17-03-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
सार :- “मीठे बच्चे
- यह अनादि
अविनाशी बना बनाया
ड्रामा है,
इसमें जो सीन
पास हुई,
वह फिर कल्प के
बाद ही रिपीट
होगी, इसलिए
सदा निश्चिंत रहो”
प्रश्न:- यह दुनिया अपनी तमोप्रधान
स्टेज पर पहुँच गई है, उसकी
निशानियाँ क्या हैं?
उत्तर:- दिन-प्रतिदिन उपद्रव होते रहते हैं, कितनी घमसान हो रही है। चोर कैसे
मार-पीट कर लूट ले जाते हैं। बिना मौसम बरसात पड़ती रहती है। कितना नुकसान हो जाता
है। यह सब तमोप्रधानता के चिन्ह हैं। तमोप्रधान प्रकृति दु:ख देती रहती है। तुम
बच्चे ड्रामा के राज को जानते हो इसलिए कहते हो नाथिंगन्यु।
अभी तुम बच्चों पर
ज्ञान की वर्षा हो रही है। तुम हो संगमयुगी और बाकी जो भी मनुष्य हैं वह सब हैं
कलियुगी। इस समय दुनिया में अनेक मत-मतान्तर हैं। तुम बच्चों की तो है एक मत। जो
एक मत भगवान की ही मिलती है। वे लोग भक्ति मार्ग में जप-तप-तीर्थ आदि जो कुछ करते
हैं वह समझते हैं यह सब रास्ते भगवान से मिलने के हैं। कहते हैं भक्ति के बाद ही
भगवान मिलेंगे। परन्तु उन्हों को यह पता ही नहीं है कि भक्ति शुरू कब होती है और
कब तक चलती है। सिर्फ कह देते भक्ति से भगवान मिलेगा इसलिए अनेक प्रकार की भक्ति
करते आते हैं। यह भी खुद समझते हैं कि परम्परा से हम भक्ति करते आये हैं। एक दिन
भगवान जरूर मिलेगा। कोई न कोई रूप में भगवान मिलेगा। क्या करेंगे? जरूर सदगति करेंगे क्योंकि वह है ही
सर्व का सदगति दाता। भगवान कौन है, कब आयेगा,
यह भी नहीं जानते। महिमा भल किस्म-किस्म की गाते हैं, कहते हैं भगवान पतित-पावन है, ज्ञान का सागर है। ज्ञान से ही सदगति
होती है। यह भी जानते हैं भगवान निराकार है। जैसे हम आत्मा भी निराकार हैं, पीछे शरीर लेती हैं। हम आत्मायें भी
बाप के साथ परमधाम में रहने वाली हैं। हम यहाँ की वासी नहीं हैं। कहाँ के निवासी
हैं, यह भी यथार्थ रीति
नहीं बतलाते हैं। कोई तो समझते हैं-हम स्वर्ग में चले जायेंगे। अब सीधा स्वर्ग में
तो किसको भी जाना नहीं है। कोई फिर कहते ज्योति ज्योत में समा जायेंगे। यह भी रांग
है। आत्मा को विनाशी बना देते हैं। मोक्ष भी हो न सके। जबकि कहते हैं बनी
बनाई..... यह चक्र फिरता रहता है। हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। परन्तु चक्र
कैसे फिरता है यह नहीं जानते। न चक्र को जानते, न ईश्वर को जानते। भक्ति मार्ग में कितना भटकते हैं। भगवान
कौन है यह तुम जानते हो। भगवान को फादर भी कहते हैं तो बुद्धि में आना चाहिए ना।
लौकिक फादर भी तो है फिर हम उनको याद करते हैं तो दो फादर हो गये-लौकिक और
पारलौकिक। उस पारलौकिक बाप से मिलने के लिए इतनी भक्ति करते हैं। वह परलोक में
रहते हैं। निराकारी दुनिया भी है जरूर। तुम अच्छी रीति जानते हो - मनुष्य जो कुछ
करते हैं वह सब है भक्तिमार्ग। रावण राज्य में भक्ति ही भक्ति होती आई है।
ज्ञान हो न सके।
भक्ति से कभी सद्गति नहीं हो सकती। सद्गति करने वाले बाप को याद करते हैं तो जरूर
वह कभी आकर सद्गति करेंगे। तुम जानते हो यह बिल्कुल ही तमोप्रधान दुनिया है।
सतोप्रधान थे अभी तमोप्रधान हैं,
