19-04-15 प्रात:मुरली
ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:23-11-79 मधुबन
नम्रता रूपी कवच द्वारा
स्नेह और सहयोग की प्राप्ति
आज सेवाधारियों का
ग्रुप है। मधुबन वासी अर्थात् सेवाधारी। जैसे ब्रह्मा बाप नम्बरवन विश्व सेवाधारी
है वैसे ही मधुबन निवासी अर्थात् बेहद के सेवाधारी। बेहद के सेवाधारी में बेहद के
गुण होते हैं। जैसे बाप को देखा
देखना भी बेहद की दृष्टि से, बोल भी बेहद
के अनहद बोल सुनना और सुनाना। सम्बन्ध और सम्पर्क में आना तो भी बेहद का सम्बन्ध, हर संकल्प में भी कि बेहद का कल्याण कैसे हो। संस्कार में भी बेहद का
त्याग और बेहद की तपस्या, दो चार घण्टे की तपस्या नहीं।
बेहद की तपस्या अर्थात् हर सेकेण्ड तपस्या स्वरूप, तपस्वी
मूर्त। मूर्त और सूरत से त्याग, तपस्या और सेवा
सदा साकार रूप में प्रत्यक्ष देखा। जैसे ब्रह्मा बाप मधुबन निवासी
जिसको ‘मधुबन के बाबा कहते’ ऐसी
धरती पर रहने वाले मधुबन निवासी व सेवाधारी ‘फालो फादर’ कर रहे हैं। लोग मधुबन वासियों के गुण गाते हैं और मधुबन वासी गुण मूर्त
हैं ऐसी बेहद की स्थिति में स्थित हो? अल्लाह अवलदीन के चिराग बनकर के चलते हो? अल्लाह
अवलदीन का चिराग बहुत मशहूर है। जिस चिराग द्वारा जो देखना चाहें, जो पाना चाहें, वह देख और पा सकते हैं। मधुबन
निवासी विशेष अल्लाह अवलदीन के चिराग हैं। सेकेण्ड में घर और राज्य दिखाने वाले
अर्थात् मुक्ति, जीवनमुक्ति देने वाले। महिमा तो इतनी
महान है लेकिन ऐसे हरेक अपने को महान समझ करके चलते हो? रिज़ल्ट में सबसे नम्बर वन मधुबनवासी होने चाहिए या हैं? जब तक ‘चाहिए’ शब्द
है, ‘होना चाहिए’ तो विश्व की
सर्व चाहनायें कैसे पूर्ण कर सकेंगे। जैसे कोई पावर फुल बॉम्ब गिरने से सारी ही
धरती का परिवर्तन हो जाता है तो मधुबन वासियों को भी ऐसा अभ्यास का पावरफुल बॉम्ब
मधुबन के अन्डरग्राउण्ड में तैयार करना चाहिए और उसकी रिहर्सल पहले यहाँ करनी
चाहिए। जितनी जो पॉवरफुल वस्तु होती है उतनी अति सूक्ष्म होती है। होती छोटी सी
चीज़ है लेकिन कार्य बहुत बड़ा करती है। ऐसी कोई नई बात निकालो जो वायब्रेशन चारों
ओर फैलें। ‘होना चाहिए’ यह
एक ही संकल्प तो सभी का है लेकिन फिर होता क्यों नहीं है उसका क्या कारण है? प्रैक्टिकल में कमी क्यों
हो जाती? कौन सी ऐसी दीवार है जो ‘होना चाहिए’के संकल्प को रूकावट डालती है। एक तरफ
संकल्प उठता है कि ‘होना चाहिए’ दूसरी तरफ फिर यह भी संकल्प आता कि ‘यह तो अन्त
समय होगा। अभी तो ऐसा ही चलेगा, अभी तो सभी का चलता है।’ऐसे ऐसे व्यर्थ संकल्पों की ईटों की दीवार खड़ी हो जाती है जो पुरूषार्थ
की तीव्र गति को रोक लेती है। इसको पार करने के लिए एक दृढ़ संकल्प का हाई जम्प
लगाओ वह कौन सा? हरेक समझे ‘मैं
