12-03-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
सार:- “मीठे बच्चे - जिन्होंने शुरू से
भक्ति की है, 84 जन्म लिए हैं, वह तुम्हारे ज्ञान को बड़ी रूचि से सुनेंगे, इशारे से समझ जायेंगे”
प्रश्न:- देवी-देवता घराने के
नजदीक वाली आत्मा है या दूर वाली,
उसकी परख क्या होगी?
उत्तर:- जो तुम्हारे देवता घराने की आत्मायें होंगी, उन्हें ज्ञान की सब बातें सुनते
ही जंच जायेंगी, वह
मुन्झेंगे नहीं।
जितना बहुत भक्ति की होगी उतना जास्ती सुनने की कोशिश करेंगे। तो बच्चों को नब्ज
देखकर सेवा
करनी चाहिए।
ओम शान्ति।
रूहानी बाप बैठ
रूहानी बच्चों को समझाते हैं। यह तो बच्चे समझ गये रूहानी बाप है निराकार, इस शरीर द्वारा बैठ समझाते हैं, हम आत्मा भी निराकार हैं, इस शरीर से सुनते हैं। तो अब दो बाप इकट्ठे
हैं ना। बच्चे जानते हैं दोनों बाबा यहाँ हैं। तीसरे बाप को जानते हो परन्तु उनसे फिर भी
यह अच्छा है, इनसे फिर वह
अच्छा, नम्बरवार
हैं ना। तो उस लौकिक से
सम्बन्ध निकल बाकी इन दोनों से सम्बन्ध हो जाता है। बाप बैठ समझाते हैं, मनुष्यों को कैसे समझाना चाहिए। तुम्हारे पास मेला
प्रदर्शनी में तो बहुत आते हैं। यह भी तुम जानते हो 84 जन्म कोई सब तो नहीं लेते होंगे। यह
कैसे पता पड़े यह 84 जन्म लेने वाला है या 10 जन्म लेने वाला है वा 20 जन्म लेने वाला है? अब तुम बच्चे यह तो समझते हो कि जिसने बहुत भक्ति की होगी
शुरू से लेकर, तो उनको फल
भी इतना ही जल्दी और अच्छा मिलेगा। थोड़ी भक्ति की होगी और देरी से की होगी तो फल भी इतना थोड़ा
और देरी से मिलेगा। यह बाबा सार्विस करने वाले बच्चों के लिए समझाते हैं। बोलो, तुम भारतवासी हो तो बताओ देवी-देवताओं
को मानते हो? भारत में इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। जो 84 जन्म लेने वाला होगा, शुरू से भक्ति की होगी वह झट समझ जायेगा-बरोबर आदि सनातन
देवी-देवता धर्म था, रूचि से
सुनने लग पड़ेंगे।
कोई तो ऐसे ही देखकर चले जाते हैं, कुछ पूछते भी नहीं जैसे कि बुद्धि में बैठता नहीं। तो उनके
लिए समझना चाहिए यह
अभी तक यहाँ का नहीं है। आगे चल समझ भी लेवें। कोई का समझाने से झट कांध हिलेगा।
बरोबर इस हिसाब से तो
84 जन्म ठीक हैं। अगर
कहते हैं हम कैसे समझें कि पूरे 84 जन्म लिए
हैं? अच्छा, 84 नहीं तो 82, देवता धर्म में तो आये
होंगे। देखो इतना बुद्धि में जंचता नहीं है तो समझो यह 84 जन्म लेने वाला नहीं है। दूर वाले कम
सुनेंगे। जितना बहुत
भक्ति की हुई होगी वह जास्ती सुनने की कोशिश करेंगे। झट समझ जायेंगे। कम समझता है
तो समझो यह देरी से आने
वाला है। भक्ति भी देरी से की होगी। बहुत भक्ति करने वाला इशारे से समझ जायेगा।
ड्रामा रिपीट तो होता
है ना। सारा भक्ति पर मदार है। इस (बाबा) ने सबसे नम्बरवन भक्ति की है ना। कम
भक्ति की होगी तो फल भी कम मिलेगा। यह सब समझने की बातें हैं। मोटी बुद्धि वाले धारणा
कर नहीं सकेंगे। यह मेले-प्रदर्शनियाँ तो होती रहेंगी। सब भाषाओं में निकलेंगी। सारी दुनिया को
समझाना है ना। तुम हो सच्चे-सच्चे पैगम्बर और मैसेन्जर। वह धर्म स्थापक तो कुछ भी नहीं करते। न
