परिवर्तन के लिए प्रतिज्ञा
1. अपनी लगन को ऐसी अग्नि का रूप बनाए जिस अग्नि में सर्व व्यर्थ संकल्प ,विशेष कमजोरी व विशेष संस्कार जो समय प्रति समय विघ्न बनता है ,सारे पुराने संस्कार भस्म हो जायें/तभी कहेंगे की स्वयं में परिवर्तन लाया /
2. मधुबन को अश्वमेध रूद्र- ज्ञान महायज्ञ कहा जाता है /महायज्ञ में महाआहुति डाली जाती है /इसमें अनेक आत्माओं के लगन की अग्नि की सामूहिक आहुति डालते हैं ,जिसमे सर्व कमजोरियां आगे के लिए भस्म हो जाती हैं /
3. आहुतु सम्पूर्ण समर्पण करने का साहश हो ,पुरानी दुनिया में काम आयेगी इस लिए थोडा रखना नहीं है / करें ना करें ,होगा नही होगा जैसे संशय वाले संकल्प करने से बुद्धि रुपी हाथ आगे पीछे हो जाता है जिससे सम्पूर्ण स्वाहा नहीं होता किनारा रह जाता है ,बिखर जाता है ,जब सम्पूर्ण स्वाहा नहीं तो सम्पूर्ण सफल नही होता /
4. पहले हिम्मत कम है फिर संकल्प पावरफुल नहीं है तो कर्म में बल भी नहीं होगा इसलिए फल भी कम होगा /
5. सोचना कम है करना ज्यादा है /विनाश न हुआ तो, स्वर्ग न आया तो ,पहुंचेगे या नहीं पहुंचेंगे ,लोग क्या कहेंगे ऐसे होशियार नहीं बनना है /हाथ आगे बढाकर सेंक लगने से हाथ खींचना नहीं है /थोड़ा विघ्न आने पर कदम पीछे नहीं करना है /
6. नालेज्फुल होते हुए भी कोई ना करे ,जान बूझ करके भी ना करे ,लाइर्ट रूप और might रूप होते हुए भी कोई ना करे तो इसका कारण है नालेज बुद्धि तक है समझ तक है इसे प्रक्टिकल में लाना और समाना नही आत्ता है /
7. जितना धारणा में आता है संस्कार बन जाता है ,नालेज्फुल का अर्थ है हर एक कर्मिन्द्रियों में नालेज समा जाये ,तब आँखे और वृत्ति धोखा नहीं खायेंगी /
8. सोंचते हैं फूल करने की बात और होती है आधी,सोचने और करने में अंतर हो जाता है इसका कारण है संकल्प रुपी बिज डालकर अलबेले हो जाते हैं /बिज की संभाल और पालना नही करते /मनसा और वाचा पर अटेन्सन नहीं देते /जैसे बिज को रोज पानी देते हैं वैसे संकल्पों को रोज रिवाइज नहीं करते /
9. पुरुषार्थ की एक भी कमी का दाग बहुत बड़ा दिखता है ,और यह छोटा सा दाग मेरी वेलु कम कर देता है /इसलिए आराम पसंद के संस्कार नहीं मगर चिंतन का संकल्प हो /चिंतन एक एक संस्कार के चिंता के रूप में होना चाहिए /
10. यह नहीं तो अलबेलापन है आराम पसंद देवता के स्टेज का संस्कार है /ब्राह्मणों के संस्कार त्यागमूर्त के हैं /त्याग बिना भाग्य नहीं बनता /
11. अच्छा कर लेंगे देखा जाएगा यह आराम पसंदी के संस्कार हैं ,जरूर करूंगा यह ब्राह्मंपन के संस्कार है /
12. अब शुभ चिंतन करने की,कमजोरी को दूर करने की सम्पूर्ण बनने की और प्रत्यक्ष फल देने की चिंता लगनी चाहिए /
1. अपनी लगन को ऐसी अग्नि का रूप बनाए जिस अग्नि में सर्व व्यर्थ संकल्प ,विशेष कमजोरी व विशेष संस्कार जो समय प्रति समय विघ्न बनता है ,सारे पुराने संस्कार भस्म हो जायें/तभी कहेंगे की स्वयं में परिवर्तन लाया /
2. मधुबन को अश्वमेध रूद्र- ज्ञान महायज्ञ कहा जाता है /महायज्ञ में महाआहुति डाली जाती है /इसमें अनेक आत्माओं के लगन की अग्नि की सामूहिक आहुति डालते हैं ,जिसमे सर्व कमजोरियां आगे के लिए भस्म हो जाती हैं /
3. आहुतु सम्पूर्ण समर्पण करने का साहश हो ,पुरानी दुनिया में काम आयेगी इस लिए थोडा रखना नहीं है / करें ना करें ,होगा नही होगा जैसे संशय वाले संकल्प करने से बुद्धि रुपी हाथ आगे पीछे हो जाता है जिससे सम्पूर्ण स्वाहा नहीं होता किनारा रह जाता है ,बिखर जाता है ,जब सम्पूर्ण स्वाहा नहीं तो सम्पूर्ण सफल नही होता /
4. पहले हिम्मत कम है फिर संकल्प पावरफुल नहीं है तो कर्म में बल भी नहीं होगा इसलिए फल भी कम होगा /
5. सोचना कम है करना ज्यादा है /विनाश न हुआ तो, स्वर्ग न आया तो ,पहुंचेगे या नहीं पहुंचेंगे ,लोग क्या कहेंगे ऐसे होशियार नहीं बनना है /हाथ आगे बढाकर सेंक लगने से हाथ खींचना नहीं है /थोड़ा विघ्न आने पर कदम पीछे नहीं करना है /
6. नालेज्फुल होते हुए भी कोई ना करे ,जान बूझ करके भी ना करे ,लाइर्ट रूप और might रूप होते हुए भी कोई ना करे तो इसका कारण है नालेज बुद्धि तक है समझ तक है इसे प्रक्टिकल में लाना और समाना नही आत्ता है /
7. जितना धारणा में आता है संस्कार बन जाता है ,नालेज्फुल का अर्थ है हर एक कर्मिन्द्रियों में नालेज समा जाये ,तब आँखे और वृत्ति धोखा नहीं खायेंगी /
8. सोंचते हैं फूल करने की बात और होती है आधी,सोचने और करने में अंतर हो जाता है इसका कारण है संकल्प रुपी बिज डालकर अलबेले हो जाते हैं /बिज की संभाल और पालना नही करते /मनसा और वाचा पर अटेन्सन नहीं देते /जैसे बिज को रोज पानी देते हैं वैसे संकल्पों को रोज रिवाइज नहीं करते /
9. पुरुषार्थ की एक भी कमी का दाग बहुत बड़ा दिखता है ,और यह छोटा सा दाग मेरी वेलु कम कर देता है /इसलिए आराम पसंद के संस्कार नहीं मगर चिंतन का संकल्प हो /चिंतन एक एक संस्कार के चिंता के रूप में होना चाहिए /
10. यह नहीं तो अलबेलापन है आराम पसंद देवता के स्टेज का संस्कार है /ब्राह्मणों के संस्कार त्यागमूर्त के हैं /त्याग बिना भाग्य नहीं बनता /
11. अच्छा कर लेंगे देखा जाएगा यह आराम पसंदी के संस्कार हैं ,जरूर करूंगा यह ब्राह्मंपन के संस्कार है /
12. अब शुभ चिंतन करने की,कमजोरी को दूर करने की सम्पूर्ण बनने की और प्रत्यक्ष फल देने की चिंता लगनी चाहिए /
No comments:
Post a Comment