28-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादा
मधुबन
मीठे बच्चे - अपने आपको देखो मैं फूल बना हूँ, देह-अहंकार
में आकर कांटा तो नहीं बनता हूँ? बाप आया है तुम्हें कांटे
से फूल बनाने
प्रश्न:- किस निश्चय के आधार पर बाप से अटूट प्यार रह सकता है?
उत्तर:- पहले अपने को आत्मा निश्चय करो तो बाप से प्यार
रहेगा। यह भी अटूट निश्चय चाहिए कि निराकार बाप इस भागीरथ पर विराजमान है। वह हमें
इनके द्वारा पढ़ा रहे हैं। जब यह निश्चय टूटता है तो प्यार कम हो जाता है।
ओम् शान्ति।
कांटे से फूल बनाने वाले भगवानुवाच अथवा बागवान भगवानुवाच। बच्चे जानते हैं कि
हम यहाँ कांटे से फूल बनने के लिए आये हैं। हर एक समझते हैं पहले हम कांटे थे। अब
फूल बन रहे हैं। बाप की महिमा तो बहुत करते हैं, पतित-पावन आओ। वह खिवैया है, बागवान
है, पाप
कटेश्वर है। बहुत ही नाम कहते हैं परन्तु चित्र सब जगह एक ही है। उनकी महिमा भी
गाते हैं ज्ञान का सागर, सुख का
सागर....... अभी तुम जानते हो हम उस एक बाप के पास बैठे हैं। कांटे रूपी मनुष्य से अभी हम
फूल रूपी देवता बनने आये हैं। यह एम ऑब्जेक्ट है। अब हर एक को अपनी दिल में देखना
है, हमारे
में दैवीगुण हैं? मैं
सर्वगुण सम्पन्न हूँ? आगे तो
देवताओं की महिमा गाते थे, अपने
को कांटे समझते थे। हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही....... क्योंकि 5 विकार हैं। देह-अभिमान भी बहुत कड़ा अभिमान है। अपने को आत्मा
समझें तो बाप के साथ भी बहुत प्यार रहे। अभी तुम जानते हो निराकार बाप इस रथ पर
विराजमान है। यह निश्चय करते-करते भी फिर निश्चय टूट पड़ता है। तुम कहते भी हो
हम आये हैं शिवबाबा के पास। जो इस भागीरथ प्रजापिता ब्रह्मा के तन में हैं, हम सभी
आत्माओं का बाप एक शिवबाबा है, वह इस रथ में विराजमान है। यह बिल्कुल पक्का
निश्चय चाहिए, इसमें
ही माया संशय में लाती है। कन्या पति के साथ शादी करती है, समझती
है उनसे बहुत सुख मिलना है परन्तु सुख क्या मिलता है, फट से
जाकर अपवित्र बनती है। कुमारी है तो माँ-बाप आदि सब माथा टेकते हैं क्योंकि पवित्र है।
अपवित्र बनी और सबके आगे माथा टेकना शुरू कर देती। आज सब उनको माथा टेकते कल खुद
माथा टेकने लगती।अब तुम बच्चे संगम पर पुरूषोत्तम बन रहे हो। कल कहाँ होंगे? आज यह
घर-घाट क्या है! कितना गंद लगा हुआ है! इसको
कहा ही जाता है वेश्यालय। सब विष से पैदा होते हैं। तुम ही शिवालय में थे, आज से 5 हजार वर्ष पहले बहुत सुखी थे। दु:ख का नामनिशान नहीं था। अब फिर ऐसा बनने के लिए
आये हो। मनुष्यों को शिवालय का पता ही नहीं है। स्वर्ग को कहा जाता है शिवालय।
शिवबाबा ने स्वर्ग की स्थापना की। बाबा तो सभी कहते हैं परन्तु पूछो फादर कहाँ है? तो कह
देते सर्वव्यापी है। कुत्ते-बिल्ली, कच्छ-मच्छ में कह देते हैं तो कितना फर्क हुआ! बाप
कहते हैं तुम पुरूषोत्तम थे, फिर 84 जन्म भोगकर तुम क्या बने हो? नर्कवासी
बने हो इसलिए सब गाते हैं-हे पतित-पावन आओ। अभी बाप पावन बनाने आये हैं। कहते हैं-यह अन्तिम जन्म वि्ष पीना छोड़ो। फिर भी समझते
नहीं। सभी आत्माओं का बाप अब कहते हैं पवित्र बनो। सब कहते भी हैं बाबा, पहले
आत्मा को वह बाबा याद आता है, फिर यह बाबा। निराकार में वह बाबा, साकार
में फिर यह बाबा। सुप्रीम आत्मा इन पतित आत्माओं को बैठ समझाती है। तुम भी पहले
