28-04-15 प्रातः मुरली ओम्
शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारा यह मोस्ट वैल्युबुल समय है, इसमें तुम बाप के पूरे-पूरे मददगार बनो, मददगार
बच्चे ही ऊंच पद पाते हैं |”
प्रश्न:- सर्विसएबुल
बच्चे कौन सी बहाने बाजी नहीं कर सकते हैं?
उत्तर:- सर्विसएबुल
बच्चे यह बहाना नहीं करेंगे कि बाबा यहाँ गर्मी है, यहाँ
ठण्डी है इसलिए हम सर्विस नहीं कर सकते हैं। थोड़ी गर्मी हुई या ठण्डी पड़ी तो नाजुक
नहीं बनना है। ऐसे नहीं, हम तो सहन ही नहीं कर सकते
हैं। इस दु:खधाम में दु:ख-सुख, गर्मी-सर्दी, निंदा-स्तुति सब सहन करना है। बहाने बाजी नहीं करनी है।
गीतः धीरज धर मनुवा........
ओम् शान्ति।
बच्चे ही जानते हैं कि सुख और दु:ख किसको कहा जाता है। इस जीवन में
सुख कब मिलता है और दु:ख कब मिलता है सो सिर्फ तुम ब्राह्मण ही नम्बरवार पुरूषार्थ
अनुसार जानते हो। यह है ही दु:ख की दुनिया। इनमें थोड़े टाइम के लिए दु:ख-सुख, स्तुति-निंदा सब कुछ सहन
करना पड़ता है। इन सबसे पार होना है। कोई को थोड़ी गर्मी लगती तो कहते हम ठण्डी में
रहें। अब बच्चों को तो गर्मी में अथवा ठण्डी में सर्विस करनी है ना। इस समय यह
थोड़ा बहुत दु:ख भी हो तो नई बात नहीं। यह है ही दु:खधाम। अब तुम बच्चों को सुखधाम
में जाने लिए पूरा पुरूषार्थ करना है। यह तो तुम्हारा मोस्ट वैल्युबुल समय है।
इसमें बहाना चल न सके। बाबा सर्विसएबुल बच्चों के लिए कहते हैं, जो सर्विस जानते ही नहीं, वह तो कोई काम के
नहीं। यहाँ बाप आये हैं भारत को तो क्या विश्व को सुखधाम बनाने। तो ब्राह्मण बच्चों
को ही बाप का मददगार बनना है। बाप आया हुआ है तो उनकी मत पर चलना चाहिए। भारत जो
स्वर्ग था सो अब नर्क है, उनको फिर स्वर्ग बनाना है। यह
भी अब मालूम पड़ा है। सतयुग में इन पवित्र राजाओं का राज्य था, बहुत सुखी थे फिर अपवित्र राजायें भी बनते हैं, ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करने से, तो उनको भी ताकत
मिलती है। अभी तो है ही प्रजा का राज्य। लेकिन यह कोई भारत की सेवा नहीं कर सकते।
भारत की अथवा दुनिया की सेवा तो एक बेहद का बाप ही करते हैं। अब बाप बच्चों को
कहते हैं-मीठे बच्चे, अब हमारे साथ मददगार बनो। कितना
प्यार से समझाते हैं, देही-अभिमानी बच्चे समझते हैं।
देह-अभिमानी क्या मदद कर सकेंगे क्योंकि माया की जंजीरों में फंसे हुए हैं। अब बाप
ने डायरेक्शन दिया है कि सबको माया की जंजीरों से, गुरूओं
की जंजीरों से छुड़ाओ। तुम्हारा धन्धा ही यह है। बाप कहते हैं मेरे जो अच्छे मददगार
बनेंगे, पद भी वह पायेंगे। बाप खुद सम्मुख कहते हैं -
मैं जो हूँ, जैसा हूँ, साधारण
होने के कारण मुझे पूरा नहीं जानते हैं। बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं-यह
नहीं जानते। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे, यह
भी किसको पता नहीं है। अभी तुम समझते हो कि कैसे इन्होंने राज्य पाया फिर कैसे
