Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

27-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादा मधुबन



27-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादा मधुबन
 

मीठे बच्चे - तुम्हारा लव एक बाप से है क्योंकि तुम्हें बेहद का वर्सा मिलता हैतुम प्यार से कहते हो - मेरा बाबा     
प्रश्न:- किसी भी देहधारी मनुष्य के बोल की भेंट बाप से नहीं की जा सकती है - क्यों?
उत्तर:- क्योंकि बाप का एक-एक बोल महावाक्य है। जिन महावाक्यों को सुनने वाले महान अर्थात् पुरूषोत्तम बन जाते हैं। बाप के महावाक्य गुल-गुल अर्थात् फूल बना देते हैं। मनुष्य के बोल महावाक्य नहींउनसे तो और ही नीचे गिरते आये हैं।
गीतः बदल जाए दुनिया
ओम् शान्ति।
गीत की पहली लाइन में कुछ अर्थ हैबाकी सारा गीत कोई काम का नहीं है। जैसे गीता में भगवानुवाच मनमनाभवमध्याजी भव यह अक्षर ठीक हैं। इसको कहा जाता है आटे में नमक। अब भगवान किसको कहा जाता हैयह तो बच्चे अच्छी रीति जान गये हैं। भगवान शिवबाबा को कहा जाता है। शिवबाबा आकर शिवालय रचते हैं। आते कहाँ हैंवेश्यालय में। खुद आकर कहते हैं-हे मीठे-मीठे लाडलेसिकीलधे रूहानी बच्चोंसुनती तो आत्मा है ना। जानते हो हम आत्मा अविनाशी हैं। यह देह विनाशी है। हम आत्मा अब अपने परमपिता परमात्मा से महावाक्य सुन रहे हैं। महावाक्य एक परमपिता परमात्मा के ही हैं जो महान् पुरूष पुरूषोत्तम बनाते हैं। बाकी जो भी महात्मायें गुरू आदि हैंउनके कोई महावाक्य नहीं हैं। शिवोहम् जो कहते हैं वह भी सही वाक्य हैं नहीं। अभी तुम बाप से महावाक्य सुनकर गुल-गुल बनते हो। कांटे और फूल में कितना फर्क है। अभी तुम बच्चे जानते हो हमको कोई मनुष्य नहीं सुनाते हैं। इस पर शिवबाबा विराजमान हैंवह भी आत्मा ही हैपरन्तु उनको कहा जाता है परम आत्मा। अभी पतित आत्मायें कहती हैं - हे परम आत्मा आओआकर हमको पावन बनाओ। वह है ही परमपितापरम बनाने वाला। तुम पुरूषोत्तम अर्थात् सब पुरूषों में उत्तम पुरूष बनते हो। वह हैं देवतायें। परमपिता अक्षर बहुत मीठा है। सर्वव्यापी कह देते हैं तो मीठापन आता नहीं। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो प्यार से अन्दर याद करते हैंवह स्त्री पुरूष तो एक-दो को स्थूल में याद करते हैं। यह है आत्माओं को परमात्मा को याद करनाबहुत प्यार से। भक्ति मार्ग में इतना प्यार से पूजा नहीं कर सकते। वह लव नहीं रहता। जानते ही नहीं तो लव कैसे हो। अभी तुम बच्चों का बहुत लव है। आत्मा कहती है मेरा बाबा। आत्मायें भाईभाई हैं ना। हर एक भाई कहते हैं बाबा ने हमको अपना परिचय दिया है। परन्तु वह लव नहीं कहा जाता है। जिससे कुछ मिलता है उसमें लव रहता है। बाप में बच्चों का लव रहता है क्योंकि बाप से वर्सा मिलता है। जितना जास्ती वर्साउतना बच्चे का जास्ती लव रहेगा। अगर बाप के पास कुछ भी प्रापर्टा है नहींदादे के पास है तो फिर बाप में इतना लव नहीं रहेगा। फिर दादे से लव हो जायेगा। समझेंगे इससे पैसा मिलेगा। अभी तो है बेहद का बाप। तुम बच्चे जानते हो हमको बाप पढ़ाते हैं। यह तो बहुत ही खुशी की बात है। भगवान हमारा बाप है। जिस रचता बाप को कोई भी नहीं जानते हैं। न जानने के कारण फिर