01-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा”
मधुबन
“मीठे
बच्चे - तुम पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण अभी ईश्वर की गोद में आये हो, तुम्हें मनुष्य से देवता बनना है तो
दैवीगुण भी चाहिए”
प्रश्न:- ब्राह्मण बच्चों को
किस बात में अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है और क्यों?
उत्तर:- सारे दिन की दिनचर्या में कोई भी पाप कर्म न हो
इससे सम्भाल करनी है क्योंकि तुम्हारे सामने बाप धर्मराज के रूप में खड़ा है। चेक
करो किसी को दु:ख तो नहीं दिया? श्रीमत पर कितना परसेन्ट चलते हैं? रावण मत पर तो नहीं चलते? क्योंकि बाप का बनने के बाद कोई
विकर्म होता है तो एक का सौ गुणा हो जाता है।
ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। यह तो
बच्चों को समझाया गया है, किसी मनुष्य
को वा देवताओं को भगवान नहीं कहा जा सकता। यहाँ जब बैठते हैं तो बुद्धि में यह
रहता है कि हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। यह भी याद सदा किसको रहती नहीं हैं। अपने को
सचमुच ब्राह्मण समझते हैं, ऐसा भी नहीं
है। ब्राह्मण बच्चों को फिर दैवीगुण भी धारण करने हैं। हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं, हम शिवबाबा द्वारा पुरूषोत्तम बन रहे
हैं। यह याद भी सबको नहीं रहती। घड़ी-घड़ी यह भूल जाते हैं कि हम पुरूषोत्तम
संगमयुगी ब्राह्मण हैं। यह बुद्धि में याद रहे तो भी अहो सौभाग्य। हमेशा नम्बरवार
तो होते ही हैं। सब अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार पुरुषार्थी हैं। अभी तुम संगमयुगी हो।
पुरूषोत्तम बनने वाले हो। जानते हो हम पुरूषोत्तम तब बनेंगे जब अब्बा को यानी
मोस्ट बिलवेड बाप को याद करेंगे। याद से ही पाप नाश होंगे। अगर कोई पाप करता है तो
उसका सौ गुणा हिसाब चढ़ जाता है। आगे जो पाप करते थे तो उसका 10 परसेन्ट चढ़ता था।
अभी तो 100 परसेन्ट चढ़ता है क्योंकि ईश्वर की गोद में आकर फिर पाप करते हैं ना।
तुम बच्चे जानते हो बाप हमको पढ़ाते हैं पुरूषोत्तम सो देवता बनाने। यह याद जिनको
स्थाई रहती है वह अलौकिक सर्विस भी बहुत करते रहेंगे। सदैव हार्षितमुख बनने के लिए
औरों को भी रास्ता बताना है। भल कहाँ भी जाते हो, बुद्धि में यह याद रहे कि हम संगमयुग पर हैं।
यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। वह पुरूषोत्तम मास या वर्ष कहते हैं। तुम कहते हो हम
पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। यह अच्छी रीति बुद्धि में धारण करना है-अभी हम
पुरूषोत्तम बनने की यात्रा पर हैं। यह याद रहे तो भी मनमनाभव ही हो गया। तुम
पुरूषोत्तम बन रहे हो, पुरूषार्थ
अनुसार और कर्मों अनुसार। दैवीगुण भी चाहिए और श्रीमत पर चलना पड़े। अपनी मत पर तो
सब मनुष्य चलते हैं। वह है ही रावण मत। ऐसे भी नहीं, तुम सब कोई श्रीमत पर चलते हो। बहुत हैं जो
रावण मत पर भी चलते हैं। श्रीमत पर कोई कितना परसेन्ट चलते, कोई कितना। कोई तो 2 परसेन्ट भी चलते
होंगे। भल यहाँ बैठे हैं तो भी शिवबाबा की याद में नहीं रहते। कहाँ न कहाँ