करके दिखाऊंगा।’ ‘चाहिए’ को ‘करके दिखाऊंगा’ ऐसा दृढ़ संकल्प एक एक
इन्डीविजुअल अपने साथ करे। दूसरे को न देखे, न सुने। तो
एक एक मिलकर संगठन बन जायेगा।
एक दो मिलकर बारह हो
जायेंगे ऐसा हाई जम्प लगाओ, तब
ही बाप समान बेहद के सेवाधारी बनेंगे। समझा, सेवाधारियों
का क्या महत्व है? पहली सेवा यह है।
अलग अलग ग्रुप बनाओ।
जैसे शुरू में पुरूषार्थियों के ग्रुप थे। हमशरीक पुरूषार्थियों के ग्रुप हों।
उसमें अपने सप्ताह का प्लैन बनाओ। अमृतवेले क्या संकल्प रखेंगे, क्लास के समय विशेषता क्या
लेंगे,कर्मणा समय क्या लक्ष्य रखेंगे, शाम के समय योग में क्या विशेष अटेन्शन रखेंगे, सैर करते हुए कौन सी मन्सा सेवा द्वारा वायब्रेशन्स फैलायेंगे, रात को किस बात की चेकिंग करेंगे, ऐसे ग्रुप
बना करके रेस करो। ऐसा दिल का उमंग होना चाहिए। प्रोग्राम से अल्पकाल के लिए होता
है और मन का संकल्प अविनाशी होता है। यह संकल्प उठना चाहिए कि करेंगे और रिज़ल्ट
निकालेंगे तब चारों ओर यह वायब्रेशन्स फैलेंगे।
मधुबन है ही सारे विश्व
के अन्दर ऊंचा स्तम्भ। कहीं से भी देखो चाहे दूर से, चाहे नज़दीक से लेकिन स्तम्भ तो ऊंचा ही
दिखाई देता है। ऊंचा स्तम्भ होने के कारण सभी की नज़र जाती है तो यह है विशेष बेहद
सेवा। ब्रह्मा बाप समान कदम कदम चलना चाहिए। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा रात जाग
करके भी वायब्रेशन्स फैलाने का मंथन करते थे। तो ऐसे सब बच्चों का मंथन चलना
चाहिए। ऐसे नहीं कि जैसे कहेंगे, प्रोग्राम मिलेगा तो
करेंगे। नहीं। इस बात में करो और कराओ इस बात में जो
ओटे सो अर्जुन। सबको देखने से रह जायेंगे इसलिए जो करेगा उसको सब फालो करेंगे।
रोटी बनाते, कोई भी सेवा करते शक्तिशाली स्मृति स्वरूप
हो। मन्सा से विश्व की सेवा करो, विश्व सेवाधारी एक काम
नहीं डबल काम करते हैं। स्थूल हाथ चलते रहें और मन्सा से शक्तियों का दान देते
रहो। सदैव सेवा के समय यह ध्यान रखो कि गुण मूर्त होकर सेवा करें तो डबल जमा हो
जायेगा, सदैव डबल सेवा करो।
हर एक समझे कि मैं
निमित्त हूँ। जैसे भाषण में सुनाते हो ना कि अपने को बदलो तो विश्व बदल जायेगा। यह
बात स्वयं के लिए भी है ना। दूसरे की गलती को देख स्वयं ग़लती नहीं करो। दूसरे की
गलती देखने में आती है लेकिन मैं भी ग़लती कर रही हूँ वह दिखाई नहीं पड़ती। समझो
एक ग़लत बोल रहा है लेकिन उसके संग के रंग में खुद भी ग़लत बोलते हैं तो संग के
रंग का असर हो गया ना। अगर कोई ग़लती करता है तो हम राइट में रहें, उसके संग के प्रभाव में न
आऍ, प्रभाव में आने के कारण अलबेले हो जाते हो। तो इस
बात में पाण्डव आगे जायेंगे या शक्तियाँ। सिर्फ एक ज़िम्मेवारी उठा लो कि मैं राइट
के मार्ग पर ही रहूँगी। राँग को देख कर राँग नहीं। अगर दूसरा राँग करता है तो उस
