24-05-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति अव्यक्त-बापदादा रिवाइज:05-12-79 मधुबन
विजय
का झण्डा लहराने के लिए रियलाइजेशन कोर्स शुरू करो
आज बापदादा अपनी रूहानी सेना को देख रहे थे।
सेना में सब प्रकार के नम्बरवार स्थिति अनुसार महारथी, घोड़े-सवार
और प्यादे देखे। महारथियों के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का झण्डा
लहरा रहा था। घोड़ेसवार अर्थात् सेकेण्ड नम्बर - उनके मस्तक अर्थात् स्मृति में विजय का झण्डा
तो था ही लेकिन सदा नहीं लहरा रहा था। कभी खुशी की झलक से व निश्चय की फलक से
झण्डा लहराता था और कभी झलक और फलक की वायु कम होने के कारण झण्डा लहराने की बजाए
एक ही जगह खड़ा हो जाता था। तीसरे, प्यादे बहुत प्रयत्न से
निश्चय की रस्सी से, खुशी की झलक से झण्डे को
लहराने के प्रयत्न में खूब लगे हुए थे। लेकिन कहीं-कहीं
कमजोरी की गाँठ होने के कारण अटक जाता था, लहराता नहीं था। फिर भी खूब पुरूषार्थ में लगे हुए थे। किसी-किसी का पुरूषार्थ के बाद लहराता भी था लेकिन
कुछ समय के बाद, कुछ मेहनत के बाद इसलिए वह
झलक और फलक नहीं थी। बाप-दादा बच्चों की मेहनत देख
दूर से सकाश भी दे रहे थे अर्थात् ईशारा दे रहे थे कि ऐसे करो। कोई-कोई बच्चे इशारे को देख सफल भी हो रहे थे
लेकिन कोई-कोई इतना मेहनत में बिजी
थे जो इशारे को कैच करने की फुर्सत ही नहीं थी। ऐसी सेना में तीनों प्रकार के
योद्धा देखे। जब मेहनत से या सहज ही सबका झण्डा अच्छी तरह से लहराने लगा तो झण्डे
के लहराने से ही विजय के पुष्पों की अर्थात् बाप और बच्चों के प्रत्यक्षता के पुष्पों
की वर्षा-समान रौनक हो गई। बच्चे जो
मेहनत कर रहे हैं उसका बाप-दादा सहज साधन सुनाते हैं।
समय पर व निरन्तर विजय का झण्डा क्यों नहीं
लहराता है, उसका कारण क्या है? आप लोग भी फंक्शन में झण्डा लहराते हो तो समय
पर क्यों नहीं लहराता है, कारण? पहले से रिहर्सल नहीं करते। ऐसे विजय का
झण्डा लहराने के लिए मुख्य बात रियलाइजेशन नहीं है। अमृतबेले से रियलाइजेशन कोर्स
शुरू करो। वर्णन तो सभी करते हो लेकिन वर्णन करना और रियलाइज करना अर्थात् अनुभूति
करना, उसमें अन्तर हो जाता है।
एक है सुनना वा सुनाना कि बाप से सर्व सम्बन्ध हैं। लेकिन हरेक सम्बन्धों की
अनुभूति वा प्राप्ति में मग्न रहो तो पुरानी दुनिया के वातावरण से सहज ही उपराम रह
सकते हो। हर कार्य के समय भिन्न-भिन्न सम्बन्ध का अनुभव कर
सकते हो। और उसी सम्बन्ध के सहयोग से निरन्तर योग का अनुभव कर सकते हो। हर समय बाप
के भिन्न-भिन्न सम्बन्धों का सहयोग
लेना अर्थात् अनुभव करना ही योग है। ऐसे सहज योगी वा निरन्तर योगी क्यों नहीं बनते
हो?बाप कैसे भी समय पर सम्बन्ध निभाने के लिए
बँधे हुए हैं। जब बाप साथ दे रहे हैं तो लेने वाले क्यों नहीं लेते। सहयोग लेना ही
योग कैसे होता है, यह अनुभव करो। माता का
सम्बन्ध क्या है, बाप का सम्बन्ध क्या है, सखा और बन्धु का सम्बन्ध क्या है, सदा साजन के संग का अनुभव क्या है... यह अलग-अलग सम्बन्ध का रहस्य अनुभव में आया है? अगर एक भी सम्बन्ध की अनुभूति से वंचित रह
गये तो सारा कल्प ही वंचित रह जायेंगे क्योंकि कल्प में अभी ही सर्व अनुभवों की
खान प्राप्त होती है। अब नहीं तो कभी नहीं। तो अपने आपको चेक करो कि किस सम्बन्ध
की अनुभूति अब तक नहीं कर पाये हैं! इसी प्रकार से ज्ञान की सबजेक्ट में जो भी प्वाइन्ट्स वर्णन
करते हो उस हर प्वाइन्ट् का अनुभव किया है? जैसे वर्णन करते हो हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं तो स्व के
