Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

01-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


01-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

 

मीठे बच्चे - तुम इन आंखों से जो कुछ देखते हो यह सब पुरानी दुनिया की सामग्री हैयह समाप्त होनी हैइसलिए इस दु:खधाम को बुद्धि से भूल जाओ |” 

प्रश्न:- मनुष्यों ने बाप पर कौन-सा दोष लगाया है लेकिन वह दोष किसी का भी नहीं है?

उत्तर:- इतना बड़ा जो विनाश होता हैमनुष्य समझते हैं भगवान ही कराता हैदु:ख भी वह देतासुख भी वह देता। यह बहुत बड़ा दोष लगा दिया है। बाप कहते-बच्चेमैं सदा सुख दाता हूँमैं किसी को दु:ख नहीं दे सकता। अगर मैं विनाश कराऊं तो सारा पाप मेरे पर आ जाए। वह तो सब ड्रामा अनुसार होता हैमैं नहीं कराता हूँ।

गीत:- रात के राही........... 

ओम् शान्ति।

बच्चों को सिखलाने के लिए कई गीत बड़े अच्छे हैं। गीत का अर्थ करने से वाणी खुल जायेगी। बच्चों की बुद्धि में तो है कि हम सभी दिन की यात्रा पर हैंरात की यात्रा पूरी होती है। भक्ति मार्ग है ही रात की यात्रा। अन्धियारे में धक्का खाना होता है। आधाकल्प रात की यात्रा कर उतरते आये हो। अभी आये हो दिन की यात्रा पर। यह यात्रा एक ही बारी करते हो। तुम जानते हो याद की यात्रा से हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन फिर सतोप्रधान सतयुग के मालिक बनते हैं। सतोप्रधान बनने से सतयुग के मालिक,तमोप्रधान बनने से कलियुग के मालिक बनते हो। उनको कहा जाता है स्वर्गइनको कहा जाता है नर्क। अब तुम बच्चे बाप को याद करते हो। बाप से सुख ही मिलता है। जो और कुछ बोल नहीं सकते हैं वह सिर्फ यह याद रखें - शान्तिधाम है हम आत्माओं का घरसुखधाम है स्वर्ग की बादशाही और अभी यह है दु:खधामरावणराज्य। अब बाप कहते हैं इस दु:खधाम को भूल जाओ। भल यहाँ रहते हो परन्तु बुद्धि में यह रहे कि इन आंखों से जो कुछ देखते हैं वह सब रावणराज्य है। इन शरीरों को देखते हैंयह भी सारी पुरानी दुनिया की सामग्री है। यह सारी सामग्री इस यज्ञ में स्वाहा होनी है। वह पतित ब्राह्मण लोग यज्ञ रचते हैं तो उनमें जौं-तिल आदि सामग्री स्वाहा करते हैं। यहाँ तो विनाश होना है। ऊंच ते ऊंच है बापपीछे है ब्रह्मा और विष्णु। शंकर का इतना कोई पार्ट है नहीं। विनाश तो होना ही है। बाप तो विनाश उनसे कराते हैं जिस पर कोई पाप न लगे। अगर कहें भगवान विनाश कराता है तो उस पर दोष आ जाए इसलिए यह सब ड्रामा में नूँध है। यह बेहद का ड्रामा हैजिसको कोई जानते नहीं हैं। रचता और रचना को कोई नहीं जानते। न जानने कारण निधनके बन पड़े हैं। कोई धनी है नहीं। कोई घर में बाप नहीं होता है और आपस में लड़ते हैं तो कहते हैं तुम्हारा कोई धनी नहीं है क्या! अभी तो करोड़ों मनुष्य हैंइनका कोई धनीधोणी नहीं है। नेशन-नेशन में लड़ते रहते हैं। एक ही घर में बच्चे बाप के साथपुरूष स्त्री के साथ लड़ते रहते हैं। दु:खधाम में है ही अशान्ति। ऐसे नहीं कहेंगे भगवान बाप कोई दु:ख रचते हैं। मनुष्य समझते हैं दु:ख-सुख बाप ही देते हैं परन्तु बाप कभी दु:ख दे न सके। उनको कहा ही जाता है सुख-दाता तो फिर दु:ख कैसे देंगे। बाप तो कहते हैं हम तुमको बहुत सुखी बनाते हैं। एक तो अपने को आत्मा समझो। आत्मा है अविनाशीशरीर है विनाशी। हम आत्माओं के रहने का स्थान परमधाम हैजिसको शान्तिधाम भी कहा जाता है। यह अक्षर ठीक है। स्वर्ग को परमधाम नहीं कहेंगे। परम माना परे ते परे। स्वर्ग तो यहाँ ही होता है। मूलवतन है परे ते परेजहाँ हम आत्मायें रहती हैं। सुख-दु:ख का पार्ट तुम यहाँ बजाते हो। यह जो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। यह है बिल्कुल रांग। स्वर्ग तो यहाँ है नहीं। अभी तो है कलियुग। इस समय तुम हो संगमयुगीबाकी सब हैं कलियुगी। एक ही घर में बाप कलियुगी तो बच्चा संगमयुगी। स्त्री संगमयुगीपुरूष कलियुगी....... कितना फर्क हो जाता है। स्त्री ज्ञान लेतीपुरूष ज्ञान नहीं लेते तो एक-दो को साथ नहीं देते। घर में खिट-खिट हो जाती है। स्त्री फूल बन जाती हैवह कांटे का कांटा रह जाता। एक ही घर में बच्चा जानता है हम संगमयुगी पुरूषोत्तम पवित्र देवता बन रहे हैंलेकिन बाप कहते शादी बरबादी कर नर्कवासी बनो। अब रूहानी बाप कहते हैं-बच्चेपवित्र बनो। अभी की पवित्रता 21 जन्म चलेगी। ये रावणराज्य ही खलास हो जाना है। जिससे दुश्मनी होती है तो उनका एफिजी जलाते हैं ना। जैसे रावण को जलाते हैं। तो दुश्मन से कितनी घृणा होनी चाहिए। परन्तु यह किसको मालूम नहीं कि रावण कौन हैबहुत ही खर्चा करते हैं। मनुष्य को जलाने के लिए इतना खर्चा नहीं करते। स्वर्ग में तो ऐसी कोई बात होती नहीं। वहाँ तो बिजली में रखा और खत्म। वहाँ यह ख्याल नहीं रहता कि उनकी मिट्टी काम में आये। वहाँ की तो रस्म-रिवाज ऐसी है जो कोई तकलीफ अथवा थकावट की बात नहीं रहती। इतना सुख रहता है। तो अब बाप समझाते हैं - मामेकम् याद करने का पुरूषार्थ करो। यह याद करने की ही युद्ध है। बाप बच्चों को समझाते रहते हैं-मीठे बच्चेअपने ऊपर अटेन्शन का पहरा देते रहो। माया कहाँ नाक-कान काट न जाये क्योंकि दुश्मन है ना। तुम बाप को याद करते हो और माया तूफान में उड़ा देती है इसलिए बाबा कहते हैं हर एक को सारे दिन का चार्ट लिखना चाहिए कि कितना बाप को याद कियाकहाँ मन भागाडायरी में नोट करोकितना समय बाप को याद कियाअपनी जांच करनी चाहिए तो माया भी देखेगी यह तो अच्छा बहादुर हैअपने पर अच्छा अटेन्शन रखते हैं। पूरा पहरा रखना है। अभी तुम बच्चों को बाप आकर परिचय देते हैं। कहते हैं भल घरबार सम्भालो सिर्फ बाप को याद करो। यह कोई उन सन्यासियों मुआफ़िक नहीं है। वह भीख पर चलते हैं फिर भी कर्म तो करना पड़ता है ना। तुम उनको भी कह सकते हो कि तुम हठयोगी होराजयोग सिखलाने वाला एक ही भगवान है। अभी तुम बच्चे संगम पर हो। इस संगमयुग को ही याद करना पड़े। हम अभी संगमयुग पर सर्वोत्तम देवता बनते हैं। हम उत्तम पुरूष अर्थात् पूज्य देवता थेअब कनिष्ट बन पड़े हैं। कोई काम के नहीं रहे हैं। अब हम क्या बनते हैंमनुष्य जिस समय बैरिस्टरी आदि पढ़ते हैंउस समय मर्तबा नहीं मिलता। इम्तहान पास कियामर्तबे की टोपी मिली। जाकर गवर्मेन्ट की सर्विस में लगेंगे। अभी तुम जानते हो हमको ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर ऊंच ते ऊंच पद भी देंगे। यह एम ऑब्जेक्ट है। अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करोमैं जो हूँजैसा हूँसो समझा दिया है। आत्माओं का बाप मैं बिन्दी हूँमेरे में सारा ज्ञान हैतुमको भी पहले यह ज्ञान थोड़ेही था कि आत्मा बिन्दी है। उनमें सारा 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है। क्राइस्ट पार्ट बजाकर गये हैंफिर जरूर आयेंगे तो सही ना। क्राइस्ट के अभी सब जायेंगे। क्राइस्ट की आत्मा भी अभी तमोप्रधान होगी। जो भी ऊंच ते ऊंच धर्म स्थापक हैंवह अब तमोप्रधान हैं। यह भी कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में तमोप्रधान बनाअब फिर सतोप्रधान बनते हैं। तत् त्वम्।