समय समाने की शक्ति यूज़ करो। अगर यही संकल्प हरेक कर ले तो विश्व का परिवर्तन सहज
ही हो जायेगा। क्या यह नहीं कर सकते हो? मतलब कोई न कोई
प्लैन बनाओ। नये वर्ष में कोई नया कार्य करके दिखाना। एक दूसरे को श्रेष्ठ भावना
से सहयोग दो। किसी की ग़लती को नोट नहीं करो। लेकिन उसको सहयोग का नोट दो अर्थात्
सहयोग से भरपूर कर दो, शक्तिवान बना दो। इसने यह किया, यह ऐसा करता यह देखो ही नहीं, सुनो ही नहीं, नहीं तो अलबेलेपन के संस्कार
पक्के हो जायेंगे। दूसरे को देखेंगे, दूसरे की सुनेंगे
तो स्वयं अलबेले हो जायेंगे।
समय के प्रमाण अब
व्यर्थ के नाम निशान को भी खत्म करो। न व्यर्थ बोल, न व्यर्थ कर्म, न
व्यर्थ संग। व्यर्थ संग भी समय और शक्ति खत्म कर देता है। तो इस वर्ष कौन सा झण्डा
बुलन्द करेंगे?कोई कितना भी आपके बीच कमी ढूँढने की कोशिश
करे लेकिन जरा भी संस्कार स्वभाव का टक्कर दिखाई न दे। अगर आज सभी यह दृढ़ संकल्प
करके व्यर्थ के रावण को जला दें तो क्या हो जायेगा?सच्ची
दीपावली। ऐसी प्रतिज्ञा करो। अगर कोई गाली भी दे, इनसल्ट
भी करे, आप सेन्ट (सन्त) बन जाओ। कोई ग्लानी करे, आप फूलों की वर्षा करो। यह नहीं ऐसा कहा इसलिए ऐसा हुआ। उसने कुछ भी किया, अगर राँग भी किया तो आप राइट रहो। मानो किसी ने 10 बोला और आपने एक बोला
तो कमल पुष्प तो नहीं हुए ना। बूँद तो पड़ गई ना। अगर आप से कोई टक्कर लेता है तो
आप उसे अपने स्नेह का पानी दो, इससे अग्नि समाप्त हो
जायेगी। अगर कहते ‘यह क्यों’ ‘ऐसा क्यों’ तो उस पर तेल डाल देते हो। सदैव
नम्रता की ड्रेस पड़ी रहे। यह नम्रता है कवच। कवच उतार देते हो। जहाँ नम्रता होगी
वहाँ स्नेह और सहयोग अवश्य होगा। जहाँ स्नेह और सहयोग है वहाँ तेल नहीं डालते। तो
हरेक क्या करेंगे इस वर्ष?
संस्कार तो भिन्न भिन्न
रहेंगे ही लेकिन उन संस्कारों का अपने ऊपर प्रभाव न रहे। संस्कार तो अन्त तक किसी
के दासी के रहेंगे, किसी
के राजा के। ‘संस्कार बदल जाऍ’ यह इन्तज़ार नहीं करो लेकिन मेरे ऊपर किसी का प्रभाव न हो क्योंकि एक तो
हरेक के संस्कार भिन्न भिन्न हैं, दूसरा कोई न कोई माया
का रूप बनकर भी आते हैं। यह तो खत्म होगा ही नहीं लेकिन उसमें स्वयं साक्षी और कमल
पुष्प के समान सेफ रहें, यह तो कर सकते हो? बोलने वाला बोले लेकिन सुनने वाला न सुने, यह
तो हो सकता है ना! मर्यादा की लकीर के अन्दर रहकर कोई भी बात का फैंसला करो।
संस्कार भिन्न भिन्न होते हुए भी टक्कर न हो, इसके लिए
नॉलेजफुल हो जाओ। जब कहते हो हम विश्व कल्याणकारी हैं तो जरूर कोई अकल्याण वाले भी
हैं तब तो आप कल्याणकारी बनेंगे। अगर अकल्याण वाले ही न हों तो किसके कल्याणकारी
बनेंगे। अगर कोई कुछ राँग कर रहा है तो उसको परवश समझ कर रहम की दृष्टि से
