07-04-15 प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे
बच्चे - इस पुरानी पतित दुनिया से तुम्हारा बेहद का वैराग्य चाहिए क्योंकि तुम्हें
पावन बनना है, तुम्हारी
चढ़ती कला से सबका भला होता है ।”
प्रश्न:- कहा जाता है, आत्मा अपना ही शत्रु, अपना ही मित्र है, सच्ची मित्रता क्या है?
उत्तर:- एक बाप की श्रीमत पर सदा चलते रहना- यही सच्ची मित्रता है। सच्ची
मित्रता है एक बाप को याद कर पावन बनना और बाप से पूरा वर्सा लेना। यह मित्रता
करने की युक्ति बाप ही बतलाते हैं। संगमयुग पर ही आत्मा अपना मित्र बनती है।
गीतः- तूने रात गँवाई.............
ओम् शान्ति।
यूँ तो यह गीत हैं
भक्ति मार्ग के, सारी दुनिया
में जो गीत गाते हैं वा शास्त्र पढ़ते हैं, तीर्थों पर जाते हैं, वह सब है भक्ति मार्ग। ज्ञान मार्ग किसको कहा जाता है, भक्ति मार्ग किसको कहा जाता है, यह तुम बच्चे ही समझते हो। वेद शास्त्र, उपनिषद आदि यह सब हैं भक्ति के।
आधाकल्प भक्ति चलती है और आधाकल्प फिर ज्ञान की प्रालब्ध चलती है। भक्ति करते-
करते उतरना ही है। 84 पुनर्जन्म लेते नीचे उतरते हैं। फिर एक जन्म में तुम्हारी
चढ़ती कला होती है। इसको कहा जाता है ज्ञान मार्ग। ज्ञान के लिए गाया हुआ है एक
सेकण्ड में जीवनमुक्ति। रावण राज्य जो द्वापर से चला आता है, वह खत्म हो फिर रामराज्य स्थापन होता
है। ड्रामा में जब तुम्हारे 84 जन्म पूरे होते हैं तब चढ़ती कला से सबका भला होता
है। यह अक्षर कहाँ न कहाँ किसी शास्त्रों में हैं। चढ़ती कला सर्व का भला। सर्व की
सद्गति करने वाला तो एक ही बाप है ना। सन्यासी उदासी तो अनेक प्रकार के हैं। बहुत
मत- मतान्तर हैं। जैसे शास्त्रों में लिखा है कल्प की आयु लाखों वर्ष, अब शंकराचार्य की मत निकली 10 हज़ार
वर्ष....... कितना फ़र्क हो जाता है। कोई फिर कहेगा इतने हज़ार। कलियुग में है
अनेक मनुष्य, अनेक मतें, अनेक धर्म। सतयुग में होती ही है एक
मत। यह बाप बैठ तुम बच्चों को सृष्टि के आदि- मध्य- अन्त का नॉलेज सुनाते हैं। इस
सुनाने में भी कितना समय लगता है। सुनाते ही रहते हैं। ऐसे नहीं कह सकते पहले
क्यों नहीं यह सब सुनाया। स्कूल में पढ़ाई नम्बरवार होती है। छोटे बच्चों को
आरगन्स छोटे होते हैं तो उनको थोड़ा सिखलाते हैं। फिर जैसे- जैसे आरगन्स बड़े होते
जायेंगे, बुद्धि का
ताला खुलता जायेगा। पढ़ाई धारण करते जायेंगे। छोटे बच्चों की बुद्धि में कुछ धारणा
हो न सके। बड़ा होता है तो फिर बैरिस्टर जज आदि बनते हैं, इसमें भी ऐसे है। कोई की बुद्धि में
धारणा अच्छी होती है। बाप कहते हैं मैं आया हूँ पतित से पावन बनाने। तो अब पतित
दुनिया से वैराग्य होना चाहिए। आत्मा पावन बने तो फिर पतित दुनिया में रह न सके।
पतित दुनिया में आत्मा भी पतित है, मनुष्य भी पतित हैं। पावन दुनिया में मनुष्य भी पावन, पतित दुनिया में मनुष्य भी पतित रहते
हैं। यह है ही रावण राज्य। यथा राजा- रानी तथा प्रजा। यह सारा ज्ञान है बुद्धि से
समझने का। इस समय सभी की बाप से है विपरीत बुद्धि। तुम बच्चे तो बाप को याद करते