बुद्धियोग भटकता होगा। रोज अपने को देखना है आज कोई पाप का काम तो नहीं किया? किसी को दु:ख तो नहीं दिया? अपने ऊपर बहुत सम्भाल करनी होती है
क्योंकि धर्मराज भी खड़ा है ना। अभी का समय है ही हिसाब-किताब चुक्तू करने लिए।
सजायें भी खानी पड़े। बच्चे जानते हैं हम जन्म-जन्मान्तर के पापी हैं। कहाँ भी कोई
मन्दिर में अथवा गुरू के पास वा कोई ईष्ट देवता पास जाते हैं तो कहते हैं हम तो
जन्म-जन्म के पापी हैं, मेरी रक्षा
करो, रहम करो। सतयुग में
कभी ऐसे अक्षर नहीं निकलते। कोई सच बोलते हैं, कोई तो झूठ बोलते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं। बाबा हमेशा कहते
हैं अपनी जीवन कहानी बाबा को लिख भेजो। कोई तो बिल्कुल सच लिखते, कोई छिपाते भी हैं। लज्जा आती है। यह
तो जानते हैं-बुरा कर्म करने से उनका फल भी बुरा मिलेगा। वह तो है अल्पकाल की बात।
यह तो बहुत काल की बात है। बुरा कर्म करेंगे तो सजायें भी खायेंगे फिर स्वर्ग में
भी बहुत पिछाड़ी को आयेंगे। अभी सारा मालूम पड़ता है कि कौन-कौन पुरूषोत्तम बनते
हैं। वह है पुरूषोत्तम दैवी राज्य। उत्तम ते उत्तम पुरूष बनते हो ना। और कोई जगह
ऐसे किसकी महिमा नहीं करेंगे। मनुष्य तो देवताओं के गुणों को भी नहीं जानते। भल
महिमा गाते हैं परन्तु तोते मिसल इसलिए बाबा भी कहते हैं भक्तों को समझाओ। भक्त जब
अपने को नीच पापी कहते हैं तो उनसे पूछो कि क्या तुम जब शान्तिधाम में थे तो वहाँ
पाप करते थे? वहाँ तो
आत्मा सभी पवित्र रहती हैं। यहाँ अपवित्र बनी हैं क्योंकि तमोप्रधान दुनिया है। नई
दुनिया में तो पवित्र रहती हैं। अपवित्र बनाने वाला है रावण।
इस समय भारत खास और
आम सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। यथा राजा रानी तथा प्रजा। हाइएस्ट, लोएस्ट। यहाँ सब पतित हैं। बाबा कहते
हैं मैं तुमको पावन बनाकर जाता हूँ फिर तुमको पतित कौन बनाते हैं? रावण। अब फिर तुम हमारी मत से पावन बन
रहे हो फिर आधाकल्प बाद रावण की मत पर पतित बनेंगे अर्थात् देह-अभिमान में आकर
विकारों के वश हो जाते हैं। उनको आसुरी मत कहा जाता है। भारत पावन था सो अब पतित
बना है फिर पावन बनना है। पावन बनाने के लिए पतित-पावन बाप को आना पड़ता है। इस समय
देखो कितने ढेर मनुष्य हैं। कल कितने होंगे! लड़ाई लगेगी, मौत तो सामने खड़ा है। कल इतने सब कहाँ
जायेंगे? सबके शरीर
और यह पुरानी दुनिया विनाश होती है। यह राज अभी तुम्हारी बुद्धि में है - नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार। हम किसके सम्मुख बैठे हैं, वह भी कई समझते नहीं। कम से कम पद पाने वाले हैं। ड्रामा
अनुसार कर ही क्या सकते हैं,
तकदीर में नहीं है। अभी तो बच्चों को सर्विस करनी है, बाप को याद करना है। तुम संगमयुगी
ब्राह्मण हो, तुम्हें बाप
समान ज्ञान का सागर, सुख का सागर
बनना है। बनाने वाला बाप मिला है ना। देवताओं की महिमा गाई जाती है सर्वगुण
सम्पन्न....... अभी तो इन गुणों वाला कोई है नहीं। अपने से सदैव पूछते रहो-हम ऊंच
पद पाने के लायक कहाँ तक बने हैं?
