान्ति।
अभी तुम बच्चे जीते
जी मरे हुए हो। कैसे मरे हो?
देह के अभिमान को छोड़ दिया तो बाकी रही आत्मा। शरीर तो खत्म हो जाता है। आत्मा
नहीं मरती। बाप कहते हैं जीते जी अपने को आत्मा समझो और परमपिता परमात्मा के साथ
योग लगाने से आत्मा पवित्र हो जायेगी। जब तक आत्मा बिल्कुल पवित्र नहीं बनी है तब
तक पवित्र शरीर मिल न सके। आत्मा पवित्र बन गई तो फिर यह पुराना शरीर आपेही छूट
जायेगा, जैसे सर्प
की खल ऑटोमेटिकली छूट जाती है,
उनसे ममत्व मिट जाता है,
वह जानता है हमको नई खल मिलती है, पुरानी उतर जायेगी। हर एक को अपनी-अपनी बुद्धि तो होती है
ना। अभी तुम बच्चे समझते हो हम जीते जी इस पुरानी दुनिया से, पुराने शरीर से मर चुके हैं फिर तुम
आत्मायें भी शरीर छोड़ कहाँ जायेंगी? अपने घर। पहले-पहले तो यह पक्का याद करना है-हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। आत्मा कहती है-बाबा, हम आपके हो चुके, जीते जी मर चुके हैं। अब आत्मा को फरमान
मिला हुआ है कि मुझ बाप को याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। यह
याद का अभ्यास पक्का चाहिए। आत्मा कहती है-बाबा, आप आये हैं तो हम आपके ही बनेंगे। आत्मा मेल
है, न कि फीमेल। हमेशा
कहते हैं हम भाई-भाई हैं, ऐसे थोड़ेही
कहते हम सब सिस्टर्स हैं, सब बच्चे
हैं। सब बच्चों को वर्सा मिलना है। अगर अपने को बच्ची कहेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा? आत्मायें सब भाई-भाई हैं। बाप सबको
कहते हैं-रूहानी बच्चों मुझे याद करो। आत्मा कितनी छोटी है। यह है बहुत महीन समझने
की बातें। बच्चों को याद ठहरती नहीं है। सन्यासी लोग दृष्टान्त देते हैं-मैं भैंस
हूँ, भैंस हूँ........
ऐसे कहने से फिर भैंस बन जाते हैं। अब वास्तव में भैंस कोई बनते थोड़ेही हैं। बाप
तो कहते हैं अपने को आत्मा समझो। यह आत्मा और परमात्मा का ज्ञान तो कोई को है नहीं
इसलिए ऐसी-ऐसी बातें कह देते हैं। अब तुमको देही-अभिमानी बनना है, हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ हमको जाए नया लेना
है। मनुष्य मुख से कहते भी हैं कि आत्मा स्टॉर है, भ्रकुटी के बीच में रहती है फिर कह देते
अंगुष्ठे मिसल है। अब सितारा कहाँ, अंगुष्टा कहाँ! और फिर मिट्टी के सालिग्राम बैठ बनाते हैं, इतनी बड़ी आत्मा तो हो नहीं सकती।
मनुष्य देह-अभिमानी हैं ना तो बनाते भी मोटे रूप में हैं। यह तो बड़ी सूक्ष्म
महीनता की बातें हैं। भक्ति भी मनुष्य एकान्त में, कोठी में बैठ करते हैं। तुमको तो गृहस्थ
व्यवहार में, धन्धे आदि
में रहते हुए बुद्धि में यह पक्का करना है-हम आत्मा हैं। बाप कहते हैं-मैं
तुम्हारा बाप भी इतनी छोटी बिन्दू हूँ। ऐसे नहीं कि मैं बड़ा हूँ। मेरे में सारा
ज्ञान है। आत्मा और परमात्मा दोनों एक जैसे ही हैं, सिर्फ उनको सुप्रीम कहा जाता है। यह ड्रामा
में नूंध है। बाप कहते हैं-मैं तो अमर हूँ। मैं अमर न होता तो तुमको पावन कैसे
बनाऊं। तुमको स्वीट चिल्ड्रेन कैसे कहूँ। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप आकर
देही-अभिमानी बनाते हैं, इसमें ही
मेहनत है। बाप कहते हैं-मुझे याद करो, और कोई को याद न करो। योगी तो दुनिया में बहुत हैं। कन्या