पवित्र थे। बाप के साथ में रहते थे फिर तुम यहाँ आये हो पार्ट बजाने। इस चक्र को
अच्छी रीति समझ लो। अभी हम सतयुग में नई दुनिया में जाने वाले हैं। तुम्हारी आश भी
है ना कि हम स्वर्ग में जायें। तुम कहते भी थे कि कृष्ण जैसा बच्चा मिले। अभी मैं
आया हूँ तुमको ऐसा बनाने। वहाँ बच्चे होते ही हैं कृष्ण जैसे। सतोप्रधान फूल हैं
ना। अभी तुम कृष्णपुरी में चलते हो। आप तो स्वर्ग के मालिक बनते हो। अपने से पूछना
है-हम फूल बना हूँ? कहाँ देह-अहंकार में आकर कांटा तो नहीं बनता हूँ? मनुष्य
अपने को आत्मा समझने बदले देह समझ लेते हैं। आत्मा को भूलने से बाप को भी भूल गये
हैं। बाप को बाप द्वारा ही जानने से बाप का वर्सा मिलता है। बेहद के बाप से वर्सा
तो सभी को मिलता है। एक भी नहीं रहता जिसको वर्सा न मिले। बाप ही आकर सबको पावन
बनाते हैं, निर्वाणधाम
में ले जाते हैं। वह तो कह देते हैं-ज्योति ज्योत समाया, ब्रह्म
में लीन हो गया। ज्ञान कुछ भी नहीं। तुम जानते हो हम किसके पास आये हैं?यह कोई मनुष्य का सतसंग नहीं है। आत्मायें, परमात्मा
से अलग हुई, अब
उनका संग मिला है। सच्चा-सच्चा यह सत का संग 5 हजार वर्ष में एक ही बार होता है। सतयुग-त्रेता में तो सतसंग होता नहीं। बाकी भक्ति
मार्ग में तो अनेक ढेर के ढेर सतसंग हैं। अब वास्तव में सत तो है ही एक बाप। अभी
तुम उनके संग में बैठे हो। यह भी स्मृति रहे कि हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं, भगवान
हमको पढ़ाते हैं,तो भी अहो सौभाग्य।
हमारा बाबा यहाँ है, वह बाप, टीचर
फिर गुरू भी बनते हैं। तीनों ही पार्ट अभी बजा रहे हैं। बच्चों को अपना बनाते हैं।
बाप कहते याद से ही विकर्म विनाश होंगे। बाप को याद करने से ही पाप कटते हैं फिर
तुमको लाइट का ताज मिल जाता है। यह भी एक निशानी है। बाकी ऐसे नहीं कि लाइट देखने
में आती है। यह पवित्रता की निशानी है। यह नॉलेज और कोई को मिल न सके। देने वाला
एक ही बाप है। उनमें फुल नॉलेज है। बाप कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ।
यह उल्टा झाड़ है। यह कल्प वृक्ष है ना। पहले दैवी फूलों का झाड़ था। अभी कांटों का
जंगल बन गया है क्योंकि 5 विकार आ गये हैं। पहला मुख्य है देह-अभिमान। वहाँ देह-अभिमान नहीं रहता। इतना समझते हैं हम आत्मा हैं, बाकी
परमात्मा बाप को नहीं जानते। हम आत्मा हैं, बस। दूसरी कोई नॉलेज नहीं। (सर्प
का मिसाल) अभी
तुम्हें समझाया जाता है कि जन्म- जन्मान्तर की पुरानी सड़ी हुई यह खाल है जो अभी
तुमको छोड़नी है। अभी आत्मा और शरीर दोनों पतित हैं। आत्मा पवित्र हो जायेगी तो फिर
यह शरीर छूट जायेगा। आत्मायें सब भागेंगी। यह ज्ञान तुमको अभी है कि यह नाटक पूरा
होता है। अभी हमको बाप के पास जाना है, इसलिए घर को याद करना है। इस देह को छोड़ देना है, शरीर
खत्म हुआ तो दुनिया खत्म हुई फिर नये घर में जायेंगे तो नया संबंध हो जायेगा। वह
फिर भी पुनर्जन्म यहाँ ही लेते हैं। तुमको तो पुनर्जन्म लेना है फूलों की दुनिया
में। देवताओं को पवित्र कहा जाता है। तुम जानते हो हम ही फूल थे फिर कांटे बने हैं
फिर फूलों की दुनिया में जाना है। आगे चल तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे। यह है
खेलपाल। मीरा ध्यान में खेलती थी, उनको ज्ञान नहीं था। मीरा कोई वैकुण्ठ में गई