दर्शन का अनुभव, किस आधार से कहते हो? दर्शन अर्थात् जानना। जानने वाला उस जानने की
अथॉरिटी में रहता है। जैसे आजकल के शास्त्रवादी सिर्फ शास्त्र पढ़ते हैं, रटते हैं फिर भी स्वयं अपने को शास्त्रों की
अथॉरिटी समझते हैं। आप सब रटते नहीं हो लेकिन उसमें रमण करते हो। रमण करने वाला
अर्थात् मनन द्वारा स्वरूप में लाने वाला, ऐसा सदा ज्ञान की अथॉरिटी अर्थात् सदा ज्ञान की हर प्वाइन्ट
के नशे में रहने वाला होगा। ऐसे हर ज्ञान की प्वाइन्ट के अथॉरिटी अर्थात् अनुभव के
नशे में रहते हो? इसी प्रकार से जो धारणा की
सब्जेक्ट में भिन्न-भिन्न गुणों का वर्णन करते
हो उस हर गुण के अनुभव की अथॉरिटी हो? स्पीकर हो, श्रोता हो या अथॉरिटी हो? इसी में नम्बर हो जाते हैं।
महारथी अर्थात् हर शब्द के अनुभव की अथॉरिटी।
घोड़ेसवार अर्थात् सुनने सुनाने वाले ज्यादा, अनुभव की अथॉरिटी में कम। तो सहज साधन क्या हुआ? रियलाइजेशन की कमी अर्थात् अनुभवी मूर्त बनने
की कमी। भक्ति और ज्ञान का विशेष अन्तर ही यह है। वह वर्णन है और यह अनुभव होता
है। निरन्तर योगी बनने का आधार - सदा सर्व सम्बन्धों का
सहयोग लो। अनुभवी बनो। समझा? अनुभव की खान को अच्छी तरह
से प्राप्त करो। थोड़ा-सा नहीं लेकिन सर्व
प्राप्ति करो। दो-तीन सम्बन्ध का,दो- तीन प्वाइन्ट का अनुभव नहीं लेकिन सर्व अनुभवी मूर्त।
मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी बनो तो सदा विजय का झण्डा लहराता रहेगा।
बाप का सर्व पर स्नेह है। महाराष्ट्र वालों
से भी स्नेह है। महाराष्ट्र वाले, सभी अनुभवी मूर्त बनना। तो
महाराष्ट्र की विशेषता सब विजयी हो जाएं। क्षत्रिय नहीं जो सदा ही मेहनत में लगे
रहें, लेकिन सदा विजयी। अब
क्षत्रिय-पन के समय की समाप्ति हो
गई। अगर इस समय तक भी क्षत्रिय रहेंगे तो चन्द्रवंशी बन जायेंगे। अब समय है
ब्राह्मण अर्थात् विजयी बनने का। बहुत काल का विजयी संस्कार चाहिए। अब तो समय ही
कम है। तो अब से विजयी-पन के संस्कार नहीं भरेंगे
तो चन्द्रवंशी बन जायेंगे इसलिए अपने भाग्य की लकीर को अभी भी परिवर्तन कर सकते
हो। अच्छा।
ऐसे सदा विजयी, सर्व सम्बन्धों के अनुभवों की अथॉरिटी, ज्ञान की हर प्वाइन्ट के अथॉरिटी, हर गुण के अनुभव की अथॉरिटी, सेवा की सबजेक्ट में आलराउन्डर और एवररेडी - इस विशेषता की अथॉरिटी,ऐसे बाप-समान
श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
महाराष्ट्र जोन की
पार्टियों के साथ - अव्यक्त
मुलाकात:
1. निश्चय बुद्धि के मन की खुशी की आवाज - पाना था जो पा लिया सदा
सर्व खजानों से सम्पन्न अर्थात् अपने को मालामाल समझते हो? जैसे बाप सदा सम्पन्न है, ऐसे बाप-समान
खजानों से सम्पन्न हो? कोई खजाने की कमी नहीं।
ऐसे मन से खुशी का आवाज निकलता है कि पाना था वो पा लिया?मुख का आवाज निरन्तर का नहीं हो सकता, लेकिन मन का आवाज निरन्तर अविनाशी है। तो यह
मन से आवाज निकलता है कि पा लिया है? अन्दर से आता है या अभी समझते हो कि पायेंगे, पा तो रहे हैं! अटल निश्चयबुद्धि बन गये हो? बच्चा बनना अर्थात् अधिकारी बनना। कभी भी अपने में भी संशय
न हो। सम्पूर्ण बनेंगे या नहीं? सूर्यवंशी बनेंगे या
चन्द्रवंशी? सदा निश्चयबुद्धि! जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में भी
निश्चय। स्वयं में अगर कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन
जायेगे। जैसे कोई एक बार भी शरीर से कमजोर हो जाता है, थोड़े समय में तन्दुरूस्त नहीं बन सका तो