परिवर्तन करो। डिसकस नहीं करो। अगर कोई पत्थर से रूक जाता है, तो अपना काम है पास करके चले जाना या उसको साथी बनाकर पार ले जाओ। अगर
इतनी हिम्मत नहीं है तो खुद तो नहीं रूको। क्रास करते हुए चलते जाओ। यह अटेन्शन
चाहिए। अगर देखना है तो विशेषता देखो। छोड़ना है तो कमियों को छोड़ो। सम्पर्क में
आना पड़ता है, देखना पड़ता है तो विशेषता ही दिखाई दे, नहीं तो बाप को देखो। हर एक यही संकल्प ले कि हमें शान्ति की, शक्ति की किरणें फैलानी हैं, तपस्वी मूर्त बनकर
रहना है, एक दूसरे को मन्सा से वा वाणी से भी अब सावधान
करने का समय नहीं, अब मन्सा शुभ भावना से एक दूसरे के
सहयोगी बनकर आगे बढ़ो और बढ़ाओ। अच्छा।
पार्टियों के साथ
अव्यक्त बापदादा की मधुर मुलाकातः
1) संगमयुग
वरदानी युग है - इस समय अपने को वरदानों से
सम्पन्न करो
सभी संगमयुग के विशेष
वरदानों से अपने को सम्पन्न बना रहे हो? संगमयुग को कहा ही जाता है वरदानी युग।
संगमयुग पर ही असम्भव, सम्भव होता है। सर्व परिवर्तन का
युग संगमयुग है। तो ऐसे युग पर श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले हीरो और हीरोइन एक्टर हो
इतना नशा सदा रहता है? संगमयुग पर ही सदा
सम्पन्न का वरदान मिलता है। द्वापर से कभी कभी अल्पकाल का मिलता है, संगमयुग को सदाकाल का वरदान है। अगर अभी भी कभी कभी का होगा तो सदाकाल का
कब होगा? संगमयुग पर नाम ही है शिव शक्ति। जैसे नाम
कम्बाइन्ड है वैसे सदा कम्बाइन्ड रहो, तो मायाजीत बन
जायेंगे। अभी कम्बाइन्ड शिव शक्ति, भविष्य लक्ष्य भी
कम्बाइन्ड विष्णु रूप का। तो डबल कम्बाइन्ड रूप हो ना। पाण्डव तो सदा याद में रहते
हैं ना! पाण्डव और शक्तियों का अभी भी गायन चल रहा है। जिनका अब तक गायन चल रहा है
उनका प्रैक्टिकल स्वरूप क्या होगा? सदा श्रेष्ठ स्वरूप।
नीचे आते ही क्यों हो?
जब किसी को ऊंची सीट
मिलती है तो कोई छोड़ता है क्या? आजकल देखो कांटों की कुर्सी को भी कोई नहीं छोड़ता। आपको तो बापदादा सदा
सुखदाई स्थिति की सीट दे रहे हैं। पोजीशन पर बिठा रहे हैं फिर नीचे क्यों आते हो? वह लोग कुर्सी के पिछाड़ी देखो कितना प्रयत्न करते हैं। मालूम भी है
दुखदाई है,फिर भी नहीं छोड़ते। तो आप श्रेष्ठ स्थिति की
कुर्सी को कभी भी नहीं छोड़ो। सदा अपने फरिश्तेपन की सीट पर सेट रहो तो सदा
अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहेंगे। बाप द्वारा इतना सहज वर्सा प्राप्त हो
तो और क्या चाहिए। अविनाशी वर्से को छोड़ क्यों देते हो? सिर्फ एक ही सहज बात तो याद करनी है हम बाप के और बाप हमारा। इसी एक बात
में सब समाया हुआ है। यह है बीज। बीज को पकड़ना तो सहज होता है ना। वृक्ष के
विस्तार को पकड़ना मुश्किल होता है। तो एक बात याद रखो। अब अभुल बनो। द्वापर
कलियुग से भूलने वाले बने और इस समय अभुल बनते हो। इस वरदान भूमि से विशेष अभुल
