17-05-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:03-12-79 मधुबन
विश्व-कल्याणकारी ही विश्व
का मालिक बन सकता है
बापदादा सर्व विश्व-कल्याणकारी बच्चों को देख
हर्षित होते हैं। जैसे बाप बेहद विश्व के कल्याणकारी हैं। बाप का सदा एक ही संकल्प
है कि सर्व का कल्याण अभी-अभी हो जाए। संकल्प का विशेष आधार इसी बात पर है। संकल्प
का बीज यह है - बाकी वैराइटी वृक्ष का विस्तार है। ऐसे ही बाप के बोल में सदा
बच्चों के कल्याण की भिन्न-भिन्न प्रकार की युक्तियाँ हैं। नयनों में बच्चों के
कल्याण के प्रति सर्चलाइट है। मस्तक में कल्याणकारी बच्चों की यादगार मणि के रूप
में है। हर कर्म में कल्याणकारी कर्म हैं। तो जैसे बाप के संकल्प वा बोल में, नयनों में सदा ही कल्याण की भावना व शुभ
कामना भरी हुई है, ऐसे आप बच्चे भी चाहे कोई
भी काम कर रहे हो, हद की प्रवृत्ति को चलाने
अर्थ या कोई भी सेवाकेन्द्र चलाने अर्थ निमित्त हो लेकिन सदा विश्व-कल्याण की
भावना हो। सदा सामने विश्व की सर्व आत्मायें इमर्ज हों। आपकी स्मृति के आधार से
चाहे कितनी भी दूर रहने वाली आत्मायें हों लेकिन आपके सदा समीप और सम्मुख दिखाई
दें। जैसे सेवा अर्थ आप लोगों का एक चित्र है भविष्य श्रीकृष्ण के रूप का। सारे
विश्व का गोला उनके हाथ में दिखाया है। विश्व का मालिक होने के कारण विश्व का गोला
उनके हाथ में दिखाया है। ऐसे वर्तमान समय भी विश्व-कल्याणकारी होने के नाते से
सारे विश्व की सर्व आत्मायें आपके मस्तक में सदा समीप हैं। यहाँ बैठे भी चाहे कोई
अमेरिका में या कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, सेकेण्ड में उस आत्मा को अपनी श्रेष्ठ भावना व श्रेष्ठ कामना
के आधार से शान्ति व शक्ति की रेज दे सकते हो। ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व को
कल्याण की रोशनी दे सकते हो।
जैसे साइन्स के साधनों द्वारा समय और आवाज
कितना भी दूर होते समीप हो गया है ना। जैसे प्लेन द्वारा समय कितना नजदीक हो गया
है, थोड़े समय में कहाँ से कहाँ पहुँच सकते हो।
टेलीफोन द्वारा आवाज कितना समीप हो गया है। लण्डन के व्यक्ति का आवाज भी ऐसे सुनाई
देगा जैसे सम्मुख बात कर रहे हैं। ऐसे ही टेलीवीजन के साधनों द्वारा कोई भी दृश्य
वा व्यक्ति दूर होते हुए भी सम्मुख अनुभव होता है। साइन्स तो आपकी रचना है। आप
मास्टर रचयिता हो। साइलेन्स की शक्ति से आप सब भी विश्व की किसी भी दूर रहने वाली
आत्मा का आवाज सुन सकते हो। कौन-सा आवाज? साइन्स मुख का आवाज सुनाने का साधन बन सकती है लेकिन मन का
आवाज नहीं पहुँचा सकती। साइलेन्स की शक्ति से हर आत्मा के मन का आवाज इतना ही समीप
सुनाई देगा जैसे कोई सम्मुख बोल रहा है। आत्माओं के मन में अशान्ति, दु:ख की स्थिति के चित्र ऐसे ही स्पष्ट दिखाई
देंगे जैसे टी.वी. द्वारा दृश्य वा व्यक्ति स्पष्ट देखते हो। जैसे इन साधनों का
कनेक्शन जोड़ा, स्विच ऑन किया और स्पष्ट
दिखाई और सुनाई देता है। ऐसे ही बाप से कनेक्शन जोड़ा, श्रेष्ठ भावना और कामना का स्विच ऑन किया तो
दूर की आत्माओं को भी समीप अनुभव करेंगे, इसको कहा जाता है विश्व- कल्याणकारी। ऐसी स्थिति को बनाने
के लिए विशेष कौन-सा साधन अपनाना पड़े?
