05-04-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:21-11-79 मधुबन
विश्व
परिवर्तन के लिए सर्व की एक ही वृत्ति का होना आवश्यक
आज बापदादा चारों ओर
के बच्चों के चेतन चित्रों द्वारा व हरेक के चेहरे द्वारा विशेष दो बातें चेक कर
रहे हैं। हरेक बच्चा सेन्स और इसेन्स में कहाँ तक सम्पन्न हुआ है अर्थात् ज्ञान
सम्पन्न और सर्व शक्ति सम्पन्न कहाँ तक बना है? जिसको रूप-बसन्त कहा जाता है। रूप-बसन्त अर्थात् सेन्स और
इसेन्स फुल।
आज बाप-दादा रूहानी
ड्रिल करा रहे थे। एक सेकेण्ड में संगठित रूप में एक ही वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन्स द्वारा वायुमण्डल को
परिवर्तन कर सकते हैं। नम्बरवार हर इन्डीविजुवल अपने-अपने पुरूषार्थ प्रमाण, महारथी अपने वायब्रेशन्स द्वारा
वायुमण्डल को परिवर्तन करते रहते हैं। लेकिन विश्व-परिवर्तन में सम्पूर्ण कार्य की
समाप्ति में संगठित रूप की एक ही वृत्ति और वायब्रेशन्स चाहिए। थोड़ी-सी महान
आत्माओं के वा तीव्र पुरुषार्थी महारथी बच्चों की वृत्ति व वायब्रेशन्स द्वारा
कहीं-कहीं सफलता होती भी रहती है लेकिन अभी अन्त में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की एक
ही वृत्ति की अंगुली चाहिए। एक ही संकल्प की अंगुली चाहिए तब ही बेहद का
विश्व-परिवर्तन होगा। वर्तमान समय विशेष अभ्यास इसी बात का चाहिए। जैसे कोई भी
सुगन्धित वस्तु सेकेण्ड में अपनी खुशबू फैला देती है। जैसे गुलाब का इसेन्स डालने
से सेकेण्ड में सारे वायुमण्डल में गुलाब की खुशबू फैल जाती है। सभी अनुभव करते
हैं कि गुलाब की खुशबू बहुत अच्छी आ रही है। सभी का न चाहते भी अटेन्शन जाता है कि
यह खुशबू कहाँ से आ रही है। ऐसे ही भिन्न-भिन्न शक्तियों का इसेन्स, शान्ति का, आनन्द का, प्रेम का, आप संगठित रूप में सेकेण्ड में फैलाओ।
जिस इसेन्स का आकर्षण चारों ओर की आत्माओं को आये और अनुभव करें कि कहाँ से यह
शान्ति का इसेन्स वा शान्ति के वायब्रेशन्स आ रहे हैं। जैसे अशान्त को अगर शान्ति
मिल जाए वा प्यासे को पानी मिल जाए तो उनकी ऑख खुल जाती है, बेहोशी से होश में आ जाते हैं। ऐसे इस
शान्ति वा आनन्द की इसेन्स के वायब्रेशन्स से अन्धे की औलाद अन्धे की तीसरी ऑख खुल
जाए। अज्ञान की बेहोशी से इस होश में आ जाएं कि यह कौन हैं, किसके बच्चे हैं, यह कौन-सी परम-पूज्य आत्मायें हैं!
ऐसी रूहानी ड्रिल कर सकते हो?