वह गुरू हैं। गुरू कहते हैं परन्तु वह कोई सद्गति दाता थोड़ेही हैं। वह जब आते हैं, उनकी संस्था ही नहीं तो सद्गति किसकी करेंगे। गुरू
वह जो सद्गति दे, दु:ख की
दुनिया से शान्तिधाम ले जाये। क्राइस्ट आदि गुरू नहीं, वह सिर्फ धर्म स्थापक हैं। उन्हों का और कोई
पोजीशन नहीं है। पोजीशन तो उन्हों का है, जो पहले-पहले सतोप्रधान में फिर सतो, रजो, तमो में आते
हैं। वह तो सिर्फ अपना धर्म स्थापन कर पुनर्जन्म लेते रहेंगे। जब फिर सबकी तमोप्रधान अवस्था
होती है तो बाप आकर सबको पवित्र बनाए ले जाते हैं। पावन बना तो फिर पतित दुनिया
में नहीं रह सकते।
पवित्र आत्मायें चली जायेंगी मुक्ति में, फिर जीवनमुक्ति में आयेंगी। कहते भी हैं वह लिबरेटर है, गाइड है परन्तु इसका भी अर्थ नहीं समझते। अर्थ समझ
जाएं तो उनको जान जाएं। सतयुग में भक्ति मार्ग के अक्षर भी बन्द हो जाते हैं। यह भी ड्रामा में
नूँध है जो सब अपना-अपना पार्ट बजाते रहते हैं। सद्गति को एक भी पा न सके। अभी
तुमको यह ज्ञान मिल रहा है।
बाप भी कहते हैं मैं कल्प-कल्प,
कल्प के संगमयुगे आता हूँ। इनको कहा जाता है कल्याणकारी संगमयुग, और कोई युग कल्याणकारी नहीं है। सतयुग
और त्रेता के संगम का कोई महत्व नहीं। सूर्यवंशी पास्ट हुए फिर चन्द्रवंशी राज्य चलता है। फिर
चन्द्रवंशी से वैश्यवंशी बनेंगे तो चन्द्रवंशी पास्ट हो गये। उनके बाद क्या बनें, वह पता ही नहीं रहता है। चित्र आदि रहते
हैं तो समझेंगे यह सूर्यवंशी हमारे बड़े थे, यह चन्द्रवंशी थे। वह महाराजा, वह राजा, वह बड़े धनवान थे। वह फिर भी नापास तो हुए ना। यह
बातें कोई शास्त्रों आदि में नहीं हैं। अब बाप बैठ समझाते हैं। सभी कहते हैं हमको लिबरेट करो, पतित से पावन बनाओ। सुख के लिए नहीं
कहेंगे क्योंकि सुख के लिए निंदा कर दी है शास्त्रों में। सब कहेंगे मन की शान्ति कैसे
मिले? अभी तुम बच्चे समझते
हो तुमको सुख-शान्ति दोनों मिलते हैं, जहाँ शान्ति है वहाँ सुख है। जहाँ अशान्ति है, वहाँ दु:ख है। सतयुग में सुख-शान्ति
है, यहाँ दु:ख-अशान्ति
है। यह बाप बैठ समझाते हैं। तुमको माया रावण ने कितना तुच्छ बुद्धि बनाया है, यह भी ड्रामा बना हुआ है। बाप कहते
हैं मैं भी ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ हूँ। मेरा पार्ट ही अभी है जो बजा रहा हूँ। कहते भी
हैं बाबा कल्प-कल्प आप ही आकर भ्रष्टाचारी पतित से श्रेष्ठाचारी पावन बनाते हो। भ्रष्टाचारी बने हो
रावण द्वारा। अब बाप आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं। यह जो गायन है उनका अर्थ बाप
ही आकर समझाते हैं।
उस अकाल तख्त पर बैठने वाले भी इसका अर्थ नहीं समझते। बाबा ने तुमको समझाया
है-आत्मायें अकाल मूर्त हैं।
आत्मा का यह शरीर है रथ, इस पर अकाल
अर्थात् जिसको काल नहीं खाता,
वह आत्मा विराजमान है। सतयुग में तुमको काल नहीं खायेगा। अकाले मृत्यु कभी नहीं होगी। वह
है ही अमरलोक, यह है
मृत्युलोक। अमरलोक, मृत्युलोक
का भी अर्थ कोई नहीं समझते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको बहुत सिम्पुल समझाता हूँ -
सिर्फ मामेकम् याद करो
तो तुम पावन बन जायेंगे। साधू-सन्त आदि भी गाते हैं पतित-पावन............