अपने को बाप कह देते हैं। जैसे बच्चे से पूछो तुम्हारा बाप कौनआखरीन कह देते हैं हम। अभी तुम बच्चे जानते हो उन सब बापों का बाप है जरूरहमको जो अभी बेहद का बाप मिला हैउनका कोई बाप है नहीं। यह है ऊंच ते ऊंच बाप। तो बच्चों के अन्दर में खुशी रहनी चाहिए। उन यात्राओं पर जाते हैं तो वहाँ इतनी खुशी नहीं रहेगी क्योंकि प्राप्ति कुछ है नहीं। सिर्फ दर्शन करने जाते हैं। मुफ्त में कितने धक्के खाते हैं। एक तो यह टिप्पड़ घिसी और दूसरा फिर पैसे की टिप्पड़ घिसती। पैसे बहुत खर्च करतेप्राप्ति कुछ नहीं। भक्ति मार्ग में अगर आमदनी होती तो भारतवासी बहुत साहूकार हो जाते। यह मन्दिर आदि बनाने में करोड़ों रूपया खर्च करते हैं। तुम्हारा सोमनाथ का मन्दिर एक नहीं था। सब राजाओं के पास मन्दिर थे। तुमको कितने पैसे दिये थे - 5 हजार वर्ष पहले तुमको विश्व का मालिक बनाया था। एक बाप ही ऐसे कहते हैं। आज से 5 हजार वर्ष पहले तुमको राजयोग सिखाकर ऐसा बनाया था। अभी तुम क्या बन गये हो। बुद्धि में आना चाहिए ना। हम कितना ऊंच थेपुनर्जन्म लेते-लेते एकदम पट आकर पड़े हैं। कौड़ी मिसल बन पड़े हैं। फिर अभी हम बाबा के पास जाते हैं। जो बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। यह एक ही यात्रा है जबकि आत्माओं को बाप मिलते हैंतो अन्दर में वह लव रहना चाहिए। तुम बच्चे जब यहाँ आते हो तो बुद्धि में रहना चाहिए कि हम उस बाप के पास जाते हैंजिनसे हमको फिर से विश्व की बादशाही मिलती है। वह बाप हमको शिक्षा देते हैं-बच्चेदैवी गुण धारण करो।
सर्व शक्तिमान् पतित-पावन मुझ बाप को याद करो। मैं कल्प-कल्प आकर कहता हूँ कि मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। दिल में यह आना चाहिए हम बेहद के बाप के पास आये हैं। बाप कहते हैं मैं गुप्त हूँ। आत्मा कहती है मैं गुप्त हूँ। तुम समझते हो हम जाते हैं शिवबाबा के पासब्रह्मा दादा के पास। जो कम्बाइन्ड है उनसे हम मिलने जाते हैंजिससे हम विश्व के मालिक बनते हैं। अन्दर में कितनी बेहद खुशी होनी चाहिए। जब मधुबन में आने के लिए अपने घर से निकलते हो तो अन्दर में गद्गद् होना चाहिए। बाप हमको पढ़ाने के लिए आया हैहमको दैवीगुण धारण करने की युक्ति बताते हैं। घर से निकलते समय ही अन्दर में यह खुशी रहनी चाहिए। जैसे कन्या पति के साथ मिलती है तो जेवर आदि पहनती है तो मुखड़ा ही खिल जाता है। वह मुखड़ा खिलता है दु:ख पाने के लिए। तुम्हारा मुखड़ा खिलता है सदा सुख पाने के लिए। तो ऐसे बाप के पास आने समय कितनी खुशी होनी चाहिए। अभी हमको बेहद का बाप मिला है। सतयुग में जायेंगे फिर डिग्री कम हो जायेगी। अभी तो तुम ब्राह्मण ईश्वरीय सन्तान हो। भगवान बैठ पढ़ाते हैं। वह हमारा बाप भी हैटीचर भी हैपढ़ाते हैं फिर पावन बनाकर साथ में भी ले जायेंगे। हम आत्मा अब इस छी-छी रावण राज्य से छूटते हैं। अन्दर में अथाह खुशी होनी चाहिए - जबकि बाप विश्व का मालिक बनाते हैं तो पढ़ाई कितनी अच्छी रीति पढ़नी चाहिए। स्टूडेन्ट अच्छी रीति पढ़ते हैं तो अच्छे मार्क्स से पास होते हैं। बच्चे कहते हैं - बाबा हम तो श्री नारायण बनेंगे। यह है ही सत्य नारायण की कथा अर्थात् नर से नारायण बनने की कथा। वह झूठी कथायें