की सगाई होती है तो फिर पति के साथ योग लग जाता है ना। पहले थोड़ेही था। पति को
देखा फिर उनकी याद में रहती है। अब बाप कहते हैं-मामेकम् याद करो। यह बहुत अच्छी
प्रैक्टिस चाहिए। जो अच्छे-अच्छे पुरुषार्थी बच्चे हैं वह सवेरे-सवेरे उठकर
देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। भक्ति भी सवेरे करते हैं ना। अपने-अपने
ईष्ट देव को याद करते हैं। हनूमान की भी कितनी पूजा करते हैं लेकिन जानते कुछ भी
नहीं। बाप आकर समझाते हैं - तुम्हारी बुद्धि बन्दर मिसल हो गई है। अब फिर तुम
देवता बनते हो। अब यह है पतित तमोप्रधान दुनिया। अभी तुम आये हो बेहद के बाप पास।
मैं तो पुनर्जन्म रहित हूँ। यह शरीर इस दादा का है। मेरा कोई शरीर का नाम नहीं।
मेरा नाम ही है कल्याणकारी शिव। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा कल्याणकारी आकर नर्क
को स्वर्ग बनाते हैं। कितना कल्याण करते हैं। नर्क का एकदम विनाश करा देते हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा अभी स्थापना हो रही है। यह है प्रजापिता ब्रह्मा मुख
वंशावली। चलते फिरते एक-दो को सावधान करना है-मन्मनाभव। बाप कहते हैं मुझे याद करो
तो विकर्म विनाश होंगे। पतित-पावन तो बाप है ना। उन्होंने भूल से भगवानुवाच के
बदले कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है। भगवान तो निराकार है, उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है।
उनका नाम है शिव। शिव की पूजा भी बहुत होती है। शिव काशी, शिव काशी कहते रहते हैं। भक्ति मार्ग
में अनेक प्रकार के नाम रख दिये हैं। कमाई के लिए अनेक मन्दिर बनाये हैं। असली नाम
है शिव। फिर सोमनाथ रखा है, सोमनाथ, सोमरस पिलाते हैं, ज्ञान धन देते हैं। फिर जब पुजारी
बनते हैं तो कितना खर्चा करते हैं उनके मन्दिर बनाने पर क्योंकि सोमरस दिया है ना।
सोमनाथ के साथ सोमनाथिनी भी होगी! यथा राजा रानी तथा प्रजा सब सोमनाथ सोमनाथिनी
हैं। तुम सोनी दुनिया में जाते हो। वहाँ सोने की ईटें होती हैं। नहीं तो दीवारें
आदि कैसे बनें! बहुत सोना होता है इसलिए उसको सोने की दुनिया कहा जाता है। यह है
लोहे, पत्थरों की दुनिया।
स्वर्ग का नाम सुनकर ही मुख पानी हो जाता है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण
अलग-अलग बनेंगे ना। तुम विष्णुपुरी के मालिक बनते हो। अभी तुम हो रावण पुरी में।
तो अब बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। बाप भी परमधाम
में रहते हैं, तुम
आत्मायें भी परमधाम में रहती हो। बाप कहते हैं तुमको कोई तकलीफ नहीं देता हूँ।
बहुत सहज है। बाकी यह रावण दुश्मन तुम्हारे सामने खड़ा है। यह विघ्न डालते हैं।
ज्ञान में विघ्न नहीं पड़ते, विघ्न पड़ते
हैं याद में। घड़ी-घड़ी माया याद भुला देती है। देह-अभिमान में ले आती है। बाप को
याद करने नहीं देती, यह युद्ध
चलती है। बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी तो हो ही। अच्छा, दिन में याद नहीं कर सकते हो तो रात
को याद करो। रात का अभ्यास दिन में काम आयेगा।
निरन्तर स्मृति रहे