पतित-पावन बाप को बुलाते हैं,
कहाँ भी जाओ तो यह
जरूर कहेंगे पतित-पावन........ सच तो कभी छिप नहीं सकता। तुम जानते हो अभी
पतित-पावन बाप आया हुआ है।
हमें रास्ता बता रहे हैं। कल्प पहले भी कहा था अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो
तो तुम सतोप्रधान
बन जायेंगे। तुम सब आशिक हो मुझ माशुक के। वह आशिक-माशूक तो एक जन्म के लिए होते
हैं, तुम जन्म-जन्मान्तर के
आशिक हो। याद करते आये हो हे प्रभू। देने वाला तो एक ही बाप है ना। बच्चे सब बाप
से ही मागेंगे। आत्मा जब
दु:खी होती है तो बाप को याद करती है। सुख में कोई याद नहीं करते, दु:ख में याद करते हैं-बाबा आकर सद्गति दो। जैसे
गुरू के पास जाते हैं, हमको बच्चा
दो। अच्छा, बच्चा मिल
गया तो बहुत खुशी होगी। बच्चा नहीं हुआ तो कहेंगे ईश्वर की भावी। ड्रामा को तो वह समझते ही नहीं। अगर
वह ड्रामा कहे तो फिर सारा मालूम होना चाहिए। तुम ड्रामा को जानते हो, और कोई नहीं जानते। न कोई शास्त्रों
में ही है। ड्रामा माना ड्रामा। उनके आदि-मध्य-अन्त का पता होना चाहिए। बाप कहते हैं मैं 5-5 हजार वर्ष बाद आता
हूँ। यह 4 युग
बिल्कुल इक्वल हैं। स्वास्तिका का भी महत्व है ना। खाता जो बनाते हैं तो उसमें
स्वास्तिका बनाते हैं। यह भी खाता है ना। हमारा फायदा कैसे होता है, फिर घाटा कैसे पड़ता है। घाटा पड़ते-पड़ते अभी पूरा
घाटा पड़ गया है। यह हार-जीत का खेल है। पैसा है और हेल्थ भी है तो सुख है, पैसा है हेल्थ नहीं तो सुख नहीं।
तुमको हेल्थ-वेल्थ दोनों देता हूँ। तो हैप्पीनेस है ही। जब कोई शरीर छोड़ता है तो मुख से तो
कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। लेकिन अन्दर दु:खी होते रहते हैं। इसमें तो और ही खुश होना चाहिए
फिर उनकी आत्मा को नर्क में क्यों बुलाते हो? कुछ भी समझ नहीं है। अभी बाप आकर यह सब बातें समझाते हैं।
बीज और झाड़ का राज समझाते हैं। ऐसे झाड़ और कोई बना न सके। यह कोई इसने नहीं बनाया
है। इनका कोई
गुरू नहीं था। अगर होता तो उनके और भी शिष्य होते ना। मनुष्य समझते हैं इनको कोई
गुरू ने सिखाया है या तो कहते
परमात्मा की शक्ति प्रवेश करती है। अरे, परमात्मा की शक्ति कैसे प्रवेश करेगी! बिचारे कुछ भी नहीं जानते। बाप खुद बैठ
बताते हैं मैंने कहा था मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ, आकर तुमको पढ़ाता हूँ। यह भी सुनते हैं, अटेन्शन तो हमारे ऊपर है। यह भी
स्टूडेन्ट है। यह अपने को और कुछ नहीं कहते। प्रजापिता सो भी स्टूडेन्ट है। भल इसने विनाश भी देखा
परन्तु समझा कुछ भी नहीं। आहिस्ते-आहिस्ते समझते गये। जैसे तुम समझते जाते हो। बाप
तुमको समझाते हैं, बीच में यह भी समझते जाते हैं, पढ़ते रहते हैं। हर एक स्टूडेन्ट
पुरूषार्थ करेंगे पढ़ने का। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तो हैं सूक्ष्मवतनवासी। उन्हों का
क्या पार्ट है, यह भी कोई
नहीं जानते। बाप हर एक बात आपेही समझाते हैं। तुम प्रश्न कोई पूछ नहीं सकते। ऊपर में है शिव
परमात्मा फिर देवतायें, उनको मिला
कैसे सकते। अभी तुम बच्चे जानते हो बाप इसमें आकर प्रवेश करते हैं इसलिए कहा जाता
है बापदादा। बाप अलग है, दादा अलग
है। बाप शिव, दादा
ब्रह्मा है। वर्सा शिव
से मिलता है इन द्वारा। ब्राह्मण हो गये ब्रह्मा के बच्चे। बाप ने एडाप्ट किया
है ड्रामा के प्लैन अनुसार। बाप कहते हैं नम्बरवन भक्त यह है। 84 जन्म भी इसने लिए हैं। सांवरा और
गोरा भी इनको कहते हैं। कृष्ण सतयुग में गोरा था, कलियुग में सांवरा है। पतित है ना फिर पावन बनते
हैं। तुम भी ऐसे बनते हो। यह है आइरन एजेड वर्ल्ड, वह है गोल्डन एजेड वर्ल्ड। सीढ़ी का किसको पता
नहीं है। जो पीछे आते हैं वह 84 जन्म