गँवाया। मनुष्यों की तो बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि है। अब बाप आये हैं सबकी बुद्धि
का ताला खोलने, पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाने। बाबा
कहते हैं अब मददगार बनो। मुसलमान लोग खुदाई खिदमतगार कहते हैं परन्तु वह तो मददगार
बनते ही नहीं। खुदा आकर जिनको पावन बनाते हैं उनको ही कहते कि अब औरों को आप समान
बनाओ। श्रीमत पर चलो। बाप आये ही हैं पावन स्वर्गवासी बनाने।
तुम ब्राह्मण बच्चे जानते हो यह है मृत्युलोक। बैठे-बैठे अचानक
मृत्यु होती रहती है तो क्यों न हम पहले से ही मेहनत कर बाप से पूरा वर्सा ले अपना
भविष्य जीवन बना लेवें। मनुष्यों की जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तो समझते हैं अब
भक्ति में लग जायें। जब तक वानप्रस्थ अवस्था नहीं है तब तक खूब धन आदि कमाते हैं।
अभी तुम सबकी तो है ही वानप्रस्थ अवस्था। तो क्यों न बाप का मददगार बन जाना चाहिए।
दिल से पूछना चाहिए हम बाप के मददगार बनते हैं। सर्विसएबुल बच्चे तो नामीग्रामी
हैं। अच्छी मेहनत करते हैं। योग में रहने से सर्विस कर सकेंगे। याद की ताकत से ही
सारी दुनिया को पवित्र बनाना है। सारे विश्व को तुम पावन बनाने के निमित्त बने हुए
हो। तुम्हारे लिए फिर पवित्र दुनिया भी जरूर चाहिए, इसलिए पतित दुनिया का विनाश होना है। अभी
सबको यही बताते रहो कि देह-अभिमान छोड़ो। एक बाप को ही याद करो। वही पतित-पावन है।
सभी याद भी उनको करते हैं। साधू-सन्त आदि सब अंगुली से ऐसे इशारा करते हैं कि
परमात्मा एक है, वही सबको सुख देने वाला है। ईश्वर अथवा
परमात्मा कह देते हैं परन्तु उनको जानते कोई भी नहीं। कोई गणेश को, कोई हनूमान को, कोई अपने गुरू को याद करते रहते
हैं। अब तुम जानते हो वह सब हैं भक्ति मार्ग के। भक्ति मार्ग भी आधाकल्प चलना है।
बड़े-बड़े ऋषि-मुनि सब नेती-नेती करते आये हैं। रचता और रचना को हम नहीं जानते। बाप
कहते हैं वह त्रिकालदर्शी तो हैं नहीं। बीजरूप, ज्ञान
का सागर तो एक ही है। वह आते भी हैं भारत में। शिवजयन्ती भी मनाते हैं और गीता
जयन्ती भी मनाते हैं। तो कृष्ण को याद करते हैं। शिव को तो जानते नहीं। शिवबाबा
कहते हैं पतित-पावन ज्ञान का सागर तो मैं हूँ। कृष्ण के लिए तो कह न सकें। गीता का
भगवान कौन? यह बहुत अच्छा चित्र है। बाप यह चित्र आदि
सब बनवाते हैं,बच्चों के ही कल्याण लिए। शिवबाबा की महिमा तो
कम्पलीट लिखनी है। सारा मदार इन पर है। ऊपर से जो भी आते हैं वह पवित्र ही हैं।
पवित्र बनने बिगर कोई जा न सकें। मुख्य बात है पवित्र बनने की। वह है ही पवित्र
धाम, जहाँ सभी आत्मायें रहती हैं। यहाँ तुम पार्ट
बजाते-बजाते पतित बने हो। जो सबसे जास्ती पावन वही फिर पतित बने हैं। देवी-देवता
धर्म का नाम-निशान ही गुम हो गया है। देवता धर्म बदल हिन्दू धर्म नाम रख दिया है।
तुम ही स्वर्ग का राज्य लेते हो और फिर गँवाते हो। हार और जीत का खेल है। माया ते
हारे हार है, माया ते जीते जीत है। मनुष्य तो रावण का