- जो बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं, हम उसे याद करते हैं! बाप की याद और 84 जन्मों के चक्र की
याद रहे तो अहो सौभाग्य। औरों को भी सुनाना है-बहनों और भाइयों, अब कलियुग पूरा हो सतयुग आता है। बाप
आये हैं, सतयुग के
लिए राजयोग सिखला रहे हैं। कलियुग के बाद सतयुग आना है। एक बाप के सिवाए और कोई को
याद नहीं करना है। वानप्रस्थी जो होते हैं वह सन्यासियों का जाए संग करते हैं।
वानप्रस्थ, वहाँ वाणी
का काम नहीं है। आत्मा शान्त रहती है। लीन तो हो नहीं सकती। ड्रामा से कोई भी
एक्टर निकल नहीं सकता। यह भी बाप ने समझाया है-एक बाप के सिवाए और कोई को याद नहीं
करना है। देखते हुए भी याद न करो। यह पुरानी दुनिया तो विनाश हो जानी है, कब्रिस्तान है ना। मुर्दों को कभी याद
किया जाता है क्या! बाप कहते हैं यह सब मरे पड़े हैं। मैं आया हूँ, पतितों को पावन बनाए ले जाता हूँ।
यहाँ यह सब खत्म हो जायेंगे। आजकल बॉम्बस आदि जो भी बनाते हैं, बहुत तीखे-तीखे बनाते रहते हैं। कहते
हैं यहाँ बैठे जिस पर छोड़ेंगे उस पर ही गिरेंगे। यह नूँध है, फिर से विनाश होना है। भगवान आते हैं, नई दुनिया के लिए राजयोग सिखला रहे
हैं। यह महाभारत लड़ाई है, जो शास्त्रों
में गाई हुई है। बरोबर भगवान आये हैं-स्थापना और विनाश करने। चित्र भी क्लीयर है।
तुम साक्षात्कार कर रहे हो-हम यह बनेंगे। यहाँ की यह पढ़ाई खत्म हो जायेगी। वहाँ तो
बैरिस्टर, डॉक्टर आदि
की दरकार नहीं होती। तुम तो यहाँ का वर्सा ले जाते हो। हुनर भी सब यहाँ से ले
जायेंगे। मकान आदि बनाने वाले फर्स्टक्लास होंगे तो वहाँ भी बनायेंगे। बाजार आदि
भी तो होगी ना। काम तो चलेगा। यहाँ से सीखा हुआ अक्ल ले जाते हैं। साइन्स से भी
अच्छे हुनर सीखते हैं। वह सब वहाँ काम आयेंगे। प्रजा में जायेंगे। तुम बच्चों को
तो प्रजा में नहीं आना है। तुम आये ही हो बाबा-मम्मा के तख्तनशीन बनने। बाप जो
श्रीमत देते हैं, उस पर चलना
है। फर्स्टक्लास श्रीमत तो एक ही देते हैं कि मुझे याद करो। कोई का भाग्य अनायास
भी खुल जाता है। कोई कारण निमित्त बन पड़ता है। कुमारियों को भी बाबा कहते हैं शादी
तो बरबादी हो जायेगी। इस गटर में मत गिरो। क्या तुम बाप का नहीं मानेंगी! स्वर्ग
की महारानी नहीं बनेगी! अपने साथ प्रण करना चाहिए कि हम उस दुनिया में कभी नहीं
जायेंगे। उस दुनिया को याद भी नहीं करेंगे। शमशान को कभी याद करते हैं क्या! यहाँ
तो तुम कहते हो कहाँ यह शरीर छूटे तो हम अपने स्वर्ग में जायें। अब 84 जन्म पूरे
हुए, अब हम अपने घर जाते
हैं। औरों को भी यही सुनाना है। यह भी समझते हो-बाबा बिगर सतयुग की राजाई कोई दे
नहीं सकते। इस रथ को भी कर्मभोग तो होता है ना। बापदादा की भी आपस में कभी
रूहरिहान चलती है-यह बाबा कहते हैं बाबा आशीर्वाद कर दो। खांसी के लिए कोई दवाई
करो या छू मन्त्र से उड़ा दो। कहते हैं-नहीं, यह तो भोगना ही है। यह तुम्हारा रथ लेता हूँ, उसके एवज में तो देता ही हूँ, बाकी यह तो तुम्हारा हिसाब-किताब है।
अन्त तक कुछ न कुछ होता रहेगा। तुम्हें आशीर्वाद करूँ तो सब पर करना पड़े। आज यह
बच्ची यहाँ बैठी है, कल ट्रेन