कितने उपद्रव होते रहते हैं। बहुत घमसान हो रही है। चोर भी लूटते रहते हैं।
कैसे-कैसे मार पीटकर चोर पैसे लूट ले जाते हैं। ऐसी- ऐसी दवाइयाँ हैं जो सुंघाकर
बेहोश कर देते हैं। यह है रावण राज्य। यह बहुत बड़ा बेहद का खेल है। इसको फिरने में
5 हजार वर्ष लगते हैं। खेल भी ड्रामा मिसल है। नाटक नहीं कहेंगे। नाटक में तो समझो
कोई एक्टर बीमार पड़ता है तो अदली बदली कर लेते हैं। इसमें तो यह बात हो न सके। यह
तो अनादि ड्रामा है ना। समझो कोई बीमार हो पड़ता है तो कहेंगे ऐसे बीमार होने का भी
ड्रामा में पार्ट है। यह अनादि बना बनाया है। और किसको तुम ड्रामा कहो तो मूँझ
जायेंगे। तुम जानते हो यह बेहद का ड्रामा है। कल्प बाद फिर भी यही एक्टर्स होंगे।
जैसे अभी बरसात आदि पड़ती है,
कल्प बाद फिर भी ऐसे ही पड़ेगी। यही उपद्रव होंगे। तुम बच्चे जानते हो ज्ञान की
बरसात तो सभी पर पड़ नहीं सकती है लेकिन यह आवा॰ज सभी के कानों तक अवश्य जायेगा कि
ज्ञान सागर भगवान आया हुआ है। तुम्हारा मुख्य है योग। ज्ञान भी तुम सुनते हो बाकी
बरसात तो सारी दुनिया में पड़ती है। तुम्हारे योग से स्थाई शान्ति हो जाती है। तुम
सबको सुनाते हो कि स्वर्ग की स्थापना करने भगवान आया हुआ है, परन्तु ऐसे भी बहुत हैं जो अपने को
भगवान समझ लेते हैं, तो तुमको
फिर कौन मानेगा इसलिए बाप समझाते हैं कोटो में कोई निकलेंगे। तुम्हारे में भी
नम्बरवार जानते हैं भगवान बाप आया हुआ है। बाप से तो वर्सा लेना चाहिए ना। कैसे
बाप को याद करो वह भी समझाया है। अपने को आत्मा समझो। मनुष्य तो देह-अभिमानी बन
गये हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब सभी मनुष्यात्मायें पतित बन जाती हैं।
तुम कितने तमोप्रधान बन गये हो। अब मैं आया हूँ तुमको सतोप्रधान बनाने। कल्प पहले
भी मैंने तुमको ऐसे समझाया था। तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनेंगे? सिर्फ मुझे याद करो। मैं आया हूँ
तुमको अपना और रचना का परिचय देने। उस बाप को सभी याद करते ही हैं रावण राज्य में।
आत्मा अपने बाप को याद करती है। बाप है ही अशरीरी, बिन्दी है ना। उनका नाम फिर रखा गया है।
तुमको कहते हैं सालिग्राम और बाप को कहते हैं शिव। तुम बच्चों का नाम शरीर पर पड़ता
है। बाप तो है ही परम आत्मा। उनको शरीर तो लेना नहीं है। उसने इनमें प्रवेश किया
है। यह ब्रह्मा का तन है, इनको शिव
नहीं कहेंगे। आत्मा नाम तो तुम्हारा है ही फिर तुम शरीर में आते हो। वह परम आत्मा
है सभी आत्माओं का पिता। तो सभी के दो बाप हो गये। एक निराकारी, एक साकारी। इनको फिर अलौकिक वन्डरफुल
बाप कहा जाता है। कितने ढेर बच्चे हैं। मनुष्यों को यह समझ में नहीं आता है -
प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां इतने ढेर हैं, यह क्या हैं! किस प्रकार का यह धर्म है! समझ
नहीं सकते। तुम जानते हो यह कुमार-कुमारी प्रवृत्ति मार्ग का अक्षर है ना। माँ, बाप, कुमारी और कुमार। भक्ति मार्ग में तुम याद
करते हो तुम मात-पिता....... अभी तुमको मात-पिता मिला है, तुमको एडाप्ट किया है। सतयुग में