जब द्वापर के
रजोगुणी ऋषि-मुनि भी अपने तत्व योग की शक्ति से अपने आस-पास शान्ति के वायब्रेशन्स
फैला सकते थे यह भी आपकी रचना हैं। आप सब मास्टर रचयिता हो। वह हद के जंगल को
शान्त करते थे आप राजयोगी क्या बेहद के जंगल में शान्ति, शक्ति व आनन्द के वायब्रेशन्स नहीं
फैला सकते हो? अब इस
अभ्यास का दृढ़ संकल्प, निरन्तर का
संकल्प करो। हर मास इन्टरनेशनल योग का अभ्यास तो शुरू किया है लेकिन अब यही अभ्यास
ज्यादा बढ़ाओ। जैसे बसन्त रूप की विहंग मार्ग की सेवा मेले, कांफेर्रेंस वा योग शिविर करते हो। एक
ही समय संगठित रूप में अनेकों को सन्देश दे देते हो वा अखबारों द्वारा टी.वी. वा
रेडियो द्वारा एक ही समय अनेकों को सन्देश दे देते हो। ऐसे ही रूप अर्थात् याद बल
द्वारा, श्रेष्ठ
संकल्प के बल द्वारा ऐसी विहंग मार्ग की सर्विस करो। इसकी भी नई-नई इन्वेन्शन
निकालो। जब रूप-बसन्त दोनों की सेवा का बैलेन्स हो जायेगा तब ही अन्तिम समाप्ति
होगी। इसके लिए संगठित रूप का पुरूषार्थ कौन- सा है? जानते हो? उसी पुरूषार्थ का वर्णन और चित्र अब तक भक्ति में चल रहा
है। कौन-सा? पुरूषार्थ
का चित्र वा गायन क्या है? समाप्ति का
चित्र क्या दिखाया है? स्थापना के
वर्णन का चित्र भी वही है और समाप्ति का भी चित्र वही है। ब्रह्मा ने ब्राह्मणों
के साथ क्या किया? यज्ञ रचा तो
स्थापना का चित्र भी यज्ञ रचा। और समाप्ति में भी यज्ञ में सर्व ब्राह्मणों के
संगठित रूप में ‘स्वाहा’ के दृढ़ संकल्प की आहुति पड़े तब यज्ञ
समाप्त होना है अर्थात् विश्व-परिवर्तन का कार्य समाप्त होना है। तो पुरूषार्थ
कौन-सा रहा? एक ही शब्द
का पुरूषार्थ रहा कौन-सा? ‘स्वाहा’ जब स्वाहा हो जाता है तो हाय-हाय के
बजाए आहा हो जाती है। परिवर्तन हो गया ना। शब्द कहने में ही मजा आता है। अब अपने
से पूछो सर्व बातों में स्वाहा किया है? स्वाहा करना आता है?
जब संगठित रूप में
पुराने संस्कार, स्वभाव वा
पुरानी चलन के तिल वा जौं स्वाहा करेंगे तब यज्ञ की समाप्ति होगी। तिल और जौं यज्ञ
में डालते हैं ना। जब यज्ञ की समाप्ति होती है तब सब इकट्ठे स्वाहा कर देते हैं, तब ही यज्ञ सफल होता है। अगर एक भी
आहुति नहीं पड़ी तो अच्छा नहीं मानते हैं। तो पुरूषार्थ क्या हुआ? संगठित रूप में स्वाहा करो। अभी क्या
करते हो? अगर कोई
कहता भी है खत्म करो, स्वाहा करो
तो क्या करते हैं? स्वाहा करने
की बजाए संवाद चल पड़ता है। डिसकसन चल पड़ता है। वह संवाद बड़े अच्छे होते हैं। उसका
विषय ‘क्यों’ और ‘कैसे’
होता है। ऐसे संवाद या डायलॉग बहुत चलते हैं। बाप-दादा के पास वतन में रेड़ियो
पर वह बहुत आते हैं। कभी किसी स्टेशन से, कभी किसी स्टेशन से। उस समय के चित्र और एक्शन्स कैसे लगते
होंगे? जैसे आपकी
दुनिया में टी.वी. पर मिक्की माऊस का खेल आता है, ऐसे के नयन बड़े हो जाते, कभी मुख बड़ा हो जाता, कभी बहुत तीव्रगति से उतरती कला की
सीढ़ी टप-टप करके उतर आते हैं,
कभी माया के तूफान में उड़ जाते हैं, बैलेन्स नहीं रख सकते। अभी-अभी हँसते, अभी-अभी रोते हैं। ऐसे बाप-दादा भी कई
