Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

अव्यक्त मुरली 26-8-12


2 6 -0 8 - 12   प्रात:मुरली  ओम् शान्ति  "अव्यक्त-बापदादा”  रिवाइज: 1 1 - 0 2 - 7 5 मधुबन

माया से युद्ध करने वाले पाण्डवों के लिए धारणायें

पाण्डवों के लिये जो कल्प पाले का गायन है, क्या वह सब विशेषताये वर्तमान समय जीवन में अनुभव होती हैं? यह जो गायन है कि उन्होंने पहाडों पर स्वयं को गलाया- इसका रहस्य क्या है? किस बात में गलाया? सूक्ष्म बात का ही यादगार स्थूल रूप में होता है। जैसे चैतन्य का यादगार स्थूल में होता है,  वैसे ही सूक्ष्म को स्पष्ट करने के लिये दृष्टान्त दिया जाता है । स्वयं को सफलता मूर्त बनाने के निमित्-पुरुषार्थियों के पुरूषार्थ में जो विघ्न सामने आते है, उन विघ्नों के कारण क्या  स्वयं को स्रफलतामूर्त नहीं बना सकते है? या बार-बार उसी स्वभाव व संस्कार के कारण असफलता होती है जिसको निजी संस्कार व नेचर कहा जाता है । तो ऐसे निजी संस्कारों को गलाना अर्थात स्वयं को गलाना जिससे देखने या सम्पर्क में आने वाले यह महसूस करें' कि इस आत्मा ने स्वयं को गलाया है । इसमें सफलता है !
 ड्रामा प्रमाण जितना सहज़योगी, श्रेष्ठ योगी और सफलतामूर्त बनने की सेलवेशन प्राप्त है, उतना ही रिटर्न दिया है? वातावरण की भी सेलवेशन है तो इसका रिटर्न वातावरण को पॉवरफुल बनाकर रखने मे, सहयोगी बनने में रिटर्न दो । साथ-साथ श्रेष्ठ संग है, यह भी सेलवेशन है तो जो भी आत्मायें अपना भाग्य प्राप्त करने के लिए आती है उन्हें को भी अपने संग की श्रेष्ठता का अनुभव हो। यह है रिटर्न | सब अनुभव करें कि यह सब आत्मायें संग के रंग में रंगी हुई है । श्रेष्ठ बनेंगे रूहानी संग से और अपने चरित्रों द्वारा। तो अपने कर्मयोगी की स्टेज द्वारा और अपने गुणमूर्त स्वरूप द्वारा आने वाली आत्माओँ के लिए एग्जाम्पल बन, साधन बन उनकी सहज प्राप्ति का साधन बन जाओ । आपका प्रैक्टिकल साकार स्वरूप का सैम्पल देख उनमें विशेष उमंग-उत्साह रहे । सदैव हर बात में यहीं संकल्प रखना चाहिए कि हर कार्य में, हर प्रैक्टिकल सबूत के पहले हम सेम्पल है । हर बात में हम सैम्पल है - जब ऐसा लक्ष्य रखेंगे तब ही पुरूषार्थ की गति को तीव्र कर सकेगें । भले ही आराम के साधन प्राप्त है, परन्तु आराम-पसन्द नहीं बन जाना है । पुरूषार्थ में भी आराम पसन्द नहीं होना अर्थात् अलबेला नहीं होना है । आराम के साधनों का एडवांटेज (लाभ) सदा काल की प्राप्ति का विघ्न रूप नहीं बनाना । यह अटेनसन रखना है। अगर किसी भी प्रकार की सिद्धि अथवा प्राप्ति को स्वीकार किया तो वहाँ कम हो जायेगा । साधन मिलते हुए भी उसका त्याग । प्राप्ति होते हुए भी त्याग करना उसको हीँ त्याग कहा ज्ञाता है । जबकि है ही अप्राप्ति, सको त्याग दो तो यह मजबूरी हुई न कि त्याग । इतना अटेन्सन अपने ऊपर रखते हो अथवा सहजयोग का यह अर्थ समझते हो कि सहज साधनों द्वारा योगी बनना है! हर बात में अटेन्सन रहे कि माइनस हो रहा है या पलस हो रहा है? अच्छा!