एडाप्ट नहीं किया जाता है। वहाँ एडाप्शन का नाम नहीं। यहाँ फिर भी नाम है। वह है
हद का बाप, यह है बेहद
का बाप। बेहद की एडाप्शन है। यह राज बहुत ही गुह्य समझने लायक है। तुम लोग पूरी
रीति किसको समझाते नहीं हो। पहले-पहले अन्दर कोई आते हैं, बोले गुरू का दर्शन करने आये हैं, तो तुम बोलो कि यह कोई मन्दिर नहीं
है। बोर्ड पर देखो क्या लिखा हुआ है! ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ ढेर हैं। यह सब
प्रजापिता के बच्चे हो गये। प्रजा तो तुम भी हो। भगवान सृष्टि रचते हैं, ब्रह्मा मुख कमल द्वारा हमको रचा है।
हम हैं ही नई सृष्टि के, तुम हो
पुरानी सृष्टि के। नई सृष्टि का बनना होता है संगमयुग पर। यह है पुरूषोत्तम बनने
का युग। तुम संगमयुग पर खड़े हो,
वे कलियुग में खड़े हैं जैसेकि पार्टीशन पड़ गई है। आजकल तो देखो कितनी पार्टीशन
है। हर एक धर्म वाला समझते हम अपनी प्रजा को सम्भालेंगे, अपने धर्म को, हमजिन्स को सुखी रखेंगे इसलिए हर एक कहते
हैं - हमारी स्टेट से यह चीज बाहर न जाये। आगे तो राजा का सारी प्रजा पर हुक्म
चलता था। राजा को माई बाप, अन्न दाता
कहते थे। अभी तो राजा-रानी कोई है नहीं। अलग-अलग टुकड़े हो गये हैं। कितने उपद्रव
होते रहते हैं। अचानक बाढ़ आ जाती है, भूकम्प होते रहते हैं, यह सब है दु:ख का मौत।
अभी तुम ब्राह्मण
समझते हो कि हम सब आपस में भाई-भाई हैं। तो हमें आपस में बहुत-बहुत प्यार से
क्षीरखण्ड होकर रहना है। हम एक बाप के बच्चे हैं तो आपस में बहुत प्यार होना
चाहिए। रामराज्य में शेर-बकरी जो एकदम पक्के दुश्मन हैं, वह भी इकट्ठे पानी पीते हैं। यहाँ तो
देखो घर-घर में कितना झगड़ा है। नेशन-नेशन का झगड़ा, आपस में ही फूट पड़ती है। अनेक मते हैं। अभी
तुम जानते हो हम सबने अनेक बार बाप से वर्सा लिया है और फिर गँवाया है अर्थात्
रावण पर जीत पाते हैं और फिर हारते हैं। एक बाप की श्रीमत पर हम विश्व के मालिक बन
जाते हैं, इसलिए उनको
ऊंच ते ऊंच भगवान कहा जाता है। सर्व का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है। अभी तुमको सुख का
रास्ता बता रहे हैं। तुम बच्चे आपस में क्षीरखण्ड होने चाहिए। दुनिया में आपस में
सभी हैं लूनपानी। एक-दो को मारने में देरी नहीं करते। तुम ईश्वरीय औलाद तो
क्षीरखण्ड होने चाहिए। तुम ईश्वरीय सन्तान देवताओं से भी ऊंच ठहरे। तुम बाप के
कितने मददगार बनते हो। पुरूषोत्तम बनाने के मददगार हो तो यह दिल में आना चाहिए-हम
पुरूषोत्तम हैं, तो हमारे
में वह दैवीगुण हैं? आसुरी गुण
हैं तो वह फिर बाप का बच्चा तो कहला न सके इसलिए कहा जाता है सतगुरू का निंदक ठौर
न पाये। वह कलियुगी गुरू फिर अपने लिए कहकर मनुष्यों को डरा देते हैं। तो बाप
बच्चों को समझाते हैं-सपूत बच्चे वह हैं जो बाप का नाम बाला करते हैं, क्षीरखण्ड हो रहते हैं। बाप हमेशा
कहते हैं-क्षीरखण्ड बनो। लूनपानी हो आपस में लड़ो-झगड़ो नहीं। तुमको यहाँ क्षीरखण्ड
बनना है। आपस में बहुत लव चाहिए क्योंकि तुम ईश्वरीय औलाद हो ना। ईश्वर मोस्ट लवली
है तब तो उनको सभी याद करते हैं। तो तुम्हारा आपस में बहुत प्यार होना चाहिए। नहीं