तुम जानते हो - हम अभी ब्राह्मण बने हैं देवता बनने के लिए। विराट रूप के चित्र का अर्थ कोई नहीं जानते। अभी तुम बच्चे जानते हो आत्मा स्वीट होम में रहती है तो पवित्र है। यहाँ आने से पतित बनी है। तब कहते हैं-हे पतित-पावन आकर हमको पवित्र बनाओ तो हम अपने घर मुक्तिधाम में जायें। यह भी प्वाइंट धारण करने के लिए है। मनुष्य नहीं जानते मुक्ति-जीवनमुक्तिधाम किसको कहा जाता है। मुक्तिधाम को शान्तिधाम कहा जाता है। जीवनमुक्तिधाम को सुखधाम कहा जाता है। यहाँ है दु:ख का बंधन। जीवनमुक्ति को सुख का संबंध कहेंगे। अब दु:ख का बंधन दूर हो जायेगा। हम पुरूषार्थ करते हैं ऊंच पद पाने के लिए। तो यह नशा होना चाहिए। हम अभी श्रीमत पर अपना राज्य-भाग्य स्थापन कर रहे हैं। जगत अम्बा नम्बरवन में जाती है। हम भी उनको फालो करेंगे। जो बच्चे अभी मात-पिता के दिल पर चढ़ते हैं वही भविष्य में तख्तनशीन बनेंगे। दिल पर वह चढ़ते जो दिन-रात सर्विस में बिजी रहते हैं। सबको पैगाम देना है कि बाप को याद करो। पैसा-कौड़ी कुछ भी लेने का नहीं है। वह समझते हैं यह राखी बांधने आती हैंकुछ देना पड़ेगा। बोलो हमको और कुछ चाहिए नहीं सिर्फ 5 विकारों का दान दो। यह दान लेने लिए हम आये हैं इसलिए पवित्रता की राखी बांधते हैं। बाप को याद करोपवित्र बनो तो यह (देवता) बनेंगे। बाकी हम पैसा कुछ भी नहीं ले सकते हैं। हम वह ब्राह्मण नहीं हैं। सिर्फ 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूटें। अभी कोई कला नहीं रही है। सब पर ग्रहण लगा हुआ है। तुम ब्राह्मण हो ना। जहाँ भी जाओ-बोलोदे दान तो छूटे ग्रहण। पवित्र बनो। विकार में कभी नहीं जाना। बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और तुम फूल बन जायेंगे। तुम ही फूल थे फिर कांटे बने हो। 84 जन्म लेते-लेते गिरते ही आये हो। अब वापिस जाना है। बाबा ने डायरेक्शन दिया है इन द्वारा। वह है ऊंच ते ऊंच भगवान। उनको शरीर नहीं है। अच्छाब्रह्मा-विष्णु-शंकर को शरीर हैतुम कहेंगे-हाँ,सूक्ष्म शरीर है। परन्तु वह मनुष्यों की सृष्टि तो नहीं है। खेल सारा यहाँ है। सूक्ष्मवतन में नाटक कैसे चलेगावैसे मूलवतन में भी सूर्य-चांद ही नहीं तो नाटक भी काहे का होगा! यह बहुत बड़ा माण्डवा है। पुनर्जन्म भी यहाँ होता है। सूक्ष्मवतन में नहीं होता। अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा बेहद का खेल है। अभी पता पड़ा है-हम जो देवी-देवता थे सो फिर कैसे वाम मार्ग में आते हैं। वाम मार्ग विकारी मार्ग को कहा जाता है। आधाकल्प हम पवित्र थेहमारा ही हार और जीत का खेल है। भारत अविनाशी खण्ड है। यह कभी विनाश होता नहीं है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था। तुम्हारी इन बातों को मानेंगे वह जिन्होंने कल्प पहले माना होगा। 5 हजार वर्ष से पुरानी ची॰ज कोई होती नहीं। सतयुग में फिर तुम पहले जाकर अपने महल बनायेंगे। ऐसे नहीं कि सोनी-द्वारिका कोई समुद्र के नीचे है वह निकल आयेगी। दिखलाते हैं सागर से देवतायें रत्नों की थालियाँ भरकर देते थे। वास्तव में ज्ञान सागर बाप है जो तुम बच्चों को ज्ञान रत्न की थालियाँ भरकर दे रहे हैं। दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई। ज्ञान रत्नों से झोली भरी। शंकर के लिए कहते-भांग-धतूरा पीता थाफिर उनके आगे जाकर कहते झोली भर दोहमको धन दो। तो देखो शंकर की भी ग्लानि कर दी है। सबसे जास्ती ग्लानि करते हैं हमारी। यह भी खेल है जो फिर भी होगा। इस नाटक को कोई जानते नहीं। मैं आकर आदि से अन्त तक सारा राज समझाता हूँ। यह भी जानते हो ऊंचे ते ऊंच बाप है। विष्णु सो ब्रह्मा,ब्रह्मा सो विष्णु कैसे बनते हैं-यह कोई समझ न सके।