खेल देखते रहते हैं। जैसे सुनने में हँसी आती है तो करते समय स्वयं पर भी हँसी आ
जाए तो समाप्त हो जाए। तो सुनाया ‘स्वाहा’ नहीं करते।
अगर किसी के कुछ
पुराने संस्कार रह भी गये हैं वह स्वयं स्वाहा नहीं कर सकते तो संगठित रूप में
सहयोगी बनो। कैसे? अगर करने
वाला कर रहा है या बोल रहा है तो सुनने वाले, देखने वाले, देखें नहीं, सुने नहीं,
तो उसका करना भी समाप्त हो जायेगा। कोई गीत गाने वाला गा रहा है, डान्स वाला डान्स कर रहा है, देखने वाला, सुनने वाला कोई न हो तो स्वत: ही
समाप्त हो जायेगा। ऐसा सहयोग दो। इसको कहा जाता है ‘स्वाहा’। जब ऐसे
सहयोगी बनेंगे तब ही संगठित रूप में विश्व परिवर्तन कर सकेंगे। सेन्स के साथ
इसेन्स भी चाहिए। लेकिन जब सम्पर्क में आते हो, कार्य-व्यवहार में आते हो, कर्म बन्धनी प्रवृत्ति वा शुद्ध प्रवृत्ति
में आते हो तो सेन्स की मात्रा ज्यादा होती है इसेन्स की कम। सेन्स अर्थात् ज्ञान
की प्वाइंट्स अर्थात् समझ। इसेन्स अर्थात् सर्व शक्ति स्वरूप, स्मृति और समर्थ स्वरूप। सिर्फ सेन्स
होने के कारण ज्ञान को विवाद में ला देते हो। यह तो होगा ही, यह तो होना ही चाहिए। इसेन्स से
शक्तियों के आधार पर ज्ञान के विस्तार को प्रैक्टिकल जीवन के सार में ले आते हो।
इसीलिए विस्तार वा विवाद खत्म हो जाता है। थोड़े समय में स्वाहा कर आहा मैं! और आहा
मेरा बाबा! इसी में समा जाते हो। तो सेन्स और इसेन्स दोनों का बैलेन्स रखो तो हर
सेकेण्ड स्वाहा होते रहेंगे। संकल्प भी सेवा प्रति “स्वाहा”
बोल भी विश्व-कल्याण प्रति ‘स्वाहा’ हर कर्म भी विश्व परिवर्तन प्रति स्वाहा।
तो अपनापन अर्थात् पुरानापन स्वाहा हो जायेगा। बाकी रह जायेगा - बाप और सेवा। तो
समझा, क्या पुरूषार्थ करना
है? अपने देह की स्मृति
सहित-स्वाहा, तब एक
सेकेण्ड में वायब्रेशन्स द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकेंगे। समझा?
ऐसे सदा समर्थ, सदा सर्व के परिवर्तन करने में सहयोगी, सेन्स और इसेन्स का बैलेन्स रखने वाले
विश्व-परिवर्तन की एक ही धुन में रहने वाले, बाप और सेवा और कोई बात नहीं, ऐसी स्थिति में चलने वाले, ऐसे बाप समान महान आत्माओं को
बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
हुबली पार्टी - सदा बाप और
सेवा में मगन रहते हो? जो सदा बाप
और सेवा में तत्पर रहते हैं,
उनकी निशानी क्या होगी? सदा
विघ्न-विनाशक - कोई भी विघ्न उनकी लगन को मिटा नहीं सकते। कोई भी तूफान उस जागती
ज्योति को बुझा नहीं सकते। ऐसे जागती-ज्योति हो? अखण्ड ज्योति। भक्ति में भी आपके चित्रों के
आगे अखण्ड ज्योति जलाते हैं। क्यों जलाते हैं? चेतन्य स्वरूप में अखण्ड ज्योति स्वरूप रहे हो तब अखण्ड
ज्योति का यादगार रहता है। ज्योति के आगे कोई आवरण तो नहीं आता, तूफान हिलाता तो नहीं हैं? अपना भी स्वरूप ज्योति, बाप भी ज्योति और घर भी ज्योति तत्व
है। तो सिर्फ ज्योति शब्द भी याद रखो तो सारा ज्ञान आ जाता है। यही एक ‘ज्योति’ शब्द की सौगात ले जाना तो सहज ही
विघ्न-विनाशक हो जायेंगे!