इतना बड़ा चित्र कितना खर्चा कर बनाते हैं फिर एक ही दिन में खलास कर देते हैं।
दुश्मन है ना। लेकिन यह तो गुड़ियों का खेल हो गया। शिवबाबा का भी चित्र बनाए पूजा
कर फिर तोड़ डालते हैं। देवियों के चित्र भी ऐसे बनाए फिर जाकर डुबोते हैं। कुछ भी
समझते नहीं। अब तुम बच्चे बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते हो कि यह दुनिया का
चक्र कैसे फिरता है। सतयुग-त्रेता का किसको भी पता नहीं। देवताओं के चित्र भी
ग्लानि के बना दिये हैं।
बाप समझाते हैं-मीठे बच्चे, विश्व का मालिक बनने के लिए बाप ने तुम्हें
जो परहेज बताई है वह परहेज करो, याद में रहकर भोजन बनाओ, योग में रहकर खाओ। बाप खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम विश्व के मालिक
फिर से बन जायेंगे। बाप भी फिर से आया हुआ है। अब विश्व का मालिक पूरा बनना है।
फालो फादर-मदर। सिर्फ फादर तो हो नहीं सकता। सन्यासी लोग कहते हैं हम सब फादर हैं।
आत्मा सो परमात्मा है, वह तो रांग हो जाता है। यहाँ मदर
फादर दोनों पुरूषार्थ करते हैं। फालो मदर फादर, यह
अक्षर भी यहाँ के हैं। अभी तुम जानते हो जो विश्व के मालिक थे, पवित्र थे, अब वह अपवित्र हैं। फिर से पवित्र
बन रहे हैं। हम भी उनकी श्रीमत पर चल यह पद प्राप्त करते हैं। वह इन द्वारा डायरेक्शन
देते हैं उस पर चलना है, फालो नहीं करते तो सिर्फ
बाबा-बाबा कह मुख मीठा करते हैं। फालो करने वाले को ही सपूत बच्चे कहेंगे ना।
जानते हो मम्मा-बाबा को फालो करने से हम राजाई में जायेंगे। यह समझ की बात है। बाप
सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों। बस और कोई को भी यह समझाओ - तुम
कैसे 84 जन्म लेते-लेते अपवित्र बने हो। अब फिर पवित्र बनना है। जितना याद करेंगे
तो पवित्र होते जायेंगे। बहुत याद करने वाले ही नई दुनिया में पहले-पहले आयेंगे।
फिर औरों को भी आपसमान बनाना है। प्रदर्शनी में बाबा-मम्मा समझाने लिए जा नहीं
सकते। बाहर से कोई बड़ा आदमी आता है तो कितने ढेर मनुष्य जाते हैं, उनको देखने के लिए कि यह कौन आया है। यह तो कितना गुप्त है। बाप कहते हैं
मैं इस ब्रह्मा तन से बोलता हूँ, मैं ही इस बच्चे का
रेसपॉन्सिबुल हूँ। तुम हमेशा समझो शिवबाबा बोलते हैं, वह
पढ़ाते हैं। तुमको शिवबाबा को ही देखना है, इनको नहीं
देखना है। अपने को आत्मा समझो और परमात्मा बाप को याद करो। हम आत्मा हैं। आत्मा
में सारा पार्ट भरा हुआ है। यह नॉलेज बुद्धि में चक्र लगानी चाहिए। सिर्फ दुनियावी
बातें ही बुद्धि में होंगी तो गोया कुछ नहीं जानते। बिल्कुल ही बदतर हैं। परन्तु
ऐसे-ऐसे का भी कल्याण तो करना ही है। स्वर्ग में तो जायेंगे परन्तु ऊंच पद नहीं।
सजायें खाकर जायेंगे। ऊंच पद कैसे पायेंगे, वह तो बाप
ने समझाया है। एक तो स्वदर्शन चक्रधारी बनो और बनाओ। योगी भी पक्के बनो और बनाओ।
बाप कहते हैं मुझे याद करो। तुम फिर कहते बाबा हम भूल जाते हैं। लज्जा नहीं आती!