बनने का अर्थात् स्मृति स्वरूप बनने का ही वरदान ले जाना। विस्मृति को यहाँ ही
छोड़ करके जाना। विस्मृति के संस्कार समाप्त। कभी कोई बात हो तो यह वरदान याद
करना।
बाप बच्चों से मिलने
कहाँ से आते हैं? अगर
बच्चों को आना पड़ता है तो बाप को भी आना पड़ता है। आप तो इसी साकारी लोक से आते
हो, बाप तो इस लोक से भी परे से आता है। बाप का स्नेह
बच्चों के साथ सदा है। सदा बच्चों की याद ही बाप को रहती है और कोई काम है क्या
बाप को? बच्चों को याद करना, यही काम है ना। चाहे जाने या न जाने लेकिन बाप तो याद करते हैं। जैसे बाप
का काम है बच्चों को याद करना वैसे बच्चों का भी काम है बाप को याद करना। सदा
लवलीन रहो।
2) सदा सेफ्टी का साधन
है - याद की भट्ठी
ड्रामानुसार कलियुगी
दुनिया के दुःख और अशान्ति का नज़ारा देख बेहद के वैरागी बनते जायेंगे। कुछ भी
होता है, अपनी
सदा चढ़ती कला हो। दुनिया के लिए हाहाकार है और आपके लिए जय जयकार है। आप जानते हो
यह दुनिया हाहाकार होने वाली है। हाहाकार होना अर्थात् जाना। किसी भी परिस्थिति
में घबराना नहीं। हमारे लिए तैयारी हो रही है। साक्षी होकर सब प्रकार का खेल देखो।
कोई रोता है,चिल्लाता है, साक्षी
होकर देखने से मज़ा आता है। ‘क्या होगा?’ यह क्वेश्चन भी नहीं उठता। यह होना ही है। ऐसे अटल हो ना? अनेक बार यह सब हलचल देखी है और अब भी देख रहे हो। क्या भी हो दुनिया में, लेकिन याद की भट्ठी में रहने वाले सदा सेफ रहते हैं।
सभी सदा फरिश्तों के
समान डबल लाइट स्थिति में स्थित रहते हो। फरिश्तों का जो गायन है, वह हमारा गायन है ऐसे
अनुभव करते हो? इस पुरानी देह में रहते देह के भान से
न्यारे, इसको कहते हैं फरिश्ता
जीवन। यह फरिश्ता जीवन सदा हल्का होने के कारण ऊंची स्थति पर ही रहेंगे क्योंकि
हल्की चीज़ कभी नीचे नहीं आती। अगर नीचे की स्थिति पर आते तो जरूर बोझ है। फरिश्ता
अर्थात् निर्बन्धन, कोई भी रिश्ता नहीं, देह से रिश्ता नहीं। निमित्त मात्र कार्य के लिए आधार लिया फिर उपराम।
वरदान:- ब्रह्मा बाप
समान महा त्याग से महान भाग्य बनाने वाले नम्बरवन फरिश्ता सो विश्व महाराजन भव!
नम्बरवन फरिश्ता सो
विश्व महाराजन बनने का वरदान उन्हीं बच्चों को प्राप्त होता है जो ब्रह्मा बाप के
हर कर्म रूपी कदम के पीछे कदम उठाने वाले हैं। जिनका मन बुद्धि साकार में सदा बाप
के आगे समर्पित है। जैसे ब्रह्मा बाप ने इसी महात्याग से महान भाग्य प्राप्त किया
अर्थात् नम्बरवन सम्पूर्ण फरिश्ता और नम्बरवन विश्व महाराजन बनें ऐसे फालो फादर
करने वाले बच्चे भी महान त्यागी वा सर्वस्व त्यागी होंगे। संस्कार रूप से भी
विकारों के वंश का त्याग करेंगे।
स्लोगन:- अभी सब आधार टूटने हैं इसलिए एक बाप को अपना आधार
बनाओ।
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