जन्म-जन्मान्तर सुनते आये हो। अभी बाप से एक ही बार तुम सच्ची-सच्ची कथा सुनते हो। वह फिर भक्ति मार्ग में चला आता है। जैसे शिवबाबा ने जन्म लिया उसकी फिर वर्ष-वर्ष जयन्ती मनाते आये हैं। वह कब आयाक्या किया कुछ भी नहीं जानते। अच्छाकृष्ण जयन्ती मनाते हैंवह भी कब आयाकैसे आयाकुछ भी पता नहीं है। कहते हैं कंसपुरी में आता हैअब वह पतित दुनिया में कैसे जन्म लेगाबच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए - हम बेहद बाप के पास जाते हैं। अनुभव भी सुनाते हैं ना - हमको फलाने द्वारा तीर लगाबाबा आये हैं.....! बस उस दिन से लेकर हम बाप को ही याद करते हैं।
यह है तुम्हारी बड़े ते बड़े बाप के पास आने की यात्रा। बाबा तो चैतन्य हैबच्चों के पास जाते भी हैं। वह हैं जड़ यात्रायें। यहाँ तो बाप चैतन्य है। जैसे हम आत्मा बोलती हैंवैसे वह परमात्मा बाप भी बोलते हैं शरीर द्वारा। यह पढ़ाई है भविष्य 21 जन्म शरीर निर्वाह के लिए। वह है सिर्फ इस जन्म के लिए। अब कौन-सी पढ़ाई पढ़नी चाहिए वा कौन-सा धन्धा करना चाहिएबाप कहते हैं दोनों करो। सन्यासियों मिसल घरबार छोड़ जंगल में नहीं जाना है। यह तो प्रवृत्ति मार्ग है ना। दोनों के लिए पढ़ाई है। सब तो पढ़ेंगे भी नहीं। कोई अच्छा पढ़ेंगेकोई कम। कोई को एकदम झट तीर लग जायेगा। कोई तो तवाई मिसल बोलते रहेंगे। कोई कहते हैं-हाँहम समझने की कोशिश करेंगे। कोई कहेंगे यह तो एकान्त में समझने की बातें हैं। बसफिर गुम हो जायेंगे। कोई को ज्ञान का तीर लगा तो झट आकर समझेंगे। कोई फिर कहेंगे-हमको फुर्सत नहीं। तो समझो तीर लगा नहीं। देखोबाबा को तीर लगा तो फट से छोड़ दिया ना। समझा बादशाही मिलती हैउनके आगे यह क्या हैहमको तो बाप से राजाई लेनी है। अभी बाप कहते हैं वह धंधा आदि भी करो सिर्फ एक हफ्ता यह अच्छी रीति समझो। गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है। रचना की पालना भी करनी है। वह तो रचकर फिर भाग जाते हैं। बाप कहते हैं तुमने रचा है तो फिर अच्छी रीति सम्भालो। समझो स्त्री अथवा बच्चा तुम्हारा कहना मानते हैं तो सपूत हैं। नहीं समझते हैं तो कपूत हैं। सपूत और कपूत का पता पड़ जाता है ना। बाप कहते हैं तुम श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ बनेंगे। नहीं तो वर्सा मिल न सके। पवित्र बनसपूत बच्चा बन नाम बाला करो। तीर लग गया फिर तो कहेंगे-बसअभी तो हम सच्ची कमाई करेंगे। बाप आये हैं शिवालय में ले जाने। तो शिवालय में जाने लिए फिर लायक बनना है। मेहनत है। बोलोअब शिवबाबा को याद करो,मौत सामने खड़ा है। कल्याण तो उनका भी करना है ना। बोलोअब याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। तुम बच्चियों का फर्ज है पियर घर और ससुरघर का उद्धार करना जबकि तुम्हें बुलावा होता है तो तुम्हारा फर्ज है उनका कल्याण करना। रहमदिल बनना चाहिए। पतित तमोप्रधान मनुष्यों को सतोप्रधान बनने का रास्ता बताना है। तुम जानते हो हर चीज नई से पुरानी जरूर होती है। नर्क में सब पतित आत्मायें हैंतब तो गंगा में स्नान कर पावन होने जाते हैं। पहले तो समझें कि हम पतित हैं इसलिए पावन बनना है। बाप आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप नष्ट