हो। अन्दर में बाप के लिए प्यार है। आत्मा में बाप के लिए प्यार है, रिगार्ड है क्योंकि बाप को जानते हैं।
यहाँ तुम सम्मुख हो। शिवबाबा से सुन रहे हो। वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर, आनंद का सागर है। गीता ज्ञान दाता
परमपिता त्रिमूर्ति शिव परमात्मा वाच। त्रिमूर्ति अक्षर जरूर डालना है क्योंकि
त्रिमूर्ति का तो गायन है ना। ब्रह्मा द्वारा स्थापना तो जरूर ब्रह्मा द्वारा ही
ज्ञान सुनायेंगे। कृष्ण तो ऐसे नहीं कहेंगे कि शिव भगवानुवाच। प्रेरणा से कुछ होता
नहीं। न उनमें शिवबाबा की प्रवेशता हो सकती है। शिवबाबा तो पराये देश में आते हैं।
सतयुग तो कृष्ण का देश है ना। तो दोनों की महिमा अलग- अलग है। मुख्य बात ही यह है।
सतयुग में गीता तो
कोई पढ़ते नहीं। भक्ति मार्ग में तो जन्म- जन्मान्तर पढ़ते हैं। ज्ञान मार्ग में
तो वह हो न सके। भक्तिमार्ग में ज्ञान की बातें होती नहीं। अभी रचता बाप ही रचना
के आदि- मध्य- अन्त का ज्ञान देते हैं। मनुष्य तो रचता हो न सके। मनुष्य कह न सकें
कि मैं रचता हूँ। बाप खुद कहते हैं- मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। मैं ज्ञान
का सागर, प्रेम का
सागर, सर्व का सद्गति दाता
हूँ। कृष्ण की महिमा ही अलग है। तो यह पूरा कान्ट्रास्ट लिखना चाहिए। जो मनुष्य
पढ़ने से झट समझ जाएं कि गीता का ज्ञान दाता कृष्ण नहीं है, इस बात को स्वीकार किया तो यह तुमने
जीत पहनी। मनुष्य कृष्ण के पिछाड़ी कितना हैरान होते हैं, जैसे शिव के भक्त शिव पर गला काट देने
को तैयार हो जाते हैं, बस हमको शिव
के पास जाना है, वैसे वह
समझते हैं कृष्ण के पास जाना है। परन्तु कृष्ण के पास जा न सकें। कृष्ण के पास बलि
चढ़ने की बात नहीं होती है। देवियों पर बलि चढ़ते हैं। देवताओं पर कभी कोई बलि
नहीं चढ़ेंगे। तुम देवियाँ हो ना। तुम शिवबाबा के बने हो तो शिवबाबा पर भी बलि
चढ़ते हैं। शास्त्रों में हिंसक बातें लिख दी हैं। तुम तो शिवबाबा के बच्चे हो।
तन- मन- धन बलि चढ़ाते हो, और कोई बात
नहीं इसलिए शिव और देवियों पर बलि चढ़ाते हैं। अब गवर्मेन्ट ने शिव काशी पर बलि
चढ़ाना बन्द कर दिया है। अभी वह तलवार ही नहीं है। भक्ति मार्ग में जो आपघात करते
हैं यह भी जैसे अपने साथ शत्रुता करने का उपाय है। मित्रता करने का एक ही उपाय है
जो बाप बतलाते हैं- पावन बनकर बाप से पूरा वर्सा लो। एक बाप की श्रीमत पर चलते रहो, यही मित्रता है। भक्ति मार्ग में
जीवात्मा अपना ही शत्रु है। फिर बाप आकर ज्ञान देते हैं तो जीवात्मा अपना मित्र
बनती है। आत्मा पवित्र बन बाप से वर्सा लेती है, संगमयुग पर हर एक आत्मा को बाप आकर मित्र
बनाते हैं। आत्मा अपना मित्र बनती है, श्रीमत मिलती है तो समझती है हम बाप की मत पर ही चलेंगे।
अपनी मत पर आधाकल्प चले। अब श्रीमत पर सद्गति को पाना है, इसमें अपनी मत चल न सके। बाप तो सिर्फ
मत देते हैं। तुम देवता बनने आये हो ना। यहाँ अच्छे कर्म करेंगे तो दूसरे जन्म में
भी अच्छा फल मिलेगा, अमरलोक में।
यह तो है ही मृत्युलोक। यह राज़ भी तुम बच्चे ही जानते हो। सो भी नम्बरवार। कोई की