में एक्सीडेंट हो जाता है, मर पड़ती है, बाबा कहेंगे ड्रामा। ऐसे थोड़ेही कह
सकते कि बाबा ने पहले क्यों नहीं बताया। ऐसा कायदा नहीं है। मैं तो आता हूँ पतित
से पावन बनाने। यह बतलाने थोड़ेही आया हूँ। यह हिसाब-किताब तो तुमको अपना चुक्तू
करना है। इसमें आशीर्वाद की बात नहीं। इसके लिए जाओ सन्यासियों के पास। बाबा तो
बात ही एक बताते हैं। मुझे बुलाया ही इसलिए है कि हमको आकर नर्क से स्वर्ग में ले
जाओ। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम। परन्तु अर्थ उल्टा निकाल दिया है। फिर राम की
बैठ महिमा करते-रघुपति राघव राजा राम.......। बाप कहते हैं इस भक्ति मार्ग में
तुमने कितने पैसे गंवाये हैं। एक गीत भी है ना-क्या कौतुक देखा...... देवियों की
मूर्तियाँ बनाए पूजा कर फिर समुद्र में डूबो देते हैं। अब समझ में आता है - कितने
पैसे बरबाद करते हैं, फिर भी यह
होगा। सतयुग में तो ऐसा काम होता ही नहीं। सेकण्ड बाई सेकण्ड की नूँध है। कल्प बाद
फिर यही बात रिपीट होगी। ड्रामा को बड़ा अच्छी रीति समझना चाहिए। अच्छा, कोई जास्ती नहीं याद कर सकते हैं तो
बाप कहते हैं सिर्फ अल्फ और बे, बाप
और बादशाही को याद करो। अन्दर में यही धुन लगा दो कि हम आत्मा कैसे 84 का चक्र
लगाकर आई हैं। चित्रों पर समझाओ, बहुत सहज है। यह है रूहानी बच्चों से रूहरिहान। बाप
रूहरिहान करते ही हैं बच्चों से। और कोई से तो कर न सकें। बाप कहते हैं-अपने को
आत्मा समझो। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप याद दिलाते हैं, तुमने 84 जन्म लिये हैं। मनुष्य ही
बने हैं। जैसे बाप ऑर्डिनेंस निकालते हैं कि विकार में नहीं जाना है, ऐसे यह भी ऑर्डिनेंस निकालते हैं कि
किसको रोना नहीं है। सतयुग-त्रेता में कभी कोई रोते नहीं, छोटे बच्चे भी नहीं रोते। रोने का
हुक्म नहीं। वह है ही हार्षित रहने की दुनिया। उसकी प्रैक्टिस सारी यहाँ करनी है।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए
याद की यात्रा से अपना सब हिसाब चुक्तू करना है। पावन बनने का पुरूषार्थ करना है।
इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझना है।
2) इस पुरानी दुनिया को देखते हुए
भी याद नहीं करना है। कर्मयोगी बनना है। सदा हार्षित रहने का अभ्यास करना है। कभी
भी रोना नहीं है।
वरदान:-
प्रवृत्ति में रहते
पर-वृत्ति में रहने
वाले निरन्तर योगी भव!
निरन्तर योगी बनने
का सहज साधन है-प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना। पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप।
जो आत्मिक रूप में स्थित रहता है वह सदा न्यारा और बाप का प्यारा बन जाता है। कुछ
भी करेगा लेकिन यह महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। तो
प्रवृत्ति में रहते आत्मिक रूप में रहने से सब खेल की तरह सहज अनुभव होगा। बंधन
नहीं लगेगा। सिर्फ स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति की एडीशन करो तो हाईजम्प लगा
लेंगे।
स्लोगन:- बुद्धि की महीनता अथवा आत्मा का हल्कापन ही
ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है।
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