[02-06-2012]
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - सच्चे बाप को अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल दो, हर बात में श्रीमत लेते रहो, इसमें ही तुम्हारा कल्याण है''
प्रश्न: अभी तुम कौन सा सौदा किस विधि से करते हो?
उत्तर: सरेन्डर बुद्धि बन कहते हो बाबा मैं आपका हूँ, यह तन-मन-धन सब आपका है। बाबा फिर कहते बच्चे स्वर्ग की बादशाही आपकी है। यह है सौदा। परन्तु इसमे सच्ची दिल चाहिए। निश्चय भी पक्का चाहिए। अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल बाप को देना है।
गीत:- तुम्हीं हो माता पिता...
ओम् शान्ति | बाप बैठ बच्चो को
समझाते हैं – बच्चे जानते है. अभी हम ब्रह्मकुमार कुमारियाँ श्रीमत का अर्थ तो जान
चुके है| शिवबाबा की मत से हम फिर से आदि सनातन देवी – देवता धर्म की स्थापना कर
रहे है | यह तुम हर एक को पता है- बरोबर कल्प-कल्प परमपिता परमात्मा आ करके
ब्रह्मा द्वारा बच्चे एडोप्ट करते है | तुम एडोपटेड ब्राह्मण ठहरे | गोद ले हुई है
| अदि सनातन देवी देवता धर्म जो प्राय: लोप हो चूका है, वह श्रीमत पर हम फिर से
स्थापन कर रहे है और हुबहू कल्प पहले मुआफिक. जो भी एक्ट चलती है, शिक्षा मिलती
है. कल्प पहले मुआफिक ड्रामा अनुशर हम एक्ट कर रहे है | जानते है हम श्री मत पर
अपना देवी स्वराज्य स्थापन कर रहे है | जो जो जितना पुरषार्थ करेगें क्योकि सेना
में कोई सतोप्रधान पुरुषार्थी, कोई सतो, कोई रजो प्रुशार्थी है | कोई महारथी, कोई
घुडस्वार, कोई प्यादे यह नाम दिए जाते है | बच्चो को कुशी होती
है, हम गुप्त है | स्थूल हथियार अदि कुछ चलने नहीं है | देवियों को हथियार अदि जो
देकते है वह है ज्ञान के अस्त्र शस्त्र | हथियारों का जिस्मानी बाहुबल हो गया |
मनुष्यों को यह पता ही नहीं है कि स्थूल तलवार अदि नहीं उठाते है, इनको ज्ञान के
बाण कहा जाता है | चतुर्भुज में जो अलंकार दिखाते है, उसमें भी ज्ञान का शंख है |
ज्ञान का चक्र, ज्ञान की गदा है | सब ज्ञान कि बाते है | समझाया जाता है, ग्रहस्थ
व्यहार में कमल फूल समान रहो तो कमल फूल भी देते है | अभी तुम प्रक्टिकल एक्ट में
हो | कमल फूल समान ग्रहस्थ व्यहार में रहते हुए तुम्हारी बुधि में ज्ञान है हम एक
बाप को याद करते हैं | यह कर्मयोग सन्यास है | अपनी रचना कि भी सम्भाल करनी है |
अभी तुम समझते हो कि पहले दुःख का ही व्यवहार था | एक दो को दुःख ही देते रहते थे
| यहाँ का सुख तो काग विष्टा समान छी छी है| विष्टा के कीडे. बन गए हैं | बच्चे
समझते है रात दिन का फर्क है | बाप हमें स्वर्ग का मालिक बनाते हैं | अभी हम नर्क
के मालिक है | नर्क में क्या सुख होगा | तुम बच्चे यह सुनते और समझते हो | बाप बच्चों
को यह नोलेज समझा रहे हैं बच्चो के लिए ही स्वर्ग है बच्चे ही अच्छी रीति समझते
होंगे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार | पहले पहले तो निश्चय चाहिए | निश्च्य बुधि
विजेयंती | निश्चय पक्का होगा तो वह निश्चय में ही रहेगा | एक तो शिव बाबा कि याद
रहेगी और खुशी का पारा चढ़ा रहेगा | सरेंडर बुधि भी होगा | कहते है बाबा मैं आप का
हूँ | यह तन मन धन सब आप का है | बाप भी कहते है – स्वर्ग कि बादशाही आप कि है |
देखो , सोदा कैसा है | सच्चा बच्चा बनना पड़े | बाप को सब मालूम पड़े कि बच्चे के
पास क्या है ? हम क्या देते है ! तुम्हारे पास क्या है ? बाप अच्छी रीति समझाते है
|
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अन्दर में कोई भी काम या क्रोध का अवगुण है तो उसे निकाल सच्चा-सच्चा खुदाई खिदमतगार बनना है। तूफानों में खबरदार रहना है। हार नहीं खानी है।
2) बाप के डायरेक्शन से सुदामें मिसल चावल मुट्ठी दे 21 जन्मों की बादशाही लेनी है।
वरदान: ब्राह्मण सो फरिश्ता सो जीवन-मुक्त देवता बनने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव
संगमयुग पर ब्राह्मणों को ब्राह्मण से फरिश्ता बनना है, फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुरानी देह के प्रति कोई भी आकर्षण का रिश्ता नहीं। तीनों से मुक्त इसलिए ड्रामा में पहले मुक्ति का वर्सा है फिर जीवनमुक्ति का। तो फरिश्ता अर्थात् मुक्त और मुक्त फरिश्ता ही जीवनमुक्त देवता बनेंगे। जब ऐसे ब्राह्मण सो सर्व आकर्षण मुक्त फरिश्ता सो देवता बनों तब प्रकृति भी दिल व जान, सिक व प्रेम से आप सबकी सेवा करेगी।
स्लोगन: अपने संस्कारों को इज़ी (सरल) बना दो तो सब कार्य इज़ी हो जायेंगे।
आपको सदेव इसी प्रकार मुरली मिलती रहेगी