बुद्धि में अच्छी रीति धारणा होती है, कोई धारणा नहीं कर सकते तो इसमें टीचर क्या कर सकते हैं।
टीचर से कृपा वा आशीर्वाद मांगेंगे क्या। टीचर तो पढ़ाकर अपने घर चले जाते हैं।
स्कूल में पहले- पहले खुदा की बन्दगी आकर करते हैं- हे खुदा हमको पास कराना तो फिर
हम भोग लगायेंगे। टीचर को कभी नहीं कहेंगे कि आशीर्वाद करो। इस समय परमात्मा हमारा
बाप भी है तो टीचर भी है। बाप की आशीर्वाद तो अन्डरस्टुड है ही। बाप बच्चे को
चाहते हैं, बच्चा आये
तो उसको धन दूँ। तो यह आशीर्वाद हुई ना। यह एक कायदा है। बच्चे को बाप से वर्सा
मिलता है। अब तो तमोप्रधान ही होते जाते हैं। जैसा बाप वैसे बच्चे। दिन- प्रतिदिन
हर चीज़ तमोप्रधान होती जाती है। तत्व भी तमोप्रधान ही होते जाते हैं। यह है ही
दुःखधाम। 40 हज़ार वर्ष अभी आयु हो तो क्या हाल हो जायेगा। मनुष्यों की बुद्धि
बिल्कुल ही तमोप्रधान हो गई है।
अभी तुम बच्चों की
बुद्धि में बाप के साथ योग रखने से रोशनी आ गई है। बाप कहते हैं जितना याद में
रहेंगे उतना लाइट बढ़ती जायेगी। याद से आत्मा पवित्र बनती है। लाइट बढ़ती जाती है।
याद ही नहीं करेंगे तो लाइट मिलेगी नहीं। याद से लाइट वृद्धि को पायेगी। याद नहीं
किया और कोई विकर्म कर लिया तो लाइट कम हो जायेगी। तुम पुरूषार्थ करते हो
सतोप्रधान बनने का। यह बड़ी समझने की बातें हैं। याद से ही तुम्हारी आत्मा पवित्र
होती जायेगी। तुम लिख भी सकते हो यह रचयिता और रचना का ज्ञान श्रीकृष्ण दे नहीं
सकते। वह तो है प्रालब्ध। यह भी लिख देना चाहिए कि 84 वें अन्तिम जन्म में कृष्ण
की आत्मा फिर से ज्ञान ले रही है फिर फर्स्ट नम्बर में जाते हैं। बाप ने यह भी
समझाया है सतयुग में 9 लाख ही होंगे, फिर उनसे वृद्धि भी होगी ना। दास- दासियाँ भी बहुत ही होंगे
ना, जो पूरे 84 जन्म
लेते हैं। 84 जन्म ही गिने जाते हैं। जो अच्छी रीति इम्तहान पास करेंगे वह पहले-
पहले आयेंगे। जितना देरी से जायेंगे तो मकान पुराना तो कहेंगे ना। नया मकान बनता
है फिर दिन- प्रतिदिन आयु कम होती जायेगी। वहाँ तो सोने के महल बनते हैं, वह तो पुराने हो न सके। सोना तो सदैव
चमकता ही होगा। फिर भी साफ जरूर करना पड़े। जेवर भी भल पक्के सोने के बनाओ तो भी
आखरीन चमक तो कम होती है, फिर उनको
पॉलिश चाहिए। तुम बच्चों को सदैव यह खुशी रहनी चाहिए कि हम नई दुनिया में जाते
हैं। इस नर्क में यह अन्तिम जन्म है। इन आंखों से जो देखते हैं, जानते हैं यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर है। अभी हमको सतयुग नई
दुनिया में नया शरीर लेना है। 5 तत्व भी नये होते हैं। ऐसे विचार सागर मंथन चलना
चाहिए। यह पढ़ाई है ना। अन्त तक तुम्हारी यह पढ़ाई चलेगी। पढ़ाई बन्द हुई तो विनाश
हो जायेगा। तो अपने को स्टूडेण्ट समझ इस खुशी में रहना चाहिए ना- भगवान हमको
पढ़ाते हैं। यह खुशी कोई कम थोड़ेही है। परन्तु साथ- साथ माया भी उल्टा काम करा
लेती है। 5- 6 वर्ष पवित्र रहते फिर माया गिरा देती। एक बार गिरे तो फिर वह अवस्था
