Om Shanti
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कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

13-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


13-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन

 

मीठे बच्चे - सर्वोत्तम युग यह संगम है, इसमें ही तुम आत्मायें परमात्मा बाप से मिलती हो, यही है सच्चा सच्चा कुम्भ।

प्रश्न:- कौन सा पाठ बाप ही पढ़ाते हैं, कोई मनुष्य नहीं पढ़ा सकते?

उत्तर:- देही अभिमानी बनने का पाठ एक बाप ही पढ़ाते हैं, यह पाठ कोई देहधारी नहीं पढ़ा सकता। पहले पहले तुमको आत्मा का ज्ञान मिलता है। तुम जानते हो हम आत्मायें परमधाम से एक्टर बन पार्ट बजाने आये, अभी नाटक पूरा होता है, यह ड्रामा बना बनाया है, इसे कोई ने बनाया नहीं इसलिए इसका आदि और अन्त भी नहीं है।

ओम् शान्ति।

बच्चों ने यह गीत तो अनेक बार सुना होगा। साज़न सजनियों से कहते हैं। उनको साजन कहा जाता है,जब शरीर में आते हैं। नहीं तो वह बाप हैतुम बच्चे हो। तुम सब भक्तियां हो। भगवान को याद करते हो। ब्राइड्सब्राइडग्रूम को याद करती हैं। सबका माशूक है ब्राइडग्रूम। वह बैठ बच्चों को समझाते हैं अब जागोनया युग आता है। नया अर्थात् नई दुनिया सतयुग। पुरानी दुनिया है कलियुग। अब बाप आये हुए हैंतुमको स्वर्गवासी बनाते हैं। कोई मनुष्य तो कह सके कि हम तुमको स्वर्गवासी बनाते हैं। सन्यासी तो स्वर्ग और नर्क को बिल्कुल नहीं जानते। जैसे और धर्म हैं वैसे सन्यासियों का भी एक और धर्म है। वह कोई आदि सनातन देवी देवता धर्म नहीं है। आदि सनातन देवी देवता धर्म की भगवान ही आकर स्थापना करते हैंजो नर्कवासी हैं वही फिर सतयुगी स्वर्गवासी बनते हैं। अभी तुम नर्कवासी नहीं हो। अभी तुम हो संगमयुग पर। संगम होता है बीच का। संगम पर स्वर्गवासी बनने का तुम पुरूषार्थ करते होइसलिए संगमयुग की महिमा है। कुम्भ का मेला भी वास्तव में यह है सर्वोत्तम। इनको ही पुरूषोत्तम कहा जाता है। तुम जानते हो हम सब एक बाप के बच्चे हैंब्रदरहुड कहते हैं ना। सभी आत्मायें आपस में भाई भाई हैं। कहते हैं हिन्दू चीनी भाई भाईसब धर्म के हिसाब से तो भाई भाई हैं यह ज्ञान तुमको अभी मिला है। बाप समझाते हैं तुम मुझ बाप की सन्तान हो। अभी तुम सम्मुख सुनते हो। वह तो सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं। सभी आत्माओं का बाप एक हैउस एक को ही याद करते हैं। मेल वा फीमेल दोनों में आत्मा है। इस हिसाब से भाई भाई हैं फिर भाई बहन फिर उसके बाद स्त्री पुरूष हो जाते हैं। तो बाप आकर बच्चों को समझाते हैं। गाया भी जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रही बहुकाल..... ऐसे नहीं कहा जाता कि नदियाँ और सागर अलग रहे बहुकाल...... बड़ी बड़ी नदियां तो सागर से मिली रहती हैं। यह भी बच्चे जानते हैंनदी सागर की बच्ची है। सागर से पानी निकलता हैबादलों द्वारा फिर