विदेशों में ईश्वरीय सेवा का महत्व
बापदादा के सम्मुख कौन-से बच्चे सदा रहते है? सदा सम्मुख रहने वाले बच्चों को विशेषता क्या है? ऐसी विशेष आत्माओं के प्रति बाप-दादा को विशेष रूप से मिलन मनाना होता है । ऐसे बच्चों को नयनों सितारे व जहान के नूर कहा जाता है । जैसे स्थूल शरीर के अन्दर सबसे विशेष और सदा आवश्यक अंग नयन है । नयन नहीं तो जहान नहीं । इसी प्रकार ऐसे बच्चे इतने विशेष गाये हुए है । ऐसे बच्चे सर्विसबुल होने के कारण विश्व के लिये व जहान के लिए नूर अर्थात् प्रकाश व ज्योति के समान है । जैसे जीवन के लिए नयन आवश्यक है वैसे ही जहान के लिए नूर आवश्यक है । अगर ऐसी आत्मायें निमित्त नहीं बनें तो जहान जंगल बन जाता है अर्थात् जहान, जहान नहीं रहता । ऐसे सदा स्वयं को भी सितारा ही समझकर कर्म करते है सितारा भी चमकता हुआ सितारा । ऐसे बच्चे हीँ बाप- दादा के नयनों में समाये हुए अर्थात बाप की लगन में सदा मग्न रहने वाले है। साथ-साथ उनके नयनों में भी सदा बाप-दादा समाया हुआ रहता है । ऐसे नयनों के नूर सिवाय बाप के और कोई भी व्यक्ति व वस्तु को देखते हुए भी नहीं देखते । ऐसी स्थिति बनी है अथवा अब तक भी और कुछ दिखाई देता है?  किसी में भी अंश-मात्र कोई रस दिखाई देता है ? असार संसार अनुभव होता है? यह सब मरे ही पड़े है-ऐसा बुद्धि द्वारा अनुभव होता है? मुर्दों से कोई प्राप्ति की इच्छा हो सकती है, क्या कोई सम्बन्ध की अनुभूति होती है? ऐसे इच्छा मात्रम् अविद्या, सदा एक के रस में रहने वाले, एकरस स्थिति वाले बन चुके हो अथवा अब तक भी मुर्दों से किसी प्रकार के प्राप्ति की कामना है या कोई विनाशी रस अपनी तरफ आकर्षित करते हैँ? जब तक कोई प्राप्ति को इच्छा व कामना है या कोई रस का आकर्षण है तो बाप-दादा के नयनों के सितारे नहीं बन सकते व सदा नयनों में बाप-दादा ममा नहीं सकते । एक है ऐसी विशेष आत्मायें जिन्हें को नूरें-रत्न  व नयनों के सितारे व जहान के नूर कहते है । तो फर्स्ट नम्बर में तो नयनों  के नूर है ।
सेकेण्ड नम्बर क्या  है? जैसे नूरे रत्न प्रसिद्ध है । नूरे जहान व जहान के नूर,  इसी प्रकार सेकेण्ड नम्बर वाले किस रूप में प्रसिद्ध हैं? भुजाओं के रूप में! ब्रह्मा की भुजायें अनेक दिखाते हैं। सेकेण्ड नम्बर वाली भुजायेँ जरूर है अर्थात् सहयोगी आत्मायें है ।
तो स्वयं को फर्स्ट नम्बर में समझते हो या सेकेण्ड नम्बर के ? लण्डन का ग्रुप कौन से नम्बर में है? जबकि डबल विदेशी ग्रुप ने बाप-दादा का विशेष आहवान किया है । विदेशी तो सब है लेकिन यह डबल विदेशी है । तो डबल विदेशियों को विशेष रूप से बाप-ददा का शो करना पडे । वह तब कर सकेंगे जब नयनों के नूर बनेगे, भूजाये नहीं । विदेशियों को सर्विस का नया प्लैन बनाना चाहिए। जैसे भारत में निवास करने वाली सर्विसेबुल