इन सबका आधार है - साइलेन्स। वर्तमान समय
साइलेन्स की शक्ति जमा करो। मन का आवाज संकल्पों के रूप में आयेगा। मन का आवाज
अर्थात् व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर एक समर्थ संकल्प में रहो। संकल्पों के
विस्तार को समेट कर सार रूप में लाओ तब साइलेन्स की शक्ति स्वत: ही बढ़ती जायेगी।
व्यर्थ है बाह्यमुखता और समर्थ है
अन्तर्मुखता। ऐसे ही मुख के आवाज के भी व्यर्थ को समेट कर समर्थ अर्थात् सार में
लाओ तब साइलेन्स की शक्ति जमा कर सकेंगे। साइलेन्स की शक्ति के विचित्र प्रमाण
देखेंगे। ऐसे दूर की आत्मायें आपके सामने आकर कहेंगी कि आपने मुझे सही रास्ता
दिखाया। आपने मुझे ठिकाने का इशारा दिया। आपने मुझे बुलाया और मैं पहुँच गया। आपके
दिव्य स्वरूप उनके मस्तक रूपी टी.वी. में स्पष्ट दिखाई देंगे और अनुभव करेंगे कि
यह तो सम्मुख मिलन था। इतना स्पष्ट अनुभव करेंगे। इतनी साइलेन्स की शक्ति रूहानी
रंगत दिखायेगी। जैसे शुरू में भी दूर बैठे हुए ब्रह्मा बाप के स्वरूप को स्पष्ट
देखते इशारा मिलता था कि इस स्थान पर पहुँचो। ऐसे ही अन्त में आप सब विशेष विश्व-
कल्याणकारी आत्माओं का ऐसा ही विचित्र पार्ट चलना है। इसके लिए आत्मा को सर्व
बन्धनों से मुक्त, स्वतन्त्र होना चाहिए। जो
जब चाहें, जहाँ चाहें, जो शक्ति चाहें, उससे कार्य कर सकें। ऐसी निर्बन्धन आत्मा
अनेकों को जीवनमुक्त बना सकती है। समझा, कितनी ऊंचा मंजिल है?कहाँ
तक पहुँचना है? बेहद सेवा की रूपरेखा
कितनी श्रेष्ठ है? अनेक मेहनतों से छूट
जायेंगे। लेकिन एक मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसी हिम्मत है?
महाराष्ट्र को कोई महान कार्य करना चाहिए।
महाराष्ट्र ऐसी कमाल करके दिखाए। विहंग मार्ग की सर्विस तब होगी। एक सेकेण्ड में
कहाँ से कहाँ पहुँच सकते हो। महाराष्ट्र नाम से ही महान आत्मा बनना सहज होना
चाहिए। हर कर्म महान। हर बोल महान। सर्व महाराष्ट्र निवासी ऐसे महान हो ना?जिस भी आत्मा को देखें तो महान आत्मा अनुभव
हो। ऐसे हो ना? टीचर्स क्या समझती हैं? महाराष्ट्र में तो कोई समस्या होती नहीं होगी
ना? जहाँ महान हैं वहाँ समस्या समाप्त।
महाराष्ट्र अथवा महात्माओं का राष्ट्र। राष्ट्र अर्थात् स्थान। तो स्थान और स्थिति
समान है ना। सिर्फ यही याद रखो कि हम समान हैं तो नम्बरवन की निशानी है माया को
विन करने वाले विजयी। ऐसे है ना? क्या, क्यों तो नहीं है ना।
ऐसे सदा समर्थ, सदा एक श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहने
वाले, बाप-समान सदा
विश्व-कल्याणकारी, सदा एक ही लगन में मगन
रहने वाले, ऐसे श्रेष्ठ आत्माओं को
बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
टीचर्स के साथ:- टीचर्स का महत्व तब है जब
सदा मन, वाणी, कर्म, सम्पर्क में महानता दिखायें क्योंकि टीचर्स को महान बनने के
साधन मिले हुए हैं। वातावरण, संग, शुद्ध भोजन, सेवा, सम्पर्क और सम्बन्ध,सब महान बनने के साधन हैं। जो प्रवृत्ति में
रहते हैं उनको रहते हुए न्यारा रहना पड़ता है लेकिन टीचर तो हैं ही न्यारी। न्यारा
रहने का अभ्यास करने की जरूरत नहीं। कमाल उनकी है जो हंस और बगुले इकट्ठे रहते हैं
और फिर न्यारे रहते हैं। उस हिसाब से देखो तो टीचर को कितना भाग्य मिला हुआ है।
टीचर के लिए पुरूषार्थ सहज है। ऐसे अनुभव करते हो या मुश्किल लगता है? टीचर को अगर कहीं भी मुश्कित लगती है तो उसका