तो बाप की इज्जत गँवाते हो। ईश्वर के बच्चे आपस में लूनपानी कैसे हो सकते, फिर पद कैसे पा सकेंगे। बाप समझाते
हैं आपस में क्षीरखण्ड हो रहो। लून-पानी होंगे तो कुछ भी धारणा नहीं होगी। अगर बाप
के डायरेक्शन पर नहीं चलेंगे तो फिर ऊंच पद कैसे पायेंगे। देह-अभिमान में आने से
ही फिर आपस में लड़ते हैं। देही-अभिमानी हो तो कुछ भी खिटपिट न हो। ईश्वर बाप मिला
है तो फिर दैवी गुण भी धारण करने हैं। आत्मा को बाप जैसा बनना है। जैसे बाप में
पवित्रता, सुख, प्रेम आदि सब हैं, तुमको भी बनना है। नहीं तो ऊंच पद पा
नहीं सकते। पढ़कर बाप से ऊंच वर्सा पाना है, बहुतों का जो कल्याण करते हैं, वही राजा-रानी बन सकते हैं। बाकी
दास-दासियाँ जाकर बनेंगे। समझ तो सकते हैं ना - कौन-कौन क्या बनेंगे? पढ़ने वाले खुद भी समझ सकते हैं-इस
हिसाब से हम बाबा का क्या नाम निकालेंगे। ईश्वर के बच्चे तो मोस्ट लवली होने
चाहिए। जो कोई भी देख खुश हो जाए। बाबा को भी मीठे वह लगेंगे। पहले घर को तो
सुधारो। पहले घर को फिर पर (दूसरों) को सुधारना है। गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल
समान पवित्र और क्षीरखण्ड होकर रहो। कोई भी देखे तो कहे-ओहो! यहाँ तो स्वर्ग लगा
पड़ा है। अज्ञानकाल में भी बाबा ने खुद ऐसे घर देखे हैं। 6-7 बच्चे शादी किये हुए
सब इकट्ठे रहते हैं। सब सवेरे उठकर भक्ति करते हैं। घर में एकदम शान्ति लगी रहती
है। यह तो तुम्हारा ईश्वरीय कुटुम्ब है। हंस और बगुला इकट्ठा तो रह नहीं सकते।
तुमको तो हंस बनना है। लूनपानी होने से बाबा रा॰जी नहीं होगा। बाप कहेंगे तुम
कितना नाम बदनाम करते हो। अगर क्षीरखण्ड होकर नहीं रहेंगे तो स्वर्ग में ऊंच पद पा
नहीं सकेंगे, बहुत सजा
खायेंगे। बाप का बनकर फिर अगर लूनपानी हो रहते हैं तो सौगुणा सजा खायेंगे। फिर
तुमको साक्षात्कार भी होते रहेंगे कि हम क्या पद पायेंगे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की
रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) सदा ध्यान रहे - हम ईश्वर के बच्चे हैं, हमें मोस्ट लवली होकर रहना है।
आपस में कभी भी लूनपानी नहीं होना है। पहले अपने को सुधारना है फिर दूसरों को
सुधारने की शिक्षा देनी है।
2) जैसे बाप में पवित्रता, सुख, प्रेम आदि सब गुण हैं, ऐसे बाप समान बनना है। ऐसा कोई कर्म
नहीं करना है जो सतगुरू का निंदक बनें। अपनी चलन से बाप का नाम बाला करना है।
वरदान:- स्नेह के
वाण द्वारा स्नेह
में घायल करने
वाले स्नेह और
प्राप्ति सम्पन्न लवलीन
आत्मा भव!
जैसे लौकिक रीति से
कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है-आशिक है-ऐसे जब स्टेज
पर जाते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना ही स्नेह का वाण
औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा। भाषण की लिंक सोचना, प्वाइंट दुहराना-यह स्वरूप नहीं हो, स्नेह और प्राप्ति का सम्पन्न स्वरूप, लवलीन स्वरूप हो। अथॉरिटी होकर बोलने
से उसका प्रभाव पड़ता है।
स्लोगन:- सम्पूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप
लाओ।
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