बरसात पड़ती है पहाड़ों पर। फिर नदियाँ बन जाती हैं। तो सभी हो जाते हैं सागर के बच्चे और बच्चियाँ। बहुतों को यह भी पता नहीं है कि पानी कहाँ से निकलता है। यह भी सिखलाया जाता है। तो अब बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर एक ही बाप है। यह भी समझाया जाता है तुम सभी आत्मायें होबाप एक है। आत्मा भी निराकार हैफिर जब साकार में आते हो तो पुनर्जन्म लेते हो। बाप भी जब साकार में आये तब आकर मिले। बाप का मिलना एक बार होता है। इस समय आकर सबसे मिले हैं। यह भी जानते जायेंगे कि भगवान है। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है परन्तु कृष्ण तो यहाँ सके। वह कैसे गाली खायेंगेयह तुम जानते हो कृष्ण की आत्मा इस समय है। पहले पहले तुमको ज्ञान मिलता है आत्मा का। तुम आत्मा होअपने को शरीर समझ इतना समय चले हो,अब बाप आकर देही अभिमानी बनाते हैं। साधू सन्त आदि कभी तुमको देही अभिमानी नहीं बनाते हैं। तुम बच्चे होतुमको बेहद के बाप से वर्सा मिलता है। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम परमधाम में रहने वाले हैं फिर यहाँ हम पार्ट बजाने आये हैं। अभी यह नाटक पूरा होता है। यह ड्रामा कोई ने बनाया नहीं है। यह बना बनाया ड्रामा है। तुमसे पूछते हैं यह ड्रामा कब से शुरू हुआतुम बोलो यह तो अनादि ड्रामा है। इसका आदि अन्त नहीं होता। पुराना सो नयानया सो पुराना होता है। यह पाठ तुम बच्चों को पक्का है। तुम जानते हो नई दुनिया कब बनती है फिर पुरानी कब होती है। यह भी कोई कोई की बुद्धि में पूरी रीति है। तुम जानते हो अभी नाटक पूरा होता है फिर रिपीट होगा। बरोबर हमारा 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ। अब बाप हमको ले जाने के लिए आये हैं। बाप गाइड भी है ना। तुम सब पण्डे हो। पण्डे लोग यात्रियों को ले जाते हैं। वह हैं जिस्मानी पण्डेतुम हो रूहानी पण्डे इसलिए तुम्हारा नाम पाण्डव गवर्मेन्ट भी हैपरन्तु गुप्त। पाण्डवकौरवयादव क्या करत भये। इस समय की बात है जबकि महाभारत लड़ाई का समय भी है। अनेक धर्म हैंदुनिया भी तमोप्रधान हैवैराइटी धर्मों का झाड़ सारा पुराना हो गया है। तुम जानते हो इस झाड़ का पहला पहला फाउन्डेशन है आदि सनातन देवी देवता धर्म। सतयुग में थोड़े होते फिर वृद्धि को पाते हैं। यह किसको भी पता नहींतुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। स्टूडेन्ट में कोई अच्छा समझदार होते हैंअच्छी धारणा करते हैं और कराने का शौक होता है। कोई तो अच्छी रीति धारण करते हैं। कोई मीडियमकोई थर्डकोई फोर्थ। प्रदर्शनी में तो रिफाइन रीति समझाने वाले चाहिए। पहले बताओ कि दो बाप हैं। एक बेहद का पारलौकिक बापदूसरा है हद का लौकिक बाप। भारत को बेहद का वर्सा मिला था। भारत स्वर्ग था जो फिर नर्क बना है,इनको आसुरी राज्य कहा जाता है। भक्ति भी पहले पहले अव्यभिचारी होती है। एक शिवबाबा को ही याद करते हैं।