एक ही कारण है, वह कौन-सा है? टीचर अगर सारा समय अपने को बिजी रखें तो कभी
भी मुश्किल न हो।
बिजी रहने के लिए जैसे कर्मणा और वाचा सर्विस
तो करते हो ऐसे मन्सा की दिनचर्या भी सेट करो। मन्सा भी बिजी रहे तो मायाजीत सहज
बन सकते हो। अगर अपने को फ्री रखते तो फ्री देख माया भी आती है। बिजी रहो तो माया
भी किनारा सहज ही कर ले। अपने को बिजी करना नहीं आता है, मन्सा का चार्ट बनाना नहीं आता है तभी माया
आती है या मुश्किल लगता है। दूसरा - बिजी रखने के लिए पढ़ाई की तरफ अटेन्शन हो, पढ़ाई से दिल की प्रीत होनी चाहिए, जिसका दिल से पढ़ाई से प्यार होगा वह सदा
स्वयं और औरों को भी बिजी रख सकता है। अगर ऊपर का कभी-कभी का प्यार होगा तो स्वयं
भी कभी बिजी, कभी फ्री, उनको भी बिजी नहीं रख सकेंगे इसलिए सदा बिजी
रहकर स्वयं भी विघ्न-विनाशक और दूसरों को भी विघ्न-विनाशक बनाओ। तीसरा - प्लानिंग
बुद्धि बनो। पहले स्वयं का प्लान फिर सेवा का। प्लानिंग बुद्धि सदा बिजी रहेंगे।
डायरेक्शन पर चलने वाली बुद्धि कभी फ्री कभी बिजी रहेंगे। बाबा का डायरेक्शन ही
मिला हुआ है प्लानिंग बुद्धि बनो। स्व का और औरों का प्लान बनाओ। ऐसे प्लानिंग
बुद्धि हो या बना-बनाया प्लान मिलेगा तो करेंगे। पहले स्वयं के टीचर फिर औरों के।
टीचर स्टूडेन्ट को प्लान बनाकर देती है, ऐसे स्व का टीचर बनो फिर औरों का बनो।
अच्छा - सभी अपनी-अपनी लगन प्रमाण पुरूषार्थ
में आगे बढ़ रही हो ना? चढ़ती कला है ना? टीचर को तो सब फालो करने वाले होते हैं ना।
फालो फादर तो हैं लेकिन फिर भी निमित्त टीचर को सब देखते हैं। निमित्त बने हुए में
बाप को देखते हैं। अगर देखने वाला आइना ही खराब होगा तो बाप भी क्या स्पष्ट दिखाई
देगा। आइना अगर स्पष्ट और पावरफुल है तो कोई भी चीज को स्पष्ट और सहज देख और अनुभव
कर सकते हैं। ऐसे स्पष्ट और पावरफुल आइना हो जो कोई भी सामने आए और बाप का स्पष्ट
अनुभव कर सके।
बापदादा को टीचर की कोई भी कम्पलेन्ट सुनना
अच्छा नहीं लगता। टीचर अगर कोई कम्पलेन्ट करे कि मैं कमजोर हूँ, माया आती है या जिज्ञासु सन्तुष्ट नहीं रहते
हैं या मैं सन्तुष्ट नहीं रहती, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट टीचर
की सुनना भी अच्छा नहीं लगता। टीचर का काम है सबको कम्पलीट बनाना। अगर खुद की
कम्पलेन्ट होगी तो कम्पलीट कैसे बनायेंगी? टीचर को कभी भी अपने पुरूषार्थ में कोई कम्पलेन्ट नहीं रहनी
चाहिए। टीचर्स अर्थात् सम्पन्न, टीचर्स अर्थात विघ्न-
विनाशक। टीचर की महिमा बापसमान है। जो बाप की महिमा, वह टीचर की महिमा। समझा, टीचर्स का क्या महत्व है? ऐसा अविनाशी संगठन बनाओ जो कोई भी कम्पलेन्ट न रहे। वृद्धि
बहुत कर रहे हो सिर्फ विघ्न-विनाशक बनो और बनाओ।
पार्टियों के साथ बाप, टीचर और सतगुरू - इन तीनों सम्बन्धों से तीन
प्राप्तियाँ:-
सदा तीनों सम्बन्धों से वर्से को, पढ़ाई को और घर को याद करते चलते हो? बाप से वर्सा मिला, टीचर के सम्बन्ध से पढ़ाई मिली और सतगुरू के
सम्बन्ध से घर का रास्ता मिला और साथ चलेंगे। तो तीनों सम्बन्धों से जो तीनों
प्राप्तियाँ होती हैं वह सम्बन्ध और प्राप्ति सदा याद रहता है? समझते हो कि हम इतनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं जो
स्वयं परम आत्मा बाप, शिक्षक और सतगुरू बने हैं।