अच्छा - हुबली
निवासियों ने अपने घर-घर में शिवालय बनाया है? पहले शिव के पुजारी रहे हो अभी स्वयं शिववंशी बन गये।
अधिकारी बन गये ना। अभी कुछ भी माँगने की चीज रही नहीं, सर्व खजाने स्वत: प्राप्त हो गये ना!
अब अधिकारी बन करके अनेकों को अधिकारी बनाने वाले हो, माँगने वाले नहीं। क्या करूँ - कैसे
करूँ, यह सब पुकार समाप्त।
अच्छा।
माताओं से अव्यक्त बापदादा की पर्सनल
मुलाकात
सभी शक्तियों के हाथ
में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा है ना? शक्तियों को जैसे और शास्त्र दिये हैं, अब शक्तियों को बाप को प्रत्यक्ष करने
का झण्डा लहराना है। हरेक शक्ति द्वारा बाप प्रत्यक्ष हो जाए। तभी जय-जयकार हो
जायेगी। शक्तियों द्वारा बाप की प्रत्यक्षता हुई है तभी सदा शिव-शक्ति इकट्ठा
दिखाया है। जो शिव की पूजा करेंगे वह शक्ति की जरूर करेंगे। बाप और शक्तियों का
गहरा सम्बन्ध है इसलिए पूजा साथ-साथ होती है। शक्तियों ने बाप की प्रत्यक्षता का
झण्डा लहराया है तभी तो पूजा होती है। झण्डा लहराना अर्थात् ऊंचा आवाज हो।
प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना अर्थात सभी तक आवाज सुनाई दे। बापदादा को शक्ति सेना
पर नाज है। जिनको किसी ने आगे नहीं बढ़ाया वह इतनी आगे बढ़ीं जो सारे विश्व को बदल
दें। जिन्हें लोगों ने ना-उम्मींद करके छोड़ दिया, बाप ने उन्हें उम्मींदवार बना दिया। पहले
शक्ति पीछे शिव। अपने को भी पीछे किया। तो ऐसे शिव बाप को कभी भी भूलना नहीं। सदा
अपना कम्बाइन्ड रूप ही देखो और कम्बाइन्ड रूप में चलो।
माताओं को देख कर
बहुत खुशी होती है। मातायें गिरी तो चरणों तक, चढ़ती हैं तो एकदम सिर का ताज। बहुत गिरा हुआ बहुत ऊंचा चढ़
जाए तो खुशी होगी ना। माताओं के लिए तो है ही एक खुशी का झूला। सदा उसी झूले में
झूलते रहो। माताओं को बाप द्वारा विशेष आगे जाने की लिफ्ट मिली है। थोड़ा-सा
पुरूषार्थ अपना और हजार गुणा मदद बाप की। एक कदम आपका और हजार कदम बाप के। माताओं
को सदा विशेष खुशी होनी चाहिए कि क्या से क्या बन गई। ना-उम्मींद से सर्व
उम्मींदों वाली जीवन बन गई, पास्ट की
जीवन में क्या थे, अब क्या बन
गये। दुनिया भटक रही है और आप ठिकाने पर पहुंच गये, तो खुशी होनी चाहिए ना!