बाप कहते हैं - बच्चेपुरूषोत्तम बनना है तो जो कनिष्ट बनाने वाली बातें हैं उन्हें सुनो। एक बाप से सुनो। अव्यभिचारी ज्ञान सुनो और कोई से जो सुनेंगे वह है झूठ। बाप अभी तुमको सच सुनाकर पुरूषोत्तम बनाते हैं। ईविल बातें तुम सुनते सुनते कनिष्ट बन गये हो। सोझरा है ब्रह्मा का दिन,अन्धियारा है ब्रह्मा की रात। यह सब प्वाइंट्स धारण करनी हैं। नम्बरवार तो हर बात में होते ही हैं। डॉक्टर कोई 10 20 हज़ार एक आपरेशन का लेतेकोई को खाने के लिए भी नहीं। बैरिस्टर भी ऐसे होते हैं। तुम भी जितना पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। फ़र्क तो है ना। दास दासियों में भी नम्बरवार होते हैं। सारा मदार पढ़ाई पर है। अपने से पूछना चाहिए हम कितना पढ़ते हैंभविष्य जन्म जन्मान्तर क्या बनेंगेजो जन्म जन्मान्तर बनेंगे सो कल्प कल्पान्तर बनेंगे इसलिए पढ़ाई पर तो पूरा अटेन्शन देना चाहिए। विष पीना तो एकदम छोड़ देना होता है। सतयुग में तो ऐसे नहीं कहा जायेगा मूत पलीती कपड़ धोए। इस समय सबकी चोली सड़ी हुई है। तमोप्रधान हैं ना। यह भी समझाने की बात है ना। सबसे पुराना चोला किसका हैहमारा। हम इस शरीर को बदलते रहते हैं। आत्मा पतित बनती जाती है। शरीर भी पतित पुराना होता जाता है। शरीर बदलना होता है। आत्मा तो नहीं बदलेगी। शरीर बूढ़ा हुआमृत्यु हुई यह भी ड्रामा बना हुआ है। सबका पार्ट है। आत्मा है अविनाशी। आत्मा खुद कहती हैं मैं शरीर छोड़ती हूँ। देही अभिमानी बनना पड़े। मनुष्य सब देह अभिमानी हैं। आधाकल्प हैं देह अभिमानीआधाकल्प हैं देही अभिमानी।

देही अभिमानी होने के कारण सतयुगी देवताओं को मोहजीत का टाइटिल मिला हुआ है क्योंकि वहाँ समझते हैं हम आत्मा हैंअब यह शरीर छोड़ दूसरा लेना है। मोहजीत राजा की भी कथा है ना। बाप समझाते हैं देवी देवता मोहजीत होते हैं। खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेना है। बच्चों को सारी नॉलेज बाप द्वारा मिल रही है। तुम ही चक्र लगाकर अब फिर आए मिले हो। जो और और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं वह भी आकर मिलेंगे। अपना थोड़ा बहुत वर्सा ले लेंगे। धर्म ही बदल गया ना। पता नहीं कितना समय उस धर्म में रहे हैं। 2 3 जन्म ले सकते हैं। कोई को हिन्दू से मुसलमान बना दिया तो उस धर्म में आता रहेगा फिर यहाँ आता है। यह भी हैं डिटेल की बातें। बाप कहते हैं इतनी बातें याद कर सकोअच्छा अपने को बाप का बच्चा तो समझो। अच्छे अच्छे बच्चे भी भूल जाते हैं। बाप को याद नहीं करते हैं। माया इसमें भुलाती है। तुम भी पहले माया के मुरीद थे ना। अब ईश्वर के बनते हो। वह ड्रामा में पार्ट है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। जब तुम आत्मा पहले पहले शरीर में आई थी तो पवित्र थीफिर पुनर्जन्म लेते लेते पतित बनी हो। अब फिर बाप कहते हैं नष्टोमोहा बनो। इस शरीर में भी मोह रखो।