हो न सके। हम गिरे हैं तो वह घृणा आती है। अभी तुम बच्चों को सारी स्मृति रखनी है।
इस जन्म में जो पाप किये हैं,
हर एक आत्मा को अपने जीवन का तो पता है ना। कोई मंदबुद्धि, कोई विशाल बुद्धि होते हैं। छोटेपन की
हिस्ट्री याद तो रहती है ना। यह बाबा भी छोटेपन की हिस्ट्री सुनाते हैं ना। बाबा
को वह मकान आदि भी याद है। परन्तु अभी तो वहाँ भी सब नये मकान बन गये होंगे। 6
वर्ष से लेकर अपनी जीवन कहानी याद रहती है। अगर भूल गया तो डल बुद्धि कहेंगे। बाप
कहते हैं अपनी जीवन कहानी लिखो। लाइफ की बात है ना। मालूम पड़ता है लाइफ में कितने
चमत्कार थे। गांधी नेहरू आदि के कितने बड़े- बड़े वॉल्यूम बनते हैं। लाइफ तो
वास्तव में तुम्हारी बहुत वैल्युबुल है। वन्डरफुल लाइफ यह है। यह है मोस्ट
वैल्युबुल, अमूल्य
जीवन। इनका मूल्य कथन नहीं किया जा सकता। इस समय तुम ही सर्विस करते हो। यह लक्ष्मी-
नारायण कुछ भी सर्विस नहीं करते। तुम्हारी लाइफ बहुत वैल्युबुल है, जबकि औरों का भी ऐसा जीवन बनाने की
सर्विस करते हो। जो अच्छी सर्विस करते हैं वह गायन लायक होते हैं। वैष्णव देवी का
भी मन्दिर है ना। अभी तुम सच्चे- सच्चे वैष्णव बनते हो। वैष्णव माना जो पवित्र
हैं। अभी तुम्हारा खान- पान भी वैष्णव है। पहले नम्बर के विकार में तो तुम वैष्णव
(पवित्र) हो ही। जगत अम्बा के यह सब बच्चे ब्रह्माकुमार- कुमारियाँ हैं ना।
ब्रह्मा और सरस्वती। बाकी बच्चे हैं उनकी सन्तान। नम्बरवार देवियाँ भी हैं, जिनकी पूजा होती है। बाकी इतनी
भुजायें आदि दी हैं वह सब हैं फालतू। तुम बहुतों को आप समान बनाते हो तो भुजायें
दे दी हैं। ब्रह्मा को भी 100 भुजा वाला, हज़ार भुजा वाला दिखाते हैं। यह सब भक्ति मार्ग की बातें
हैं। तुमको फिर बाप कहते हैं दैवीगुण भी धारण करने हैं। किसको भी दुःख न दो। किसको
उल्टा- सुल्टा रास्ता बताए सत्यानाश न करो। एक ही मुख्य बात समझानी चाहिए कि बाप
और वर्से को याद करो। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) गायन वा पूजन योग्य बनने के लिए
पक्का वैष्णव बनना है। खान- पान की शुद्धि के साथ- साथ पवित्र रहना है। इस
वैल्युबुल जीवन में सर्विस कर बहुतों का जीवन श्रेष्ठ बनाना है।
2) बाप के साथ ऐसा योग रखना है जो
आत्मा की लाइट बढ़ती जाए। कोई भी विकर्म कर लाइट कम नहीं करना है। अपने साथ
मित्रता करनी है।
वरदान:- माया के
सम्बन्धों को डायवोर्स दे बाप के सम्बन्ध से सौदा करने वाले मायाजीत, मोहजीत भव!
अब स्मृति से पुराना
सौदा कैन्सिल कर सिंगल बनो। आपस में एक दो के सहयोगी भल रहो लेकिन कम्पेनियन नहीं।
कम्पेनियन एक को बनाओ तो माया के सम्बन्धों से डायवोर्स हो जायेगा। मायाजीत, मोहजीत विजयी रहेंगे। अगर जरा भी किसी
में मोह होगा तो तीव्र पुरूषार्थी के बजाए पुरूषार्थी बन जायेंगे इसलिए क्या भी हो, कुछ भी हो खुशी में नाचते रहो, मिरूआ मौत मलूका शिकार- इसको कहते हैं
नष्टोमोहा। ऐसा नष्टोमोहा रहने वाले ही विजय माला के दाने बनते हैं।
स्लोगन:- सत्यता की विशेषता से डायमण्ड की चमक को
बढ़ाओ।
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