अभी तुम बच्चे पुरूषार्थ करते हो कि हम विष्णु कुल का बनें। विष्णुपुरी का मालिक बनने के लिए तुम ब्राह्मण बने हो। तुम्हारी दिल में है - हम ब्राह्मण अपने लिए सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर। इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। देवताओं और असुरों की लड़ाई कभी होती नहीं। देवतायें हैं सतयुग में। वहाँ लड़ाई कैसे होगी। अभी तुम ब्राह्मण योगबल से विश्व के मालिक बनते हो। बाहुबल वाले विनाश को प्राप्त हो जायेंगे। तुम साइलेन्स बल से साइंस पर विजय पाते हो। अब तुमको आत्म-अभिमानी बनना है। हम आत्मा हैंहमको जाना है अपने घर। आत्मायें तीखी हैं। अभी एरोप्लेन ऐसा निकाला है जो एक घण्टे में कहाँ से कहाँ चला जाता है। अब आत्मा तो उनसे भी तीखी है। चपटी में आत्मा कहाँ की कहाँ जाकर जन्म लेती है। कोई विलायत में भी जाकर जन्म लेते हैं। आत्मा सबसे तीखा रॉकेट है। इसमें मशीनरी आदि की कोई बात नहीं। शरीर छोड़ा और यह भागा। अब तुम बच्चों की बुद्धि में है हमको घर जाना हैपतित आत्मा तो जा न सके। तुम पावन बनकर ही जायेंगे बाकी तो सब सजायें खाकर जायेंगे। सजायें तो बहुत मिलती हैं। वहाँ तो गर्भ महल में आराम से रहते हैं। बच्चों ने साक्षात्कार किया है। कृष्ण का जन्म कैसे होता हैकोई गंद की बात नहीं। एकदम जैसे रोशनी हो जाती है। अभी तुम बैकुण्ठ के मालिक बनते हो तो ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए। शुद्ध पवित्र खान- पान होना चाहिए। दाल भात सबसे अच्छा है। ऋषिकेश में सन्यासी एक खिड़की से लेकर चले जातेहाँ कोई कैसेकोई कैसे होते हैं। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) अपने ऊपर अटेन्शन का पूरा-पूरा पहरा देना है। माया से अपनी सम्भाल करनी है। याद का सच्चा- सच्चा चार्ट रखना है।

2) मात-पिता को फालो कर दिलतख्तनशीन बनना है। दिन-रात सर्विस पर तत्पर रहना है। सबको पैगाम देना है कि बाप को याद करो। 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूटे।

 


वरदान:- बीती को चिंतन में न लाकर फुलस्टॉप लगाने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव! 