आत्मायें नईं-नईं इन्वेन्शन निकालती है, ऐसे डबल विदेशियों ने क्या इन्वेन्सन निकाली है? जैसे भारत में निकली हुई इन्वेन्शन विदेश में भी करते हो वैसे विदेश की इन्वेन्शन फिर भारत में हो । जैसे प्रदर्शनी, फेयर, प्रोजेक्टर-शो व गीता पाठशालाये, यह भारत में निवास करने वालों की इन्वेन्शन है । ऐसे विदेशियों ने क्या इन्वेन्शन की है? (मौरीशियस में प्राइममिनिस्टर को बुलाया था) किसी को बुलाना- यह भी यहॉ से शुरू हुआ है लेकिन उसको प्रैक्टिकल में पहले वहाँ लाया है। यह तो ठीक है, जो कुछ किया है उसके लिए बाप-दादा धन्यवाद कहते है । लेकिन वहॉ से कोई नयी इन्वेन्शन (खोज) निकली है? विदेशियों को ऐसी कोई विहंग-मार्ग की सर्विस इन्वेन्शन विदेश के वातावरण प्रमाण निकालनी है, जो थोड़े समय के अन्दर विदेश में सन्देश पहुँच जाए । टी.वी. व रेडियों में आप लोगों का आता है वह तो वहाँ के लिए कॉमन (सामान्य) बात है। जैसे आपका आता है वैसे औरों का भी आता है। इण्डिया में यह बडी बात है। लेकिन यही बात कईं स्थानों में कॉमन है । तो जितना पुरूषार्थ किया है, थोडे समय में हिम्मत, उमंग, उत्सीह दिखलाते हुए सर्विस को आगे बढाया है उसके लिये बाप-दादा लास्ट इज फास्ट का टाइटल तो देते ही हैँ। लेकिन अब आपस में सब विदेशी मिलकर ऐसी नईं इन्वेन्शन निकालो जो विदेश में इतना फोर्स का आवाज़ हो जो वह भारत वासियों तक पहुँचे । विदेश की सर्विस का मूल फाउंडेशन ही यह है कि विदेश की आवाज द्वारा भारत के कुम्भकरण जागेंगें । विदेश-सर्विस की एम आँब्जेक्ट (लक्ष्य और उद्देश्य) यह है । विदेश का विदेश में दिखाया यह दवाई बडी बात नहीं है । उस लक्ष्य से विदेश की सेवा ड्रामा में नूंधी हुई है । और अब तक भी कोई भी इन्वेन्शन का आवाज़ विदेश से ही होता आया है । इन्वेन्शन भारत की ही होती है लेकिन भारतवासी भारत की इन्वेन्शन को विदेशियों द्वारा ही मानते आये है । ऐसे ही यह ईश्वरीय प्रत्यक्षता की आवाज विदेश सर्विस ही भारत में नाम-बाला करेगी । तो विदेशी इस कार्य अर्थ निमित्त बने हुए हैं। इसलिये अब ऐसी इन्वेन्शन निकालो, कोई ऐसी आत्मा को निमित्त बनाओ जिनके अनुभव का आवाज हो, मुख का आवाज़ नहीं । अनुभव का आवाज विदेश से भारत तक पहुंचे । अन्तिम समय में विदेश सेवा को इतना महत्व क्यो दिया है, जबकि जाने वालों का भी संकल्प होता है कि ऐसे नाजुक व नजदीक समय पर विदेश में क्यो भेजा जाता है? जबकि अन्त में विदेश से भारत में ही आना है। फिर भी विदेश सेवा आगे बढ़ रही है। अच्छे- अच्छे हैणड्स विदेश-सेवार्थ भेजे जा रहे है, जबकि भारत में आवश्यकता है। निमन्त्रण है- फिर भी क्यो भेजा जा रहा है? और यह भी जानते है कि अन्य मत मतान्तरों का स्वर्ग में आने का पार्ट नहीं है, लेकिन जो ट्रॉन्सफर हो गये है व कन्वर्ट हो गये है उन आत्माओं को अपने आदि धर्म में लाने के लिये भेजा जाता है, जो बहुत थोडे होंगे । इसका मूल आधार व विदेश सर्विस की एम- आँब्जेक्ट यह है कि विदेश द्वारा भारत तक आवाज़पहुंचने का राज ड्रामा में नूंधा हुआ है इसलिए विदेश की सर्विस को फर्स्ट चान्स दिया हुआ है । बाकी गीता पाठशालाये खोली व टी.वी. में बोला वह कोई एम- 