अभी तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य आता है क्योंकि इस दुनिया में सब एक दो को दुःख देने वाले हैं इसलिए इस पुरानी दुनिया को ही भूल जाओ। हम अशरीरी आये थे फिर अब अशरीरी होकर वापस जाना है। अब यह दुनिया ही खत्म होनी है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने लिए बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। कृष्ण तो कह सके कि मामेकम् याद करो। कृष्ण तो सतयुग में होता है। बाप ही कहते हैं मुझे तुम पतित पावन भी कहते हो तो अब मुझे याद करोमैं यह युक्ति बताता हूँपावन बनने की। कल्प कल्प की युक्ति बताता हूँ जब पुरानी दुनिया होती है तो भगवान को आना पड़ता है। मनुष्यों ने ड्रामा की आयु लम्बी चौड़ी कर दी है। तो मनुष्य बिल्कुल ही भूल गये हैं। अब तुम जानते हो यह संगमयुग हैयह है पुरूषोत्तम बनने का युग। मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में पड़े हैं। इस समय हैं सब तमोप्रधान।

अभी तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो। तुमने ही सबसे जास्ती भक्ति की है। अब भक्तिमार्ग खत्म होता है। भक्ति है मृत्युलोक में। फिर आयेगा अमरलोक। तुम इस समय ज्ञान लेते हो फिर भक्ति का नाम निशान नहीं रहेगा। हे भगवानहे राम यह सब भक्ति के अक्षर हैं। इसमें कोई आवाज़ नहीं करना है। बाप ज्ञान का सागर हैआवाज़ थोड़ेही करते हैं। उनको कहा ही जाता है सुख शान्ति का सागर। तो सुनाने लिए भी उनको शरीर चाहिए ना। भगवान की भाषा क्या हैयह कोई जानते नहीं। ऐसे तो नहींबाबा सब भाषाओं में बोलेंगे। नहींउनकी भाषा है ही हिन्दी। बाबा एक ही भाषा में समझाते हैं फिर ट्रांसलेट कर तुम समझाते हो। फॉरेनर्स आदि जो भी मिलें उनको बाप का परिचय देना है। बाप आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। त्रिमूर्ति पर समझाना चाहिए। प्रजापिता ब्रह्मा के कितने ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। कोई भी आये तो पहले उनसे पूछो किसके पास आये हो?बोर्ड तो लगा पड़ा है। प्रजापितावह तो रचने वाला हो गया। परन्तु उनको भगवान नहीं कह सकते हैं। भगवान निराकार को ही कहा जाता है। यह ब्रह्माकुमार कुमारियाँ ब्रह्मा की सन्तान हैं। तुम यहाँ किसलिए आये होहमारे बाप से तुम्हारा क्या काम! बाप से बच्चों का ही काम होगा ना। हम बाप को अच्छी रीति जानते हैं। गाया हुआ है सन शोज़ फादर। हम उनके बच्चे हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) पुरूषोत्तम बनने के लिए कनिष्ट बनाने वाली जो ईविल बातें हैं वह नहीं सुननी हैं। एक बाप से ही अव्यभिचारी ज्ञान सुनना है।

2) नष्टोमोहा बनने के लिए देही अभिमानी बनने का पूरा पूरा पुरूषार्थ करना है। बुद्धि में रहे यह पुरानी दुःख देने वाली दुनिया है, इसे भूलना है। इससे बेहद का वैराग्य हो।

वरदान:- दिव्य बुद्धि की लिफ्ट द्वारा तीनों लोकों का सैर करने वाले सहजयोगी भव!

संगमयुग पर सभी बच्चों को दिव्य बुद्धि की लिफ्ट मिलती है। इस वन्डरफुल लिफ्ट द्वारा तीनों लोकों में जहाँ चाहो वहाँ पहुंच सकते हो। सिर्फ स्मृति का स्विच आन करो तो सेकण्ड में पहुँच जायेंगे और जितना समय जिस लोक का अनुभव करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित रह सकते हो। इस लिफ्ट को यूज़ करने के लिए अमृतवेले केयरफुल बन स्मृति के स्विच को यथार्थ रीति से सेट करो। अथॉरिटी होकर इस लिफ्ट को कार्य में लगाओ तो सहजयोगी बन जायेंगे। मेहनत समाप्त हो जायेगी।

स्लोगन:- मन को सदा मौज़ में रखना यही जीवन जीने का कला है।

 

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