अभी तक जो कुछ हुआ-उसे फुलस्टॉप लगाओ। बीती को चिंतन में न लाना-यही तीव्र पुरूषार्थ है। यदि कोई बीती को चिंतन करता है तो समयशक्तिसंकल्प सब वेस्ट हो जाता है। अभी वेस्ट करने का समय नहीं है क्योंकि संगमयुग की दो घड़ी अर्थात् दो सेकेण्ड भी वेस्ट किया तो अनेक वर्ष वेस्ट कर दिये इसलिए समय के महत्व को जान अब बीती को फुलस्टॉप लगाओ। फुलस्टॉप लगाना अर्थात् सर्व खजानों से फुल बनना।

स्लोगन:- जब हर संकल्प श्रेष्ठ होगा तब स्वयं का और विश्व का कल्याण होगा।

 

Om Shanti ! Sakar Murli May 01, 2015




Om Shanti ! Sakar Murli May 01, 2015

Essence: Sweet children, whatever you see with your eyes is all the paraphernalia (saamagri) of the old world. It has to be destroyed. Therefore, remove this land of sorrow from your intellects.

Question: What do human beings blame the Father for when, in fact, it is no one's fault?

Answer: Human beings believe that the huge destruction that takes place is inspired by God, that He is the One who causes sorrow as well as happiness. They have put all the blame on the Father. The Father says: Children, I am always the Bestower of Happiness. I cannot cause sorrow for anyone. If I inspired destruction to take place, all the sin would then fall on Me. Everything happens according to the drama. I do not inspire it.

Song: 0 traveller of the night, do not become weary. The destination of dawn is not far off. Raat ke rahi thak mat jana रात के राही थक मत जाना..... http://www.youtube.com/watch?v=qTmzjkAhtFw&feature=email


Om shanti.