आँब्जेक्ट नहीं। वह सब साधन है एम- आँब्जेक्ट तक पहुँचने के । समझा? तो अब आपस में ऐसी राय करों कि \जल्दी से जल्दी भारत तक आवाज कैसे फैलाये? विदेश द्वारा भारत में आवाज कैसे हो? 
आज खास विदेशियों के लिये बाप-दादा को भी विदेशी बनना पडा है। बाप-दादा विदेशी न बनते तो मिल भी न सके । विदेशी विशेष आत्मायें, जोकि विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई है, ऐसे होवनहार ग्रुप को देखने के लिए व साकार रूप में मिलने के लिये निराकार और अस्कार को भी साकार रूप का आधार लेना पडा । ऐसी विशेष आत्मायें सदा अपने को विशेष आत्मा समझते हुए मन्सा, वाचा, कर्मणा विशेष संकल्प, वाणी और कर्म करते रहो । दोनों ही तरफ के ग्रुप्स अच्छे है । आप लोगों के निमित्त अन्य आत्माओं को भी चान्स मिल गया और सब आत्माये, उसमें भी विशेष मधुबन निवासी अपने को सदा लकीएस्ट समझो क्योकि सिवाय मधुबन के बाप-दादा कहाँ भी मिलन नहीं मना सकते । (लुसाका में क्यो नहीं आते) आकारी रूप में यहाँ-वहाँ जा सकते है । जब जिसका समय आता है तो सरकमस्टान्सेज (परिस्थितियां) व समय सहज और स्वत: ही वहॉ ले जाता है। अच्छा!
स्वयं को और समय को जानने वाले, सदा सर्व रसों से न्यारे एक रस में रहने वाले, बाप-दादा को सदा नयनों में समाने वाले, बाप-दादा के नयनों के सितारे, सदा स्वयं को ज्योति स्वरूप सितारा समझकर चलने वाले, न्यारी और प्यारी आत्माओं और सर्वश्रेष्ठ आत्माओँ के साथ-साथ विशेष डबल विदेशी आत्माओँ को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते!

वरदान:- मेरे पन के अधिकार को समाप्त कर क्रोध व अभिमान पर विजयी बनने वाले कर्मबन्थन मुक्त भव
जहाँ मेरेंपन का अधिकार रखते हो कि ये क्यो किया, यह मेरी है या मेरा है तो क्रोध, अभिमान या मोह आता है । लेकिन यह सेवा के साथी है, न कि मेरे का अधिकार है । जब मेरा नहीं तो क्रोध, मोह का कर्मबन्धन भी नहीं । तो कर्मबन्धनों से मुक्त होने के लिए एक बाप को अपना संसार बना लो । "'एक बाप दूसरा न कोई" एक बाप ही संसार बन गया तो कोई आकर्षण नहीं, कोई कमजोर संस्कारों का
भी बंधन नहीं। सब मेरा-मेरा एक मेरे बाप में समा जाता है ।

स्लोगन: - मास्टर सर्वशक्तिमान् वह है जो समय प्रमाण हर गुण, हर शक्ति को कार्य में लगाये।







1 comment:

  1. ओम शान्ति भाईजी क्या आप रोज सम्पुर्ण मुरलि पोस्ट करेगें

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