थोड़ेही लेते होंगे। वह जरूर कम जन्म लेंगे फिर उनको सीढ़ी में दिखा कैसे सकते। बाबा ने
समझाया है-सबसे जास्ती जन्म कौन लेंगे? सबसे कम जन्म कौन लेंगे? यह है नॉलेज। बाप ही नॉलेजफुल, पतित-पावन है। आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुना रहे हैं। वह सब
नेती-नेती करते आये हैं। अपनी आत्मा को ही नहीं जानते तो बाप को फिर कैसे जानेंगे? सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं, आत्मा क्या चीज है, कुछ भी नहीं जानते। तुम अभी जानते हो आत्मा
अविनाशी है, उसमें 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ
है। इतनी छोटी सी आत्मा
में कितना पार्ट नूँधा हुआ है, जो अच्छी रीति सुनते और समझते हैं तो समझा जाता है यह नजदीक
वाला है। बुद्धि में नहीं बैठता है तो देरी से आने वाला होगा। सुनाने के समय नब्ज
देखी जाती है। समझाने वाले भी नम्बरवार हैं ना। तुम्हारी यह पढ़ाई है, राजधानी स्थापन हो रही है। कोई तो ऊंच
से ऊंच राजाई पद पाते हैं, कोई तो
प्रजा में नौकर चाकर बनते हैं। बाकी हाँ,
इतना है कि सतयुग में कोई दु:ख नहीं होता। उनको कहा ही जाता है सुखधाम, बहिश्त। पास्ट हो गया है तब तो याद करते हैं ना।
मनुष्य समझते हैं स्वर्ग कोई ऊपर छत में होगा। देलवाड़ा मन्दिर में तुम्हारा पूरा
यादगार खड़ा है। आदि देव आदि
देवी और बच्चे नीचे योग में बैठे हैं। ऊपर में राजाई खड़ी है। मनुष्य तो दर्शन
करेंगे, पैसा
रखेंगे। समझेंगे कुछ भी
नहीं। तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम सबसे पहले तो बाप की बॉयोग्राफी को जान
गये तो और क्या चाहिए। बाप
को जानने से ही सब कुछ समझ में आ जाता है। तो खुशी होनी चाहिए। तुम जानते हो अभी
हम सतयुग में जाकर सोने
के महल बनायेंगे, राज्य
करेंगे। जो सार्विसएबुल बच्चे हैं उन्हों की बुद्धि में रहेगा यह स्प्रीचुअल नॉलेज स्प्रीचुअल फादर
देते हैं। स्प्रीचुअल फादर कहा जाता है आत्माओं के बाप को। वही सद्गति दाता है।
सुख-शान्ति का वर्सा देते
हैं। तुम समझा सकते हो यह सीढ़ी है भारतवासियों की, जो 84 जन्म लेते हैं। तुम आते ही आधे में हो, तो तुम्हारे 84 जन्म कैसे होंगे? सबसे जास्ती जन्म हम लेते हैं। यह बड़ी
समझने की बातें हैं। मुख्य बात ही है पतित से पावन बनने लिए बुद्धियोग लगाना है। पावन बनने की
प्रतिज्ञा कर फिर अगर पतित बनते हैं तो हडगुड एकदम टूट पड़ती हैं, जैसेकि 5 मंजिल से गिरते हैं। बुद्धि ही मलेच्छ
की हो जायेगी, दिल अन्दर
खाता रहेगा। मुख से कुछ निकलेगा नहीं। इसलिए बाप कहते हैं खबरदार रहो। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की
रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझ
माया के बंधनों से मुक्त होना है। स्वयं को अकालमूर्त आत्मा समझ बाप को याद कर
पावन बनना है।
2) सच्चा-सच्चा पैगम्बर और
मैसेन्जर बन सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताना है। इस कल्याणकारी संगमयुग पर सभी
आत्माओं का कल्याण करना है।
वरदान:- माया के
बन्धनों से सदा निर्बन्धन रहने वाले योगयुक्त, बन्धनमुक्त भव !
बन्धनमुक्त की
निशानी है सदा योगयुक्त। योगयुक्त बच्चे जिम्मेवारियों के बंधन वा माया के बन्धन
से मुक्त
होंगे। मन का भी बन्धन न हो। लौकिक जिम्मेवारी तो खेल हैं, इसलिए डायरेक्शन प्रमाण खेल की रीति से हंसकर
खेलो तो कभी छोटी-छोटी बातों में थकेंगे नहीं। अगर बंधन समझते हो तो तंग होते हो। क्या, क्यों का प्रश्न उठता है। लेकिन जिम्मेवार बाप है आप
निमित्त हो। इस स्मृति से बन्धनमुक्त बनो तो योगयुक्त बन जायेंगे।
स्लोगन:- करनकरावनहार की स्मृति से भान और अभिमान को
समाप्त करो।
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