Many songs are very good for teaching you children. You will be able to speak knowledge by extracting the meaning of such songs. It is in the intellects of you children that the pilgrimages of the night have come to an end and that you are all on the pilgrimage of the day. The path of devotion is the pilgrimage of the night where you stumble around in the dark. While going on the pilgrimages of the night for half a cycle, you have been continuing to come down. You have now come here to go on the pilgrimage of the day. Only once do you go on this pilgrimage. You know that by going on the pilgrimage of remembrance, you change from tamopradhan to satopradhan and that you then become the masters of the satopradhan golden age. By becoming satopradhan, you become the masters of the golden age. Then, by becoming tamopradhan, you become the masters of the iron age. That is called heaven and this is called hell. You children are now remembering the Father. You only receive happiness from the Father. Those who are unable to speak knowledge should simply remember that the land of peace is the home of us souls, that the land of happiness is the kingdom of heaven, and that this is now the land of sorrow, the kingdom of Ravan. The Father says: Now forget this land of sorrow. Although you are living here, your intellects should remember that whatever you see with your eyes, it all belongs to the kingdom of Ravan. All of those bodies you see are also the paraphernalia of the old world. All of that paraphernalia has to be sacrificed into this sacrificial fire. When those impure brahmins create a sacrificial fire, they sacrifice sesame seeds etc. into it. Destruction has to take place. The Highest on High is the Father. Then comes Brahma and Vishnu. Shankar does not have such an important part. Destruction has to take place. The Father inspires destruction to take place in such a way that no one accumulates sin for that. If it were said that God carries out destruction, He would be blamed for it. This is why it is all fixed in the drama. This is the unlimited drama, which no one knows. No one knows the Creator or creation. Because they don't know Him, they have become orphans; they have no Lord or Master. When there is no father in a family, the children fight and they are asked: Do you not have a master? There are now millions of human beings who have no master. There is fighting in every nation. In the same home, children fight with their father, and the wife fights with her husband. There is peacelessness in the land of sorrow. It is not that God, the Father, creates sorrow. People think that it is the Father, who gives happiness and sorrow. However, the Father can never cause sorrow. He is called the Bestower of Happiness and so how could He cause sorrow? The Father says: I make you very happy. First of all, consider yourself to be a soul. The soul is imperishable and the body is perishable. The supreme abode is the place of residence of us souls and it is also called the abode of silence. These words are accurate. Heaven would not be called the supreme abode. Param means the land beyond. Heaven exists here. The incorporeal world is the land beyond, where we souls reside. You play your parts of happiness and sorrow here. When people say that So-and-so went to heaven, that is absolutely wrong. Heaven does not exist now; it is now the iron age. At this time, you are in the confluence age whereas everyone else is in the iron age. In the same home, the father is in the iron age whereas the child is in the confluence age; the wife is in the confluence age and the husband is in the iron age. There is such a difference! If the wife takes knowledge but the husband does not, they don't co-operate with each other. Then there is conflict in that home. The wife becomes a flower, whereas he remains a thorn. In the same home, the child knows that, while in the confluence age, he is becoming a pure elevated deity but the father tells him to get married and ruin himself; to become a resident of hell. The spiritual Father says: Children, now become pure. Your purity of the present time will last you for 21 births. This kingdom of Ravan has to be destroyed. People burn an effigy of whomever their enemy is. Therefore, the effigy of Ravan is burnt. There should be so much hatred for that enemy, but no one knows who Ravan is. They incur a great deal of expense in burning that effigy. They do not incur as much expense in burning human beings. These things do not exist in heaven. There, they simply switch on electricity and it's all over. There, they do not even have the thought that those ashes will be of some use. There, the systems and customs are such that there is no question of any difficulty or tiredness. There is so much happiness there. Therefore, the Father explains: Now, constantly make effort to remember Me alone. This is the battle of staying in remembrance. The Father continues to explain to you children: Sweet children, continue to be vigilant and pay special attention to yourselves. Take care that Maya does not cut off your nose and ears because she is your enemy. You remember the Father and then Maya blows you away in her storms. That is why Baba says: Each of you should write a chart as to how much you remembered the Father throughout the day. Where did your mind wander to? Note down in your diary for how long you remembered the Father. Check yourself so that Maya can see that you are very courageous, and that you are paying attention to yourself very well. Be fully vigilant. The Father now comes to give you children His introduction. He says: You may look after your home and family, simply remember the Father. This one is not like those sannyasis. They live on what they have begged for, and they still have to perform actions. You can tell them that they are hatha yogis. Only the one God can teach Raja Yoga. You children are now at the confluence age. You have to remember this confluence age. It is at this confluence age that we become the most elevated deities. We used to be the most elevated human beings, that is, worthy of worship deities, and we have now become the lowest of beings. We have become useless. What are we now becoming? When people study to become barristers, they do not claim a status at that time. Only when they pass the exam can they claim the hat of their status. Then they become engaged in government service. You understand that God, the Highest on High, is now teaching you. Therefore, He will definitely give you the highest on high status. This is your aim and objective. The Father says: Now, constantly remember Me alone. I have explained to you who I am. I am the Father of all souls, a point of light. I have the entire knowledge. You did not know previously that a soul is a point of light. The entire imperishable parts of your 84 births are recorded in you. Christ played his part and left; he will definitely return once again. All the followers of Christ will also return. Even the Christ soul must now be tamopradhan. All the founders of religions, who were the highest of all, are now tamopradhan. This one also says: I have become tamopradhan at the end of my many births and I am now becoming satopradhan again. The same applies to you. You know that you have now become Brahmins in order to become deities. No one knows the meaning of the variety-form image. You children now know that when you souls reside in the sweet home, you are pure. You become impure after coming here. This is why you called out: 0 Purifier come and purify us so that we can go home to the land of liberation. This point also has to be imbibed. Human beings do not understand what the land of liberation is or what the land of liberation-in-life is. The land of liberation is called the land of peace. The land of liberation in life is called the land of happiness. Here, there is the bondage of the land of sorrow. Liberation in life is called relationships of happiness. The bondages of sorrow are now to be removed. We are making effort to claim a high status. Therefore, you should have the intoxication that you are establishing your kingdom by following shrimat. Jagadamba becomes number one. We will also follow her. The children who now sit on the heart-throne of the mother and father claim their throne in the future. Only those who remain busy in service day and night can sit on the heart-throne. Give everyone the message to remember the Father. You must not take even one penny. People think that when you go to tie a rakhi on them, they have to give you something. Tell them: Simply give us the donation of the five vices; we do not want anything else. We have come to take this donation from you. This is why a rakhi for purity is tied on you. Remember the Father, become pure and you will become deities. We cannot accept money from you. We are not those brahmins. Simply give us the donation of the five vices and the bad omens will be removed. There are no celestial degrees remaining. There is an eclipse over everyone. You are Brahmins, are you not? Wherever you go, tell them: Give this donation and the eclipse will be removed. Become pure. Never indulge in vice. Remember the Father and your sins will be absolved and you will become flowers. You were once flowers, but you have now become thorns. Whilst taking 84 births, you have been coming down. You now have to return home. Baba has given directions through this one. He is God, the Highest on High. He doesn't have a body of His own. Achcha, do Brahma, Vishnu and Shankar have bodies? You would say: Yes, they have subtle bodies. However, that is not a world of human beings. The whole play takes place here. How could there be a play in the subtle region? In fact, there is no sun or moon in the incorporeal world, and so, how could there be a play there? This is a huge canopy. Rebirth takes place here; it does not take place in the subtle region. The whole of this unlimited play is now in your intellects. You have now come to know that you were deities and that you then fell onto the path of sin. The path of sin is also called the path of viciousness. We were pure for half a cycle. This play of victory and defeat is all about us. Bharat is the imperishable land; it can never be destroyed. At that time, when the original eternal deity religion used to exist, there were no other religions. Only those who accepted these things a cycle ago will do so again. There cannot be anything older than 5000 years. You will go first to the golden age and build your own palaces. It is not that your city of gold will emerge from the sea. They have portrayed deities emerging from the sea giving platefuls of jewels. In fact, the Father, who is the Ocean of Knowledge, is giving you platefuls of the jewels of knowledge. Shankar has been portrayed telling the story of immortality to Parvati and filling her apron with jewels of knowledge. They also say of Shankar that he used to drink an intoxicating drink. People go in front of an idol of him and ask him to fill their aprons and give them wealth. Therefore, just look how they have also defamed Shankar! They defame Me the most. This too is part of the play, and it will take place again. No one knows this play. I come and explain the secrets of everything to you from the beginning to the end. You also know that the Father is the Highest on High. No one understands how Vishnu becomes Brahma or how Brahma becomes Vishnu. You children are now making effort to become part of Vishnu's clan. You have become Brahmins in order to become the masters of the land of Vishnu. It is in the hearts of you Brahmins that you are establishing the sun and moon dynasty kingdoms for yourselves by following shrimat. There is no question of fighting etc. in this. No battle between deities and devils ever takes place. Deities exist in the golden age. How could a battle take place there? You Brahmins are now becoming the masters of the world through the power of yoga. Those with physical power attain destruction. With your power of silence, you gain victory over science. You now have to become soul conscious. I am a soul; I now have to return home. Souls are very fast. Such aeroplanes have now been invented that they can take you from one place to another place far away within an hour. Souls are even faster than that. A soul leaves one place and takes birth somewhere else just at the snap of the fingers. Some even go to foreign lands and take birth there. A soul is the fastest rocket. There is no question of any machinery in this. They renounce their bodies and run somewhere else. It is in the intellects of you children that you now have to return home. Impure souls cannot return home. You will return home having become pure; all the rest will go after experiencing punishment. A lot of punishment is experienced. There, they stay in great comfort in the palace of a womb. Some children have had visions of how Krishna takes birth. There is no question of anything dirty in that. Suddenly, there is a lot of light. You are now becoming the masters of Paradise. Therefore, you should make effort accordingly. Your food and drink should be clean and pure. Dal and rice are the best. At Rishikesh, sannyasis just take food from a window and then leave. They are of different types. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