कमजोरी के जर्म्स पक्के हो जाते हैं। ऐसे व्यर्थ संकल्प रूपी कमजोरी के जर्म्स
अपने अन्दर प्रवेश नहीं होने देना। नहीं तो उनको खत्म करना मुश्किल हो जायेगा।
जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, चाहे वह हलचल की सीन हो या अचल की, लेकिन दोनों में निश्चय। हलचल की सीन में भी
कल्याण का अनुभव हो। ऐसा निश्चयबुद्धि। वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबुद्धि - इसको कहते हैं विजयी। तो
निश्चय के आधार से विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी।
भिन्न-भिन्न
भाषा के होते हुए भी एक मत, एक बाप, एक ही निश्चय और एक ही मंजिल। सिर्फ सेवार्थ
भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहे हुए
हो। अगर सभी एक स्थान पर बैठ जाएं तो चारों ओर की सेवा कैसे होगी? जब सेवा समाप्त हो जायेगी तब सभी मधुबन आ
जायेंगे। लेकिन वह भी कौन आयेंगे? जो नष्टोमोहा होंगे। जिनकी
बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी। उस समय टेलीफोन व टेलीग्राम से बुलावा नहीं होगा, लेकिन बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से बुलावा
पहुँच जायेगा। ऐसी हालतें बनेंगी जो जिस ट्रेन से आपको पहुँचना होगा वही चलेगी, उसके बाद नहीं। अगर लाइन क्लीयर होगी तो साधन
भी मिल जायेंगे। नहीं तो कहीं-न-कहीं अटक जायेंगे इसलिए बहुतकाल का निरन्तर
योग चाहिए। योग ही कवच है, कवच वाला सदा सेफ रहता है।
सेफ्टी की ड्रेस है ही - याद का कवच।
मातायें तीव्र पुरुषार्थी हो ना? अभी घर में नहीं बैठ जाना, अभी ग्रुप बनाकर चारों ओर सेवा के लिए फैल
जाओ। सेन्टर खोलो। अगले साल देखेंगे कितने सेन्टर खोले। समस्याओं के पहले सबको
सन्देश दे दो। तो सभी आपके बहुत गुणगान करेंगे। अभी सेवाकेन्द्र खोलते जाओ। सन्देश
देने के लिए कोई साधन अपनाओ।
2) ड्रामा की नॉलेज से क्या-क्यों
के क्वेश्चन को समाप्त करने वाले ही प्रकृतिजीत और मायाजीत बनते हैं सभी
प्रकृतिजीत वा मायाजीत बने हो? यह 5 तत्व भी अपनी तरफ आकार्षित
न करें और 5 विकार भी वार न करें। ऐसे
मायाजीत और प्रकृतिजीत दोनों ही पेपर में पास हो! अगर कोई प्रकृति द्वारा पेपर आये तो पास होने की शक्ति धारण
हो गई है? हलचल में तो नहीं आयेंगे? जरा भी हलचल में आना अर्थात् फेल। यह क्या, यह क्यों, यह क्वेश्चन भी उठा तो क्या रिजल्ट होगी। अगर जरा भी कोई
प्रकृति की समस्या वार करने वाली बन गई तो फेल हो जायेंगे। कुछ भी हो, लेकिन अन्दर से सदा यह आवाज निकले - वाह मीठा ड्रामा। इतना
ड्रामा का ज्ञान पक्का किया है! या जब अच्छी बातें हैं तो
ड्रामा है, हलचल की बातें हैं तो हाय
हाय। हाय क्या हुआ? यह संकल्प में भी न आये, ऐसे मजबूत हो?क्योंकि
आगे चलकर अब ऐसी समस्यायें प्रकृति द्वारा भी आने वाली हैं, प्राकृतिक आपदायें तो दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली हैं ना। तो ऐसी स्थिति हो
जो कोई भी संकल्प में भी हलचल न हो। ऐसे अचल और अडोल बने हो? अगर बहुत समय का मायाजीत वा प्रकृतिजीत का
अभ्यास नहीं होगा तो रिजल्ट क्या होगी? एक सेकेण्ड का पेपर आना है। उस समय अगर तैयारी करने में लग
गये तो रिजल्ट निकल जायेगा। एक सेकेण्ड में पास हो जाएं, इसका अभ्यास चाहिए। अगर यह भी सोचा कि योग
लगायें, याद में बैठें तो भी
सेकेण्ड तो बीत जायेगा। युद्ध में ही शरीर छोड़ देंगे। पुरुषार्थी जीवन में युद्ध
करते-करते ही शरीर छूटा तो
रिजल्ट क्या होगी? चन्द्रवंशी बन जायेंगे
