Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

अंगद

अंगद
( किष्किन्धा कांड )
अंगद बाली का पुत्र था | वह बहुत समझदार, धार्मिक और शक्तिशाली व्यक्ति था | श्रीराम का असीम भक्त था और सुग्रीव(बाली का छोटा भाई ) के राज्य में बहुत बफादारी से सेवा करता था |
जब सीता को रावण ने चुराया तब अंगद को श्रीराम का  दूत बनाकर भेजने का निर्णय लिया गया | अंगद रामदूत बनकर रावण की सभा में प्रविष्ट हुआ | अंगद ने बहुत ही नम्रता से रावण को समझाया कि उसने सीता का अपहरण करके बहुत बड़ा पाप किया है इसलिए वो अपना अपराध स्वीकार कर, सीता जी को छोड़ , श्रीराम की शरण में आ जाए | घमंडी रावण ने अंगद को कहा कि वह उन्हें एक क्षण में उठा फेंकेगा | तब अंगद ने रावण को ललकारते हुए कहा कि इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं है | अगर वह अपनी शक्ति दिखाना चाहता है तो उसका एक पैर ही हिलाकर दिखाए | सभा में उपस्थित सभी राक्षस वीरो ने अंगद का पैर हिलाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु असमर्थ रहे | जब रावण अंगद के पैर को पकड़कर हिलाने के लिए आगे बढा तो अंगद ने कहा-" हे रावण ! मेरे पाँव पकड़ने की बजाए यदि श्रीराम की शरण लोगे तो पुण्य आत्मा बन जाओगे |"
  अध्यात्मिक भाव -
'निश्चय बुद्धि विजयंती ',अंगद की कहानी इस मंत्र का प्रत्यक्ष प्रमाण है | अंगद की अटूट भक्ति-भावना और सम्पूर्ण निश्चय श्रीराम में था इस लिए उसको कोई हिला नहीं सका | इसी तरह माया भी बुद्धिरूपी पाँव को हिलाने के लिए भिन्न-भिन्न रूपों से , भिन्न- भिन्न समय पर आती है जो निश्चय बुद्धि है उनका माया कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती है |

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