बहुत हैं जो सच बताते नहीं हैं,भूलते बहुत हैं। बाप ने
समझाया है कोई भी आये तो उनको बाप का परिचय दो। अब 84 का चक्र पूरा होता है, वापिस जाना है। राम गयो रावण गयो........ इसका भी अर्थ कितना सहज है। जरूर
संगमयुग होगा जबकि राम का और रावण का परिवार है। यह भी जानते हो सब विनाश हो
जायेंगे, बाकी थोड़े रहेंगे। कैसे तुमको राज्य मिलता है, वह भी थोड़ा आगे चल सब मालूम पड़ जायेगा। पहले से ही तो सब नहीं बतायेंगे
ना। फिर वह तो खेल हो न सके। तुमको साक्षी हो देखना है। साक्षात्कार होते जायेंगे।
इस 84 के चक्र को दुनिया में कोई नहीं जानते।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है हम वापिस जाते हैं। रावण राज्य से
अभी छुट्टी मिलती है। फिर अपनी राजधानी में आयेंगे। बाकी थोड़े रोज हैं। यह चक्र
फिरता रहता है ना। अनेक बार यह चक्र लगाया है,अब बाप कहते हैं जिस कर्मबन्धन में फँसे हो उनको
भूलो। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए भूलते जाओ। अब नाटक पूरा होता है, अपने घर जाना है, इस महाभारत लड़ाई बाद ही
स्वर्ग के गेट्स खुलते हैं इसलिए बाबा ने कहा है यह नाम बहुत अच्छा है, गेट वे टू हेविन। कोई कहते हैं लड़ाईयाँ तो चलती आई हैं। बोलो, मूसलों की लड़ाई कब लगी है, यह मूसलों की अन्तिम
लड़ाई है। 5000 वर्ष पहले भी जब लड़ाई लगी थी तो यह यज्ञ भी रचा था। इस पुरानी
दुनिया का अब विनाश होना है। नई राजधानी की स्थापना हो रही है।
तुम यह रूहानी पढ़ाई पढ़ते हो राजाई लेने के लिए। तुम्हारा धन्धा है
रूहानी। जिस्मानी विद्या तो काम आनी नहीं है, शास्त्र भी काम नहीं आयेंगे तो क्यों न इस
धन्धे में लग जाना चाहिए। बाप तो विश्व का मालिक बनाते हैं। विचार करना
चाहिए-कौन-सी पढ़ाई में लगें। वह तो थोड़े डिग्रियों के लिए पढ़ते हैं। तुम तो पढ़ते
हो राजाई के लिए। कितना रात-दिन का ॰फर्क है। वह पढ़ाई पढ़ने से भूगरे (चने) भी
मिलेंगे या नहीं, पता थोड़ेही है। किसका शरीर छूट जाए तो
भूगरे भी गये। यह कमाई तो साथ चलने की है। मौत तो सिर पर खड़ा है। पहले हम अपनी
पूरी कमाई कर लेवें। यह कमाई करते- करते दुनिया ही विनाश हो जानी है। तुम्हारी
पढ़ाई पूरी होगी तब ही विनाश होगा। तुम जानते हो जो भी मनुष्य-मात्र हैं, उनकी मुट्ठी में हैं भूगरे। उसको ही बन्दर मिसल पकड़ बैठे हैं। अब तुम रत्न
ले रहे हो। इन भूगरों (चनों) से ममत्व छोड़ो। जब अच्छी रीति समझते हैं तब भूगरों की
मुट्ठी को छोड़ते हैं। यह तो सब खाक हो जाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार
:-
1) रूहानी
पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी मुट्ठी भरनी है। चनों के
पीछे समय नहीं गँवाना है।
2) अब
नाटक पूरा होता है, इसलिए स्वयं को कर्मबन्धनों से
मुक्त करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना और बनाना है। मदर फादर को फालो कर राजाई पद
का अधिकारी बनना है।
वरदान:- एकमत और एकरस अवस्था द्वारा धरनी को फलदायक बनाने वाले
हिम्मतवान भव!
जब आप बच्चे हिम्मतवान बनकर संगठन में एकमत और एकरस अवस्था में
रहते वा एक ही कार्य में लग जाते हो तो स्वयं भी सदा प्रफुल्लित रहते और धरनी को
भी फलदायक बनाते हो। जैसे आजकल साइन्स द्वारा अभी-अभी बीज डाला, अभी-अभी फल मिला, ऐसे ही साइलेन्स के बल से सहज और तीव्रगति से प्रत्यक्षता देखेंगे। जब
स्वयं निर्विघ्न एक बाप की लगन में मगन, एकमत और एकरस
रहेंगे तो अन्य आत्मायें भी स्वत: सहयोगी बनेंगी और धरनी फलदायक हो जायेगी।
स्लोगन:- जो अभिमान को
शान समझ लेते, वह निर्मान नहीं रह सकते।
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