हो जायेंगे। साधू-सन्त आदि जो भी हैं - सबको यह मेरा पैगाम दो कि बाप कहते हैं मुझे याद करो। इस योग अग्नि से अथवा याद की यात्रा से तुम्हारी खाद निकलती जायेगी। तुम पवित्र बन मेरे पास आ जायेंगे। मैं तुम सबको साथ ले जाऊंगा। जैसे बिच्छु होता हैचलता जाता हैजहाँ नर्म ची॰ज देखता है तो डंक मार देता है। पत्थर को डंक मार क्या करेगातुम भी बाप का परिचय दो। यह भी बाप ने समझाया है - मेरे भगत कहाँ रहते हैंशिव के मन्दिर मेंकृष्ण के मन्दिर मेंलक्ष्मीनारायण के मन्दिर में। भगत मेरी भक्ति करते रहते हैं। हैं तो बच्चे ना। मेरे से राज्य लिया थाअब पूज्य से पुजारी बन गये हैं। देवताओं के भगत हैं ना। नम्बरवन है शिव की अव्यभिचारी भक्ति। फिर गिरते-गिरते अभी तो भूत पूजा करने लगे हैं। शिव के पुजारियों को समझाने में सहज होगा। यह सब आत्माओं का बाप शिवबाबा है। स्वर्ग का वर्सा देते हैं। अभी बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों। हम तुमको पैगाम देते हैं। अब बाप कहते हैं पतित-पावनज्ञान का सागर मैं हूँ। ज्ञान भी सुना रहा हूँ। पावन बनने के लिए योग भी सिखा रहा हूँ। ब्रह्मा तन से मैसेज दे रहा हूँ मुझे याद करो। अपने 84 जन्मों को याद करो। तुमको भगत मिलेंगे मन्दिरों में और फिर कुम्भ के मेले में। वहाँ तुम समझा सकते हो। पतित-पावन गंगा है या परमात्मा?
तो बच्चों को यह खुशी रहनी चाहिए कि हम किसके पास जाते हैंहै कितना साधारण। क्या बड़ाई दिखायेशिवबाबा क्या करे जो बड़ा आदमी दिखाई पड़ेसन्यासी कपड़े तो पहन नहीं सकते। बाप कहते हैं मैं तो साधारण तन लेता हूँ। तुम ही राय दो कि मैं क्या करूँइस रथ को क्या श्रृंगारूँवह हुसेन का घोड़ा निकालते हैंउनको श्रृंगारते हैं। यहाँ शिवबाबा का रथ फिर बैल बना दिया है। बैल के मस्तक में गोल-गोल शिव का चित्र दिखाते हैं। अब शिवबाबा बैल में कहाँ से आयेगा। भला मन्दिर में बैल क्यों रखा हैशंकर की सवारी कहते हैं। सूक्ष्मवतन में शंकर की सवारी होती है क्यायह सब है भक्ति मार्ग जो ड्रामा में नूँध है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) अपने आपसे प्रतिज्ञा करनी है कि अभी हम सच्ची कमाई करेंगे। स्वयं को शिवालय में चलने के लायक बनायेंगे। सपूत बच्चा बनकर श्रीमत पर चलकर बाप का नाम बाला करेंगे।
2) रहमदिल बन तमोप्रधान मनुष्यों को सतोप्रधान बनाना है। सबका कल्याण करना है। मौत के पहले सबको बाप की याद दिलानी है।

वरदान:- सभी को ठिकाना देने वाले रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल भव!  
रहमदिल बाप के रहमदिल बच्चे किसी को भी भिखारी के रूप में देखेंगे तो उन्हें रहम आयेगा कि इस आत्मा को भी ठिकाना मिल जाएइसका भी कल्याण हो जाए। उनके सम्पर्क में जो भी आयेगा उसे बाप का परिचय जरूर देंगे। जैसे कोई घर में आता है तो पहले उसे पानी पूछा जाता हैऐसे ही चला जाए तो बुरा समझते हैंऐसे जो भी सम्पर्क में आता है उसे बाप के परिचय का पानी जरूर पूछो अर्थात् दाता के बच्चे दाता बनकर कुछ न कुछ दो ताकि उसे भी ठिकाना मिल जाए।
स्लोगन:- यथार्थ वैराग्य वृत्ति का सहज अर्थ है-जितना न्यारा उतना प्यारा। 

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