इससे बड़ा भाग्य और किसी का हो सकता है? ऐसा भाग्य तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि सर्व सम्बन्धों से
परम-आत्मा मिल जायेगा। यह असम्भव बात भी सम्भव साकार में हो रही है तो कितना भाग्य
है। सिर्फ बाप नहीं लेकिन शिक्षक और सतगुरू भी बनें। जैसे भक्त लोग कहते हैं भगवान
जब राजी हो जाते हैं तो छप्पर फाड़ कर देते हैं। तो यह भी इस आकाश तत्व को भी पार
कर, देने के लिए आ गये ना। वह तो सिर्फ छप्पर
फाड़कर कहते लेकिन यह तो आकाश तत्व से पार रहने वाले 5 तत्वों को भी पार करके
प्राप्ति करा रहे हैं तो कितने भाग्यशाली हुए। ऐसा भाग्य सदा याद रहे। यह तो आपकी
प्रैक्टिकल लाइफ बन गई ना, सिर्फ नॉलेज होगी तो भूल
सकते हो लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ की कोई भी बात भूलती नहीं हैं। सदा याद रहती है।
जैसे अपनी पास्ट लाइफ की बातें भूलना भी चाहते हो तो भी याद आ जाती हैं, यह फिर कैसे भूल सकती हैं? एक ही शब्द तो याद करना है। बाबा, बाबा कहते चलो तो सदा स्मृति स्वरूप रहेंगे।
दो वर्ष का बच्चा भी बाबा-बाबा कहता रहता है, तो आप इतने नॉलेजफुल के बच्चे एक ‘बाबा’
शब्द याद नहीं रख सकते हो? सहज मार्ग है ना - कठिन तो नहीं लगता? शक्ति सेना क्या समझती है? सदा एक बाप और आप तीसरा न कोई, ऐसे ही रहती हो ना? कोई तीसरी बात याद तो नहीं आती? बस बाप और बच्चा, बाप और मैं, इसी नशे में रहो। शक्ति सेना नष्टोमोहा हो या हद के घर में, बच्चों में मोह है। कुछ भी हो जाए लेकिन
निर्मोही, साक्षी होकर ड्रामा की सीन
देखते रहो।
पाण्डवों में होता है - रोब और क्रोध। पाण्डव
निक्रोधी बन गये हैं? क्या समझते हो? पाण्डवों ने इस पर विजय प्राप्त की है? जरा भी देहभान व रोब न हो। बिल्कुल
ब्रह्माकुमार निर्माणचित्त बन जाएँ। क्रोध को छोड़ा है कि थोड़ा-थोड़ा शस्त्र की रीति
से यूज करते हो! जो समझते हैं खत्म हो गया, वह हाथ उठावो। कोई गाली भी दे, कोई झूठा इल्जाम भी लगाये, लेकिन आपको क्रोध न आये। क्रोध आने की यही दो
बातें होती हैं एक जब कोई झूठी बात कहता है, दूसरा ग्लानि करता है। यही दो बातें क्रोध को जन्म देती
हैं। ऐसी परिस्थिति में भी क्रोध न आये, ऐसे हो? अपकारी के ऊपर उपकार करना, यही ब्राह्मणों का कर्म है। वह गाली दे आप
गले लगाओ, यही है कमाल, इसको कहा जाता है परिवर्तन। गले लगाने वाले
को गले लगाना - यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन निन्दा करने वाले को सच्चा मित्र मन से
मानो, मुख से नहीं। ऐसे बने हो? जब ऐसा परिवर्तन हो जायेगा तो विश्व के आगे
प्रसिद्ध हो जायेगा। जो दुनिया समझती है नहीं हो सकता, वह आप करके दिखाओ, तब कहेंगे – ‘कमाल’।
अच्छा।
वरदान:-अपने अधिकार की शक्ति द्वारा
त्रिमूर्ति रचना को सहयोगी बनाने वाले मास्टर रचता भव!
त्रिमूर्ति शक्तियां (मन, बुद्धि और संस्कार) यह आप मास्टर रचता की
रचना हैं। इन्हें अपने अधिकार की शक्ति से सहयोगी बनाओ। जैसे राजा स्वयं कार्य
नहीं करता, कराता है, करने वाले राज्य कारोबारी अलग होते हैं। ऐसे
आत्मा भी करावनहार है, करनहार ये विशेष
त्रिमूर्ति शक्तियां हैं। तो मास्टर रचयिता के वरदान को स्मृति में रख त्रिमूर्ति
शक्तियों को और साकार कर्मेन्द्रियों को सही रास्ते पर चलाओ।
स्लोगन:- अव्यक्त पालना के वरदान का अधिकार का अनुभव करने के लिए स्पष्टवादी
बनो।
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