नहीं। यहाँ ही कहाँ होगी। इस ब्राह्मण कुल की होगी तो यहाँ ही ज्ञान लेती होगी।
ऐसे नहीं, डांस
किया तो बस बैकुण्ठ चली गई। ऐसे तो बहुत डांस करते थे। ध्यान में जाकर देखकर आते
थे फिर जाकर विकारी बनें। गाया जाता है ना-चढ़े तो चाखे बैकुण्ठ रस....... बाप भीती देते हैं - तुम बैकुण्ठ के मालिक बन सकते हो अगर ज्ञान-योग सीखेंगे तो। बाप को छोड़ा तो गये गटर में (विकारों
में)। आश्चर्यवत् बाबा का बनन्ती,सुनन्ती, सुनावन्ती फिर भागन्ती हो पड़ते हैं। अहो माया
कितनी भारी चोट लग जाती है। अभी बाप की श्रीमत पर तुम देवता बनते हो। आत्मा और
शरीर दोनों ही श्रेष्ठ चाहिए ना। देवताओं का जन्म विकार से नहीं होता है। वह है ही
निर्विकारी दुनिया। वहाँ 5 विकार होते नहीं। शिवबाबा ने स्वर्ग बनाया था। अभी तो नर्क है। अभी तुम फिर
स्वर्गवासी बनने के लिए आये हो, जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वही स्वर्ग में जायेंगे।
तुम फिर से पढ़ते हो, कल्प-कल्प पढ़ते रहेंगे। यह चक्र फिरता रहेगा। यह बना- बनाया
ड्रामा है, इनसे
कोई छूट नहीं सकता। जो कुछ देखते हो, मच्छर उड़ा, कल्प बाद भी उड़ेगा। इस समझने में बड़ी अच्छी
बुद्धि चाहिए। यह शूटिंग होती रहती है। यह कर्मक्षेत्र है। यहाँ परमधाम से आये हैं
पार्ट बजाने। अब इस पढ़ाई में कोई तो बहुत होशियार हो जाते हैं, कोई
अभी पढ़ रहे हैं। कोई पढ़ते-पढ़ते पुराने से भी तीखे हो जाते हैं।
ज्ञान सागर तो सबको पढ़ाते रहते हैं। बाप का बना और विश्व का वर्सा तुम्हारा
है। हाँ, तुम्हारी
आत्मा जो पतित है उनको पावन जरूर बनाना है, उसके लिए सहज ते सहज तरीका है बेहद के बाप को
याद करते रहो तो तुम यह बन जायेंगे। तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से वैराग्य
आना चाहिए। बाकी मुक्तिधाम, जीवनमुक्तिधाम
है और किसको भी हम याद नहीं करते सिवाए एक के। सवेरे-सवेरे उठकर अभ्यास करना है कि हम अशरीरी आये, अशरीरी
जाना है। फिर कोई भी देहधारी को हम याद क्यों करें। सवेरे अमृतवेले उठकर अपने से
ऐसी-ऐसी बातें करनी है। सवेरे को अमृतवेला कहा जाता
है। ज्ञान अमृत है ज्ञान सागर के पास। तो ज्ञान सागर कहते हैं सवेरे का टाइम बहुत
अच्छा है। सवेरे उठकर बहुत प्रेम से बाप को याद करो-बाबा, आप 5 हजार वर्ष के बाद फिर मिले हो। अब बाप कहते हैं
मुझे याद करो तो पाप कट जायेंगे। श्रीमत पर चलना है। सतोप्रधान जरूर बनना है। बाप
को याद करने की आदत पड़ जायेगी तो खुशी में बैठे रहेंगे। शरीर का भान टूटता जायेगा।
फिर देह का भान नहीं रहेगा। खुशी बहुत रहेगी। तुम खुशी में थे जब पवित्र थे।
तुम्हारी बुद्धि में यह सारा ज्ञान रहना चाहिए। पहले-पहले जो आते हैं जरूर वह 84 जन्म लेते होंगे। फिर चन्द्रवंशी कुछ कम, इस्लामी उनसे कम। नम्बरवार झाड़ की वृद्धि होती
है ना। मुख्य है डीटी धर्म फिर उनसे 3 धर्म निकलते हैं। फिर टाल-टालियाँ निकलती हैं। अभी तुम ड्रामा को जानते
हो। यह ड्रामा जूँ मिसल बहुत धीरे-धीरे फिरता रहता है। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड टिक-टिक चलती रहती है इसलिए गाया जाता है सेकेण्ड
में जीवनमुक्ति। आत्मा अपने बाप को याद करती है।बाबा हम आपके बच्चे हैं। हम तो
स्वर्ग में होने चाहिए। फिर नर्क में क्यों पड़े हैं। बाप तो स्वर्ग की स्थापना