संगमयुग को अच्छी रीति याद करो। हम संगमयुगी ब्राह्मण पुरूषोत्तम बनने वाले
हैं। श्रीकृष्ण पुरूषोत्तम है ना,
नई दुनिया का। बच्चे जानते हैं हम बाबा के सम्मुख बैठे हैं, तो और ही जास्ती पढ़ना चाहिए। पढ़ाना भी
है। पढ़ाते नहीं तो सिद्ध होता है पढ़ते नहीं। बुद्धि में बैठता नहीं है। 5 प्रतिशत
भी नहीं बैठता। यह भी याद नहीं रहता है कि हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं। बुद्धि में
बाप की याद रहे और चक्र फिरता रहे, समझानी तो बहुत सहज है। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद
करना है। वह है सबसे बड़ा बाप। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश
हों। हम सो पूज्य, हम सो
पुजारी, यह मन्त्र
है बहुत अच्छा। उन्होंने फिर आत्मा सो परमात्मा कह दिया है, जो कुछ बोलते हैं बिल्कुल रांग। हम
पवित्र थे, 84 जन्म
चक्र लगाकर अब ऐसे बने हैं। अब हम जाते हैं वापिस। आज यहाँ, कल घर जायेंगे। हम बेहद बाप के घर में
जाते हैं। यह बेहद का नाटक है जो अभी रिपीट होना है। बाप कहते हैं देह सहित देह के
सब धर्म भूल अपने को आत्मा समझो। अभी हम इस शरीर को छोड़ घर जाते हैं, यह पक्का याद कर लो, हम आत्मा हैं-यह भी याद रहे
और अपना घर भी याद रहे तो बुद्धि से सारी दुनिया का सन्यास हो गया। शरीर का भी
सन्यास, तो सबका
सन्यास। वह हठयोगी कोई सारे सृष्टि का सन्यास थोड़ेही करते हैं, उनका है अधूरा। तुमको तो सारी दुनिया
का त्याग करना है, अपने को देह
समझते हैं तो फिर काम भी ऐसे ही करते हैं। देह-अभिमानी बनने से चोरी चकारी, झूठ बोलना, पाप करना........ यह सब आदतें पड़ जाती
हैं। आवाज से बोलने की भी आदत पड़ जाती है, फिर कहते हमारा आवाज ही ऐसा है। दिन में 25-30 पाप भी कर
लेते हैं। झूठ बोलना भी पाप हुआ ना। आदत पड़ जाती है। बाबा कहते हैं-आवाज कम करना
सीखो ना। आवाज कम करने में कोई देरी नहीं लगती है। कुत्ते को भी पालते हैं तो
अच्छा हो जाता है, बन्दर कितने
तेज होते हैं फिर कोई के साथ हिर जाते हैं तो डांस आदि बैठ करते हैं। जानवर भी
सुधर जाते हैं। जानवरों को सुधारने वाले हैं मनुष्य। मनुष्यों को सुधारने वाला है
बाप। बाप कहते हैं तुम भी जानवर मिसल हो। तो मुझे भी कच्छ अवतार, वाराह अवतार कह देते हो। जैसे
तुम्हारी एक्टिविटी है, उनसे भी
बदतर मुझे कर दिया है। यह भी तुम जानते हो, दुनिया नहीं जानती। पिछाड़ी में तुमको साक्षात्कार होगा।
कैसे-कैसे सजायें खाते हैं, वह भी तुमको
मालूम पड़ेगा। आधाकल्प भक्ति की है, अब बाप मिला है। बाप कहते हैं मेरी मत पर नहीं चलेंगे तो सजा
और ही बढ़ती जायेगी इसलिए अब पाप आदि करना छोड़ो। अपना चार्ट रखो फिर साथ में धारणा
भी चाहिए। किसको समझाने की प्रैक्टिस भी चाहिए। प्रदर्शनी के चित्रों पर ख्यालात
चलाओ। किसको हम कैसे समझायें। पहली- पहली बात यह उठाओ-गीता का भगवान कौन? ज्ञान का सागर तो पतित-पावन परमपिता परमात्मा
है ना। यह बाप है सभी आत्माओं का बाप। तो बाप का परिचय चाहिए ना। ऋषि-मुनि आदि कोई
को भी न बाप का परिचय है, न रचना के
आदि-मध्य-अन्त का इसलिए पहले-पहले तो यह समझाकर लिखवाओ कि भगवान एक है। दूसरा कोई
हो नहीं सकता। मनुष्य अपने को भगवान कहला नहीं सकते।