शक्तियाँ अपने शक्ति
रूप में आ गई तो सभी को वायब्रेशन फैलता रहेगा। गृहस्थी में रहते ट्रस्टी होकर
रहेंगे तो न्यारी रहेंगी। अपना और अन्य का जीवन सफल बनाने के निमित्त बनेंगे। सदा
इसी नशे में रहो हम कल्प पहले वाली गोपियाँ हैं। बाप मिला सब-कुछ मिला। कोई
अप्राप्त वस्तु है ही नहीं। बाप के साथ सदा खुशी में नाचती रहो, दु:ख का नाम-निशान भी खत्म।
शक्तियों का मुख्य
गुण है निर्भय। माया से भी डरने वाली नहीं। ऐसी निर्भय हो? माया चाहे शेर के रूप में आये अर्थात्
विकराल रूप में आये लेकिन शक्तियाँ उस शेर पर भी सवारी करने वाली, इतनी निर्भय। जो निर्भय स्टेज पर रहते
उनका साक्षात्कार शक्ति रूप का होता है। सदा शास्त्रधारी। दुनिया आपको इसी रूप में
नमस्कार करने आयेगी।
मातायें सिर्फ बाप
के साथ सर्व सम्बन्ध निभाती रहें तो नम्बरवन ले सकती हैं। मातायें अगर नष्टोमोहा
में पास हो गई तो बहुत आगे नम्बर ले सकती हैं। माताओं के लिए यही सब्जेक्ट जरूरी
है। बापदादा माताओं को एक्स्ट्रा लिफ्ट देते हैं क्योंकि जानते हैं बहुत भटकी हैं, बहुत दु:ख देखे हैं अभी बाप माताओं के
पांव दबाते हैं अर्थात् सहयोग देते हैं। बाप को बहुत तरस पड़ता है। सारी जीवन गँवाई, अभी थोड़े समय में पास हो जाओ। अच्छा-
कुमारियों से अव्यक्त बापदादा की
मुलाकात
कुमारियाँ तो हैं ही
बाप की सेवा के हैण्डस। सब ब्रह्मा बाप की भुजायें हो ना! सभी तैयार हो। टोकरी
वाली हो या ताज वाली हो? या तो टोकरी
होगी या होगा ताज। दोनों साथ कैसे रखेंगे? सभी सहयोगी हो ना? जब कहें तब तैयार। डायरेक्शन प्रमाण चलने वाली हो ना? अगर तेजी से चलना शुरू करेंगी तो
मंजिल पर पहुँच जायेंगी। कुमारियाँ तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। कुमारियों को माया आती
है? जैसे कुमारियों को
और कोई पूंछ नहीं तो माया का पूंछ कहाँ से आया। जैसे और सबसे निर्बन्धन वैसे माया
से निर्बन्धन। कुमारियाँ अर्थात् निर्बन्धन, कोई भी पूंछ नहीं।
कुमारियाँ हैं ही
सदा डबल लाइट, न कर्मों के
बन्धन का बोझ और न आत्मा के ऊपर पिछले संस्कारों का बोझ। सभी बोझों से हल्के। ऐसे
हो ना? कुमारी
अर्थात् स्वतन्त्र, सब रीति से।
सिर्फ सम्बन्ध की रीति से नहीं,
तन से नहीं लेकिन मन से भी स्वतन्त्र। ऐसे हल्के हो ना? जितना याद में स्पीड बढ़ाती जायेंगी
उतना हल्की रहेंगे। याद ही साधन है डबल लाइट बनने का। तो सदा अपने को हल्का रखो।
कोई भी बात आये डोन्ट केयर। जम्प दे दो तो बात नीचे रह जायेगी। हल्के बहुत बड़ा
जम्प दे सकते हैं।
वरदान:- व्यर्थ को
भी शुभ भाव और श्रेष्ठ भावना द्वारा परिवर्तन करने वाले सच्चे मरजीवा भव !
बापदादा की श्रीमत
है बच्चे व्यर्थ बातें न सुनो,
न सुनाओ और न सोचो। सदा शुभ भावना से सोचो, शुभ बोल बोलो। व्यर्थ को भी शुभ भाव से सुनो। शुभ चिंतक बन
बोल के भाव को परिवर्तन कर दो। सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रखो, स्वयं को परिवर्तन करो न कि अन्य के
परिवर्तन का सोचो। स्वयं का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है, इसमें पहले मैं-इस मरजीवा बनने में ही
मजा है। इसी को ही महाबली कहा जाता है। इसमें खुशी से मरो-यह मरना ही जीना है, यही सच्चा जीयदान है।
स्लोगन:- संकल्पों की एकाग्रता श्रेष्ठ परिवर्तन में
फास्ट गति ले आती है।
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