करने वाला है फिर नर्क में क्यों पड़े हैं। बाप समझाते हैं तुम स्वर्ग में थे, 84 जन्म
लेते-लेते तुम सब भूल गये हो। अब फिर मेरी मत पर चलो।
बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे क्योंकि आत्मा में ही खाद पड़ती है। शरीर
आत्मा का जेवर है। आत्मा पवित्र तो शरीर भी पवित्र मिलता है। तुम जानते हो हम
स्वर्ग में थे, अब फिर
बाप आये हैं तो बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए ना। 5 विकारों को छोड़ना है। देह-अभिमान छोड़ना है। काम-काज करते बाप को याद करते रहो। आत्मा अपने माशूक
को आधाकल्प से याद करती आई है। अब वह माशूक आया हुआ है। कहते हैं तुम काम चिता पर बैठ
काले बन गये हो। अभी हम सुन्दर बनाने आये हैं। उसके लिए यह योग अग्नि है। ज्ञान को
चिता नहीं कहेंगे। योग की चिता है। याद की चिता पर बैठने से विकर्म विनाश होंगे।
ज्ञान को तो नॉलेज कहा जाता है। बाप तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। ऊंच ते ऊंच बाप है
फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी फिर और धर्मों के बाईप्लाट हैं। झाड़
कितना बड़ा हो जाता है। अभी इस झाड़ का फाउन्डेशन है नहीं इसलिए बनेन ट्री का मिसाल
दिया जाता है। देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है। धर्म भ्रष्ट, कर्म
भ्रष्ट बन गये हैं। अभी तुम बच्चे श्रेष्ठ बनने के लिए श्रेष्ठ कर्म करते हो। अपनी
दृष्टि को सिविल बनाते हो। तुम्हें अब भ्रष्ट कर्म नहीं करना है। कोई कुदृष्टि न
जाये। अपने को देखो-हम लक्ष्मी को वरने लायक बने हैं? हम
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हैं? रोज पोतामेल देखो। सारे दिन में देह-अभिमान में आकर कोई विकर्म तो नहीं किया? नहीं
तो सौ गुणा हो जायेगा। माया चार्ट भी रखने नहीं देती है। 2-4 दिन लिखकर फिर छोड़ देते हैं। बाप को ओना (ख्याल) रहता है ना। रहम पड़ता है-बच्चे, हमको याद करें तो उनके पाप कट जायें। इसमें
मेहनत है। अपने को घाटा नहीं डालना है। ज्ञान तो बहुत सहज है। अच्छा।
मीठे-मीठे
सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता
बापदादा का याद-प्यार
और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) सवेरे अमृतवेले उठकर बाप से मीठी-मीठी बातें करनी है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना
है। ध्यान रहे - बाप की याद के सिवाए दूसरा कुछ भी याद न आये।
2) अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध पवित्र बनानी है। दैवी
फूलों का बगीचा तैयार हो रहा है इसलिए फूल बनने का पूरा पुरूषार्थ करना है। कांटा
नहीं बनना है।
वरदान:-मरजीवा जन्म की स्मृति से सर्व
कर्मबन्धनों को समाप्त करने वाले कर्मयोगी भव!
यह मरजीवा दिव्य जन्म कर्मबन्धनी जन्म नहीं, यह कर्मयोगी जन्म है। इस अलौकिक दिव्य जन्म
में ब्राह्मण आत्मा स्वतन्त्र है न कि परतन्त्र। यह देह लोन में मिली हुई है, सारे विश्व की सेवा के लिए पुराने शरीरों में
बाप शक्ति भरकर चला रहे हैं, जिम्मेवारी बाप की है, न कि आप की। बाप ने डायरेक्शन दिया है कि
कर्म करो, आप स्वतन्त्र हो, चलाने वाला चला रहा है। इसी विशेष धारणा से
कर्मबन्धनों को समाप्त कर कर्मयोगी बनो।
स्लोगन:- समय की समीपता का फाउन्डेशन है-बेहद की वैराग्य वृत्ति।
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