Essence for dharna:

 1. Remain vigilant in paying attention to yourself. Beware of Maya. Keep an honest chart of remembrance.

2. Follow the mother and father and become seated on the heart throne (dil takht nasheen). Remain busy in service day and night. Give everyone the message (paigaam) to remember the Father. Give the donation of the five vices and the eclipse will be removed.

Blessing: May you be an intense effort-maker (tivr purushaarthi) who applies a full stop and doesn't think about the past.

Put a full stop to whatever has happened until now. Not to bring the past into your thoughts is to make intense effort. If you think about the past, your time, energy and thoughts are all being wasted. Now is not the time to waste anything because if even two moments of the confluence age are wasted, then it is not just two seconds that are wasted, but you have wasted many years. Therefore, now know the importance of this time and put a full stop to the past. To put a full stop means to become full of all treasures.

Slogan: When your every thought is elevated, (shreshth) you yourself and the world will benefit.

* * *OM SHANTI***

Jaadui Murli ki Kahani... The Enchanted Murli Initiative





 
 
 
Jaadui Murli कृप्या याद-प्यार स्वीकार करना जी। बीके भाई-बहनों के लिए जारी रूहानी पालना कार्यक्रम के तहत हम एक नई पहल करने जा रहे हैं जिसका नाम है जादुई मुरली...
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The Enchanted Murli Initiative

https://youtu.be/fznLhOSwsrs

 


 
 
 
As part of our ongoing sustenance program for BKs we are rolling out a new initiative called The Enchanted Murli. This initiative will go on for 6 weeks dail...
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Here is the song used in the Enchanted Murli promo with English subtitles. "Baba Teri Meethi Murli"
http://youtu.be/-7vvzKq7NUk
 


 
 
 
 
Dear Divine Brothers and Sisters Please accept love-filled remembrance. As part of our ongoing sustenance...
 
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Dear Divine Brothers and Sisters

Please accept love-filled remembrance. As part of our ongoing sustenance program for BKs we are rolling out a new initiative called The Enchanted Murli. This initiative will go on for 6 weeks daily. It begins Monday, May 11 and ends Sunday, June 21, 2015, the International Day of Yoga. Because Amritology and the webinars with our seniors were truly sustaining and unifying, we decided to facilitate a collective study of each day’s Murli to bring us all together so we can derive maximum benefit from what Baba gives us everyday.
With this in mind, we write to warmly invite you to join us for The Enchanted Murli, a collective bhatti that delves into the magical properties of Baba’s Murli and the wonders it performs on the soul in its journey to self-transformation. Please refer to The Magical Flute Story to learn why and how we picked the title, The Enchanted Murli.
We will use the spiritual trajectory of:
* smriti (remembrance)
* samarthi (power)
* mano-vritti (attitude)
* drishti
to transform our kriti (actions).
Please refer to A Spiritual Magician’s Guide to Self-transformation for an explanation of these terms. This initiative will look at how we can become spiritual magicians and transform our remembrance through the art and science of the magical Murli. Every day for six weeks the facilitators will provide a new set of points, excerpted from the days’ Murli. Please refer to the daily framework document for details. If you would like to receive these points daily (English and Hindi) in your email inbox, then register now. If you already receive Diamond Dadi points, then no need to register again. We will also have weekly webinars conducted by our seniors.
BapDada on April 5, 2015 (original date of Murli November 21, 1979) said, “Now, at the end, all Brahmins must give just a finger of cooperation with a united attitude. Only when there is unified thought will the unlimited world be transformed.”With this in mind we invite the whole global family to pay special attention to the evening meditation from 7:00pm to 7:30pm. Let us create a beautiful wave of pure remembrance and attitude spanning the whole world starting from Japan and ending in Hawaii, every day for six weeks.
Join us now for The Enchanted Murli initiative and learn to look at the Murli with a quiet heart and an open intellect. Dance to the rhythm of remembrance and truth and make these six weeks a time for deep personal transformation.
With Many Blessings and Remembrance of Baba,
Sister Mohini, Didi Nirmala, Sister Jayanti and BK Sustenance Team