तुम बच्चों को अब
निश्चय है-भगवान निराकार है। बाप हमको पढ़ाते हैं। हम स्टूडेन्ट्स हैं। वह बाप भी
है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। एक को याद करेंगे तो
टीचर और गुरू दोनों की याद आयेगी। बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए। सिर्फ शिव भी नहीं
कहना है, शिव हमारा
बाप भी है, सुप्रीम टीचर
भी है, हमको साथ ले
जायेंगे। उस एक की कितनी महिमा है, उनको ही याद करना है। कोई-कोई कहते हैं इसने तो बी.के. को
जाए गुरू बनाया है। तुम गुरू तो बनते हो ना। फिर तुमको बाप नहीं कहेंगे। टीचर गुरू
कहेंगे, बाप नहीं।
तीनों ही फिर उस एक बाप को ही कहेंगे। वह सबसे बड़ा बाप है, इनके ऊपर भी वह बाप है। यह अच्छी रीति
समझाना है। प्रदर्शनी में समझाने का अक्ल चाहिए। परन्तु अपने में इतनी हिम्मत नहीं
समझते। बड़ी-बड़ी प्रदर्शनी होती है तो जो अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल बच्चे हैं, उनको जाकर सर्विस करनी चाहिए। बाबा
मना थोड़ेही करते हैं। आगे चल साधू-सन्त आदि को भी तुम ज्ञान बाण मारते रहेंगे।
जायेंगे कहाँ! एक ही हट्टी है। सद्गति सबकी इस हट्टी से होनी है। यह हट्टी ऐसी है, तुम सबको पवित्र होने का रास्ता बताते
हो फिर बनें, न बनें।
तुम बच्चों का ध्यान
विशेष सर्विस पर होना चाहिए। भल बच्चे समझदार हैं परन्तु सर्विस पूरी नहीं करते तो
बाबा समझते हैं राहू की दशा बैठी है। दशायें तो सब पर फिरती हैं ना। माया का
परछाया पड़ता है फिर दो रोज बाद ठीक हो जाते हैं। बच्चों को सर्विस का अनुभव पाकर
आना चाहिए। प्रदर्शनी तो करते रहते हैं, क्यों नहीं मनुष्य समझकर झट लिखते हैं कि बरोबर गीता कृष्ण
की नहीं, शिव भगवान
की गाई हुई है। कोई तो सिर्फ कह देते हैं यह बहुत अच्छा है। मनुष्यों के लिए बहुत
कल्याणकारी है, सबको दिखाना
चाहिए। परन्तु मैं भी यह वर्सा लूँगा.... ऐसे कोई कहते नहीं हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) देह-अभिमान में आकर आवाज से बात
नहीं करनी है। इस आदत को मिटाना है। चोरी करना, झूठ बोलना...... यह सब पाप हैं, इनसे बचने के लिए देही-अभिमानी
होकर रहना है।
2) मौत सामने है इसलिए बाप की
श्रीमत पर चलकर पावन बनना है। बाप का बनने के बाद कोई भी बुरा कर्म नहीं करना है।
सजाओं से बचने का पुरूषार्थ करना है।
वरदान:- सम्पूर्ण
आहुति द्वारा परिवर्तन समारोह मनाने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव!
जैसे कहावत है ``धरत परिये धर्म न छोड़िये'', तो कोई भी
सरकमस्टांश आ जाए, माया के
महावीर रूप सामने आ जाएं लेकिन धारणायें न छूटे। संकल्प द्वारा त्याग की हुई बेकार
वस्तुयें संकल्प में भी स्वीकार न हों। सदा अपने श्रेष्ठ स्वमान, श्रेष्ठ स्मृति और श्रेष्ठ जीवन के समर्थी
स्वरूप द्वारा श्रेष्ठ पार्टधारी बन श्रेष्ठता का खेल करते रहो। कमजोरियों के सब
खेल समाप्त हो जाएं। जब ऐसी सम्पूर्ण आहुति का संकल्प दृढ़ होगा तब परिवर्तन समारोह
होगा। इस समारोह की डेट अब संगठित रूप में निश्चित करो।
स्लोगन:- रीयल डायमण्ड बनकर अपने वायब्रेशन की चमक
विश्व में फैलाओ।
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