इसलिए हरेक सदा 108 की माला में आने का लक्ष्य
रखो। लक्ष्य श्रेष्ठ होगा तो लक्षण आटोमेटिकली आ जायेंगे। 16 हजार का लक्ष्य कभी नहीं
करना। नम्बरवन आने का पुरूषार्थ और लक्ष्य रखो।
शक्तियाँ सदा शस्त्रधारी श्रृंगारीमूर्त और
संहार करने वाली - दोनों ही स्वरूप में स्थित
रहती हो? कभी रोने वाली तो नहीं हो
ना? सदा हर्षित। मन से भी रोने वाली नहीं। जरा भी
माया से हार हुई तो मन से रोना होता है। माताओं को तो सदा खुशी में नाचना चाहिए - क्योंकि नाउम्मींद से
उम्मीदवार हो गई, बाप ने सिर का ताज बना
दिया तो कितनी खुशी होनी चाहिए। पाण्डव भी माताओं को देखकर खुश होते हैं क्योंकि
शक्तियाँ हैं ही पाण्डवों के लिए ढाल। ढाल मजबूत होगी तो वार नहीं होगा इसलिए
माताओं को आगे रखने में पाण्डवों को खुश होना चाहिए। अगर स्वयं आगे रहेंगे तो
डन्डे खाने पड़ेंगे। शक्तियों को आगे रखेंगे तो पाण्डवों की भी महिमा है। आगे रखना
भी आगे होना ही है।
3) अपनी विशेषता को जानने वाले ही विशेष आत्मा बनते हैं- जैसे बच्चे बाप के स्नेह
में सदा मगन रहते हैं वैसे बाप भी बच्चों की सेवा में ही सदा मगन रहते हैं। बच्चों
को बाप के सिवाए कोई नहीं और बाप को बच्चों के सिवाए कोई नहीं। जैसे आप बाप के गुण
गाते हो वैसे बाप भी हर बच्चे के गुण गाते हैं। रोज हर बच्चे की विशेषता और गुणों
को सामने लाते हैं क्योंकि जो भी बाप के बच्चे बने हैं वह हैं ही विशेष आत्मायें।
तो विशेष आत्माओं की विशेषता बाप भी गाते हैं। जैसे जौहरी हर रत्न की वैल्यु को
जानते हैं वैसे बाप भी हर बच्चे की श्रेष्ठता को जानते हैं। हर रत्न एक-दूसरे से श्रेष्ठ है। तो ऐसे श्रेष्ठ समझकर
चलते हो? साधारण नहीं हो। लास्ट
दाना भी साधारण नहीं है, बाप को जानने की विशेषता
तो लास्ट में भी है। आप लास्ट नहीं लेकिन फर्स्ट जाने वाले हो। अभी कोई भी नम्बर
फिक्स नहीं है। सब सीट खाली हैं। सीटी नहीं बजी है। सीटी बजेगी, सीट ले लेंगे। लास्ट वाला भी फास्ट जाकर
फर्स्ट ले सकता है। माता-पिता को छोड़ करके बाकी सब
सीटें खाली हैं। अभी तकदीर आपके हाथ में हैं,भाग्य-विधाता बाप ने तकदीर आपके हाथ में दे दी है
जो चाहो वह बनाओ। अभी इस संगम के समय को वरदान मिला है जो चाहे, जैसा चाहे, जितना चाहे उतना बना सकते हैं। तो ऐसे गोल्डन चान्स को
अपनाया है?
सेवा का कितना भी विस्तार हो लेकिन स्वयं की
स्थिति सार रूप में हो। अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक
सेकेण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो हो जाओ। टाइम न लगे। सेकेण्ड की बाजी है। एक
सेकेण्ड की बाजी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हो। जितनी चाहो उतनी बनाओ। अच्छा।
वरदान:- फुलस्टॉप की स्टेज द्वारा प्रकृति की
हलचल को स्टॉप करने वाले प्रकृतिपति भव!
वर्तमान समय हलचल बढ़ने का समय है। फाइनल पेपर
में एक तरफ प्रकृति का और दूसरी तरफ पांच विकारों का विकराल रूप होगा। तमोगुणी
आत्माओं का वार और पुराने संस्कार....सब
लास्ट समय पर अपना चांस लेंगे। ऐसे समय पर समेटने की शक्ति द्वारा अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी और अभी-अभी निराकारी स्थिति में स्थित होने का
अभ्यास चाहिए। देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। जब ऐसी
फुलस्टॉप की स्टेज हो तब प्रकृतिपति बन प्रकृति की हलचल को स्टॉप कर सकेंगे।
स्लोगन:- निर्विघ्न राज्य अधिकारी बनने के लिए निर्विघ्न सेवाधारी बनो।
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