प्यारे दैवी भाईयो और बहनों,

कृप्या याद-प्यार स्वीकार करना जी। बीके भाई-बहनों के लिए जारी रूहानी पालना कार्यक्रम के तहत हम एक नई पहल करने जा रहे हैं जिसका नाम है जादुई मुरली प्रस्ताव। यह प्रस्ताव 6 सप्ताह तक चलेगा। इसका आरम्भ 11 मई और अंत 21 जून 2015, अर्न्तराष्ट्रीय योग दिवस को होगा। क्योंकि अमृतोलोजी से और हमारे वरिष्ठ भाई बहनों के वेबिनारों से बहुतों की पालना हुई और सब एकीकृत हुए, तो हमने प्रतिदिन की मुरली से सामूहिक पढ़ाई को सुगम बनाने का निर्णय लिया जिससे सभी इक्ट्ठे हों जाऐं और जो बाबा हमें प्रतिदिन प्रदान कर रहें हैं उससे अधिक से अधिक लाभ उठा सकें।
यह भावना मन में रखते हुए, हम आपको जादुई मुरली से जुड़ने का हार्दिक निमंत्रण देते हैं, यह सामूहिक भट्टी की तरह है जिसके तहत बाबा की मुरली की जादुई विशेषताओं और आत्मा की स्व-परिवर्तन की यात्रा में मुरली से होने वाले चमत्कारों का गहन शोध होगा। हमने जादुई मुरली, इस विषय को क्यों और कैसे चुना यह जानने के लिए कृप्याजादुई मुरली की कहानी का अध्ययन करें।
हम अपनी कृति को बदलने के लिए स्मृती, स्मृर्थी, मनोवृत्ति और दृष्टि के आध्यात्मिक प्रक्षेप पथ का प्रयोग करेंगे। इस शब्दावली के और अधिक विवरण के लिए स्व-परिवर्तन के लिए आध्यात्मिक जादूगर का मार्ग प्रदर्शन का अध्ययन करें। इस प्रस्ताव के माध्यम से हम देखेंगे कि किस प्रकार जादुई मुरली की कला और विज्ञान द्वारा हम आध्यात्मिक जादुगर बन सकते हैं और अपनी याद को बदल सकते हैं। छह सप्ताह तक प्रतिदिन की मुरली से नए प्वॉईंटस उपलब्ध करवाए जाऐंगे। अधिक जानकारी के लिए प्रतिदिन अभ्यास की रूपरेखा को पढें। अगर आप इन प्वॉईंटस को प्रतिदिन ईमेल से सीधे( अंग्रेज़ी और हिन्दी) पाना चाहते हैं तो अभी रजिस्टर करें। अगर आप पहले से ही दादी के डायमंड प्वॉईंटस प्राप्त कर रहें हैं तो दोबारा से रजिस्टर करने की आवश्यकता नहीं है । वरिष्ठ भाई-बहनों द्वारा साप्ताहिक वेबिनार भी होंगे।
5 अप्रैल, 2015 को (मूलरूप से 21 नवंबर, 1979 की मुरली ) बापदादा ने कहा, “अब, अंत में सभी ब्रहाम्णों को एक ही वृत्ति रख सहयोग की अंगुली देनी है। जब सबका एक ही संकल्प होगा तभी बेहद का विश्व परिवर्तन होगा।” मन में यही विचार रख सम्पूर्ण वैश्विक परिवार को हम नुमाशाम 7-7:30 बजे के योग पर विशेष ध्यान देने के लिए आमंत्रित करते हैं। चलिए छह सप्ताह तक प्रतिदिन सारे विश्व में, जापान से लेकर हवाई तक, पावन याद और वृत्ति की सुंदर लहर उत्पन्न करें।
जादुई मुरली प्रस्ताव के लिए अभी हमसे जुड़ें और मुरली को एक शांत हृदय और बेहद की बुद्धी से देखना सीखें। याद और सच्चाई की लय पर नृत्य करें और इन छह सप्ताहों को गहरे व्यक्तिगत अनुभवों का समय बना दें।

अनगिनत वरदानों और बाबा की याद के साथ

मोहिनी बहन, दीदी निर्मला, जयंति बहन और बीके पालना टीम

***

The Enchanted Murli

View & Share a video about the initiative by clicking on the image below.

enchant murli

Vices to Virtues: 80: संस्कार परिवर्तन


Vices to Virtues: 80: संस्कार परिवर्तन






Bapdada has told us to cremate our old sanskars. (Sanskar ka sanskar karo) Not just to suppress them, but to completely burn them, so there is no trace or progeny left. Check and change now. Have volcanic yoga (Jwala swaroop) Let us work on one each day.



बापदादा ने कहा है के ज्वाला  मुखी  अग्नि  स्वरुप  योग  की  शक्ति  से  संस्कारों  का संस्कार करो ; सिर्फ मारना नहींलेकिन  जलाकर नाम रूप ख़त्म कर दो.... चेक और चेन्ज करना ... ज्वाला योग से अवगुण और पुराने संस्कार जला देना ...हररोज़ एक लेंगे और जला देंगे...






पुराने वा अवगुणो का अग्नि ....    # ८०   ......  स्पेशल पर्सनल लेन-देन  का व्यवहार करना ....बदलकर....    मैं नष्टोमोहा  स्मृति स्वरूप  आत्मा,  एक भाग्य विधाता बाप से ही सर्व सम्बन्ध निभानेवाला,  बेहद का वैरागी  हूँ ......




cremate our old sanskars  # 80....having personal give and take relationships with others.......... replace them by I, the soul, the destroyer of attachment and an embodiment of remembrance, am an unlimited renunciate, fulfilling all relationships with the One Bestower of Fortune....





 Poorane va avguno ka agni sanskar... # 80   .......... speshal parsanal vyavahar ka len den karna  ......badalkar.... mai nashto moha,  smriti swaroop atma  Ek Bhaagy Vidhaata baap se hi sarv sambandh nibhaanewala,  behad ka vairaagi  hun...



Yog Commentary



पुराने वा अवगुणो का अग्नि ....    # ८०   ......  स्पेशल पर्सनल लेन-देन  का व्यवहार करना ....बदलकर....    मैं नष्टोमोहा  स्मृति स्वरूप, आत्मा,  एक भाग्य विधाता बाप से ही सर्व सम्बन्ध निभानेवाला,  बेहद का वैरागी  हूँ ......

मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ....... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ .....  सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड  हूँ  ........ अकालतक्खनशीन  हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम अथक और बीजरूप  हूँ ........ शक्तिमूर्त ..... संहारनीमूर्त ...... अलंकारीमूर्त ..... कल्याणीमूर्त हूँ ......शक्ति सेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... सर्वशक्तिमान हूँ ......  रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी ....  ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... स्पेशल पर्सनल लेन-देन  का व्यवहार करना.................अवगुणों का आसुरी संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ ........ जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ......  मैं आत्मा महारथी महावीर ........ स्पेशल पर्सनल लेन-देन  का व्यवहार करना........................ के  मायावी संस्कार पर विजयी रूहानी सेनानी हूँ .......... मैं नष्टोमोहा  स्मृति स्वरूप, आत्मा,  एक भाग्य विधाता बाप से ही सर्व सम्बन्ध निभानेवाला,  बेहद का वैरागी  हूँ....  मैं देही -अभिमानी ..... आत्म-अभिमानी..... रूहानी अभिमानी .....परमात्म अभिमानी..... परमात्म ज्ञानी ..... परमात्म भाग्यवान..... सर्वगुण सम्पन्न  ..... सोला  कला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी .....मर्यादा पुरुषोत्तम  ...... डबल अहिंसक  हूँ ..... डबल ताजधारी ..... विष्व  का मालिक हूँ ..... मैं आत्मा ताजधारी ..... तख़्तधारी ..... तिलकधारी ..... दिलतक्खनशीन  ..... डबललाइट ..... सूर्यवंशी शूरवीर ....... महाबली महाबलवान ..... बाहुबलि पहलवान ....... अष्ट भुजाधारी अष्ट शक्तिधारी   अस्त्र शस्त्रधारी शिवमई शक्ति हूँ ...






cremate our old sanskars  # 80....having personal give and take relationships with others.......... replace them by I, the soul, the destroyer of attachment and an embodiment of remembrance, am an unlimited renunciate, fulfilling all relationships with the One Bestower of Fortune....



I am a soul...I reside in the Incorporeal world...the land of peace...Shivalaya...I am with the Father...I am close to the Father...I am equal to the Father...I am sitting personally in front of the Father...safe...in the canopy of protection of the Father...I am the eight armed deity...a  special deity...I am great and elevated...I, the soul am the master sun of knowledge...a master creator...master lord of death...master almighty authority... Shivshakti combined...immortal image...seated on an immortal throne...immovable, unshakable Angad, stable in one stage, in a constant stage, with full concentration....steady, tireless and a seed...the embodiment of power...the image of a destroyer...an embodiment of ornaments...the image of a bestower...the Shakti Army...the Shakti  troop...an almighty authority...the spiritual rose...a blaze...a volcano...an embodiment of a blaze...a fiery blaze...I am cremating the sanskar of  having personal give and take relationships with others.............I am burning them...I am turning them into ashes...I, the soul am a maharathi...a mahavir...I am the victorious spiritual soldier that is conquering the vice of ... having personal give and take relationships with others.................... I, the soul, the destroyer of attachment and an embodiment of remembrance, am an unlimited renunciate, fulfilling all relationships with the One Bestower of Fortune.............I , the soul, am soul conscious, conscious of the soul, spiritually conscious, conscious of the Supreme Soul, have knowledge of the Supreme Soul, am fortunate for knowing the Supreme Soul.....I am full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely vice less, the most elevated human being following the code of conduct, doubly non-violent, with double crown...I am the master of the world, seated on a throne, anointed with a tilak, seated on Baba’s heart throne, double light, belonging to the sun dynasty, a valiant warrior, an  extremely powerful and  an extremely strong wrestler with very strong arms...eight arms, eight powers, weapons and armaments, I am the Shakti merged in Shiv...





Poorane va avguno ka agni sanskar... # 80   .......... speshal parsanal vyavahar ka len den karna  ......badalkar.... mai nashto moha,  smriti swaroop atma  Ek Bhaagy Vidhaata baap se hi sarv sambandh nibhaanewala,  behad ka vairaagi  hun...



mai atma paramdham shantidham, shivalay men hun...shivbaba ke saath hun...sameep hun...samaan hun...sammukh hun...safe hun...baap ki chhatra chaaya men hun...asht, isht, mahaan sarv shreshth hun...mai atma master gyan surya hun...master rachyita hun...master mahakaal hun...master sarv shakti vaan hun...shiv shakti combined hun...akaal takht nasheen hun...akaal moort hun...achal adol angad ekras ektik ekagr sthiriom athak aur beej roop hun...shaktimoort hun...sanharinimoort hun...alankarimoort hun...kalyani moort hun...shakti sena hun...shakti dal hun...sarvshaktimaan hun...roohe gulab...jalti jwala...jwala mukhi...jwala swaroop...jwala agni hun... .......... speshal parsanal vyavahar ka len den karna  ................avguno ka asuri sanskar kar rahi hun...jala rahi hun..bhasm kar rahi hun...mai atma, maharathi mahavir .......... speshal parsanal vyavahar ka len den karna  .................ke mayavi sanskar par vijayi ruhani senani hun... mai nashto moha,  smriti swaroop atma  Ek Bhaagy Vidhaata baap se hi sarv sambandh nibhaanewala,  behad ka vairaagi  hun... mai dehi abhimaani...atm abhimaani...ruhani abhimaani...Parmatm abhimaani...parmatm gyaani...parmatm bhagyvaan...sarvagunn sampann...sola kala sampoorn...sampoorn nirvikari...maryada purushottam...double ahinsak hun...double tajdhaari vishv ka malik hun...mai atma taj dhaari...takht dhaari...tilak dhaari...diltakhtnasheen...double light...soorya vanshi shoorvir...mahabali mahabalwaan...bahubali pahalwaan...asht bhujaadhaari...asht shakti dhaari...astr shastr dhaari shivmai shakti hun...

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